Friday, June 7, 2013

माओवादियों की 'हाईकमान' थी यह शातिर महिला

रेश्मी। पतला दुबला शरीर। कद काठी सामान्य। तिरूलडीह बुंडू की इस युवती के हाथों में कभी रांची जिला कमेटी माओवादी महिला बटालियन की कमान थी। अत्याधुनिक हथियारों को चलाने और बेहद शातिर रेशमी को दस्ते के लोग हाईकमान कहते थे। मुठभेड़ में दक्ष। करीब छह साल तक तमाड़, बुंडू और खूंटी के जंगली इलाकों में शासन करने के बाद अंतत: उसने वर्ष 2011 में पुलिस के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया। लेकिन आज उसे गांव छोडऩा पड़ा। डर है कहीं माओवादी उसकी हत्या ना कर दें।
यही स्थिति हरिपदो सिंह मुंडा, सुखराम सिंह मुंडा, अर्जुन मिर्धा, राम लोहरा, बादल समेत अन्य आत्मसमर्पण कर चुके माओवादियों की है। मंगलवार को सभी समाहरणालय स्थित एसएसपी साकेत कुमार सिंह के बुलावे पर पहुंचे थे। मौका था इन्हें आत्मसमर्पण के बदले अनुदान राशि देने का। किसी को 1.50 लाख तो किसी को 50 हजार तक का अनुदान दिया गया।
मिले रुपए, नहीं सुरक्षा की गारंटी
आत्मसमर्पण कर चुके माओवादियों से जानकारी जुटा कर पुलिस ने माओवादियों को काफी नुकसान पहुंचाया। भारी मात्रा में विस्फोटक जब्त हुए और कई माओवादियों को पुलिस ने मार गिरा। कुछ ने आत्मसमर्पण किया। लेकिन ये सब करने के बावजूद आत्मसमर्पण कर चुके माओवादियों को गांव छोडऩा पड़ा। गांव छोडऩे के बाद ये शहर के विभिन्न हिस्सों में रहकर जीवन यापन कर रहें हैं। डर से ये गांव नहीं जाते हैं। क्योंकि माओवादियों को इनके बारे में जानकारी मिलते ही। इन्हें वे जान से मार सकते हैं। पुलिस इनके लिए सुरक्षा को लेकर कोई गारंटी नहीं दी है।
ये मिलनी थी सुविधाएं जो नहीं मिल रही
जेल में बंद माओवादी खुद का पैसा लगाकर केस लड़ रहें हैं। जबकि सरकार को इन्हें नि:शुल्क सरकारी वकील उपलब्ध कराना था।
गृह निर्माण के लिए इन्हें जमीन उपलब्ध करानी थी। जो नहीं मिली।
दो बच्चों को ग्रेजुएशन तक की पढ़ाई नि:शुल्क करानी थी। जो नहीं मिली।
आवास भत्ता हर माह 1500 मिलना था। जो नहीं मिल रहा है।
ऐसे माओवादियों के लिए ओपण जेल बनानी थी। जो नहीं बनी।
हार्डकोर को अब भी रखा जाता है सेल में
इस संबंध में आत्मसमर्पण कर चुके एक हार्डकोर माओवादी की पत्नी ने बताया कि पति जेल में हैं। लेकिन उन्हें जेल के अंदर बने सेल में रखा जाता है। ऐसे में आत्मसमर्पण करने का क्या फायदा है। पुलिस ने कहा था कि अदालत में जल्द मामले की सुनवाई कर। इन्हें रिहा कर दिया जाएगा। लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है।
इनके बीच बांटा अनुदान राशि
मार्शल टूटी, सुरेश मुंडा, संजय प्रमाणिक, चांद महतो, एतवा मुंडा, सीता राम मुंडा, भोला पाल, गीता गंझू, मधु मुंडा, निशांत दा उर्फ दीपक उर्फ टेपा, सुनीता कुमारी(सभी जेल में), सुखराम लोहरा, बादल उर्फ शंकर पुराण, त्रिलोचन सिंह मुंडा, हरिपदो सिंह मुंडा, राम लोहरा, अर्जुन मिर्धा और रेशमी देवी। सभी ने ऑपरेशन नई दिशा के तहत आत्मसमर्पण किया था।

आत्मसमर्पण कर चुके माओवादियों को सुविधाएं मिलेंगी। लेकिन इन सुविधाओं को उपलब्ध कराने के लिए स्टेप बाइ स्टेप कार्रवाई करनी है। सभी सुविधाएं एक साथ नहीं दी जा सकती। विभाग योजना के अनुसार कार्य कर रहा है। - साकेत कुमार सिंह, एसएसपी रांची।

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