Saturday, June 8, 2013

इस मामूली जगह पैदा हुआ और बन गया कला का मसीहा

विश्व विख्यात और पद्म विभूषण से सम्मानित रंगकर्मी हबीब तनवीर की आठ जून को  पुण्यतिथि है। ठीक पांच साल पहले जब भोपाल में उनका निधन हुआ तब उनके रायपुर स्थित घर में सरकारी मुलाजिमों ने किस तरह औपचारिकता निभाई थी और उसका दर्द आज भी उनके परिवार में किस तरह से है। हबीब साहब ने अपने इस मकान के लिए क्या सपने देखे थे। हबीब साहब के रायपुर स्थित सौ साल से भी अधिक पुराने घर में पहुंचीं। पूरा मकान जर्जर हो गया है। आखिर इसका रेनोवेशन क्यों नहीं करवाया जा रहा है।हबीब साहब के दामाद एम एम खान बताते हैं कि हबीब साहब यहां इंतकाल से कुछ दिन पहले आए थे तब उन्होंने कहा था कि इस घर को ऐसे ही रखना, तोडफ़ोड़ करवाकर बदलवाना नहीं। उनकी उस इच्छा के कारण हम पुर्ननिर्माण नहीं करवा रहे हैं। हबीब तनवीर का जन्म रायपुर में ही एक सितंबर 1923 को हुआ था। उनका निधन भोपाल में आठ जून 2009 को हुआ। तनवीर साहब भारत के सबसे मशहूर पटकथा लेखकों, नाट्य निर्देशकों, कवियों और अभिनेताओं में से एक थे।उनकी प्रमुख कृतियों में आगरा बाजार, चरणदास चोर शामिल है। उन्होंने 1959 में दिल्ली में नया थियेटर कंपनी स्थापित किया था। आपके बचपन का नाम हबीब अहमद खाना था। उन्होंने लॉ श्री म्युनिसिपल हाईस्कूल से मैट्रिक पास की। इसके बाद मा रीस कॉलेज नागपुर से 1944 में स्नातक किया। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से एमए की परीक्षा पास की और यहीं से कविता लिखने का शौक चढ़ा।
इसका बाद 1945 में वे मुंबई चले गए। वहां प्रोड्यूसर के तौर पर आकाशवाणी में नौकर की। यहीं रहते हुए उन्होंने हिन्दी फिल्मों के लिए गाने भी लिखे तो कुछ फिल्मों के लिए अभिनय भी।
वे प्रगतिशील लेखक संघ से भी जुडे। वहीं अंग्रेजों के शासन काल में इप्टा से जुडे लोग जब जेल चले गए तब आपने संगठन की जिम्मेदारी संभाली। इसके बाद दिल्ली आए और हिन्दूस्तानी थियेटर से जुड़कर काम करने लगे।

उनके दामाद आगे बताते हैं कि इंतकाल के बाद हबीब साहब का इंतकाल हुआ तो यहां एक आदमी आया और बोला सी.एम. साहब ने भेजा है, उनकी कोई फोटो है तो दे दीजिए...हमने दे दिए और वह उसमें फूल माला चढ़ाकर चला गया। तब से सरकार का कोई नुमांइंदा यहां नहीं आया।

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