Friday, June 28, 2013

बरसात में नक्सलियों पर मौत का साया

गहरे घने जंगलों में छिपे नक्सलियों को बारिश के आते ही एक भयंकर खतरे से निपटना होता है। यह खतरा होता है सांपों के काटने का। जिन थोड़े—बहुत लोगों ने रेड कॉरिडोर की दुनिया देखी है वह बताते हैं कि नक्सली अमूमन छोटे अस्थाई टेंटों में रहते हैं। कई बार तो साधारण बरसाती से ही रहने लायक जगह बनाई जाती है। बारिश में जंगल में विचरने वाले खतरनाक सांप इनके लिए एक बड़ा खतरा साबित होते हैं।
पिछली घटनाओं पर नजर डालें तो सरगुजा के जंगलों में कुछ साल पहले सब जोनल कमांडर राहुल तिवारी  की सांप काटने से मौत हो गई थी। बस्तर इलाके में भी एक बडे़ नक्सली नेता की मौत मौसमी बीमारी के चलते बारिश में हो गई थी। इसलिए नक्सली बारिश में ऐसे स्थान पर रहना नहीं चाहते, जहां रहकर वे दुनिया से कट जाएं। बरसात के दिनों में बीहड़ में जहां जहरीले जीवों से खतरा बना रहता है, वहीं रास्ते बंद हो जाने से बीमार होने पर इलाज नहीं मिल पाता, जिससे जान जाने का खतरा बना रहता है। इसलिए वे अंदरूनी क्षेत्रों से बाहर आ जाते हैं। बताया जाता है कि बारिश से पहले अंदरूनी क्षेत्रों से सुरक्षित इलाकों में जाने के लिए नक्सली जनपितुरी सप्ताह मनाया जाता है। इस बीच उनकी गतिविधियां बढ़ जाती हैं और वे ताबड़तोड़ हमला करते हैं।
जंगलों में नक्सलवादियों की कई अस्थायी डिस्पेंसरी संचालित है। इस बात का खुलासा राजनांदगांव जिले में पुलिस की सर्चिंग के दौरान हुआ था। पुलिस की गत् दिनों सर्चिंग के दौरान कातुलझोरा में नक्सलियों से मुठभेड़ हुई थी। मुठभेड़ के बाद पुलिस ने यहां से बड़ी तादाद में एंटी स्नैक वैक्सीन व अन्य दवाईयां बरामद की थी। नक्सली एक तरह से अस्थायी व चलित अस्पताल चलाते हैं। उनके पास मौसमी बीमारियों के अलावा दूसरी अन्य बीमारियों की दवाइयां व इंजेक्शन उपलब्ध होते हैं। नक्सलियों को बरसात के दिनों में सबसे ज्यादा खतरा बिच्छू, सर्प व अन्य जहरीले जीव जंतुओं से रहता है।

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