Saturday, June 29, 2013

छत्तीसगढ़ में माओवादियों की बढ़ रही सैन्य ताकत


0 दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी में सदस्यों की संख्या 4500-5000
0 सेंटर फार लैंड वारफेयर स्टडी का खुलासा ,भारतीय सेना की तरह प्रशिक्षण पा रहे माओवादी
राजनैतिक गण-हत्याओं के दम पर  समूचे रेड कारीडोर पर कब्जा करने का स्वप्न देख रहे माओवादियों ने दंडकारण्य में अपनी ताकत में जोरदार इजाफा किया है । शेष भारत के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों की तुलना में, बस्तर में माओवादी कैडरों की संख्या आश्चर्यजनक ढंग से बढ़ी है। 'सेंटर फार लैंड वारफेयर स्टडी" ने माओवादियों की बढती ताकत का खुलासा करते हुए कहा है कि आज छत्तीसगढ़ में अपने आतंक की वजह से चर्चित और सुकमा हमले के लिए जिम्मेदार दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी में सदस्यों की संख्या 4500-5000 तक पहुंच गई है, वहीं आन्ध्र उड़ीसा बार्डर स्पेशल जोनल कमेटी  में सदस्यों की संख्या घट कर 175-200 तक रह गई है जो एक वक्त एक जहार से ज्यादा थी। सेंटर का कहना है कि माओवादियों की ट्रेनिंग लाइन पूरी तरह से भारतीय सेना के नक़्शे कदम पर हो रही है ,ऐसे में इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि उन्हें कुछ सेवानिवृत कर्मियों का सहयोग मिल रहा हो।
जम्मू से दिल्ली तक माओवादियों के ठिकाने
चाहे हथियारों के प्रशिक्षण का मामला हो या फिर बस्तर  में माओवादियों की बढ़ रही ताकत का अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि हाल के दिनों में न सिर्फ आन्ध्र प्रदेश से बल्कि बिहार, झारखंड और उत्तरी छत्तीसगढ़ से बड़े संख्या में माओवादियों का पलायन बस्तर की और हुआ है, मौजूदा समय में बिहार-झारखंड और उत्तरी छत्तीसगढ़ स्पेशल एरिया कमेटी  में कैडरों की संख्या घटकर 2500-3000 के बीच रह गई है। सेंटर ने पश्चिम बंगाल राज्य कमेटी में 450-500, पंजाब राज्य कमेटी में 200 और महाराष्ट्र राज्य कमेटी में 100 सदस्य हैं।इन बड़े राज्यों में कैडरों की संख्या औसत तौर पर 9 हजार से 10 हजार के बीच है इसके अलावा तमिलनाडु, केरल उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड में इनकी संख्या 30-50 और हरियाण ,जम्मू कश्मीर और दिल्ली में इनकी संख्या 15-30 है।
दंडकारण्य कमेटी में गुरिल्लाओं की 10 कम्पनियां
सुकमा में कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा पर हुआ हमला हो या 2010 में सीआरपीएफ के जवानो पर माओवादियों की लौमहर्षक कार्यवाही ,इसके पीछे न सिर्फ माओवादियों की बढती जा रही सैन्य ताकत थी बल्कि उनका जबरदस्त इंटेलिजेंस भी था। सेंटर के अध्ययन में कहा गया है कि आज दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी में छापामार गुरिल्लाओं की 10 कम्पनियां मौजूद हैं, जिसमें 23 पलाटून और 40 मिलिशिया पलाटून हैं। माओवादियों द्वारा किये जाने वाले एम्बुश आपरेशन के बारे में सेंटर ने रिटायर्ड ब्रिग्रेडियर के एस दलाल के माध्यम से कहा है कि पुलिस बल की अक्षमता का फायदा उठाते हुए माओवादियों ने एम्बुश लगाने के नए-नए तरीके जैसे मोबाइल एम्बुश और वन प्वाइंट एम्बुश जैसी तकनीक इजाद कर ली है, वो हर हमले को सफल बनाने और  अधिकतम नुकसान पहुंचाने की योजना पर काम कर रहे हैं। सेंटर का कहना है कि आज माओवादी गुरिल्लाओं की प्रत्येक कंपनी में 25 से 30 की संख्या में ए के -47 ,इंसास और एसएलआर राइफल्स हैं, इसके अलावा उन्होंने बड़े हमलों को अंजाम देने के लिए स्पेशल गुरिल्ल्ाा स्क्वाड भी बना लिए हैं।


 

छत्तीसगढ़ के दानी को याद कर रहा पाकिस्तान


0 पुरातत्व विज्ञान और प्राचीन इतिहास के पितामह थे महासमुंद के जन्मे प्रो.अहमद हसन दानी
0 35 भाषाओँ के जानकार और 30 से ज्यादा किताबों के लेखक पर ,पाकिस्तान बनाएगा डाक्यूमेंट्री
छत्तीसगढ़ के महासमुंद में जन्म लेकर ,बनारस में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास विभाग की कक्षाओं से होते हुए समूचे पाकिस्तान और बांग्लादेश में छा जाने वाले अहमद दानी को अब और नहीं भुलाया जा सकेगा ।मध्य और दक्षिण एशिया में प्राचीन इतिहास एवं पुरातत्व विज्ञान के गुरु कहे जाने वाले प्रो.अहमद हसन दानी के जीवन पर इस्लामाबाद का "तक्षशिला इंस्टीट्युट आफ एशियन सिविलाइजेशन "एक डाक्यूमेंट्री बनाने जा रहा है ।जिसकी शूटिंग कजाकिस्तान ,पाकिस्तान ,बांग्लादेश के अलावा छत्तीसगढ़ में भी किये जाने का प्रस्ताव है। महासमुंद के बसना गाँव में जन्मे अहमद हसन दानी काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के प्रथम मुस्लिम परास्नातक थे। तक्षशिला और मोहनजोदड़ों की खुदाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले दानी को सिन्धु घाटी के पूर्व की सभ्यता एवं उत्तरी पाकिस्तान स्थित रहमान ढेरी से सम्बंधित खोजों के लिए प्रमुख रूप से जाना जाता रहा है ।  बंटवारे के बाद वे पाकिस्तान चले गए ।दुनिया के लगभग आधा दर्जन विश्वविद्यालयों में अपनी सेवाएँ देने वाले अहमद दानी ने ही पाकिस्तान और बांग्लादेश के विश्वविद्यालयों में पुरातत्व विज्ञान को एक विषय के रूप में स्थापित किया । देश-विदेश में कई बड़े सम्मानों से नवाजे गए दानी की 2009 में इस्लामाबाद में ही मौत हो गई ।अहमद हसन दानी के चचेरे भाई और अभी महासमुंद में रह रहे तौकीर सरवर दानी बताते हैं कि वह  जिंदगी भर छत्तीसगढ़ और ख़ास तौर से अपने गांव से लगाव नहीं छोड़ पाए । अपनी मृत्यु से पहले दानी साहब जब भी भारत आये अपने गांव जाना नहीं भूले ,वो जब भी आते अपने विद्यालय "उत्तर बुनियादी स्कूल "जरुर जाते और वहां बच्चों की कक्षाएं लेते । तौकीर बताते हैं "हिंदुस्तान के विश्वविद्यालयों में कभी भी किसी लेक्चर का उन्होंने पैसा नहीं लिया ,वो संस्कृत में भी परास्नातक थे शायद इस बात पर कम लोग विश्वास करें कि उन्होंने मंत्रोच्चार से दर्जनों हिन्दू शादियाँ भी कराई थी ।वो अहमद दानी ही थे जिन्होंने पाकिस्तान के इतिहास के बारे में 2005 में जर्मन रेडियो को दिये एक साक्षात्कार में स्वीकार किया कि पाकिस्तान के इतिहासकार ,तथ्यों को तोडकर प्रस्तुत करने के दबाव से कभी मुक्त  नहीं रहे हैं । उनके एक शिष्य बताते हैं कि दानी साहब की खासियत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वो संस्कृत और हिंदी समेत 35 भाषाएं बोलना जानते थे । अहमद दानी का साफ़ तौर पर मानना था कि गंगा के मैदानी इलाकों का सिन्धु घाटी की सभ्यता के विकास में किसी प्रकार का योगदान नहीं रहा है । उन्होंने 30 से ज्यादा किताबें लिखी  । पं. रविशंकर विश्वव्दियालय में प्राचीन इतिहास एवं संस्कृति विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ दिनेश नंदिनी परिहार कहती है ब्राम्ही लिपि के विकास में उनका अध्ययन अद्वितीय है ।
 दिल्ली विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के प्रोफ़ेसर आर सी ठकरान कहते हैं प्राचीन इतिहास और पुरातत्व विज्ञान के अध्ययन में अहमद दानी के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता ,आज भी देश के विश्वविद्यालयों में उनका लिखा पढ़ा और पढाया जा रहा है ।पाकिस्तान तो आज बना है ,उनकी नजर से देखा गया भारत का इतिहास महान है । 
प्रो .आर .सी ठकरान
इतिहास विभाग
दिल्ली विश्वविद्यालय


 

सीआरपीएफ भी बना रही 'सरेंडर नीति'

केन्द्र और छत्तीसगढ़ सरकार की तरह सीआरपीएफ भी नक्सलियों के लिए सरेंडर नीति बना रही है । इसके तहत पिछले दिनों बीजापुर में सरेंडर करने वाले दंपत्ति को सीआरपीएफ ने 5 लाख रूपए और रोजगार की सुविधा दी है । सीआरपीएफ के आईजी ने घोषणा की है कि अगर कोई नक्सली उनके किसी भी कैम्प में सरेंडर करना चाहता है तो उसे सरकार की तर्ज पर हर सुविधा दी जाएगी ।छत्तीसगढ़ पुलिस की तर्ज पर अब सीआरपीएफ भी नक्सलियों को समाज की मुख्यधारा में लाने की कोशिश में जुट गई है...। इसके लिए सीआरपीएफ भी केन्द्र और छत्तीसगढ़ सरकार की तरह अपनी सरेंडर नीति बना रहा है...। सीआरपीएफ ने अपनी नई रणनीति के तहत काम करना शुरू भी कर दिया है... । इसी कवायद के तहत सीआरपीएफ के अफसर पिछले दिनों नक्सली जगत लेकाम और उसकी पत्नी विमला लेकाम को बीजापुर कैम्प में सरेंडर करा चुके हैं...। इन दोनों को ढाई- ढाई लाख रुपए भी दिए गए हैं...। सीआरपीएफ के अफसरों के मुताबिक उनके कैम्प में सरेंडर करने वाले नक्सलियों को नकदी के अलावा रोजगार भी दिया जाएगा।सूत्रों से पता चला है कि सीआरपीएफ की सरेंडर नीति में केन्द्र और छत्तीसगढ़ सरकार की तुलना में अधिक मुआवजा राशि का
प्रावधान किया गया है। अभी छत्तीसगढ़ में एलएमजी के साथ सरेंडर करने वाले नक्सली को साढ़े 4 लाख रूपए, AK-47 के साथ सरेंडर करने वाले को 3 लाख रूपए, एसएलआर के साथ डेढ़ लाख रूपए, थ्री नॉट थ्री के साथ 75 हजार रूपए और 12 बोर की बंदूक के साथ सरेंडर करने वाले को 30 हजार रूपए मुआवजा राशि के रूप में मिलता है । जबकि सीआरपीएफ ने बिना हथियार के सरेंडर करने वाले नक्सली दंपत्ति को पांच लाख रूपया दिया है । अब देखना है कि सीआरपीएफ की सरेंडर पॉलिसी नक्सलियों का दिल जीतने में कितनी कारगर साबित होती है।

'राजाबंगला" नक्सलियों का सुरक्षित ठिकाना


0बैलाडीला के पहाड़ियों के उस पार लगती है बीजापुर जिले की सीमा
0वारदात कर इसी रास्ते पड़ोसी जिले में प्रवेश करते हैं नक्सली
 दंतेवाड़ा। रियासतकाल में राजा-महाराजाओं के लिए विश्राम स्थली के रूप चर्चित राजा बंगला का समूचा इलाका आज नक्सलियों की गिरफ्त में है, जो बैलाडीला आयरन ओर प्रोजेक्ट के डिपॉजिट 10 अंतर्गत है। इसे नक्सलियों का सेफ जोन माना जाता है, वो इसलिए कि यहां से बैलाडीला की पहाड़ियों को पार करते ही पड़ोसी जिले की सरहद लगती है। विदित हो कि लौह अयस्क के भंडार के रूप में चर्चित बैलाडीला क्षेत्र में बीते वर्षों में जितनी भी नक्सली घटनाएं हुई हैं वारदात के बाद नक्सली राजाबंगला के रास्ते ही जिले की दहलीज लांघने में कामयाब रहे। भौगोलिक परिस्थितियों का फायदा ही नक्सली अब तक उठाते आए हैं।
प्राप्त जानकारी के अनुसार नक्सलियों का यह सेफ जोन भांसी थाना अंतर्गत आता है। थाने से इस स्थान की दूरी करीब 14 किमी है। यहां शंकनी नदी पर एनएमडीसी परियोजना द्वारा एनीकट व पंप हाउस का निर्माण भी कराया गया था। पंप हाउस को नक्सली क्षतिग्रस्त कर चुके हैं। इसके अलावा सैंपलिंग के दौरान निजी कंपनियों के वाहन तथा मशीनों में आगजनी की घटनाएं भी नक्सली कर चुके हैं।
वारदातों के जरिए इलाके को नक्सलियों ने अपनी गिरफ्त में ले रखा है। नक्सली मूवमेंट के चलते ही डिपॉजिट 10 में सीएएफ का आउटपोस्ट खोला गया है, बावजूद इसके भौगोलिक परिस्थितियों के मद्देनजर इलाके की सर्चिंग नहीं होती है।
कुछ वर्ष पूर्व इलाके में दो मजदूर प्रेशर बम की चपेट में आए थे। घटना के बाद नक्सलियों द्वारा इलाके में प्रेशर बम लगाए जाने की आशंका भी जताई जाती रही है।

सरहद पार जनताना सरकार
बैलाडीला की पहाड़ियों को पार करते ही बसे गांव मिरतूर थाना के दायरे में आते हैं। गांव सरकारी नक्शे में नजर तो आते हैं, लेकिन सरकार यहां नजर नहीं आती है। सूत्र बताते हैं कि पहाड़ी पार गांवों में नक्सलियों की जनताना सरकार है। अपनी हुकूमत चलाने नक्सलियों ने गांवों को संगठित कर कमेटियां बना रखी है। जंगल की कटाई रोकने से लेकर स्कूल-आश्रम का संचालन कमेटियों के जिम्मे है।
बताया गया कि राजा बंगला से लेकर पड़ोसी जिले की सरहद तक का पूरा इलाका नक्सलियों के पश्चिम बस्तर डिवीजन अंतर्गत है। लोकल स्तर पर भैरमगढ़ एरिया कमेटी सक्रिय है, वहीं राजाबंगला इलाके में नक्सलियों ने भांसी एलओएस का गठन कर रखा है।

नेरली घाटी से इसी रास्ते भागे थे नक्सली
गत शुक्रवार को नेरली घाटी में पुलिस की एएलव्ही को निशाना बनाने के मकसद से पहुंचे नक्सली गोलीबारी करने के बाद राजाबंगला की तरफ भागे थे। घटना को अंजाम देने पहुंचे नक्सली प्लाटून दस्ते के बताए गए थे। इस प्लाटून दस्ता का गठन गंगालूर में किया गया है। पुलिस का कहना है कि नक्सली पड़ोसी जिले से आए थे। मुठभेड़ के दौरान पुलिस को अपने ऊपर भारी पड़ता देख पीछे हटने को मजबूर हुए तो राजा बंगला की तरफ भागे और पहाड़ियों को पार कर पड़ोसी जिले में प्रवेश कर गए।
क्यों कहते हैं राजा बंगला
रियासतकाल में बस्तर के राजा-महाराजाओं की विश्राम स्थली के रूप में इसका उपयोग होता था, लिहाजा इसे राजा बंगला के नाम से जाना गया। स्वतंत्रता के बाद देख-रेख के अभाव में यह भवन जर्जर होता गया जहां कालांतर में एनएमडीसी ने पंप हाउस का निर्माण कराया था। भांसी थाना से करीब 14 किमी दूर स्थित राजा बंगला परिसर के पंप हाउस को नक्सली क्षतिग्रस्त कर चुके हैं।
भौगोलिक परिस्थितियांे का फायदा ही नक्सलियों को मिल रहा है। बैलाडीला की पहाड़ियां बीजापुर सीमा से लगती हैं।  वारदात के बाद भौगोलिक परिस्थितियों का फायदा उठाते नक्सली इस रास्ते पड़ोसी जिले में प्रवेश कर जाते हैं।
-नरेन्द्र खरे, एसपी दंतेवाड़

 

जालसाजों का जन्नात बना छत्तीसगढ़!

0 दीमक की तरह चट कर रहे हैं लोगों की गाढ़ी कमाई
0 दो दर्जन से भी ज्यादा फर्जी कंपनियाँ अब भी सक्रिय
0 कार्रवाई में ढिलाई के चलते फैला रहे हैं अपना नेटवर्क
छत्तीसगढ़ अब जालसाजों के लिए जन्नात बन चुका है। यहाँ देश भर की कई तमाम कंपनियों ने अपना जाल फैला रखा है जिनका मक्सद लोगों से इनवेस्टमेंट के नाम पर रकम जमा करवाना और जमा होने के बाद उसे लेकर रफूचक्कर हो जाना है। पुलिस के पास भी दर्जनभर मामले सामने आ चुके हैं जिन पर मामला दर्ज कर तहकीकात तो की जा रही है लेकिन अभी भी दो दर्जन से भी ज्यादा कंपनियाँ राज्य के अलग-अलग इलाकों में लोगों की गाढ़ी कमाई दीमक की तरह चट करने में अमादा है।
कुछ सालों पहले जेवीजी नाम की एक कंपनी ने लोगों का जेब हल्का कर राज्य से अपना बोरिया बिस्तर समेट लिया था। इसके बाद से राज्य में एक के बाद एक कंपनी आती गई और लोगों को अपने झांसे में लेकर उनकी मेहनत की कमाई पर डाका डालते रहे। कंपनियों पर कार्रवाई की शुरूआत वर्ष 2010 में रायपुर के सिविल लाइन थाने में कल्चुरी इनवेस्टमेंट के खिलाफ हुई। कंपनी ने ज्यादा ब्याज का लालच देकर लोगों से लगभग दस करोड़ ऐंठ लिए मामला जाँच में है। इसके बाद से माइक्रो प्लान एसोसिएशन एवं बाबूजी चेरीटेबल ट्रस्ट द्वारा संडे हॉली-डे शिक्षा प्लान के नाम पर लोगों को लुभावने सपने दिखाकर ऐसे ठगा कि वे अपनी गाढ़ी कमाई ही कुर्बान कर गए। कंपनी ने इस योजना के तहत जिला फ्रेंचायजी देने पर 3 लाख 80 हजार व ब्लॉक स्तर पर 1 लाख 80 हजार रुपए की शर्त रखी थी और कईयों ने यह शर्त पूरी भी कर दी थी। कंपनी ने अपने डीलरों को बोलेरो गाड़ी देने का भी वायदा किया था।
रॉयल केयर विजन था पूरे राज्य में सक्रिय
पहले सरसींवा फिर पलारी और उसके बाद पंडरी थाने में मामला दर्ज होते ही रॉयल केयर विजन मदुरई के फर्जीवाड़े का भंडाफोड हुआ। कंपनी ने अधिकतम 16 प्रतिशत ब्याज देने का लालच देते हुए राज्य में दर्जनों लोगों को चूना लगाया। अनुमान लगाया जा रहा है कि यह फर्जीवाड़ा 20 करोड़ रुपये का है। मामले में कंपनी के डायरेक्टर एम वेलायुथा कुमार सहित स्थानीय एजेंट गिरफ्तार किए गए हैं।
स्थानीय बेरोजगारों को एजेंट
राज्य से बाहर आने वाली तमाम कंपनियाँ स्थानीय बेरोजगार युवकों को अपनी कंपनी की स्कीम बताकर झांसे में ले लेती है। युवक इलाके में अपनी जान पहचान का फायदा उठाकर कंपनी के लिए कलेक्शन करते हैं। शुरू में तो सब कुछ ठीक रहता है लेकिन जैसे-जैसे कंपनी रकम बटोरती जाती है वैसे-वैसे एजेंटों और इनवेस्ट करने वालों को दिक्कतें शुरू हो जाती है। कई मामले ऐसे आए हैं जिसमें कंपनी रकम लेकर चलती बनी और फंसे एजेंट।
स्कूली छात्रों को भी नहीं बख्शा
कुछ साल पहले ही रायपुर में आए राजेश शर्मा ने पूरे राज्य में अपने स्कूल ग्रुप डाल्फिन इंटरनेशनल स्कूल का जाल फैला लिया और पालकों से 12 वीं तक की पढ़ाई के नाम पर एक से डेढ़ लाख रुपए ले लिया गया बाद में स्कूल का संचालक राजेश अपने परिवार के साथ कहाँ गायब हुआ इसका आज तक पता नहीं चला पाया है। पूरे राज्य भर में 14 हजार बच्चों का भविष्य अधर में आ गया। 50 करोड़ से भी ज्यादा फर्जीवाड़े का अनुमान है। कई पालकों ने अपनी गाढ़ी कमाई बच्चे के सुनहरे भविष्य की कल्पना में लगा दी तो कईयों ने अपनी जमीन बेचकर।
उत्पादों का भी लिया जाता है सहारा
अखबारों में बड़े-बड़े विज्ञापन छपवाकर दैनिक उपयोग के सामान बेचने के लिए आउटलेट खोलने का झांसा देने वाली कंपनी स्माइल रिटेल इंडिया प्रा. लि. ने कई बेरोजगारों को अपनी जाल में फंसाया है। कंपनी स्माइल बाजार, स्माइल सुपर, स्माइल एरिस्टोकेट, स्माइल क्लासिक, स्माइल एक्सप्रेस व स्माइल लोकल जैसी स्कीम चलाने के बाद लोगों से रुपए लेने के बाद अपने दिए वायदों से मुकर गया। इसी तरह कई कंपनियाँ है जिसने अपने प्रोडक्ट को बेचने के नाम पर लोगों को छला है।
समय के साथ बदलता जालसाजी
जालसाजों ने खुद को समय के साथ बदला है। किसी जमाने में नेटवर्किंग व चेन सिस्टम से उपभोक्ता जोड़ने वाले लोगों की जालसाजी का भंडाफोड़ होने के बाद अब कुछ कंपनियों ने अपने स्कीम में बदलाव कर दिया है। कोतवाली थाने में दर्ज एक मामले में आईवा नाम की एक कंपनी ने मोबाइल फोन से निकलने वाली रेडिएशन को लेकर तरह-तरह की भ्रांतियाँ फैला दी और जब यह भ्रांति फैल गई तो उसके बचाव के लिए मोबाइल चिप कवर, हार्टगार्ड और अन्य उत्पादों की बिक्री के नाम पर कुछ लोगों से 21 लाख रुपए ऐंठ कर कंपनी शटर बंद कर फरार हो गई। मामले में आरोपी गिरफ्तार होकर जमानत पर रिहा किए गए हैं।
विशेष अनुसंधान सेल से उम्मीद
राजधानी में विशेष अनुसंधान सेल के गठन के साथ ही जालसाजों की उलटी गिनती शुरू हो गई। सेल को एक के बाद एक फर्जीवाड़े के मामले मिलते गए और उन मामलों की तहकीकात में सच सामने आते गए। फर्जी कंपनियों के खिलाफ सेल में अभी 13 मामलों की जाँच चल रही है जिसमें कई आरोपी गिरफ्तार भी किए गए हैं। पाँच मामलों में चालान पेश भी किए जा चुके हैं।
'''बड़ी संख्या में ऐसी कंपनियाँ सक्रिय हैं। यह समस्या सिर्फ छत्तीसगढ़ की ही नहीं है बल्कि पूरे देश में ऐसी कंपनियों का जाल फैला हुआ है। हमारे पास शिकायत आने पर हम कार्रवाई करते हैं। लोगों को पहले कंपनी के बारे में अच्छे से जानकारी हासिल करना चाहिए उसके बाद इनवेस्टमेंट के बारे में सोचना चाहिए"""
राजकुमार देवांगन, आईडी सीआईडी
'''राज्य में सक्रिय कंपनी अपने स्कीमों के जरिए लोगों को चूना लगाती है। कभी लोगों को आकर्षक ब्याज का लालच दिया जाता है तो कभी चैनल पार्टनर व किसी प्रोडक्ट से जोड़कर अपना स्कीम लाते हैं। लोग समझ नहीं पाते कि इन पर भरोसा करें या न करें क्योंकि जब एजेंट लोगों के पास पहुंचता है तो लुभावने वादे में आकर इनवेस्ट कर देते हैं।""""
अशोक जोशी, टीआई, विशेष अनुसंधान सेल
धोखाधड़ी के मामले
0 सिविल लाइन थाने में वर्ष 2010 में कल्चुरी इन्वेस्टमेंट के नाम पर 3,4,5,6 महीने में 70,80,90 और 100 प्रतिशत ब्याज देने के नाम पर 21 लाख की धोखाधड़ी
0 टिकरापारा थाने में माइक्रो प्लान एसोसिएशन व बाबूजी चेरीटेबल ट्रस्ट द्वारा संडे हॉली-डे शिक्षा प्लान के तहत हर जिले में फ्रेन्चायजी देने के नाम पर 17 लाख का गबन
0 सरसींवा, पलारी और पंडरी थाने में मदुरई तमिलनाडु की रॉयल केयर विजन कंपनी ने राज्य भर से 20 करोड़ की राशि ऐठ ली। मामले में पाँच एजेंटों सहित कंपनी के मैनेजिंग डारेक्टर गिरफ्तार
0 राजिम थाने में जीजेएस इन्वेस्टमेंट कंपनी के नाम पर शेयर मार्केटिंग व जमीन खरीदने का लालच देते हुए आरोपियों ने लोगों से साढे चार करोड़ रुपए उगाहे और राशि हडप कर फरार हो गए। मामले में एक आरोपी गिरफ्तार कोर्ट में चालान पेश।
0 सिविल लाइन थाने में एसिस्टेंट प्लाटून कमांडर सनंद यादव, उसकी पत्नी दिप्ती यादव और फागुराम साहू ने 62 लाख रुपए लोगों से लेकर फरार हो गए थे। बाद में आरोपियों को सेल ने गिरफ्तार किया।
0 सरस्वती नगर, गोबरा नवापारा थाने में डाल्फिन स्कूल संचालक राजेश शर्मा व उसकी पत्नी उमा शर्मा के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है। मामले में 20 करोड़ के फर्जीवाड़े का अनुमान है।
0 सिविल लाइन थाने में स्माइल रिटेल इंडिया प्रा. लि. में लोगों के साथ धोखाधड़ी का मामला। मामले में एमडी राजेन्द्र कुमार बेहरा गिरफ्तार
0 सिविल लाइन में ही इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एरोनॉटिकल कंपनी खोलकर बेरोजगारों को नौकरी दिलाने के एवज में मोटी फीस लेकर फर्जीवाड़ा किया गया।
0 कोतवाली में आईवा कंपनी द्वारा लोगों को भ्रामक जानकारी देते हुए मोबाइल प्रोडक्ट देने के नाम पर लोगों से 21 लाख की धोखाधड़ी      


 

हाफिज सईद और इलियास कश्मीरी की मोस्ट वांटेड सूची में बस्तर का सोमजी

0 फरार या गिरफ्तार, एनआईए ने शुरू की शिनाख्त
02011 में गढ़चिरौली से गिरफ्तार किए गए नक्सली का नाम भी सोमजी
राष्ट्रीय जांच एजेंसी द्वारा एक सप्ताह पूर्व जारी की गई हाफिज सईद और इलियास कश्मीरी समेत 56 मोस्ट वांटेड आतंकियों की लिस्ट में बस्तर का सोमजी भी शामिल है। एनआईए को उसकी पिछले साल कोलकाता से गिरफ्तार किए गए माओवादियों की टेक्निकल कमेटी के सदस्य के तौर पर तलाश है। राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने सोमजी समेत लगभग आधा दर्जन हार्डकोर माओवादियों को भी आईएसआई द्वारा समर्थित आतंकियों की सूची में शामिल किया गया है। माओवादियों के नाम आतंकवादियों की सूची में शामिल कर उसे पब्लिक डोमेन पर जारी किए जाने के सवाल पर एनआईए के अधिकारियों का कहना है कि ऐसा गृह मंत्रालय के आदेश पर किया गया है।
इस पूरे मामले में एनआईए के लिए सरदर्द की वजह महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में सितंबर, 2011 को हुई वह गिरफ्तारी  है ,जिसमंे सोमजी नाम के एक हार्डकोर माओवादी को महाराष्ट्र पुलिस ने गिरफ्तार किया था। नईदुनिया द्वारा की गई तहकीकात में जानकारी मिली है कि गढ़चिरौली से गिरफ्तार सोमजी मौजूदा समय में नागपुर सेंट्रल जेल में बंद है। एनआईए के अधिकारियों ने नईदुनिया को फोन पर बताया कि हम इस पूरे मामले की जांच कर रहे हैं, जिसमें एक हफ्ते का समय लग सकता है। अगर नागपुर सेंट्रल जेल में बंद सोमजी ही वांटेड सोमजी निकला तो उसे रिमांड पर लेकर पूछताछ की जाएगी। महत्वपूर्ण है कि एनआईए की स्पेशल कोर्ट ने इस साल फरवरी में ही महीने सोमजी के खिलाफ वारंट जारी किया है।
अब तक नक्सल फ्रंट पर जिस सोमजी का नाम सुर्खियों और पुलिस की फाइलों में रहा है, वह सेंट्रल जेल में बंद और गढ़चिरौली से गिरफ्तार सोमजी ही है। गौरतलब है कि गढ़चिरौली में गिरफ्तार सोमजी, अहेरी मिलिशिया दलम का कमांडर रहा है और मुख्य तौर पर महाराष्ट्र के गढ़चिरौली से ऑपरेट करता था। सोमजी को सितंबर, 2011 को महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले के राजाराम के खंडला गांव की अहेरी तहसील से उस वक्त गिरफ्तार किया गया था, जब वह इलाज के लिए निकला था। उसे पुलिस पार्टी पर हमला करने, सामूहिक हत्या के अलावा लैंड माइन से ब्लास्ट किए जाने का दोषी बताया जा रहा है। सोमजी नंदीग्राम ,कोरेपल्ली और कोंडली बरगी में हुए पुलिस मुठभेड़ में शामिल रहा है। उधर एनआईए की सूची में सोमजी का नाम कोलकाता में पकडे गए माओवादियों की टेक्निकल कमेटी के भगोड़ांे के रूप में दर्ज है।
इस पूरे मामले में एसपी कांकेर आरएन दास का कहना है कि सोमजी की तलाश में  एनआईए की टीम तीन बार आ चुकी है, लेकिन एजेंसी द्वारा दिए गए पते पर उसका कोई सुराग नहीं मिला। गौरतलब है कि एनआईए ने उसका पता बंदे थाना ग्राम अल्दंड ,कांकेर दिया है। सोमजी के मामले को देख रहे एनआईए के अधिकारी कहते हैं कि हम पूरे केस को इस ढंग से भी देख रखे हैं कि माओवादियों में एक ही नाम रखने का प्रचलन तेजी से बढ़ा है। जब कोई माओवादी मारा जाता है या एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश में जाता है तो उसी नाम से दूसरा माओवादी जन्म ले लेता है। अब तक ये तरीका लश्कर-ए-तैयबा और अल -कायदा ही अपनाते थे।
सोमजी के अलावा एनआईए द्वारा जारी सूची में जिन अन्य माओवादियों को शामिल किया गया है, उनमें सीपी आई (माओ ) का सचिव गणपति उर्फ मुप्पला लक्ष्मण राव ,देवजी ,प्रभाकर आदि भी शामिल है। महत्वपूर्ण है कि जिन माओवादियों के नाम सूची में शामिल है, उनमें से ज्यादातर आन्ध्रप्रदेश ,छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल से ऑपरेट कर रहे हैं। महत्वपूर्ण है कि राष्ट्रीय जांच एजेंसी की सूची में अब तक आईएसआई द्वारा समर्थित हार्डकोर आतंकवादी ही शामिल रहे हैं। सोमजी के बारे में आरोप है कि वह माओवादियों के लिए हथियारों की उत्पादन इकाई में भी शामिल रहा है और छत्तीसगढ़ आंध्रप्रदेश सीमा पर युवाओं को संगठित करने का काम कर रहा था। राष्ट्रीय जांच एजेंसी के अधिकारियों का कहना है कि माओवादियों ने उत्तर-पूर्व के पृथकतावादी गुटों से संपर्क कर लिए हैं और उनके माध्यम से चीन में निर्मित राइफल ,पिस्टल ,रॉकेट मोटर सेल्स इत्यादि प्राप्त कर रहे हैं। अब वो न सिर्फ हथियारों का खुद उत्पादन कर रहे हैं, बल्कि अंतराष्ट्रीय स्तर पर भी उन्हें सहयोग मिल रहा है। ऐसे में उन्हें सिर्फ आतंकवादी नहीं कहा जा सकता। उन्हें मोस्ट वांटेड की सूची में रखना भी जरूरी हो गया है। एनआईए ने माओवादियों को पाकिस्तान के पृथकतावादी गुटों से भी सहयोग मिलने का अंदेशा जताया है। महत्वपूर्ण है कि पिछले साल माओवादियों की टेक्निकल कमेटी के सदस्यों की गिरफ्तारी के बाद से ही जिसमें छत्तीसगढ़ के अबूझमाड़ में हथियारों का उत्पादन करने की जानकारी मिली थी। एनआईए ने नक्सल फ्रंट पर अपनी कार्रवाई तेज कर दी है।
  वो अतुलनीय थे! हमारी एक बार उनसे कलकत्ता में मुलाकात हुई, जब उन्हें पता लगा कि मैं रायपुर से हूं, तो उनकी खुशी की कोई सीमा नहीं रही। पुरातत्व और इतिहास के दृष्टिकोण से उनका काम मील का पत्थर है। ये उनकी विद्वता थी कि पाकिस्तान की कायदे आजम यूनिवर्सिटी ने उन्हें जीवित रहने तक प्रोफेसर रहने के सम्मान से नवाजा था। उनके पाकिस्तान जाने की कहानी भी बिल्कुल अलग है। दरअसल जब विभाजन हुआ तो उस वक्त  पुरातव विभाग के अंग्रेज डायरेक्टर जनरल उन्हें जबरदस्ती अपने साथ पाकिस्तान ले गए। उनकी किताबें, उनका अध्ययन बेमिसाल है।
एल एस निगम
वरिष्ठ इतिहासकार
रायपुर

 

नकली सामान से पटी राजधानी

0 नोट से लेकर रोजमर्रा की हर चीज में धोखा
0 कॉस्मेटिक सामान से लेकर दवा का गोरखधंधा
0 मशीनरी सामान व सरिया भी बिक रहे नकली
0 पायरेटेड सीडी का बन चुका है बड़ा बाजार       
0 जले हुए इंजन ऑइल से कर रहे मोटी कमाई
0 लोकल कपड़ों पर ब्रांडेड कंपनियों के लेबल
राजधानी में सेल का नकली मार्का लगाकर सरिया बनाने का मामला सामने आया है। यहां केवल सरिया ही नहीं, बल्कि पूरा बाजार नकली सामान से पटा है। नोट से लेकर खाने-पीने और रोजमर्रा में इस्तेमाल होने वाली हर चीज नकली मिल रही है। नकली माल बनाने वालों ने दवा को भी नहीं छोड़ा है। नकली कॉस्मेटिक, कपड़े, मशीनरी, इंजन ऑइल पर ब्रांडेड कंपनियों का मार्का लगाकर मोटी कमाई की जा रही है। इस कारण ग्राहकों के लिए असली-नकली माल में फर्क कर पाना मुश्किल है।
राजधानी के लोग छोटी या बड़ी दुकान से कोई भी चीज खरीदकर इस मुगालते में रहते हैं कि वे ब्रांडेड चीज इस्तेमाल कर रहे हैं, लेकिन उन्हें यह नहीं मालूम होता है कि जिस चीज को असली समझ रहे हैं, दरअसल वह लोकल है। केवल ब्रांडेड कंपनी का स्टिकर या लेबल लगाकर उसकी कीमत बढ़ा दी जाती है। अभी तक खाने-पीने की चीजें और दवाओं के नकली आने की शिकायतें मिल रही थीं, लेकिन अब नकली माल के सौदागरों ने दूसरे बाजार में अपनी घुसपैठ कर ली है। जैसे ऑटो मोबाइल, मशीनरी, लोहा, कपड़ा, कॉस्मेटिक समेत अन्य उत्पाद भी बड़े पैमाने पर नकली आ रहे हैं। नकली चीजों के इस्तेमाल से असली उत्पाद बनाने वाली कंपनियों को तो नुकसान होता ही है, ग्राहकों के स्वास्थ्य पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है।
खानापूर्ति के लिए कार्रवाई
छत्तीसगढ़ में खाद्य सुरक्षा और मानक नियम-2011 के लागू होने के बाद प्रदेश में केवल 204 दुकानें में छापा मारकर सैम्पल लिए गए। प्रतिमाह औसतन 12 सैम्पल ही लिए। इनमें से महज 40 पर जुर्माना किया गया। रायपुर, बिलासपुर, कोरबा और महासमुंद जिले में ही जुर्माना लगाया गया। बाकी 23 जिलों में मिलावटखारों पर कोई कार्रवाई नहीं की गई।
त्योहार के समय ही टूटती है नींद
खाद्य सुरक्षा विभाग की नींद त्योहार के समय ही टूटती है। बाकी समय मिलावटखोर और नकली सामान बेचने वालों के खिलाफ कोई अभियान नहीं चलाया जाता है। इस कारण सालभर नकली और मिलावटी सामान बाजार में बेधड़क खपते रहते हैं।
कंपनियों की शिकायत पर कार्रवाई
खाद्य सुरक्षा विभाग की तरह पुलिस का रवैया भी ढुलमुल है। नकली माल बेचने वालों के खिलाफ पुलिस तब कार्रवाई करती है, जब संबंधित कंपनी श्ािकायत करती है। नकली खाने का रंग, फ्लेवर, इंजन ऑइल, मोटर पार्ट्स, मोटर पंप, कॉस्मेटिक प्रोडक्ट और सरिया की कार्रवाई कंपनियों की शिकायत पर की गई।
पड़ोसी जिले का कस्बा चर्चा में
पड़ोसी जिला बलौदाबाजार का एक कस्बा भाटापारा नकली माल बनाने के मामले में चर्चा में रहा है। पुलिस अफसरों के मुताबिक भाटापारा में नकली माल का बाजार कितना बड़ा है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वहां नकली काजू तक बन रहा है। मूंगफली से नकली काजू बनाकर न केवल छत्तीसगढ़, बल्कि दूसरे राज्यों में भी सप्लाई की जा रही है।
नकली माल पकड़े गए---
- सेल के मार्का में खेल
गोगांव और उरला स्थित दो फैक्ट्रियों में छापा मारकर पुलिस ने 548 टन सरिया जब्त किए थे, उन पर सेल का नकली मार्का लगा था।
- खोवा तक नकली बन रहा
खाद्य विभाग ने बस स्टैंड और तेलीबांधा स्थित कोल्ड स्टोरेज से नकली खोवा बरामद किया। इसके पहले जीआरपी ने बड़ी मात्रा में नकली खोवा पकड़ा था।
- खाने का नकली रंग व फ्लेवर
दो साल पहले पुलिस ने गोलबाजार और मालवीय रोड की दुकानों में छापा मारकर डिब्बा बंद खाने का नकली रंग व फ्लेवर जब्त किया था।
- जला हुआ इंजन ऑइल
दो साल पहले टाटीबंध स्थित एक यार्ड में पुलिस ने दबिश देकर असली ऑइल में जला हुआ ऑइल मिलाने का भंडाफोड़ किया था।
- नकली इंजन ऑइल मिला
दो साल पहले जयराम कॉम्प्लेक्स के पीछे बेसमेंट और पंडरी में चल रही नकली इंजन ऑइल फैक्ट्रियों पर छापा मारा गया था।
- पायरेटेड सीड का बड़ा बाजार
तेलीबांधा, श्यामनगर, फाफाडीह, जेल रोड समेत कुछ और इलाकों से पायरेटेड सीडी और डीवीडी हजारों की संख्या में बरामद किए जा चुके हैं।
- क्रीम-पावडर जब्त किए
ब्रांडेड कंपनियों की शिकायत पर पुलिस ने बंजारी रोड और गोलबाजार से नकली फेस पावडर, कई तरह की क्रीम, बॉडी लोशन, नेल पॉलिस जब्त किए थे।
- एनर्जी कैप्सूल में खेल
मेडिकल काम्प्लेक्स और आमापारा की मेडिकल शॉप में छापा मारकर पुलिस ने स्टे ऑन कंपनी के नाम से बनाए गए नकली एनर्जी कैप्सूल बरामद किए थे।
- वाहनों के नकली पार्ट्स
पिछले साल एमजी रोड की दो दुकानों से हुंडई कार और तीन दुकानों से बजाज बाइक के नकली पार्ट्स बरामद किए गए थे।
- मोटर पंप पर फर्जी मार्का
पिछले साल उषा कंपनी की शिकायत पर पुलिस ने गंज स्थित चार दुकानों में छापा मारा था, वहां से नकली मार्का वाले मोटर पंप जब्त हुए थे।
- माउथफ्रेशनर में घालमेल
शद्दाणी दरबार माना के पास स्थित एक कारखाने में पुलिस ने नकली माउथफ्रेशनर जब्त किया था। इसकी शिकायत नागपुर की एक कंपनी ने की थी।
पुलिस कंपनियों की शिकायत पर नकली माल बनाने और बेचने वालों के खिलाफ कार्रवाई करती है। पुलिस खुद से भी ऐसे लोगों की जानकारी जुटाती रहती है। तस्दीक करने के बाद स्वत: कार्रवाई भी की जाती है।
डॉ. लाल उम्मेद सिंह
एएसपी, सिटी
 

Friday, June 28, 2013

अपराध घटा, पायदान वही


0 नेशनल क्र ाइम रिकॉर्ड ब्यूरो ने वर्ष 2012 का आपराधिक ब्यूरा जारी किया
0 छत्तीसग ढ में अपराध कम हुए, लेकिन दूसरे राज्यों की तुलना में नहीं सुधरी स्थित
छत्तीसगढ में अपराध तो कम हुए हैं, लेकिन देश के दूसरे राज्यों की तुलना में इस प्रदेश की स्थित में ज्यादा सुधार नहीं आया है। क्योंकि, अधिकांश आपराधिक मामलों के पायदान में छत्तीसग ढ पिछले दो सालों में जस का तस बना हुआ है।
नेशनल क्र ाइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) ने 28 राज्य और सात केंद्र शासित प्रदेशों में वर्ष 2012 हुए अपराध का आंक डा और उनका देशभर में पायदान जारी किया है। छत्तीसग ढ में वर्ष 2011 और 2012 के आंक डों की तुलना की जाए तो यहां ज्यादातर अपराधों में गिरावट आई है। इससे प्रदेश के कानून व्यवस्था में सुधार का पता चलता है, लेकिन दूसरे राज्यों से तुलना करें तो छत्तीसग ढ उसी पायदान पर नजर आ रहा है, जो वर्ष 2011 की एनसीआरबी की रिपोर्ट में था। इससे साफ हैकि दूसरे राज्यों ने भी कानून व्यवस्था में सुधार किया है। छत्तीसग ढ सरकार और पुलिस को आपराधिक मामलों के पायदान में पीछे जाने के लिए और मेहनत करनी होगी।
स्वत: संज्ञान लेना सीख रही पुलिस
अमूमन देखा गया हैकि पुलिस किसी भी मामले को स्वत: संज्ञान में लेने से कतराती है, क्योंकि उसे पार्टी बनना प डा है। लेकिन, अब आंक डे बताते हैं कि छत्तीसग ढ पुलिस खुद सामने आकर मामलों को संज्ञान में लेने लगी है। वर्ष 2011 की तुलना में वर्ष 2012 में छत्तीसग ढ पुलिस ने 16 हजार 882 अधिक मामलों को स्वत: संज्ञान में लिया। इसी तरह पुलिस को 31 हजार 969 मौखिक और 36 हजार 815 लिखित शिकायतें ज्यादा आईहैं। लेकिन फोन पर पुलिस को सूचनाएं मिलना कम हुईहै। तुलनात्मक ढंग से देखा जाए तो वर्ष 2012 में फोन पर 97 हजार 548 सूचनाएं कम मिलीं। वर्ष 2011 में इस मामले में छत्तीसग ढ दूसरे पायदान पर था, लेकिन वर्ष 2012 में पांचवें पायदान पर पहुंच गया।
वाहन चोरी के मामले ब ढे
छत्तीसग ढ में चोरी और वाहन चोरी के मामले ब ढे हैं। वर्ष 2011 की तुलना में चोरी के 26 और वाहन चोरी के 66 मामले ज्यादा दर्जकिए गए। गंभीर अपराधों में कमी आई है। हत्या के 112, हत्या का प्रयास के 154, डकैती की योजना के 3, डकैती के 58, अन्य चोरी के 40, धोखाध डी के 55 और बलवा के 24 प्रकरण तुलनात्मक ढंग से कम दर्जहुए। लेकिन हत्या, डकैती, चोरी, वाहन चोरी, अन्य चोरी, बलवा, धोखाध डी के मामले में प्रदेश का पायदान नहीं बदला है।
महिलाओं के मामले में सुधरी स्थिति
महिलाओं पर हमला, दहेज हत्या, छे डछा ड और यौन प्रता डना के मामले में छत्तीसग ढ में स्थिति सुधरी है। तुलनात्मक रूप से हमले के 250, दहेज हत्या के 23, छे डछा ड के 53 और यौन प्रता डना के 12 मामले कम दर्जहुए हैं।
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वर्ष 2011 और वर्ष 2012 की स्थिति
सूचनाएं और प्रकरण दर्ज करने के मामले में-
-वर्ष 2011-वर्ष 2012
तरीका-संख्या-पायदान-संख्या-पायदान
मौखिक-101303-5-133272-3
लिखित-48115-16-84930-14
फोन-160115-2-62567-5
स्वत: संज्ञान-20968-9-37850-8
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अपराध और उनके रिकॉर्ड
-वर्ष 2011-वर्ष 2012
अपराध-संख्या-पायदान-संख्या-पायदान
हत्या-1110-14-998-14
हत्या का प्रयास-747-13-593-15
डकैती की योजना-7-18-4-19
डकैती-470-17-412-17
झांसेबाजी-3548-11-3334-13
चोरी-5315-16-5341-16
वाहन चोरी-2292-14-2358-14
अन्य चोरी-3023-17-2983-17
अमानत में खयानत-180-19-170-18
धोखाध डी-980-17-925-17
बलवा-934-16-910-16
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महिलाओं के खिलाफ अपराध
-वर्ष 2011-वर्ष 2012
अपराध-संख्या-पायदान-संख्या-पायदान
हमला-11105-11-10855-11
दहेज हत्या-104-16-81-16
छे डछा ड-1654-10-1601-11
यौन प्रता डना-174-10-162-11
 

साधु के चोले में ठग

गिरोह की सक्रियता की खबर पर पुलिस अलर्ट
0 ठगी में माहिर ईरानी गैंग
सावधान... शहर में साधु के चोले में घूम रहे अंजान चेहरे ठग तो नहीं? अपने आप को कभी पुलिस, क्राइम ब्रांच तो कभी ज्योतिषी व पहुंचा हुआ तांत्रित बताकर वृद्ध महिलाओं को झांसे में लेकर सरेराह शरीर से गहने उतरवाने वाले ठग गिरोह की एक बार फिर से राजधानी में सक्रिय होने की खबर से क्राइम ब्रांच व पुलिस की नींद उड़ गई है। दो दिन पहले धमतरी जिले के अछोटा में बोलेरो से पहुंचे आधा दर्जन ढोंगी बाबाओं ने चक्रधारी परिवार को शनि के प्रकोप का भय दिखाते हुए इससे बचाने के नाम पर जेवर व दस हजार रुपए ठगकर भाग निकले थे। महासमंुद, दुर्ग जिले में भी इसी तरह की घटना सामने आने के बाद राजधानी पुलिस अलर्ट है।
पुलिस सूत्रों ने बताया कि इस तरह की वारदात ईरानी गैंग करता आया है। गैंग के कुछ सदस्यों के मूवमेंट की सूचना है। राजधानी में पिछले छह माह के भीतर में ईरानी गैंग ने दर्जनभर से अधिक ठगी की वारदातों को अंजाम दिया है। इनके ठगने तरीकों ने पुलिस व क्राइम ब्रांच को लंबे समय से परेशान कर रखा है। हालांकि गैंग के कई सदस्य पहले पकड़े भी गए हैं लेकिन जेल से छूटते ही कुछ दिनों तक वे दूसरे जिलों में वारदात करने के बाद राजधानी व आसपास के इलाके में सक्रिय हो जाते हैं।
क्राइम ब्रांच प्रभारी आरके साहू का कहना है कि ईरानी गैंग की राजधानी में लंबे समय से सक्रियता रही है। गैंग के सदस्य दो और चार का समूह बनाकर सुनसान इलाके में वृद्धों को निशाना बनाते हैं। खासकर महिलाओं को वे जल्दी झांसे में लेते हंै। आगे मर्डर, लूट होने की बात कहकर सुरक्षा के लिहाज से गहने को उतरवाकर कागज में लपेट कर वापस लौटाते हैं। इससे पहले वे हाथ सफाई कर लेते हैं। वे पीड़ितों को घर जाकर कागज की पुड़िया खोलने की सलाह देकर विश्वास में लेते हंै। पुलिस के नाम पर ठगी करने वाले इस गिरोह की सक्रियता से राजधानी पुलिस की छवि खराब होने लगी है। पुलिस वाला बनकर लोगों को आसानी से झांसे में लेने में माहिर ईरानी गैंग के सदस्यों को दबोचने क्राइम ब्रांच की टीम घेराबंदी करने उनके रुकने के संभावित ठिकानों पर नजर रखना शुरू कर दिया है। मप्र के शहडोल, कोतमा, पिपरिया तथा महाराष्ट्र के कई क्षेत्रों में ईरानी गैंग की बसाहट है।
फर्जी से निपटेगी असली पुलिस
पुलिस बनकर ठगी करने वाले ईरानी गैंग से निपटने की कवायद पुलिस ने शुरू कर दी है। रेलवे स्टेशन, आउटर के ठिकानों, होटल, छोटे लॉज में जांच पड़ताल के साथ ही सादे कपड़े में जवानों को सुनसान इलाके में घूमने के निर्देश दिए हैं, ताकि संदिग्ध व्यक्ति के नजर आते ही उसे पकड़ लिया जाए। गैंग के सदस्य आउटर के इलाके में रुकते हैं और वारदात के बाद तत्काल शहर की ओर रूख करते हंै, ताकि पुलिस उन्हें आसानी से न पकड़ सके।
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प्रशासनिक ब्रेक से घुटेगा गाड़ियों का दम
- अब सड़कों पर कछुआ चाल पर चलेंगी गाड़ियां
- पांच की जगह साढ़े तीन साल हो जाएगी लाइफ
राजधानी में अब गाड़ियां कछुआ चाल में चलेंगी। गाड़ियों की रफ्तार पर प्रशासन ने ब्रेक लगा दिया है। शहर के अंदर अब गाड़ियां 20 किलोमीटर प्रति घंटे की स्पीड से ऊपर नहीं चल पाएंगी। स्पीड इससे अधिक हुई तो कार्रवाई की जाएगी। फाफाडीह, जेल रोड, शंकर नगर, गौरवपथ पर गाड़ियों को साइकिल की तरह चलाना होगा। विशेषज्ञों की मानें तो यह बंद कमरों में निर्धारित किया गया पैमाना है। 20 की स्पीड से गाड़ियां चलाने से इंजन पर लोड पड़ेगा और गाड़ियों की लाइफ कम हो जाएगी। सामान्य स्पीड में जो गाड़ियां पांच साल चलती हैं, वह तीन साल में ही जवाब दे देंगी। जो नियम बनाया गया है वह राजधानी की हर सड़क पर लागू नहीं होता है।
निर्धारण 20 का, संकेतक 40 के
राजधानी के जेल रोड सहित अन्य मार्गों पर सड़क किनारे लगे स्पीड संकेतक बोर्ड में 40 किमी प्रति घंटा लिखा हुआ है, जबकि प्रशासन ने 20 किमी की रफ्तार पर चलने का नियम बनाया है। रविवार को यह नियम बनाया गया, लेकिन संकेतक पुराने ही लगे हैं।
  कुछ सड़कों पर नियम बेवजह
प्रशासन ने जिन सड़कों के लिए स्पीड निर्धारित की है उनमें से कुछ सड़कें ऐसी हैं, जिन पर 40 किमी की रफ्तार से गाड़ियां चलाई जा सकती है। जेल रोड, शंकर नगर रोड, वीआईपी तिराहे से लोधीपारा, आश्रम तिराहा से आजाद चौक तक सड़कें चौड़ी हैं। कुछ ही समय इन सड़कों पर ट्रैफिक का दबाव रहता है फिर भी इन मार्गों पर आसानी से 40 की स्पीड पर गाड़ियां चलाई जा सकती हैं। 
वीआईपी वाहनों पर नहीं लगाम
प्रशासन ने जो नियम लागू किया है वह  सिर्फ आम आदमी के लिए है, वीआईपी गाड़ियों की स्पीड पर कोई लगाम नहीं है। ज्यादातर अफसर देवेन्द्र नगर अफसर कॉलोनी में रहते है, जो जेल रोड और शास्त्री चौक से होकर जाते हैं। इनकी गाड़ियां हमेशा हवा से बातें करती हैं। ट्रैफिक के दबाव के बाद भी रफ्तार कम नहीं होती। पुलिस का इंटर सेप्टर व्हीकल इन गाड़ियों की रफ्तार को नोट करने में नाकाम साबित हुआ है। 
पेट्रोल की खपत होगी ज्यादा
जिला प्रशासन और यातायात पुलिस द्वारा तय स्पीड के अनुसार बाइक और कारें साइकिल की चाल से चलेंगी। गाड़ियों के विशेषज्ञों की मानें तो चार गियर वाली गाड़ी और कार को 20 किमी की रफ्तार में चलाने के लिए उन्हें दूसरे या तीसरे गियर पर चलना होगा। इससे इंजन पर लोड पड़ेगा। पेट्रोल की खपत ज्यादा होगी और माइलेज भी कम हो जाएगा। गाड़ियां मेंटेनेस ज्यादा मांगेंगी। क्योंकि रफ्तार को कंट्रोल करने के लिए क्लच-ब्रेक का ज्यादा इस्तेमाल करना होगा। लोगों का कहना है कि इससे अच्छा तो साइकिल पर चलना होगा। इससे पेट्रोल बचेगा, क्योंकि समय तो साइकिल जितना ही लगेगा।
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ट्रैफिक विभाग ने भेजा था प्रस्ताव
ट्रैफिक पुलिस ने सड़कों का सर्वे कर रफ्तार निर्धारण का प्रस्ताव भेजा था, जिसे लागू करने का आदेश दिया गया है। रफ्तार का निर्धारण व्यवहारिक नहीं होगा और लोगों की आपत्ति आएगी तो आवश्यकता अनुसार संशोधित किया जाएगा। - सिद्धार्थ कोमल सिंह परदेशी, कलेक्टर
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किया जाएगा संशोधन
अभी आदेश लागू हुआ है। सभी सड़कों पर इसकी मॉनिटरिंग की जा रही है। इसमें गाड़ियों स्थिति, ट्रैफिक का दबाव आदि सभी बातों का ध्यान रखा जा रहा है। जहां पर यह गाड़ियों की रफ्तार को बढ़ाने की आवश्यकता होगी, वहां बढ़ाया जाएगा।  - ओपी पॉल, पुलिस अधीक्षक
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इंजन पर पड़ेगा प्रभाव
20 की रफ्तार पर गाड़ी चलाने के लिए बार-बार गियर बदलना होगा। क्लच का उपयोग करना होगा। इससे इंजन पर प्रभाव पड़ेगा। गाड़ियों की लाइफ कम हो जाएगी। गाड़ी का एवरेज भी कम हो जाएगा। ज्यादा पेट्रोल लगेगा। - सुनील धुप्पड़, राजधानी ऑटो
इन सड़कों पर बेलगाम वाहनों पर लगाया लगाम
खजाना चौक से आम तिराहा- 20 की रफ्तार
टिकरापारा से कालीबाड़ी- 20 की रफ्तार
शंकर नगर से भगत सिंह चौक- 20 की रफ्तार
स्टेशन से घड़ी चौक- 20 की रफ्तार
जयस्तंभ चौक से भनपुरी- 20 की रफ्तार
सदर बाजार रोड ,मालवीय रोड, एमजी रोड- 20 की रफ्तार
रामसागर पारा - 20 की रफ्तार
बस स्टैंड से वीआईपी मोड़ विधानसभा रोड-20 की रफ्तार
पुरानी बस्ती -  20 की स्पीड
वीआईपी टर्निंग से घड़ी चौक - 30-40 की रफ्तार
माना बस्ती से सिद्धार्थ चौक- 30-40 की रफ्तार
भनपुरी से धरसींवा- 30-40 की रफ्तार
टाटीबंध से आम तिराहा- 30-40 की रफ्तार
रिंग रोड 2, 3 तक - 30 से 40 की रफ्तार
नई राजधानी के मार्ग- 40-50 की रफ्तार
वीआईपी तिराहा से डीपीएस - 40 से 50
चंदनडीह से टाटीबंध - 50 से 60 की रफ्तार
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नशाबंदी से आबकारी विभाग की तौबा

0 भारत माता वाहिनी को किया दरकिनार
0 समाज कल्याण विभाग पर थोपा संचालन का जिम्मा
नशाबंदी  को लेकर अपनी पीठ थपथपाने वाले आबकारी विभाग ने अब इससे तौबा कर लिया है। शराबबंदी के लिए जिन महिलाओं की टीम (भारत माता वाहिनी) का गठन किया था, विभाग ने उससे ही पल्ला झाड़ लिया है। इसी वजह से सामान्य प्रशासन विभाग ने भारत माता वाहिनी के संचालन का जिम्मा समाज कल्याण विभाग को सौंपा दिया है।
विभागीय सूत्रों के मुताबिक  शराबबंदी की दिशा में चरणबद्ध  कदम बढ़ाते हुए सरकार ने 2011-2012 में 234, 2012- 2013 में 84 और 2013-14 में 11 शराब दुकानों को बंद किया। इसके अलावा शराब के कारोबार में लगे सरकारी उपक्रम स्टेट ब्रेवरेजेस कार्पोरेशन लिमिटेड और आबकारी विभाग द्वारा प्रदेश में शराबबंदी को लेकर अभियान शुरू किया। शराबबंदी के लिए 20 जिलों के 49 ब्लॉकों में 213 गांवों में भारत वाहिनी का गठन किया गया है। भारत माता वाहिनी की महिलाएं शराब के अवैध धंधे में लगे या शराब पीने वाले लोगों के घर में सामने जाकर गांधी जी का प्रिय भजन 'रघुपति राधव राजा राम ..." गाती हैं। इस काम में सरकार ने दो साल में 2 करोड़ 46 लाख 49 हजार 829 रुपए खर्च किए हैं। 2011-12 में सरकार ने नशाबंदी  के लिए 1 करोड़ 72 लाख 85 हजार 430 रुपए खर्च किए।  इसी तरह 2012-13 में 73 लाख 64 हजार 399 रुपए खर्च किए । गठन के बाद  भारत माता वाहिनी के संचालन का जिम्मा आबकारी विभाग के पास था। इसका सारा खर्च भी विभाग द्वारा उठाया जाता  है। सूत्रों ने बताया कि भारत माता वाहिनी के संचालन से आबकारी विभाग ने कन्नाी काट ली  है। एक अप्रैल से भारत माता वाहिनी  के संचालन का जिम्मा समाज कल्याण विभाग को सौंपा गया है। जबसे समाज कल्याण विभाग को भारत माता वाहिनी के संचालन की जिम्मेदारी दी गई है, तब से उनकी गतिविधियां लगभग थम गई हैं।
पहले से था विवादित
विभागीय सूत्रों का कहना है कि भारत माता वाहिनी शुरू  से विवादित रहा है। जिस आबकारी विभाग और उसके उपक्रम ब्रेवरेजस कार्पोरेशन लिमिटेड  ने शराबबंदी के लिए भारत माता वाहिनी का गठन किया था, उनका काम शराब से मिलने वाले  राजस्व को बढ़ाना है।  इसी बात को लेकर विवाद हमेशा रहा। साथ ही राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को ब्रेवरेजेस का ब्रांड एंबेसेडर बनाने को लेकर भी काफी किरकिरी हुई थी। अंतत: महात्मा गांधी को ब्रांड एंबेसेडर बनाने संबंधी निर्णय को वापस लेना पड़ा था।
अफसर को गंवानी पड़ी थी कुर्सी
भारत माता वाहिनी और महात्मा गांधी को ब्रांड एंबेसेडर बनाने वाले तत्कालीन आबकारी आयुक्त गणेश शंकर मिश्रा को इसी विवाद के चलते अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी थी। महात्मा गांधी वाले मामले में देशभर से किरकिरी झेलने के बाद सरकार ने श्री मिश्रा को आबकारी आयुक्त के पद से हटाकर उन्हें पीएचई सचिव बना दिया था। उनके स्थान पर  आबकारी आयुक्त की जिम्मेदारी आरएस विश्वकर्मा को दी गई है।
फैक्ट फाइल
* प्रदेश में शराब दुकानें - 719
* 2011-12 में प्राप्त राजस्व - 10000087683 रुपए
* 2012-13 में प्राप्त राजस्व - 14000413961 रुपए
* 2013-14 में राजस्व का लक्ष्य 19000000000 रुपए
* तीन सालों में बंद दुकानें 355
* 20 जिलों के 49 ब्लॉकों में 213 गांवों में भारत माता वाहिनी
'' नशामुक्ति का काम समाज कल्याण विभाग का है। भारत माता वाहिनी को समाज कल्याण विभाग को सौंपने का निर्णय मेरे आने से पहले लिया जा चुका था।""
आरएस विश्वकर्मा,  आबकारी आयुक्त
 

हफ्तेभर में अपहरण के 217 मामले दर्ज

0 सुप्रीम कोर्ट की सख्ती के बाद जागी पुलिस
0 गुमइंसान के मामलों पर विभिन्ना थानों में दर्ज हो रहा अपहरण का केस
सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद अब जाकर रायपुर जिले की पुलिस की नींद टूटी है। गुमइंसान के मामलों की जांच में लापरवाही बरतने पर सुप्रीम कोर्ट की नाराजगी पुलिस महकमे पर भारी पड़ी है। डीजीपी के निर्देश पर जिले के विभिन्न् थानों में फाइलों में धूल खा रहे गुम इंसान के मामले खंगाले गए। इसके बाद एक ही दिन में जहां अपहरण के 131 अपराध दर्ज किए गए, वहीं हफ्तेभर में यह आकंड़ा 217 तक पहुंच गया है। अगवा होने वालों में सबसे ज्यादा बालिकाएं हैं। इनकी संख्या 170 है जबकि 47 बालकों के अपहरण का केस दर्ज किए जा चुके हैं। सबसे अधिक अपहरण के मामले मंदिर हसौद, आरंग, खरोरा, नेवरा तथा उरला में दर्ज हुए हैं।
जानकारी के मुताबिक नाबालिग बालक-बालिकाओं के लापता होने के मामलों में सामान्यत: गुमइंसान का मामला बनाकर प्रकरण को लंबे समय तक लंबित रखा जाता है। गुमइंसान की विवेचना में पुलिस की उदासीनता की वजह से लापता बालक-बालिकाओं का कुछ पता नहीं चल पाता। कई बार यह भी देखने में आता है कि लापता बालक-बालिकाओं का शारीरिक व मानसिक शोषण होता है और पुलिस को इसकी भनक तक नहीं लगती। पुलिस की लापरवाही व उदासीनता के चलते थानों में इस तरह के सैकड़ों मामलों की फाइलें आज भी धूल खाती पड़ी हंै।
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने गुमइंसान के मामलों की जांच में लापरवाही बरतने पर छत्तीसगढ़ पुलिस को फटकार लगाई थी। कोर्ट ने देश के सभी राज्यों की पुलिस को आदेश दिया था कि नाबालिग बालक-बालिकाओं के गुमइंसान के लंबित मामलों में अपहरण का अपराध दर्ज किया जाए। सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सभी राज्यों के डीजीपी को आदेश जारी किया। इसी आदेश का पालन करते हुए डीजीपी रामनिवास ने पिछले हफ्ते  प्रदेश के सभी जिलों के पुलिस अधीक्षकों को नाबालिगों के गुमइंसान के मामलों में अपहरण का अपराध दर्ज कर पुलिस मुख्यालय को सूचित करने को कहा था। इसके बाद एसपी ओमप्रकाश पाल ने इस आदेश का हवाला देकर सभी थाना प्रभारियों को अपराध दर्ज कर गुमइंसान नाबालिगों की सूची बनाने के निर्देश दिए । थानेदारों ने अपराध दर्ज कर दो दिन पहले पुलिस अफसरों को इसकी पूरी जानकारी दी।
विस में उठा था मामला
विधानसभा के बजट सत्र के दौरान कांग्रेस विधायक शक्राजीत नायक द्वारा लापता बालक-बालिकाओं के संबंध में सवाल उठाया गया था। जवाब में गृहमंत्री ननकी राम कंवर ने बताया था कि प्रदेशभर में ढाई साल में 6 हजार 72 लड़कियों के गुम होने की रिपोर्ट लिखाई गई है। इनमें से 47 सौ लड़कियां अपने घर वापस लौंट गई हैं और 13 सौ लड़कियां अभी भी गायब हैं। आंकड़े के हिसाब से औसतन रोजाना पांच से अधिक लड़कियां गायब हो रही हैं। लड़कियों के गायब होने के 764 मामलों में 825 लोगों के खिलाफ अपराध दर्ज किया गया है।
 बाक्स-
      वर्षवार लापता बालिकाएं
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1 अप्रैल 2010 से 31 मार्च 2011 तक
2167 बालिकाएं लापता।
 1 अप्रैल 2011 से 31 मार्च 2012 तक
2407 बालिकाएं लापता।
1 अप्रैल 2012 से मार्च 1013 तक
 1498 बालिकाएं लापता।
( कुल 6 हजार 72 बालिकाएं लापता)
सरकार के उपाय
लड़कियों के गायब होने के मामले को रोकने के लिए प्रत्येक पुलिस थाना में बाल कल्याण अधिकारी एवं राज्य के 8 जिलों में मानव तस्करी निरोधक सेल का गठन केन्द्र सरकार की स्वीकृति से किया गया है। वहीं मानव तस्करी निरोधक इकाई भी गठित की गई है। इसके अलावा कुछ जिलों में हेल्प लाइन और टोलफ्री सेवा भी शुरू की गई है।
अब देना होगा जवाब
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अपहरण का अपराध दर्ज होने पर पुलिस के साथ ही थानेदार व अफसरों की जवाबदेही तय हो जाएगी। उन्हें कोर्ट में जवाब देना पड़ेगा कि लंबित अपराध व जांच में उन्होंने क्या कार्रवाई की है। अपराध दर्ज होने के साथ ही इस तरह के मामलों की जांच का दायरा बढ़ जाएगा और पुलिस नाबालिगों के गुमइंसान के  मामलों को गंभीरता से लेगी।
बाक्स-
कहां कितने प्रकरण दर्ज हुए-
टिकरापारा-6
पुरानी बस्ती-2
डीडीनगर-9
आमानाका-4
सिविल लाइन-4
देवेंद्रनगर-3
न्यू राजेंद्रनगर-3
सरस्वतीनगर-8
आजादचौक-4
नेवरा-18
खरोरा-19
खमतराई-10
धरसींवा-7
उरला-17
गुढ़ियारी-4
आरंग-24
मंदिर हसौद-36
अभनपुर-8
गोबरा नवापारा-10
माना कैंप-6
मौदहापारा-4
गोलबाजार-1
गंज-7
कोतवाली-5
कुल-217
सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर गुम इंसान के प्रकरणों में अपहरण का मामला दर्ज किया जा रहा है। अब तक विभिन्ना थानों में ढाई सौ मामले दर्ज किए जा चुके हैं।
डॉ. लाल उमेद सिंह
एडिशनल एसपी(सिटी)
 

बस एक क्लिक से सहेजें खूबसूरत पल

00 कैमरे की चाहत और उपयोगिता आज भी बरकरार
00 रोचक दास्तान है कैमरे की
0 वर्ल्ड कैमरा डे आज




चाहे बच्चे की पहली मुस्कान सालांे बाद देखनी हो या फिर शादी के बंधन में बंधने वाले जोड़े को सालों बाद उसी पल को फिर महसूस करना हो। इन सभी खूबसूरत पलों को सहेजने के लिए कैमरे के बस एक क्लिक की जरूरत है। भले ही आज कैमरे का स्वरूप समय के साथ-साथ काफी बदल गया है, पर इसकी चाहत और उपयोगिता आज भी बरकरार है। 'वर्ल्ड कैमरा-डे" हम कैमरे से जुड़े कुछ ऐसे ही रोचक इतिहास के बारे में जानेंगे। साथ ही यह भी कि रायपुर में कैमरा कब आया और उसका स्वरूप क्या था।
इसके साथ ही हम राजधानी के कुछ ऐसे ही लोगों से रूबरू हो रहे हैं, जिन्होंने कई तरह के दुर्लभ कैमरे को आज भी सहेजकर रखा है।
जयस्तंभ में होती थी स्ट्रीट फोटोग्राफी
रायपुर मंे कैमरा और फोटोग्राफी की शुरुआत 1945 के आसपास मानी जा सकती है। सेंटर प्वाइंट कलर लैब के ओनर पीएन अग्रवाल बताते हैं कि शहर में पहला कैमरा 'मीनिट कैमरा" आया था। यह कैमरा डिब्बे वाला होता था, जिसमें सामने परदा लगा होता था, उससे बड़ी-बड़ी तस्वीरें ली जाती थीं। उस दौरान मीनिट कैमरा लिए लोग जयस्तंभ के आसपास रोड पर ही खड़े होते थे और लोग उनके पास जाकर अपना फोटो खिंचवाया करते थे। इसे स्ट्रीट फोटोग्राफी भी कहा जाता था। रायपुर में यही कैमरा सबसे पहले आया था। 
रायपुर और कैमरा
1955 के लगभग प्लेट कैमरे का जमाना अया, जिसे विदेशों में व्यू कैमरा कहा जाता था। इस कैमरे में जिस साइज का फोटो चाहिए, उसी साइज की फिल्म लगाई जाती थी। ये कैमरे ज्यादातर लकड़ी के होते थे, इसलिए उन्हें वुडक  कैमरा भी कहा जाता था। इस तरह के कैमरे से स्टूडियो फोटोग्राफी भी की जाती थी। इन कैमरों को ज्यादातर स्कूल-कॉलेज में ग्रुप फोटो लेने के लिए लिए इस्तेमाल किया जाता था।
1944-45 के दौरान पर्सनल यूज के हिसाब से कोडेक कंपनी द्वारा सबसे सस्ता कैमरा बनाया गया, जिसे ब्राउनी बॉक्स कैमरा कहा जाता था। इस कैमरे की कीमत उस वक्त एक डॉलर होती थी। यह कैमरा आम आदमी की पहुंच में था और फोटोग्रॉफी का प्रचलन भी यही से बढ़ा था।
1950 के लगभग रेंज फाइंडर कैमरा रायपुर में आया। इस कैमरे में 620 साइज की रोल फिल्म लगाई जाती थी, जिसमें एक बार में आठ या बारह फोटो खींचे जा सकते थे। इस कैमरे में आधुनिक लैंस का प्रयोग किया जाता था। और इसमें फोकसिंग भी की जाती थी। रायपुर में बहुत से लोगों के पास ये कैमरे उस जमाने में हुआ करते थे।
1955 के आसपास टि्वन लैंस रिफलेक्स कैमरा आया। इससे प्रोफेशनल फोटोग्राफी की जाती थी। रोली फ्लैस, रोली  कॉड, ब्यूटी फ्लैक्स, याशिका फ्लैक्स, मामिया कुछ ऐसे ही पॉपुलर ब्राण्ड हुआ करते थे। और अमूमन फोटोग्राफर्स इन कैमरांे का इस्तेमाल किया करते थे। लगभग 2000 तक ये कैमरे चले।
इसके बाद 1975 मंे सिंगल लैंस रिफ्लेक्स कैमरे का दौर शहर में आया। ये काफी महंगे हुआ करते थे। 35 एमएम साइज के इन कैमरांे का प्रचलन धीरे से बढ़ा और हमारे रायपुर में यह कैमरा काफी पॉपुलर भी हुआ। अभी भी कैमरा पसंद किया जाता है।
सन् 2000 के बाद से राजधानी में डिजिटल कैमरे का बूम आया। सेंसेटाइज्ड फोटोग्राफी की जगह डिजिटल तकनीक ने ले ली। डिजिटल कैमरे की आधुनिक तकनीक और उसकी शानदार फोटोग्राफी ने हर किसी कैमरायूजर का दिल जीत लिया। आज तो डिजिटल कैमरे की कीमत भी काफी कम हो गई है। आज तो डिजिटल कैमरे का जो रूप हम देख रहे हैं, वह अत्याधुनिक रूप कहा जा सकता है।
पहले नहीं जाते थे लोग स्टूडियो
अजंता फोटो स्टूडियो के ओनर जेपी अग्रवाल बताते हैं कि कैमरे का इस्तेमाल रायपुर के लोगों ने काफी पहले शुरू कर दिया था। पिछले 49 साल से उनकी दुकान चल रही है। श्री अग्रवाल ने बताया कि सबसे पहले उन्होंने फोटो स्टूडियो सदर बाजार मंे खोला था। उस दौरान लोग स्टूडियो आकर फोटो खिंचाने के लिए उतने अधिक उत्साहित नहीं हुआ करते थे। अमूमन लोग अपनी फैमिली फोटो खिंचवाने के लिए हमें स्टूडियो से ही बुलाया करते थे। सदर बाजार स्थित लगभग सभी पुराने ज्वेलरी शॉप वाले अपनी फैमिली के फोटो के लिए स्टूडियो भी आया करते थे।
आज भी कैमरे में बसती है जान
छत्तीसगढ़ के पूर्व वित्त मंत्री डॉ. रामचन्द्र सिंहदेव की कैमरे और फोटोग्राफी में जान बसती है। ग्लैमर और पोट्रेट फोटो खीचने की शौकीन डॉ. सिहदेव बताते हैं कि पिताजी को देख उन्हें फोटोग्राफी का जुनून चढ़ा। एक बार जब हाथ में कैमरा पड़ा, तब से लेकर आजतक उनका यह जुनून बरकरार है। अब तक दर्जनांे कैमरांे का इस्तेमाल कर चुके डॉ. सिंहदेव को उनकी फोटोग्राफी के लिए ढेरांे अवार्ड मिल चुके हैं। 1950 में इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में पढ़ने के दौरान अभिनेत्री नरगिस दत्त की खींची हुई तस्वीर की चर्चा करते हुए डॉ. सिंहदेव ने बताया कि यह उनकी वन ऑफ द बेस्ट फोटोग्राफी में से एक है। साथ ही इस फोटो की प्रशंसा करते हुए नरगिस की बेटी प्रिया दत्त ने कहा कि यह उनकी मां का सबसे खूबसूरत फोटो है। इसके साथ ही डॉ. सिंहदेव को 1961 में लंडन में वर्ल्ड इंटरनेशनल फोटोग्राफी कॉम्पीटिशन में एक फोटो के लिए गोल्ड मैडल भी मिल चुका है।
आज के समय में है दस लाख कीमत
निकॉन का लगभग 40 साल पुराना कैमरा फूलचौक निवासी संवेद शर्मा के पास है। संवेद बताते हैं कि यह कैमरा उनके पिताजी डॉ. प्रवीण शर्मा का है। डॉ. शर्मा को बचपन से ही फोटोग्राफी का बेहद शौक था, जिसके चलते उनके मित्र ने उन्हें यह तोहफे में दिया था। दो हजार स्र्पए में खरीदे गए इस कैमरे की वर्तमान कीमत लगभग आठ से दस लाख है। डॉ. शर्मा ने बताया कि उन्हें वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफी का शौक था और इस कैमरे से उन्होंने ढेरांे जानवरों की तस्वीरें ली हैं। उन्होंने बताया कि कैमरा मिलने के बाद उन्होंने उसके काफी सारे लैंस लिए, जिसमें इसे स्थिर रखने वाली गन भी शामिल है। इससे आधे किमी. दूर खड़े जानवर की तस्वीर भी बहुत आसानी से खींची जा सकती है।
 साठ साल पुराने कैमरे को सहेजा
सदर बाजार के पास रहने वाले ग्यारह वर्षीय युवराज शर्मा ने अपने नानाजी से मिले साठ साल पुराने कैमरे को बहुत ही अच्छी तरह से सहेजा है। युवराज ने बताया कि यह कैमरा उन्हें उनके नानाजी मोहन लावण्या ने गिफ्ट किया था और नानाजी को उनके पिताजी स्व. प्रभुदयाल लावण्या ने कोलकाता से लाकर दिया है। जर्मनी की ब्वाय नामक कंपनी द्वारा बनाया गया यह कैमरा आज के समय में एक दुर्लभ वस्तु हो गया है। युवराज ने बताया कि उनके नानाजी को फोटोग्राफी का शौक था, इसलिए यह कैमरा उनके लिए कोलकाता से लाया गया था, जिसकी कीमत उस दौरान 15 से 20 स्र्पए थी। 'ब्वाय का 175 कैमरा" नामक यह कैमरा आज के समय में कई हजारों की कीमत का होगा। युवराज ने बताया कि यह ब्लैक एंड व्हाइट रिल का कैमरा, जिसमें एक रिल में 12 फोटोग्राफ लिए जा सकते हैं। 
 

कबाड़ का धंधा फिर आबाद

0 आउटर में फलने-फूलने लगा है कारोबार
 राजधानी के आउटर इलाके में एक बार फिर कबाड़ का धंधा आबाद हो गया है। एक समय कबाड़ के अवैध कारोबार से जुड़े लोगों के पीछे राजधानी पुलिस हाथ धोकर पड़ी हुई थी। उस समय बड़े कारोबारियों के यार्ड में मारे गए छापे के दौरान करोड़ों का लोहा पकड़ा गया था। इस छापे की कार्रवाई के बाद बड़े से लेकर छोटे कबाड़ी धंधा बंदकर भूमिगत हो गए थे। कई लोहा कारोबारियों को भारी क्षति उठानी पड़ी थी। पुलिस की छापे व धरपकड़ की कार्रवाई लंबे समय तक बंद होने से राजधानी के आउटर में कबाड़ का धंधा फिर से फलने-फूलने लग गया। छोटे से लेकर बड़े कबाड़ी पूर्व में हुए नुकसान की भरपाई करने में लगे हंै।
राजधानी के मौदहापारा, आमानाका क्षेत्र के टाटीबंध, हीरापुर, उरला, खमतराई, भनपुरी सहित अन्य स्थानों में रात के समय कबाड़ का खुला खेल देखा जा सकता है। लंबे समय के बाद शुक्रवार को तड़के पुलिस द्वारा राजधानी के विभिन्ना इलाके में कबाड़ियों के यार्ड में मारे गए छापे में इसका खुलासा हुआ है। टाटीबंध में ट्रकों को काटकर बेचने और शहर में लगातार बाइक चोरी की घटनाओं को देखते हुए आईजी व एसपी ने कबाड़ियों पर नकेल कसने के निर्देश दिए, जिसके बाद छापे की कार्रवाई की गई। कई यार्डों भारी मात्रा में चार व दो पहिया के पार्ट्स मिले हैं। संदेह है कि चोरी की गाड़ियों को खरीदकर कबाड़ी इन गाड़ियों के पार्ट्स अलग-अलग कर बाजार में बेच देते हैं।
हाथ नहीं आती बड़ी मछली
चार साल पहले टाटीबंध चौक के समीप जीई रोड से लगे दिनेश अग्रवाल के यार्ड में पुलिसिया छापे में मिले करोड़ों के लौह अयस्क के बाद राजधानी पुलिस ने बड़े कबाड़ियों पर सीधे नकेल कसने के संकेत दिए थे। उस समय करीब आधा दर्जन से अधिक बड़े लोहा कारोबारियों के यार्डों में हुई छापामार कार्रवाई में हालांकि बड़े कारोबारी मौके पर नहीं मिले, पर छोटे कर्मचारियों व मजदूरों पर पुलिस ने जरूर कार्रवाई की थी। पुलिस अफसरों ने अवैध लोहे की जब्ती के बजाय सीधे चोरी का अपराध दर्ज कर यार्ड संचालक को गिरफ्तार करने का ऐलान किया था, पर अच्छेलाल जायसवाल को छोड़कर कोई बड़ा कारोबारी, यार्ड संचालक व ट्रांसपोर्टर की गिरफ्तारी नहीं हो पाई। दिनेश अग्रवाल के यार्ड में छापे की कार्रवाई में करीब पांच करोड़ का अवैध लोहा, कापर, रेल ट्रैक व बीएसपी के सेल की सील लगे लोहे के कई तरह के सामान को जब्त किया गया था। काफी प्रयास के बाद भी दिनेश अग्रवाल पुलिस की गिरफ्त में नहीं आ सका, जबकि उसके राजधानी में ही रहने की लगातार खबरें आ रही थीं।
 हत्या तक हो चुकी
 पुलिस अफसरों का मानना है कि हर गंभीर अपराध के पीछे कबाड़ का अवैध कारोबार ही वजह बनता है। यह संगठित अपराध की श्रेणी में आ चुका है। लोहे के कारण कई ट्रक चालकों की हत्या तक हो चुकी है। खमतराई इलाके में खलासी की लाश मिलना, सिमगा में हुई चालक की हत्या, भिलाई में हुई हत्या में कबाड़ी सलीम की गिरफ्तारी के साथ अनेक ऐसे मामले सामने आ चुके हैं, जिनका संबंध कबाड़ के अवैध कारोबार से जुड़ा हुआ पाया गया है। पुलिस सूत्रों का दावा है कि जब तक इस कारोबार से जुड़ी बड़ी मछलियों पर नकेल नहीं कसी जाएगी, यह संगठित अपराध रुकने वाला नहीं है।
राजनीतिक दबाव से पीछे हटती पुलिस
चार साल पहले कबाड़ियों पर नकेल कसने के क्रम में तत्कालीन एएसपी सिटी रजनेश सिंह ने जब दिनेश अग्रवाल के यार्ड में छापा मारा था, तब बड़े लोहा कारोबारियों में हड़कंप मच गया था। कबाड़ के खेल में वर्षों से लाल हो रहे बड़े कबाड़ियों पर पुलिस की नजर क्या लगी, अच्छेलाल जायसवाल, रामप्रसाद जायसवाल, कैलाश अग्रवाल, दिनेश अग्रवाल, शकील कबाड़ी सहित अन्य बड़े कारोबारी रातोंरात शहर से गायब हो गए। हालांकि बाद में इनमें कुछ को पकड़कर जेल भेजा गया था। लोहे के कारोबार में दीगर प्रांत के लोगों के भी शामिल हो जाने से स्थिति बिगड़ने लगी है। भिलाई के हैवी ट्रांसपोर्ट कार्पोरेशन के संचालक वीरा सिंह सहित अन्य की तलाश पुलिस अब तक कर रही है। सूत्रों का दावा है कि राजनीतिक दबाव में धरपकड़ की कार्रवाई पुलिस ने बंद कर रखी है।
बिल, दस्तावेजों से होता है खेल
पुलिस सूत्रों के अनुसार जब भी अवैध लोहा पकड़ा जाता है, यार्ड संचालक बिल लेकर पुलिस के पास पहुंच जाते हैं। ऐसे में जब्त माल को छोड़ना पड़ता है, लेकिन बिलों की सघन जांच पड़ताल होने से कबाड़ियों की होशियारी पकड़ में आने लगी है। पुलिस का कहना है कि लोहा अगर एक नंबर में बीएसपी से निकला होगा तो नियमत: कंपनी द्वारा इसका लेटर जारी किया जाता है, जिसकी पुष्टि पत्रों के आधार पर करने में आसानी होती है।
शिकायत के आधार पर कबाड़ियों के गोदाम की जांच कराई गई है। अवैध कारोबार को रोकने और कबाड़ियों पर दबाव बनाने छापे की कार्रवाई आगे भी जारी रहेगी।
ओमप्रकाश पाल
एसपी. रायपुर
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पत्नी सरकारी कर्मचारी, पति निकला चोर
0 डॉक्टरों का एटीएम कार्ड, पर्स व मोबाइल उड़ाने के मामले में पकड़ा गया
शहर के दो डाक्टरों के चेम्बर में घुसकर मोबाइल, रुपए से भरा पर्स व एटीएम कार्ड उड़ाने वाला युवक शुक्रवार को क्राइम ब्रांच के हत्थे चढ़ गया। वह पहले भी चोरी के मामले में गिरफ्तार हो चुका है। उसकी पत्नी सरकारी नौकरी में है। क्राइम ब्रांच प्रभारी आरके साहू ने बताया कि दीनदयाल उपाध्यायनगर निवासी यूसुफ खान (32) ने पिछले माह शहर के दो डॉक्टरों को निशाना बनाया। कोटा स्थित सुयश हास्पिटल के एक डॉक्टर के चेम्बर में बेखौफ मरीज बनकर घुसे यूसुफ ने नजर बचाकर नकदी 8 हजार रुपए से भरा पर्स, एटीएम कार्ड तथा अन्य सामान उड़ा लिया था। इसके बाद उसने चौबे कालोनी स्थित राज्य बीमा कर्मचारी सेवाएं के कार्यालय में प्रवेश कर वहां भी एक डॉक्टर का एटीएम कार्ड व पर्स समेत रुपए पार कर दिए थे। आरोपी ने चोरी किए गए सारे रुपए खर्च कर दिए थे। डेढ़ साल पहले उसे एक इलेक्ट्रानिक्स दुकान से कम्प्यूटर व लैपटॉप चोरी करने के मामले में क्राइम ब्रांच ने पकड़ा था। यूसुफ ने बताया कि उसकी पत्नी सरकारी कर्मचारी है, हर माह उसके वेतन के रूप में 40 हजार रुपए आते हैं। खुद का अनाप-शनाप खर्च पूरा करने के लिए वह चोरी करता है। उसने अब तक डॉक्टरों को ही अपना निशाना बनाया।
शंकर हत्याकांड, परिवार वालों को मिल रही धमकी
0 खमतराई पुलिस ने पीड़ित पक्ष पर ही कर दी प्रतिबंधात्मक कार्रवाई
डेढ़ माह पहले खमतराई थाना क्षेत्र की आरवीएच कालोनी, जय श्रीरामनगर में मजदूर शंकर जानी की चाकू मार हत्या करने वाले आरोपियों के परिवार वाले शंकर की मां व बहन को लगातार धमका रहे हंै। एक माह पहले इन लोगों की धमकी से डरकर हत्याकांड के चश्मदीद गवाह किशोर यादव ने अपनी कलाई काटकर आत्महत्या की कोशिश की थी। आश्चर्यजनक यह है कि धमकी से सहमे पीड़ित पक्ष की शिकायत को नजरअंदाज कर पुलिस ने उल्टे उनके खिलाफ ही प्रतिबंधात्मक कार्रवाई कर दी। मामले की शिकायत एसपी से की गई है।
शंकर की मां उकिया बाई ने शुक्रवार एसपी ओपी पाल को एक शिकायत पत्र सौंपा। उसने बताया कि 14 जून को दोपहर 2 बजे हम लोग घर में खाना खा रहे थे, तभी हत्या के मामले में जेल में बंद आरोपी ललित और विक्की सोनी के पिता दयालू सोनी, मां गुड्डी सोनी, बहन रानी व नेहा घर में घुसकर धमकी देने लगे। वे शंकर की तरह छोटे भाई जयराम की भी हत्या कर देने की बात कहने लगे। इसकी जानकारी तत्काल उन्होंने सीएसपी उरला सुभाष सिंह को दी, जिस पर सीएसपी ने खमतराई थाने में शिकायत दर्ज कराने को कहा। उसी समय पीड़ित पक्ष ने थाने जाकर रिपोर्ट लिखाई। उकिया बाई ने बताया कि गुरुवार को  खमतराई पुलिस ने उल्टे उनके खिलाफ धारा 107 की कार्रवाई कर कोर्ट का समन भेज दिया। उन्होंने आरोप लगाया कि अपराधियों को पुलिस का संरक्षण मिला हुआ है। सुरक्षा के लिए हमारे घर के सामने तैनात जवान रात के समय आरोपी ललित व विक्की के घर में सोते हंै और वहीं खाना भी खाते हैं। इससे अपराधियों का हौसला बढ़ा हुआ है।
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बिल्डर बाजपेयी ने कोर्ट में लगाई जमानत अर्जी, सुनवाई आज
रायपुर(निप्र)। कमल विहार प्रोजेक्ट की सरकारी जमीन दबाने के मामले में जेल में बंद बिल्डर संजय बाजपेयी की तरफ से शुक्रवार को कोर्ट में जमानत की अर्जी लगाई गई। इस पर शनिवार को सुनवाई होगी। जानकारी के मुताबिक बिल्डर संजय बाजपेयी की ओर से उसके अधिवक्ता फैजल रिजवी द्वारा डीजे अरविंद श्रीवास्तव की अदालत में जमानत अर्जी लगाई गई है।
फरार लोहा कारोबारी ललित के खिलाफ स्थायी गिरफ्तारी वारंट
उरला में नकली सरिया की फैक्ट्री चलाने के आरोप में फंसे फरार लोहा कारोबारी ललित अग्रवाल के खिलाफ शुक्रवार को कोर्ट ने स्थायी गिरफ्तारी वारंट जारी कर दिया। उरला टीआई पूर्णिमा लांबा ने बताया कि पूर्व में जारी गिरफ्तारी वारंट की मियाद खत्म होने पर उसे न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी पुष्पलता मारकण्डे की अदालत में सरेंडर किया गया। इस पर न्यायाधीश ने सुनवाई करते हुए स्थायी गिरफ्तारी वारंट जारी कर दिया। इस प्रकरण में फैक्ट्री मैनेजर प्रदीप अग्रवाल जेल में बंद है। आरोपी ललित की संपत्ति कुर्की का आवेदन भी कोर्ट में लगाया गया है, जिसकी सुनवाई तिथि आगे बढ़ गई है। गौरतलब है कि गुढ़ियारी थाने में ललित अग्रवाल के बेटे पंकज अग्रवाल के खिलाफ दर्ज धोखाधड़ी के मामले में कोर्ट ने उसे 10 जुलाई की पेशी में उपस्थित होने का आदेश दिया है। आरोपी अगर कोर्ट में नहीं आता है तो उसकी संपत्ति कुर्की की कार्रवाई की जाएगी। गुढ़ियारी टीआई आशीष शुक्ला ने बताया कि पंकज के खिलाफ पहले ही कोर्ट ने गिरफ्तारी वारंट जारी कर दिया है। 
आज कोर्ट में पेश होगा मंटू तापड़िया
0 दो साल से बना रहा था नकली सिलेंडर, जब्त वाउचर ने खोला राज
 नकली गैस सिलेंडर की फैक्ट्री चलाने के आरोप में गिरफ्तार मंटू उर्फ नचिकेत तापड़िया की पुलिस रिमांड अवधि शनिवार को पूरी हो रही है। पुलिस उसे दोपहर बाद कोर्ट में पेश करेंगी। पुलिस सूत्रों का कहना है कि उसे जेल भेजने की तैयारी है।
 पूछताछ में आरोपी ने पुलिस को कोई खास जानकारी नहीं दी। वह अपने आप को निर्दोष बताकर दावा कर रहा है कि उसकी फैक्ट्री में नकली सिलेंडर नहीं बनाया जाता था। सैंपल के लिए सिलेंडर जरूर तैयार कर रहा था। फैक्ट्री को उसने नवम्बर 2012 में शुरू करना बताया था। जबकि खाद्य विभाग की जांच में यह खुलासा हुआ है कि मंटू ने गुजरात के भडौच के औद्योगिक क्षेत्र नर्मदानगर से सिलेंडर बनाने की पूरी फैक्ट्री खरीदकर इसे भनपुरी में स्थापित किया था। छापे के दौरान उसकी फैक्ट्री से नर्मदा सिलेंडर के कुछ वाउचर भी जब्त किए गए थे जिसमें सितम्बर 2011 में भुगतान करने का जिक्र है। इससे साफ पता चलता है कि उसकी फैक्ट्री वर्ष 2011 के पहले से संचालित हो रही थी। भारत सरकार के पेट्रोलियम सेफ्टी से संबंधित बेवसाइट पर गुजरात सिलेंडर प्रालि कंपनी की जानकारी आज भी उपलब्ध है। वह लगातार झूठ बोलकर बचने की कोशिश कर रहा है। सहायक खाद्य अधिकारी संजय दुबे ने बताया कि फैक्ट्री में मारे गए छापे में सिलेंडर बनाने वाली सीट, फूट रिंग तथा होल करने के बाद के हिस्से पाए गए थे। जबकि भारत सरकार के स्पष्ट निर्देश है कि बिना लाइसेंस के कोई भी सिलेंडर सीट नहीं बना सकता। इसके लिए सेल, गेल व जिंदल कंपनी को अधिकृत किया गया है। मंटू तापड़िया के पास ऐसे कोई भी वैध दस्तावेज नहीं थे जिससे वह सिलेंडर का निर्माण कर सके। फैक्ट्री से तीन से चार खेप में भारी मात्रा में सिलेंडर की आपूर्ति बाहर करने के प्रमाण मिले है।
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धोखाधड़ी करने वाली फाइनेंस कंपनी में लगा ताला
- शिक्षक से लेकर ट्रेवल्स संचालक शिकार
रायपुर (निप्र)। लोन दिलाने के नाम पर लोगों को ठगने वाली फाइनेंस कंपनी के दफ्तर पर पुलिस ने ताला जड़ दिया है। कंपनी ने लोन दिलाने के नाम पर कई लोगों से हजारों स्र्पए लिया और उन्हें लोन देने के लिए घ्ाुमाता रहा। तेलीबांधा पुलिस के मुताबिक कोरबा निवासी श्ािवनाथ साहू  (38) ने  एक अखबार (नईदुनिया नहीं) में  सांई फाइनेंस सर्विस के छपे विज्ञापन को देखकर दिए नम्बर पर संपर्क किया, जिसमें कम दरों में लोन देने की बात कही गई थी। कंपनी केएजेंट ने 7 लाख लोन देने की बात कही। 2 अप्रैल को कंपनी में काम करने वाले एलके राठौर और एमके राठौर ने लोन दिलाने के नाम पर 26 सौ फाइल फीस और 22 हजार 7 सौ स्र्पए प्रोसेस फीस ली। पैसे लेने के बाद आरोपी लोन के लिए घुमाते रहे। पुलिस ने बताया कि धोखाधाड़ी के शिकार दो और लोग सामने आए हैं। कोरबा की ममता जोशी, जो एक शिक्षक है, ने 5 लाख लोन के लिए आवेदन किया था। उन्होंने इस काम के लिए 20 हजार 245 रुपए दिए। जांजगीर के त्रिभुवन कुमार से 10 लाख लोन दिलाने के नाम पर 21 हजार स्र्पए लिए थे। लेकिन किसी को अब तक लोन नहीं दिया है। पुलिस की टीम ने जब कंपनी में दबिश दी तो वहां कोई नहीं था। पुलिस ने दफ्तर में ताला लगा दिया है। किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई है। पुलिस की मानें तो ठगी के शिकार लोगों की संख्या बढ़ सकती है।
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शहर के आधा दर्जन यार्डों में दबिश
- बाइक और अन्य वाहनों के कटे हिस्से, पार्ट्स मिले
- कई टन स्क्रेप जब्त, एक गिरफ्तार
 राजधानी पुलिस ने शुक्रवार सुबह मौदहापारा, आमानाका और उरला क्षेत्र में आधा दर्जन से अधिक यार्डों में  छापामार कार्रवाई की। छापे में भारी मात्रा में स्क्रेप मिला, जिसके चोरी के होने का संदेह है। यार्डों में ट्रक, बाइक और अन्य वाहनों के कटे हिस्से, पार्ट्स के अलावा रेलवे की सीट, एंगल,  सरिया, गैस कटर, चेनल सहित कई टन स्क्रेप मिला है। उरला पुलिस ने एक कारोबारी को गिरफ्तार किया है। मौदहापारा पुलिस कुछ लोगों को हिरासत में लेकर पूछताछ कर रही है। 
सिटी एएसपी डॉ. लाल उमेद सिंह ने बताया कि मौदहापारा के 2, आमानाका के 2 और उरला के 3 यार्डों में दबिश दी गई। इस दौरान वहां रखे सामान के बिल की जांच की गई और यह भी जानकारी ली गई कि सामान कहां से आया है। बड़ी मात्रा में स्क्रेप जब्त किया गया है। उन्होंने बताया कि उरला में यार्ड संचालक सुनील अग्रवाल को गिरफ्तार किया गया है। वह यह नहीं बता पाया कि उसके यार्ड में रखा स्क्रेप कहां से आया और न ही उसका बिल पेश कर सका। मौदहापारा थाने में भी कुछ यार्ड संचालक से पूछताछ की जा रही है।
चोरी की गाड़ी कटने की सूचना
राजधानी में वाहन चोरी की घटना बढ़ गई है। हर रोज वाहन चोरी हो रहे हैं। रेलवे सहित अन्य जगह लोहा चोरी की भी शिकायत बढ़ गई है। सूत्रों की मानें तो चोरी की बाइक, ट्रक, कार सहित अन्य वाहनों को काट कर कबाड़ में बेचा जा रहा है। अलग-अलग हिस्से को बाहर भेजा जाता है।  इसी शिकायत पर एसपी ओपी पॉल के निर्देश पर पुलिस ने कार्रवाई की। पुलिस की दबिश से हड़कंप मच गया। कई यार्ड वाले यार्ड बंदकर भाग गए।
सप्ताहभर पहले कार्रवाई
आमानाका पुलिस ने सप्ताह भर पहले दो यार्ड में छापा मारकर टन स्क्रेप और रेलवे का लोहा जब्त किया था। इसमें बाइक के अलावा ट्रक के पार्ट्स भी थे। 
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कारोबारी के सूने मकान का टूटा ताला
- नकद सहित 22 लाख का माल पार
- एक माह पहले पड़ोस में हुई थी चोरी
गायत्री नगर के एक सूने मकान का ताला तोड़कर नकद सहित लाखों के सोने-चांदी के जेवर पार कर दिए गए। मकान मालिक कुछ दिनों के लिए हैदराबाद गए थे। शुक्रवार को जब घर लौटे तो देखा कि मकान के मेन गेट का ताला टूटा हुआ था। मकान के अंदर पंखे चल रहे थे और सभी लाइट जल रही थी। अलग-अलग कमरे में रखी अलमारी के लॉक टूटे हुए थे। उनमें रखे सोने-चांदी के जेवर और नकद पैसे गायब थे। मकान मालिक ने इसकी सूचना पुलिस को दी। सूचना मिलते ही क्राइम ब्रांच, डॉग स्क्वॉड, फिंगर प्रिंट विशेषज्ञ, सिविल लाइन पुलिस के अलावा एएसपी डॉ. लाल उमेद सिंह भी मौके पर पहुंचे। सिविल थाना प्रभारी टीकाराम कंवर ने बताया कि गायत्री नगर सी 47 में हरीश अनंदानी (41) का मकान है। वे अपने परिवार के साथ 22 जून को हैदराबाद गए थे। वहां उनका बेटा अशोक अनंदानी  राष्ट्रीय स्तर की बैंडमिंटन प्रतियोगिता में भाग लेने गया था। उनका एमजी रोड पर एल्यूमिनियम का कारोबार है। जब वे शुक्रवार को दोपहर 1 बजे अपने घर पहुंचे तो देखा कि मेन गेट का ताला टूटा हुआ है। अंदर सामान बिखरा पड़ा हुआ है। पुलिस ने बताया कि चोरों ने मकान के अलग-अलग कमरे में रखी अलमारी का लॉक तोड़ा है। एक अलमारी में 10 लाख स्र्पए नकद थे और एक में 45 तोला सोना और चांदी के जेवर थ्ो। चोरांे ने नकद सहित कुछ 22 लाख का माल पार कर दिया है।
34 दिन बाद दूसरी चोरी
हरीश अनंदानी के घर से ठीक तीन मकान आगे सतीश मिश्रा का मकान है। 25 मई को उनके सूने मकान का ताला तोड़कर चोरों ने नकद सहित लाखों के जेवर पार कर दिए थे। सतीश मिश्रा अपने परिवार के साथ रिश्तेदार के घर भिलाई गए थे। पुलिस इस मामले में चोरों को नहीं पकड़ पाई है। 34 दिन बाद वहां एक और चोरी की घटना हो गई, जिससे कॉलोनी वासियों में दहशत का माहौल है। लोग अपना घर को एक मिनट भी सूना छोड़ने में डर रहे हैं।
नहीं है सुरक्षा गार्ड
पुलिस ने बताया कि कॉलोनी में एक भी सुरक्षा गार्ड की तैनाती नहीं की गई है। कॉलोनी में आने-जाने वालों का कोई रिकॉर्ड भी नहीं रखा जाता है। आसपास वालों ने बताया कि नजदीक की बस्ती के युवक कॉलोनी में घूमते रहे हैं। वहीं कॉलोनी में नए-नए फेरीवाले और सब्जी वाले दिखाई देते हैं।
ढाई माह पहले आया था किराए पर
पुलिस ने बताया कि हरीश ढाई माह पहले  गायत्री नगर में किराए पर आए थे। उन्होंने आसपास वालों को भी शहर से बाहर जाने की जानकारी नहीं दी थी और न ही घर पर किसी को ठहरने या देखरेख करने को कहा था। थाने में भी इसकी सूचना नहीं दी थी।

 

माओवादी का गांव, बंदूक के दम पर होता है यहां फैसला

छत्तीसगढ़ में एक छोटा सा गांब है सुकमा। ऐसा गांव जहां की सत्ता पर सरकार की नहीं बंदूक का  राज चलता हैं। यहां इनकी अपनी सरकार चलती है और अपना कानून है। गांव में आने जाने वालों की सुरक्षा की जिम्मेवारी भी इनकी ही रहती है।
 इनकी मर्जी पर ही आपको गांव में प्रवेश की अनुमति मिलती है। फिर एक बार अगर आपको गांव में प्रवेश करने की अनुमति मिल गई तो फिर आपको पूरी परंपरागत तरकी से स्वागत किया जाता। यहां पर रहने वाले आदिवासियों को प्रशासन इस करण ही माओवादी मान लेती है। सुकमा से कोंटा यही वे गांव हैं जहां माओवादियों का राज चलता है। इन सड़कों से जब भी कोई गुज़रता है तो अपनी गाड़ियों के टेप भी बंद कर दिया करते हैं। गांव में प्रवेश करने के साथ ही आप माओवादियों के निशाने पर होते हैं,गांव की सड़के टूटी हुई है। दूर तक सन्नाटा फैला हुआ है। कुछ दूर चलने पर ही माओवादियों पर हमले की खबर मिलती है तो कहीं सुरक्षा बलों और माओवादियों के बीच संघर्ष की सूचना। ऐसी सचूनाएं यहां रहने वाले लोगों की ज़िंदगी का हिस्सा है। ये अब ऐसी घटनाओं से विचलित नहीं हुआ करते।लेकिन इस सड़क से पहली बार गुज़रने वालों का कलेजा मुँह पर आ जाता है। गांव में प्रवेश करने वाले प्रत्येक अनजाने लोग को ग्रामीण जब बताते हैं कि आगे मत जाओ माओवादियों की तलाशी चल रही है। या फिर सूचना मिलती है कि माओवादियों के साथ पुलिसवालों के बीच मुठभेड़ चल रहा है।


गांव में प्रवेश करने से पहले आपको कई नाके से भी गुजरना पड़ता है। नाका पर रहने वाली महिलाएं नाम पता पूछने के बाद आपसे कुछ पैसा लेकर झूंडों में गाना गाती आगे बढ़ जाती है। दो किलोमीटर के इस सफर में माओवादियों की ओर से लगाए गए कई नाका से गुजरना पड़ता है। मगर ये सब यहां रहने वाले आदिवासियों के लिए आम बात है। क्योंकि ये इनके लिए रोज़मर्रा की बात है। गोलियाँ चल रहीं हों तो चला करें, लाशें गिरती है तो गिराती रहे। इनकी ज़िंदगी इन सब से दूर अपने रफ्तार से चलती रहती है।  

तीन नदियों के बीच केदारनाथ से भी मज​बूत शिवमंदिर

उत्तराखंड की त्रासदी में सब बह गया। बचा तो सिर्फ भगवान का मंदिर। सैकड़ों वर्षों में यह पहला मौका होगा जबकि इस तरह की त्रासदी से सामना हुआ।  आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बता रहा है जो बना ही हुआ है नदियों के बीच। कोई एक नदी नहीं, तीन—तीन नदियों के संगम पर। हजारों सालों में यहां पर कई बार नदियों में बाढ़ आई। पर यह चमत्कार ही है कि मंदिर अब भी वैसे का वैसा ही खड़ा है।छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से मात्र 45 कि.मी. दूर है पवित्र नगरी राजिम। यहाँ पैरी,सोंढूर और महानदी का त्रिवेणी संगम है। नदी के एक किनारे भगवान राजीवलोचन का मंदिर है और नदी के बीच में कुलेश्वर महादेव का। सातवीं-आठवीं शताब्दी का ये मंदिर आज भी खड़ा है मौसम को चुनौतियाँ देता हुआ। इसी नदी पर मंदिर से कुछ ही दूरी पर पुल बनया गया है। यह पुल केवल चार दशकों में ही जर्जर हो गया। उसी जलधारा के बीचों-बीच खड़ा कुलेश्वर मंदिर उस काल की स्ट्रक्चरल, जियोलॉजिकल और इंजीनियरिंग के ज्ञान का प्रमाण दे रहा,बरसात के दिनों में बाढ़ का पानी कई-कई दिनों मंदिर को डुबाए रखता है। कुछ सालों पहले उफनती जलधारा क़हर बरपाती जाती थी। इसके बावजूद बाढ़ लाखों क्यूसेक पानी का दबाव अपने बेहतरीन अष्टकोणीय ढाँचे पर आसानी से झेलता आ रहा है कुलेश्वर महादेव। मंदिर का आकार 37.75 गुना 37.30 मीटर है। इसकी ऊँचाई 4.8 मीटर है मंदिर का अधिष्ठान भाग तराशे हुए पत्थरों से बना है। रेत एवं चूने के गारे से उनकी जोड़ाई हुई है। इसके विशाल चबूतरे पर तीन तरफ से सीढ़ियाँ बनी हुई है। नदी की गहराई निरंतर रेत के जमाव से कम हो चुकी है इसलिए मंदिर का चबूतरा लगभग डेढ़ मीटर गहराई तक रेत में ढका हुआ माना जाता है। इसी चबूतरे पर पीपल का एक विशाल पेड़ भी है।चबूतरा अष्टकोणीय होने के साथ ऊपर की ओर पतला होता गया है। यहाँ उस काल के भवन निर्माताओं के भू-गर्भ विज्ञान के कौशल का पता चलता है। उन्होंने लगभग 2 कि.मी. चौड़ी नदी के बीच और जहाँ देखो वहाँ तक फैले रेत के समुंदर के बीच इस मंदिर की नींव के लिए ठोस चट्टानों का भूतल ढूंढ निकाला था। एकदम बारीक बालू से भरी नदी के बीच एक इमारत को खड़ा करना और उसे सदियों तक टिका रहने लायक बनाने के लिए की गई साइट सिलेक्शन आज के पढ़े-लिखे अत्याधुनिक निर्माण कर्ताओं के लिए आदर्श प्रस्तुत करती है।तमाम धारणाओं-अवधारणाओं के बावजूद कुलेश्वर महादेव की संरचना जल प्रवाह से होने वाले परिणाम जैसे क्षरण, भू-स्खलन, आर्द्रता और ताप प्रतिरोध से आजतक सुरक्षित है। संरचना स्थानीय भूरा बलुवा और काले पत्थरों से बनी हुई है। नदी की धारा इस अष्टकोणीय संरचना से टकराकर विकेन्द्रित और अभिसरित हो जाती है। प्रवाह के साथ बहने वाले रेत के घर्षण से भी ये अप्रभावित ही है। इंजीनियरिंग की ये शानदार मिसाल आस्था और धर्म को छोड़कर भी अपनी उत्कृष्टता का कायल कर देती है।इसके निर्माण के काल पर विवाद हो सकता है लेकिन राजिम के अन्य मंदिर सातवीं-आठवीं शताब्दी के हैं इसलिए इसे भी उसी काल का माना जाता है। ये राज्य सरकार द्वारा संरक्षित स्मारक है और ये प्राचीन काल में छत्तीसगढ़ में मरीन इंजीनियरिंग, जियोलॉजी और कंस्ट्रक्शन इंजीनियरिंग के अत्यंत विकसित होने का सबूत देता है। हाँ अगर मान्यताओं की बात करें तो ऐसा कहा जाता है कि नदी किनारे बने मामा के मंदिर के शिवलिंग को जैसे ही नदी का जल छूता है उसके बाद बाढ़ उतरनी शुरू हो जाती है।
सावन के इस पवित्र महीने में तो श्रध्दालुओं का वहाँ तांता लगा रहता है, वैसे साल भर लोग यहाँ भगवान शंकर के दर्शन के लिए आते रहते हैं।

पीएससी 2003 विवाद: 'अपात्र होने के बाद भी अहम पदों पर बैठे हैं 73 अफसर'

पीएससी 2003 के विवाद पर राज्यपाल ने एंटी करप्शन ब्यूरो को जांच के आदेश दिए थे। एसीबी ने इसकी जांच कर रिपोर्ट भी राज्यपाल व लोक सेवा आयोग को सौंप दी थी। लेकिन इसकी अनुसंशाओं को लागू नहीं किया गया। अगर इसे लागू किया गया होता तो दस सालों से विभिन्न पदों पर काबिज 73 जिम्मेदार अफसर अपात्र घोषित होते। इनमें से 56 अफसरों का डिमोशन होता और 17 की नौकरी ही चली जाती।
 एसीबी ने 1500 पन्ने की रिपोर्ट दी थी। एसीबी की यह रिपोर्ट आरटीआई के जरिए हासिल की है। लोक सेवा आयोग (पीएससी) ने 2003 में राज्य प्रशासनिक सेवा के 147 पदों के लिए परीक्षा ली थी। परीक्षा में भारी गड़बडिय़ां सामने आईं थीं। रिपोर्ट के मुताबिक 56 अफसरों के पद बदले जाते और 17 नौकरी से बाहर होते। बताया गया कि हाईकोर्ट में मामला लंबित होने से कार्रवाई नहीं गई।  राज्यपाल ने शासन को मामले के जल्द निपटारे को लेकर हाईकोर्ट से आग्रह करने का आदेश दिया था, लेकिन राज्य शासन ने इतने सालों में एक अर्जी तक नहीं दी।
 दस्तावेजों में बड़ा फर्जीवाड़ा  :
अधिक नंबर पाने के बाद भी चयन से वंचित उम्मीदवार वर्षा डोंगरे ने मानवाधिकार आयोग से शिकायत की थी। पीएससी ने मानवाधिकार आयोग को बताया कि अग्रमान्यता पत्रक में वर्षा ने आबकारी उपनिरीक्षक का पद भरने के बाद काट दिया था, इस वजह से उसका चयन नहीं किया गया। जांच में वर्षा के साथ ही दीपमहीष, संतन जांगड़े, मेघा टेम्भुरकर व चंद्रप्रभा के अग्रमान्यता पत्रक में गड़बड़ी कर लाभ पहुंचाने का आरोप लगा था।
 सीएम को भी दी गलत जानकारी
 वर्षा डोंगरे ने इस मामले की शिकायत तत्कालीन मुख्यमंत्री से की। मुख्यमंत्री सचिवालय ने पीएससी से जानकारी मांगी तो बताया गया कि सहायक संचालक जनसंपर्क व नायब तहसीलदार के पद अजा वर्ग के चयनित परीक्षार्थियों से वर्षा को ज्यादा नंबर मिले थे और अग्रमान्यता पत्रक के आधार पर ही चयन किया गया है। आयोग ने मुख्यमंत्री को ही गलत जानकारी दे दी, क्योंकि वर्षा ने पत्रक में दोनों पदों को भरा था। इसके बाद भी उसका चयन नहीं किया गया। एसीबी ने रिपोर्ट में कहा है कि आयोग द्वारा सीएम को दी गई जानकारी पूरी तरह गलत है।
 ये हो सकते थे नौकरी से बाहर
 नायब तहसीलदार विकास माहेश्वरी, सुधांशु सक्सेना, जागेश्वर कौशल, रजनी भगत, विक्रय कर उपनिरीक्षक प्रकाश गुप्ता, आबकारी उपनिरीक्षक ऋचा मिश्रा, अमित कुमार श्रीवास्तव, अजय कुमार पाण्डेय, राकेश कुमार सिंह राठौर, सूर्यकिरण तिवारी, राजेंद्रनाथ तिवारी, रविकांत जायसवाल, ठाकुरराम रात्रे, सुनील कुमार, चंद्रप्रताप सिंह, शीला बारा व संजय कुमार ध्रुव। ये सभी उम्मीदवार अपने पदों पर कार्यरत हैं। इनका चयन अपात्र होने के बाद भी कर लिया गया था।
 10 पात्र नहीं बन सके अफसर : रिपोर्ट
 एसीबी ने दो बिंदुओं, आपराधिक कृत्य और स्केलिंग में गड़बड़ी पर जांच की। कॉपियों और परीक्षार्थियों द्वारा जमा किए गए दस्तावेजों से पता चला कि बड़े पैमाने पर काट-छांट व गड़बडिय़ां की गई हैं। इसमें 10 उम्मीदवारों को पात्र होने के बाद कई तरीकों से चयन से वंचित कर उनकी जगह अपात्रों को अफसर बना दिया गया। एसीबी ने इन सभी उम्मीदवारों का जिक्र उन्हें मिले नंबरों के साथ किया है।

बरसात में नक्सलियों पर मौत का साया

गहरे घने जंगलों में छिपे नक्सलियों को बारिश के आते ही एक भयंकर खतरे से निपटना होता है। यह खतरा होता है सांपों के काटने का। जिन थोड़े—बहुत लोगों ने रेड कॉरिडोर की दुनिया देखी है वह बताते हैं कि नक्सली अमूमन छोटे अस्थाई टेंटों में रहते हैं। कई बार तो साधारण बरसाती से ही रहने लायक जगह बनाई जाती है। बारिश में जंगल में विचरने वाले खतरनाक सांप इनके लिए एक बड़ा खतरा साबित होते हैं।
पिछली घटनाओं पर नजर डालें तो सरगुजा के जंगलों में कुछ साल पहले सब जोनल कमांडर राहुल तिवारी  की सांप काटने से मौत हो गई थी। बस्तर इलाके में भी एक बडे़ नक्सली नेता की मौत मौसमी बीमारी के चलते बारिश में हो गई थी। इसलिए नक्सली बारिश में ऐसे स्थान पर रहना नहीं चाहते, जहां रहकर वे दुनिया से कट जाएं। बरसात के दिनों में बीहड़ में जहां जहरीले जीवों से खतरा बना रहता है, वहीं रास्ते बंद हो जाने से बीमार होने पर इलाज नहीं मिल पाता, जिससे जान जाने का खतरा बना रहता है। इसलिए वे अंदरूनी क्षेत्रों से बाहर आ जाते हैं। बताया जाता है कि बारिश से पहले अंदरूनी क्षेत्रों से सुरक्षित इलाकों में जाने के लिए नक्सली जनपितुरी सप्ताह मनाया जाता है। इस बीच उनकी गतिविधियां बढ़ जाती हैं और वे ताबड़तोड़ हमला करते हैं।
जंगलों में नक्सलवादियों की कई अस्थायी डिस्पेंसरी संचालित है। इस बात का खुलासा राजनांदगांव जिले में पुलिस की सर्चिंग के दौरान हुआ था। पुलिस की गत् दिनों सर्चिंग के दौरान कातुलझोरा में नक्सलियों से मुठभेड़ हुई थी। मुठभेड़ के बाद पुलिस ने यहां से बड़ी तादाद में एंटी स्नैक वैक्सीन व अन्य दवाईयां बरामद की थी। नक्सली एक तरह से अस्थायी व चलित अस्पताल चलाते हैं। उनके पास मौसमी बीमारियों के अलावा दूसरी अन्य बीमारियों की दवाइयां व इंजेक्शन उपलब्ध होते हैं। नक्सलियों को बरसात के दिनों में सबसे ज्यादा खतरा बिच्छू, सर्प व अन्य जहरीले जीव जंतुओं से रहता है।



Thursday, June 27, 2013