Monday, December 27, 2010


kumar satish

kumar satish

Sunday, December 26, 2010

Tuesday, October 19, 2010


Friday, October 15, 2010

खलनायक भी नायक भी



राजनीति के मैदान में वो खलनायक भी है और नायक भी, उसके जितने दोस्त हैं उससे ज्यादा दुश्मन। अंदर तक घुसती उसकी आंखों से ढेरों को डर लगता है। वो ढेरों की आंखों में खटकता है। फिर भी वो ढेरों आंखों में बसता है। जितने दिल उससे नफरत करते हैं उससे ज्यादा के दिल में वो बसता है। जितने उसकी शक्ल से चिढ़ते हैं -उससे ज्यादा एक झलक को तरसते हैं। जितने लोग हिटलर कहते हैं उससे ज्यादा मसीहा मानते हैं। जितने चेहरे राज्य से पलायन करना चाहते हैं उससे ज्यादा बसने को लालायित रहते हैं। उसके नाम पर कट्टरवादी हिंदु चेहरे का आवरण है लेकिन उसने अपने राज्य पर तरक्की का आवरण ओढ़ा दिया है। विरोधी तानाशाह बोलते हैं, मानते हैं, ठहराते हैं और जलते हैं पर दूसरी ओर उसके कुशल प्रशासन पर ताली भी बजाते हैं, सम्मानित भी करते हैं और उसकी मिसाल भी देते हैं। शायद उस जैसा बनना भी चाहते हैं। उस पर जब भी बोल के वार होते हैं तो पलटवार की दहाड़ से सबकी बोलती बंद हो जाती है। उसे हटाने, दौड़ाने और मिटाने की अंदर-बाहर से जितनी कोशिशें होती गर्इं उतना ही उसका खूंटा मजबूत होता गया और वो विरोधियों के खूंटे उखाड़ता गया। उसे जिसने भी राज करने का पहाड़ा पढ़ाने की कोशिश की वो खुद उसकी क्लास में पाठ पढ़ते नजर आए। या राजनीति से विदा हो गए। उसे दल में जिस-जिसने भी आंख दिखाने की कोशिश की वे सब पैदल होते गए। राजनीति की आंख से ओझल होते गए। पार्टी में जो धड़ा इस नेता को किनारे लगाने की कोशिश में जुटा वो खुद किनारे बहता चला गया और वो खुद आज बीच मझधार में पार्टी की नैया का खिवैय्या है। उसे मुख्यमंत्री के लायक ना मानने वाले बोल अब असली प्रधानमंत्री का ढोल पीटने लगे हैं। उसकी हां के बिना उस राज्य में पत्ता भी नहीं हिलता। उसकी हां के बिना न तो किसी को राजधानी का टिकट मिलता न दिल्ली का। उसकी चाह के बिना जीत की राह नहीं खुलती। उसके साथ के बिना ढेरों नेताओं की नैया वैतरणी पार नहीं करती। उसकी चाल तेज है। उसका मिजाज गरम है। उसकी जुबान कड़वी है। उसे ना कहना आता है पर ना सुनना पसंद नहीं। उसकी इच्छा ही हुक्म और हुक्म की तुरंत तामील। उसे कैद रखने वाली कोई जेल भी नहीं बनी, पर जन-जन उसके पीछे है, वो जननेता है। यही उसकी ताकत है। उसे जलजले से खंडहर गुजरात, कलह से जर्जर संगठन और जमीन चाटती अर्थव्यवस्था विरासत में मिली थी लेकिन बेमिसाल लीडरशिप, दूरगामी सोच,मजबूत इच्छा शक्ति, शासन-प्रशासन पर मजबूत पकड़ से आज ये सूबा देश में सबसे आगे है। टाटा-बिरला-अंबानी जैसा हर उद्योगपति वहां या तो है या धंधा करना चाहता है। राग अलापने वाले चाहे जितना भी दंगे का रोना रोते रहें पर फिलहाल इस शख्सियत का राजनीति में मोल है। काम अनमोल है।
नरेंद्र दामोदर दास मोदी


0-17 सितंबर 1950 को गुजरात के मेहसाना जिले के वाडनगर में एक मध्यमवर्गीय परिवार में जन्म। यहीं पर स्कूली शिक्षा। गुजरात विवि से राजनीति शास्त्र में मास्टर डिग्री। एबीवीपी में शामिल। नव निर्माण आंदोलन का हिस्सा। बतौर परिषद प्रतिनिधि बीजेपी में। संघ के स्वयंसेवक बने। आपातकाल में छिपे रहे। 87 में बीजेपी में शामिल। संघ और बीजेपी में समन्वय का काम। मुख्य रणनीतिकार की छवि के बाद 88 में गुजरात इकाई के महासचिव। 88-95 के बीच पार्टी के दो बड़ी योजनाओं का सफल क्रियान्वयन। एल के आडवाणी की सोमनाथ से अयोध्या रथ यात्रा और कन्याकुमारी से कश्मीर तक का मार्च। फलस्वरूप राष्ट्रीय सचिव नियुक्त। पांच राज्यों का जिम्मा। 95 में पार्टी गुजरात में दो तिहाई बुहमत से सत्ता में। तब से बीजेपी का राज। 98 में महासचिव मनोनीत। आडवाणी के चहेते। अक्टूबर 2001 में गुजरात के मुख्यमंत्री पद हासिल। जलजले से तबाही, खस्ता हाल आर्थिक स्थिति और जर-जर संगठन के बीच लीडरशिप की परीक्षा। पूरी तरह सफल। 10 फीसदी की विकास दर हासिल। पिछले साल यह 11।5 पर सबसे ज्यादा। जनहित की तमाम योजनाएं लागू। फरवरी 2002 में गोधरा कांड के बाद राज्यव्यापी दंगा। सरकार पर कत्लेआम कराने का आरोप। सरकारी नजरिए से 1044 लोगों की हत्या। गुजरात के दामन पर काला दाग। देश-विदेश में अटल सरकार पर वार। लोजपा ने साथ छोड़ा। द्रमुक और टीडीपी की धमकी। बीजेपी ने मोदी से इस्तीफा मांगा। सदन विखंडित करने की सिफारिश। फिर से चुनाव। पार्टी 182 में से 127 सीटों पर जीती। फिर सीएम बने। दो बार वीसा देने से अमरीका का इंकार। 2007 में फिर चुनाव। फिर विरोधियों के प्रहार। सोनिया ने मौत का सौदागर कहा। बीजेपी को फिर बहुमत। लगातार तीसरी बार मोदी सीएम। सबसे ज्यादा दिन राज करने का रिकार्डÞ। मुंबई कांड के बाद फिर निशाने पर। महिला मंत्री दंगे में लिप्त। जेल में। लगातार सबसे बेहतर गर्वनेंस वाला राज्य। सर्वोत्तम सीएम का अवार्ड। ब्रिटिश सांसदों की नजर में गुजरात दुनिया को लीड करेगा। उद्योगपतियों के लिए सूबा स्वर्ग बना। टाटा की नैनो को महज दो दिन में मंजूरी समेत जमीन। एक रिकार्ड। अब सबसे धनवान सूबा।

ऐसी आजादी के क्या मायने?

हिंदुस्तान की आजादी से पहले विंस्टन चर्चिल ने कहा था- आजादी मिलने पर हिंदुस्तान के नेता निकम्मे, घूसखोर और लुटेरे साबित होंगे। जुबान के मीठे और दिल के काले होंगे। जनता को लड़ाएंगे तथा एक दिन ये देश भंवर में फंसकर रह जाएगा। हवा को छोड़ हर चीज पर टैक्स होगा। उस अंग्रेज ने कितनी सही बात कही थी इसके लिए किसी प्रमाण की जरूरत नहीं है। अफसोस सिर्फ इसी बात का है कि जो देश 200 से साल से ज्यादा गुलाम रहा हो, करोड़ों लोगों ने आजादी के लिए कुर्बानी दी हो,उस देश को करप्ट नेताओं ने 62 साल में ही सबसे करप्ट देशों में से एक बना डाला। आए दिन नेताओं और उनके रिश्तेदारों के करप्शन और घूसखोरी के सच्चे किस्सों ने राजनीति और लोकतंत्र के मायने ही बदल दिए हैं। ताजा मामला बूटा सिंह और उनके खानदान का है। इसे दुखद ही कहा जाएगा कि एक आम इंसान केवल शक की बिना पर जेल काटने को मजबूर हो जाता है लेकिन राजनेता और उनके नातेदार रंगे हाथ पकड़े जाने पर भी राजनीति तथा पावर का इस्तेमाल कर छूट जाते हैं। कौन नहीं जानता कि 40 साल से बूटा सिंह के दामन पर क्या-क्या दाग लगे पर राजनीति की माया-ऐसे चेहरे हमेशा सत्ता की आंच पर चाश्नी पकाते रहते हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि आजादी के बाद देश ने कई क्षेत्रों में बेथाह तरक्की की है लेकिन इस कड़वे सच से भी कौन इंकार कर सकता है कि देश की आजादी के बाद नेता मालामाल होते चले और जनता कंगाल। 71 में गरीबी हटाओ का नारा लगा था पर किसकी गरीबी हटी? जनता की या घूसखोर नेताओं और अफसरों की? सबके सामने है। राजनीति जन सेवा की बजाय धंधा बनकर रह गई है। हर बार राज्यों से लेकर संसद तक ना जाने कितने दागी, घूसखोर और हत्यारे अपनी डुगडुगी पीटते नजर आते हैं। जीतने को हर हथकंडा अपनाते हैं। दो हाथों से पैसा लुटाते हैं और फिर हजार हाथों से कमाते हैं। करप्शन एक ऐसा चक्रव्यूह बन गया है जहां आम आदमी भी चकरघिन्नी की तरह चक्कर खा रहा है और ये देश भी, लाख टके का सवाल यही है कि हर बार दागी जनसेवकों की संख्या बढ़ती ही क्यों जा रही है? अगर सब कुछ ठीक-ठाक है तो फिर इस देश में हर साल हजारों लोग भूख से क्यों मरते आ रहे हैं? क्या यह लोकतंत्र के लिए शर्मनाक नहीं है? इन गरीबों और किसानों के लिए फिर लोकतंत्र के क्या मायने? ऐसी आजादी के क्या मायने? अगर सब कुछ ठीक है तो फिर इस बात का जवाब कौन देगा कि 179 देशों में से 84 हमसे ज्यादा ईमानदार क्यों हैं? सिंगापुर पहले नंबर पर क्यों है और फिनलैंड, बोस्तवाना जैसे देश हमसे ईमानदार क्यों हैं? आखिर क्यों इस देश में ज्यादातर काम बिना घूस के नहीं होते? क्यों किसी को दाम बिना घूस के नहीं मिलते? क्यों पब्लिक लूट का यह गोरखधंधा 62 साल से बिना रोक-टोक के जारी है? क्यों हर साल बस 11 सरकारी महकमें 21 हजार करोड़ से ज्यादा की रिश्वतखोरी डकार जाते हैं? क्यों दुनिया के सब देशों से ज्यादा नेताओं-अफसरों और दलालों की कमाई का 70 लाख करोड़ से ज्यादा काला धन स्विस बैंक में जमा है? पता नहीं- कौन-कौन,कहां-कहां, किस-किस तरह हर पल घूस, घोटालों का ताना-बाना बुनता रहता है? आखिर क्यों? कब तक? यह रोग आज का नहीं है। 1937 में ही महात्मा गांधी ने करप्शन के खिलाफ बिगुल बजाया था। उनका मानना था कि यह दीमक की तरह देश को चाट जाता है। सामाजिक क्रांति पर जोर दिया था। लेकिन नेताओं ने आजादी मिलते ही इसे बिसरा दिया। 1948 में जीप घोटाला। लंदन में उच्चायुक्त वीके कृष्णन मेनन इसमें फंसे। 1955 में फाइल बंद। मेनन नेहरू मंत्रिमंडल में आ गए और सेना प्रमुख थिम्मैया नप गए। हमने खामियाजा 1962 में चीन के साथ जंग में झेला। 51 में एडीगोरवाला ने रिपोर्ट सौंपी-नेहरू कैबिनेट के कई मंत्री और ज्यादातर अफसर करप्ट हैं। रिपोर्ट रद्दी में गई। 51 में मुदगल केस, 57-58 में मुंदड़ा डील, 63 में मालवीय-सिराजुद्दीन स्कैंडल, 63 में ही प्रताप सिंह कैरो केस इतने उछले फिर भी किसी मंत्री या मुख्यमंत्री का सरकारी स्तर पर कुछ नहीं बिगड़ा और ना ही किसी प्रधानमंत्री ने इस्तीफा दिया। संथानाम कमेटी ने करप्शन पर ६४ ्में रिपोर्ट सौंपी। उसमें साफ-साफ लिखा था कि 16 साल से देश के कुछ मंत्री खुलेआम जनता का पैसा लूट रहे हैं। घूस खा रहे हैं। कुछ नहीं हुआ। प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के राज में जिस तरह ये रोग फैला, वह इंदिरा राज में और फलता-फूलता गया। वे पीएम भी थीं और पार्टी अध्यक्ष भी,नागरवाला को 60 लाख देने के वास्ते स्टेट बैंक में टेलीफोन करने का केस हो या फिर फेयरफैक्स, एचबीजे पाइपलाइन और एचडीडब्लू सबमेरिन डील का मामला हो। राजीव गांधी के समय में बोफोर्स केस को कौन भूल सकता है? नरसिम्हा राव के समय में 90 में 2500 करोड़ की एयरबस खरीद का केस हो या 92 में हर्षद मेहता का शेयर घोटाला। इसके अलावा गोल्ड स्टार स्टील विवाद,सरकार बचाने को झारखंड मुक्ति मोरचा को हवाला से 65 करोड़ देने का केस हो या फिर 96 का यूरिया घोटाला , राजनेताओं-अफसरों और दलालों की तिकड़ी देश को चूना लगाती रही। 95 में एन एन वोहरा की रिपोर्ट आयी- देश में अपराधी गेंग, करप्ट नेताओं और अफसरों, ड्रग माफियाओं, हथियार सौदागरों की मिली-जुली समानातंर सरकार चल रही है। इनके इंटरनेशनल लिंक हैं। पर रिपोर्ट फिर रद्दी में। अगर कुछ ना बिगड़ने का डर हो तो फिर कोई क्यों ना बहती गंगा में हाथ धोए। ना डर था और ना ही शर्म- नतीजा घूसखोर नेताओं की बाढ़ आ गई। चाहे चारा घोटाला हो या फिर तहलका कांड या तमाम स्टिंग आपरेशन में नंगे नजर आने वाले नेता। घूस की धारा और गहरी तथा चौड़ी होती गई। विधानपरिषद हो विधानसभा या फिर संसद हर चुनाव में किस तरह पैसा बहाया जाता है, एक-एक वोट खरीदा जाता है उससे ही ये एहसास लगाया जा सकता है कि चुने जाने पर ये नेता कैसे कमाते होंगे? वीपी सिंह और चंद्रशेखर सरकार के पतन की कहानी और कारण सबको पता हैं। किस तरह नरसिम्हा राव ने 94 में तेलुगू देशम को तोड़कर, शिबु सोरेन,अजित सिंह, शंकर सिंह बाघेला को जोड़कर अपनी सरकार बचाई। कल्याण सिंह ने भी यूपी में यही सीन दोहराया। हरियाणा का किस्सा कौन भूल सकता है? पूरी पार्टी ही बदल गई। इसी बार संसद का माला ले लीजिए-खुलेआम नोट लहराए गए। किसी का कुछ नहीं बिगड़ा। हाल तक झारखंड के सीएम और उनके तीन मंत्री काली कमाई की जलालत झेल रहे हैं। 2008 में वाशिंगटन पोस्ट ने खबर छापी थी कि हिंदुस्तान के 540 सांसदों में से एक चौथाई से ज्यादा दागी हैं। यूपी की मुख्यमंत्री हों या किसी भी राज्य के नए-पुराने नेता ज्यादातर के दामन पर करप्शन के छींटे हैं। हकीकत यह भी है कि देश की अदालतें नेताओं के मामलों को निपटाने में ही लगी रहती हैं। पहली बात तो कोई मामला जल्दी निपटता नहीं। अगर एक खत्म होता है तो एक दर्जन सामने आ जाते हैं। नेताओं-अफसरों-दलालों और घूसखोर सरकारी कर्मचारियों के किस्सों की लिस्ट इतनी लंबी है कि गुलामी का इतिहास इसके सामने छोटा पड़ जाएगा। सवाल यही पैदा होता है कि आखिर कोई नैतिकता इनमें है भी या नहीं? हैरत इस बात की है कि पाकिस्तान और बंगलादेश जैसे पिद्दी से देश करप्शन के खिलाफ हमसे बेहतर कर रहे हैं। हमारे यहां हर सरकारी महकमे को यह लाइलाज रोग अपनी जद में ले चुका है। कहावत यही पड़ गई है कि जो नहीं ले पाया वही ईमानदार बाकी सब...। 2005 की सीएमएस रिपोर्ट के मुताबिक 11सरकारी महकमों में 21 हजार करोड़ से ज्यादा का एक साल में लेन-देन हुआ। 2007 की रिपोर्ट के मुताबिक देश का कोई ऐसा महकमा नहीं जहां घूसखोरी ना पनप रही हो। चाहे वो बैंक हों या सेना। वाजिब काम भी घूस से। नेताओं, अफसरों से जनता बचती है तो बाबूओं के चंगुल से नहीं निकल पाती। एक जमाने में बिहार में गरीबों का 80 फीसदी राशन चुरा लिया जाता था। पशुओं के चारे तक का धन भी नेता डकार गए। इसी तरह देश के हर राज्य में गांव से शहर तक हर दफ्तर में माफिया राज है। सड़क से शिक्षा तक, पढ़ाई से नौकरी तक, रोटी से कपड़े तक, मकान से दुकान तक हर जगह करप्शन। देश की आधी से ज्यादा आबादी घूस देने का स्वाद चख चुकी है। यह रिपोर्ट का कड़वा सार है। धंधा करने वाले पीछे नहीं हैं। घूस दो-काम कराओ और दौलत कमाओ। इसी तर्ज से वे मिनटों में काम कराते हैं। सही काम के लिए बरसों चक्कर काटते रहो-कोई फायदा नहीं। यही कारण है कि इस देश में उद्योगपतियों की दौलत बढ़ती जा रही है। हैरत इस बात की •भी है कि हम किसी लड़की को पब में जाते,ड्रिंक लेते, डांस करते बर्दाश्त नहीं कर सकते,किसी लड़की के कम कपड़े बर्दाश्त नहीं करते, ट्रेफिक सिग्नल पर लाल बत्ती को नहीं झेल पाते, किसी भी लाइन को नहीं झेल पाते,अपने वेतन और दूसरी सुविधाओं पर समझौता नहीं करते,तमाम चीजों पर संयम नहीं दर्शाते लेकिन जब देश की बारी आती है तो चुप्पी साध जाते हैं। आखिर उस समय हमारा जोश कहां चला जाता है-जब चुनावों में राजनीतिक दल हत्यारों, बलात्कारियों और घूसखोरों को टिकट देते हैं, जब राजनीतिक दल वोट के लिए धार्मिक उन्माद भड़काते हैं, जब घूसखोर और घपलेबाज राजनेताओं के केस अदालतों में बरसों लटके रहते हैं, जब गद्दी के लालची चुनाव के बाद बैमेल गठजोड़ कर सारी जनता को ठगते हैं, जब राजनीतिक दल धन और गन के सहारे जन को वोट देने को विवश करते हैं, जब आवाज उठाने वालों की बोलती बंद कर दी जाती है, जब नेता और उनके कारिंदे इज्जत से खेलते हैं, जब अफसर खुले आम जनता के धन को लूटते हैं, जब सरेआम चौराहों पर बहू-बेटियों को छेड़ा जाता है, जब बिना घूस के ना दाखिला मिलता,ना रोजगार और ना ही कोई व्यापार हो पाता। आखिर ऐसे तमाम अनगिनत मौकों पर जब जन आवाज उठनी चाहिए तब हम कन्नी क्यों काट लेते हैं? हम खामोश क्यों रहते हैं? हम इंडिपेंडेंट हैं पर ऐसी व्यवस्था पर डिपेंडेंट क्यों होना चाहते हैं? आखिर कब चेतेंगे हम? ऐसे में क्या हम करप्ट नहीं हुए? सरकार को चेतना चाहिए पर जनचेतना के बिना कुछ नहीं होने वाला। जब तक इस आवाज का साज नहीं बजेगा तब तक यूं ही करप्ट लोग लोकतंत्र का बेसुरा साज बजाते रहेंगे। इस देश को विकास की नहीं विनाश की राह पर ले जाते रहेंगे। हम फिर वहीं होंगे जहां आजादी के लिए करोड़ों लोगों को कुर्बानी देनी पड़ी थी। सबसे बड़ा सवाल यह भी है कि आखिर क्यों सारे दल, नेता इस पर मुंह नहीं खोलते तथा इस चुप्पी को जनता नहीं समझती? आखिर क्यों? इस क्यों का जवाब ढूंढना ही होाग। सच्ची आजादी तब मिलेगी जब हर हाथ को काम, हर पेट को रोटी और हर सिर पर छत होगी। दिल्ली और देश की राजधानियों से चलने वाला विकास का एक रुपया जनता तथा विकास पर खर्च होगा। किसी काम के वास्ते घूस नहीं देनी होगी। वाजिब रास्ते से वाजिब काम। देश हमारा है-पैसा हमारा है-उस पर डाका डालने वालों को सबक सिखाने का वक्त आ गया है।
-देशपाल सिंह पंवार

जान के नाम पर घमासान...

जिस जल,जंगल और जमीन पर हक पाने को कुछ सिरफिरों ने दशकों पहले आंदोलन का रास्ता अपनाया था,गरीबों को उकसाया था,सरकारी व्यवस्था को निशाना बनाया था,हथियारों से नया जमाना लाने का इरादा जताया था,वह आंदोलन और उसे चलाने वाले नक्सली संगठन अब पूरी तरह उसी जल, जंगल और जमीन को मटियामेट करते जा रहे हैं। हैरत इस बात की है कि फिर भी जनता इनके गलत इरादों को नहीं •भांप पा रही है। उसे समझा और सिखा दिया गया है कि अब जान के लिए झगड़ा है। जिंदा रहने का सवाल है। हर रोज बारूदी सुरंगों से जमीन का सीना फटता जा रहा है। खून से उसी जमीन का दामन रंगता जा रहा है। इस पागलपन से जल भी लाल हो गया है और जंगल भी धमाकों से उजड़ते जा रहे हैं। इतना ही नहीं इन जंगलों में बसेरा करने वाले पक्षी कब के डर कर जा चुके हैं और जानवर भी मौत के डर से नया ठिकाना तलाश रहे हैं। हैरत की बात यही है कि रोजाना के धमाकों से अपना ही सब कुछ लूटते जनता देख रही है, फिर भी खामोश है। छत्तीसगढ़ हो या दूसरे राज्यों के नक्सल प्रभा वित क्षेत्र। सब जगह जमीन में नक्सलियों ने बारूद बिछा दिया है। पता नहीं,कब, कहां किसका पैर पड़े और यमराज की गाज आ गिरे। आए दिन तमाम मां के लाल छिन रहे हैं। औरतें विधवा हो रही हैं। जवान शहीद हो रहे हैं। दंतेवाड़ा की सीमा के पास तोंगपाल थाने के कोकावाड़ा में शनिवार की शाम यही कायराना हरकत फिर नक्सलियों ने की। सीआरपीएफ के जवानों से अटे ट्रक को बारूदी विस्फोट से उड़ा दिया। एक दर्जन जवान शहीद हो गए। इतने ही घायल अस्पताल में मुश्किल से सांस ले रहे हैं। आखिर ये कैसा खूनी खेल है? किसके लिए वे खून बहा रहे हैं? जहां मिट्टी की सौंधी गंध बारूद की बदबू में बदल चुकी हो, जहां की हवा में धमाकों का जहर घुल चुका हो, वहां वो कौन सा हवामहल खड़ा करना चाहते हैं? जब कुछ बचेगा ही नहीं तो फिर क्या पाने के वास्ते ये पागलपन की जंग लड़ी जा रही है। ऐसी कायराना हरकतों की देश के हर शख्स को तीव्र निंदा करनी चाहिए। इन इलाकों में रहने वाली जनता को भी अब ऐसे सिरफिरों को सबक सीखाने के लिए मोरचा ले लेना चाहिए। सरकार को भी चाहिए कि वो अब हथियार डालने का इन नक्सली संगठनों को आखिरी मौका दे और तय सीमा निकलने के बाद इनके खात्मे के वास्ते निर्णायक जंग लड़े। बातों से शायद ही इनकी समझ में समाज बड़ा है, राज्य बड़ा है और सबसे ज्यादा देश बड़ा है कि बात समझ में आएगी। सीमा के अंदर गदर कर रही इन ताकतों को एक बार नेस्तानाबूद करना ही होगा। तरक्की के रास्ते में ये सबसे बड़ा रोड़ा हैं। जमीन बरबाद हो रही है। जल गंदा हो रहा है। जंगल जल रहे हैं। लोग मर रहे हैं। हवा प्रदूषित हो रही है। विकास चौपट हो रहा है। अब नक्सली संगठनों को हमेशा के लिए खत्म करने का वक्त आ गया है। ज्यादा देरी से यह देश दंतेवाड़ा जैसी और ना जाने कितनी बारूदी सुरंगें फटते हुए देखेगा। जवानों को शहीद होते देखेगा। अब देखने का नहीं करने का वक्त आ गया है।

Thursday, October 14, 2010

छत्तीसगढ़ में सरकारी कर्मचारियों का अपहरण

छत्तीसगढ़ के बीजापुर ज़िले में संदिग्ध माओवादी छापामारों के ज़रिए पांच सरकारी कर्मचारियों के अपहरण की ख़बर है. हालाकिं हमेशा कि तरह पुलिस के आला अधिकारी इस ख़बर कि ना पुष्टि ही कर रहें हैं और ना खंडन. मगर बीजापुर में मौजूद स्थानीय पत्रकारों का कहना है कि यह सभी कर्मचारी अपने परिवारों के साथ भोपालपटनम से बीजापुर आ रहे थे.इसी बीच जिस यात्री बस में सवार होकर यह कर्मचारी जा रहे थे, उसे हथियारबंद माओवादी छापामारों ने रुकवाया और एक एक कर इन सरकारी कर्मचारियों को वाहन से उतर लिया. अग़वा किए गए कर्मचारियों में एक सरकारी ड्राईवर है जबकि अन्य चार लिपिक हैं.इनमें से दो बीजापुर के कलेक्टर के कार्यालय में कार्यरत हैं जबकि दो भोपालपटनम जनपद पंचायत के कार्यालय में पदस्थापित हैं.खबरें हैं कि जब हथियारबंद माओवादी इन कर्मचारियों को बस से उतार रहे थे तो इनके परिजनों नें उनसे काफ़ी गुहार लगाई. मगर माओवादी उन्हें यह कहते हुए अपने साथ ले गए कि पूछ ताछ के बाद इन्हें छोड़ दिया जाएगा. बीजापुर में माओवादियों द्वारा एक बार फिर सरकारी कर्मचारियों के अपहरण से प्रशासन सकते में आ गया है.इसके अलावा बीजापुर और भोपालपटनम मार्ग पर माओवादियों नें सरकारी जन वितरण प्रणाली कि दो बसों को आग के हवाले कर दिया. बस्तर संभाग के ही कांकेर ज़िले में भी माओवादियों नें एक निर्माण कम्पनी के पांच वाहनों को भी फूँक दिया है.

Sunday, October 10, 2010

veno

veno

kumar satish

Thursday, September 16, 2010


गैंगस्टर के साथ पुलिस की शराबखोरी

रायपुर। जगदलपुर जेल से पेशी पर राजधानी लाए गए चर्चित गैंगस्टर तपन सरकार को गुरुवार की रात पुरानीबस्ती इलाके में पुलिस के साथ शराब और कबाब का लुफ्त लेते राजधानी पुलिस ने रंगे हाथ पकड़ा। मामले में एक एएसआई समेत चार पुलिस वालों के खिलाफ थाने में एफआईआर दर्ज की जा रही है।
सूत्रों ने बताया कि भिलाई के गैंग लीडर धंजी के मर्डर केस में जगदलपुर जेल में बंद शूटर तपन सरकार को एक एएसआई समेत चार पुलिसकर्मी गुरुवार को जगदलपुर जेल से राजधानी स्थित न्यायालय पेशी पर लेकर आए थे। पेशी के बाद देर शाम तपन सरकार के स्थानीय सहयोगियों ने खाने-पीने की व्यवस्था राधास्वामी नगर स्थित एक मकान में कर रखी थी। देर रात शराब-कबाब का लुफ्त ले रहे तपन सरकार और पुलिसवालों को स्थानीय पुलिस ने रंगे हाथ पकड़ा। अचानक इस दबिश से जगदलपुर पुलिस और गैंगस्टर हड़बड़ा गया। मकान से शराब की बोतलें, खाने का सामान आदि जप्त कर पुलिस सभी को लेकर थाने पहुंची। इस कार्रवाई का हल्ला शहर में तेजी से हुआ। बताया गया कि दबिश के पहले रेलवे स्टेशन के नामचीन और तपन सरकार के कुछ साथी भी वहां मौजूद थे, लेकिन ऐन वक्त पर पुलिस के आने की भनक पाकर वे भाग खड़े हुए। ये लोग गुरुवार को दिनभर कोर्ट परिसर में सक्रिय देखे गए थे। पुलिस उनके बारे में भी जानकारी ले रही है। एसपी दीपांशु काबरा ने इस कार्रवाई की पुष्टि की है। उन्होंने हरिभूमि को एक लाख की पेशकश
पकड़े गए तपन सरकार ने पुलिसकमिर्यों को एक लाख रुपए की रिश्वत की पेशकश कर भागने की योजना बनाई थी। इससे पहले कि उसकी योजना सफल हो पाती, वह राजधानी पुलिस की शिकंजों में आ गया। हिस्ट्रीशीटर तपन सरकार कई हत्याकांड के मामले में जेल में निरुद्ध है। जगदलपुर पुलिस को नियमानुसार आरोपी को लेकर थाना जाना था, लेकिन वे उसके नजदीकी घर लेकर चले गए। राजधानी पुलिस शुक्रवार को सारे मामले से पर्दा हटाएगी। यह पहला मामला नहीं है। पिछले माह छत्तीसगढ़ का कुख्यात डकैत नसीबुद्दीन पेशी के दौरान तिल्दा स्टेशन में पुलिस को चकमा देकर फरार हो गया था। उसे बाद में राउरकेला, उड़ीसा स्टेशन पर जीआरपी ने नसीबुद्दीन और उसके चार अन्य साथी आरिफ खान, मेहबूब खान, मोहम्मद असलम और दीपक अग्रवाल को गिरफ्तार किया था। फिलहाल प्रोडक्शन वारंट पर पांचों को रायपुर लाने की तैयारी चल रही है।
बताया कि पेशी पर आए गैंगस्टर तपन सरकार और पुलिस वालों के साथ शराब पीते पकड़ा गया है। यह खुलेआम कानून का उल्लघंन है। तपन के खिलाफ दर्जनभर से अधिक हत्या, हत्या के प्रयास सहित अन्य गंभीर मामले दर्ज हैं। फिलहाल वह एक अन्य गैंग लीडर धंजी मर्डर केस में बंद है। पहले उसे रायपुर सेंट्रल जेल में रखा गया था, लेकिन बाद में सुरक्षा के लिहाज से सालभर पहले जगदलपुर जेल स्थानांतरित कर दिया गया। तब से वह पेशी पर अक्सर रायपुर न्यायालय आता-जाता है।
एक लाख की पेशकश

पकड़े गए तपन सरकार ने पुलिसकमिर्यों को एक लाख रुपए की रिश्वत की पेशकश कर भागने की योजना बनाई थी। इससे पहले कि उसकी योजना सफल हो पाती, वह राजधानी पुलिस की शिकंजों में आ गया। हिस्ट्रीशीटर तपन सरकार कई हत्याकांड के मामले में जेल में निरुद्ध है। जगदलपुर पुलिस को नियमानुसार आरोपी को लेकर थाना जाना था, लेकिन वे उसके नजदीकी घर लेकर चले गए। राजधानी पुलिस शुक्रवार को सारे मामले से पर्दा हटाएगी। यह पहला मामला नहीं है। पिछले माह छत्तीसगढ़ का कुख्यात डकैत नसीबुद्दीन पेशी के दौरान तिल्दा स्टेशन में पुलिस को चकमा देकर फरार हो गया था। उसे बाद में राउरकेला, उड़ीसा स्टेशन पर जीआरपी ने नसीबुद्दीन और उसके चार अन्य साथी आरिफ खान, मेहबूब खान, मोहम्मद असलम और दीपक अग्रवाल को गिरफ्तार किया था। फिलहाल प्रोडक्शन वारंट पर पांचों को रायपुर लाने की तैयारी चल रही है।

Friday, September 10, 2010














Sunday, September 5, 2010





Saturday, September 4, 2010