Sunday, July 12, 2009

छोटे राज्यों में दर्जनों विवि.

शिक्षा की स्थिति छत्तीसगढ़ राज्य में तत्कालीन मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने निजी विश्र्वविद्यालय खोलने की वैधानिक प्रक्रिया शुरू की थी और एक वर्ष के भीतर ही सौ से भी अधिक विश्र्वविद्यालय हो गये थे। अब तो लगता है कि भारत के प्रत्येक राज्य में अजीत जोगी को अपना माडल स्वीकार कर लिया है। छोटे राज्यों में दर्जनों विवि. प्रकट हो गये हैं और राज्य सरकार इन्हें वैधानिक कवच प्रदान करती है। अब तो उच्चतम न्यायालय ने भी अपनी राय दे दी है कि निजी विवि. सरकार से कोई पैसा नहीं लेते हैं इसलिए सरकार भी उनके फीस के ढांचे में बहुत अधिक दखलअंदाजी नहीं कर सकती। इस कारण निजी विवि. को और भी मनमानी करने का अवसर मिल जाता है। एक ओर निजी विवि. और दूसरी ओर सरकार द्वारा विदेशी विवि. को भारत में अपने केन्द्र खोलने की अनुमति देने पर विचार। इन दोनों के बीच में आने वाले समय में शिक्षा की क्या गति होने वाली है इसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। विगत दिनों रायपुर में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की केन्द्रीय कार्यकारिणी ने इस स्थिति को शिक्षा के बाजारीकरण का नाम दिया है। यह उचित ही जान पड़ता है । शिक्षा को बाजार के हवाले करके भारत सरकार जिस प्रकार का भारत बनाना चाहती है वह अमेरिका के हितों के लिए तो ठीक हो सकता, लेकिन सनातन भारत के हितों के लिए नहीं। स्वामी गोपाल आंनद बाबा चितरपुर, रामगढ़ देवी-देवताओं का अपमान अमेरिका की एक बीयर कंपनी लास्ट ब्रेवली ने अपनी बीयर की बोतल पर हिन्दुओं के आराध्य भगवान गणेश की तस्वीर छापकर दुनिया के समस्त हिन्दुओं की धार्मिक भावनाओं को चोट पहुंचायी है इसके पहले भी कई बार विदेशों में हिन्दू देवी-देवताओं के चित्र जूत्ते-चप्पलों, टायलेट पेपर जैसे उत्पादों पर छापकर हिन्दुओं को अपमानित करने का दु:साहस किया जाता रहा है। विदेशियों की इस विकृत मानसिकता को स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से ही भारतीय राजनीति की दुर्बलता ने बढ़ावा दिया है। देश की राजनीति अगर देश के प्राचीन गौरव, संस्कृति, उन्नत परंपरा, मान विन्दुओं की रक्षा नहीं कर सकती तो ऐसे में पग-पग पर देश को अपमानित होना पड़ेगा। इस तरह हिन्दू देवी-देवताओं, परंपराओं, मानविन्दुओं के अपमान के लिए भारत सरकार की कमजोरी और देश विरोधी राजनीति ही दोषी है। भारत सरकार को कठोर कदम उठाते हुए ऐसी घृणित घटनाओं की पुनरावृति रोकने के उपाय करने चाहिए। आवश्यकता होने पर अपनी नीति में परिवर्तन कर देश की मर्यादा की रक्षा करनी चाहिए। ऐसा नहीं होने पर देश के बहुसंख्यकों की प्रतिक्रिया को संभालना कठिन होगा। स्पष्ट है कि मनमोहन सिंह दो सौ प्रतिशत फेल अर्थशास्त्री हैं और इनकी आर्थिक नीतियां जन उद्घारक नहीं, बल्कि जन संहारक, पूंजीपति उद्घारक एवं राष्ट्र को चतुर्दिक गुलाम बनाने वाली है। इनकी असफलता का पहला प्रमाण तो यही है कि जहां महंगाई दर शून्य से नीचे दिखाई जा रही है वहीं महंगाई सातवें आसमान के ऊपर पहुंच चुकी है, जिसके कारण खाद्य पदार्थ आम जनता की पहुंच से दूर होते जा रही है। इनकी असफलता का दूसरा प्रमाण लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ना है। यदि ये सफल प्रधानमंत्री एवं अर्थशास्त्री होते तो सीना तानकर जनता के बीच जाते और जीतते। चूंकि ये पूर्णत: फेल प्रधानमंत्री एवं अर्थशास्त्री हैं। इसलिए जनता को मुंह दिखाने के डर से ये चोर दरवाजे से प्रधानमंत्री बने। यह इनकी कायरता का भी प्रमाण है। मनमोहन सिंह एक ऐसे प्रधानमंत्री हैं जो आम जनता के सिर से छत, तन से लंगोटी और मुंह से निवाला छीनकर व्यपारियों, पूंजीपतियों एवं उद्योगपतियों को चमकाने और विदेशी आकाओं को खुश कर देश को गुलाम बनाने में यकीन करते हैं। जिस व्यक्ति के नेतृत्व में आम जनता को प्याज तक नसीब नहीं हो रहा है उनका समर्थन करना जनहित एवं राष्ट्रहित के विरुद्घ है। सूर्यदेव चौधरी, धुर्वा मानवीय संवेदनाओं का अभाव लोगों में मानवीय संवेदनाओं का अभाव है। आज का मानव काफी चालाक, मतलबी और अवसरवादी हो गया है। क्षमा, दया, प्रेम, सहिष्णुता, त्याग, शांति, अहिंसा, बंधुत्व, भाईचारा जैसे गुणों से मनुष्य को अब कोई लेना-देना नहीं। गलाकाट के इस युग में आज का मानव बेहिसाब गलत सही तरीके से अपना काम निकालने में लगा हुआ है। दूसरों के अधिकारों व मानवता को अपने पैरों तले रौंदते व कुचलते जा रहा है। संवेदनाओं को पूर्णरूपेण आप्लावित एकपूर्ण व कालजयी मानव बनने की नितांत आवश्यकता है।

Wednesday, July 8, 2009

शिक्षा की स्थिति


छत्तीसगढ़ राज्य में तत्कालीन मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने निजी विश्र्वविद्यालय खोलने की वैधानिक प्रक्रिया शुरू की थी और एक वर्ष के भीतर ही सौ से भी अधिक विश्र्वविद्यालय हो गये थे। अब तो लगता है कि भारत के प्रत्येक राज्य में अजीत जोगी को अपना माडल स्वीकार कर लिया है। छोटे राज्यों में दर्जनों विवि. प्रकट हो गये हैं और राज्य सरकार इन्हें वैधानिक कवच प्रदान करती है। अब तो उच्चतम न्यायालय ने भी अपनी राय दे दी है कि निजी विवि. सरकार से कोई पैसा नहीं लेते हैं इसलिए सरकार भी उनके फीस के ढांचे में बहुत अधिक दखलअंदाजी नहीं कर सकती। इस कारण निजी विवि. को और भी मनमानी करने का अवसर मिल जाता है। एक ओर निजी विवि. और दूसरी ओर सरकार द्वारा विदेशी विवि. को भारत में अपने केन्द्र खोलने की अनुमति देने पर विचार। इन दोनों के बीच में आने वाले समय में शिक्षा की क्या गति होने वाली है इसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। विगत दिनों रायपुर में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की केन्द्रीय कार्यकारिणी ने इस स्थिति को शिक्षा के बाजारीकरण का नाम दिया है। यह उचित ही जान पड़ता है । शिक्षा को बाजार के हवाले करके भारत सरकार जिस प्रकार का भारत बनाना चाहती है वह अमेरिका के हितों के लिए तो ठीक हो सकता, लेकिन सनातन भारत के हितों के लिए नहीं। स्वामी गोपाल आंनद बाबा चितरपुर, रामगढ़ देवी-देवताओं का अपमान अमेरिका की एक बीयर कंपनी लास्ट ब्रेवली ने अपनी बीयर की बोतल पर हिन्दुओं के आराध्य भगवान गणेश की तस्वीर छापकर दुनिया के समस्त हिन्दुओं की धार्मिक भावनाओं को चोट पहुंचायी है इसके पहले भी कई बार विदेशों में हिन्दू देवी-देवताओं के चित्र जूत्ते-चप्पलों, टायलेट पेपर जैसे उत्पादों पर छापकर हिन्दुओं को अपमानित करने का दु:साहस किया जाता रहा है। विदेशियों की इस विकृत मानसिकता को स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से ही भारतीय राजनीति की दुर्बलता ने बढ़ावा दिया है। देश की राजनीति अगर देश के प्राचीन गौरव, संस्कृति, उन्नत परंपरा, मान विन्दुओं की रक्षा नहीं कर सकती तो ऐसे में पग-पग पर देश को अपमानित होना पड़ेगा। इस तरह हिन्दू देवी-देवताओं, परंपराओं, मानविन्दुओं के अपमान के लिए भारत सरकार की कमजोरी और देश विरोधी राजनीति ही दोषी है। भारत सरकार को कठोर कदम उठाते हुए ऐसी घृणित घटनाओं की पुनरावृति रोकने के उपाय करने चाहिए। आवश्यकता होने पर अपनी नीति में परिवर्तन कर देश की मर्यादा की रक्षा करनी चाहिए। ऐसा नहीं होने पर देश के बहुसंख्यकों की प्रतिक्रिया को संभालना कठिन होगा। स्पष्ट है कि मनमोहन सिंह दो सौ प्रतिशत फेल अर्थशास्त्री हैं और इनकी आर्थिक नीतियां जन उद्घारक नहीं, बल्कि जन संहारक, पूंजीपति उद्घारक एवं राष्ट्र को चतुर्दिक गुलाम बनाने वाली है। इनकी असफलता का पहला प्रमाण तो यही है कि जहां महंगाई दर शून्य से नीचे दिखाई जा रही है वहीं महंगाई सातवें आसमान के ऊपर पहुंच चुकी है, जिसके कारण खाद्य पदार्थ आम जनता की पहुंच से दूर होते जा रही है। इनकी असफलता का दूसरा प्रमाण लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ना है। यदि ये सफल प्रधानमंत्री एवं अर्थशास्त्री होते तो सीना तानकर जनता के बीच जाते और जीतते। चूंकि ये पूर्णत: फेल प्रधानमंत्री एवं अर्थशास्त्री हैं। इसलिए जनता को मुंह दिखाने के डर से ये चोर दरवाजे से प्रधानमंत्री बने। यह इनकी कायरता का भी प्रमाण है। मनमोहन सिंह एक ऐसे प्रधानमंत्री हैं जो आम जनता के सिर से छत, तन से लंगोटी और मुंह से निवाला छीनकर व्यपारियों, पूंजीपतियों एवं उद्योगपतियों को चमकाने और विदेशी आकाओं को खुश कर देश को गुलाम बनाने में यकीन करते हैं। जिस व्यक्ति के नेतृत्व में आम जनता को प्याज तक नसीब नहीं हो रहा है उनका समर्थन करना जनहित एवं राष्ट्रहित के विरुद्घ है। सूर्यदेव चौधरी, धुर्वा मानवीय संवेदनाओं का अभाव लोगों में मानवीय संवेदनाओं का अभाव है। आज का मानव काफी चालाक, मतलबी और अवसरवादी हो गया है। क्षमा, दया, प्रेम, सहिष्णुता, त्याग, शांति, अहिंसा, बंधुत्व, भाईचारा जैसे गुणों से मनुष्य को अब कोई लेना-देना नहीं। गलाकाट के इस युग में आज का मानव बेहिसाब गलत सही तरीके से अपना काम निकालने में लगा हुआ है। दूसरों के अधिकारों व मानवता को अपने पैरों तले रौंदते व कुचलते जा रहा है। संवेदनाओं को पूर्णरूपेण आप्लावित एकपूर्ण व कालजयी मानव बनने की नितांत आवश्यकता है।

Tuesday, July 7, 2009

आदिवासी क्षेत्रों से गायब होती लड़कियां
राज्य के आदिवासी इलाकों से गायब महिलाओं और लड़कियों को लेकर राज्य का पुलिस विभाग इन दिनों खासा परेशान है। राज्य का मुख्य विपक्षी दल इसे सरकार की नाकामयाबी बता रहा है, जबकि इस क्षेत्र में काम करने वाली स्वयं सेवी संस्थाएं उन दलालों पर कार्रवाई करने की मांग कर रही हैं, जो काम दिलाने के बहाने अवैध तरीके से लोगों को अपने साथ ले जाते हैं। छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले में रहने वाले सुखसाय इन दिनों अपनी 17 वर्षीय बेटी को लेकर परेशान हैं। आदिवासी इलाके में रहने वाले सुखसाय की बेटी को साल भर पहले एक प्लेसमेंट एजेंसी ने बेहतर काम दिलाने का वादा किया था तथा अपने साथ दिल्ली लेकर गई थी। इस घटना के कुछ महीने बाद जब सुखसाय ने अपनी बेटी की जानकारी लेनी चाही तब उसे न तो अपनी बेटी के बारे में जानकारी मिली और न ही उस प्लेसमेंट एजेंसी के बारे में। राज्य का आदिवासी बाहुल्य इलाका चाहे वह उत्तर का सरगुजा क्षेत्र हो या दक्षिण का बस्तर, इन दिनों इसी तरह की घटनाओं से दो चार हो रहा है। राज्य के पुलिस विभाग से मिली जानकारी के मुताबिक छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण से लेकर अब तक राज्य में पिछले नौ सालों में पुलिस ने गुमशुदगी के 34 हजार 691 मामले दर्ज किए हैं, जिनमें 18 हजार 787 महिलाएं और बालिकाएं शामिल हैं। हालंकि पुलिस ने 29 हजार 859 लोगों को खोज निकालने का दावा किया है, लेकिन सरकारी आंकड़ों के मुताबिक लगभग पांच हजार लोगों के बारे में पुलिस के पास कोई जानकारी नहीं हैं। इन पांच हजार लोगों में तीन हजार से ज्यादा संख्या महिलाओं और लड़कियों की है। पुलिस के आंकड़ों पर ही नजर डालें, तो राज्य के आदिवासी इलाके जिनमें उत्तर के रायगढ़, सरगुजा, जशपुर और कोरिया तथा दक्षिण के जगदलपुर, दंतेवाड़ा, कांकेर, बीजापुर, और नारायणपुर जिले शामिल है, से पिछले नौ सालों में पांच हजार 371 महिलाओं और लड़कियों की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज की गई। इनमें चार हजार 255 महिलाओं और लड़कियों को पुलिस ने खोज निकाला। पुलिस अभी 1116 गुमशुदा महिलाओं और लड़कियों की तलाश में है। यह आंकडे़ वह हैं जिनमे पुलिस ने गुमशुदगी दर्ज की है, लेकिन राज्य के उत्तर क्षेत्र के जिले सरगुजा, जशपुर और रायगढ़ के इलाके के लोग एक अलग तरह की समस्या का सामना कर रहे हैं। इन क्षेत्रों में प्लेसमेंट एजेंसी के लोग यहां आते हैं तथा यहां की महिलाओं और लड़कियों को बड़े शहरों में ऊंचे वेतन पर काम दिलाने का झांसा देकर अपने साथ ले जाते हैं। राज्य के जशपुर जिले में काम करने वाली स्वयं सेवी संस्था ग्रामीण विकास केंद्र के आंकड़ों पर गौर करें तो जिले के 259 गांवों की तीन हजार से ज्यादा महिलाएं और लड़कियां बड़े शहरों में काम के लिए गईं और गायब हो गईं। हालांकि बाद में इनमें से कइयों को ढूंढ निकाला गया और वापस भी लाया गया लेकिन अभी भी डेढ़ सौ से ज्यादा महिलाओं और लड़कियों के बारे में जानकारी नहीं है। ग्रामीण विकास केंद्र की संयोजिका सिस्टर सेवती पन्ना का कहना है कि राज्य के जशपुर और रायगढ़ जिले में दर्जनों ऐसी प्लेसमेंट एजेंसियां सक्रिय हैं जो यहां की लड़कियों को बड़े शहरों में काम के लिए ले जाती हैं और वहां उन्हें घरेलू काम के लिए भेज दिया जाता है। इन घरों से मिलने वाले आधे पैसे दलाल खा जाता है तथा आधा पैसा इन लड़कियों के पास बचता है। पन्ना कहती है कि बात यह नहीं है कि लड़कियों को घरों में नौकरानी का काम करना पड़ता है। बल्कि समस्या यह है कि कुछ ही भाग्यशाली लड़कियों को अच्छे मालिक मिल पाते हैं, अन्यथा इन्हें शारीरिक और मानसिक अत्याचार का सामना करना पड़ता है। वह कहती है कि ऐसे मामलों के अध्ययन के दौरान पाया गया कि दिल्ली और मुंबई जैसे बड़े शहरों में काम करने वाली कथित प्लेसमेंट एजेंसियां जो ज्यादातर धार्मिक नाम की रहती हैं लड़कियों के माता पिता के पास जाती है। धार्मिक नामों के कारण ही माता पिता झांसे में आ जाते हैं। वहीं कई मामलों में शहर की चमक में रहने की लालसा में लड़कियां स्वयं ही चली जाती हैं। सिस्टर पन्ना बताती हैं कि प्लेसमेंट एजेंसियां जब लड़कियों को यहां से बाहर ले जाती हैं, तो इनका नाम बदल देती हैं, जिससे इन्हें ढूंढने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। वह मांग करती हैं कि सरकार को सबसे पहले इन प्लेसमेंट एजेंसियों पर कड़ी कार्रवाई करना चाहिए। इधर राज्य के मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस का आरोप है कि राज्य सरकार ऐसे मामलों को लेकर गंभीर नहीं है। राज्य विधानसभा में इस मामले को कई बार उठा चुके पूर्व गृह मंत्री नंद कुमार पटेल का कहना है कि आदिवासी क्षेत्रों की महिलाओं और लड़कियों को प्लेसमेंट एजेंसी काम के नाम पर लेकर जाती है तथा बड़े शहरों में उन्हें बेच देती हैं। कई लड़कियों को विदेश भेजने की भी खबर है, लेकिन सरकार इस मामले में अभी तक ठोस कार्रवाई नहीं कर पाई है। पटेल कहते हैं कि यहां की लड़कियों के बाहर जाने या मां बाप द्वारा बाहर भेजे जाने का सबसे बड़ा कारण गरीबी है। उनका मानना है कि यदि राज्य सरकार इन क्षेत्रों में विकास के काम कराए तो इस तरह की घटनाओं में कमी आ सकती है, लेकिन अफसोस कि इस तरह की योजनाएं भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाती हैं। वह कहते हैं कि यदि आदिवासी क्षेत्रों में रोजगार के अवसर बढें़गे तो स्वाभाविक रूप से ऐसे मामलों में कमी आएगी। आदिवासी क्षेत्रों से लगातार महिलाओं और लड़कियों के गायब होने की घटनाओं से राज्य के पुलिस उच्चाधिकारी भी चिंतित है और ऐसे मामलों में अब कड़ी कार्रवाई का मन बना रहे हैं। राज्य के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक रामनिवास ने बताया कि इस तरह के मामलों को रोकने के लिए राज्य के सभी जिलों के पुलिस अधीक्षकों को गुमशुदा बालक बालिकाओं की जानकारी भेजने के लिए कहा गया है। रामनिवास ने बताया कि गुमशुदा लोगों की तलाश के लिए पुलिस थानों को लक्ष्य दे दिया गया है और कहा गया है कि इन मामलों को गंभीरता पूर्वक लेते हुए गुमशुदा लोगों के बारे में पूरी जानकारी लें तथा वर्तमान में उसकी स्थिति के बारे में पता करें। आदिवासी क्षेत्रों से महिलाओं और लड़कियों के गायब होने के बारे में अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक कहते हैं कि पुलिस प्लेसमेंट एजेंसियों पर कार्रवाई कर रही है तथा इन क्षेत्रों से गायब लड़कियों की पता लगाने के लिए स्वयं सेवी संस्थाओं की भी मदद लेने पर विचार किया जा रहा है।

नक्सली कमांडर ने खुदकुशी की
छत्तीसगढ़ के बलरामपुर जिले में नक्सली गिरोह के कमांडर ने कथित तौर पर जहर खाकर खुदकुशी कर ली है। राज्य के नक्सल मामलों के पुलिस उप महानिरीक्षक पवन देव ने बताया कि बलरामपुर जिले के कुसमी थाना के अंतर्गत झारखंड सीमा से सटे चलगली गांव में नक्सल दस्ता के कमांडर चट्टान सिंह ने जहर खाकर आत्महत्या कर ली। उन्होंने बताया कि कुसमी थाने की पुलिस को आज सूचना मिली थी कि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) का दस्ता कमांडर चट्टान सिंह का शव चलगली गांव में पड़ा हुआ है। सूचना के बाद पुलिस ने गांव से चट्टान सिंह का शव बरामद कर लिया। सूत्रों के मुताबिक चट्टान सिंह ने कीटनाशक दवा पीकर आत्महत्या की। पुलिस अधिकारी ने बताया बलरामपुर जिला पुलिस ने कुछ दिनों पहले ही चट्टान सिंह की पत्नी शकुंती बाई को गिरफ्तार किया था, लेकिन चट्टान सिंह बच निकला था। चट्टान सिंह के खिलाफ हत्या समेत कई मामले दर्ज थे तथा लंबे समय से पुलिस को उसकी तलाश थी। इधर राज्य के वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने चट्टान सिंह की आत्महत्या का कारण छत्तीसगढ़ और झारखंड के नक्सलियों के बीच आपसी विवाद को बताया है। अधिकारियों ने बताया कि छत्तीसगढ़ और झारखंड के नक्सलियों के बीच लंबे समय से विवाद चल रहा है। इसी विवाद के कारण कुछ समय पहले चट्टान सिंह को दस्ते से बाहर कर दिया गया था। इसके बाद उसने अपना एक नया दस्ता बना लिया था।

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आदिवासी क्षेत्रों से गायब होती लड़कियां
राज्य के आदिवासी इलाकों से गायब महिलाओं और लड़कियों को लेकर राज्य का पुलिस विभाग इन दिनों खासा परेशान है। राज्य का मुख्य विपक्षी दल इसे सरकार की नाकामयाबी बता रहा है, जबकि इस क्षेत्र में काम करने वाली स्वयं सेवी संस्थाएं उन दलालों पर कार्रवाई करने की मांग कर रही हैं, जो काम दिलाने के बहाने अवैध तरीके से लोगों को अपने साथ ले जाते हैं। छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले में रहने वाले सुखसाय इन दिनों अपनी 17 वर्षीय बेटी को लेकर परेशान हैं। आदिवासी इलाके में रहने वाले सुखसाय की बेटी को साल भर पहले एक प्लेसमेंट एजेंसी ने बेहतर काम दिलाने का वादा किया था तथा अपने साथ दिल्ली लेकर गई थी। इस घटना के कुछ महीने बाद जब सुखसाय ने अपनी बेटी की जानकारी लेनी चाही तब उसे न तो अपनी बेटी के बारे में जानकारी मिली और न ही उस प्लेसमेंट एजेंसी के बारे में। राज्य का आदिवासी बाहुल्य इलाका चाहे वह उत्तर का सरगुजा क्षेत्र हो या दक्षिण का बस्तर, इन दिनों इसी तरह की घटनाओं से दो चार हो रहा है। राज्य के पुलिस विभाग से मिली जानकारी के मुताबिक छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण से लेकर अब तक राज्य में पिछले नौ सालों में पुलिस ने गुमशुदगी के 34 हजार 691 मामले दर्ज किए हैं, जिनमें 18 हजार 787 महिलाएं और बालिकाएं शामिल हैं। हालंकि पुलिस ने 29 हजार 859 लोगों को खोज निकालने का दावा किया है, लेकिन सरकारी आंकड़ों के मुताबिक लगभग पांच हजार लोगों के बारे में पुलिस के पास कोई जानकारी नहीं हैं। इन पांच हजार लोगों में तीन हजार से ज्यादा संख्या महिलाओं और लड़कियों की है। पुलिस के आंकड़ों पर ही नजर डालें, तो राज्य के आदिवासी इलाके जिनमें उत्तर के रायगढ़, सरगुजा, जशपुर और कोरिया तथा दक्षिण के जगदलपुर, दंतेवाड़ा, कांकेर, बीजापुर, और नारायणपुर जिले शामिल है, से पिछले नौ सालों में पांच हजार 371 महिलाओं और लड़कियों की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज की गई। इनमें चार हजार 255 महिलाओं और लड़कियों को पुलिस ने खोज निकाला। पुलिस अभी 1116 गुमशुदा महिलाओं और लड़कियों की तलाश में है। यह आंकडे़ वह हैं जिनमे पुलिस ने गुमशुदगी दर्ज की है, लेकिन राज्य के उत्तर क्षेत्र के जिले सरगुजा, जशपुर और रायगढ़ के इलाके के लोग एक अलग तरह की समस्या का सामना कर रहे हैं। इन क्षेत्रों में प्लेसमेंट एजेंसी के लोग यहां आते हैं तथा यहां की महिलाओं और लड़कियों को बड़े शहरों में ऊंचे वेतन पर काम दिलाने का झांसा देकर अपने साथ ले जाते हैं। राज्य के जशपुर जिले में काम करने वाली स्वयं सेवी संस्था ग्रामीण विकास केंद्र के आंकड़ों पर गौर करें तो जिले के 259 गांवों की तीन हजार से ज्यादा महिलाएं और लड़कियां बड़े शहरों में काम के लिए गईं और गायब हो गईं। हालांकि बाद में इनमें से कइयों को ढूंढ निकाला गया और वापस भी लाया गया लेकिन अभी भी डेढ़ सौ से ज्यादा महिलाओं और लड़कियों के बारे में जानकारी नहीं है। ग्रामीण विकास केंद्र की संयोजिका सिस्टर सेवती पन्ना का कहना है कि राज्य के जशपुर और रायगढ़ जिले में दर्जनों ऐसी प्लेसमेंट एजेंसियां सक्रिय हैं जो यहां की लड़कियों को बड़े शहरों में काम के लिए ले जाती हैं और वहां उन्हें घरेलू काम के लिए भेज दिया जाता है। इन घरों से मिलने वाले आधे पैसे दलाल खा जाता है तथा आधा पैसा इन लड़कियों के पास बचता है। पन्ना कहती है कि बात यह नहीं है कि लड़कियों को घरों में नौकरानी का काम करना पड़ता है। बल्कि समस्या यह है कि कुछ ही भाग्यशाली लड़कियों को अच्छे मालिक मिल पाते हैं, अन्यथा इन्हें शारीरिक और मानसिक अत्याचार का सामना करना पड़ता है। वह कहती है कि ऐसे मामलों के अध्ययन के दौरान पाया गया कि दिल्ली और मुंबई जैसे बड़े शहरों में काम करने वाली कथित प्लेसमेंट एजेंसियां जो ज्यादातर धार्मिक नाम की रहती हैं लड़कियों के माता पिता के पास जाती है। धार्मिक नामों के कारण ही माता पिता झांसे में आ जाते हैं। वहीं कई मामलों में शहर की चमक में रहने की लालसा में लड़कियां स्वयं ही चली जाती हैं। सिस्टर पन्ना बताती हैं कि प्लेसमेंट एजेंसियां जब लड़कियों को यहां से बाहर ले जाती हैं, तो इनका नाम बदल देती हैं, जिससे इन्हें ढूंढने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। वह मांग करती हैं कि सरकार को सबसे पहले इन प्लेसमेंट एजेंसियों पर कड़ी कार्रवाई करना चाहिए। इधर राज्य के मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस का आरोप है कि राज्य सरकार ऐसे मामलों को लेकर गंभीर नहीं है। राज्य विधानसभा में इस मामले को कई बार उठा चुके पूर्व गृह मंत्री नंद कुमार पटेल का कहना है कि आदिवासी क्षेत्रों की महिलाओं और लड़कियों को प्लेसमेंट एजेंसी काम के नाम पर लेकर जाती है तथा बड़े शहरों में उन्हें बेच देती हैं। कई लड़कियों को विदेश भेजने की भी खबर है, लेकिन सरकार इस मामले में अभी तक ठोस कार्रवाई नहीं कर पाई है। पटेल कहते हैं कि यहां की लड़कियों के बाहर जाने या मां बाप द्वारा बाहर भेजे जाने का सबसे बड़ा कारण गरीबी है। उनका मानना है कि यदि राज्य सरकार इन क्षेत्रों में विकास के काम कराए तो इस तरह की घटनाओं में कमी आ सकती है, लेकिन अफसोस कि इस तरह की योजनाएं भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाती हैं। वह कहते हैं कि यदि आदिवासी क्षेत्रों में रोजगार के अवसर बढें़गे तो स्वाभाविक रूप से ऐसे मामलों में कमी आएगी। आदिवासी क्षेत्रों से लगातार महिलाओं और लड़कियों के गायब होने की घटनाओं से राज्य के पुलिस उच्चाधिकारी भी चिंतित है और ऐसे मामलों में अब कड़ी कार्रवाई का मन बना रहे हैं। राज्य के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक रामनिवास ने बताया कि इस तरह के मामलों को रोकने के लिए राज्य के सभी जिलों के पुलिस अधीक्षकों को गुमशुदा बालक बालिकाओं की जानकारी भेजने के लिए कहा गया है। रामनिवास ने बताया कि गुमशुदा लोगों की तलाश के लिए पुलिस थानों को लक्ष्य दे दिया गया है और कहा गया है कि इन मामलों को गंभीरता पूर्वक लेते हुए गुमशुदा लोगों के बारे में पूरी जानकारी लें तथा वर्तमान में उसकी स्थिति के बारे में पता करें। आदिवासी क्षेत्रों से महिलाओं और लड़कियों के गायब होने के बारे में अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक कहते हैं कि पुलिस प्लेसमेंट एजेंसियों पर कार्रवाई कर रही है तथा इन क्षेत्रों से गायब लड़कियों की पता लगाने के लिए स्वयं सेवी संस्थाओं की भी मदद लेने पर विचार किया जा रहा है।