Thursday, June 6, 2013

दरभा बना दूसरा अबूझमाड़..

नक्सलियों ने दरभा की जिस झीरम घाटी में इलाके में कांग्रेसियों के काफिले को निशाना बनाया, वह बेहद ही अनसुलझा इलाका है। इस इलाके में चप्पे-चप्पे पर नक्सलियों का मूवमेंट है। दरभा से सुकमा, कोंटा और दंतेवाड़ा तक इस पूरे इलाके के जंगल में बसे तमाम गांवों में नक्सलियों का राज है। वहां उनके हर घर में सदस्य हैं। इन इलाकों में वारदात करने के बाद नक्सली अगर बार्डर क्रास कर भागे न भी तो उन्हें ढूंढ निकालने में फोर्स के पसीने छूट आएंगे। जानकार इस पूरे इलाके को बस्तर का दूसरा अबूझमाड़ कहने लगे हैं।टीम ने दरभा वन संभाग के बारे में जानकारी जुटाई और इस बारे में वहां काम कर चुके पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों से बातचीत की गई। दरभा जगदलपुर से सुकमा जाने वाले नेशनल हाइवे के रास्ते पर 105 किमी पर स्थित है। इस रूट पर कांकेर वैली राष्ट्रीय उद्यान के बाद झीरम घाटी है।इस घाटी की सबसे खास बात यह है कि यहां का एक बड़ा इलाका जंगलों से होते हुए ओडिशा बार्डर से लगा हुआ है। इस बार्डर पर आधा किमी दूर ग्राम कोलेंग, तिरिया, चार किमी दूर नगलनार और सात किमी दूर कोलावाडा स्थित है। ये गांव आधे छत्तीसगढ़ और आधे ओडिशा के माने जाते हैं। नक्सलियों का इन गांवों पर पूरी तरह से राज है, क्योंकि यहां पुलिस या सरकारी नुमाइंदों का आना-जाना बिलकुल नहीं होता। इसके अलावा दरभा से लगे हुए ग्राम कतलगुर, चित्तरपडरा, कंदाना और एलिंगनार इलाके से लगे जंगल पुलिस की टोपोग्राफी से दूर हैं। सूत्रों के मुताबिक इन इलाकों में पुलिस ने कभी सर्चिंग की ही नहीं।
कांग्रेसियों पर हमले की महीनेभर पहले बनी योजना
 गांवों में नक्सलियों ने महीनेभर पहले गांव वालों की मदद से झीरम घाटी के घटनास्थल वाले इलाके में दो दर्जन से ज्यादा बड़े पेड़ काटे थे। इन पेड़ों को बाद में सुखाने के लिए छोड़ दिया गया। इन पेड़ों पर आग लगाकर इनसे सड़क ब्लॉक करने की तैयारी थी। ठीक इसी तरह गांवों में नक्सलियों ने बैठक लेकर उन्हें एक बड़े गोपनीय अभियान में शामिल होने का न्योता दिया था। इसकी तैयारी में ग्रामीणों ने अपने पारंपरिक हथियार चमकाकर तैयार किए थे। इसका खुलासा तब हुआ जब बुधवार को दरभा बाजार आए कुछ ग्रामीणों ने यह बात बताई। उन्होंने घटना से संबंधित तो कोई जानकारी नहीं दी, लेकिन बैठकों और तैयारी के बारे में जरूर संकेत दिया। बताते हैं कि नक्सलियों का अलग-अलग 20-30 लोगों का दल अलग-अलग गांवों में बंट गया था। गांव वालों ने उनके भोजन-पानी का इंतजाम किया।
क्सलियों के लिए वारदात कर भागना बेहद आसान
 दरभा के झीरम घाटी, सुकमा जिले से लगे जंगल और बार्डर इलाके में नक्सली बड़ी आसानी से वारदात कर भाग निकलते हैं। अगर वो भागे न भी तो, उन्हें फर्क नहीं पड़ता। क्योंकि इन इलाकों में पुलिस की पार्टियां सर्चिंग की अब तक योजना नहीं बना पाई हैं। दरभा से लगे कूकानार और एक इलाके में सुरक्षा बलों का कैंप है, लेकिन इन कैंपों से जवान सड़कों पर सर्चिंग करते हैं। वहां से पार्टी फिर लौट आती है। जंगल के भीतर सर्चिंग नहीं करने की वजह से वहां नक्सलियों की सक्रियता बेहद बढ़ गई है। आने वाले समय में जब पुलिस कैंप का विस्तार कर अपनी पैठ बनाने की कोशिश करेगी, तब तक नक्सली भी इन इलाकों में अपना कैंप स्थापित कर चुके होंगे।
 

दरभा बना दूसरा अबूझमाड़, इस रास्ते से भी डरने लगे लोग

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थाने से 1 किमी दूर नक्सलियों का स्मारक, झंडे 
 दरभा थाने से महज एक किमी की दूरी पर नक्सलियों ने अपने शहीदों का स्मारक बनवा रखा है। इस स्मारक के आगे उन्होंने अपने माओवाद संकेतक भी लगा रखे हैं। इतना ही नहीं दरभा से लगे तमाम गांवों में नक्सलियों का लाल झंडा लहराता है। जहां जाकर इसे हटाने की पुलिस हिम्मत नहीं जुटा पाती। पहाडिय़ों में नक्सलियों ने स्लोगन लिखकर रखे हैं। थाने से लगे हुए स्मारक को बने ज्यादा साल नहीं बीते, लेकिन 8-10 मीटर लंबे इस स्मारक के निर्माण कार्य को रोकने की किसी में हिम्मत नहीं हुई।

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