00 कैमरे की चाहत और उपयोगिता आज भी बरकरार
00 रोचक दास्तान है कैमरे की
0 वर्ल्ड कैमरा डे आज
चाहे बच्चे की पहली मुस्कान सालांे बाद देखनी हो या फिर शादी के बंधन में बंधने वाले जोड़े को सालों बाद उसी पल को फिर महसूस करना हो। इन सभी खूबसूरत पलों को सहेजने के लिए कैमरे के बस एक क्लिक की जरूरत है। भले ही आज कैमरे का स्वरूप समय के साथ-साथ काफी बदल गया है, पर इसकी चाहत और उपयोगिता आज भी बरकरार है। 'वर्ल्ड कैमरा-डे" हम कैमरे से जुड़े कुछ ऐसे ही रोचक इतिहास के बारे में जानेंगे। साथ ही यह भी कि रायपुर में कैमरा कब आया और उसका स्वरूप क्या था।
इसके साथ ही हम राजधानी के कुछ ऐसे ही लोगों से रूबरू हो रहे हैं, जिन्होंने कई तरह के दुर्लभ कैमरे को आज भी सहेजकर रखा है।
जयस्तंभ में होती थी स्ट्रीट फोटोग्राफी
रायपुर मंे कैमरा और फोटोग्राफी की शुरुआत 1945 के आसपास मानी जा सकती है। सेंटर प्वाइंट कलर लैब के ओनर पीएन अग्रवाल बताते हैं कि शहर में पहला कैमरा 'मीनिट कैमरा" आया था। यह कैमरा डिब्बे वाला होता था, जिसमें सामने परदा लगा होता था, उससे बड़ी-बड़ी तस्वीरें ली जाती थीं। उस दौरान मीनिट कैमरा लिए लोग जयस्तंभ के आसपास रोड पर ही खड़े होते थे और लोग उनके पास जाकर अपना फोटो खिंचवाया करते थे। इसे स्ट्रीट फोटोग्राफी भी कहा जाता था। रायपुर में यही कैमरा सबसे पहले आया था।
रायपुर और कैमरा
1955 के लगभग प्लेट कैमरे का जमाना अया, जिसे विदेशों में व्यू कैमरा कहा जाता था। इस कैमरे में जिस साइज का फोटो चाहिए, उसी साइज की फिल्म लगाई जाती थी। ये कैमरे ज्यादातर लकड़ी के होते थे, इसलिए उन्हें वुडक कैमरा भी कहा जाता था। इस तरह के कैमरे से स्टूडियो फोटोग्राफी भी की जाती थी। इन कैमरों को ज्यादातर स्कूल-कॉलेज में ग्रुप फोटो लेने के लिए लिए इस्तेमाल किया जाता था।
1944-45 के दौरान पर्सनल यूज के हिसाब से कोडेक कंपनी द्वारा सबसे सस्ता कैमरा बनाया गया, जिसे ब्राउनी बॉक्स कैमरा कहा जाता था। इस कैमरे की कीमत उस वक्त एक डॉलर होती थी। यह कैमरा आम आदमी की पहुंच में था और फोटोग्रॉफी का प्रचलन भी यही से बढ़ा था।
1950 के लगभग रेंज फाइंडर कैमरा रायपुर में आया। इस कैमरे में 620 साइज की रोल फिल्म लगाई जाती थी, जिसमें एक बार में आठ या बारह फोटो खींचे जा सकते थे। इस कैमरे में आधुनिक लैंस का प्रयोग किया जाता था। और इसमें फोकसिंग भी की जाती थी। रायपुर में बहुत से लोगों के पास ये कैमरे उस जमाने में हुआ करते थे।
1955 के आसपास टि्वन लैंस रिफलेक्स कैमरा आया। इससे प्रोफेशनल फोटोग्राफी की जाती थी। रोली फ्लैस, रोली कॉड, ब्यूटी फ्लैक्स, याशिका फ्लैक्स, मामिया कुछ ऐसे ही पॉपुलर ब्राण्ड हुआ करते थे। और अमूमन फोटोग्राफर्स इन कैमरांे का इस्तेमाल किया करते थे। लगभग 2000 तक ये कैमरे चले।
इसके बाद 1975 मंे सिंगल लैंस रिफ्लेक्स कैमरे का दौर शहर में आया। ये काफी महंगे हुआ करते थे। 35 एमएम साइज के इन कैमरांे का प्रचलन धीरे से बढ़ा और हमारे रायपुर में यह कैमरा काफी पॉपुलर भी हुआ। अभी भी कैमरा पसंद किया जाता है।
सन् 2000 के बाद से राजधानी में डिजिटल कैमरे का बूम आया। सेंसेटाइज्ड फोटोग्राफी की जगह डिजिटल तकनीक ने ले ली। डिजिटल कैमरे की आधुनिक तकनीक और उसकी शानदार फोटोग्राफी ने हर किसी कैमरायूजर का दिल जीत लिया। आज तो डिजिटल कैमरे की कीमत भी काफी कम हो गई है। आज तो डिजिटल कैमरे का जो रूप हम देख रहे हैं, वह अत्याधुनिक रूप कहा जा सकता है।
पहले नहीं जाते थे लोग स्टूडियो
अजंता फोटो स्टूडियो के ओनर जेपी अग्रवाल बताते हैं कि कैमरे का इस्तेमाल रायपुर के लोगों ने काफी पहले शुरू कर दिया था। पिछले 49 साल से उनकी दुकान चल रही है। श्री अग्रवाल ने बताया कि सबसे पहले उन्होंने फोटो स्टूडियो सदर बाजार मंे खोला था। उस दौरान लोग स्टूडियो आकर फोटो खिंचाने के लिए उतने अधिक उत्साहित नहीं हुआ करते थे। अमूमन लोग अपनी फैमिली फोटो खिंचवाने के लिए हमें स्टूडियो से ही बुलाया करते थे। सदर बाजार स्थित लगभग सभी पुराने ज्वेलरी शॉप वाले अपनी फैमिली के फोटो के लिए स्टूडियो भी आया करते थे।
आज भी कैमरे में बसती है जान
छत्तीसगढ़ के पूर्व वित्त मंत्री डॉ. रामचन्द्र सिंहदेव की कैमरे और फोटोग्राफी में जान बसती है। ग्लैमर और पोट्रेट फोटो खीचने की शौकीन डॉ. सिहदेव बताते हैं कि पिताजी को देख उन्हें फोटोग्राफी का जुनून चढ़ा। एक बार जब हाथ में कैमरा पड़ा, तब से लेकर आजतक उनका यह जुनून बरकरार है। अब तक दर्जनांे कैमरांे का इस्तेमाल कर चुके डॉ. सिंहदेव को उनकी फोटोग्राफी के लिए ढेरांे अवार्ड मिल चुके हैं। 1950 में इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में पढ़ने के दौरान अभिनेत्री नरगिस दत्त की खींची हुई तस्वीर की चर्चा करते हुए डॉ. सिंहदेव ने बताया कि यह उनकी वन ऑफ द बेस्ट फोटोग्राफी में से एक है। साथ ही इस फोटो की प्रशंसा करते हुए नरगिस की बेटी प्रिया दत्त ने कहा कि यह उनकी मां का सबसे खूबसूरत फोटो है। इसके साथ ही डॉ. सिंहदेव को 1961 में लंडन में वर्ल्ड इंटरनेशनल फोटोग्राफी कॉम्पीटिशन में एक फोटो के लिए गोल्ड मैडल भी मिल चुका है।
आज के समय में है दस लाख कीमत
निकॉन का लगभग 40 साल पुराना कैमरा फूलचौक निवासी संवेद शर्मा के पास है। संवेद बताते हैं कि यह कैमरा उनके पिताजी डॉ. प्रवीण शर्मा का है। डॉ. शर्मा को बचपन से ही फोटोग्राफी का बेहद शौक था, जिसके चलते उनके मित्र ने उन्हें यह तोहफे में दिया था। दो हजार स्र्पए में खरीदे गए इस कैमरे की वर्तमान कीमत लगभग आठ से दस लाख है। डॉ. शर्मा ने बताया कि उन्हें वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफी का शौक था और इस कैमरे से उन्होंने ढेरांे जानवरों की तस्वीरें ली हैं। उन्होंने बताया कि कैमरा मिलने के बाद उन्होंने उसके काफी सारे लैंस लिए, जिसमें इसे स्थिर रखने वाली गन भी शामिल है। इससे आधे किमी. दूर खड़े जानवर की तस्वीर भी बहुत आसानी से खींची जा सकती है।
साठ साल पुराने कैमरे को सहेजा
सदर बाजार के पास रहने वाले ग्यारह वर्षीय युवराज शर्मा ने अपने नानाजी से मिले साठ साल पुराने कैमरे को बहुत ही अच्छी तरह से सहेजा है। युवराज ने बताया कि यह कैमरा उन्हें उनके नानाजी मोहन लावण्या ने गिफ्ट किया था और नानाजी को उनके पिताजी स्व. प्रभुदयाल लावण्या ने कोलकाता से लाकर दिया है। जर्मनी की ब्वाय नामक कंपनी द्वारा बनाया गया यह कैमरा आज के समय में एक दुर्लभ वस्तु हो गया है। युवराज ने बताया कि उनके नानाजी को फोटोग्राफी का शौक था, इसलिए यह कैमरा उनके लिए कोलकाता से लाया गया था, जिसकी कीमत उस दौरान 15 से 20 स्र्पए थी। 'ब्वाय का 175 कैमरा" नामक यह कैमरा आज के समय में कई हजारों की कीमत का होगा। युवराज ने बताया कि यह ब्लैक एंड व्हाइट रिल का कैमरा, जिसमें एक रिल में 12 फोटोग्राफ लिए जा सकते हैं।
00 रोचक दास्तान है कैमरे की
0 वर्ल्ड कैमरा डे आज
चाहे बच्चे की पहली मुस्कान सालांे बाद देखनी हो या फिर शादी के बंधन में बंधने वाले जोड़े को सालों बाद उसी पल को फिर महसूस करना हो। इन सभी खूबसूरत पलों को सहेजने के लिए कैमरे के बस एक क्लिक की जरूरत है। भले ही आज कैमरे का स्वरूप समय के साथ-साथ काफी बदल गया है, पर इसकी चाहत और उपयोगिता आज भी बरकरार है। 'वर्ल्ड कैमरा-डे" हम कैमरे से जुड़े कुछ ऐसे ही रोचक इतिहास के बारे में जानेंगे। साथ ही यह भी कि रायपुर में कैमरा कब आया और उसका स्वरूप क्या था।
इसके साथ ही हम राजधानी के कुछ ऐसे ही लोगों से रूबरू हो रहे हैं, जिन्होंने कई तरह के दुर्लभ कैमरे को आज भी सहेजकर रखा है।
जयस्तंभ में होती थी स्ट्रीट फोटोग्राफी
रायपुर मंे कैमरा और फोटोग्राफी की शुरुआत 1945 के आसपास मानी जा सकती है। सेंटर प्वाइंट कलर लैब के ओनर पीएन अग्रवाल बताते हैं कि शहर में पहला कैमरा 'मीनिट कैमरा" आया था। यह कैमरा डिब्बे वाला होता था, जिसमें सामने परदा लगा होता था, उससे बड़ी-बड़ी तस्वीरें ली जाती थीं। उस दौरान मीनिट कैमरा लिए लोग जयस्तंभ के आसपास रोड पर ही खड़े होते थे और लोग उनके पास जाकर अपना फोटो खिंचवाया करते थे। इसे स्ट्रीट फोटोग्राफी भी कहा जाता था। रायपुर में यही कैमरा सबसे पहले आया था।
रायपुर और कैमरा
1955 के लगभग प्लेट कैमरे का जमाना अया, जिसे विदेशों में व्यू कैमरा कहा जाता था। इस कैमरे में जिस साइज का फोटो चाहिए, उसी साइज की फिल्म लगाई जाती थी। ये कैमरे ज्यादातर लकड़ी के होते थे, इसलिए उन्हें वुडक कैमरा भी कहा जाता था। इस तरह के कैमरे से स्टूडियो फोटोग्राफी भी की जाती थी। इन कैमरों को ज्यादातर स्कूल-कॉलेज में ग्रुप फोटो लेने के लिए लिए इस्तेमाल किया जाता था।
1944-45 के दौरान पर्सनल यूज के हिसाब से कोडेक कंपनी द्वारा सबसे सस्ता कैमरा बनाया गया, जिसे ब्राउनी बॉक्स कैमरा कहा जाता था। इस कैमरे की कीमत उस वक्त एक डॉलर होती थी। यह कैमरा आम आदमी की पहुंच में था और फोटोग्रॉफी का प्रचलन भी यही से बढ़ा था।
1950 के लगभग रेंज फाइंडर कैमरा रायपुर में आया। इस कैमरे में 620 साइज की रोल फिल्म लगाई जाती थी, जिसमें एक बार में आठ या बारह फोटो खींचे जा सकते थे। इस कैमरे में आधुनिक लैंस का प्रयोग किया जाता था। और इसमें फोकसिंग भी की जाती थी। रायपुर में बहुत से लोगों के पास ये कैमरे उस जमाने में हुआ करते थे।
1955 के आसपास टि्वन लैंस रिफलेक्स कैमरा आया। इससे प्रोफेशनल फोटोग्राफी की जाती थी। रोली फ्लैस, रोली कॉड, ब्यूटी फ्लैक्स, याशिका फ्लैक्स, मामिया कुछ ऐसे ही पॉपुलर ब्राण्ड हुआ करते थे। और अमूमन फोटोग्राफर्स इन कैमरांे का इस्तेमाल किया करते थे। लगभग 2000 तक ये कैमरे चले।
इसके बाद 1975 मंे सिंगल लैंस रिफ्लेक्स कैमरे का दौर शहर में आया। ये काफी महंगे हुआ करते थे। 35 एमएम साइज के इन कैमरांे का प्रचलन धीरे से बढ़ा और हमारे रायपुर में यह कैमरा काफी पॉपुलर भी हुआ। अभी भी कैमरा पसंद किया जाता है।
सन् 2000 के बाद से राजधानी में डिजिटल कैमरे का बूम आया। सेंसेटाइज्ड फोटोग्राफी की जगह डिजिटल तकनीक ने ले ली। डिजिटल कैमरे की आधुनिक तकनीक और उसकी शानदार फोटोग्राफी ने हर किसी कैमरायूजर का दिल जीत लिया। आज तो डिजिटल कैमरे की कीमत भी काफी कम हो गई है। आज तो डिजिटल कैमरे का जो रूप हम देख रहे हैं, वह अत्याधुनिक रूप कहा जा सकता है।
पहले नहीं जाते थे लोग स्टूडियो
अजंता फोटो स्टूडियो के ओनर जेपी अग्रवाल बताते हैं कि कैमरे का इस्तेमाल रायपुर के लोगों ने काफी पहले शुरू कर दिया था। पिछले 49 साल से उनकी दुकान चल रही है। श्री अग्रवाल ने बताया कि सबसे पहले उन्होंने फोटो स्टूडियो सदर बाजार मंे खोला था। उस दौरान लोग स्टूडियो आकर फोटो खिंचाने के लिए उतने अधिक उत्साहित नहीं हुआ करते थे। अमूमन लोग अपनी फैमिली फोटो खिंचवाने के लिए हमें स्टूडियो से ही बुलाया करते थे। सदर बाजार स्थित लगभग सभी पुराने ज्वेलरी शॉप वाले अपनी फैमिली के फोटो के लिए स्टूडियो भी आया करते थे।
आज भी कैमरे में बसती है जान
छत्तीसगढ़ के पूर्व वित्त मंत्री डॉ. रामचन्द्र सिंहदेव की कैमरे और फोटोग्राफी में जान बसती है। ग्लैमर और पोट्रेट फोटो खीचने की शौकीन डॉ. सिहदेव बताते हैं कि पिताजी को देख उन्हें फोटोग्राफी का जुनून चढ़ा। एक बार जब हाथ में कैमरा पड़ा, तब से लेकर आजतक उनका यह जुनून बरकरार है। अब तक दर्जनांे कैमरांे का इस्तेमाल कर चुके डॉ. सिंहदेव को उनकी फोटोग्राफी के लिए ढेरांे अवार्ड मिल चुके हैं। 1950 में इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में पढ़ने के दौरान अभिनेत्री नरगिस दत्त की खींची हुई तस्वीर की चर्चा करते हुए डॉ. सिंहदेव ने बताया कि यह उनकी वन ऑफ द बेस्ट फोटोग्राफी में से एक है। साथ ही इस फोटो की प्रशंसा करते हुए नरगिस की बेटी प्रिया दत्त ने कहा कि यह उनकी मां का सबसे खूबसूरत फोटो है। इसके साथ ही डॉ. सिंहदेव को 1961 में लंडन में वर्ल्ड इंटरनेशनल फोटोग्राफी कॉम्पीटिशन में एक फोटो के लिए गोल्ड मैडल भी मिल चुका है।
आज के समय में है दस लाख कीमत
निकॉन का लगभग 40 साल पुराना कैमरा फूलचौक निवासी संवेद शर्मा के पास है। संवेद बताते हैं कि यह कैमरा उनके पिताजी डॉ. प्रवीण शर्मा का है। डॉ. शर्मा को बचपन से ही फोटोग्राफी का बेहद शौक था, जिसके चलते उनके मित्र ने उन्हें यह तोहफे में दिया था। दो हजार स्र्पए में खरीदे गए इस कैमरे की वर्तमान कीमत लगभग आठ से दस लाख है। डॉ. शर्मा ने बताया कि उन्हें वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफी का शौक था और इस कैमरे से उन्होंने ढेरांे जानवरों की तस्वीरें ली हैं। उन्होंने बताया कि कैमरा मिलने के बाद उन्होंने उसके काफी सारे लैंस लिए, जिसमें इसे स्थिर रखने वाली गन भी शामिल है। इससे आधे किमी. दूर खड़े जानवर की तस्वीर भी बहुत आसानी से खींची जा सकती है।
साठ साल पुराने कैमरे को सहेजा
सदर बाजार के पास रहने वाले ग्यारह वर्षीय युवराज शर्मा ने अपने नानाजी से मिले साठ साल पुराने कैमरे को बहुत ही अच्छी तरह से सहेजा है। युवराज ने बताया कि यह कैमरा उन्हें उनके नानाजी मोहन लावण्या ने गिफ्ट किया था और नानाजी को उनके पिताजी स्व. प्रभुदयाल लावण्या ने कोलकाता से लाकर दिया है। जर्मनी की ब्वाय नामक कंपनी द्वारा बनाया गया यह कैमरा आज के समय में एक दुर्लभ वस्तु हो गया है। युवराज ने बताया कि उनके नानाजी को फोटोग्राफी का शौक था, इसलिए यह कैमरा उनके लिए कोलकाता से लाया गया था, जिसकी कीमत उस दौरान 15 से 20 स्र्पए थी। 'ब्वाय का 175 कैमरा" नामक यह कैमरा आज के समय में कई हजारों की कीमत का होगा। युवराज ने बताया कि यह ब्लैक एंड व्हाइट रिल का कैमरा, जिसमें एक रिल में 12 फोटोग्राफ लिए जा सकते हैं।
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