Monday, April 30, 2012

kumar satish
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Saturday, April 7, 2012




निठारी कांड की याद ताजा


चार हत्याओं के खुलासे से दहली राजधानी
पुलिस की लापरवाही से घूमता रहा आरोपी
राजधानी में एक-एक करके चार मानव कंकाल मिलने की घटना ने निठारी कांड की याद ताजा कर दी। पुलिस का मानना है कि आरोपी अरुण चंद्राकर उर्फ तोरण मनोरोगी है। उसे सीरियल किलर कहा जा सकता है। मकान हथियाने के लालच में आकर उसने सबसे पहले मकान मालिक बहादुर सिंह की हत्या की। लाश को ठिकाने लगाने के बाद वह कई माह तक वहीं रहा। बाद में जब उसके पुत्रों ने गायब पिता के बारे में पूछताछ करना
शुरू किया, तब पकड़े जाने के भय से वह वहांॅ से भागकर कुकुरबेड़ा, देवार बस्ती पहुंॅचा। आशंका जताई जा रही है कि पत्नी लिली और उसके मामा संजय देवार को इस हत्या के बारे में भनक लग गई थी। संजय को गायब करने के पीछे इसी का हाथ हो सकता है। पुलिस विभिन्ना पहलुओं को ध्यान में रखकर मामले की पड़ताल में जुट गई है।
गंभीर नहीं थी पुलिस अन्यथा..
एक-एक करके दो महिलाओं समेत तीन लोगों के संदेहास्पद तरीके से गायब होने की सूचना थाने में छह माह पहले दी गई थी, लेकिन पुलिस ने मामले को हल्के से लिया। गंभीरता से गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज नहीं की गई। जांॅच न होने के कारण ही आरोपी चार-चार हत्या करने के बाद भी आराम से घूमता रहा। जब पुलिस को शक हुआ, उससे पहले वह गायब हो गया। एएसपी सिटी डा.लाल उमेद सिंह के अनुसार 28 जुलाई 2011 को
सरस्वतीनगर थाने में तीनों की एक साथ गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज की गई थी। इस दौरान ससुराल वालों को दामाद पर थोड़ा भी संदेह नहीं हुआ। इस बीच अरुण डोंगरगढ़, बनारस तथा अन्य शहरों में जाकर समय काटता रहा।
हिस्ट्रीशीटर है
आरोपी दुर्ग जिले के गुंडरदेही का हिस्ट्रीशीटर है। उसके खिलाफ चोरी, उठाईगिरी, नकबजनी के 27 मामले दर्ज हैं। सूत्रों ने बताया कि 16 साल पहले वह पुलिस से बचने के लिए गांॅव से भाग निकला था। उसके जाने के छह माह बाद पिता शत्रुधन चंद्राकर अचानक से गायब हो गया, जिसका आज तक कोई पता नहीं चल पाया।
ऐसे पहुंॅचा देवार बस्ती
दुर्ग जेल में बंद रहने के दौरान अरुण की दोस्ती मंगलू देवार से हो गई थी। जनवरी, 2005 में रिहा होकर हीरापुर में बहादुर सिंह का मकान किराए पर लेकर रहने लगा। मंगलू की रिश्तेदारी देवार मोहल्ले में अनसुइया से थी, उसी के साथ अरुण वहांॅ आता-जाता था। बहादुर की हत्या करने के बाद वह देवार बस्ती में आ गया और लिली से विवाह उपरांत उसके मामा संजय देवार की जमीन को दस हजार में खरीदकर वहीं
मकान बनाकर रहने लगा। पुत्री रितु की परवरिश देवार बस्ती में वह होने नहीं देना चाहता था, लेकिन लिली इसके लिए तैयार नहीं थी। इस बात को लेकर दोनों में विवाद होता था।
पत्र लिखता था आरोपी
पत्नी, साले की पत्नी की हत्या के बाद ससुराल वालों को भरोसा देने के लिए वह खुद ही कभी पुष्पा तो कभी लिली बनकर सास, साली के नाम पत्र लिखता था। पत्र में वह बताता था कि सब ठीक है। गांॅव में ठीक से रह रहे हैं, चिंता न करंे। एक बार उसने पुष्पा के चक्कर में पुणे जेल में बंद होने का हवाला देते हुए पत्र में लिखा था कि शराब ले जाते पकड़े गए हंै, फिलहाल जेल में हंैे। इसी तरीके से वह बहादुर
सिंह के नाम पर परिजनों को पत्र लिखकर दूसरी शादी करके गोंदिया में रहने की बात कहता था। पत्र देखकर जरवाय में रह रहे उसके परिवार वाले भी निश्चिंत हो गए थे। बहादुर की हत्या 19 जनवरी,2005 में हुई थी और 18 फरवरी,2005 को पहला पत्र परिजनों को मिला था। गुमशुदगी की रिपोर्ट पुत्र संजय ने 7 मार्च 05 को दर्ज कराई थी।
पुत्री मोह में फंॅसा
फरार होने के बाद भी आरोपी कभी-कभार पुत्री रितु से मिलने चुपके से यहांॅ आता था। कल शाम भी पुत्री को सास व साली के साथ आने के लिए उसने किसी से पत्र भिजवाया। इसकी जानकारी मिलते ही पुलिस ने घेराबंदी कर उसे धर दबोचा।
पुलिस टीम को 30 हजार का इनाम
एक ही परिवार के तीन लोगों के गायब होने के मामले में एसएसपी दीपांशु काबरा ने दस हजार रुपए का इनाम घोषित किया था। वहीं हत्या की गुत्थी सुलझाने पर आईजी मुकेश गुप्ता ने टीम को बधाई देते हुए बीस हजार रुपए इनाम देने की घोषणा की है। मामले को सुलझाने में सरस्वतीनगर टीआई कुमारी चंद्राकर की विशेष भूमिका रही है।
घर में लाश की नहीं लगी भनक
घर के भीतर दफन तीन लाशों के बारे में ससुराल पक्ष के लोगों के साथ देवार बस्ती के लोगों को जरा भी भनक नहीं लगी। गुमशुदगी दर्ज होने के बाद भी पुलिस ने घर का मुआएना नहीं किया। आरोपी की निशानदेही पर आज जब कंकाल निकाले जा रहे थे, तब लोगों को भारी हुजूम जमा हो गया था।
गम नहीं, मार दिया
आरोपी अरुण चंद्राकर ने नईदुनिया को बताया कि उसे हत्या करने का कोई गम नहीं है। वह रात के समय तीनों को बेहोश करने के बाद पहले से तैयार कब्र में एक-एक करके दफना दियाा। वह जानता था कि बुरे कर्म का नतीजा बुरा ही होगा, इसलिए पकड़ा गया।

यह घिनौना हत्याकांड है। आरोपी मनोरोगी लगता है। पुलिस शुरू से लगी हुई थी। इसी वजह से हत्या का खुलासा हुआ और आरोपी पकड़ा गया। संदेही संजय सिंह की तस्दीक की जा रही है।
दीपांशु काबरा
एसएसपी, रायपुर

कुकुरबेड़ा वालों ने आंखों में गुजारी रात सीरियल किलर ने उड़ाई नींद कर खुलने लगे दफन राज
देवार बस्ती के लोगों की 21 और 22 जनवरी 012 की रात आंखों में ही गुजरी। शातिर सीरियल किलर अरुण के घर पर मिले तीन कंकाल के कारण बस्ती लोग सो नहीं पाए। रह-रहकर उस खौफनाक मंजर का ख्याल आते रहा और नींद फटकी भी नहीं। रात के सन्नााटे में हल्की से आवाज भी आई लोग बिस्तर से उठकर बैठ जाते हैं। अकुण का चेहरा सामने आते ही मन में उसके प्रति बुरे ख्याल और आक्रोश पनपनता
है। रविवार को जब बस्ती के लोगों को पता चला कि अरुण ने पिता, साले समेत तीन और हत्या की है तो ससुराल वालों के साथ बस्तीवासी उसकी इस करतूत पर फांसी देने या फिर अपने हवाले करने से की मांग करने लगे हैं। मृतका लिली की मां अनुसूइया हत्यारे अरुण की इकलौती मासूम पुत्री रितु (3) को सीने से लिपटाये रो रही थी। उसकी आंखों से आँसू की धार बह रही थी। सूजी लाख आंखों में मासूम के भविष्य की
चिंता अनुसूइया के माथे पर साफ झलक रही थी। सुबकते हुए अनुसूइया ने कहा-उम्मीद थी कि बेटी, बेटा और बहू एक दिन जरूर आएंगे, लेकिन तीनों के कंकाल देखकर यह उम्मीद सपने की तरह बिखर गई।
रोजी दिहाड़ी करने में रोज व्यस्त दिखने वाले देवार बस्ती के लोगों के दिन और रात अब चिंता में गुजर रही है। दरिंदे दामाद की खौफनाक करतूत ने ससुराल वालों को शर्मसार कर दिया है। लिली की मौसी छाया देवार का कहना था कि जुलाई में अरुण उसे लिली और पुष्पा के पास अस्पताल ले जाना चाहता था। उस समय पति के बाहर रहने और बच्चों की तबीयत ठीक न होने के कारण वह नहीं जा सकी। उसने उस वक्त को अच्छा
बताते हुए कहा वह आज जिंदा है तो केवल बच्चों के चलते, भगवान ने बचा लिया।
पिता को नसीब नहीं हुई चिता
हैवानियत की सारी हदें पार कर अरुण ने अपने पिता के साथ भी वही किया जो पत्नी, साले और उसकी पत्नी के साथ किया था। चलती ट्रेन के सामने फेंकने वाले अरुण को जरा भी दया नहीं आई कि जिसे वह हमेशा के लिए मिटा रहा है वह उसका पिता है। अधेड़ शत्रुघ्न की लाश दूसरे दिन गुढ़ियारी के पास रेलवे ट्रैक पर कटी हुई मिली थी। लाश की शिनाख्त न होने के कारण उसे चिता भी नसीब नहीं हुई। वह लवारिश की तरह दफन
हो गया।
और भी शिकार?
पुलिस अफसरों का कहना है कि शांत स्वभाव का दिखने वाला अरुण काफी शातिर दिमाग का है। उसके मन में केवल पुत्री रितु के लिए ही प्यार दिखाई दिया। वह कब क्या कर सकता है, किसी को भनक नहीं लगने देता। यही वजह है कि सात लोगों को मौत के घाट उतारने के बाद भी वह बेफिक्र होकर घूमता रहा। हालांकि पुलिस के हत्थे चढ़ने का डर हमेशा उसके मन में बना रहता था, लेकिन जेल जाने से वह कभी नहीं डरा।
राजधानी के आलावा, गुंडरदेही, बालोद, दुर्ग जिले में वह कब, कहां रहा और किस-किस के संपर्क में था, इसकी पड़ताल की जा रही है। आशंका है कि अरुण ने करीब दर्जन भर लोगों को बिन मांगे मौत दी है।
ऐसा होगा अरुण, नहीं सोचा था
रिश्तेदार अखिल देवार के छोटे भाई अमजद देवार ने बताया कि अरुण जिस मकान में रहता थास वह संजय से हथियाना चाहता था। वह घर के सामने लगे नल में किसी को पानी भी नहीं भरने देता था। इस बात पर संजय व अरुण के बीच विवाद होता था। इसी कारण उसने संजय को रास्ते से हटाया। बस्ती के राहुल, देना, मामा सेठी, निका, सरिता. अनिता, विक्रम, राजेश, दिपेश का कहना है कि उसने कई साधन घर में जुटाए थे। पड़ोस के
लोगों को वह उधार में दस-दस हजार रुपए तक कम ब्याज पर देता था। तगादा भी नहीं करता था। किसी से उसका विवाद भी बस्ती में नहीं हुआ। यही वजह है कि उस पर किसी का शक नहीं गया।

पहले आरोपी और हत्या के बारे में मना कर रहा था। आशंका है कि इसने और लोगों की हत्या की होगी। लापता लोगों की जानकारी जुटा रहे हैं। आरोपी से पूछताछ जारी है।
दीपांशु काबरा, एसएसपी

निठारी कांड ने बनाया सीरियल किलर
मामा ससुर का कंकाल बरामद
बनाने की चाह में बना खूनी दरिंदा
अब तक सात हत्या कबूलने वाले सीरियल किलर अरुण चंद्राकर उर्फ तोरण बहुचर्चित निठारी कांड से खासा प्रभावित रहा है। लोगों की हत्या करने की दुष्प्रेरणा निठारी कांड से मिलने की जानकारी देकर उसने पूछताछ करने वाले अफसरों को सकते में ला दिया है। आशंका है कि उसने सिलसिलेवार और हत्याएं की होंगी।
आरोपी की निशानदेही पर सोमवार सुबह आमानाका ओवरब्रिज के पास खाली प्लाट में उसके मामा ससुर संजय देवार का कंकाल कड़ी मशक्कत के बाद पुलिस ने निकाल लिया। कंकाल के अस्थी-पंजर अलग-अलग हिस्सों में जमीन में दबे थे। कंकाल को फोरेंसिक जांच के लिए भेज दिया गया। पुलिस टीम अरुण को दुर्ग जिले के थाना नंदनी अंतगर्त ग्राम चटाईशीट, अहिवारा भी लेकर गई थी। वहां आरोपी ने उस स्थान को दिखाया
जहां महिला झोपड़ी में अकेली रहती थी। फिलहाल वहां झोपड़ी नहीं है। वर्षों से रह रहे आसपास के कई लोगों ने पुलिस को बताया कि यहां झोपड़ी थी, जिसमें महिला रहती थी। किसी ने उसकी हत्या कर दी थी। जब उन्हें अरुण की तरफ इशारा करते हुए बताया गया कि हत्यारा यही है, तो कुछ लोगों ने उसे झोपड़ी से लगे रेलवे ट्रेक के आसपास अक्सर आते-जाते देखे जाने की पुष्टि की। मृतका फूलबाई पति सुदर्शन कलार (65)
की बेटी के बारे में जानकारी लेकर पुलिस वापस लौट आई।
सरस्वतीनगर टीआई कुमारी चंद्राकर ने बताया कि जमीन-जायदाद बनाने के लालच में आकर अरुण ने योजनाबद्व तरीके से एक-एक करके सात लोगों की शातिराना अंदाज में हत्या की। पिता शत्रुध्न को भी उसने धोखे से इसलिए मौत के घाट उतारा कि वह उसे जमीन जायदाद से बेदखल कर चुका था। मकान मालिक बहादुर सिंह और मामा ससुर संजय देवार को भी उसके मकान पर कब्जा करने के इरादे से निपटाया। पत्नी लिली को
केवल इस लिए मार दिया कि वह बहादुर की हत्या का राज जान चुकी थी। वह किसी के सामने यह राज न खोल दे, यह सोचकर अरुण ने उसे मौत दे दी। साले अखिल देवार व उसकी पत्नी पुष्पा को इसलिए मारा कि वे लापता लिली के बारे में पूछताछ कर उस पर शंका जाहिर करने लगे थे।
बीएसपी के मकान पर किया था कब्जा
पुलिस ने बताया कि हीरापुर में मकान मालिक की हत्या करने के बाद अरुण कुछ माह तक कबीरनगर में रहा था। इसके बाद वर्ष 1998 में अहिवारा क्षेत्र के संजयनगर में भिलाई स्टील प्लांट (बीएसपी) द्वारा बनाए गए मकान पर जबरिया कब्जा जमाकर रहने लगा। वह लोहा चोरी करने की नीयत से दिनभर रेलवे ट्रेक पर घूमता रहता था। उस समय वह झोपड़ी में अकेली रह रही महिला फूलबाई को हमेशा देखते रहता था। महिला की
हत्या कर उसकी झोपड़ी हथियाने और हत्या का आरोप बहादुर के बेटे पर मढ़ने की मंशा से उसने रात के समय टांगी से वार कर हमेशा के लिए महिला को सुला दिया। हालांकि हत्या के बाद वह दोबारा वहां नहीं गया।
निठारी कांड से मिली प्रेरणा
आरोपी ने पूछताछ में बताया कि बहुचर्चित निठारी कांड को वह अक्सर टीवी पर देखता था। इस कांड के आरोपी की शातिराना अंदाज ने उसे काफी प्रभावित कर दिया था। वह जानता था कि अगर वह फंस भी गया तो लाश नहीं मिलने के कारण वह कोर्ट से बरी हो जाएगा। भिलाई, खुर्शीपार में इसी पैटर्न पर हुई हत्या ने उसे ऐसा करने के लिए उकसाया। इसके बाद उसने मामा ससुर, पत्नी, साले और उसकी पत्नी को इसी तरीके से
बेहोश करके जिंदा दफन करता गया। एक के बाद एक हत्या करने और इन पर पुलिस की कोई हरकत न होने के कारण अरुण पर हत्या का जुनून सवार हो गया था।
देवार बस्ती से दो और गायब
देवार बस्ती कुकुरबेडा के लोगों ने पुलिस को जानकारी दी कि पांच-छह साल पहले अरुण के घर के पास रहने वाला दस साल का रिंकू और एक अन्य युवक भी लापता है, जिसका अब-तक पता नहीं चल पाया है। पुलिस इस जानकारी को पुष्ट कर रही है। इसके साथ ही अरुण जहां-जहां रहा, वहां से गायब हुए लोगों की लिस्टिंग करने में जुट गई है। आमानाका, अहिवारा, गुंडरदेही, बालौद आदि क्षेत्र से लापता लोगों की जानकारी
संबंधित थानों से ली जा रही है।
दो और महिलाओं की हत्या का शक
0 गुंडरदेही पुलिस ने अरूण से की पूछताछ
राजधानी में छह और दुर्ग में एक हत्या करने वाले सीरियल किलर पर गुंडरदेही इलाके में दो साल पहले मिले दो अज्ञात महिलाओं के शवों के बारे में भी पूछताछ की गई। पुलिस ने उस पर हत्या करने का संदेह जताया है। गुंडरदेही टीआई सोनूराम परवारे सोमवार को राजधानी पहुंचे। उन्होंने पुलिस रिमांड पर रखे गए अरूण से वर्ष 2010 में मार्च व जून महिने में बोरईखार(गुंडरदेही) में दो महिलाओं की हत्या
कर फेंके गए लाश के बारे में पूछताछ की। फिलहाल अरूण ने इस संबंध में कोई जानकारी नहीं होने की बात कही है। क्राइम ब्रांच प्रभारी आरके साहू ने बताया कि अरूण की नजर मामा ससुर संजय देवार द्वारा कराए गए फिक्स डिपाजिट पर लगी थी। सट्टे के खेल में संजय दो लाख रूपए जीता था। उसमें से एक लाख रूपए उसने बैंक में फिक्स कराया था। वह इस रकम को हथियाने मौका तलाश रहा था। संजय से उसने एक पत्र
में धोखे से हस्ताक्षर भी करा लिया था जिसमें राशि उसे दिए जाने का जिक्र था। उसकी हत्या करने के बाद उसने सास अनसुईया जो इस रकम की नामिनी थी, उससे भी हस्ताक्षर कराने की कोशिश में था। पिछले साल ही यह राशि मिलने वाली थी लेकिन इससे पहले कि वह रकम निकाल पाता पुलिस से बचने के लिए उसे शहर छोड़कर भागना पड़ा।
तीन को जिंदा दफनाया, एक को टांगी से मारा
0राजधानी में चार कंकाल बरामद
0 कुकुरबेड़ा की देवार बस्ती और हीरापुर में दफना दिया था
0 पत्नी, साले व उसकी पत्नी के साथ मकान मालिक की हत्या का आरोपी गिरफ्तार
राजधानी के सरस्वतीनगर इलाके के कुकुरबेड़ा देवार बस्ती में रहने वाले एक युवक ने छह साल पहले अपने मकान मालिक की टांगी मारकर हत्या कर दी। वर्ष 2011 में अप्रैल से जुलाई के बीच अपनी पत्नी तथा साला और उसकी पत्नी को खाने में बेहोशी की दवा मिलाकर जिंदा दफन कर दिया। गुमशुदा लोगों की तलाश में जुटी पुलिस ने आरोपी से पूछताछ में कड़ाई बरती तब यह राज खुला। चारों की हत्या के आरोपी अरुण
चंद्राकर (40) और मकान मालिक की हत्या के लिए सुपारी देने वाले उसके बेटे संजय सिंह ठाकुर को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। 21 जनवरी 2012 की सुबह एक साथ तीन कंकाल कुकुरबेड़ा में एक निर्माणधीन घर में मिले। हीरापुर में मकान मालिक का कंकाल मिला।
कुकुरबेड़ा देवार बस्ती में पिछले तीन साल से रह रहे अरुण मूलत: कचान्दुर (गुंडरदेही, दुर्ग) का निवासी है। देवार बस्ती में आने-जाने के दौरान उसका परिचय लिली देवार (28) से हुआ। 2008 में उसने लिली से अंतरजातीय विवाह कर लिया। एक साल बाद लिली ने एक पुत्री रितु को जन्म दिया। इससे पहले वह परिवार समेत ससुराल घर से लगे मामा ससुर संजय देवार की जमीन पर मकान बनाकर रहने लगा था। इस बीच संजय
अचानक से लापता हो गया। आरोपी के अनुसार संजय के लापता होने के बारे में अक्सर लिली पूछती थी, इससे वह परेशान था। वह लिली को देवार बस्ती छोड़कर दूसरे जगह पर चलकर रहने को कहता था, लेकिन लिली मां-बाप, भाई को छोड़कर जाने को तैयार नहीं थी। अप्रैल 2011 में लिली से इसी बात को लेकर विवाद हुआ। अंतत: लिली से पीछा छुड़ाने की नीयत से रात में उसने पत्नी के खाने में बेहोशी का इंजेक्शन मिला दिया,
जिसे खाकर वह बेहोश हो गई। देर रात को जब पूरी बस्ती सो रही थी तब अरुण ने घर के बाजू में निर्माणाधीन मकान में खोदकर रखे गए करीब पांच फीट गड्ढे में पत्नी को जिंदा दफन कर दिया।
राज खुलने के डर से वारदात
अरुण से जब भी सास अनसुइया (45), साली चांदनी (18), साला अखिल देवार (28) व उसकी पत्नी पुष्पा देवार (22) लिली के बारे में पूछती थे तो वह बाहर घूमने जाने अथवा गांव छोड़ने की बात कहता था। ससुराल वाले जब उसके पीछे पड़ गए तो उसने दुर्ग स्थित चंदूलाल चंद्राकर अस्पताल में लिली को भर्ती कराने की बात कही। काफी दिनों बाद भी लिली वापस नहीं लौटी तब परिजनों को शक हुआ। वे अस्पताल जाकर पूछताछ की तो पता
चला कि लिली नामक कोई मरीज नहीं है। साले की पत्नी पुष्पा ने घर आते ही अरुण पर नाराजगी जताई।
इसके बाद अरुण ने राज खुलने के डर से पुष्पा को भी रास्ते से हटाने की योजना बनाई। जुलाई में चुपके से उसके भोजन में बेहोशी की दवा मिलाकर खिला दिया। बेहोश होते ही पहले से तैयार गड्ढे में लिली के ठीक बाजू में उसे भी दफन कर दिया। चार-पांच दिन बाद पुष्पा का पति अखिल गांव से वापस घर लौटा तो पत्नी को गायब देखकर मां से पूछा। उसकी मां ने बताया कि उसे दामाद अपने साथ ले गया है। इसके बाद
अखिल ने बहन और पत्नी के बारे में अरुण से पूछताछ की तो वह उसे भी रास्ते से हटाने की ठान ली। अरुण ने पहले उसे शराब पिलाया, फिर खाने में बेहोशी की दवा डालकर उसे दफन कर दिया।
ऐसे हुआ शक
गुमशुदगी की फाइल खंगालने के दौरान सरस्वतीनगर पुलिस को अरुण पर शक हुआ। उसके बारे में जानकारी लेने पर पता चला कि वह पिछले चार-पांच महीने से घर से बाहर रहता है। कभी-कभार ही पुत्री रितु (3) से मिलने आता है। अरुण के मूल निवास स्थान में पतासाजी करने पर जानकारी मिली कि वह शातिर चोर है, तब पुलिस ने उसे पकड़ने की योजना बनाई। शुक्रवार की शाम को अरुण ने साली चांदनी को फोन करके रविवि के
पीछे मैदान में रितु को लाने कहा। इसकी सूचना मिलते ही पुलिस अलर्ट हुई। आरक्षक शत्रुघन बाजपेयी ने घंटों मैदान को खंगाला लेकिन अरुण नहीं मिला। सरस्वतीनगर स्टेशन में उसे कुछ यात्रियों के बीच में बैठा देखकर आरक्षक ने पकड़ा। थाने लाकर कड़ाई से पूछताछ करने पर वह टूट गया और तीनों को दफन करने की जानकारी दी।
मकान मालिक को भी नहीं बख्शा
आरोपी ने बताया कि 2005 में वह जब हीरापुर में बहादुर सिंह ठाकुर (50) के मकान में किराए पर रहता था तब उसके बेटे संजय सिंह के कहने पर उसकी हत्या कर दी थी। सोए हालत में बहादुर की गर्दन पर टांगी से दो वार करके मौत के घाट उतारने के बाद लाश को उसके बाड़ी में ही दफन कर दिया था।

जहां शुरू,वहीं खत्म

मरावी ने बिलासपुर से की थी नौकरी की शुरूआत
आईजी बीएस मरावी ने अपनी नौकरी शुरूआत बिलासपुर से बतौर डीएसपी से की थी। विधि का विधान भी ऐसा रहा कि उन्होंने अपनी जिंदगी अंतिम सांसें बिलासपुर में ली। 36 साल की नौकरी में श्री मरावी की चार बार बिलासपुर में पोस्टिंग रही। मूलत: बालाघाट जिले के ग्राम सहगांव में जन्में 1979 बैंच के राज्य पुलिस सेवा के अधिकारी श्री मरावी की पहली पोस्टिंग अविभाजित मध्यप्रदेश के जमाने में 1981-82 में बिलासपुर और शहडोल में ट्रेनिंग अफसर के रूप में हुई। इसके बाद दूसरी पोस्ंिटग डीएसपी मंडला में हुई । वे डिप्टी कमाडेंट दुर्ग व शहडोल भी रहे। 1989 में उन्हें एडिशनल एसपी बनाकर दंतेवाड़ा भेजा गया। यहीं रहते हुए उन्हें
मात्र दस सालों में 1990 में आईपीएस आवार्ड हो गया। इसके बाद उन्हें पदोन्नाति देकर दंतेवाड़ा में ही एसपी के पद पर पदस्थ किया गया। इसके बाद वे राजनांदगांव एसपी बने। उन्होंने झाबुआ, सागर, जशपुर,भोपाल और सरगुजा में अपनी सेवाएं दी। एआईजी पुलिस मुख्यालय, एसपी व एसएसपी बिलासपुर, एसएसपी रायपुर, डीआईजी पुलिस मुख्यालय में पदस्थापना के बाद आईजी सरगुजा बनाकर भेजा गया। यहीं एक मुठभेड़
में उन्हें नक्सलियों की गोली लगी थी। बताया जाता है कि एक छर्रा श्री मरावी के शरीर में फंसा ही है। घटना के बाद उन्हें आईजी होम गार्ड बनाया गया । करीब दो साल तक अतिरिक्त परिवहन आयुक्त रहने के बाद पखवाड़ेभर पहले उन्हें बिलासपुर आईजी बनाकर भेजा गया था। जहां हृदयगति रूकने की वजह से मंगलवार को उनकी मौत हो गई।
जांबाज आईजी मरावी नहीं रहे
दिल का दौरा पड़ने के बाद अपोलो अस्पताल, बिलासपुर के आईसीयू मंे भर्ती आईजी बीएस मरावी का मंगलवार की सुबह निधन हो गया। उनके निधन की खबर से शोक की लहर दौड़ गई। दोपहर उनकी पार्थिव देह को पुलिस लाइन लाया गया और गार्ड ऑफ ऑनर देकर उन्हें अंतिम विदाई दी गई। श्री मरावी की अंत्येष्टि बुधवार को बालाघाट के बेहर के पास सहगांॅव में की जाएगी।अपोलो अस्पताल के डॉक्टरों ने मंगलवार की सुबह करीब 11.15 उनकी मौत की अधिकारिक घोषणा की। उनके निधन की खबर सुनते ही जिले के आला अधिकारियों के साथ ही करीबी व नगर के प्रबुद्धजनों की भीड़ अपोलो अस्पताल पहुंॅच गई। पुलिस लाइन में एसपी रतनलाल डांॅगी, कलेक्टर ठाकुर राम सिंह, मुंगेली एसपी एमएल कोटवानी, एडिशनल एसपी सिटी वेदव्रत सिरमौर सहित पुलिस अधिकारियों ने उन्हें गार्ड ऑफ ऑनर
देकर अंतिम सलामी दी। पुलिस लाइन से उनकी पार्थिव देह को रायपुर ले जाया गया। यहांॅ उनके देवेंद्रनगर आफिसर कॉलोनी स्थित सरकारी आवास में उन्हें राज्यपाल शेखर दत्त और मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह समेत मंत्री व पुलिस मुख्यालय के अधिकारियों ने श्रद्धांजलि दी । शाम साढ़े छह बजे उनके पार्थिव शरीर को सड़क मार्ग से बालाघाट के बेहर के पास स्थित गृहग्राम सहगांॅव के लिए रवाना किया
गया।
सदमे से सास ने तोड़ा दम
आईजी श्री मरावी की मौत के सदमे में उनकी सास श्रीमती ननकुसिया बाई आर्मो ने दम तोड़ दिया।
सहगांॅव निवास 70 वर्षीया श्रीमती आर्मो को दामाद श्री मरावी की मौत की खबर जैसे ही मिली, वे बेहोश कर घर में ही गिर पड़ीं। दोनों का अंतिम संस्कार चार अप्रैल को सहगांॅव में किया जाएगा। बताया जाता है कि उनकी पत्नी देवकी मरावी भी सदमे से उबर नहीं पाई हैं। उनके एक मात्र पुत्र शिखर मरावी हैं।
मरावी ने जी जिंदादिली से जिंदगी
श्रद्धांजलि देने उमड़ी भीड़
आईजी बीएस मरावी ने अपनी जिंदगी जिंदादिली से जी। जिंदगी की जंग में कभी हार नहीं मानने वाले जांॅबाज अफसर की बहादुरी हमेशा स्मरणीय रहेगी। यह बात मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने कही। देवेंद्र नगर स्थित श्री मरावी के निवास पर राज्यपाल शेखर दत्त और मंत्रियों समेत पुलिस विभाग के आला-अधिकारियों ने उनके पार्थिव शरीर पर पुष्पचक्र अर्पित कर श्रद्धांजलि दी।
श्री मरावी के निधन की खबर जैसे ही राजधानी में फैली, पूरा शहर गमगीन हो गया। दोपहर से शाम तक उनके निवास में शुभचिंतकों का तांॅता लगा रहा। शाम को जैसे ही उनके पार्थिव शरीर को राजधानी लाने की खबर मिली,लोगों का हुजूम उनके निवास में उमड़ पड़ा। राज्यपाल श्री दत्त और मुख्यमंत्री डॉ. सिंह ने उनके निवास पर उनकी पत्नी श्रीमती देविका मरावी, पुत्र शिखर और परिजनों से मुलाकात कर अपनी
संवेदना प्रकट की। मुख्यमंत्री डॉ. सिंह ने कहा कि श्री मरावी बेदाग छवि के बहादुर अफसर थे। 2009 में जब वे सरगुजा आईजी थे,तब नक्सली मुठभेड़ में उन्हें गोली लगी थी। स्वस्थ होने के बाद उन्होंने कई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभाई। दोबारा उन्हें बिलासपुर आईजी पदस्थ किया था।
इस अवसर पर विधानसभा अध्यक्ष धरमलाल कौशिक, गृह एवं जेल मंत्री ननकीराम कंॅवर, जल संसाधन एवं उच्च शिक्षा मंत्री रामविचार नेताम, वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री राजेश मूणत, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री अमर अग्रवाल, वन मंत्री विक्रम उसेंडी, स्कूल शिक्षा और लोक निर्माण मंत्री बृजमोहन अग्रवाल, विधानसभा उपाध्यक्ष नारायण चन्देल, विधायक कुलदीप जुनेजा तथा रायपुर विकास
प्राधिकरण के अध्यक्ष सुनील सोनी सहित विभिन्ना संस्थाओं के अनेक पदाधिकारियों और प्रतिनिधियों ने भी इस अवसर पर स्वर्गीय श्री मरावी को श्रद्धांजलि अर्पित की। प्रदेश सरकार के मुख्य सचिव सुनिल कुमार और पुलिस महानिदेशक अनिल एम. नवानी सहित बड़ी संख्या में शासन-प्रशासन के अधिकारी और कर्मचारी भी मौजूद थे।
पूरे परिवार को झटका
श्री मरावी की मौत से उनके पूरे परिवार को झटका लगा है। सास ने जहांॅ सदमे में दम तोड़ दिया, वहीं ससुर अस्पताल में भर्ती हैं। पत्नी श्रीमती देविका की स्थित भी सामान्य नहीं है। श्री मरावी के जाने के गम में उनका रो-रोकर बुरा हाल है। श्री मरावी के करीबी लोगों के मुताबिक श्रीमती मरावी गृहिणी हैं। अकेला पुत्र शिखर बीकाम प्रथम वर्ष का छात्र है। घटना के समय पत्नी और पुत्र दोनों श्री मरावी की देखरेख में बिलासपुर अपोलो अस्पताल में थे। उनके परिजनों को मंगलवार को गृहग्राम बालाघाट के सहगांव रवाना किया गया। उनके साथ आधा -दर्जन अधिकारी भी रवाना हुए हैं।

सुरक्षा कंपनियों की आड़

चंद लाइसेंसी सुरक्षा कंपनियों की आड़ में सैकड़ों सुरक्षा एजेंसियां काम कर रही हैं। एजेंसियों के पास न तो शासन की मान्यता है और न ही प्रशिक्षित सुरक्षाकर्मी। बावजूद इसके वह शासन की नाक के नीचे धड़ल्ले से कंपनी चला रहे हैं। यह फर्जीवाड़ा यहीं नहीं रुकता। शासन ने एक साधारण सुरक्षकर्मी का एक दिन का न्यूनतम वेतन 169 रुपए तय किया है, जबकि कंपनियां उन्हें इसका आधा भी नहीं दे रही हैं। एक सुरक्षाकर्मी को 12 घंटे की ड्यूटी के बाद महीने में 12 सौ से 15 सौ रुपए ही मिलता है, जबकि इससे अधिक की ड्यूटी पर 25 सौ रुपए दिए जाते हैं। तो आप ही समझ सकते हैं कि उनकी जिम्मेदारी कितनी है और आप कितने सुरक्षित हैं। दरअसल सुरक्षा के नाम पर तैनात ये गार्ड कैम्पसों में केवल गेट खोलने और बंद करने का ही काम कर रहे हैं। सुरक्षा के लिए उन्हें डंडे तक कंपनियों के कर्ता-धर्ता मुहैया नहीं कराते। कैसे मिलती है मान्यता: सुरक्षा एजेंसी खोलने से पूर्व इंदौर के कमिश्नर आफिस से ईएसआई नंबर (फीस करीब 40 हजार रुपए) और भोपाल से पीएफ नंबर (फीस 10 से 12 हजार रुपए) लेना होता है। कंपनी के पास लेबर लाइसेंस भी होना जरूरी होता है। इसके साथ ही एक सुरक्षा कंपनी खोलने के लिए न्यूनतम 22 कर्मचारी या गार्ड होना जरूरी होते हैं। इसमें अधिकतम संख्या तय नहीं होती। इसके बाद कंपनी के लिए एसएसपी आफिस को आवेदन दिया जाता है। जहां पुलिस जांच के बाद कंपनी का आवेदन आईजी इंटेलीजेंस के पास भेज दिया जाता है। जहां से कंपनी को मान्यता मिलती है। कंपनी को हर पांच साल में अपना रजिस्ट्रेशन रिन्यू कराना होता है। यह भी बताना अनिवार्य: कंपनी को यह भी बताना होता है कि उन्हें कंपनी पूरे मध्यप्रदेश में संचालित करनी है या कुछ निश्चित जिलों में। इसके लिए अलग-अलग फीस जमा कराई जाती है। कंपनी की समय-समय पर राष्ट्रीय स्तर पर और राज्य स्तर पर जांच की जाती है। लाइसेंस के लिए सुरक्षाकर्मियों के छह माह की ट्रेनिंग के सर्टिफिकेट भी जमा कराने होते हैं। इसके अलावा सुरक्षा एजेंसियों के लिए प्रशिक्षित और सक्षम सुरक्षाकर्मी रखने की अनिवार्यता होती है। इसके लिए सुरक्षाकर्मियों को ट्रेनिंग लेना अनिवार्य होता है।
नियम भी हुए शिथिल:
जानकारी के मुताबिक पहले उन्हें ही सुरक्षा एजेंसी की लाइसेंस मिलता था, जो आर्मी या पुलिस से रिटायर हो चुके होते थे। आर्मी के जवान के लिए 80 फीसदी और शेष 20 फीसदी रजिस्ट्रेशन रिटायर पुलिसकर्मियों के नाम पर होता था। बाद में इस नियम को शिथिल कर दिया गया और पैसा फेंक तमाशा देख की प्रक्रिया शुरू हो गई। अब किसी को भी सुरक्षा एजेंसी का रजिस्ट्रेशन मिल जाता है।


Tuesday, April 3, 2012