Friday, June 28, 2013

तीन नदियों के बीच केदारनाथ से भी मज​बूत शिवमंदिर

उत्तराखंड की त्रासदी में सब बह गया। बचा तो सिर्फ भगवान का मंदिर। सैकड़ों वर्षों में यह पहला मौका होगा जबकि इस तरह की त्रासदी से सामना हुआ।  आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बता रहा है जो बना ही हुआ है नदियों के बीच। कोई एक नदी नहीं, तीन—तीन नदियों के संगम पर। हजारों सालों में यहां पर कई बार नदियों में बाढ़ आई। पर यह चमत्कार ही है कि मंदिर अब भी वैसे का वैसा ही खड़ा है।छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से मात्र 45 कि.मी. दूर है पवित्र नगरी राजिम। यहाँ पैरी,सोंढूर और महानदी का त्रिवेणी संगम है। नदी के एक किनारे भगवान राजीवलोचन का मंदिर है और नदी के बीच में कुलेश्वर महादेव का। सातवीं-आठवीं शताब्दी का ये मंदिर आज भी खड़ा है मौसम को चुनौतियाँ देता हुआ। इसी नदी पर मंदिर से कुछ ही दूरी पर पुल बनया गया है। यह पुल केवल चार दशकों में ही जर्जर हो गया। उसी जलधारा के बीचों-बीच खड़ा कुलेश्वर मंदिर उस काल की स्ट्रक्चरल, जियोलॉजिकल और इंजीनियरिंग के ज्ञान का प्रमाण दे रहा,बरसात के दिनों में बाढ़ का पानी कई-कई दिनों मंदिर को डुबाए रखता है। कुछ सालों पहले उफनती जलधारा क़हर बरपाती जाती थी। इसके बावजूद बाढ़ लाखों क्यूसेक पानी का दबाव अपने बेहतरीन अष्टकोणीय ढाँचे पर आसानी से झेलता आ रहा है कुलेश्वर महादेव। मंदिर का आकार 37.75 गुना 37.30 मीटर है। इसकी ऊँचाई 4.8 मीटर है मंदिर का अधिष्ठान भाग तराशे हुए पत्थरों से बना है। रेत एवं चूने के गारे से उनकी जोड़ाई हुई है। इसके विशाल चबूतरे पर तीन तरफ से सीढ़ियाँ बनी हुई है। नदी की गहराई निरंतर रेत के जमाव से कम हो चुकी है इसलिए मंदिर का चबूतरा लगभग डेढ़ मीटर गहराई तक रेत में ढका हुआ माना जाता है। इसी चबूतरे पर पीपल का एक विशाल पेड़ भी है।चबूतरा अष्टकोणीय होने के साथ ऊपर की ओर पतला होता गया है। यहाँ उस काल के भवन निर्माताओं के भू-गर्भ विज्ञान के कौशल का पता चलता है। उन्होंने लगभग 2 कि.मी. चौड़ी नदी के बीच और जहाँ देखो वहाँ तक फैले रेत के समुंदर के बीच इस मंदिर की नींव के लिए ठोस चट्टानों का भूतल ढूंढ निकाला था। एकदम बारीक बालू से भरी नदी के बीच एक इमारत को खड़ा करना और उसे सदियों तक टिका रहने लायक बनाने के लिए की गई साइट सिलेक्शन आज के पढ़े-लिखे अत्याधुनिक निर्माण कर्ताओं के लिए आदर्श प्रस्तुत करती है।तमाम धारणाओं-अवधारणाओं के बावजूद कुलेश्वर महादेव की संरचना जल प्रवाह से होने वाले परिणाम जैसे क्षरण, भू-स्खलन, आर्द्रता और ताप प्रतिरोध से आजतक सुरक्षित है। संरचना स्थानीय भूरा बलुवा और काले पत्थरों से बनी हुई है। नदी की धारा इस अष्टकोणीय संरचना से टकराकर विकेन्द्रित और अभिसरित हो जाती है। प्रवाह के साथ बहने वाले रेत के घर्षण से भी ये अप्रभावित ही है। इंजीनियरिंग की ये शानदार मिसाल आस्था और धर्म को छोड़कर भी अपनी उत्कृष्टता का कायल कर देती है।इसके निर्माण के काल पर विवाद हो सकता है लेकिन राजिम के अन्य मंदिर सातवीं-आठवीं शताब्दी के हैं इसलिए इसे भी उसी काल का माना जाता है। ये राज्य सरकार द्वारा संरक्षित स्मारक है और ये प्राचीन काल में छत्तीसगढ़ में मरीन इंजीनियरिंग, जियोलॉजी और कंस्ट्रक्शन इंजीनियरिंग के अत्यंत विकसित होने का सबूत देता है। हाँ अगर मान्यताओं की बात करें तो ऐसा कहा जाता है कि नदी किनारे बने मामा के मंदिर के शिवलिंग को जैसे ही नदी का जल छूता है उसके बाद बाढ़ उतरनी शुरू हो जाती है।
सावन के इस पवित्र महीने में तो श्रध्दालुओं का वहाँ तांता लगा रहता है, वैसे साल भर लोग यहाँ भगवान शंकर के दर्शन के लिए आते रहते हैं।

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