Saturday, June 29, 2013

हाफिज सईद और इलियास कश्मीरी की मोस्ट वांटेड सूची में बस्तर का सोमजी

0 फरार या गिरफ्तार, एनआईए ने शुरू की शिनाख्त
02011 में गढ़चिरौली से गिरफ्तार किए गए नक्सली का नाम भी सोमजी
राष्ट्रीय जांच एजेंसी द्वारा एक सप्ताह पूर्व जारी की गई हाफिज सईद और इलियास कश्मीरी समेत 56 मोस्ट वांटेड आतंकियों की लिस्ट में बस्तर का सोमजी भी शामिल है। एनआईए को उसकी पिछले साल कोलकाता से गिरफ्तार किए गए माओवादियों की टेक्निकल कमेटी के सदस्य के तौर पर तलाश है। राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने सोमजी समेत लगभग आधा दर्जन हार्डकोर माओवादियों को भी आईएसआई द्वारा समर्थित आतंकियों की सूची में शामिल किया गया है। माओवादियों के नाम आतंकवादियों की सूची में शामिल कर उसे पब्लिक डोमेन पर जारी किए जाने के सवाल पर एनआईए के अधिकारियों का कहना है कि ऐसा गृह मंत्रालय के आदेश पर किया गया है।
इस पूरे मामले में एनआईए के लिए सरदर्द की वजह महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में सितंबर, 2011 को हुई वह गिरफ्तारी  है ,जिसमंे सोमजी नाम के एक हार्डकोर माओवादी को महाराष्ट्र पुलिस ने गिरफ्तार किया था। नईदुनिया द्वारा की गई तहकीकात में जानकारी मिली है कि गढ़चिरौली से गिरफ्तार सोमजी मौजूदा समय में नागपुर सेंट्रल जेल में बंद है। एनआईए के अधिकारियों ने नईदुनिया को फोन पर बताया कि हम इस पूरे मामले की जांच कर रहे हैं, जिसमें एक हफ्ते का समय लग सकता है। अगर नागपुर सेंट्रल जेल में बंद सोमजी ही वांटेड सोमजी निकला तो उसे रिमांड पर लेकर पूछताछ की जाएगी। महत्वपूर्ण है कि एनआईए की स्पेशल कोर्ट ने इस साल फरवरी में ही महीने सोमजी के खिलाफ वारंट जारी किया है।
अब तक नक्सल फ्रंट पर जिस सोमजी का नाम सुर्खियों और पुलिस की फाइलों में रहा है, वह सेंट्रल जेल में बंद और गढ़चिरौली से गिरफ्तार सोमजी ही है। गौरतलब है कि गढ़चिरौली में गिरफ्तार सोमजी, अहेरी मिलिशिया दलम का कमांडर रहा है और मुख्य तौर पर महाराष्ट्र के गढ़चिरौली से ऑपरेट करता था। सोमजी को सितंबर, 2011 को महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले के राजाराम के खंडला गांव की अहेरी तहसील से उस वक्त गिरफ्तार किया गया था, जब वह इलाज के लिए निकला था। उसे पुलिस पार्टी पर हमला करने, सामूहिक हत्या के अलावा लैंड माइन से ब्लास्ट किए जाने का दोषी बताया जा रहा है। सोमजी नंदीग्राम ,कोरेपल्ली और कोंडली बरगी में हुए पुलिस मुठभेड़ में शामिल रहा है। उधर एनआईए की सूची में सोमजी का नाम कोलकाता में पकडे गए माओवादियों की टेक्निकल कमेटी के भगोड़ांे के रूप में दर्ज है।
इस पूरे मामले में एसपी कांकेर आरएन दास का कहना है कि सोमजी की तलाश में  एनआईए की टीम तीन बार आ चुकी है, लेकिन एजेंसी द्वारा दिए गए पते पर उसका कोई सुराग नहीं मिला। गौरतलब है कि एनआईए ने उसका पता बंदे थाना ग्राम अल्दंड ,कांकेर दिया है। सोमजी के मामले को देख रहे एनआईए के अधिकारी कहते हैं कि हम पूरे केस को इस ढंग से भी देख रखे हैं कि माओवादियों में एक ही नाम रखने का प्रचलन तेजी से बढ़ा है। जब कोई माओवादी मारा जाता है या एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश में जाता है तो उसी नाम से दूसरा माओवादी जन्म ले लेता है। अब तक ये तरीका लश्कर-ए-तैयबा और अल -कायदा ही अपनाते थे।
सोमजी के अलावा एनआईए द्वारा जारी सूची में जिन अन्य माओवादियों को शामिल किया गया है, उनमें सीपी आई (माओ ) का सचिव गणपति उर्फ मुप्पला लक्ष्मण राव ,देवजी ,प्रभाकर आदि भी शामिल है। महत्वपूर्ण है कि जिन माओवादियों के नाम सूची में शामिल है, उनमें से ज्यादातर आन्ध्रप्रदेश ,छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल से ऑपरेट कर रहे हैं। महत्वपूर्ण है कि राष्ट्रीय जांच एजेंसी की सूची में अब तक आईएसआई द्वारा समर्थित हार्डकोर आतंकवादी ही शामिल रहे हैं। सोमजी के बारे में आरोप है कि वह माओवादियों के लिए हथियारों की उत्पादन इकाई में भी शामिल रहा है और छत्तीसगढ़ आंध्रप्रदेश सीमा पर युवाओं को संगठित करने का काम कर रहा था। राष्ट्रीय जांच एजेंसी के अधिकारियों का कहना है कि माओवादियों ने उत्तर-पूर्व के पृथकतावादी गुटों से संपर्क कर लिए हैं और उनके माध्यम से चीन में निर्मित राइफल ,पिस्टल ,रॉकेट मोटर सेल्स इत्यादि प्राप्त कर रहे हैं। अब वो न सिर्फ हथियारों का खुद उत्पादन कर रहे हैं, बल्कि अंतराष्ट्रीय स्तर पर भी उन्हें सहयोग मिल रहा है। ऐसे में उन्हें सिर्फ आतंकवादी नहीं कहा जा सकता। उन्हें मोस्ट वांटेड की सूची में रखना भी जरूरी हो गया है। एनआईए ने माओवादियों को पाकिस्तान के पृथकतावादी गुटों से भी सहयोग मिलने का अंदेशा जताया है। महत्वपूर्ण है कि पिछले साल माओवादियों की टेक्निकल कमेटी के सदस्यों की गिरफ्तारी के बाद से ही जिसमें छत्तीसगढ़ के अबूझमाड़ में हथियारों का उत्पादन करने की जानकारी मिली थी। एनआईए ने नक्सल फ्रंट पर अपनी कार्रवाई तेज कर दी है।
  वो अतुलनीय थे! हमारी एक बार उनसे कलकत्ता में मुलाकात हुई, जब उन्हें पता लगा कि मैं रायपुर से हूं, तो उनकी खुशी की कोई सीमा नहीं रही। पुरातत्व और इतिहास के दृष्टिकोण से उनका काम मील का पत्थर है। ये उनकी विद्वता थी कि पाकिस्तान की कायदे आजम यूनिवर्सिटी ने उन्हें जीवित रहने तक प्रोफेसर रहने के सम्मान से नवाजा था। उनके पाकिस्तान जाने की कहानी भी बिल्कुल अलग है। दरअसल जब विभाजन हुआ तो उस वक्त  पुरातव विभाग के अंग्रेज डायरेक्टर जनरल उन्हें जबरदस्ती अपने साथ पाकिस्तान ले गए। उनकी किताबें, उनका अध्ययन बेमिसाल है।
एल एस निगम
वरिष्ठ इतिहासकार
रायपुर

 

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