पीएससी 2003 के विवाद पर राज्यपाल ने एंटी करप्शन ब्यूरो को जांच के आदेश दिए थे। एसीबी ने इसकी जांच कर रिपोर्ट भी राज्यपाल व लोक सेवा आयोग को सौंप दी थी। लेकिन इसकी अनुसंशाओं को लागू नहीं किया गया। अगर इसे लागू किया गया होता तो दस सालों से विभिन्न पदों पर काबिज 73 जिम्मेदार अफसर अपात्र घोषित होते। इनमें से 56 अफसरों का डिमोशन होता और 17 की नौकरी ही चली जाती।
एसीबी ने 1500 पन्ने की रिपोर्ट दी थी। एसीबी की यह रिपोर्ट आरटीआई के जरिए हासिल की है। लोक सेवा आयोग (पीएससी) ने 2003 में राज्य प्रशासनिक सेवा के 147 पदों के लिए परीक्षा ली थी। परीक्षा में भारी गड़बडिय़ां सामने आईं थीं। रिपोर्ट के मुताबिक 56 अफसरों के पद बदले जाते और 17 नौकरी से बाहर होते। बताया गया कि हाईकोर्ट में मामला लंबित होने से कार्रवाई नहीं गई। राज्यपाल ने शासन को मामले के जल्द निपटारे को लेकर हाईकोर्ट से आग्रह करने का आदेश दिया था, लेकिन राज्य शासन ने इतने सालों में एक अर्जी तक नहीं दी।
दस्तावेजों में बड़ा फर्जीवाड़ा :
अधिक नंबर पाने के बाद भी चयन से वंचित उम्मीदवार वर्षा डोंगरे ने मानवाधिकार आयोग से शिकायत की थी। पीएससी ने मानवाधिकार आयोग को बताया कि अग्रमान्यता पत्रक में वर्षा ने आबकारी उपनिरीक्षक का पद भरने के बाद काट दिया था, इस वजह से उसका चयन नहीं किया गया। जांच में वर्षा के साथ ही दीपमहीष, संतन जांगड़े, मेघा टेम्भुरकर व चंद्रप्रभा के अग्रमान्यता पत्रक में गड़बड़ी कर लाभ पहुंचाने का आरोप लगा था।
सीएम को भी दी गलत जानकारी
वर्षा डोंगरे ने इस मामले की शिकायत तत्कालीन मुख्यमंत्री से की। मुख्यमंत्री सचिवालय ने पीएससी से जानकारी मांगी तो बताया गया कि सहायक संचालक जनसंपर्क व नायब तहसीलदार के पद अजा वर्ग के चयनित परीक्षार्थियों से वर्षा को ज्यादा नंबर मिले थे और अग्रमान्यता पत्रक के आधार पर ही चयन किया गया है। आयोग ने मुख्यमंत्री को ही गलत जानकारी दे दी, क्योंकि वर्षा ने पत्रक में दोनों पदों को भरा था। इसके बाद भी उसका चयन नहीं किया गया। एसीबी ने रिपोर्ट में कहा है कि आयोग द्वारा सीएम को दी गई जानकारी पूरी तरह गलत है।
ये हो सकते थे नौकरी से बाहर
नायब तहसीलदार विकास माहेश्वरी, सुधांशु सक्सेना, जागेश्वर कौशल, रजनी भगत, विक्रय कर उपनिरीक्षक प्रकाश गुप्ता, आबकारी उपनिरीक्षक ऋचा मिश्रा, अमित कुमार श्रीवास्तव, अजय कुमार पाण्डेय, राकेश कुमार सिंह राठौर, सूर्यकिरण तिवारी, राजेंद्रनाथ तिवारी, रविकांत जायसवाल, ठाकुरराम रात्रे, सुनील कुमार, चंद्रप्रताप सिंह, शीला बारा व संजय कुमार ध्रुव। ये सभी उम्मीदवार अपने पदों पर कार्यरत हैं। इनका चयन अपात्र होने के बाद भी कर लिया गया था।
10 पात्र नहीं बन सके अफसर : रिपोर्ट
एसीबी ने दो बिंदुओं, आपराधिक कृत्य और स्केलिंग में गड़बड़ी पर जांच की। कॉपियों और परीक्षार्थियों द्वारा जमा किए गए दस्तावेजों से पता चला कि बड़े पैमाने पर काट-छांट व गड़बडिय़ां की गई हैं। इसमें 10 उम्मीदवारों को पात्र होने के बाद कई तरीकों से चयन से वंचित कर उनकी जगह अपात्रों को अफसर बना दिया गया। एसीबी ने इन सभी उम्मीदवारों का जिक्र उन्हें मिले नंबरों के साथ किया है।
एसीबी ने 1500 पन्ने की रिपोर्ट दी थी। एसीबी की यह रिपोर्ट आरटीआई के जरिए हासिल की है। लोक सेवा आयोग (पीएससी) ने 2003 में राज्य प्रशासनिक सेवा के 147 पदों के लिए परीक्षा ली थी। परीक्षा में भारी गड़बडिय़ां सामने आईं थीं। रिपोर्ट के मुताबिक 56 अफसरों के पद बदले जाते और 17 नौकरी से बाहर होते। बताया गया कि हाईकोर्ट में मामला लंबित होने से कार्रवाई नहीं गई। राज्यपाल ने शासन को मामले के जल्द निपटारे को लेकर हाईकोर्ट से आग्रह करने का आदेश दिया था, लेकिन राज्य शासन ने इतने सालों में एक अर्जी तक नहीं दी।
दस्तावेजों में बड़ा फर्जीवाड़ा :
अधिक नंबर पाने के बाद भी चयन से वंचित उम्मीदवार वर्षा डोंगरे ने मानवाधिकार आयोग से शिकायत की थी। पीएससी ने मानवाधिकार आयोग को बताया कि अग्रमान्यता पत्रक में वर्षा ने आबकारी उपनिरीक्षक का पद भरने के बाद काट दिया था, इस वजह से उसका चयन नहीं किया गया। जांच में वर्षा के साथ ही दीपमहीष, संतन जांगड़े, मेघा टेम्भुरकर व चंद्रप्रभा के अग्रमान्यता पत्रक में गड़बड़ी कर लाभ पहुंचाने का आरोप लगा था।
सीएम को भी दी गलत जानकारी
वर्षा डोंगरे ने इस मामले की शिकायत तत्कालीन मुख्यमंत्री से की। मुख्यमंत्री सचिवालय ने पीएससी से जानकारी मांगी तो बताया गया कि सहायक संचालक जनसंपर्क व नायब तहसीलदार के पद अजा वर्ग के चयनित परीक्षार्थियों से वर्षा को ज्यादा नंबर मिले थे और अग्रमान्यता पत्रक के आधार पर ही चयन किया गया है। आयोग ने मुख्यमंत्री को ही गलत जानकारी दे दी, क्योंकि वर्षा ने पत्रक में दोनों पदों को भरा था। इसके बाद भी उसका चयन नहीं किया गया। एसीबी ने रिपोर्ट में कहा है कि आयोग द्वारा सीएम को दी गई जानकारी पूरी तरह गलत है।
ये हो सकते थे नौकरी से बाहर
नायब तहसीलदार विकास माहेश्वरी, सुधांशु सक्सेना, जागेश्वर कौशल, रजनी भगत, विक्रय कर उपनिरीक्षक प्रकाश गुप्ता, आबकारी उपनिरीक्षक ऋचा मिश्रा, अमित कुमार श्रीवास्तव, अजय कुमार पाण्डेय, राकेश कुमार सिंह राठौर, सूर्यकिरण तिवारी, राजेंद्रनाथ तिवारी, रविकांत जायसवाल, ठाकुरराम रात्रे, सुनील कुमार, चंद्रप्रताप सिंह, शीला बारा व संजय कुमार ध्रुव। ये सभी उम्मीदवार अपने पदों पर कार्यरत हैं। इनका चयन अपात्र होने के बाद भी कर लिया गया था।
10 पात्र नहीं बन सके अफसर : रिपोर्ट
एसीबी ने दो बिंदुओं, आपराधिक कृत्य और स्केलिंग में गड़बड़ी पर जांच की। कॉपियों और परीक्षार्थियों द्वारा जमा किए गए दस्तावेजों से पता चला कि बड़े पैमाने पर काट-छांट व गड़बडिय़ां की गई हैं। इसमें 10 उम्मीदवारों को पात्र होने के बाद कई तरीकों से चयन से वंचित कर उनकी जगह अपात्रों को अफसर बना दिया गया। एसीबी ने इन सभी उम्मीदवारों का जिक्र उन्हें मिले नंबरों के साथ किया है।
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