Saturday, June 15, 2013

बिल्डर बाजपेयी के जमीन फर्जीवाड़े में सफेदपोश और कई अफसर


कमल विहार प्रोजेक्ट की जमीन को फर्जी तरीके से दबाने के मामले में कानून के घेरे में आए बिल्डर संजय बाजपेयी से पूछताछ में कई अहम खुलासे हुए हैं। पुलिस सूत्रों का कहना है कि अकेले बाजपेयी ने फर्जीवाड़े को अंजाम नहीं दिया, बल्कि उसके इर्द-गिर्द मंडराने वाले जमीन दलाल, राजस्व विभाग और नगर निगम से जुड़े अधिकारी-कर्मचारियों की मिलीभगत से सरकारी जमीन बेचने का  खेल हुआ है। पुलिस ने संदेह के घेरे में आए राजस्व अधिकारियों से पूछताछ करने की तैयारी की है।
जानकारों का कहना है कि नगर तथा ग्राम निवेश के अफसरों ने बाजपेयी बिल्डर्स के सारे प्रोजेक्ट का ले-आउट आंख मूंदकर पास किया। सारे काम को ओके कराने में एक मंत्री के वाहन चालक के भाई की भूमिका सामने आई है। यह वही शख्स है जिसने बिल्डर बाजपेयी के डूंडा, सेजबहार और बोरियाकला में निर्माणाधीन प्रोजेक्ट को लांच कराने से लेकर प्लाट व मकान बेचने के लिए कई लुभावने ऑफर से निवेशकों को रिझाया और उनसे लाखों रुपए बटोरे। बिल्डर संजय बाजपेयी ने पूछताछ में कहा कि उसे अंधेरे में रखकर सरकारी जमीन पर कब्जा करने के मामले में फंसाया गया है। उसे बाद में इस फर्जीवाड़े की जानकारी हुई तब उसने सबकुछ ठीक करने की कोशिश शुरू की थी। इससे फर्जीवाड़ा करने वाले लोगों की उनकी कलई खुलने का डर सताने लगा और उन्होंने उस पर ही सारा दोष मढ़ दिया। बाजपेयी ने फर्जीवाड़े के खेल में मंत्री के वाहन चालक के भाई की संदिग्ध भूमिका के बारे में पुलिस अफसरों को जानकारी दी है। हालांकि इस बारे में पूछे जाने पर अफसरों ने जांच का हवाला देकर जानकारी देने से इंकार कर दिया।
एएसपी डा.लाल उमेद सिंह का कहना है कि शिकायत के आधार पर विभिन्ना बिंदुओं पर जांच चल रही है। बिल्डर से पूछताछ चल रही है। फिलहाल बिल्डर के दफ्तर और नगर तथा ग्राम निवेश दफ्तर से जब्त दस्तावेजों का भौतिक सत्यापन, तस्दीक कर रहे हैं। जरूरत पड़ने पर रिमांड बढ़ाने कोर्ट से अनुमति लेंगे।
पत्नी का किया बचाव
पुलिस रिमांड के दूसरे दिन शनिवार को दिनभर कोतवाली सीएसपी ओपी शर्मा, टीआई आरके दुबे समेत अन्य पुलिस अफसरों ने बिल्डर संजय बाजपेयी से पूछताछ की। उसने अपनी पत्नी सरिता बाजपेयी का बचाव करते हुए कहा कि वह अपने कुछ सहयोगियों के साथ सारा काम खुद देखता था। उसके किसी भी प्रोजेक्ट में पत्नी की कोई भूमिका नहीं रही है। उसने साथ काम करने वाले कुछ सहयोगियों के नाम उगले हैं। आने वाले समय में उनसे भी पूछताछ करने के संकेत अफसरों ने दिए हैं।
डूंडा ले जाकर की जांच
बिल्डर बाजपेयी को शनिवार दोपहर पुलिस टीम डंूडा स्थित उसके स्वागत विहार कॉलोनी लेकर गई, जहां दिनभर उसके दफ्तर से जब्त दस्तावेजों का मौके पर भौतिक सत्यापन किया गया। मौदहापारा टीआई आरके दुबे ने बताया कि जांच के दौरान सरकारी जमीन पर कब्जा करना पाया गया, लेकिन वहां कंस्ट्रक्शन नहीं किया गया है। कुछ जमीन पर नाली व रोड का निर्माण जरूर किया गया है। निरीक्षण में एएसपी सिटी डा.लाल उमेद सिंह के साथ राजस्व विभाग के अधिकारी-कर्मचारी, टीआई पुरानी बस्ती राजेश चौधरी, आरके दुबे व पुलिस बल साथ था।
बैंकों ने नहीं दी जानकारी
बिल्डर संजय के बैंक खाते को सीज करने पुलिस ने पिछले दिनों 24 बैंकों को नोटिस जारी किया था। प्रबंधकों से लेनदेन के बारे में भी जानकारी मांगी गई थी, लेकिन अभी तक एक भी बैंक की तरफ से पुलिस को जानकारी नहीं दी गई है। टीआई ने बताया कि नगर तथा ग्राम निवेश के संयुक्त संचालक संदीप बागड़े का फिर से बयान दर्ज किया गया।
अफसरों को बचाने लीपापोती-कन्हैया
प्रदेश कांग्रेस कमेटी व्यापार प्रकोष्ठ के अध्यक्ष कन्हैया अग्रवाल ने आरोप लगाया है कि बहुचर्चित जमीन घोटाले में राजस्व विभाग के अफसरों और राजनेताओं के जुड़े होने के कारण पूरे मामले को रफा-दफा करने के उच्चस्तरीय प्रयास किए जा रहे हैं। उनका कहना है कि अफसरों को बचाने के लिए जांच की आड़ में पुलिस लीपा-पोती कर रही है। उन्होंने कहा कि सरकारी जमीन पर कब्जा कर उसे बेचने के मामले में दो साल बाद अपराध कायम किया गया। बिल्डर ने खुद से जमीन पर कब्जा नहीं जमाया, बल्कि इस काम में मंत्री से लेकर अफसर तक शामिल हैं। केवल एक अधिकारी को निलंबित कर सरकार असली घोटाला करने वालों को संरक्षण दे रही है।
अफसरों को बचाने षड्यंत्र
कांग्रेस की जनसमस्या निवारण प्रकोष्ठ के अध्यक्ष रमेश चंद्राकर, शिवसेना के कार्यकारिणी अध्यक्ष शीबू शुक्ला ने जारी एक बयान में कहा है कि केवल एक बिल्डर को मोहरा बनाकर अफसरों को बचाने का षड्यंत्र किया जा रहा है। इसमें संबंधित विभाग के सारे अफसरों की मिलीभगत है। राजधानी के सभी बिल्डरों के प्रोजेक्ट की जांच की जाए तो बड़े पैमाने पर अरबों का जमीन घोटाला उजागर होगा। इसके लिए उच्च स्तरीय जांच कमेटी का गठन किया जाना चाहिए।
  फर्जी दस्तावेजों से सरकारी जमीन पर कब्जा करने वाले बिल्डर संजय बाजपेयी पर जुर्म दर्ज कर उसकी तलाश की जा रही थी। यह भी आशंका जताई जा रही थी कि बावजेपी देश से बाहर भाग चुका है। प्रशासन ने बिल्डर के खिलाफ लुक आउट सर्कुलर जारी किया था। लेकिन गुरुवार को सामने आने से पता चला कि वह राजधानी में ही छिपा हुआ था।
क्या था मामला
 17 एकड़ सरकारी जमीन पर अवैध कब्जा करने के बाद फर्जी दस्तावेज तैयार किए गए और उसी के आधार पर 238 लोगों को जमीन बेची गई। आधे से ज्यादा लोगों ने रजिस्ट्री भी करवा ली है। इन भूखंडों की कीमत करीब 23 करोड़ रुपए है। इन  लोगों को अपने पैसे डूबने का डर सता रहा है। राज्य सरकार ने कब्जा करने वाले सभी लोगों को जमीन से बेदखल करने का मन बना लिया है। पूरे मामले का मास्टर माइंड संजय बाजपेयी को माना जा रहा है।
सीमांकन रिपोर्ट में बाजपेयी के फर्जीवाड़े इस तरह

ग्राम डूंडा- बाजपेयी ने डूंडा में नाला खसरा नंबर 574 के वास्तविक स्थिति को परिवर्तित कर नाला की चौड़ाई कम कर दी है। नाला की जमीन को मिलाकर घ्लॉट, रोड व रास्ता बनाया गया है। नाला की सीमा में 8 पक्के मकान बनाए गए हैं। उक्त खसरा नंबर में 0.910 हेक्टेयर में कब्जा किया गया है।
 ग्राम सेजबहार- यहां नाला खसरा नंबर 279 के वास्तविक स्थिति को परिवर्तित कर घ्लॉट काटा गया है। रोड व रास्ता भी निकाला गया है। यहां 0.310 हेक्टेयर में अवैध कब्जा किया गया है। नाले की शेष भूमि को अन्यत्र नाला बनाकर परिवर्तित कर दिया गया है।
 ग्राम बोरियाकला- सरकारी भूमि खसरा नंबर 741 (घास) के भाग 0.108 हेक्टेयर पर अवैध कब्जा कर छह पक्के मकान बनाए गए हैं। खसरा नंबर 728 रकबा 0.999 हेक्टेयर नाला की स्थिति में परिवर्तित कर 12-13 फीट की चौड़ाई में नाला बनाया गया है। इसे कंक्रीट से ढंक दिया गया है। शेष भाग में घ्लॉटिंग कर रोड बनाया गया है। खसरा नंबर 742, 743 में क्रमशघ् 0.458 हेक्टेयर व 0.247 हेक्टेयर शासकीय भूमि में सड़क, नाली व बिजली खंभा लगाकर अतिक्रमण किया गया है।
 24.285 एकड़ जमीन पर कब्जा
 बाजपेयी ने डूंडा, सेजबहार व बोरियाकला की कुल 9.714 हेक्टेयर यानी 24.285 एकड़ सरकारी भूमि पर कब्जा किया है। यहां 250 से अधिक घ्लॉट काटा गया है। इसे अपनी भूमि बताते हुए लोगों को बेचकर धोखाधड़ी की गई।
जांच से बचने की कोशिश
 न्यू स्वागत विहार प्रोजेक्ट में जमीन के फर्जीवाड़े की हाईपावर कमेटी से जांच शुरू हो जाने से परेशान संजय बाजपेयी ने इसकी आंच से खुद को बचाने की भी कोशिश की थी। गत 24 मई को बाजपेयी ने नोटरी के यहां दिए गए शपथपत्र के साथ संयुक्त संचालक नगर एवं ग्राम निवेश में आवेदन कर दिया था। इसमें बोरियाकला, सेजबहार और डूंडा की जमीनों के लिए मिली अनुज्ञा के दस्तावेजों को संशोधित करने का आग्रह किया गया था। भास्कर के पास इस पत्र की प्रति भी है। बाजपेयी ने पत्र में लिखा है- इन गांवों में कालोनी निर्माण के लिए पेश ले-आउट प्लान और कॉलोनी विकास की अनुमति के समय भ्रमवश उन्होंने गलत दस्तावेज पेश कर दिए थे। बाजपेयी का कहना था कि जिन जमीनों का जिक्र है वह उनकी हैं या मौखिक सहमति के आधार पर लोगों से ली गई हैं। वैध स्वामित्व के अलावा उन्होंने अन्य भूमि पर न कोई प्लाटिंग की गई है और न बेची गई है। उन्होंने इसे मानवीय व लिपिकीय भूल मानते हुए नगर व ग्राम निवेश विभाग से कॉलोनी के विकास के लिए ले आउट व अनुज्ञा को वैध करने की मांग की थी।
  लोगों को सता रहा डर
 बिल्डर संजय बाजपेयी के जमीन फर्जीवाड़े में फंसे लोगों को अपनी मेहनत की कमाई डूबने का डर सता रहा है। डूंडा में बने मकानों और जमीन की खरीदी करने वाले लोगों का कहना है कि उन्होंने एक-एक रुपए जोड़कर भविष्य में बड़े कामों के लिए न्यू स्वागत विहार योजना में निवेश किया था ताकि उन्हें योजना में फायदा हो सके। लेकिन फर्जीवाड़ा सामने आने के बाद उन्हें अपने निवेश की फिक्र होने लगी है।
लोगों को सता रहा डर
 बिल्डर संजय बाजपेयी के जमीन फर्जीवाड़े में फंसे लोगों को अपनी मेहनत की कमाई डूबने का डर सता रहा है। डूंडा में बने मकानों और जमीन की खरीदी करने वाले लोगों का कहना है कि उन्होंने एक-एक रुपए जोड़कर भविष्य में बड़े कामों के लिए न्यू स्वागत विहार योजना में निवेश किया था ताकि उन्हें योजना में फायदा हो सके। लेकिन फर्जीवाड़ा सामने आने के बाद उन्हें अपने निवेश की फिक्र होने लगी है।
तूफानी तरक्की कह बावपेयी ने
 संजय बाजपेयी का कैरियर तूफानी रहा। रायपुर में ही पले-बढ़े संजय ने शुरुआती दिनों में कई अखबारों में काम किया। रियल एस्टेट के कारोबार में संजय वाजपेयी को अपेक्षाकृत नया खिलाड़ी माना जाता है, पर उनके पास पांच-सात सालों के अंदर इतने बड़े प्रोजेक्ट और जमीनों को खरीदने के लिए इतना पैसा कहां से आया, किसी को समझ में नहीं आ रहा।
 उसके बाद 1992 में कुम्हारी की केडिया डिस्टलरी में परचेज मैनेजर बन गए। दो साल बाद नौकरी छोड़ी और 1994 में स्टील फैक्ट्री का काम शुरू किया। पर कुछ दिनों बाद ही फैक्ट्री बंद करने की नौबत आ गई। राजिम-मगरलोड रोड पर ट्रैक्टर बेचने का काम भी ज्यादा दिन नहीं चल पाया। इसी बीच उनकी मुलाकात पूर्व पुलिस अफसर उदयराज सिंह परिहार से हुई। परिहार के 50 घ्लाटों की मार्केटिंग से उनकी जमीन के धंधे में एंट्री हुई। उसके बाद वह जमीन के काम में लग गए। 1998 में पहली बार वाजपेयी ने रियल एस्टेट के कारोबार में प्रवेश किया। टाटीबंध में उन्होंने स्वागत विहार कालोनी बनाई। उसके बाद  2005 में डूंडा में न्यू स्वागत विहार जैसा 288 एकड़ का बड़ा प्रोजेक्ट जब उन्होंने लांच किया, तो शहर के रियल एस्टेट कारोबार में खलबली मच गई। इस प्रोजेक्ट में विवाद होने के पहले ही वह सेजबहार में मयूर वाटिका, आयुषी विहार जैसे प्रोजेक्ट लांच कर चुके हैं। करीब सालभर पहले भी न्यू स्वागत विहार प्रोजेक्ट की जमीन में हुए फर्जीवाड़े का मामला सामने आया था। इस बारे में शिकायतें हुईं थीं। संजय बाजपेयी पेशे से व्यापारी नहीं थे। इसके बावजूद दो साल पहले छत्तीसगढ़ चेंबर में उन्हें युवा चेंबर का प्रदेशाध्यक्ष बनाया गया। इस दौरान वे बालिका बचाओ अभियान के साथ-साथ कई सामाजिक कार्यों से जुटे रहे। उनकी पत्नी सरिता वाजपेयी आध्यात्मिक गुरु श्रीश्री रविशंकर की प्रदेश में प्रमुख शिष्या हैं। श्री श्री रविशंकर से संजय की मुलाकात रायपुर में ही 2004 में हुई थी। वे शहर की कई सामाजिक संस्थाओं के संरक्षक और अध्यक्ष भी हैं। बालिका भ्रूण हत्या को रोकने से लेकर मेधावी छात्रों के सम्मान जैसे कई अभियानों से उन्होंने खुद को जोड़ रखा है। संजय के करीबी लोगों का कहना है कि वे रायपुर दक्षिण या उत्तर सीट से विधानसभा से चुनाव लडऩे की तैयारी कर रहे थे। किस पार्टी से यह उन्होंने साफ नहीं किया था। उनके समर्थक संजय बाजपेयी फैंस क्लब के नाम से लोगों को जोडऩे का भी काम कर रहे थे। प्रोजेक्ट को लेकर जब हाल में विवाद हुआ, तभी बाजपेयी ने यही तर्क दिया था कि उनके राजनीति में आने की खबरों से परेशान विरोधी यह बवाल मचा रहे हैं। संजय बाजपेयी के कारनामे को लेकर फेसबुक पर भी बहस छिड़ गई है। सरकारी जमीन दबाने के आरोप में एफआईआर होने के बाद लोग बाजपेयी सामाजिक कामों को दिखावा करार दे रहे हैं।
निजी जमीन भी दबाई प्रोजेक्ट में
 बिल्डर संजय वाजपेयी ने अपने न्यू स्वागत विहार प्रोजेक्ट में डूंडा, सेजबहार व बोरियाकला में न सिर्फ सरकारी जमीन पर कब्जा किया, उन्होंने 55 हेक्टेयर से ज्यादा निजी जमीन भी अपने प्रोजेक्ट में दबा ली। प्रोजेक्ट के विवादित हिस्से में जितनी उनकी खुद की जमीन नहीं है उतनी तो दूसरों की कब्जाई हुई जमीन है। यह खेल उन्होंने नगर व ग्राम निवेश विभाग की मदद से किया। यह सारी बातें हाई पॉवर कमेटी की जांच में वाजपेयी के फर्जीवाड़े सामने आए हैं। वाजपेयी ने जांच में इन बातों के सामने आने की संभावना को देखते हुए पिछले महीने 25 तारीख को ही नगर एवं ग्राम निवेश विभाग में शपथपत्र के साथ एक आवेदन देकर रिकार्ड को दुरुस्त करने की मांग की थी।
निजी जमीन भी दबाई प्रोजेक्ट में
 बिल्डर संजय वाजपेयी ने अपने न्यू स्वागत विहार प्रोजेक्ट में डूंडा, सेजबहार व बोरियाकला में न सिर्फ सरकारी जमीन पर कब्जा किया, उन्होंने 55 हेक्टेयर से ज्यादा निजी जमीन भी अपने प्रोजेक्ट में दबा ली। प्रोजेक्ट के विवादित हिस्से में जितनी उनकी खुद की जमीन नहीं है उतनी तो दूसरों की कब्जाई हुई जमीन है। यह खेल उन्होंने नगर व ग्राम निवेश विभाग की मदद से किया। यह सारी बातें हाई पॉवर कमेटी की जांच में वाजपेयी के फर्जीवाड़े सामने आए हैं। वाजपेयी ने जांच में इन बातों के सामने आने की संभावना को देखते हुए पिछले महीने 25 तारीख को ही नगर एवं ग्राम निवेश विभाग में शपथपत्र के साथ एक आवेदन देकर रिकार्ड को दुरुस्त करने की मांग की थी।
बैंक खाते सील हैं बाजपेयी के
 पुलिस ने वांटेड बिल्डर संजय बाजपेयी के बैंक खातों को सील करने का सरकुलर जारी कर दिया है। अभी यह स्पष्ट नहीं है कि बाजपेयी के कौन-कौन से बैंकों में खाते हैं। इस वजह से शहर के सभी बैंकों को नोटिस जारी किया गया है। बैंक प्रबंधन से कहा गया है कि अगर बिल्डर के अकाउंट है तो उसके लेन-देन का पूरा रिकार्ड भी पुलिस की जांच टीम को दिया जाए।पुलिस अधिकारियों को उम्मीद है कि बाजपेयी के बैंक अकाउंट से कई अनसुलझे सवालों के जवाब मिलेंगे। यह भी पता चल जाएगा कि उसके खातों में कब-कब किसने और कितनी रकम डाली है। इससे पुलिस को जांच की दिशा आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी। बैंक के ट्रांजक्शन से यह भी पता चलेगा कि बाजपेयी का लेन-देन किसके साथ चल रहा था। सोमवार को सुबह से पुलिस नोटिस जारी करने की प्रक्रिया में जुट गई थी। दोपहर 12 बजे तक सभी बैंकों को नोटिस भेज दिया गया। मंगलवार तक बैंकों की रिपोर्ट पुलिस को प्राघ्त होने की उम्मीद है। पुलिस बाजपेयी की संपत्ति का ब्यौरा भी प्राघ्त करने में जुटी है। उसकी कहां और कितनी संपत्ति है यह पता लगाया जा रहा है। अफसरों ने संकेत दिए हैं कि जल्द ही बाजपेयी के पकड़े न जाने की दशा में उसकी संपत्ति सील की जाएगी।
 बैंक की भूमिका भी संदिग्ध
 सरकारी जमीन पर गोलमाल करने के बाद संजय बाजपेयी के फर्जी दस्तावेजों के आधार पर बैंक ने भी लोगों को फायनेंस भी कर दिया। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने संजय बाजपेयी के प्रोजेक्ट पर पांच से छह बार कैंप किया। हर बार लोगों को एसबीआई से फायनेंस कराने की सुविधा उपलब्ध कराई गई।
 दैनिक भास्कर की जांच में इस बात का खुलासा हुआ है कि स्वागत विहार में जमीन और डुघ्लेक्स मकान खरीदने वाले 70 फीसदी लोगों को एसबीआई ने फायनेंस किया। इसमें से कई जमीन ऐसी हैं जो फर्जी दस्तावेजों से तैयार की गई थी। सारे कागज फर्जी होने के बाद उन पर फायनेंस कैसे हो गया इसे लेकर अब कई सवाल खड़े हो रहे हैं। इधर दूसरी ओर एसबीआई के आला अधिकारी इस बात से अपना पल्ला झाड़ रहे हैं कि बैंक ने ऐसी किसी भी जमीन पर फायनेंस नहीं किया है जो विवादों में घिरी है। अपने अफसरों की जांच कराने के बजाय एसबीआई ने सभी को क्लीन चिट दे दी।





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