0 पुरातत्व विज्ञान और प्राचीन इतिहास के पितामह थे महासमुंद के जन्मे प्रो.अहमद हसन दानी
0 35 भाषाओँ के जानकार और 30 से ज्यादा किताबों के लेखक पर ,पाकिस्तान बनाएगा डाक्यूमेंट्री
छत्तीसगढ़ के महासमुंद में जन्म लेकर ,बनारस में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास विभाग की कक्षाओं से होते हुए समूचे पाकिस्तान और बांग्लादेश में छा जाने वाले अहमद दानी को अब और नहीं भुलाया जा सकेगा ।मध्य और दक्षिण एशिया में प्राचीन इतिहास एवं पुरातत्व विज्ञान के गुरु कहे जाने वाले प्रो.अहमद हसन दानी के जीवन पर इस्लामाबाद का "तक्षशिला इंस्टीट्युट आफ एशियन सिविलाइजेशन "एक डाक्यूमेंट्री बनाने जा रहा है ।जिसकी शूटिंग कजाकिस्तान ,पाकिस्तान ,बांग्लादेश के अलावा छत्तीसगढ़ में भी किये जाने का प्रस्ताव है। महासमुंद के बसना गाँव में जन्मे अहमद हसन दानी काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के प्रथम मुस्लिम परास्नातक थे। तक्षशिला और मोहनजोदड़ों की खुदाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले दानी को सिन्धु घाटी के पूर्व की सभ्यता एवं उत्तरी पाकिस्तान स्थित रहमान ढेरी से सम्बंधित खोजों के लिए प्रमुख रूप से जाना जाता रहा है । बंटवारे के बाद वे पाकिस्तान चले गए ।दुनिया के लगभग आधा दर्जन विश्वविद्यालयों में अपनी सेवाएँ देने वाले अहमद दानी ने ही पाकिस्तान और बांग्लादेश के विश्वविद्यालयों में पुरातत्व विज्ञान को एक विषय के रूप में स्थापित किया । देश-विदेश में कई बड़े सम्मानों से नवाजे गए दानी की 2009 में इस्लामाबाद में ही मौत हो गई ।अहमद हसन दानी के चचेरे भाई और अभी महासमुंद में रह रहे तौकीर सरवर दानी बताते हैं कि वह जिंदगी भर छत्तीसगढ़ और ख़ास तौर से अपने गांव से लगाव नहीं छोड़ पाए । अपनी मृत्यु से पहले दानी साहब जब भी भारत आये अपने गांव जाना नहीं भूले ,वो जब भी आते अपने विद्यालय "उत्तर बुनियादी स्कूल "जरुर जाते और वहां बच्चों की कक्षाएं लेते । तौकीर बताते हैं "हिंदुस्तान के विश्वविद्यालयों में कभी भी किसी लेक्चर का उन्होंने पैसा नहीं लिया ,वो संस्कृत में भी परास्नातक थे शायद इस बात पर कम लोग विश्वास करें कि उन्होंने मंत्रोच्चार से दर्जनों हिन्दू शादियाँ भी कराई थी ।वो अहमद दानी ही थे जिन्होंने पाकिस्तान के इतिहास के बारे में 2005 में जर्मन रेडियो को दिये एक साक्षात्कार में स्वीकार किया कि पाकिस्तान के इतिहासकार ,तथ्यों को तोडकर प्रस्तुत करने के दबाव से कभी मुक्त नहीं रहे हैं । उनके एक शिष्य बताते हैं कि दानी साहब की खासियत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वो संस्कृत और हिंदी समेत 35 भाषाएं बोलना जानते थे । अहमद दानी का साफ़ तौर पर मानना था कि गंगा के मैदानी इलाकों का सिन्धु घाटी की सभ्यता के विकास में किसी प्रकार का योगदान नहीं रहा है । उन्होंने 30 से ज्यादा किताबें लिखी । पं. रविशंकर विश्वव्दियालय में प्राचीन इतिहास एवं संस्कृति विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ दिनेश नंदिनी परिहार कहती है ब्राम्ही लिपि के विकास में उनका अध्ययन अद्वितीय है ।
दिल्ली विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के प्रोफ़ेसर आर सी ठकरान कहते हैं प्राचीन इतिहास और पुरातत्व विज्ञान के अध्ययन में अहमद दानी के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता ,आज भी देश के विश्वविद्यालयों में उनका लिखा पढ़ा और पढाया जा रहा है ।पाकिस्तान तो आज बना है ,उनकी नजर से देखा गया भारत का इतिहास महान है ।प्रो .आर .सी ठकरान
इतिहास विभाग
दिल्ली विश्वविद्यालय
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