Friday, June 28, 2013

माओवादी का गांव, बंदूक के दम पर होता है यहां फैसला

छत्तीसगढ़ में एक छोटा सा गांब है सुकमा। ऐसा गांव जहां की सत्ता पर सरकार की नहीं बंदूक का  राज चलता हैं। यहां इनकी अपनी सरकार चलती है और अपना कानून है। गांव में आने जाने वालों की सुरक्षा की जिम्मेवारी भी इनकी ही रहती है।
 इनकी मर्जी पर ही आपको गांव में प्रवेश की अनुमति मिलती है। फिर एक बार अगर आपको गांव में प्रवेश करने की अनुमति मिल गई तो फिर आपको पूरी परंपरागत तरकी से स्वागत किया जाता। यहां पर रहने वाले आदिवासियों को प्रशासन इस करण ही माओवादी मान लेती है। सुकमा से कोंटा यही वे गांव हैं जहां माओवादियों का राज चलता है। इन सड़कों से जब भी कोई गुज़रता है तो अपनी गाड़ियों के टेप भी बंद कर दिया करते हैं। गांव में प्रवेश करने के साथ ही आप माओवादियों के निशाने पर होते हैं,गांव की सड़के टूटी हुई है। दूर तक सन्नाटा फैला हुआ है। कुछ दूर चलने पर ही माओवादियों पर हमले की खबर मिलती है तो कहीं सुरक्षा बलों और माओवादियों के बीच संघर्ष की सूचना। ऐसी सचूनाएं यहां रहने वाले लोगों की ज़िंदगी का हिस्सा है। ये अब ऐसी घटनाओं से विचलित नहीं हुआ करते।लेकिन इस सड़क से पहली बार गुज़रने वालों का कलेजा मुँह पर आ जाता है। गांव में प्रवेश करने वाले प्रत्येक अनजाने लोग को ग्रामीण जब बताते हैं कि आगे मत जाओ माओवादियों की तलाशी चल रही है। या फिर सूचना मिलती है कि माओवादियों के साथ पुलिसवालों के बीच मुठभेड़ चल रहा है।


गांव में प्रवेश करने से पहले आपको कई नाके से भी गुजरना पड़ता है। नाका पर रहने वाली महिलाएं नाम पता पूछने के बाद आपसे कुछ पैसा लेकर झूंडों में गाना गाती आगे बढ़ जाती है। दो किलोमीटर के इस सफर में माओवादियों की ओर से लगाए गए कई नाका से गुजरना पड़ता है। मगर ये सब यहां रहने वाले आदिवासियों के लिए आम बात है। क्योंकि ये इनके लिए रोज़मर्रा की बात है। गोलियाँ चल रहीं हों तो चला करें, लाशें गिरती है तो गिराती रहे। इनकी ज़िंदगी इन सब से दूर अपने रफ्तार से चलती रहती है।  

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