Monday, June 3, 2013

गार्ड कहीं नक्सली तो नहीं?

रायपुर। नक्सली अपना शहरी नेटवर्क बढ़ाने के लिए अलग-अलग सेक्टर में अपने लोगों को काम पर लगा रहे हैं। फैक्ट्रियों में संगठन करने वाला नक्सलियों का एक आदमी छह साल पहले राजधानी में पकड़ा गया था। अब इंटेलिजेंस के पास सूचना है कि नक्सली सिक्योरिटी एजेंसियों में अपने लोगों की भर्ती करा रहे हैं।
राजधानी पुलिस ने वर्ष 2007 में भाठागांव में राजकिशोरनगर बिलासपुर निवासी राजा उर्फ कमस्र्द्दीन मुसलमान को गिरफ्तार किया था। राजा यहां रहकर फैक्ट्रियों के मजदूरों को नक्सली विचारधारा से जोड़ने का काम कर रहा था। पुलिस अधिकारी के अनुसार राजा कई फैक्ट्रियों में काम करते हुए भनपुरी और सिलतरा समेत दूसरे औद्योगिक क्षेत्रों में काम करने वाले मजदूरों के बीच लगातार सक्रिय था। इसके बाद भी पुलिस ने नक्सलियों के शहरी नेटवर्क बढ़ाने वाले हथकंडे को गंभीरता से नहीं लिया। छह साल में केवल एक बार ही पूर्व एसएसपी दिपांशु काबरा ने भनपुरी इलाके में रहने वाले किराएदारों और मजदूरों की जांच कराई थी। अब खुफिया तंत्र को पता चला है कि नक्सलियों ने प्रदेश के बड़े श्ाहरों से सूचनाएं जुटाने के लिए सिक्योरिटी एजेंसियों को हथियार बनाया है। सिक्योरिटी एजेंसियों में काम करने के दौरान नक्सलियों के लोग शहर में होने वाली हर गतिविधि की रिपोर्ट तैयार करते हैं। यह रिपोर्ट नक्सलियों के मास्टर माइंड तक पहुंचती है। इस कारण नक्सलियों को सरकारी, प्रशासन, पुलिस और राजनीतिक दलों की गतिविधियों की जानकारी मिलती रहती है।
गार्ड पर शक नहीं होता
नक्सलियों ने सिक्योरिटी एजेंसियों को इसलिए चुना है, क्योंकि गार्ड पर जल्दी कोई शक नहीं करता है। अधिकारियों का कहना है कि इसका दूसरा फायदा यह है कि गार्ड के रूप में नक्सलियों के लोगों की बड़े उद्योगों और संस्थानों तक पहुंच आसान हो जाती है।
भेजे जाते हैं प्रशिक्षण देकर
पुलिस अधिकारियों के मुताबिक छह साल पहले गिरफ्तार राजा ने नक्सलियों के गढ़ अबूझमाड़ में जंगलवार की ट्रेनिंग भी ली थी। वर्ष 2004 में उसे अबूझमाड़ भेजा गया था। वहां उसने 20 दिन की ट्रेनिंग ली थी। दो माह तक वह नक्सलियों के साथ जंगलों मंे घूमता रहा। इसके बाद यहां लौट आया। मई 2007 में फिर वह अबूझमाड़ चला गया था। उसने नक्सली वर्दी पहनकर गांवों में नक्सली विचारधारा का प्रचार किया। इस दौरान उसे इंसोमेनिया नामक बीमारी हो गई। बीमारी के कारण उसे नींद नहीं आ रही थी। दवा नहीं मिलने से उसकी हालत बिगड़ती जा रही थी। इस वजह से उसे दिसंबर 2007 मेंे यहां भेज दिया गया था। राजा की तरह शहरी नेटवर्क के लिए काम कर रहे लोगों को नक्सली बाकायदा ट्रेनिंग देकर भेजते हैं।


 

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