Friday, May 31, 2013















Thursday, May 30, 2013

सलवा जुडूम के नेताओं को जान से मारने की धमकी..

छत्तीसगढ़ के सुकमा में कांग्रेस काफिले में हमले के बाद नक्सली अपनी दहशत को कम नहीं होने देना चाहते हैं। 25 मई को दरभा घाटी में नक्सलियों ने कांग्रेस के नेताओं सहित 30 लोगों की निर्मम हत्या कर दी थी। अभी ये मामला शांत भी नहीं हुआ है कि फिर से नक्सलियों ने सुकमा कलेक्टर के नाम खत जारी कर सलवा जुडूम के नेताओं को जान से मारने की धमकी दी है। यही नहीं, खुफिया एजेंसियों से सरकार को जो खबरें मिल रही हैं, उसके मुताबिक नक्सलियों के निशाने पर अब बड़े शहर हैं।

सुकमा के पास दरभा में जो कुछ हुआ उसने पूरे देश को हिलाकर रख दिया। खुफिया एजेंसियों को भनक लगी है कि नक्सली दरभा की ही तरह और हमलों को अंजाम देने की साजिश रच रहे हैं और इस बार उनके निशाने पर देश के बड़े शहर हो सकते हैं। केंद्र और राज्य सरकारों को मिली खुफिया रिपोर्ट के मुताबिक नक्सली अब बड़े शहरों को निशाना बनाने की ताक में हैं। नक्सलियों के निशाने पर देश की राजधानी दिल्ली भी है। पुणे पर हमले के लिए भी नक्सली ठोस रणनीति बना रहे हैं। इसके अलावा नक्सल प्रभावित इलाकों से सटे बड़े शहर भी नक्सलियों के निशाने पर हो सकते हैं। खुद गृह मंत्री ने भी नक्सलियों से मिले रहे खतरों को माना है। केंद्रीय गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने कहा कि हां, जिस तरह से नक्सलियों ने सुकमा में कांग्रेसियों को निशाना बनाया है। उसे देखकर यह कहा जा सकता कि नक्सली के निशाने पर बड़े शहर भी हैं। खुफिया रिपोर्ट में कहा गया है कि अपना असर दिखाने के लिए नक्सली अपने प्रभाव वाले इलाके से बाहर निकलने की फिराक में हैं। इसके पीछे उनका मकसद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोगों का ध्यान खींचना और अपने कैडरों का हौंसला बढ़ाना है। सूत्रों के मुताबिक, माओवादियों की निराशा का अंदाजा उनके शीर्ष नेताओं के बीच हुई बातचीत से लगाया जा सकता है। सुरक्षा एजेंसियों ने माओवादियों के कुछ शीर्ष नेताओं के बीच होने वाली बातचीत सुनी है जो छत्तीसगढ़, झारखंड और ओडिशा के घने जंगलों में छिपे हुए हैं।खुफिया एजेंसियों की माने तो नक्सलियों के निशाने पर देश के बड़े-बड़े नेता भी हैं। दरभा मामले के बाद राज्य और केंद्र सरकार सचेत है और सुरक्षा एजेंसियों को चौकन्ना कर दिया गया है। इस बीच सुकमा के कलेक्टर को डाक से भेजा गया एक खत मिला है। खत लिखने वाले ने खुद के माओवादी होने का दावा किया है और लिखा है कि सलवा जुडूम के सदस्यों और पुलिस के मददगारों को दरभा जैसा ही जवाब दिया जाएगा। नक्सलियों ने खत के जरिए सलवा जुडूम के नेताओं को जान से मारने की धमकी दी है। नक्सलियों ने बाकायदा सलवा जुडूम नेताओं और पुलिस के मददगारों का नाम भी खत में लिखा है। नक्सलियों के दरभा डिविजनल कमिटी ने बस्तर में तैनात सीआरपीएफ को हटाने की मांग की है और उनके खिलाफ चल रहे ऑपरेशन ग्रीन हंट को बंद करने को कहा है। इसी तरह राज्य सरकार द्वारा चलाए जा रहे विकास यात्रा और कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा को बंद करने की भी चेतावनी दी है। नक्सलियों के जेल में बंद साथियों को भी रिहा करने की मांग दरभा कमेटी ने पत्र में किया है। साफ है, दरभा हमले के बाद नक्सलियों का हौसला बढ़ा है। दूसरी तरफ केंद्र सरकार की तरफ से नक्सलियों पर जल्द लगाम लगाने के दावे किए जा रहे हैं।

नक्सली हमले के पीछे ओडिशा का स्पिलंटर माओवादी ग्रुप!

देश में अभी तक के सबसे बड़े नक्सली हमले में अब साजिश के तार सामने आ रहे हैं. सूत्रों के मुताबिक ओडिशा के स्पिलंटर माओवादी ग्रुप की नक्सलियों से साठगांठ है और माना जा रहा है कि स्पिलंटर ग्रुप भी इस नक्सली हमले में शामिल हो सकता है.

गौरतलब है कि शनिवार को छत्तीसगढ़ में परिवर्तन रैली से हिस्सा लेकर लौट रहे कांग्रेस नेताओं के काफिले पर सुकमा जिले के घने जंगलों में नक्सलियों ने हमला कर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष महेंद्र कर्मा की हत्या कर दी थी. हमले में 30 लोग मारे गए और कई अन्य घायल हो गए.

ये हैं हमले के साजिश के 7 मास्टर माइंड
1. पंकज उर्फ गगन्ना
2. कमांडर वाई टू
3. कमांडर गजराला
4. कमांडर अशोक
5. कमांडर विनोद हुंगा
6. कमांडर बरहु
7. कमांडर मासा
देश के 106 जिलों में नक्सली मौजूद हैं. देखिए, क्या आपका जिला है इस लिस्ट में, क्या आप गए हैं कभी किसी नक्सली इलाके में
बिहार के 22 जिले- अरवल, औरंगाबाद, भोजपुर, पूर्वी चंपारण, गया, जमुई, जहानाबाद, कैमूर, मुंगेर, नालंदा, नवादा, पटना, रोहतास, सीतामढ़ी, पश्चिम चंपारण, मुजफ्फरपुर, शिवहर, वैशाली, बांका, लखीसराय, बेगुसराय और खगड़िया.
उत्तर प्रदेश के 3 जिले- चंदौली, मिर्जापुर और सोनभद्र.
झारखंड के 21 जिले- बोकारो, चतरा, धनबाद, पूर्वी सिंहभूम, गढ़वा, गिरिडीह, गुमला, हजारीबाग, कोडरमा, लातेहार, लोहरदग्गा, पलामू, रांची, सिमडेगा, सरायकेला-खरसावां, पश्चिम सिंहभूम, खूंटी, रामगढ़, दुमका, देवघर और पाकुड़.
छत्तीसगढ़ में 16 जिले- बस्तर, बीजापुर, दंतेवाडा, जशपुर, कांकेर, कोरिया, नारायणपुर, राजनांदगांव, सरगुजा, धमतरी, महासमुंद, गरियाबंद बालौद, सुकमा, कोंडागांव और बलरामपुर.
मध्‍य प्रदेश में 1 जिला- बालाघाट
पं. बंगाल में 4 जिले- बांकुरा, पश्चिम मिदनापुर, पुरुलिया और बीरभूम.
आंध्र प्रदेश के 16 जिले- अनंतपुर, आदिलाबाद, पूर्वी गोदावरी, गुंटूर, करीमनगर, खम्मम, करनूल, मेडक, महबूबनगर, नालगोंडा, प्रकाशम, श्रीककुलम, विशाखापट्टनम, विजयनगरम, वारंगल और निजामाबाद.
महाराष्ट्र के 4 जिले- चंदनपुर, गढ़चिरौली, गोंडिया और अहेरी.
उड़ीसा के 19 जिले- गजपति, गंजाम, क्योंझर, कोरापुट, मलकानगिरि, मयूरभंज, नवरंगपुर, रायगढ़, संभलपुर, सुंदरगढ़, नयागढ़, कंधमाल, देवगढ़, जयपुर, ढेंकनाल, कालाहांडी, नुआपाड़ा, बरगढ़ और बोलंगीर.



राजधानी में 15 दिन में डायल 100


0 डायल करने पर तत्काल पहुंचेगी पुलिस
0 थानेदारों की गाड़ियों में जीपीएस सिस्टम से निगरानी
राजधानी पुलिस ने रिस्पांस टाइम सुधारने के लिए पखवाड़ेभर में डायल 100 की योजना शुरू करने की पूरी तैयारी कर ली है। बुधवार को पुलिस कंट्रोल रूम में कॉल रिसीव करने वाले जवानों के साथ फील्ड में काम करने वालों को दिए जा रहे प्रशिक्षण कार्यक्रम में आईजी जीपी सिंह, एसपी ओपी पाल ने भाग लिया। इस मौके पर उन्होंने डायल 100 का ट्रायल और कंट्रोल रूम में बनाए गए सर्वर रूम का निरीक्षण भी किया। आईजी ने कहा कि पखवाड़ेभर में डायल 100 सिस्टम काम करना शुरू कर देगा। अभी इसके लिए जवानों को प्रशिक्षित किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि पुलिस की 50 गाड़ियों में जीपीएस सिस्टम लगा दिया गया है। यह कैसे काम करेगा, इसके लिए भी प्रशिक्षण दिया जाएगा।
आईजी जीपी सिंह ने 'नईदुनिया" को बताया कि डायल 100 योजना पुलिस का रिस्पांस टाइम सुधारने के लिए शुरू किया जा रहा है। किसी भी घटना के लिए 100 नम्बर डायल करके पुलिस कंट्रोल रूम को किसी तरह की सूचना दी जा सकती है। सूचना मिलने के चंद मिनटों में कॉल टेकर फार्म भरकर इसे डिस्पेच करेगा। इसके तुरंत बाद पुलिस घटना स्थल पर होगी। डायल 100  ग्लोबल पोजिसनिंग सिस्टम (जीपीएस) पर काम करेगा। थानों की पेट्रोलिंग पार्टी, पीसीआर और क्यूआरटी वैन समेत 50 गाड़ियों में फिलहाल जीपीएस सिस्टम स्टाल कर दिया गया है। इसके जरिए गाड़ियांे का लोकेशन भी मिलेगा।
सिविल लाइन कंट्रोल रूम में डायल 100 के लिए एक अत्याधुनिक हाइटेक कंट्रोल रूम तैयार किया गया है। यहां ढेरों कम्प्यूटर के साथ एक बड़ी स्क्रीन लगाई गई है। सभी सर्वर के माध्यम से आपस में जुड़े हुए हैं। इसमें सभी गाड़ियों का लोकेशन साफ दिखाई देगा। अगर किसी क्षेत्र में कोई वारदात की सूचना मिलती है तो कंट्रोल रूम में बैठे अधिकारी और कर्मचारी उस क्षेत्र के पीसीआर वैन, पेट्रोलिंग पार्टी और क्यूआरटी वैन का लोकेशन देखेगी,जो सबसे नजदीक गाड़ी होगी, उसे सूचना देकर घटना स्थल के लिए रवाना कर दिया जाएगा। इससे सिस्टम से अपराधियों को पकड़ने और अपराध को कंट्रोल करने में पुलिस को मदद मिलेगी। उन्होंने कहा कि थानों की पेट्रोलिंग पार्टी और पीसीआर के अलावा थाना प्रभारी की गाड़ियों में भी जीपीएस लगाया जाएगा, ताकि थाना प्रभारी का भी लोकेशन अधिकारियों को पता रहे। अब तक पेट्रोलिंग पार्टी, थाना प्रभारी सहित सभी गाड़ियों का लोकेशन वायरलेस से पूछा जाता था। वायरलेस में पेट्रोलिंग पार्टी या थाना प्रभारी जो लोकेशन बताते थे, उसे ही नोट कर लिया जाता था, लेकिन अब कंट्रोल रूम  में बैठे अधिकारियों झूठ पकड़ी जाएगी। अब उनसे लोकेशन पूछने की जरूरत होगी। सर्वर रूम के स्क्रीन पर ही सभी  का लोकेशन दिख जाएगा। गौरतलब है कि डायल 100 के लिए राज्य सरकार से राजधानी पुलिस को सवा दो करोड़ स्र्पए प्राप्त हुए थे। 
वर्सन-
डायल 100 शुरू होने से पुलिस के रिस्पांस टाइम में सुधार आएगा। मौके वारदात में पुलिस मिनटों में पहुंचकर अपना काम करेगी
-ओपी पाल
एसपी रायपुर
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अनसुलझे रह गए आधा दर्जन हत्याकांड
0 हत्या कर फेंकी गई तीन लाशों की नहीं हुई शिनाख्त
0 क्राइम ब्रांच कर रहा नए सिरे से जांच
रायपुर(निप्र)। राजधानी के विभिन्ना इलाकों में हुई करीब दर्जनभर हत्या के मामलों में काफी प्रयास के बाद भी पुलिस और क्राइम ब्रांच को अब तक सुराग नहीं मिल पाया है। तीन अज्ञात लोगों की हत्या का मामला इसलिए उलझा हुआ है, क्योंकि लाशों की शिनाख्त अब तक नहीं हो पाई है। छह महीने पूर्व तत्कालीन एसएसपी दीपांशु काबरा ने नए सिरे से आधा दर्जन अनसुलझे हत्याकांड की गुत्थी सुलझाने के लिए क्राइम ब्रांच को नए सिरे से फाइल खंगालने की जिम्मेदारी सौंपी थी। क्राइम ब्रांच ने तीन महीने तक काफी हाथ-पांव मारा, लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला। हालांकि पुलिस का दावा है कि कुछ प्रकरणों में महत्वपूर्ण क्लू मिले हैं, जिनका खुलासा नहीं किया जा सकता है। जल्द ही आरोपी गिरफ्त में होंगे।
पिछले साल अप्रैल में मंदिर हसौद थाना क्षेत्र के ग्राम बखतरा निवासी उमा हिरवानी (7) पिता गणेश की लाश गांव में आठ फीट गहरे सूखे कुएं में मिली थी। मासूम की गला रेतकर हत्या का खुलासा पीएम रिपोर्ट में हुआ था, लेकिन आरोपी का अब तक पता नहीं चल सका है। भनपुरी में एक फैक्ट्री मजदूर की मिली अधजली लाश की गुत्थी भी नहीं सुलझ पाई है। 6 जनवरी 2012 की सुबह खरोरा थानाक्षेत्र के ग्राम कोरासी निवासी फैक्ट्री मजदूर रामलाल देवांगन (41) की अधजली लाश धनलक्ष्मीनगर में फैक्ट्री के समीप मैदान में मिली थी। वह फैक्ट्री परिसर स्थित मजदूर क्वार्टर में अकेला रहता था। जांच-पड़ताल के बाद पुलिस ने इस हत्याकांड की फाइल बंद कर दी थी। इसी तरह भाठागांव रिंग रोड एक पर सर्विस रोड के किनारे गड्ढे में मिली एक अधेड़ की लाश की शिनाख्त भी नहीं हो पाई। मृतक के सिर व माथे में गहरी चोट के निशान थे। पत्थर मारकर उसकी हत्या करने की पुष्टि हो चुकी है। वहीं चार पहले कैलाशपुरी में एक कुएं में हत्या कर फेंकी गई अज्ञात युवक की लाश की गुत्थी भी उलझकर रह गई है। खमतराई इलाके में उरकुरा छोकरानाला रेल लाइन पुल पर चौकीदार अशोक तिवारी (36) पिता शिवानंद की 12-13 मई 2012 की रात हुई हत्या के मामले में भी सुराग नहीं मिल पाया है। इसी तरह हत्या के अन्य प्रकरणों में भी पुलिस हवा में हाथ-पैर मार रही है। वहीं प्रेमिका दीपा की हत्या कर फरार निगरानीशुदा बदमाश मोहन दुर्गा की गिरफ्तारी भी नहीं हो पाई है। अनसुलझे हत्याकांड पर माथामच्ची कर रहे क्राइम ब्रांच के अफसरों का कहना है कि एक-दो मामलों में सुराग मिले चुके हैं, लेकिन साक्ष्य व चश्मदीद गवाह नहीं मिलने से मामला उलझा हुआ है।
वर्सन-
हत्या के पांच अनसुलझे मामलों की जांच नए सिरे से कर रहे हैं। इनमें से कुछ के चश्मदीद गवाह नहीं मिल रहे हैं। साक्ष्य के अभाव और कुछ लाशों की शिनाख्त न होने की वजह से जरूर मामला उलझा हुआ है।
श्वेता सिन्हा, एएसपी(क्राइम)
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जंगल में हमला, शहर में बढ़ी चिंता  0 आधी रात राजधानी में जबरदस्त चेकिंग
0 शहर के आउटरों में की गई थी नाकेबंदी
0 वीआईपी व नेताओं के बंगले की सुरक्षा बढ़ाई गई
रायपुर(निप्र)। नक्सली हमले में कांग्रेस के बड़े नेताओं के मारे जाने के बाद राजधानी में विशेष सतर्कता बरती जा रही है। केंद्र की सुरक्षा एजेंसियों से जुड़े लोगों के लगातार प्रवास को देखते हुए शहर के आउटर में कड़ी नाकेबंदी कर आने-जाने वाले वाहनों की चेकिंग के साथ निगाह रखी जा रही है। सोमवार-मंगलवार की दरम्यानी रात राजधानी में सभी प्रवेश मार्गों पर जबरदस्त चेकिंग अभियान छेड़ा गया। हालांकि जांच-पड़ताल में कोई संदिग्ध वस्तु या व्यक्ति हाथ नहीं आया, लेकिन दो दर्जन बदमाश जरूर गिरफ्तार किए गए। अफसरों का कहना है कि राजधानी पुलिस चेकिंग के जरिए अपना अलर्टनेस परख रही है।
पुलिस मुख्यालय के निर्देश पर वीआईपी और नक्सलियों की हिट लिस्ट में शामिल नेताओं व मंत्रियों की सुरक्षा के साथ उनके बंगलों पर तैनात जवानों की संख्या बढ़ा दी गई है। जवानों को हमेशा अलर्ट रहने को कहा गया है। अफसरों  के मुताबिक नक्सलियों पर नकेल कसने के निर्देश दिए गए हैं। हमला करने वाले नक्सलियों की टोह लेने बस्तर के जंगलों में जवानों लगातार सर्चिंग करने कहा गया है। इस ऑपरेशन में स्थानीय पुलिस के साथ अर्धसैनिक बल के हजारों जवानों को लगाया गया है।
हमलावर नक्सलियों का मिला सुराग
डीजीपी रामनिवास ने मीडिया से चर्चा के दौरान इस बात की पुष्टि की है कि कांग्रेसी नेताओं के काफिले पर हमला करने वालों का सुराग मिल गया है। इस हमले की साजिश किसने रची और कैसे पूरे घटनाक्रम को अंजाम दिया गया, पूरी जानकारी मिल गई है। हमले में शामिल नक्सली नेताओं के नाम सामने आने के बाद, अब उन्हें घेरकर पकड़ने की कोशिश की जा रही है। नक्सलियों को खोजने और पकड़ने के लिए इससे पहले भी कई बार सर्च ऑपरेशन चलाए गए, लेकिन सब के सब बेनतीजा रहे। अफसरों का तर्क है कि नक्सलियों के लिए बस्तर की भौगोलिक संरचना हमेशा से फायदेमंद साबित होती रही है। किसी भी वारदात को आंजाम देने के बाद नक्सली जंगलों के रास्ते से पड़ोसी  राज्य ओडिशा, आंध्रप्रदेश, महाराष्ट्र के जंगलों में जाकर छिप जाते हैं। नक्सलियों के सफाए के लिए अब तीनों राज्य की पुलिस को साझा ऑपरेशन चलाने का समय आ गया है। देर सबेर नतीजा जरूर सामने आएगा।
हमले में चार राज्यों के नक्सली
खुफिया विभाग के सूत्रों की मानें तो कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा पर जिस तरह से योजनाबद्ध तरीके से नक्सलियों ने हमला किया, उससे इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि हमलावर नक्सलियों की संख्या 5 सौ से 1 हजार के बीच रही होगी। इस हमले में छत्तीसगढ़, ओडिशा, आंध्रप्रदेश और महाराष्ट्र के बड़े नक्सली नेताओं के साथ वहां के अलग-अलग दस्तों शामिल रहे। 
वर्जन-
सुरक्षा व्यवस्था परखने के लिए राजधानी में चेकिंग बढ़ाई गई है। इसे नक्सली हमले से जोड़कर नहीं देखना चाहिए। वीआईपी व नेताओं की सुरक्षा जरूर बढ़ाई गई है। चेकिंग अभियान जारी रहेगा।
ओपी पाल
एसपी, रायपुर
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मार्च में बनी थी दरभा हमले की योजना
- सात सदस्यीय टीम ने तैयार किया था हमले का खाका
-संभावित हमलावरों की सूची एनआईए के पास 
-गृह मंत्रालय नहीं करना चाहता न्यायिक जांच के नतीजों का इन्तजार
सुकमा में कांग्रेस की यात्रा पर हुए नक्सली हमले में ज्यादा से ज्यादा लोगो को मारने की साजिश थी , इंटेलिजेंस सूत्रों से पता चला है कि इस  पूरे हमले की योजना सात सदस्यीय माओवादी टीम द्वारा अबुझमाड़ में मार्च महीने में ही बना ली गयी थी =उधर एनआईए की प्रारंभिक जांच में भी योजना को एक विशेष टाइम फ्रेम में बनाने और फिर अंजाम देने की पुष्टि हुई है =जानकारी मिली है कि हमले का मास्टर माइंड कहे जाने वाले आंध्र के नक्सली कमांडर सुदर्शन कटकम जो कि माओवादियों की सेंट्रल कमेटी का सदस्य भी है ने इस पूरी योजना को बनाने वाली टीम के साथ-साथ हमले को क्रियान्वित करनेवाली टीम को लीड किया ,हलाकि दरभा में हुए हमले के दिन वो नक्सलियों के साथ नहीं था =100 से 150 माओवादियों के गिरोह ने उस दिन दरभा डिविजिनल कमेटी के प्रमुख सुरेन्द्र के साथ पूरी घटना को अंजाम दिया था =इस पूरी योजना को बनाने में सुदर्शन उर्फ़ आनंद के अलावा गणपति नम्बाला केशव राव ,विवेक उर्फ़ भूपति ,मिसिर बेसरा उर्फ़ भास्कर ,किशन दास उर्फ़ प्रशांत ,बॉस उर्फ़ निर्भय और माल्ला राजी उर्फ़ सठेन्ना शामिल थे ,माओवादियों ने इस हमले को अंजाम देने के लिए जन-मिलिशिया का इस्तेमाल किया और उन्हें इस पूरी वारदात को अंजाम देने के लिए बार-बार -प्रशिक्षित किया गया =गृह मंत्रालय ने इस पूरे मामले में शामिल लोगों की संभावित सूची को फिलहाल एनआईए को सौंप दिया है
दर्ज हुआ माओवादियों के खिलाफ मुकदमा
दरभा में हुआ नक्सली हमला माओवादियों की खतरनाक प्लानिंग और सटीक सूचना नेटवर्कंिग का परिणाम था =इंटेलिजेंस से मिली सूचनाओं को माने तो जिस वक्त ये हमला हुआ उस वक्त माओवादियों की आधा दर्जन से अधिक कम्पनियाँ सुकमा इलाके में तैनात थी और टारगेट तक पहुँचने के लिए दो दिनों तक लम्बी यात्रा की थी =ये स्पष्ट है कि माओवादी घटनास्थल के 25 किमी के दायरे में तीन दिनों से मौजूद थे =प्राप्त जानकारी से ये बात बिलकुल साफ़ है कि माओवादियों के निशाने पर सिर्फ महेंद्र कर्मा नहीं थे ,वो ज्यादा से ज्यादा लोगों को मारने की योजना पर काम कर रहे थे ,इस बीच जब दरभा पुलिस ने माओवादियों के खिलाफ आर्म्स एक्ट ,एक्सप्लोसिव एक्ट ,और गैरकानूनी गतिविधियाँ (निषेधक एक्ट )समेत आईपीसी की विभिन्न धाराओं में मुकदमा पंजीकृत कर लिया है =ये भी जानकारी मिली है कि एम्बुश प्वाइंट पर दरभा घाटी में माओवादियों की सेंट्रल मिलिटरी कमीशन का देवजी और दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी का सोनू भी मौजूद थे ,गौरतलब है कि सोनी मृत माओवादी किशनजी का भाई है =
एनआईए जांच के प्रारंभिक नतीजे
गृह मंत्रालय इस बात को पूरी तरह से तस्दीक करना चाहता है कि इस हमले में शामिल माओवादियों कीई सही और सटीक शिनाख्त हो और ऐसा न हो कि घटना में शामिल माओवादियों का हश्र 2010 में दंतेवाड़ा में शामिल माओवादियों द्वारा जैसा न हो ,गौरतलब है कि घटना में शामिल 10 माओवादियों को कोर्ट द्वारा सबूतों के अभाव में छोड़ दिया गया था =एनआईए द्वारा प्रारम्भिक जांच में इस बात की पुष्टि हो चुकी है कि हमले से पहले ही माओवादी मौके पर पहुँच चुके थे ,खाली बोतल ,केले के छिलके ,खाने के पैकेट इस बात की और साफ़ इशारा कर रहे हैं ,एन आई ए को शक है कि माओवादियों की इंटेलिजेंस यूनिट ने आन्ध्र प्रदेश के कैडरों के साथ मिलकर पूरी घटना को अंजाम दिया =
युद्ध क्षेत्र बनेगा छत्तीसगढ़
गृह मंत्रालय के सूत्रों से मिली जानकारी से ये बिलकुल साफ़ है कि मंत्रालय राज्य सरकार द्वारा न्यायिक जांच के नतीजों का इन्तजार नहीं करना चाहता =आज हुई बैठक में केंद्रीय गृह सचिव ने दोषी अधिकारियों को चिन्हित कर उनके खिलाफ तात्कालिक तौर पर कार्यवाही करने की बात कही है  =उधर माओवादियों के खिलाफ कार्यवाही को लेकर केंद्र सरकार किसी भी किस्म का विलम्ब नहीं करना चाहती,जानकारी मिल रही है कि सरकार  एनसीटीसी के अलावा मिलिटरी इंटेलिजेंस का इस्तेमाल करने से भी गुरेज नहीं करेगी ,राज्य को ज्यादा से ज्यादा सुरक्षा बल मुहैया कराने पर भी हामी भर दी गयी है =निश्चित तौर पर आने वाले दिन माओवादी मोर्चे पर बेहद रक्त भरे हो सकते हैं .
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) फिर कर सकते हैं माओवादी हमला, गृह मंत्रालय चिंतित
-केंद्रीय गृह सचिव और आईबी प्रमुख ने ली अधिकारियों की बैठक
गृह मंत्रालय ने आशंका व्यक्त की है कि माओवादी फिर से जीरम घाटी की तर्ज पर राजनैतिक हमले कर सकते हैं। इससे चिंतित गृह मंत्रालय ने छत्तीसगढ़ समेत सभी नक्सल प्रभावित राज्यों को सुरक्षा तंत्र में व्यापक फेरबदल के आदेश दिए हैं। छत्तीसगढ़ समेत सभी राज्यों को आइंदे से सभी राजनैतिक दौरों के दौरान सुरक्षा इंतजाम के लिए एक नोडल आफिसर की नियुक्ति करनी होगी।
मंगलवार को राजधानी में पुलिस मुख्यालय में केंद्रीय गृह सचिव और आईबी प्रमुख ने प्रदेश के आला अफसरों की बैठक ली। गृह मंत्रालय ने आदेश दिया है कि चुनावों को देखते हुए राजनैतिक पार्टियों की रैलियों और राजनेताओं की सुरक्षा के व्यापक बंदोबस्त किए जाएं। केंद्रीय गृह सचिव आरके सिंह ने आगामी 31 मई तक दरभा में हुए हमले के मामले में परिणाम आने की अपेक्षा की है। आईबी के निदेशक आसिफ इब्राहिम की उपस्थिति में हुई बैठक में छत्तीसगढ़ के गृह विभाग को कहा गया कि हम हर तरह की सुविधाएं उपलब्ध कराएंगे, लेकिन हमें किसी भी कीमत पर तत्काल परिणाम चाहिए। बैठक में पुलिस महानिदेशक रामनिवास, मुख्य सचिव सुनिल कुमार, प्रमुख सचिव गृह एनके असवाल, सचिव गृह एएन उपाध्याय, एडीजी मुकेश गुप्ता, सीआरपीएफ के डीजी प्रणय सहाय के अलावा आईटीबीपी, एनआईए के वरिष्ठ अधिकारी मौजूद थे।
केंद्रीय गृह सचिव ने आला अधिकारियों से कहा है कि अब जबकि चुनाव सिर पर है, आने वाले दिनों में राजनैतिक गतिविधियां भी बढेंगी, इसलिए ये बेहद जरूरी है कि तात्कालिक तौर पर राज्य के सुरक्षा तंत्र में व्यापक तब्दीली की जाए।
सीएम ने बुलाई 30 को सर्वदलीय बैठक
कांग्रेस के काफिले पर हुए हमले के बाद के हालात पर चर्चा के लिए मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने सर्वदलीय बैठक बुलाई है। यह बैठक 30 मई को सुबह 11 बजे मंत्रालय में होगी। मुख्यमंत्री ने राज्य सरकार की ओर से विधानसभ्ाा के संभ्ाावित आम चुनाव को ध्यान में रखकर संवेदनशील इलाकों में सभी राजनीतिक पार्टियों को उनके कार्यक्रमों के लिए बेहतर से बेहतर सुरक्षा मुहैया कराने का भरोसा दिलाया है। सर्वदलीय बैठक में सभ्ाी दलों के नेताओं के साथ इस पर भी चर्चा की जाएगी। मुख्यमंत्री ने कहा कि इस घ्ाटना से सबक लेकर हमें राजनीतिक मतभ्ोदों से ऊपर उठकर नक्सल हिंसा के खिलाफ एक साथ मिलकर काम करना होगा।
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तीन संगठनों के विलय से नक्सलियों में बढ़ी क्रूरता
0 एमसीसी में पीडब्ल्यूजी और पार्टी यूनिट को मिलाकर बढ़ाई ताकत
नक्सली विचारधारा से जुड़े तीन संगठनों के विलय ने उनकी ताकत के साथ क्रूरता भी बढ़ा दी है। माओवादी कम्युनिस्ट कमेटी (एमसीसी) में पीपुल्स वार ग्रुप (पीडब्ल्यूजी) और पार्टी यूनिटी का विलय हुआ है। उसके बाद नक्सलियों ने कई बड़ी वारदातें कीं और जवानों व अन्य लोगों को बेरहमी से मारा। विशेषज्ञों की मानें तो आने वाले दिनों में नक्सलियों की और अधिक क्रूरता देखने को मिल सकती है।
जानकारों के अनुसार वर्ष 1969 में अमूल्य सेन और कनई चटर्जी ने जंगलमहल जिला बुर्द्धवान प.बंगाल में दलित और आदिवासियों को संगठित कर दक्षिण देश नामक संगठन बनाया। इसमें दलित और आदिवासियों को घने जंगल में गुरिल्लावार सिखाया जाता था। वर्ष 1975 में यही संगठन एमसीसी के नाम से अस्तित्व में आया। एक साल बाद संगठन का क्षेत्र बढ़ाने का फैसला लिया गया। बंगाल के अलावा बिहार में संगठन का विस्तार हुआ। बंगाल-बिहार स्पेशल एरिया कमेटी बनाई गई। वर्ष 1982 में चटर्जी की मौत हो गई। उसकी जगह शिवजी ने ली। शिवजी और उनके सहायक रामाधर सिंह के बीच मतभेद हो गया। तब रामाधर ने भारत में नक्सलवादी आंदोलन के जनक कानू सान्याल के संगठन की सदस्यता ले ली। कानू ने वर्ष 1967 में दार्जिलिंग की नक्सलबाड़ी में सशस्त्र आंदोलन की अगुवाई की थी। इधर एमसीसी की कमान संजय दुशाध और प्रमोद मिश्रा ने संभाल ली। इन दोनों ने बिहार के मध्य के इलाकों में संगठन का विस्तार किया। क्रांतिकारी किसान कमेटी, जनसुरक्षा संघर्ष मंच, क्रांतिकारी बुद्धजीवी संघ, क्रांतिकारी छात्र लीग का एमसीसी में विलय कर लिया। अलग से आर्म्ड विंग लाल रक्षा दल बनाया। इसके बाद एमसीसी ने नक्सल गतिविधि को और तेज कर दी। वर्ष 2003 एमसीसी पंजाब में सक्रिय हो गया, रिवॉल्यूशनरी कम्युनिस्ट सेंटर ऑफ इंडिया को मिलाकर।
पीडब्ल्यूजी ने संगठन को मजबूत किया
एमसीसी की ताकत तब और बढ़ी, जब वर्ष 2004 में पीपुल्स वार ग्रुप (पीडब्लयूजी) का एमसीसी में विलय हुआ। वर्ष 1980 में कोंडापल्ली सीतारमैय्या ने आंध्रप्रदेश मे पीडब्ल्यूजी का गठन किया। इस संगठन की गतिविधि तेलंगाना रिजन में रही। इस संगठन के टारगेट में पॉलिटिशियन, पुलिस ऑफिसर्स, कारोबारी और बड़े भूस्वामी थे। इस संगठन का सीधा संबंध साउथ एशिया में सक्रिय माओवादी संगठन से था। यह संगठन पहले आंध्रप्रदेश, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश और ओडिसा में सक्रिय था, लेकिन एमसीसी से विलय के बाद छत्तीसगढ़ में भी इसकी सक्रियता शुरू हो गई। इस संगठन के लोगों ने आदिवासी युवक-युवतियों को नक्सल अभियान से जोड़ना शुरू किया। इससे नक्सलियों की संख्या तेजी से बढ़ी।
पार्टी यूनिटी ने कू्ररता बढ़ा दी
एमसीसी के नक्सली पहले से कू्रर थे, लेकिन 21 सितंबर, 2004 को पार्टी यूनिटी का विलय होने से उनकी कू्ररता और बढ़ गई। पार्टी यूनिटी अगस्त, 1998 में अस्तित्व में आई थी। यह संगठन बिहार, केरल, हरियाणा, पंजाब में सक्रिय रहा। वर्ष 2000 में गुरिल्ला आर्मी बनाई। अक्टूबर 2002 में देश के तीन तत्कालीन मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य (प. बंगाल), चंद्रबाबू नायडू (आंध्रप्रदेश) और बाबूलाल मरांडी (झारखंड) को जान से मारने की धमकी देकर यह संगठन चर्चा में आया।
एक्सपर्ट व्यू-
एमसीसी में दूसरे संगठनों के विलय से निश्चित तौर पर नक्सलियों की ताकत बढ़ी है। नक्सली पहले से क्रूर भी हुए हैं। इसका कारण यही है कि अब वे नवयुवक-युवतियों को संगठन से जोड़कर ब्रेनवॉश कर रहे हैं और उन्हें इस तरह से ट्रेनिंग दी जा रही है कि वे क्रूर बनें।
विश्वरंजन
पूर्व डीजीपी, छत्तीसगढ़






















 

माओवादियों के टार्गेट पर महानगर


-ड्रोन को धोखा देने के लिए चुना गया 4.30 का समय 
-समूचे रेड कॉरीडोर में एजेंसियों ने फैलाया फोन इंटरसेप्ट तकनीक का जाल
रायपुर। जीरम घाटी में कांग्रेस के काफिले पर हमले के बाद माओवादियों के टार्गेट में अब शहर हैं। केंद्रीय इंटेलिजेंस एजेंसियों द्वारा टॉप  माओवादी लीडरों की बातचीत को इंटरसेप्ट किए जाने के बाद यह सनसनीखेज खुलासा हुआ है। आईबी द्वारा तैयार की गई हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि जीरम घाटी में हमले के बाद अंतरराष्ट्रीय तौर पर खुद को स्थापित करने के लिए माओवादी महानगरों में साफ्ट टार्गेट चुनकर उन पर हमले कर सकते हैं। ये सारी बातचीत छत्तीसगढ़ और ओडिशा के जंगलों में माओवादियों की सेंट्रल कमेटी के मेम्बरों के बीच हुई है।
ड्रोन के साथ माओवादियों की धोखाधड़ी
हमले को लेकर तमाम सनसनीखेज बातें सामने आ रही हैं। इंटेलिजेंस सूत्रों द्वारा पूरे हमले का वर्चुअल पुनर्निर्माण किया गया है। एजेंसियों ने सनसनीखेज खुलासा किया है कि माओवादियों ने हमले का समय शाम को 4.30 बजे इसलिए चुना, क्योंकि उस वक्त  भारतीय वायु सेना का मानव रहित विमान (ड्रोन) हैदराबाद के बेगमपेट स्थित एयरबेस पर वापस लौट रहा होता है। दरअसल माओवादी ये जानते थे कि हमला अगर सुबह किया गया तो उन्हें आसानी से ड्रोन खोज लेगा, इसलिए उन्होंने शाम का समय चुना। उन्हें यह भी पता था कि ड्रोन के वापस लौटने में कम से कम 2.30 घंटे का समय लगेगा, तब तक वे वारदात को अंजाम देकर आसानी से जंगलों में वापस लौट चुके होंगे। ऐसा ही हुआ। हमले के बाद जब मानव रहित विमान वापस लौटा तब तक 6.30 बज चुके थे। वारदात के बाद एनटीआरओ को हासिल हुए घने जंगलों के थर्मल इमेज से भी किसी मूवमेंट का पता नहीं चला।
माओवादियों द्वारा वेव फ्रीक्वेंसी का इस्तेमाल
इंटेलिजेंस सूत्रों से ये भी पता चला है कि माओवादियों ने दरभा घाटी को हमले के लिए केवल इस वजह से चुना, क्योंकि वह इलाका नो नेटवर्क जोन में आता है, यहां तक कि माओवादी जो वायरलेस सेट इस्तेमाल कर रहे थे वे भी शार्टवेव फ्रीक्वेंसी पर काम कर रहे थे, जिसका दायरा केवल पांच किलोमीटर तक था। यही वजह थी कि उस वक्त हुई किसी भी बातचीत को न तो इंटरसेप्ट किया जा सका, न ही किसी वायरलेस सिग्नल का पता लग पाया। इंटेलिजेंस के एक बड़े अधिकारी ने बताया कि हमने चश्मदीदों से बातचीत में पाया है कि पूरे हमले की कमांड एक महिला के हाथ में थी। इस हमले में पीपुल लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी के कैडरों को खास तौर से ऐसी ट्रेनिंग दी गई थी कि उनका अपना कम नुकसान हो और ज्यादा से ज्यादा लोगों को मारा जा सके।
शहरों से वेब तक माओवादियों के सूत्रों की तलाश
मिली जानकारी के अनुसार केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इस मामले में जल्द से जल्द  सफलता प्राप्त करने के लिए एजेंसियों को एफबीआई समेत दुनियाभर की टॉप इन्वेस्टिगेटिव एजेंसी की तकनीक पर काम करने का आदेश दिया है। पूरे रेड कॉरीडोर में वायरलेस और मोबाइल इंटरसेप्ट तकनीक का जाल बिछा दिया गया है। इस बात की पुष्ट खबर है कि दिल्ली, रायपुर, भुवनेश्वर, रांची और जगदलपुर समेत 11 शहरों में माओवादियों से संबंध रखने वाले संभावितों पर कड़ी निगाह रखी जा रही है। यहां तक कि वेब पर भी माओवादियों की उपस्थिति को लेकर एजेंसियां चौकन्नाी हैं और तमाम आईपी एड्रेस रोज खंगाले जा रहे हैं।


 














Wednesday, May 29, 2013

नक्सली हमले में नफा-नुकसान देखने का वक्त नहीं : राजनाथ

रायपुर : भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने कहा है कि सुकमा में हुए नक्सली हमले को राजनीतिक लाभ हानि के रूप में नहीं देखना चाहिए। नक्सलवाद पूरे देश की समस्या है और इसके लिए सुनियोजित योजना बनाने की जरूरत है। नक्सलियों से निपटने के लिए अंतर्राज्यीय समन्वय योजना बनानी चाहिए ताकि राज्यों की सीमाओं पर घेराबंदी कर इस समस्या से निपटा जा सके। राजनाथ सिंह ने बुधवार को छत्तीसगढ़ प्रवास के दौरान माना विमानतल पर संवाददाताओं से बातचीत की। उन्होंने कहा कि नक्सल समस्या के लिए समग्र कार्रवाई योजना बनानी होगी जिसे सभी राज्यों में एक साथ लागू कर इससे निपटा जा सकता है। सिंह ने मध्यप्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया और केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री चरणदास महंत के उस बयान को भी औचित्यहीन बताया जिसमें मुख्यमंत्री रमन सिंह पर नक्सलियों के साथ संबंध होने का आरोप लगाया गया है।भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने शनिवार को नक्सल हमले में मारे गए नेताओं के परिजनों से मुलाकात की। सबसे पहले उन्होंने फरसापाल जाकर पूर्व नेता प्रतिपक्ष महेंद्र कर्मा के परिवार वालों से मुलाकात की और कर्मा को श्रद्धांजलि अर्पित की।इसके बाद रायपुर पहुंचकर नक्सल हमले में घायल विद्याचरण शुक्ल के ड्राइवर शहीद प्रफुल्ल शुक्ल के परिजनों से भेंटकर उन्हें ढांढस बंधाया। सिंह ने रामकृष्ण अस्पताल पहुंचकर घायलों से भी मुलाकात की। इस दौरान उनके साथ भाजपा के प्रदेश प्रभारी जे. पी. नड्डा, राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री सौदान सिंह, मुख्यमंत्री रमन सिंह, पी. डब्ल्यू. डी. मंत्री बृजमोहन अग्रवाल तथा भाजपा के कई नेता मौजूद रहे।

लाल क्रांति के आगे ठंडा पड़ा सरकार का खून..


लाल आतंक की जो चिंगारी 1940 के दशक में फूटी, लाल आतंक की जिस आग ने चालीस साल पहले पश्चिम बंगाल के एक इलाके को झुलसा दिया, आतंक की उन लपटों से निकलने का रास्ता आज 9 राज्यों को सूझ नहीं रहा है. नक्सल और माओवाद की भट्ठी से निकली हिंसा और बदलाव के लिए खूनी क्रांति का नारा आंध्र प्रदेश के 16 जिलों से आगे बढ़कर पड़ोस के महाराष्ट्र और उड़ीसा में पांव जमा चुका है. सरकार का सरदर्द बन चुकी नक्सली हिंसा का लाल काफिला इससे आगे बढ़ता है छत्तीसगढ़ में. मध्य प्रदेश के कुछ ग्रामीण हिस्सों में भी लाल आतंक का असर है. बालाघाट में ना जाने कितने मासूम आदिवासी मौत के घाट उतार दिए गए. सुरक्षा बलों की बंदूकों को चकमा देकर लाल क्रांति का राग अलापने वालों के लिए झारखंड में रेड कॉरिडोर बनाना ज्यादा आसान रहा. पश्चिम बंगाल में नक्सल का बीज पड़ा था और देखते ही देखते ये खूनी पेड़ 9 राज्यों में खून बहा रहा है. ना पुलिस की गोली का असर, ना हुक्मरानों की बोली का. नक्सलवाद का रास्ता झारखंड और बंगाल से होकर बिहार के 22 जिलों को रास्ते से उतार चुका है. संसदीय लोकतंत्र के विरोध के नाम खून का चस्का नक्सली मुंह को ऐसा लगा कि उत्तर प्रदेश के कुछ इलाके इसकी चपेट में आ गये.
छत्तीसगढ़ के घने जंगलों में लगी नक्सली हिंसा की आग ने दिल्ली और रायपुर के सियासी पारे को बढ़ा दिया है. आलम ये है कि दिल्ली से निकले सारे रास्ते छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर और वहां के नक्सल प्रभावित इलाकों की तरफ ही जा रहे हैं. लेकिन सवाल है कि नक्सलियों के इस खूनी खेल की पृष्ठभूमि क्या है.
सलवा जुडूम ने नक्‍सल की आग को और भड़काया
25 मई को हुए नक्सली और माओवादी हमले ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया. नक्सलियों ने छत्तीसगढ़ कांग्रेस के कई बड़े नेताओं को गोलियों से भून डाला. लेकिन सलवा जुडूम के सूत्रधार रहे महेंद्र कर्मा की बर्बर हत्या और फिर उनकी लाश पर घूम-घूमकर नाचना ये बताने के लिए काफी है कि नक्सल की आग को कैसे सलवा जुडूम ने भड़काया.
छत्तीसगढ़ सरकार की पहल पर विपक्ष के तत्कालीन नेता महेंद्र कर्मा ने 2005 में सलवा जुडूम यानी शांति यात्रा बनायी. सूबे के बस्तर, सुकमा और दंतेवाड़ा जिले के स्थानीय आदिवासियों को सरकार की तरफ से हथियार मिले और बाकायदा सरकारी संरक्षण. एक खबर के मुताबिक उसमें 42 हजार स्पेशल पुलिस अधिकारी तैनात किए गए. लेकिन बंदूक की नली से निकलने वाली ये शांति यात्रा अपने मुकाम तक नहीं पहुंची. खुद सुप्रीम कोर्ट ने 2011 में इसे गैरकानूनी और असंवैधानिक करार दे दिया. लेकिन अपनी अदालत और अपना कानून चलाने वाले नक्सलियों के लिए सिविल सोसायटी का दखल मंजूर नहीं.
सरकार और नक्सलियों की इस लड़ाई में पिसते हैं खुद को कुदरत से जोड़ रखने वाले आदिवासी. बच्चियों की तरह ही उस दिन भी आदिवासी लड़कियां बीजखंड पूजा कर रही थीं, जब सुरक्षा बलों की गोलियों ने 8 बेगुनाह जिंदगियों को मौत में बदल दिया. इन्हें अपने जर-जंगल-जमीन से प्यार है. इसके लिए ये हथियार भी नहीं उठाते, लेकिन हथियार उठाने वालों की गोलियां इनके सीने को बार-बार छलनी करती हैं. नक्सल के नाम पर. उसी नक्सल के पैरों के लाल निशान को टटोलते हुए आजतक जा पहुंचा आंध्र प्रदेश के आदिलाबाद में, जो नक्सलियों का एक बड़ा गढ़ है.
आंध्र प्रदेश के 16 जिले- अनंतपुर, आदिलाबाद, पूर्वी गोदावरी, गुंटूर, करीमनगर, खम्मम, करनूल, मेडक, महबूबनगर, नालगोंडा, प्रकाशम, श्रीककुलम, विशाखापट्टनम, विजयनगरम, वारंगल और निजामाबाद हैं, जहां नक्सलियों की बंदूकें जंगलों में लाल आतंक की धमक सुनाती हैं.
महाराष्ट्र के चार जिले चंदनपुर, गढ़चिरौली, गोंडिया और अहेरी में नक्सलियों का असर देखा जा सकता है.
1984 में यहां सबसे पहले गढ़चिरौली जिले के कमलापुर में एक बड़ा नक्सली अधिवेशन हुआ था. 29 साल में ये आंदोलन विचारों के लाल रंग से ज्यादा बेगुनाहों के लाल खून से लथपथ है. यहां से आतंकवादियों को आंध्रप्रदेश से छत्तीसगढ़ और फिर उड़ीसा तक जाने में मदद मिलती है. आज से नहीं, तीस साल से.
उड़ीसा में तो 19 जिले नक्सली हुक्म के अंतर्गत सांस ले रहे हैं. गजपति, गंजाम, क्योंझर, कोरापुट, मलकानगिरि, मयूरभंज, नवरंगपुर, रायगढ़, संभलपुर, सुंदरगढ़, नयागढ़, कंधमाल, देवगढ़, जयपुर, ढेंकनाल, कालाहांडी, नुआपाड़ा, बरगढ़ और बोलंगीर.
दंडकारण्य की हरी पट्टी कभी आदिवासियों, तो कभी नक्सलियों और सुरक्षा बलों के खून से लहुलूहान होती है. खादी वालों के खून पर मातम मनाने वाले तो बहुत हैं, लेकिन मासूम आदिवासियों का दर्द नक्सली डर के साये में सिसककर रह जाता है.
छत्तीसगढ़ में तो 16 जिले नक्सली रंग में रंगे हैं. बस्तर, बीजापुर, दंतेवाडा, जशपुर, कांकेर, कोरिया, नारायणपुर, राजनांदगांव, सरगुजा, धमतरी, महासमुंद, गरियाबंद बालौद, सुकमा, कोंडागांव और बलरामपुर. यहां पूरे बस्तर की नक्सली कमान रमन्ना उर्फ रोऊला, श्रीनिवास और गणेश उइके के पास है.
बस्तर में तीन दशक से नक्सलवाद की समस्या है. कहा जाता है जहां-जहां विकास नहीं होता है, सड़कें नहीं पहुचती हैं. नक्सल वाद के बारे में लोग बोलने को तैयार नहीं हैं. बदलते दौर में क्रिकेट भी यहां आ गया, लेकिन बच्चे कौड़ियों का परंपरागत खेल भी खेल रहे हैं. ये जाने बगैर कि इनकी जिंदगी कौड़ियों के मोल भी नहीं है. बस्तर का जगरगुंडा और अबुजमाड़ का इलाका नक्सालियो का गढ़ रहा है.
मध्‍य प्रदेशदूर दूर तक जंगल ही जंगल. दंडकारण्य की राजधानी कहलाने वाला ये मध्य प्रदेश का बालाघाट जिला है. एमपी का सबसे ज्यादा नक्सलग्रस्त इलाका. मध्य प्रदेश में बेशक शिवराज सिंह की सरकार है लेकिन हकीकत में छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र- तीन राज्यों की सरहदों से जुड़े बालाघाट में नक्सलियों की समानांतर सरकार चलती है.
नक्सली आदेश की नाफरमानी मंजूर नहीं
सरकारी आदेश की नाफरमानी तो यहां हो सकती है लेकिन नक्सलियों के आदेश को नकारने का मतलब है मौत. नक्सली जब चाहे तब यहां खून की होली खेलते हैं. दिग्विजय सिंह के शासन के दौरान परिवहन मंत्री रहे लिखीराम कावरे को भी यहां नक्सलियों ने मौत के घाट उतार दिया था. हालांकि खतरे के बावजूद आजतक की टीम ने बेखौफ इलाके का जायजा लिया.
नक्सलवाद के बारे में एक आम धारणा है कि ये आदिवासियों को हक दिलाने की लड़ाई है. लेकिन आजतक ने यहां आकर पाया कि नक्सलवाद का स्वरूप बदल चुका है. नक्सलवाद के नाम पर इलाके से गुजरने वाली बसों, जंगल में काम करने वाले मजदूरों और खदान मालिकों से वसूली हो रही है. इलाके में मैगनीज और तांबे का भंडार है. लेकिन, खदान मालिकों से मोटा पैसा लेकर नक्सली आदिवासी हकों से आंख मूंदे हुए हैं. यहां बेरोजगारों की समस्या बहुत है. यहां ताम्बा की मात्रा बहुत है, यहां इंडस्ट्री लग सकती है. लेकिन नक्सली उद्योगपतियों को डरा धमका कर यहां विकास नहीं होने दे रहे हैं. यही वजह है कि एक बड़ा तबका नक्सलियों को आतंकवादी मानने लगा है.जंगल और पहाड़ के बीच 9 राज्यों में विकराल रूप ले चुका और 7 राज्यों में छिटपुट फैले लाल आतंक के मनसूबे बेहद खतरनाक हैं.
आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, झारखंड. घुटनों के बल चलने वाला नक्सलवाद झारखंड में आते-आते मैराथन की तरह दौड़ने लगा. बेलगाम-बेधड़क. ना लोगों की जिंदगी की चिंता, ना प्रशासन की ताकत का खौफ. झारखंड में कई ऐसे इलाके हैं, जहां रात तो छोडिए, दिन में भी पुलिस जाने से कतराती है. पांच लाख की आबादी वाले खूंटी में नक्सलियों ने अपना खूंटा ऐसा गाड़ा कि कोबरा और सीआरपीएफ के 2000 जवान भी नाकाफी पड़ गए. प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर इस सूबे की बदकिस्मती देखिए कि यहां के 24 जिलों में से 21 में नक्सल का लाल घोड़ा दौड़ रहा है. बोकारो, चतरा, धनबाद, पूर्वी सिंहभूम, गढ़वा, गिरिडीह, गुमला, हजारीबाग, कोडरमा, लातेहार, लोहरदग्गा, पलामू, रांची, सिमडेगा, सरायकेला-खरसावां, पश्चिम सिंहभूम, खूंटी, रामगढ़, दुमका, देवघर और पाकुड़ में नक्सलियों का ऐसा असर है, कि प्रशासन बौना पड़ जाता है. राजधानी रांची से महज 60 किलोमीटर दूर खूंटी में लोगों का दर्द उनकी जुबां पे उभर आता है. माओवाद की हिंसा से जंगल में रहने वाले भी डरे हुए हैं. छत्तीसगढ़ में 25 मई को कांग्रेसी नेताओं पर हुए हमले के बाद नक्सलियों की तरफ से नई-पुरानी मांगें फिर से उठने लगीं.
नक्सली चाहते हैं कि ऑपरेशन ग्रीन हंट बंद किया जाए. जंगलों से अर्धसैनिक बलों को सरकार वापस बुला ले. जेलों में बंद उन नक्सलियों को सरकार रिहा करे, जिसे माओवाद के कर्ता-धर्ता मासूम आदिवासी बताते हैं. साथ ही नक्सल विरोधी कानून खत्म हों. वो ये भी चाहते हैं कि प्राकृतिक संसाधनों की जैसी लूट कॉर्पोरेट जगत ने मचा रखी है, वो खत्म हो.1970 के दशक में नक्सलबाड़ी से पैदा हुआ नक्सल आंदोलन जर-जंगल-जमीन की लड़ाई पर आगे बढ़ा. एक गांव से निकली चिंगारी ने धीरे-धीरे कम या ज्यादा 16 राज्यों में माओवाद की आग लगा दी. बंगाल का दर्द आज भी टीस रहा है. पश्चिम बंगाल के चार जिलों बांकुरा, पश्चिम मिदनापुर, पुरुलिया और बीरभूम में नक्सलियों का दबदबा आज भी बना हुआ है. बंगाल से निकलकर दूसरे राज्यों में नक्सलवाद फैला-फूला, तो इसके पीछे कई कारण हैं.
-उन राज्यों में नक्सलियों ने पांव जमाए, जहां आदिवासियों की संख्या ज्यादा है.
-जहां ज्यादातर इलाके जंगल और पहाड़ हैं.
-जो इलाका प्रचूर खनिज पदार्थों से भरा हुआ है.
-जो इलाके राज्यों की राजधानियों और जिला मुख्यालयों से दूर हैं.
-और जो इलाके कई राज्यों की सरहद को जोड़ते हैं.

लेकिन इन सबसे अलग गैर-बराबरी के खिलाफ संघर्ष की उम्मीद ने भी नक्सलवादी हिंसा को बढ़ावा दिया. उस पर से राजनीति का हाथ पीठ पर लगा, तो नक्सलवाद और बढ़ा.
बिहार के 22 जिलों में नक्सलवाद पैर पसार चुका है. ये जिले हैं- अरवल, औरंगाबाद, भोजपुर, पूर्वी चंपारण, गया, जमुई, जहानाबाद, कैमूर, मुंगेर, नालंदा, नवादा, पटना, रोहतास, सीतामढ़ी, पश्चिम चंपारण, मुजफ्फरपुर, शिवहर, वैशाली, बांका, लखीसराय, बेगुसराय और खगड़िया.
लेकिन बदले हालात में जो नक्सलवाद के सताए हुए हैं, वो भी और जो कभी नक्सलवाद के पैरोकार रहे, वो भी मानते हैं कि नक्सली अपने रास्ते से भटक गए. उत्तर प्रदेश के तीन जिलों- चंदौली, मिर्जापुर और सोनभद्र में लाल आतंक का असर है. लेकिन सवाल है कि क्या तिरुपति से पशुपति तक नक्सलवाद की रेड कॉरिडोर को तोड़ा कैसे जाएगा. कब तक लाल आतंक को कायरतापूर्ण कार्रवाई कह कर शोक मनाता रहेगा देश? कब सिर्फ नक्सलवाद से लड़ने का संकल्प लेकर एक बड़े समस्या की अनदेखी करता रहेगा देश? 25 मई को बस्तर जिले में नक्सलियों ने इतना बड़ा नरसंहार कर दिया लेकिन सरकार के पास ऐक्शन प्लान के नाम पर कुछ नहीं.
राजनाथ सिंह जिस कंप्रिहेंसिव प्लान की बात कर रहे हैं वो कार्य योजना क्या हो? क्या वही योजना जिसका इशारा केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश कर रहे हैं. लेकिन इतिहास ने बताया है कि कामेश्वर बैठा का प्रयोग बहुत कारगर नहीं रहा क्योंकि जिस विचारधारा की बुनियाद पर नक्सल आंदोलन खड़ा हुआ वो तीन दशकों में अपने रास्ते से भटक चुका है. वो अफ़सरों और ठेकेदारों से रंगदारी टैक्स वसूलते हैं. इसके बदले वो आदिवासियों के शोषण से आंखें मूंदे रहते हैं. नक्सल और माओवाद के नाम पर बंदूक उठाने वाले संसदीय लोकतंत्र का विरोध करते हैं. लेकिन पिछली बार कामेश्वर बैठा नाम के एक नक्सलवादी संसद में आ गए. जबकि विधानसभाओं और जिला पंचायतों में तो इनका दखल पहले से है. अब सवाल ये है कि संसदीय लोकतंत्र के विरोध और समर्थन के बीच नक्सली हुकूमत का कौन सा रास्ता चाहते हैं. लेकिन समस्या नक्सलियों के स्तर पर है तो दिक्कत सरकारी सोच में भी है. सरकार में बैठे ज्यादा लोगों को पता ही नहीं असली समस्या क्या है? आखिर भोले-भाले आदिवासी हथियार उठाने पर क्यों मजबूर हुए. आखिर 71,000 सीआरपीएफ जवान और स्थानीय पुलिस का भारी दस्ता क्यों नहीं बंदूक के बल पर इस लाल खतरे को खत्म कर पाया है. नै क्या नक्सलवाद ने आतंकवाद का रूप ले लिया है? क्या नक्सलवादी आंदोलन आदिवासियों के हाथों से हाईजैक हो चुका है? आखिर कैसे लगेगा लाल आतंक पर लगाम?
अगर सरकार को वास्तव में नक्सलवाद को खत्म करना है तो सबसे पहले उसे ईमानदारी से मानना पड़ेगा कि समस्या माओवादियों से नहीं बल्कि आदिवासियों से जुड़ी हुई है. ये समस्या विकास के उस मॉडल की है, जिसमें गरीब आदिवासियों के हिस्से बदहाली के सिवा कुछ नहीं आता. ये और बात है कि बजट में उनके नाम से ढेर सारा पैसा भेजा जाता है. यानी विकास और बातचीत ही समस्या का हल हो सकता है.
आदिवासियों को मुख्यधारा में लाने के लिए दशकों से सरकारी योजनाएं चल रही हैं. 11वीं योजना में ही नक्सल प्रभावित सूबों में बुनियादी ढांचे के विकास के लिए पांच सौ करोड़ का बजट पास हुआ है. सड़क, सुरक्षा, पानी, स्कूल जिंदगी की तमाम जरूरतों के लिए दशकों से इन इलाकों में सरकार सैंकड़ों करोड़ रुपये लुटा चुकी है. लेकिन विडंबना देखिये बस्तर की बड़ी आबादी बगैर बिजली और शौचालय के रहती है. अस्पताल जाने के लिए मीलों चलती है और दवाओं के लिए नक्सलियों पर अभी भी निर्भर है. आखिर सारा पैसा कहां जा रहा है? ये बताने वाला कोई नहीं. यही वजह है कि नक्सलवाद से सहानुभूति रखने वाले लोग साफ कहते हैं सुरक्षा लाख मजबूत कर लो समस्या नहीं सुलझेगी. इलाके का विकास करो. नक्सलियों से बातचीत करो.
लेकिन, पिछले साल सुकमा के डीएम के अपहरण के दौरान सरकार और नक्सलियों के बीच बातचीत की मध्यस्थता कर चुके प्रोफेसर हरगोपाल सरकार की ईमानदारी पर उंगली उठाते हैं. हरगोपाल का कहना है कि काम निकलते ही सरकार वादे से मुकर जाती है, ऐसे में बातचीत के लिए कौन सामने आएगा?
साफ है हर बड़ी घटना के बाद सरकार कोशिश करती है लेकिन फिर कदम खींच लेती है. यही वजह है नक्सलवाद का रोग अब नासूर से कैंसर बन गया है.1980 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पहली बार नक्सल समस्या के हल के लिए एक टीम भेजी आंध्र प्रदेश और बिहार में. उस टीम की अगुवाई कर रहे थे उस वक्त योजना आयोग के सदस्य सचिव. वही सदस्य सचिव आज देश के प्रधानमंत्री हैं लेकिन तीन दशक में ये रोग नासूर से कैंसर बन गया और इसके इलाज के नाम पर अगर कुछ है तो वही पुराने वादे और अनगिनत टीम.




Tuesday, May 28, 2013

माओवादियों की मांद में माफिया राज...

छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा की सड़कों पर सन्नाटा पसरना शुरू हो गया है. जंगलों और पहाड़ों के बीच से होकर गुजरने वाली सडकें वीरान होती चली जा रहीं हैं. मगर इस खामोशी को चीरते हुए कुछ वाहन अंधेरे में गाँव की तरफ जा रहे हैं. जंगलों और पहाड़ों के बीच से होकर गुजरने वाली सडकें वीरान होती चली जा रहीं हैं. मगर इस खामोशी को चीरते हुए कुछ वाहन अंधेरे में गाँव की तरफ जा रहे हैं. वो कैसे वाहन हैं? इनमे से कुछ वाहन बड़े ट्रक हैं और इनके आगे-आगे छोटे वाहन में कुछ हथियारबंद लोग सवार हैं. दंतेवाड़ा की दहशत भरी वादियों में वो हथियारबंद लोग माओवादी नहीं हैं. उनके पास यहाँ के वीरानों में घूमने के लिए एक तरह का अघोषित लाइसेंस है. कुछ ही देर में इन वाहनों में सवार लोग एक दूसरे से भीड़ जाते हैं. एक दूसरे पर संगीनें तन जाती हैं. यहाँ एक नए संघर्ष की पृष्ठभूमि तैयार हो रही है. यह लौह अयस्क की तस्करी में शामिल गुटों के बीच वर्चस्व का संघर्ष है.
खनन एनएमडीसी के हाथ
दंतेवाड़ा की धरती लोहा उगलती है क्योंकि यहाँ लौह अयस्क का प्रचुर भण्डार हैं. वैसे यहाँ लौह अयस्क के खनन का ज़िम्मा सरकारी उपक्रम 'नेशनल मिनरल डेवलपमेंट कारपोरशन' (एनएमडीसी) को दिया गया है. एनएमडीसी सीमित इलाके में ही खनन करती है जबकि वहां का पूरा इलाका लौह अयस्क से भरा हुआ है. चूँकि यह इलाका गावों और जंगलों का है, यहाँ एनएमडीसी खनन नहीं कर रही है और यह पूरा खजाना हथियारबंद गुटों के हवाले हो गया है जो रात के अंधेरे में ट्रकों के माध्यम से इसे देश के दूसरे स्थानों पर बेच रहे हैं.
बच गए विधायक
दंतेवाड़ा से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के विधायक भीमा मंडावी नें तस्करी करके ले जा रहे लौह अयस्क के ट्रकों को पकड़ा तो उनपर संगीनें तान दी गई. इसको लेकर राजनीतिक और प्रशासनिक हलके में काफी हलचल मच गयी है क्योंकि मांडवी सत्तारूढ़ दल के विधायक हैं. मांडवी नें बीबीसी से बात करते हुए अपने उपर जानलेवा हमले की आशंका व्यक्त की है. उन्होंने कहा, "जिस पैमाने पर दंतेवाड़ा से लौह अयस्क की तस्करी हो रही है मेरे उपर किसी भी दिन जानलेवा हमला हो सकता है." मांडवी ने यही शिकायत सरकार से भी की है.
बैलाडीला की पहाड़ियों के नीचे बसा है कामेली गांव. कुछ दिनों पहले यहाँ के लोगों नें लौह अयस्क के तस्करों से लोहा लिया. अमूमन गाँव के लोग जल्द ही सो जाते हैं मगर उस दिन किसी काम से शहर गए गाँव के सरपंच सुरेश कुमार तमना को घर लौटने में देर हो गयी. देर रात उन्होंने देखा कि उनके गॉव में ट्रक लगाकर कुछ लोग उसपर खेतों में पड़ा लौह अयस्क को ट्रक पर भर रहे हैं. तमना नें गाँव वालों के साथ मिलकर तस्करों को चुनौती दी और पुलिस को इसकी सूचना दी. दंतेवाड़ा में एकमात्र होटल मधुबन के मालिक भानुप्रताप चौहान नें भी सार्वजनिक रूप से आशंका व्यक्त की है कि उनकी जान को भी लौह अयस्क के तस्करों से खतरा है.
अलग-अलग गुट
वहीं दंतेवाड़ा के रहने वाले भाजपा के प्रमुख नेता और राज्य पर्यटन मंडल के उपाध्यक्ष अजय तिवारी नें आरोप लगाया है कि कुछ स्थानीय अधिकारियों और पुलिस वालों नें तस्करी के अपने-अलग अलग गुट बना लिए हैं.
इस मामले पर नज़र रख रहे दंतेवाड़ा से प्रकाशित अखबार 'बस्तर इम्पैक्ट' के सम्पादक सुरेश महापात्र नें भी आशंका जताई कि अगर समय रहते लौह अयस्क की तस्करी पर रोक नहीं लगाई गयी तो जल्द ही दंतेवाड़ा की भूमि पूर्वी उत्तर प्रदेश और उत्तरी बिहार के शूटरों जैसे संघर्ष का केंद्र बन जायेगी.
अवैध खनन इतना अधिक है कि सभी परेशान हैं
मेरे साथ बैलाडीला के पहाड़ों के तिलहट्टी के इलाके में मौजूद सुरेश महापात्र का कहना था, "यहाँ के इलाके में लोहे की फसल होती है खेतों में. इस इलाके में एनएमडीसी खनन नहीं करता. इसी का फायदा माफिया उठा रहा है. सरकार को चाहिए कि वह खुद इन खेतों से लौह अयस्क खरीदे जिससे यहाँ के ग्रामीणों को भी फायदा होगा और तस्करी भी रुकेगी."
लौह अयस्क की तस्करी में अब कई बड़े गुट शामिल हो गए हैं जो दंतेवाड़ा से माल भेजकर बड़ा मुनाफा कमा रहे हैं. इस खेल में कुछ सरकारी अधिकारियों और पुलिसवालों के शामिल होने की बात भी अब उजागर हो चुकी है.
दंतेवाड़ा के बचेली में ही सातधन पुल के पास खनिज विभाग का नाका हुआ करता था. मगर लौह अयस्क के तस्कर वहां तैनात विभाग के कर्मचारियों को डराया धमकाया करते थे. नौबत यहाँ तक आ पहुंची कि विभाग के कर्मचारियों को नाका छोड़कर भाग जाना पड़ा. अब जिला प्रशासन नें भांसी थाने के सामने नया नाका बनाया है.
माओवादियों से साँठ-गाँठ
यह इलाका माओवादियों का गढ़ माना जाता है जहाँ कोई बिना उनकी मर्ज़ी से आ-जा नहीं सकता. यह वही इलाका है जहाँ माओवादियों नें कई हिंसक वारदातों को अंजाम दिया हैं. इस इलाके में सुरक्षा बल के जवान और अधिकारी असुरक्षित हैं तो ऐसे में आधी रात में इस इलाके से लौह अयस्क की तस्करी कई आशंकाओं को जन्म देती है.
कुछ लोगों का कहना है कि बिना माओवादियों के संरक्षण के इस इलाके में पत्ता भी नहीं हिल सकता. इसलिए बिना उनकी जानकारी के लौह अयस्क का बाहर जाना असंभव लगता है.
सरकारी दस्ते का गठन
दंतेवाड़ा के कलक्टर ओपी चौधरी का कहते हैं, "जिला प्रशासन ने लौह अयस्क के तस्करों पर शिकंजा कसने का काम शुरू कर दिया है. "अनुमंडल अधिकारी के नेतृत्व में प्रशासनिक अधिकारियों के एक दल का गठन किया गया है. इस दल में वन और खनिज विभाग के अधिकारियों को भी शामिल किया गया है."
वह कहते हैं, "यह मामला गंभीर है क्योंकि ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि कई गुट लौह अयस्क की तस्करी में सक्रिय हैं, हमने शिकंजा कसना शुरू कर दिया है. हाल ही में हमने भांसी थाने के सामने एक नाका भी बनाया है और तस्करी को रोकने के लिए एक उड़न दस्ते का गठन भी किया है. जो भी गुट इस धंधे में शामिल हैं, उनपर करवाई शुरू कर दी गयी है.हालांकि माओवादियों ने इस बारे में कोई प्रतिक्रिया नहीं व्यक्त की है लेकिन कई ऐसे उदाहरण मिले हैं जब तस्करों नें माओवादियों का डर दिखाकर गांववालों या खनिज विभाग के लोगों को डराने का काम किया है.
"अनुमंडल अधिकारी के नेतृत्व में प्रशानिक अधिकारियों के एक दल का गठन किया गया है. इस दल में वन और खनिज विभाग के अधिकारियों को भी शामिल किया गया है. "
दंतेवाड़ा के कलक्टर ओ पी चौधरी
"यहाँ इस इलाके में लोहे की फसल होती है खेतों में. इस इलाके में एनएमडीसी खनन नहीं करता. इसी का फायदा माफिया उठा रहा है. सरकार को चाहिए कि वह खुद इन खेतों से लौह अयस्क खरीदे जिससे यहाँ के ग्रामीणों को भी फायदा होगा और तस्करी रुकेगी"
स्थानीय अखबार 'बस्तर इम्पेक्ट' के सम्पादक सुरेश महापात्र
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जिस पैमाने पर दंतेवाड़ा से लौह अयस्क की तस्करी हो रही है मेरे उपर किसी भी दिन जानलेवा हमला हो सकता है"
दंतेवाड़ा से भाजपा के विधायक भीमा मंडावी
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छत्तीसगढ़ में निर्दोषों की हत्या पर खेद: माओवादी
पार्टी (माओवादी) ने कहा है कि 'दमन की नीतियों' को लागू करने में कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी की समान भागीदारी है और इसलिए संगठन ने कांग्रेस के बड़े नेताओं को क्लिक करें निशाने पर लिया है.सोमवार देर शाम बीबीसी को भेजी गई एक विज्ञप्ति और एक रिकॉर्ड किए गए बयान में दंडकारण्य विशेष ज़ोनल कमिटी के प्रवक्ता गुड्सा उसेंडी का कहना है कि राज्य के गृहमंत्री रह चुके छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस कमिटी के अध्यक्ष नंदकुमार पटेल जनता पर ‘दमनचक्र चलाने में आगे रहे थे, उसेंडी का कहना है कि पटेल के समय में ही बस्तर क्षेत्र में पहली बार अर्ध-सैनिक बलों की तैनाती की गई थी. बयान में उसेंडी ने कहा, “ये भी किसी से छिपी हुई बात नहीं कि लम्बे समय तक केन्द्रीय मंत्रिमंडल में रहकर गृह विभाग समेत विभिन्न अहम मंत्रालयों को संभालने वाले वीसी शुक्ल भी जनता के दुश्मन हैं, जिन्होंने साम्राज्यवादियों, दलाल पूंजीपति और ज़मींदारों के वफादार प्रतिनिधि के रूप में शोषणकारी नीतियों को बनाने और लागू करने में सक्रिय भागीदारी की, शनिवार को छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा पर बड़ा नक्सली हमला हुआ था जिसमें प्रदेश अध्यक्ष नंद कुमार और वरिष्ठ नेता क्लिक करें महेंद्र कर्मा समेत 24 लोगों की मौत हो गई थी. हमले की ज़िम्मेदारी लेते हुए संगठन ने कहा है कि आदिवासी नेता कहलाने वाले महेन्द्र कर्मा का ताल्लुक ‘एक सामंती मांझी परिवार’ से रहा. इस हमले की प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कड़े शब्दों में निंदा की थी.माओवादियों का आरोप है कि कर्मा का परिवार ‘भूस्वामी होने के साथ-साथ आदिवासियों का अमानवीय शोषक व उत्पीड़क’ रहा है. उसेंडी नें कहा, “1996 मे बस्तर में छठवीं अनुसूची लागू करने की मांग से एक बड़ा आंदोलन चला था. हालांकि उस आंदोलन का नेतृत्व मुख्य रूप से भाकपा ने किया था, लेकिन उस समय की हमारी पार्टी भाकपा (माले) (पीपल्स वार) ने भी उसमें सक्रिय रूप से भाग लेकर जनता को बड़े पैमाने पर गोलबंद किया था.संगठन का आरोप है कि महेन्द्र कर्मा ने उस आंदोलन का विरोध किया था.माओवादियों के बयान में कहा गया है कि 'छत्तीसगढ़ के मुंख्यमंत्री रमन सिंह और महेन्द्र कर्मा के बीच कितना अच्छा तालमेल रहा, इसे समझने के लिए एक तथ्य काफी है - कि मीडिया में कर्मा को रमन मंत्रिमंडल का सोलहवां मंत्री कहा जाने लगा था.सलवा जुडूम की चर्चा करते हुए उसेंडी का कहना था,"बस्तर में जो तबाही मचाई गई और जो क्रूरता बरती गई, उसकी तुलना में इतिहास में बहुत कम उदाहरण मिलेंगे.माओवादियों ने सलवा जुडूम के सदस्यों पर बलात्करा व दूसरे अत्याचारों का आरोप लगाया है, वे कहते हैं, “कुल एक हजार से ज्यादा लोगों की हत्या कर, 640 गांवों को कब्रगाह में तब्दील कर, हजारों घरों को लूट कर, मुर्गों, बकरों, सुअरों आदि को खाकर और दो लाख से ज्यादा लोगों को विस्थापित कर, 50 हजार से ज्यादा लोगों को बलपूर्वक राहत शिविरों में घसीटकर सलवा जुडूम जनता के लिए अभिशाप बना था. विज्ञप्ति में आरोप लगाया गया है कि सलवा जुडूम के दौरान सैकड़ों महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया.माओवादियों नें दावा किया है कि इस कार्रवाई के जरिए उन्होंने ‘एक हजार से ज्यादा आदिवासियों की ओर से बदला ले लिया है जिनकी सलवा जुडूम के गुण्डों और सरकारी सशस्त्र बलों के हाथों हत्या हुई थी.’ माओवादियों का कहना है कि इस हमले का लक्ष्य मुख्य रूप से महेन्द्र कर्मा तथा ‘कुछ अन्य कांग्रेस नेताओं का खात्मा करना था.’खेद, मगर कांग्रेस के काफिले पर हुए हमले में कई निर्दोष लोगों की भी हत्या हुई जैसे वाहनों के ड्राइवर, खलासी और कांग्रेस के निचले स्तर के नेता.माओवादियों ने इन लोगों की हत्या पर खेद प्रकट किया है.कांग्रेस ने पिछले 12 अप्रैल से परिवर्तन यात्रा की शुरूआत की है और राज्य में इसी साल चुनाव भी होने वाले हैं. नक्सलियों ने कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा को लेकर पहले ही धमकी दी थी. खासकर माओवादियों के खिलाफ सलवा जुड़ूम अभियान का समर्थन करने वाले कांग्रेसी नेता महेंद्र कर्मा को लेकर माओवादिओं का गुस्सा पुराना था. इस हमले की निंदा होने के साथ साथ इस बात पर भी बहस जारी है कि क्या माओवादियों की हिंसा के खिलाफ हो रही कार्रवाई पर्याप्त है.
(सलमान रावी, बीबीसी संवाददाता)

Monday, May 27, 2013