0 अर्धसैनिक बल के आला अफसर का खुलासा
0 कोबरा बटालियन को बताया बेहतर लड़ाकू
बस्तर के नक्सल प्रभावित इलाकों में पुलिस का सूचना तंत्र पूरी तरह फेल है। यूं कह लें कि नक्सली प्रभुत्व वाले इलाकों में सूचना तंत्र नाम की कोई चीज ही नहीं है। गांव वाले पुलिस से कटे हुए हैं। कुछ अरसा पहले अर्धसैनिक बल के ऑपरेशन के दौरान इस बात को गंभीरता से लिया भी गया था, लेकिन उस दिशा में सही तरीके से काम नहीं हुआ, नतीजा यह हुआ कि वनाचंलों में नक्सलियों की गहरी पैठ हो गई और हम देखते रह गए। उनकी घुसपैठ तोड़ने के लिए उन्हें घेरकर मारने की रणनीति ही अब एकमात्र विकल्प रह गया है।
यह कहना है नक्सल इलाके में लंबे समय से काम का अनुभव रखने वाले अर्धसैनिक बल के एक आला अफसर का। उनके मुताबिक दरभा की जीरम घाटी में कांग्रेस नेताओं के काफिले पर किया गया हमला खुफिया तंत्र की नाकामी की पोल खोलता है। नाम न छापने की शर्त पर वे स्वीकार करते हंै कि सुरक्षा बल और नक्सलियों के बीच जंगल के गरीब आदिवासी पिस रहे हैं। पखवाड़ेभर पहले एड़समेटा के देवगुढ़ी में सुरक्षाबल के हाथों मारे गए आठ लोगों को वे निर्दोष ग्रामीण बताने से भी उन्होंने परहेज नहीं किया। उनका कहना है कि सर्चिंग पर निकले सुरक्षा बलों की गलती से यह घटना हुई। बीज पूजा के लिए एकत्र हुए ग्रामीणों को नक्सली समझकर बिना तस्दीक के गोलीबारी की गई थी। उन्होंने कहा कि जिस थानाक्षेत्र में यह घटना हुई, वहां के बल को इसकी तस्दीक करनी चाहिए कि थी कि आखिर कौन लोग एक साथ इकट्ठे हुए हैं। स्थानीय लोगों को पहचान न पाने के कारण सुरक्षा बल से यह सब हो गया। हालांकि इसे अधिकृत रूप से स्वीकार भी नहीं किया जा सकता। मामले की जांच चल रही है, दोषियों के खिलाफ कार्रवाई भी होगी।
कोबरा ही करेगा सफाया
इस अफसर का कहना है कि नक्सलियों का सफाया कोबरा बटालियन ही कर सकती है। केंद्रीय गृहमंत्री की मौजूदगी में हुई बैठक में इस मसले पर चर्चा भी हुई है। केंद्रीय गृहमंत्री ने जॉइंट ऑपरेशन चलाकर नक्सलियों के खिलाफ आरपार की लड़ाई लड़ने का ऐलान किया है। उन्होंने कहा कि कोबरा बटालियन ने जम्मू में आतंकियों का खात्मा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यहां भी वे नक्सलियों पर भारी पड़ेंगे।
आधी घाटी की हुई थी रोड ओपनिंग
आला अफसर ने खुलासा किया कि दरभा की जीरम घाटी से कांग्रेस नेताओं का काफिला गुजरने से कुछ घंटे पहले एसएचओ दरभा के नेतृत्व में सुरक्षा बल ने रोड ओपनिंग (सर्चिंग) की थी, लेकिन पूरी घाटी के बजाय केवल 7 किमी तक ही रोड ओपनिंग कर पुलिस पार्टी वापस लौट गई थी, जबकि 13 किमी (दरभा थानाक्षेत्र) तक रोड ओपनिंग करनी थी। इसी चूक का फायदा नक्सलियों ने उठाया। अगर रोड ओपनिंग पूरी की जाती तो हो सकता था नक्सलियों द्वारा लगाए गए एबंुस का पता पहले से लग जाता और यह घटना नहीं होती।
जंगल से नहीं आती खबर
खुफिया विभाग का काम नक्सली इलाके में शून्य है। मुख्यालय या थाने में आने वाली सूचनाओं के भरोसे विभाग का काम चल रहा है। दो पाटों के बीच पिस रहे आदिवासी ग्रामीण पुलिस को सूचना देने से कतराते हैं। जब तक ग्रामीणों का विश्वास को जीता नहीं जाएगा, नक्सली हलचलों की खबर जंगल से निकलकर बाहर नहीं आएगी। तब तक नक्सलियों पर फोर्स का दबाव नहीं बनेगा। इस पर सबको मिलकर चिंतन करने की जरूरत है।
घेरने से होगा खात्मा
नक्सल प्रभुत्व वाले पूरे कॉरीडोर को घेरकर नक्सलियों का खात्मा करने का वक्त अब आ गया है। आला अफसर का कहना है कि छत्तीसगढ़, आंध्रप्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा तथा झारखंड के नक्सल प्रभावित चिन्हांकित इलाके को घेरने से नक्सली बीच में फंसकर रह जाएंगे। अधिकतम एक-दो माह के बाद आखिरकार जब आम ग्रामीण के वेश में वे अपनी जरूरतों का सामान लेने बाहर आएंगे तब आइडेंटी वेरिफिकेशन करने से उनकी शिनाख्त आसानी से हो जाएगी। जम्मू में यही फार्मूला अपनाकर आतंकियों का खात्मा किया गया था।
0 कोबरा बटालियन को बताया बेहतर लड़ाकू
बस्तर के नक्सल प्रभावित इलाकों में पुलिस का सूचना तंत्र पूरी तरह फेल है। यूं कह लें कि नक्सली प्रभुत्व वाले इलाकों में सूचना तंत्र नाम की कोई चीज ही नहीं है। गांव वाले पुलिस से कटे हुए हैं। कुछ अरसा पहले अर्धसैनिक बल के ऑपरेशन के दौरान इस बात को गंभीरता से लिया भी गया था, लेकिन उस दिशा में सही तरीके से काम नहीं हुआ, नतीजा यह हुआ कि वनाचंलों में नक्सलियों की गहरी पैठ हो गई और हम देखते रह गए। उनकी घुसपैठ तोड़ने के लिए उन्हें घेरकर मारने की रणनीति ही अब एकमात्र विकल्प रह गया है।
यह कहना है नक्सल इलाके में लंबे समय से काम का अनुभव रखने वाले अर्धसैनिक बल के एक आला अफसर का। उनके मुताबिक दरभा की जीरम घाटी में कांग्रेस नेताओं के काफिले पर किया गया हमला खुफिया तंत्र की नाकामी की पोल खोलता है। नाम न छापने की शर्त पर वे स्वीकार करते हंै कि सुरक्षा बल और नक्सलियों के बीच जंगल के गरीब आदिवासी पिस रहे हैं। पखवाड़ेभर पहले एड़समेटा के देवगुढ़ी में सुरक्षाबल के हाथों मारे गए आठ लोगों को वे निर्दोष ग्रामीण बताने से भी उन्होंने परहेज नहीं किया। उनका कहना है कि सर्चिंग पर निकले सुरक्षा बलों की गलती से यह घटना हुई। बीज पूजा के लिए एकत्र हुए ग्रामीणों को नक्सली समझकर बिना तस्दीक के गोलीबारी की गई थी। उन्होंने कहा कि जिस थानाक्षेत्र में यह घटना हुई, वहां के बल को इसकी तस्दीक करनी चाहिए कि थी कि आखिर कौन लोग एक साथ इकट्ठे हुए हैं। स्थानीय लोगों को पहचान न पाने के कारण सुरक्षा बल से यह सब हो गया। हालांकि इसे अधिकृत रूप से स्वीकार भी नहीं किया जा सकता। मामले की जांच चल रही है, दोषियों के खिलाफ कार्रवाई भी होगी।
कोबरा ही करेगा सफाया
इस अफसर का कहना है कि नक्सलियों का सफाया कोबरा बटालियन ही कर सकती है। केंद्रीय गृहमंत्री की मौजूदगी में हुई बैठक में इस मसले पर चर्चा भी हुई है। केंद्रीय गृहमंत्री ने जॉइंट ऑपरेशन चलाकर नक्सलियों के खिलाफ आरपार की लड़ाई लड़ने का ऐलान किया है। उन्होंने कहा कि कोबरा बटालियन ने जम्मू में आतंकियों का खात्मा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यहां भी वे नक्सलियों पर भारी पड़ेंगे।
आधी घाटी की हुई थी रोड ओपनिंग
आला अफसर ने खुलासा किया कि दरभा की जीरम घाटी से कांग्रेस नेताओं का काफिला गुजरने से कुछ घंटे पहले एसएचओ दरभा के नेतृत्व में सुरक्षा बल ने रोड ओपनिंग (सर्चिंग) की थी, लेकिन पूरी घाटी के बजाय केवल 7 किमी तक ही रोड ओपनिंग कर पुलिस पार्टी वापस लौट गई थी, जबकि 13 किमी (दरभा थानाक्षेत्र) तक रोड ओपनिंग करनी थी। इसी चूक का फायदा नक्सलियों ने उठाया। अगर रोड ओपनिंग पूरी की जाती तो हो सकता था नक्सलियों द्वारा लगाए गए एबंुस का पता पहले से लग जाता और यह घटना नहीं होती।
जंगल से नहीं आती खबर
खुफिया विभाग का काम नक्सली इलाके में शून्य है। मुख्यालय या थाने में आने वाली सूचनाओं के भरोसे विभाग का काम चल रहा है। दो पाटों के बीच पिस रहे आदिवासी ग्रामीण पुलिस को सूचना देने से कतराते हैं। जब तक ग्रामीणों का विश्वास को जीता नहीं जाएगा, नक्सली हलचलों की खबर जंगल से निकलकर बाहर नहीं आएगी। तब तक नक्सलियों पर फोर्स का दबाव नहीं बनेगा। इस पर सबको मिलकर चिंतन करने की जरूरत है।
घेरने से होगा खात्मा
नक्सल प्रभुत्व वाले पूरे कॉरीडोर को घेरकर नक्सलियों का खात्मा करने का वक्त अब आ गया है। आला अफसर का कहना है कि छत्तीसगढ़, आंध्रप्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा तथा झारखंड के नक्सल प्रभावित चिन्हांकित इलाके को घेरने से नक्सली बीच में फंसकर रह जाएंगे। अधिकतम एक-दो माह के बाद आखिरकार जब आम ग्रामीण के वेश में वे अपनी जरूरतों का सामान लेने बाहर आएंगे तब आइडेंटी वेरिफिकेशन करने से उनकी शिनाख्त आसानी से हो जाएगी। जम्मू में यही फार्मूला अपनाकर आतंकियों का खात्मा किया गया था।
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