Saturday, February 27, 2010






kumar satish

शासन को सौंपने से पूर्व 46 दोपहिया जलकर खाक


आदिवासी विकास कार्यक्रम के दफ्तर में असुरक्षित ढंग से रखी थी मोटर साईकिलें

रायपुर। शनिवार की शाम रविनगर स्थित छत्तीसगढ़ आदिवासी विकास कार्यक्रम के दफ्तर के परिसर में खड़ी बाइक में रहस्मय ढंग से आग लग गई। आगजनी की इस घटना में फायर बिग्रेड अमले के काफी प्रयास के बाद भी 46 बाइक को जलने से नहीं बचाया जा सका। घटना के पीछे किसी षड़यंत्र की चर्चा सरगर्म है। ये सभी बाइक सीजी 02 सीरिज के थे। अंबिकापुर और जशपुर में एनजीओ के माध्यम से गांवों में चलाए जा रहे कार्यक्रम के पिछले साल बंद होने के बाद शासन द्वारा आवंटित 72 दोपहिया वाहनों को जून 2009 से यहां लाकर रखा गया था। बताया गया कि इन वाहनों को शासन को वापस लौटाने की प्रक्रिया चल रही थी,इससे पूर्व आगजनी की घटना में करीब चार दर्जन बाइक जलकर खाक हो गए। पुलिस मामले की जांच कर रही है। पुलिस सूत्रों ने बताया कि आदिवासी विकास कार्यक्रम के दफ्तर के बाहर अंबिकापुर और जशपुर से लाकर खड़ी की गई कुल 72 हीरो होण्डा सीडी डॉन और स्पलेण्डर बाइक में शनिवार की शाम 4.30 बजे अचानक आग लग जाने की सूचना वहां के चौकीदार देवधर ने विभाग के फायनेंस अधिकारी जेम्स कुजुर को दी। पुलिस कंट्रोल रुम व फायर बिग्रेड को यह जानकारी देकर श्री कुजुर मौके पर पहुंचे। इस दौरान पुलिस और फायर बिग्रेड का अमला भी आ गया था। देखते ही देखते परिसर में तिरपाल से ढककर रखे गए 72 बाइक में 46 बाइक धूं-धूं कर जल उठे थे। फायनेंस अधिकारी जेम्स कुजुर ने बताया कि अंबिकापुर-जशपुर में एनजीओ के माध्यम से चलाए जा रहे आदिवासी विकास कार्यक्रम बंद होने पर जून 2009 में शासन द्वारा आवंटित दोपहिया वाहनों, आलमारी, फर्नीचर, कम्प्यूटर आदि वापस ले फर्नीचर,कम्प्यूटर,आलमारी शासन को सौंपे जा चुके थे जबकि दोपहिया वाहन दफ्तर के सामने परिसर के भीतर सुरक्षित रखे गए थे। इसे लौटाने की प्रक्रिया चल रही थी कि इससे पहले आगजनी में जलकर वाहन खाक हो गए। आग कैसे लगी यह दफ्तर के किसी कर्मचारी को पता नहीं है। दफ्तर के पास स्थित ट्रांसफार्मर से निकली चिंगारी से आग लगने की आशंका सभी व्यक्त कर रहे है। इधर चर्चा है कि वाहनों के कई मंहगे पार्टस निकाले जा चुके थे। चोरी को छुपाने इनमें आग लगाई गई है। बहरहाल सिविल लाइन पुलिस आगजनी का मामला दर्ज कर जांच कर रही है। लिया गया था।

Friday, February 26, 2010

होली में गुण्डों का एक्सचेंज आफर..


कुमार सतीश

पुलिसिया घुड़की से पलायन को विवश हुए अपराधी

रायपुर। राजधानी में निगरानीशुदा और हिस्ट्रीशीटर गुण्डों का इन दिनों एक्सचेंज आॅफर चल रहा है। जी हां चौंकिए नहीं, यह सच है। होली नजदीक आते ही पुलिस गुण्डे-बदमाशों और हिस्ट्रीशीटरों को यह चेतावनी देने में लगी है कि राजधानी में रहे तो खैर नहीं॥ सीधे जेल जाने के लिए तैयार रहो। पुलिस की इस सख्त चेतावनी ने गुण्डे, बदमाशों को पलायन करने के लिए विवश कर दिया है। ऐसे गुण्डे, हिस्ट्रीशीटर होली आने से पहले ही अंदर जाने के भय से राजधानी से भूमिगत होकर आसपास के जिलों में नए ठौर-ठिकाने की तलाश में जाने लगे हैं। यही हाल दूसरे जिलों का भी है। पुलिस का दबाव बढ़ते ही आसपास के जिलों से बड़ी संख्या में गुण्डे-बदमाश रायपुर की ओर पलायन कर रहे हैं। यह हालात एक्सचेंज आॅफर के समान है, जो इन दिनों राजधानी में पूरे शबाब पर है। पुलिस की सख्ती और जेल की हवा खाने से बचने कई शातिर गुण्डे, बदमाश शहर छोड़कर अपने नए ठौर-ठिकानों की ओर कूच कर गए हैं। जबकि चुनाव के समय यही गुण्डे पुलिस के सामने सीना तानकर प्रचार करने में व्यस्त थे। शहर के बीस और ग्रामीण क्षेत्रों को मिलाकर जिले में 42 पुलिस थाना, नौ पुलिस चौकी हैं। इन थानों में गुण्डे,बदमाश, निगरानीशुदा और हिस्ट्रीशीटरों की संख्या दिनों-दिन बढ़ने से पुलिस के साथ राजधानीवासी हलकान हैं। जिले में निगरानी बदमाशों की संख्या सवा दो सौ है, वहीं गुण्डों का आंकड़ा साढ़े तीन सौ तक पहुंच चुका है। जबकि हर मोहल्ले में रोज नए पैदा हो रहे गुण्डों का उत्पात बढ़ता ही जा रहा है। खुलेआम घातक हथियार लहराकर आतंक का पर्याय बनने की कोशिश कर रहे इन बदमाशों पर पुलिस की पकड़ ढीली पड़ती जा रही है। राजधानी के सबसे संवेदनशील माने जाने वाले मौदहापारा और वीआईपी क्षेत्र सिविल लाइन थाना क्षेत्र में निगरानी बदमाश और गुण्डों की सर्वाधिक संख्या हैं। इन क्षेत्रों में आधा दर्जन ऐसे मोहल्ले और झुग्गी इलाके हैं जहां आदतन अपराधियों का जमावड़ा देर रात तक लगा रहता है। शाम होते ही ऐसे बदमाश मदमस्त होकर पूरे उफान में होते हैं। खुलेआम चाकू, गुप्ती, तलवार लहरा राह चलते आम लोगों को आतंकित करना गुण्डों की आदत में शुमार है। आम लोगों को डरा,धमकाकर वर्चस्व स्थापित कर रहे इन गुण्डों के भय से पीड़ित थाना तक जाने में भय खाते हैं।

नए बदमाशों पर कड़ी नजर

एसपी के निर्देश पर पिछले दिनों थानेदारों ने नए बदमाशों की सूची तैयार की थी। सूची में आठ नए बदमाश निगरानी शुदा के रूप में शामिल किए गए थे। इस सूची में सबसे ज्यादा पंडरी थाना क्षेत्र के छह बदमाशों को शामिल किया गया था। इसके अलावा डीडी नगर व पुरानी बस्ती थाना क्षेत्र के एक-एक बदमाश शामिल किए गए हैं। प्रस्तावित नई सूची में मौदहापारा में दो, न्यू राजेन्द्रनगर दो, टिकरापारा छह, कोतवाली एक, आंरग दो, डीडी नगर तीन,गोबरा नवापारा दो, अभनपुर दो, भाटापारा शहर दो, खमतराई दो, खरोरा तीन, आमानाका पांच, देवेद्रनगर एक, गुढियारी तीन, पंडरी आठ बदमाशों के नाम हैं। पुलिस की परिभाषा में आदतन अपराधियों को निगरानी सूची में रखा जाता है। वहीं तात्कालिक अपराध करने वाले गुण्डा सूची में शामिल किए जाते है।

नहीं पहुंचती पुलिस

राजधानी में पुलिसिंग का सूरत ए हाल काफी खराब है। चाकू, छुरे लेकर आंतक फैला रहे गुण्डे, बदमाशों की जानकारी मिलने के बाद भी पुलिस की पेट्रोलिंग पार्टी समय पर नहीं पहुंचती। इससे मार खाने के बाद भी पीड़ित पक्ष परेशान होता है।












नकली नोटों के साथ पिता-पुत्र गिरफ्तार




आरोपी के घर से भारी मात्रा में नकली नोट बरामद


रायपुर। बैंक आफ बड़ौदा की पंडरी शाखा मे शुक्रवार को नकली नोट जमा करने का प्रयास कर रहे एक छात्र को बैंक कैशियर ने पकड़कर पुलिस को सौंप दिया। पूछताछ के बाद पुलिस ने उसके पिता को भी गिरफ्तार कर लिया। इधर छात्र के श्रीनगर, शिवानंदनगर स्थित घर से भारी मात्रा में नकली नोट बरामद होने की खबर है। पुलिस अधिकारियों ने इसकी पुष्टि की है। फिलहाल बैंक में रुपए जमा करने आए छात्र के कब्जे से पांच सौ के 26 नोट जब्त होने की जानकारी पुलिस ने दी है। पंडरी टीआई बीएस जागृत ने बताया कि श्रीनगर, शिवानंदनगर गुढ़ियारी निवासी कांतिभाई पटेल आरा मिल में नौकरी करता है। उसका पुत्र राहुल कुमार पटेल(21) महाराजा अग्रसेन इंटरनेशनल कालेज, समता कालोनी में बी काम प्रथम वर्ष का छात्र है। शुक्रवार को सुबह 10.30 बजे कांतिभाई ने पुत्र राहुल को 25 हजार और 35 हजार रुपए क्रमश: छोटे भाई धीरज पटेल और पिता लद्दाराम पटेल के नाम पर जमा करने दिए थे। कांतिभाई के पिता लद्दाराम पटेल भुज,कच्छ(गुजरात) में निवासरत हैं। वहां पर उनका खाता बैंक आॅफ बड़ौदा में है। पिता से रकम लेकर पुत्र राहुल पटेल पंडरी स्थित बैंक आॅफ बड़ौदा पहुंचा। अपने चाचा धीरज के नाम पर स्लिप भरकर राहुल ने 25 हजार रुपए बैंक में जमा कर दिया था। जबकि दूसरा स्लिप दादा लद्दाराम के नाम का भरकर बचत खाता में जमा करने पर कैशियर जीएस नेतराम को नोटों की गिनती में शंका हुई। उन्होंने पाया कि पांच सौ के कुछ नोटों का रंग असली नोटों से ज्यादा गहरा और आरबीआई का मार्क नहीं है। यह नोट दो सीरिज 9 डीडी और 9 बीबी के थे। जानकारी लेने पर पता चला इस सीरिज के नोट रिजर्व बैंक द्वारा जारी ही नहीं किए गए हैं। मशीन से जांच करने पर नोट जाली निकला। राहुल को पकड़कर कैशियर ने बैंक के मुख्य शाखा प्रबंधक आरके मंडल के समक्ष पेश किया। उन्होंने घटना की जानकारी पुलिस को दी। पुलिस ने मौके से राहुल को हिरासत में ले लिया। उसके पास से पांच सौ के 26 नकली नोट कुल तेरह हजार मिले है। पूछताछ में राहुल से जानकारी प्राप्त कर पुलिस ने उसके घर में दबिश दी। बताया जा रहा है कि वहां से भारी मात्रा में नकली नोट के कई पैकेट बरामद किए गए हैं। एएसपी सिटी ने इसकी पुष्टि की है। बहरहाल पुलिस ने बैंक मैनेजर की रिपोर्ट पर मामले में धारा 489 ख के तहत बाप-बेटे को गिरफ्तार कर लिया है।
पहले भी हो चुकी है बरामदगी
राजधानी में नकली नोट खपाने के आधा दर्जन से अधिक मामले पिछले साल सामने आए थे। प.बंगाल के बोरजहां शेख को पुलिस ने पंडरी कपड़ा मार्केट में नोट खपाते पकड़ा था। जबकि प्रमुख आरोपी असमाउल भाग निकलने में सफल रहा। बोरजहां से पुलिस ने दो लाख नौ हजार के नकली नोट बरामद किए थे। कई ऐसे मामले सामने आए हैं जिसमें शहर से लेकर गांव का हर छोटा-बड़ा अपराधी स्केनर और प्रिंटर की मदद से हजार, पांच सौ और सौ का नोट साधारण फोटो कापी में छाप कर बाजार में खपाने की कोशिश में पकड़ा जा चुका है।
गुजरात से लाकर खपाया जा रहा नोट
पुलिस को शंका है कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर के नकली नोट गुजरात से लाकर कांतिभाई पटेल यहां खपाने के काम में लिप्त है। इसके पीछे किसी बड़े गिरोह के शामिल होने का अंदेशा है। पुलिस का कहना है जब्त नकली नोट किसी मंहगे फोटोकापी मशीन से स्केन कर बनाई गई लगती है। बहरहाल आरोपियों से विस्तृत पूछताछ जारी है।

Saturday, February 20, 2010




kumar satish







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प्रियदर्शनी बैंक घोटाला..

तीन आडिटर समेत पांच के खिलाफ नहीं मिले सबूत
प्रकरण से नाम खारिज करने एसपी ने अदालत से मांगी
इंदिरा प्रियदर्शिनी महिला नागरिक सहकारी बैंक में हुए करोड़ों के घोटाले मामले में आरोपी बनाए गए तीन आडिटरों समेत पांच लोगों के खिलाफ कोई सबूत नही मिलने पर एसपी ने अदालत को पत्र लिखकर इनके नाम प्रकरण से खारिज करने की अनुमति मांगी है। एसपी द्वारा 18 फरवरी को मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट को लिखे गए पत्र में बताया गया है कि इंदिरा प्रियदर्शिनी महिला नागरिक सहकारी बैंक का वर्ष 2002,03,04 एवं 05 का अंकेक्षण कार्य सहकारिता विभाग के अंकेक्षक श्रीमती पुष्पा शर्मा,केएन कश्यप,अनिन्दय मुखर्जी ने किया था। मामले में 8 अगस्त 08 को तीनों को गिरफ्तार किया गया था। इसी तरह मे.अश्विन एसोसिएट के प्रोप्राइटर प्रमोद कापसे तथा बैंक के खातेदार मनीष अग्रवाल द्वारा अलग-अलग तिथि में क्रमश: 23 और 87 अफडीआर बनवाए थे। उक्त राशि को शाखा प्रबंधक उमेश सिन्हा ने लेखा पुस्तक में दर्ज नहीं किया था। मामले में प्रमोद कापसे को 3 मई07 को गिरफ्तार किया गया था। जांच के दौरान पांचों आरोपियों के खिलाफ आपराधिक षड़यंत्रों में शामिल होने व अपराध में किसी भी प्रकार की संलिप्तता से संबंधित कोई प्रमाण नही मिले है। अंत: इनके नाम थाना कोतवाली में दर्ज धारा 120 बी,420 ,467, 468, 409, 201 के प्रकरण से डिस्चार्ज किया जाए। ज्ञात हो कि कोतवाली थानेदार की ओर से अदालत में 11 फरवरी को इस आश्य का एक आवेदन पत्र भी पेश कर पांचों के नाम प्रकरण से खारिज करने की अनुमति मांगी गई थी।

चिटफंड कंपनी ने हजम किया किसानों का दस करोड़


रायपुर। शंकरनगर स्थित एक चिटफंड कंपनी द्वारा राजधानी समेत आसपास के क्षेत्रों के सात सौ किसानों को रुपए दोगुना, चौगुना करने का झांसा देकर करीब दस करोड़ रुपए वसूलने का एक मामला सामने आया है। रुपए वसूल कर लापता हुई कंपनी के कथित कर्मचारियों के खिलाफ धोखाधड़ी का अपराध दर्ज कराने शुक्रवार को सैकड़ों पीड़ितों ने सिविल लाइन थाने का घेराव किया। एएसपी सिटी ने मामले में एफआईआर दर्ज करने का आश्वासन पीड़ितों को दी है। गौरीशंकर महिला समूह की प्रतिनिधि डा।आभा मुदलियार के नेतृत्व में सिविल लाइन थाने पहुंचे सैकड़ों पीड़ितों ने पुलिस को बताया कि नवम्बर 2006 में शंकरनगर में कल्चुरी इन्वेंस्टमेंट कंपनी का कार्यालय खुला था। कंपनी पिंकू घोष, बॉबी भट्टाचार्य, अजीत, तरुण डडसेना आदि ने राजधानी रायपुर समेत गोबरा नवापारा, कुरुद, राजिम समेत अन्य क्षेत्र के सात सौ किसानों को रुपए जमा करने पर दोगुना और चौगुना रकम देने का झांसा देकर करीब दस करोड़ रुपए वसूले। विश्वास जमाने के लिए कुछ किसानों को उनके जमा रकम ब्याज सहित दिया गया। ठगी के शिकार केवल किसान ही नहीं, बल्कि 50-60 पुलिसकर्मी भी हुए हैं। इस बीच सितम्बर 09 में उक्त चिटफंड कंपनी को बंद कर दिया गया। यही नहीं, कर्मचारियों ने शंकरनगर में ही स्वास्तिक और संकल्प नामक दूसरी इन्वेस्टमेंट कंपनी खोलकर पुन: धोखाधड़ी शुरु कर दी है। पीड़ित किसानों के साथ महिला प्रतिनिधियों ने कंपनी के कर्मचारियों पर रकम वापस दिलाने दबाव बनाया। लेकिन समझौते के बाद भी रकम वापस लौटाने में आनाकानी होते देख शुक्रवार को महिला प्रतिनिधि डा।मुदलियार, मंजू, किरण स्वामी, सुनील नागरकर, मधुकर पांडेय के नेतृत्व में पीड़ित किसान सिविल लाइन थाने पहुंचे। डा.मुदलियार ने बताया कि एएसपी सिटी रजनेश सिंह, टीआई मुकेश खरे ने शिकायत पर अपराध दर्ज करने का आश्वासन दिया है।

आत्महत्या कर चुके हैं किसान

चिटफंड कंपनी के झांसे में आकर अपना सबकुछ बेचकर रकम जमा करने वाले राजिम क्षेत्र के किसान ऋषि कुमार साहू ने रकम नहीं मिलने से तंग आकर कुछ माह पूर्व आत्महत्या कर लिया था, जबकि कुरुद के सुरेन्द्र बांदे ने आत्महत्या का प्रयास किया था। डा.मुदलियार ने लोगों से ऐसे कंपनियों बचकर रहने का आगाह किया है।

Thursday, February 18, 2010




निरंकुश होते नक्सलवादी

कुमार सतीश
आधी-अधूरी इच्छाशक्ति से लड़े गए युद्ध आत्महंता होते हैं। माओपंथी देश के 13 से ज्यादा राज्यों में युद्धरत हैं। कोई 19 हजार प्रशिक्षित जवानों की सेना है। भारतीय जनतंत्र में सत्ता जनादेश से मिलती है। माओपंथ के अनुसार सत्ता बंदूक की नली से निकलती है। वे निर्दोषों को मारते हैं, हथियार लूटते हैं। वे नेपाल के माओवादी संगठनों से जुड़े हुए हैं। केंद्र पर राष्ट्रीय सुरक्षा की प्राथमिक जिम्मेदारी है। संविधान की 7वीं अनुसूची-संघसूची की शुरुआत ही भारत की और उसके प्रत्येक भाग की रक्षा से होती है। मूलभूत प्रश्न है कि क्या केंद्र अपनी इस प्राथमिक जिम्मेदारी का निर्वहन करने में सक्षम है? क्या केंद्र के पास भी माओपंथियो-नक्सलियों जैसी दृढ़ इच्छाशक्ति है? नक्सली जघन्य हत्याओं को वैचारिक आधार देते हैं। उनके समर्थक भूमि सुधार जैसे सवाल भी उठाते हैं। बेशक भूमि सुधार जैसे प्रश्न भी गंभीर हैं। असल में भूमि सुधार ही मूल मसला नहीं है। आदिवासी वनवासी अभावग्रस्त क्षेत्र की बुनियादी समस्याएं नजरंदाज हुई हैं। मनमोहन अर्थशास्त्र में आदिवासी, वनवासी, दलित, हुनरमंद कारीगर और मेहनतकश नौजवान के लिए कोई जीविका नहीं है। मेहनतकश मजदूर बाजार के लिए कच्चा माल हैं। पूंजीवादी विकास के हल्ले-हमले के पहले पश्चिम बंगाल, बिहार, आंध्र, छत्तीसगढ़ और झारखंड के इलाके के आदिवासी अपनी प्राकृतिक संपदाओं पर निर्भर थे। नक्सल प्रभावित अधिकांश क्षेत्रों में कोयला आदि खनिज पदार्थो की खाने हैं। अब उन पर धन्ना सेठों का कब्जा है। दंडकारण्य भी आदिवासी अभयारण्य नहीं रहे। जल, जंगल, खाने-खदान और जमीन से बेदखली का अभिशाप प्राणलेवा है। इस गंभीर तथ्य की ओर किसी का ध्यान नहीं गया। गुनहगार राजनीति भी है। राजनीतिक दल इन वंचितों को राजनीति की मुख्यधारा में नहीं लाए। वे परंपरागत गुरिल्ला युद्ध जानते हैं। वे भूखे हैं, नंगे हैं, शोषित हैं। सो नक्सलपंथ के लिए नरम-गरम माल हैं। नक्सली विदेशी हथियारों से लैस है, दृढ़ इच्छाशक्ति से लैस हैं। पुलिस बल भी क्या वैसे आधुनिक हथियारों से लैस है? वे प्रतिपल मौत के सामने हैं। क्या उनका मनोबल बढ़ाने के कोई अतिरिक्त उपाय किए गए हैं? जाहिर है कि सुरक्षा बलों का मनोबल बढ़ाने लायक अतिरिक्त मनोबल सरकार के पास है ही नहीं। कुल मिलाकर नक्सलवादियों से चंगुल से आदिवासियों की मुक्ति के बिना नक्सलवाद से निपटना संभव ही नहीं है।

सतीश पाण्डेय
हरिभूमि,raipur

आदिवासी सरपंच चली स्कूल पढ़ाई करने

कहते हैं कि सीखने की कोई उम्र नहीं होती, यदि मन में ललक हो तो किस भी उम्र में सीखा जा सकता है और इसी जुनून को लेकर जिले की ग्राम पंचायत पानतलाई से हाल ही निर्विरोध निर्वाचित हुई आदिवासी सरपंच ढापूबाई गांव की शासकीय शाला में दाखिला लेकर पढ़ने जा रही है। एक आम छात्रा की तरह ढापूबाई सुबह 11 बजे से शाम पांच बजे तक कन्या शाला में पढ़ाई करती है। इस उम्र में स्कूल जाने के सवाल पर ढापूबाई कहती है कि वैसे तो वह बचपन में भी पढ़ाई करना चाहती थी, लेकिन अब जब वो अपने गांव का प्रतिनिधित्व कर रही है और पूरे गांव की विकास की जिम्मेदारी उस पर है, तो उसका साक्षर होना अनिवार्य हो गया है। ढापूबाई और उसका पति अब भी अपना गुजर-बसर करने के लिए मजदूरी करते हैं। सरपंच को स्कूल जाते देख पूरा गांव उनके साथ हैं। गांववासी कहते हैं कि वे सभी इस काम के लिए ढापूबाई को सहयोग देने के लिए तैयार हैं। उसकी पढ़ाई में मदद करने वाली आंगनबाड़ी कार्यकर्ता ममता खोरे कहती है कि ढापूबाई की इस उम्र में सीखने की ललक सचमुच काबिले तारीफ है और यदि हर जनप्रतिनिधि को अपनी जिम्मेदार का एहसास हो जाए, तो हरेक गांव के विकास में कोई बाधा नहीं डाल सकता है।

नकली नोटों के सौदागर अब भी फरार


रायपुर। पिछले छह महीने के दौरान राजधानी में पकड़े गए नकली नोटों के दो बड़े ही प्रकरणों में सरगना अब तक पुलिस की पहुंच से दूर हैं। एक तरह से पुलिस ने मामले की जांच ही बंद कर दी है। हालांकि दोनों ही मामलों में पुलिस ने नोटों के साथ एक-एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया था, लेकिन इन प्रकरणों के मुख्य आरोपी फरार होने में कामयाब रहे थे। बाद में इनकी तलाश में पुलिस की विभिन्न टीमों को भेजा गया था, लेकिन ये खाली हाथ ही लौटी थीं। अब गिरफ्तारी वारंट जारी होने के बाद उन्हें दबोचने के लिए टीमें भेजने की बात कही जा रही है।

मिले थे लाखों के नकली नोट

पिछले साल 8 सितंबर को रेलवे स्टेशन के सामने स्थित बरखा होटल में छापा मारकर पुलिस ने प।बंगाल के बोरजहां नामक युवक को लाखों रुपए के नकली नोट के साथ पकड़ा था। इससे पहले पंडरी स्थित कपड़ा मार्केट में खरीददारी कर हजारों रुपए खपा दिए थे। जबकि अश्माउल खान जो गिरफ्तार युवक को नकली नोटों के साथ यहां लाया था वह मौका देखकर फरार हो गया था। अश्माउल खान की तलाश में पुलिस की टीमें पश्चिम बंगाल भेजी गई थी। जिसमें पुलिस को कोई सुराग हाथ नहीं लगे थे।

भीड़ में खपाने पहुंचे थे

नकली नोटइसी तरह 13 अक्टूबर को पुलिस ने दीपावली त्यौहार के मौके पर बाजार में उमड़ी भीड़ की आड़ में छह लाख रुपए के नकली नोट खपाने पहुंचे बसना के संजय भोई को गिरफ्तार किया था। लेकिन इसमें भी मौका देखकर मामले का सरगना ग्राम अमरतरा (कुरुद) का बर्खास्त शिक्षक जोहितराम यादव फरार होने में कामयाब रहा। अब तक उसकी गिरफ्तारी नहीं हो सकी है।

......

दोनों मामलों में फरार आरोपियों के खिलाफ कोर्ट द्वारा गिरफ्तारी वारंट जारी किए गए हैं। जल्द ही पुलिस की टीम आरोपियों को गिरफ्तार करने भेजी जाएगी।

रजनेश सिंह

(एडिशनल एसपी (सिटी)

CP Singh: बाबरी मस्जिद की कहानी – 17 साल बाद उसी की ज़ुबानी

CP Singh: बाबरी मस्जिद की कहानी – 17 साल बाद उसी की ज़ुबानी

kumar satish




किसी भी बड़े त्यौहार के समीप आते ही बाजार में मिलावटी वस्तुओं की भरमार हो जाती है, जिसका सीधा प्रभाव व्यक्ति के स्वास्थ्य पर पड़ता है। ऐसे समय में ग्राहकों को दूध, घी और मावे के अलावा मिलावटी और केमिकल युक्त रंगों से सबसे ज्यादा दो-चार होना पड़ता है। असली मावे के स्थान पर सेंथेटिक मावा, असली घी के स्थान पर नकली घी, हर्बल रंगों के स्थान पर केमिकल युक्त रंग और चांदी के वर्क के स्थान पर एल्यूमिनियम के वर्क आदि ऐसी चीजें हैं, जो न केवल ग्राहकों की ठगी का कारण बनते हैं, बल्कि त्यौहार की खुशी के माहौल को भी खराब कर देते हैं। दिवाली के समय प्रशासन द्वारा छापेमार कार्रवाई में जहां सैकड़ों क्विंटल नकली मावा पकड़ा गया था, वहीं हजारों लीटर नकली घी भी जब्त किया गया था। ऐसे में ग्राहकों को सचेत रहकर ही खरीदारी करनी चाहिए। किस में किस चीज की मिलावट दूध में जहां पानी और स्टार्च की मिलावट कर दी जाती है, वहीं मावे, छेना और पनीर में स्टार्च, वनस्पति, आलू और शकरकंद की मिलावट कर मुनाफा वसूला जाता है। इसके अलावा घी में वनस्पति एवं आलू की और मक्खन में मसले हुए आलू, शकरकंद की मिलावट कर दी जाती है। शक्कर में खडि़या, मिट्टी का चूरा और कपड़े धोने के सोडे की मिलावट की जाती है। चांदी का वर्क न कर दे बीमार होली में मिठाईयों, लस्सी और पानों पर लगे चमचमाते हुए चांदी के वर्क बरबस ही ग्राहकों को अपनी और आकर्षित कर लेते हैं। चांदी के इन वर्को की उजालेपन के पीछे का सच यह है कि अधिकांश वर्क शुद्धता के पैमाने पर खरे नहीं उतरते और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक साबित हो सकते हैंद्ध आम व्यक्ति इस बात से अनजान है, लेकिन जो लोग इस सच को जानते हैं वे भी इसे नजरअंदाज कर मिठाई खाते और खिलाते रहते हैं। मिठाईयों पर चढ़ा हुआ चांदी का वर्क शरीर के लिए घातक भी हो सकता है, अगर वह निर्धारित शुद्धता के पैमाने पर खरा नहीं उतरे तो। शुद्ध न होने पर चांदी का वर्क हमारे शरीर में एक ऐसा जहर घोलता है, जिससे कैंसर जैसी बीमारी भी हो सकती है। हाल ही में विष विज्ञान केंद्र इंडस ने चांदी के वर्क पर एक अनुसंधान किया है और अपनी रिपोर्ट में चेतावनी दी है कि अशुद्ध चांदी के वर्क के सेवन से कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी हो सकती है। बाजार में बिकने वाली चांदी के वर्क में से आधे से अधिक जांच में शुद्धता के पैमाने पर खरे नहीं उतरते। बाजार में जिस चांदी से वर्क तैयार किए जा रहे हैं, उनमें निकल और जस्ता जैसे नुकसान पहुंचाने वाले रासायनिक तत्व भी शामिल होते हैं और इन रासायनिक तत्वों में ही कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी होने का खतरा बना रहता है। क्या वाकई में यह चांदी है आज के समय में जब सोने और चांदी की कीमत आसमान को छू रही है, ऐसे में क्या कोई दुकानदार मिठाईयों पर वाकई चांदी के वर्क लगा रहे हैं? यह सवाल स्वयं ग्राहक को सोचना चाहिए। इस बात का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जहां दुकानदार अपने उत्पाद में एक-एक पैसे की बचत करता है और चांदी का थोड़ा सा वर्क लगाकर भी काम चला सकता है, वहां वह इतनी अधिक चांदी का वर्क लगाकर अपना नुकसान क्यों कर रहा है? पहले जहां मिठाईयों पर थोड़ा सा चांदी का वर्क लगा दिया जाता था, वहीं अब पूरी मिठाई चांदी के वर्क पर लिपटी मिल रही है। एल्यूमिनियम से तैयार होता वर्क इस संबंध में कारीगरों का मानना है कि चांदी के वर्क को बनाना बहुत ही मेहनत वाला और महीन काम है और मिलावटी चांदी का वर्क तो तैयार किया ही नहीं जा सकता, जबकि एक अन्य कारीगर मुकेश परिवर्तित नाम का इस संबंध में कहना है कि सजावट के लिए इस्तेमाल होने वाले वर्क एल्युमिनियम को पीटकर तैयार किए जाते हैं। आज के समय में चांदी इतनी महंगी है, तो चांदी का वर्क तो बहुत ही कम तैयार होता है।
होली और रंगों का चोली दामन का साथ है। पहले हर्बल होली का जमाना था, पर अब तो केमिकल होली का दौर चल रहा है। होली में प्रयोग किए जाने वाले रंगों में जो केमिकल मिले होते हैं, उसका स्वास्थ पर गहरा प्रभाव पड़ता है, खासकर त्वचा पर। इस त्यौहार में मुख्य भूमिका में नजर आने वाले रंग आपके जीवन को बेरंग कर सकते हैं। इसलिए रंगों के इस्तेमाल से पहले सावधानी रखना जरूरी है। काला रंग - काले रंग को बनाने के लिए लेड आक्सॉइड का प्रयोग किया जाता है। लेड ऑक्साइड से बौद्धिक क्षमता क्षीण होती है। हरा- हरा रंग बनाने के लिए कॉपर सल्फेट का प्रयोग किया जाता है। अगर हरा रंग आखों में पड़ जाए, तो एलर्जी हो सकती है, या फिर कुदरत का अनमोल तोहफा आप अपनीआंखों से भी हाथ धो सकते हैं। पर्पल- यह रंग क्रोमियम आयोडाइड की मात्रा ज्यादा होती है, इससे श्र्वास संबधित बिमारियों के शिकार हो सकते हैं। लाल- मर्करी सल्फेट की मात्रा बहुत ज्यादा होती है। मर्करी सल्फेट के वजह से स्किन कैंसर, मस्तिष्क कमजोरी, लकवा और आंखों की कमजोरी जैसी समस्याओं से दो चार होना पड़ सकता है। नीला- त्वचा शोध में यह बात सामने आई है कि नीले रंग से त्वचा कैंसर जैसी भयावह बीमारी के शिकार हो सकते हैं। स्किन पर असर ड्राई स्किन वाले लोगों को होली सावधानी बरतकर ही खेलना चाहिए। इन रंगों की वजह से स्किन में जलन होने लगती है, जो एलर्जी के रूप में भी दिख सकता है। इसकी वजह से चेहरा लाल हो जाना या फिर बहुत खुजली होने जैसी समस्याओं का भी सामना करना पड़ सकता है।

Wednesday, February 17, 2010




पाली में हत्या, राजधानी में गिरफ्तारी

रायपुर। चरित्र पर संदेह को लेकर बहन की पिटाई से व्यथित होकर साले ने जीजा की धारदार हथियार से मारकर हत्या कर दी थी। क्राइम ब्रांच ने अंधे हत्याकांड की गुत्थी सुलझाते हुए हत्यारे को खमतराई इलाके के श्रीनगर से गिरफ्तार कर पाली पुलिस को सौंप दिया है। यह हत्याकांड कोरबा जिले के पाली थाना क्षेत्र ग्राम मुनगाडीह में 25 जनवरी की रात में हुई थी। एएसपी क्राइम अजातशत्रु बहादुर सिंह ने बताया कि मुनगाडीह में 25 जनवरी को एक अज्ञात व्यक्ति की लाश मुनगाडीह स्थित खार में मिली थी। घटना स्थल के पास ही मृतक की बाइक व मोबाइल पड़ा था। प्रथम दृष्टया मामला हत्या का होना पाए जाने पर पाली पुलिस ने धारा 302 का अपराध दर्ज कर लिया था। जांच के दौरान मृतक की शिनाख्त दिलेश्वर धनकर निवासी सकर्रा थाना हिर्री बिलासपुर के रुप में हुई थी। मृतक एचएससीएल कुसमुंडा में इलेक्ट्रिशियन के पद पर कार्यरत था। इस बीच क्राइम ब्रांच को सूचना मिली कि हत्यारा श्रीनगर खमतराई निवासी आटो चालक पंकज धनकर है। उसने शराब के नशे में किसी से पाली में एक व्यक्ति की हत्या होने की बात कही थी। क्राइम ब्रांच निरीक्षक रमाकांत साहू की टीम ने पंकज के संबंध में जानकारी हासिल कर मंगलवार को दोपहर में उसे घर से पकड़ा। पूछताछ में आरोपी ने दिलेश्वर की हत्या करना कबूल कर लिया। पंकज ने बताया कि उसकी बहन योगिता का विवाह दिलेश्वर से 16 वर्ष पूर्व हुआ था। विवाह के कुछ साल बाद से ही दिलेश्वर उसकी बहन के चरित्र पर शंका करते हुए मारपीट और प्रताड़ित करता आ रहा था। इससे योगिता का हाथ भी टूट गया था। बहन की हालत को देखकर पंकज क्षुब्ध हो उठा और जीजा को रास्तें से हटाने की उसने योजना बनाई। पंकज योजना को अंतिम रुप देने विभिन्न साधनों के माध्यम से 25 जनवरी को पाली पहुंचा। वहां से उसने एक एसटीडी पीसीओं से मृतक के मोबाइल पर काल कर यह बताया कि वह पाली में मुर्गी फार्म खोलने जमीन की तलाश में आया है। सहयोग करने उसने दिलेश्वर को बुलाया। मृतक दिलेश्वर साले के कहने पर अपनी बाइक सीजी 12 ए 0383 से शाम को पाली आ गया। वहां दोनों ने शराब पी। बाद में पाली से छह किमी दूर मुनगाडीह ले जाकर पुन: आरोपी ने जीजा को शराब पिलाया और जमीन दिखाने के बहाने खेत में ले जाकर अंधेरा होने के पश्चात रात 7.30 बजे धारदार हथियार से ताबडतोड़ कई वार कर दिलेश्वर को मौत के घाट उतार दिया। हत्या के बाद आरोपी मृतक की बाइक व मोबाइल छोड़कर वापस घर लौट आया। बहरहाल क्राइम ब्रांच के हत्थे चढ़े हत्यारे को देर शाम पाली थानेदार श्री मिंज को सौंप दिया गया।

प्रेमिका की हत्या कर मौत को गले लगाया

रायपुर। आरंग थाना क्षेत्र अंतगर्त महानदी के गुदगुदा घाट में एक शादी शुदा आशिक ने अपनी विवाहित प्रेमिका की लाठी से मारकर हत्या करने के बाद आत्महत्या कर ली। इस घटना से क्षेत्र में सनसनी फैल गई है। आरंग थाना प्रभारी कुमारी चंद्राकर ने बताया कि ग्राम गुल्लु निवासी मृतिका बिजली उपाध्याय (45) का पति चंद्रिका उपाध्याय पिछले 15 सालों से पत्नी को छोड़कर गायब है। बिजली के दो पुत्र जितेन्द्र और किशोर है। जितेन्द्र की शादी हो चुकी है,वह परिवार सहित अलग रहता है जबकि किशोर मां के साथ रहता आ रहा था। वही मूलत: ग्राम समोदा निवासी आरोपी चंदू उर्फ इतवारी साहू(45) पिछले पांच साल से गुल्लु गांव में घर बनाकर अपने छोटे बेटे प्रेमलाल के साथ रहता आ रहा था। उसकी पत्नी कई सालों से पति को छोड़ मायके में बड़े पुत्र संतोष के साथ रहती है। बिजली और चंदू की वैवाहिक कहानी एक सामान होने से दोनों के बीच नजदीकियां बढ़ने लगी और बाद में यह प्रेम में बदल गया। पड़ोसी होने के साथ महानदी के गुदगुदा घाट में भी दोनों की भूमि लगी हुई है। पिछले हफ्ते भर से बिजली तरबूज की बाड़ी लगाकर वहीं झोपड़ी बनाकर रह रही थी। प्रेम के फेर में पड़कर चंदू ने भी अपनी बाड़ी में झोपड़ी बना लिया था। दोनों पति-पत्नी के रुप में साथ-साथ रहते थे। गैर मर्द के साथ संबंध को लेकर बिजली का पुत्र जितेन्द्र आपत्ति करता था। इसे लेकर मां-बेटे के बीच मारपीट भी हो चुकी है। सोमवार की सुबह 11 बजे प्रेमलाल खाद पहुंचाने महिला की बाड़ी की ओर गया। झोपड़ी में घुसते ही उसकी आंखे फटी की फटी रह गई। सामने बिजली का शव रक्तरंजित अवस्था में पड़ा हुआ था। उसके सिर में लाठी के दर्जन भर से अधिक वार किए गए थे। प्रेमलाल वहां से अपनी बाड़ी की ओर पिता को घटना की सूचना देने गया। लेकिन झोपड़ी में पिता को न पाकर वह आसपास खोजने लगा। इस दौरान झोपड़ी से सौ मीटर दूर स्थित बबूल पेड़ में पिता चंदू की लाश फांसी के फंदे पर लटकती देख उसके होश गुम हो गए। घटना की जानकारी उसने महिला के पुत्रों के साथ पुलिस को दी। मौके पर पहुंची पुलिस ने पाया कि महिला की हत्या की गई है। मृतक चंदू के बनियान में खून के धब्बे लगे होने से यह शंका भी दूर हो गई कि हत्यारा कोई और होगा। थाना प्रभारी के अनुसार चंदू ने अज्ञात कारणों से विवाहित प्रेमिका को मौत के घाट उतारने के बाद झोपड़ी में जाकर गिलास में कीटनाशक दवा उड़ेल उसे पी लिया था और यह सोचकर की कही बच ना जाउ उसने रस्सी से पेड़ में फांसी लगाकर अपनी जान दे दी। पुलिस ने झोपड़ी से कीटनाशक की खाली शीशी और गिलास बरामद कर लिया है। दोनों के शव का पोस्टमार्टम कराकर परिजनों को सौंप दिया गया। मामले में धारा 302 के तहत अपराध दर्ज कर पुलिस जांच कर रही है।

छात्रों पर लाठी चार्ज की विस में रही गूंज

अंबिकापुर कालेज का मामला
रायपुर। शासकीय राजीव गांधी स्नातकोत्तर महाविद्यालय अंबिकापुर में प्राचार्य के कक्ष में छात्रों पर हुई लाठी चार्ज का मुद्दा मंगलवार को विधानसभा में गूंजा। इस मामले में विपक्ष ने स्थगन ग्राह्य कर चर्चा कराने की मांग की। प्रश्नकाल समाप्त होने के तत्काल बाद कांग्रेस के सदस्य डा। प्रेमसाय सिंह ने छात्रों पर लाठी चार्ज का मामला उठाया। उन्होंने कहा कि एमए की छात्रा के साथ दुर्व्यवहार के बाद लाठी चार्ज किया गया। इससे घायल कई छात्र अस्पताल में भर्ती हैं। उन्होंने इस संबंध में विधानसभा अध्यक्ष से स्थगन ग्राह्य करने की मांग की। कांग्रेस के सदस्य टीएस सिंहदेव ने प्रोफेसर राजकमल मिश्रा को दोषी बताते हुए कार्रवाई की मांग उठाई। श्री सिंहदेव ने कहा कि वे उस दौरान वहां मौजूद थे, तब कोई उग्र स्थिति नहीं थी। उन्होंने आरोप लगाया कि प्रोफेसर अपराधिक प्रवृत्ति के हैं। प्राचार्य के कक्ष में सभी चीजें यथावत रखी हुई थी। दुर्व्यवहार के बाद छात्रा सीता अधिकारी रोते हुए प्राचार्य के कक्ष में गई। पहले तो छात्रों को कमरे में बंद कर पीटा गया। इसके बाद नगर बंद कराने गए छात्रों पर लाठीचार्ज किया गया। उन्होंने कहा कि इनमें घायल ज्यादातर छात्र एबीवीपी के हैं। इन्हें एसटीएफ के लोगों ने भी पीटा है। कांग्रेस के सदस्य सिंहदेव ने इस मामले में तत्काल कार्रवाई करने की मांग उठाई। नेता प्रतिपक्ष रविन्द्र चौबे ने कहा कि अंबिकापुर के जिस प्रोफेसर की बात हो रही है, वे लव गुरू की तरह हैं। उनका व्यवहार मटुकनाथ चौधरी जैसा है। नेता प्रतिपक्ष ने उच्च शिक्षा मंत्री से प्रोफेसर के खिलाफ कार्रवाई की मांग की। उन्होंने आरोप लगाया कि छात्रों को प्राचार्य कक्ष में बंद कर पीटा गया है। नेता प्रतिपक्ष ने अखबार में छपी फोटो दिखाते हुए कहा कि जो छात्रों को पीटने वाली पुलिस को पहचानें। यह एक गंभीर मामला है। इसलिए कार्रवाई होनी चाहिए। आज बंद रहेंगे राजधानी के सभी महाविद्यालय
पीजी छात्रा के साथ हुए अभद्र व्यवहार का विरोध कर रहे अभाविप के एक कार्यकर्ता का पुलिस की लाठी चार्ज से पैर टूट गया है। जिसके विरोध में अभाविप ने बुधवार को राजधानी के सभी महाविद्यालयों को बंद रखने का आव्हान किया है। वहीं विद्यार्थी परिषद ने भी इसका समर्थन करते हुए छात्रों और प्राचार्यों को सहयोग करने की अपील की है। अंबिकापुर के कॉलेज में पीजी छात्रा के साथ एक प्राध्यापक ने अभद्र व्यवहार किया। जिसका विरोध कर रहे महाविद्यालय के छात्रों और अभाविप के कार्यकर्ताओं के पर पुलिस ने बिना वजह से लाठी चार्ज किया गया। विरोध कर रहे सरगुजा के अभाविप कार्यकर्ता दीपक सिंह तोमर का पैर टूट गया। वहीं विश्वविजय तोमर, अभिषेक सिंह, समीर श्रीवास्तव सहित कई छात्र घायल हुए हैं। जिन्हें अंबिकापुर जिला अस्पताल में भर्ती किया गया है। अभाविप के कार्यालय मंत्री में योगेश धुरंधर ने बताया कि पुलिस बिना किसी वजह और आदेश के बिना बेकसूर छात्रों और अभाविप के कार्यकर्ताओं पर लाठी चार्ज किया। उन्होंने बताया कि पुलिस अधीक्षक अरविंद कुजूर व डीएसपी पंकज शुक्ला ने बिना किसी आदेश के छात्रों पर जमकर लाठियां बरसाई। यह पूर्व योजना के तहत किया गया। इसे लेकर प्रदेश भर के छात्रों में आक्रोश व्याप्त है। अभाविप कार्यकर्ता इस घटना को लेकर न्यायालय और मानवाधिकार के शरण में जाने का फैसला लिया है। उन्होंने कहा कि अभाविप रायपुर महानगर ने छात्रों के साथ हुए इस अत्याचार के विरोध में बुधवार को राजधानी के सभी कॉलेजों को बंद रखने का आव्हान किया है। वहीं विद्यार्थी परिषद भी इस समर्थन करते हुए प्राचार्यों और छात्रों को सहयोग करने की अपील की है। वहीं इस पूरे घटनाक्रम में दोषी अधिकारियों के खिलाफ तत्काल कार्रवाई की मांग की है।

Monday, February 15, 2010

6 लापता आदिवासी सुप्रीम कोर्ट में पेश


छत्तीसगढ़ सरकार ने दंतेवाड़ा हत्याकांड में याचिकाकर्ता लापता 12 आदिवासियों में से छह को सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में पेश किया। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर दिल्ली के प्रधान जिला जज जीपी मित्तल ने इन आदिवासियों के बयान दर्ज किए। मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट मामले की आगे सुनवाई करेगा। सोमवार को छत्तीसगढ़ सरकार ने कोर्ट के आदेश पर अमल करते हुए लापता छह याचिकाकर्ता आदिवासियों को न्यायमूर्ति बी. सुदर्शन रेड्डी व न्यायमूर्ति एसएस निज्झर की पीठ के सामने पेश किया। राज्य सरकार ने कहा कि बाकी के लापता छह आदिवासी आंध्रप्रदेश भाग गए हैं।
पीठ ने जिला जज को इन आदिवासियों के बयान द्विभाषिये के जरिए दर्ज करने का निर्देश दिया और मंगलवार तक कोर्ट में रिपोर्ट दाखिल करने को कहा। कोर्ट ने दिल्ली पुलिस को निर्देश भी दिया कि वह इन आदिवासियों को समुचित सुरक्षा मुहैया कराए।
दंतेवाड़ा जिले में गत वर्ष अक्टूबर में नक्सल विरोधी कार्रवाई के दौरान दस आदिवासियों की मौत हो गई थी। 13 आदिवासियों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर मामले की निष्पक्ष जांच कराने की मांग की थी। लेकिन 13 में से 12 याचिकाकर्ता याचिका दाखिल करने के बाद से ही लापता थे।
पिछली सुनवाई पर जब कोर्ट को इस तथ्य का पता चला तो पीठ ने राज्य सरकार को लापता याचिकाकर्ताओं को ढूंढ कर कोर्ट में पेश करने का निर्देश दिया था।
सोमवार को मामले पर सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से पेश अटार्नी जनरल जीई वाहनवती ने बयान दर्ज करने के लिए आदिवासियों को जिला जज के पास भेजे जाने के बजाय सुप्रीम कोर्ट से स्वयं उनके बयान दर्ज करने का अनुरोध किया। राज्य सरकार की पैरवी कर रहे
सालीसीटर जनरल गोपाल सुब्रामण्यम ने नक्सलियों द्वारा सुरक्षा बलों को निशाना बनाए जाने की बात भी कही। उन्होंने दर्ज टेलीफोन बातचीत का हवाला देते हुए कहा कि पुलिस और सुरक्षा बल कोबरा नक्सलियों की हिट लिस्ट में हैं। वे सिर पर कफन बांध कर काम करते हैं आखिर वे भी इंसान हैं।
पीठ ने उनकी बात से सहमति जरूर जताई, लेकिन कहा कि इन आदिवासियों की सुरक्षा करना उनकी प्राथमिकता है। राज्य का भी दायित्व बनता है कि वह पता करे कि इस मामले में सच्चाई क्या है। सुब्रमण्यम ने प्रभावित इलाके की जमीनी हकीकत बयान करते हुए वहां इन आदिवासियों को पूर्ण सुरक्षा दे पाने में असमर्थता भी जताई।
पीठ ने आदिवासियों को बयान दर्ज कराने के लिए जिला जज के पास पेश करने का आदेश देते हुए मामले को मंगलवार को दोपहर 1.55 पर फिर सुनवाई के लिए लगाए जाने का निर्देश दिया।

Sunday, February 14, 2010

यूं ही नहीं बनी मधुर भंडारकर की जेल




मोबाइल पर बात करने में था मशगुल
रायपुर। जेल की मोटी दीवारों के भीतर कैदियों को सारी सुख,सुविधाएं मिलने के मामले में प्रदेश की जेल पहले से बदनाम है। लेकिन गुरुवार की शाम को अदालत परिसर से बाहर निकलते समय सरेआम हथकड़ी लगे एक कैदी को मोबाइल पर घंटों बात करते देख लोगों के मुंह से निकला वाह क्या बात है। कैदी को मोबाइल पर बतियाते देखकर कई लोगों को मधुर भंडारकर की हालिया रीलिज फिल्म जेल की भी याद आई। दुर्ग जेल से स्थानीय जिला न्यायालय में पेशी पर आए राजेश्वर उर्फ छोटू नामक इस कैदी के हाथ में हथकड़ी लगी थी। क्लेक्ट्रेट चौराहे के पास दो पुलिस कर्मी उसे पकड़ रखे थे लेकिन वह एक हाथ में मोबाइल पकड़ कर बातचीत करने में मशगूल था। इसी दौरान मीडियाकर्मियों की नजर उस पर पड़ी। तत्काल कैमरे में उसकी तस्वीर कैद किया जाने लगा। तभी कैदी के साथ हथकड़ी पकड़े खड़े प्रधान आरक्षक द्वारिका प्रसाद और आरक्षक हीरालाल की नजर मीडिया पर गई। तीनों एक साथ अलर्ट हो गए थे। इस संबंध में जब मीडिया कर्मी ने कैदी से बात की तो उसने साफ कहा कि वह परिवार वालों से बात कर रहा था,मोबाइल परिजनों ने उसे दी है। मारपीट के मामले में दुर्ग जेल में बंद राजेश्वर उर्फ छोटू टिकरापारा का निवासी है। उसने कहा कि वह बहुचर्चित मामले में रायपुर से दुर्ग जेल स्थानांतरित किया गया था। गुरुवार को न्यायालय में मारपीट के प्रकरण में पेशी थी। इसलिए वह यहां आया था। फुर्सत मिलते ही परिजनों द्वारा दिए गए मोबाइल से वह बात करने लगा था। कैदी ने यह भी कहा कि जब जेल में कैदी बात कर सकते तो बाहर बात करने में क्या बुराई है? हालांकि इस दौरान कैदी को लेकर आए पुलिस कर्मी एक दूसरे की जिम्मेदारी बता कर बचने का प्रयास कर रहे


योजना को ठेंगा


पिछले दो साल से प्रदेश के पांच सेंट्रल जेल में मोबाइल जैमर लगने की योजना बनाई गई है। जैमर खरीद भी लिया गया है। लेकिन कैदियों को मिलने वाली ऐसी सुविधा से ही अनुमान लगाया जा सकता है कि जैमर की योजना कितनी कारगर साबित होगी।

मानवाधिकार का डंडा पुलिस पर फेल

रायपुर। प्रदेश के थानों में मानवाधिकारों का कितना पालन हो रहा है, इसका अनुमान राजभवन और मुख्यमंत्री निवास में पहुंची शिकायत से ही लगाया जा सकता है। मानव आधिकार दिवस के आते ही एक सप्ताह पूर्व थानों में मानव अधिकार नियमों का पालन करने का बोर्ड लगाकर एक बार फिर इसके निर्देशों का भली भांति पालन करने का ड्रामा रचाया है। यह ड्रामा पुलिस एक लंबे अर्से से खेलती आ रही है। मानव अधिकार आयोग के निर्देशों का पालन पुलिस थानों में कड़ाई से नहीं किए जाने के कई उदाहरण पिछले महीने पुलिस मुख्यालय में हुई बैठक से ही लगाया जा सकता है। डीजीपी विश्वरंजन ने थाना स्तर पर ही प्रकरणों को निपटने का आदेश देते हुए थानेदारों को राजधानी तक शिकायत पहुंचने पर कड़ी कार्रवाई के संकेत दिया था। इसके बावजूद थानों में मनमानी करने का नया तरीका निकाल लिया गया है। आयोग द्वारा प्रथम सूचना रिर्पोट (एफआईआर) लिखने के निर्देश दिए गए हैं। इसका पालन पुलिस बड़े ही चतुराई के साथ कर रही है। एएफआईआर तो लिखी रही है, लेकिन जिन्हें बचाना है उन्हें बचाने से भी नहीं चूक रही है। अधिकांश मामले में रिर्पोट लिखने के बाद छोटी धारा लगाती है। वहीं राजनीतिक एप्रोच के चलते ऐसे कई प्रकरणों में गंभीर धाराए लगाई गई हैं। ऐसे प्रकरणों में न्यायालय में धारा 307 जैसे गंभीर धाराए तब्दील होकर 324,325 में बदल चुकी हैं। इसी तरह कई प्रकरणों में धारा 324, 325 न्यायालय की फटकार और मेडिकल रिर्पोट के आधार पर 307 में तब्दील हुए हैं।
आठ महीने बाद हुआ मामला दर्ज
कुकरबेड़ा निवासी वृद्ध महिला विभारानी चक्रवर्ती और उसकी तीन पुत्रियों और घायल पुत्र ने जानलेवा हमला करने की नामजद शिकायत सरस्वती नगर थाने में दर्ज करवाई थी। पुलिस ने इस मामले में आरोपियों को बचाते हुए काउंटर रिर्पोट दर्ज कर मामूली धारा लगाकर आरोपी को मुचलके पर छोड़ दिया था। वहीं इस हमले में गंभीर रूप से घायल वृद्धा और उसके पुत्र को महीने भर बाद अस्पताल से छुट्टी मिली थी। मेडिकल रिर्पोट में विभारानी के सिर पर घातक चोट बताई गई थी। इस रिर्पोट को लेकर वह सरस्वती नगर थाना के महीनों चक्कर लगाती रही। लेकिन आरोपियों की गंभीर धारा में गिरफ्तारी नहीं की गई। पीड़िता ने इस मामले में अखिल भारतीय मानवाधिकार संगठन के सहयोग से घटना की शिकायत डीजीपी विश्वरंजन से की गई। इस दौरान पूरे आठ महीने बीत गए थे। पीड़िता के लंबे संघर्ष के बाद सरस्वती नगर पुलिस ने धारा 307 के तहत अपराध कायम कर दो आरोपियों की गिरफ्तारी की है। चक्रवर्ती परिवार का आरोप है कि आरोपी आधा दर्जन से अधिक थे।
बदसलूकी के मामले में इजाफा
पुलिस द्वारा राह चलते लोगों से पूछताछ के आड़ में बदसलूकी करने और लाठी प्रहर की शिकायत थानों में पेडिंग पड़ी है। ऐसे मामले में दोषी पुलिसकर्मियों को बचाने का प्रयास भी चल रहा है। यातायात पुलिस द्वारा भी वाहन के दस्तावेज जांच करने के नाम पर बदसूलकी करने की शिकायत गृह मंत्री ननकीराम कंवर तक पहुंची है। टिकारापारा थाने में पेट्रोलिंग स्टाप द्वारा बदसूलकी किए जाने की पांच महीने पहले की गई शिकायत में अब तक जांच चल रही है। वहीं पिछले सप्ताह गोल बाजार थाने के स्टाप ने भी आधी रात पूछताछ की आड़ में बदसलूकी कर नागरिकों को धमकाने का प्रयास किया। बंजारी रोड निवासी हर्षवर्धन पुरोहित उर्फ डब्बू व अजय पाटिल उर्फ जिप्सी व दिनेश सोनी ने इसकी शिकायत पुलिस महानिरीक्षक कार्यालय में लिखित रूप से की है।

कबाड़ का खेल फिर शुरू

आउटर में फलने-फूलने लगा है धंधा, बड़े कारोबारी पकड़ से बाहर
रायपुर। एक समय कबाड़ के अवैध कारोबार में जुड़े लोगों के पीछे राजधानी पुलिस हाथ धोकर पीछे पड़ी हुई थी। उस समय बड़े कारोबारियों के यार्ड में मारे गए छापे के दौरान करोड़ों का लौहा पकड़ा गया था। इससे बड़े से लेकर छोटे कबाड़ी धंधा बंदकर भूमिगत हो गए थे। लेकिन पुलिस की धरपकड़ की कार्रवाई बंद होते ही राजधानी के आउटर में कबाड़ का धंधा फिर से फलने फूलने लगा है। पुलिसिया कार्रवाई से कई लोहा कारोबारियों को भारी क्षति उठानी पड़ी थी, इसकी भरपाई करने में अब वे दिन रात एक करने में जुट गए है। राजधानी के उरला, खमतराई, टाटीबंध ,आमानाका क्षेत्र सहित अन्य स्थानों में रात के समय कबाड़ का खुला खेल होते देखा जा सकता है। छह माह पूर्व टाटीबंध चौक के समीप जीई रोड से लगे दिनेश अग्रवाल के यार्ड में पुलिसिया छापे में मिले करोड़ों के लौह अयस्क के बाद राजधानी पुलिस ने बड़े कबाड़ियों पर सीधे नकेल कसने के संकेत दिए थे। उस समय करीब आधा दर्जन से अधिक बड़े लोहा कारोबारियों के यार्डों में हुई छापामार कार्रवाई में हालांकि बड़े कारोबारी मौके पर नहीं मिले पर छोटे कर्मचारियों व मजदूरों पर पुलिस ने जरूर कार्रवाई की थी। पुलिस अफसरों ने अवैध लोहे की जप्ती के बजाए सीधे चोरी का अपराध दर्ज कर यार्ड संचालक को गिरफ्तार करने का ऐलान किया था पर अच्छेलाल जायसवाल को छोड़कर कोई बड़ा कारोबारी,यार्ड संचालक व ट्रांसपोर्टर की गिरफ्तारी नहीं हो पाई। दिनेश अग्रवाल के यार्ड में छापे की कार्रवाई में करीब पांच करोड़ का अवैध लोहा, कापर, रेलपांत व बीएसपी के सेल की सील लगे लोहे के कई तरह के सामानों को जब्त किया गया था। काफी प्रयास के बाद भी दिनेश अग्रवाल पुलिस की गिरफ्त में नहीं आ सका। जबकि उसके राजधानी में ही रहने की लगातार खबरें आ रही थीं। पुलिस का मानना है कि हर गंभीर अपराध के पीछे कबाड़ का अवैध कारोबार ही वजह बनती है। यह संगठित अपराध की श्रेणी में आ चुका है। लोहे के कारण कई ट्रक चालकों की हत्या तक हो चुकी हैं। खमतराई इलाके में खलासी की लाश मिलना, सिमगा में हुई घटना, भिलाई में हुई हत्या में कबाड़ी सलीम की गिरफ्तारी के साथ अनेक ऐसे मामले सामने आ चुके है। जिसका संबंध कबाड़ के अवैध कारोबार से जुड़ा हुआ पाया गया है। पुलिस सूत्रों का दावा है कि जब तक इस कारोबार से जुड़ी बड़ी मछलियों पर नकेल नहीं कसा जाएगा, यह संगठित अपराध रुकने वाला नहीं है। नकेल कसना जरूरी : छह माह पूर्व एएसपी सिटी रजनेश सिंह ने पदभार संभालते ही कबाड़ियों पर नकेल कसने के क्रम में जब दिनेश अग्रवाल के यार्ड में छापा मारा था तब बड़े लोहा कारोबारियों में हड़कंप मचा गया था। कबाड़ के खेल में वर्षों से लाल हो रहे बड़े कबाड़ियों पर पुलिस की नजर क्या लगी, अच्छेलाल जायसवाल, रामप्रसाद जायसवाल, कैलाश अग्रवाल,दिनेश अग्रवाल,शकील कबाड़ी सहित अन्य बड़े कारोबारी रातों-रात शहर से गायब हो गए। हालांकि बाद में इनमें कुछ को पकड़कर जेल भेजा गया था। लोहे के कारोबार में दीगर प्रांत के लोगों के भी शामिल हो जाने से स्थिति बिगड़ने लगी है। भिलाई के हैवी ट्रांसपोर्ट कार्पोरेशन के संचालक वीरा सिंह सहित अन्य की तलाश पुलिस अब तक कर रही है। सूत्रों का दावा है कि राजनैतिक दबाव में धरपकड़ की कार्रवाई पुलिस ने बंद कर रखी है।
बिल, दस्तावेजों से होता है खेल
पुलिस सूत्रों ने के अनुसार जब भी अवैध लोहा पकड़ा जाता है, यार्ड संचालक बिल लेकर पुलिस के पास पहुंच जाते हैं। ऐसे में जप्त माल को छोड़ना पड़ता है। लेकिन बिलों की सघन जांच पड़ताल होने से कबाड़ियों की होशियारी पकड़ में आने लगी है। पुलिस का कहना है कि लोहा अगर एक नंबर में बीएसपी से निकला होगा तो नियमत: कंपनी द्वारा इसका लेटर जारी किया जाता है। जिसकी पुष्टि पत्रों के आधार पर करने में आसानी होती है।
कुमार सतीश
राजधानी को रात के वक्त अपराधियों से सुरक्षित रखने के लिए अतिरिक्त बलों की व्यवस्था की जाएगी। इसके तहत बल की व्यवस्था करने की कवायद शुरू कर दी गई है। रात में पाइंट ड्यूटी के लिए तैनात जवानों की संख्या दोगुने करने पर विचार किया जा रहा है। प्रशासन द्वारा नक्सली समस्या के लिए चलाए जाने वाले आपरेशन ग्रीन हंट के तहत राजधानी की सुरक्षा और भी मजबूत करने के लिए ही जवानों की संख्या दोगुनी करने पर विचार किया जा रहा है।वर्तमान में राजधानी के 15 प्रमुख चौक-तिराहों पर इंसासधासी 30 जवानों को तैनात किया गया है। जवानों को सख्त हिदायत दी गई है कि वे ड्यूटी के दौरान हर वक्त सजग इनका काम रात 11 बजे से शुरू होकर सुबह 6 बजे तक चलता है। हाल ही में सुरक्षा व्यवस्था के मद्देनजर जवानों को कम वजन के हथियार मुहैय्या कराए गए हैं। इसके तहत जवानों को पूर्व में दिए गए थ्री नॉट थ्री रायफल वापस लेकर उन्हें आटोमेटिक हथियार इंसास थमाए गए हैं। बताया जाता है कि विभाग शीघ्र ही इन जवानों की संख्या को दोगुना करेगा। इसका प्रमुख शहर के साथ-साथ तैनात जवानों के हथियारों की सुरक्षा व्यवस्था भी मजबूत करना है। बताया जाता है कि पाइंट ड्यूटी पर तैनात दो जवानों में से यदि एक अवकाश पर चला जाए, तो दूसरे को अप्रत्यक्ष रूप से ड्यूीट पर नहीं जाने की बात कह दी जाती है। इसका कारण उक्त जवान के पास रखे अत्याधुनिक हथियार की सुरक्षा करना है। बताया जाता है कि विभाग हथियारों को लेकर किसी भी प्रकार का जोखिम नहीं लेना चाहता है। यदि इन हथियारों को लूट लिया गया, तो लुटेरे द्वारा कोई भी गंभीर अपराध को अंजाम दिया जा सकता है। तैनात किए गए सभी जवानों को यह सख्त निर्देश दिए गए हैं कि वे रात के वक्त अपने-अपने पाइंट की खासी निगरानी करें। कोई भी व्यक्ति यदि संदिग्ध अवस्था में घूमता हुआ पाया जाए, तो उससे पूछताछ की जाए। राजधानी को रात के वक्त अपराधियों से सुरक्षित रखने के लिए अतिरिक्त बलों की व्यवस्था की जाएगी। इसके तहत बल की व्यवस्था करने की कवायद शुरू कर दी गई है। रात में पाइंट ड्यूटी के लिए तैनात जवानों की संख्या दोगुने करने पर विचार किया जा रहा है। प्रशासन द्वारा नक्सली समस्या के लिए चलाए जाने वाले आपरेशन ग्रीन हंट के तहत राजधानी की सुरक्षा और भी मजबूत करने के लिए ही जवानों की संख्या दोगुनी करने पर विचार किया जा रहा है।
नींद आएगी,तो उड़ेगा चैन
जवानों को रात के वक्त मुस्तैदी से पाइंट पर नजर हिदायत दी गई है। इस दौरान उन्हें यह ध्यान रखना है कि उनके क्षेत्र में किसी भी प्रकार की अपराधिक घटनाएं घटित न हो सके। किसी भी प्रकार की संदिग्ध गतिविधि होने पर तत्काल कंट्रोल को सूचित करने के निर्देश दिए गए हैं। ड्यूटी के दौरान यदि कोई भी जवान सोता हुआ या आराम फरमाता हुआ पाया जाएगा, तो उसके खिलाफ नियमानुसार सख्त कार्रवाई की जाएगी। ट्रैफिक नियंत्रण के नाम पर अवैध वसूली करने वालों के खिलाफ पुलिस प्रशासन ने कड़ा रुख अख्तियार कर लिया है। मामले को लेकर आईजी डीएम अवस्थी ने निर्देश दिए कि चालानी कार्रवाई में पूरी ईमानदारी बरती जाए। इसमें किसी भी प्रकार अनियमितता की शिकायत पाए जाने पर संबंधित कर्मचारी या अधिकारी की तत्काल बर्खास्तगी होगी। अवैध वसूली के लिए बदनाम हो चुकी पुलिस पर लगाम कसने के लिए आईजी श्री अवस्थी ने कड़े कदम उठाने शुरू कर दिए हैं। इस क्रम में अब पीड़ित जनता उनसे सीधे अवैध वसूली की शिकायत कर सकती है। उनकी शिकायत पर तत्काल जांच के निर्देश जारी कर दोषी व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। विदित हो कि ट्रैफिक नियम का पालन कराने के लिए तैनात किए गए पुलिस कर्मियों द्वारा खुलेआम अवैध वसूली की जाती है।

Friday, February 12, 2010


kumar satish

kumar satish

सदियों तक नहीं भुला पाएंगे रफी

सदियों तक नहीं •ाुला पाएंगे रफी साहा को आवाज की दुनिया के ोताज ाादशाह मोहम्मद रफी ने जा 31 जुलाई 1980 को एक गाने की रिकार्डिंग पूरी करने के ााद संगीतकार लक्ष्मीकांत प्यारे लाल से यह कहा कि ‘ओके नाउ आई विल लीव’ ता यह किसी ने •ाी नहीं सोचा था कि आवाज का यह जादूगर उसी शाम इस दुनिया को अलविदा कह जायेगा। संगीत के प्रति समर्पित मोहम्मद रफी क•ाी •ाी अपने गाने को पूरा किए ािना रिकार्डिंग रूम से ााहर नहीं निकला करते थे। उस दिन अपने संगीतकार से कह गए शद उनके व्यावसायिक जीवन के आखिरी शद सााित हुये। उसी शाम 7 ाजकर 30 मिनट पर मोहम्मद रफी को दिल का दौरा पÞडा और वह अपने कराÞडों प्रशंसकों को छोÞडकर इस दुनिया से हमेशा-हमेशा के लिए चले गये। मोहम्मद रफी आज हमारे ाीच नहीं हैं लेकिन फिजा के कण-कण में उनकी आवाज गूंजती हुई महसूस होती है। हिंदुस्तान का हर संगीत प्रेमी मोहम्मद रफी की दिलकश आवाज का दीवाना है। विदेशों में उनकी लोकप्रियता का अंदाजा इसी ाात से लगाया जा सकता है कि 70 के दशक में पाकिस्तान में जितने लोकप्रिय मोहम्मद रफी थे उतनी लोकप्रियता वहां के प्रधानमंत्री जुल्फीकार अली •ाुट्टो को •ाी हासिल नहीं थी। एक गाने ने मोहम्मद रफी को खासतौर से पाकिस्तान मे हर दिल अजीज ाना दिया था। फिल्म समझौता का यह गाना ‘ाÞडी दूर से आए हैं प्यार का तोहफा लाए है’ ांटवारे के ााद अपने रिश्तेदारों से ािछड़े हर पाकिस्तानी की आंखें आज •ाी नम कर देता है। पाकिस्तान में ही नहीं ा्रिटेन, केन्या, वेस्टइंडीज मे •ाी मोहम्मद रफी के गाने पसंद किए जाते हैं। मोहम्मद रफी ाचपन में अपने माता-पिता के साथ लाहौर में रह रहे थे। उन दिनों अक्सर उनके मोहल्ले मे एक फकीर का आना जाना लगा रहता था। उसके गीत सुनकर मोहम्मद रफी के दिल मे संगीत के प्रति लगाव पैदा हुआ जो दिन पर दिन ाÞढता गया। उनके ाड़े •ााई हमीद ने मोहम्मद रफी के मन मे संगीत के प्रति ाÞढते रुझान को पहचान लिया और उन्हें इस राह पर आगे ाÞढने के लिए प्रेरित किया। रफी ने लाहौर में उस्ताद अदुल वाहिद खान से संगीत की शिक्षा लेना शुरू कर दिया। इसके अलावा वह गुलाम अलीखान से •ाारतीय शास्त्रीय संगीत •ाी सीखा करते थे। उन दिनों रफी और उनके •ााई संगीत के एक कार्यक्रम में सुप्रसिद्ध गायक कलाकार केएल सहगल के गानों को सुनने के लिए गये। लेकिन ािजली चली जाने के कारण जा केएल सहगल ने गाने से इंकार कर दिया ता उनके •ााई हमीद कार्यक्रम के संचालक के पास गए और उनसे गुजारिश की कि वह उनके •ााई रफी को गाने का एक मौका देें। संचालक के राजी होने पर रफी ने पहली ाार 13 वर्ष की उम्र में अपना पहला गीत स्टेज पर दर्शकों के ाीच पेश किया। दर्शकों के ाीच ौठे संगीतकार श्याम सुंदर को उनका गाना काफी पसंद आया और उन्होंने रफी को मुांई आने का न्यौता दे दिया। श्याम सुदंर के संगीत निर्देशन में रफी ने अपना पहला गाना एक पंजााी फिल्म ‘गुलालोच’ के लिए ‘सोनिए नी हिरीए नी’ पार्श्व गायिका जीनत ोगम के साथ गाया। वर्ष 1944 में नौशाद के संगीत निर्देशन में उन्होंने अपना पहला हिन्दी गाना ‘हिन्दुस्तान के हम हैं’ ‘पहले आप’ फिल्म के लिए गाया लेकिन इस फिल्म के जरिए वह कुछ खास पहचान नहीं ाना पाये। लेकिन वर्ष 1949 में नौशाद के संगीत निर्देशन में ही फिल्म ‘दुलारी’ में गाए गीत ‘सुहानी रात ढल चुकी’ के जरिए रफी ने सफलता की ऊंचाइयों पर चÞढना शुरू किया और उसके ााद उन्होंने पीछे मुÞडकर नहीं देखा। साठ के दशक में दिलीप कुमार, देवानंद, शम्मी कपूर, राजेन्द्र कुमार, शशि कपूर, राजकुमार जैसे नामचीन नायकों की आवाज कहे जाने वाले रफी ने अपने तीन दशक से •ाी ज्यादा लंो कॅरियर में लग•ाग 26000 फिल्मी और गैर फिल्मी गाने गाये। उन्होंने हिन्दी के अलावा मराठी, तेलुगू और पंजााी फिल्मों के गीतों के लिए •ाी अपना स्वर दिया। रफी के गाए गीतों में से कुछ सदााहार गीतों को याद कीजिए- तू गंगा की मौज (ौजू ाावरा-1952), नन्हे मुन्ने ाच्चे तेरी मुट्ठी में क्या है (ाूट पालिश-1953), उÞडे जा जा जुल्फें तेरी (नया दौर-1957), दो सितारों का जमीं पर है मिलन (कोहीनूर-1960), सौ साल पहले हमें तुमसे प्यार था (जा प्यार किसी से होता है-1961), हुस्न वाले तेरा जवाा नहीं (घराना-1961), तेरी प्यारी प्यारी सूरत को किसी की नजर न लगे (ससुराल-1961), ए गुलादन ए गुलादन (प्रोफेसर-1962), तुझे जीवन की डोर से ाांध लिया है (असली नकली-1962), मेरे महाूा तुझे मेरी मोहात की कसम (मेरे महाूा-1963), दिल एक मंदिर है (दिल एक मंदिर-1963), जो वादा किया वो नि•ााना पÞडेगा (ताजमहल-1963), ये मेरा प्रेम पत्र पÞढकर (संगम-1964), छू लेने दो नाजुक होठों को (काजल-1965), पुकारता चला हंू मैं (मेरे सनम-1965), ाहारों फूल ारसाओ मेरा महाूा आया है (सूरज-1966), दिल पुकारे आ रे आरे आरे (ज्वैल थीफ-1967), मैं गाऊं तुम सो जाओ (ा्रह्मचारी-1968), ाााुल की दुआंए लेती जा (नीलकमल-1968), ोखुदी में सनम (हसीना मान जायेगी-1968), आने से उसके आए ाहार (जीने की राह-1969), ओ हसीना जुल्फो वाली (तीसरी मंजिल-1969), खिलौना जानकर मेरा दिल तोÞड जाते हो (खिलौना-1970), आजा तुझको पुकारे मेरे गीत (गीत-1970), झिलमिल सितारों का आंगन होगा (जीवन मृत्यु-1970), यूं ही तुम मुझसे ाात करती हो (सच्चा झूठा-1970), कितना प्यारा वादा है (कारवां-1971), इतना तो याद है मुझे (महाूा की मेंहदी-1971), कुछ कहता है ये सावन (मेरा गांव मेरा देश-1971), चुरा लिया है तुमने जो दिल को (यादों की ाारात-1973), तेरी ािंदिया रे (अ•िामान-1973), वादा करले साजना (हाथ की सफाई-1974), पर्दा है पर्दा (अमर अकार एंथानी-1977), क्या हुआ तेरा वादा (हम किसी से कम नहीं-1977), आदमी मुसाफिर है (अपनापन-1978), चलो रे डोली उठाओ (जानी दुश्मन-1979) दर्दे दिल दर्दे जिगर (कर्ज-1980), मैंने पूछा चांद से (अदुल्ला-1980), मेरे दोस्त किस्सा ये क्या हो गया (दोस्ताना-1980) और जनम जनम का साथ है (•ाींगी पलकें-1982)। मोहम्मद रफी को मिले सम्मानों को देखें तो उन्हें गीतों के लिए 6 ाार फिल्म फेयर का अवार्ड मिला है। उन्हें पहला फिल्म फेयर अवार्ड वर्ष 1960 में प्रदर्शित फिल्म (चौंदहवी का चांद) फिल्म के ‘चौंदहवी का चांद हो या आफताा हो’ गाने के लिए दिया गया था। इसके अलावा उन्हें ‘तेरी प्यारी प्यारी सूरत को किसी की नजर न लगे’ (ससुराल 1961) के लिए •ाी मोहम्मद रफी को सर्वश्रेष्ठ गायक का फिल्म फेयर पुरस्कार प्राप्त हुआ। वर्ष 1966 में फिल्म (सूरज) के गाने ‘ाहारों फूल ारसाओ मेरा महाूा आया है’ के लिए मोहम्मद रफी को सर्वश्रेष्ठ गायक और वर्ष 1968 में (ा्रम्ह्चारी) फिल्म के गाने ‘दिल के झरोकों में तुझको छुपाकर) के लिए सर्वश्रेष्ठ गायक के फिल्मफेयर पुरस्कार से सम्मानित किए गये। इसके पश्चात उन्हें फिल्म फेयर अवार्ड के लिए लग•ाग 10 वर्ष इंतजार करना पÞडा। वर्ष 1977 में नासिर हुसैन की (हम किसी से कम नहीं) में गाए उनके गीत ‘क्या हुआ तेरा वादा’ के लिए उन्होंने सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायक के रूप में फिल्म फेयर अवार्ड हासिल किया। इसी गाने के लिए वह नेशनल अवार्ड से •ाी सम्मानित किए गये। संगीत के क्षेत्र में मोहम्मद रफी के महत्वपूर्ण योगदान को देखते हुए •ाारत सरकार ने उन्हें वर्ष 1965 में पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया। रफी के पसंदीदा संगीत निर्देशकों के तौर पर नौशाद का नाम सासे उपर आता है। रफी के पहले तलत महमूद नौशाद के चहेते गायक थे लेकिन एक रिकार्डिंग के दौरान तलत महमूद को सिगरेट पीते देखकर नौशाद गुस्सा हो गए और ााद में उन्होंंने (ौजू ाावरा) फिल्म के लिए तलत महमूद की जगह मोहम्मद रफी को गाने का मौका दिया। •ाारत, पाकिस्तान वि•ााजन के ााद नौशाद और रफी ने •ाारत में ही रहने का फैसला किया। इसके ााद जा क•ाी नौशाद को अपनी फिल्मों के लिए गायक कलाकार की जरूरत होती थी वह मोहम्मद रफी को ही काम करने का मौका दिया करते थे। उनके इस व्यवहार को देखकर ाहुत लोग नाखुश थे। फिर •ाी नौशाद ने लोगों की अनसुनी करते हुए मोहम्मद रफी को ही अपनी फिल्मों में काम करने का अधिक मौका देना जारी रखा। नौशाद, मोहम्मद रफी की जोÞडी के कुछ गानों में ‘न तू जमीं के लिये’ (दास्तान), दिलरूाा मैंने तेरे प्यार में क्या क्या न किया (दिल दिया दर्द लिया), ए हुस्न जरा जाग तुझे इश्क जगाये (मेरे महाूा), तेरे हुस्न की क्या तारीफ करूं (लीडर), कैसी हसीन आज ाहारों की रात है (आदमी), कल रात जिंदगी से मुलाकात हो गई (पालकी), हम हुए जिनके लिएर् ाााद (दीदार), मधुान में राधिका नाची रे (कोहीनूर), नैन लÞड जइहे तो मनवा में कसक (गंगा जमुना), जैसे सुपर हिट नगमें शामिल हैं। मोहम्मद रफी के गाए गीतोंं को नौशाद के अलावा एसडी ार्मन, ओपी नैयर, मदन मोहन, शंकर जयकिशन, लक्ष्मीकांत प्यारे लाल और रवि ने •ाी अपने संगीत से संवारा है। एसडी ार्मन के संगीत निर्देशन में रफी ने देवानंद के लिए कई सुपरहिट गाने गाए जिनमें ‘दिल का •ांवर’, ‘ोखुदी में सनम’, ‘खोया खोया चांद’ जैसे गाने शामिल हैं। पचास और साठ के दशक में ओपी नैयर के संगीत निर्देशन में •ाी रफी ने गीत गाये। ओपी नैयर मोहम्मद रफी के गाने के अंदाज से ाहुत प्र•ाावित थे। उन्होंंने किशोर कुमार के लिए मोहम्मद रफी से ‘मन मोरा ाांवरा’ गीत फिल्म (रंगीली) के लिए गवाया। शम्मी कपूर के लिए •ाी रफी और ओपी नैयर की जोÞडी ने ‘यंू तो हमने लाख हसीं देखे हैं, तुमसा नहीं देखा’, ‘तारीफ करूं क्या उसकी जिसने तुम्हें ानाया’ और ‘कश्मीर की कली’ जैसे सदााहार गीत गाकर शम्मी कपूर को उनके कॅरियर की ऊंचाइयों तक पहुंचाने में अहम •ाूमिका नि•ााई है। मदन मोहन के संगीत निर्देशन में •ाी मोहम्मद रफी की आवाज ाहुत सजती थी। इन दोनों की जोÞडी ने ‘तेरी आंखों के सिवा इस दुनिया में रखा क्या है’, ‘ये दुनिया ये महफिल मेरे काम की नहीं’ और ‘तुम जो मिल गए हो’ जैसे न •ाूलने वाले गीत ानाए हैं। साठ और सत्तार के दशक में मोहम्मद रफी की जोÞडी संगीतकार लक्ष्मीकांत, प्यारेलाल के साथ काफी पसंद की गई। रफी और लक्ष्मी-प्यारे की जोÞडी वाली पहली हिट फिल्म (पारसमणि) थी। इसके ााद इन दोनों की जोÞडी ने कई सुपरहिट फिल्मों मे एक साथ काम किया। वर्ष 1964 में जहां फिल्म (दोस्ती) के लिए मोहम्मद रफी सर्वश्रेष्ठ पार्श्वगायक के फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किए गए वहीं लक्ष्मीकांत, प्यारेलाल को •ाी इसी फिल्म के लिए सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का फिल्म फेयर पुरस्कार प्राप्त हुआ। हालांकि फिल्म की शुरुआत के समय यह गाना महिला पार्श्व गायक की आवाज में रिकार्ड होना था लेकिन गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी के कहने पर संगीतकार लक्ष्मीकांत प्यारेलाल ने इस गाने को रफी की ही आवाज दी।

Thursday, February 11, 2010

आह..उफ...ओह...मैनपाट


सतीश पाण्डेय

छत्तीसगढ़ का शिमला कहें जाने वाले सरगुजा जिले के मैनपाट में आज वह प्राकृतिक प्रदत सुंदरता नही ाची जो दस-ाीस साल पहलें हुआ करती थी। वहां के हरें-•ारें उजड़े वनों को देखकर हर कोई यही सवाल करता हैं आखिर कहां गया वह मैनपाट जहां प्रकृति ने मानों अपनी पूरी सुंदरता ही ािखेर दिये थे। क•ाी यहां चहुंओर हरे-•ारे पहाड़, आसमां को छुने की कोशिश करते दिखाई देने वाले ऊंचे-ऊंचे साल के पेड़,ाारहो माह ठण्ड के खुशनुमा मौसम का मजा लेने के ााद हर किसी का मन करता था आ तो ास यही रह लिया जाए। इन्ही सा विशेषताओं के कारण ही मैनपाट को छत्तीसगढ़ के शिमला की उपाधि मिली और ग्रीष्मकालीन राजधानी कहा जाने लगा। लेकिन अफसोस मैनपाट में न तो हरियाली ाची न ाारहों माह ठंड देने वाले खुशनुमा मौसम। ााक्साइट से अटे पड़े मैनपाट में सोलह साल पहले ााल्कों ने शासन-प्रशासन से अनुमति लेकर धरती से ााक्साइट का उत्तखन्न करना शुरू क्या किया आदमी की •ाूख साल के सघन वृक्षों और मैनपाट की सुंदरता पर ऐसी हावी हुई कि आ तक यह •ाूख शांत नही हो सकी। क•ाी वनों की सघनता से सूर्य की किरणों के लिए तरसनें वाली मैनपाट की धरती आज सपाट मैदान में परिवर्तित हो गयी। ऐसा नही हैं कि आदमी की •ाूख को रोकने का प्रयास नही हुआ,कथित प्रयासों के ाावजूद यह •ाूख नही मिटी तो इसके पीछे केवल एक ही कारण नजर आता हैं वह यह कि स्थानीय लोगों के साथ ही जिनके कंधें पर सुरक्षा का •ाार था वें •ाी वनों से आच्छित वनों की कटाई को रोक पाने में असफल रहें। पहले यह •ाूख चंद लोगों तक सिमित थी ााद में संगठित होकर सामूहिक रूप से इस कदर वनों पर हमला हुआ कि पता ही नही चला कि का वंदना गांव की घाट की शुरूआत से लेकर मैनपाट के अंतिम झोर पर ासे परपटिया गांव तक की अटूट हरियाली,वनों से •ारें और साल के इठलातें-खड़े पेड़ का पूरा क्षेत्र सपाट हो गए। वन वि•ााग के अमलें ने क•ाी साल ोरर तो ााक्साइट खदान के नाम पर जगंलों की ोपरवाह अंधाधुंध कटाई कर एक झटके में साल के लाखों पेड़ काट डाले। रही सही कसर ााक्साइट दोहन ने पूरा कर डाला। क्षेत्र में •ाारत एल्यूमिनियम कंपनी(ाालकों)की ााक्साइट खदानें वर्ष1993 से लगातार खुलनें के कारण पर्यावरण की स्थिति ोहद खराा हो चुकी हैं,हालात यह है कि वर्षो पहलें जिसने मैनपाट के प्राकृतिक सुंदरता को देखा हैं वह आज के मैनपाट को देख ले तो उसे अपनी आंखों पर •ारोसा नही होगा कि प्रकृति की खूासूरत रचना आखिर धरती से विलुप्त कैसे हो गयी? 00करोड़ो खर्च पर नतीजा शून्य00मैनपाट को छग की ग्रीष्मकालीन राजधानी और शिमला की तर्ज पर हिल स्टेशन ानानें राज्य सरकार द्वारा करोड़ो रूपये पानी की तरह ाहाये लेकिन नतीजा शून्य रहा। पिछले चार वर्षो में पर्यटन के नक्शे में छत्तीसगढ़ की पहचान स्थापित हुई हैं। आदिवासी ाहुल सरगुजा में पर्यटन के विकास हेतु 25 करोड रूपये के विकास कार्य कराए जा रहे हैं इसमें से 10 करोड़ के कार्य मैनपाट में मोटल ानाने,सड़क निमार्ण,टाईगर प्वाइंट को विकसित करने पर खर्च किये जा रहे हैं। स•ाी का निमार्ण कार्य चल रहा हैं00 सड़क ादहाल-मैनपाट पंहुचना हुआ मुहाल00सरगुजा जिला मुख्यालय अंािकापुर से मैनपाट जाने के लिए दो रास्ते हैं। अंािकापुर-रायगढ़ मार्ग में स्थित काराोल-सीतापुर होकर मैनपाट पंहुचनें में दो से अढ़ाई घंटे लगते है,दूरी करीा 78 किलोमीटर हैं। जाकि दरिमा होते हुए मैनपाट की दूरी 50 किमी हैं लेकिन आज दोनों मार्गो की हालत ादहाल होने से कुछ घंटे का सफर कई घंटों में ादल गया हैं वह •ाी कष्टप्रद। दो दशक पूर्व काराोल से मैनपाट तक का सफर सुहाना था। डामर की पतली सर्पीली सड़क पर चलते हुए पता •ाी नही चलता था कि का मछली नदी पर स्थित टाइगर प्वाइंट पंहुच गये। लेकिन आज के हालात देखकर रोना आ जाता हैं। कई ाार दोनों मार्गो का निमार्ण हुआ पर पिछले साल ही आधा -अधूरा निर्मित सड़क पर क्षमता से अधिक ााक्साइट का परिवहन और धूल उड़ाती ट्रकों से सड़कों की हालत ादहाल हो गयी हैं। 00स•ाी हैं मौन00मैनपाट में तेजी से ािगड़ते पर्यावरण की ओर न सरकार,न जिला प्रशासन और ना ही जनप्रतिनिधि,नेताओं का ध्यान आ तक गया हैं। पर्यावरण की रक्षा की लांी-चौड़ी ाात हर कोई करता हैं लेकिन अमल कराने के प्रति स्वंय ाालकों गं•ाीर नही हैं। इस सूरतेहाल में छग का शिमला कहें जाने वाले मैनपाट को पर्यटक स्थल ानानें की योजना पर पानी फिर सकता हैं।



kumar satish


पैसे और दहशत का खेल...

कोई भी पैसों के बल पर बुला ले रहा है
सतीश पाण्डेय
शांत समझे जाने वाले राज्य छत्तीसगढ़ में सुपारी और शूटर संस्कृति के पांव तेजी से फैलने लगे हैं। राजधानी रायपुर समेत प्रदेश के भिलाई, कांकेर, अंबिकापुर, कोरबा, महासमुंद आदि जिलों में आपसी रंजिश भुनाने भाड़े के शूटर के माध्यम से करीब दर्जन भर हत्याएं कराई जा चुकी हैं। हालांकि छत्तीसगढ़ पुलिस की तेज तर्रार कार्रवाई के कारण कई शूटर जेल की हवा खा रहे हैं। वहीं कई की तलाश जारी है। राजधानी रायपुर समेत प्रदेश के अन्य प्रमुख शहरों में पिछले कुछ सालों में शूटरों की मदद हर बड़े कारोबार-धंधे से जुड़े लोग ले रहे हैं। खासकर यूपी के शूटरों की मांग छत्तीसगढ़ में ज्यादा है। व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा में आपसी रंजिश कोई नई बात नहीं है। छोटे-मोटे विवाद अक्सर सामने आते रहे हैं लेकिन विवाद में किसी की जान तक ले लिया जाए,यह संस्कृति पिछले कुछ सालों में पनपी है। यह सिलसिला अब तक जारी है। छत्तीसगढ़ में सुपारी किलर का खूनी खेल सर्वप्रथम 1997 में सामने आया था। उस समय रंगदार किस्म के नेता देवेन्दर सिंह खालसा की हत्या शहर के बदमाशों ने सुपारी लेकर की थी। इस वारदात के बाद पहली बार छत्तीसगढ़ के अपराध जगत में शूटर शामिल हुए थे। हालांकि यह हत्या राजनैतिक इशारों पर कराई गई बताई गई थी। मामले में शिवसेना से जुड़े चार लोगों की गिरफ्तारी हुई थी। वहीं कांग्रेस से जुड़े एक परिवार के कुछ लोग भी पकड़े गए थे,जिन पर खालसा परिवार ने हत्या का आरोप लगाया था। इसके बाद वर्ष 2003 में जोगी शासनकाल के दौरान चुनाव से पूर्व राकांपा कोषाध्यक्ष रामअवतार जग्गी की शूटरों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी। यह मामला प्रदेश की राजनीति में लंबे समय तक सुर्खियों में छाया रहा। इसी तरह कांकेर में 22 अप्रैल 05 को नगर पालिका अध्यक्ष रवि श्रीवास्तव की हत्या कर दी गई थी। तपन सरकार गिरोह ने सुपारी लेकर इस हत्याकांड को अंजाम दिया था। मामले में सात लोगों की गिरफ्तारी हुई थी। इसी कड़ी में राजधानी के महेन्द्र टेÑव्हलर्स के संचालक सतवंत सिंह गिल उर्फ गप्पू सेठ की हत्या उत्तर प्रदेश के मौदाहा के पेशेवर शूटरों द्वारा कर दी गई। इस मामले में सद्दाम टेÑव्हलर्स के संचालक मदारी बंधुओं को भी गिरफ्तार किया गया था। डेढ़ माह पहले पंडरी कपड़ा मार्केट में हवाला कारोबारी अमर आहूजा और मनीष लुथरिया की अज्ञात शूटरों द्वारा की गई हत्या का मामला प्रदेश भर में गर्माया रहा। इसके आरोपी अब तक पकड़े नहीं जा सके। जबकि महासंमुद के बागबहरा क्षेत्र के कुमा खान में वर्ष 2001 में व्यापारी शेखर जैन को स्टेशन जाते समय भिलाई व यूपी के शूटरों ने उड़ाया था। हत्या के बाद व्यापारी का रुपए से भरा बैग लेकर भागते कुछ आरोपियों को पुलिया गांव के ग्रामीणों ने घेराबंदी कर पकड़ा था। इसी बीच भिलाई में एक बीएसपी अधिकारी की तपन सरकार गिरोह के शूटर शैलेन्द्र सिंह ठाकुर ने हत्या कर दी थी। वर्ष 2009 में चिरमिरी कालरी के तकनीकी अधिकारी जीपी मिश्रा का अपहरण कोरबा से उस वक्त कर लिया गया था जब वे अपनी मारुति कार की मरम्मत कराने गए थे। बाद में अपहरणकर्ताओं ने पश्चिम बंगाल के वर्धमान जिले में उनके पुत्र अतुल मिश्रा को फिरौती की रकम के साथ बुलाया था, जहां विवाद में बाप-बेटे की हत्या अपहरणकर्ताओं ने कर दी थी। हालांकि यह हत्या किसी के इशारे पर पेशेवर शूटरों ने नहीं वरन जमीन विवाद के चलते उनके परिचितों द्वारा ही करना बताया गया था। वर्ष 2003-04 में सरगुजा जिला मुख्यालय अंबिकापुर में प्रदेश के सबसे बड़े सड़क ठेकेदार व पूर्व नगरपालिका उपाध्यक्ष लालबाबू सिंह की हत्या यूपी के शूटरों ने कर सनसनी फैला दी थी। बाद में इनके साले और घटना के प्रमुख गवाह जगमोहन सिंह की न्यायालय परिसर में दिनदहाड़े गोली मारकर हत्या जेल में बंद शूटरों के साथियों ने यूपी से आकर कर दी थी। मामले में गिरफ्तार शहर के ठेकेदार अतुल सिंह, शूटर शुभकरण द्विवेदी समेत आधा दर्जन जेल में बंद थे। इस दौरान शूटर शुभकरण को जेल के भीतर ही स्थानीय बंदियों ने मौत के घाट उतारकर उसका शव कुएं में डाल दिया था। कुछ माह पूर्व अंबिकापुर में कोल व्यवसायी गोर्वधन अग्रवाल तथा पिछले दिनों उदयपुर में भाजपा नेता राजकुमार सिंह की शूटरों द्वारा हत्या का मामला सामने आया था। इन दोनों हत्याकांडों में यूपी के शूटर शामिल थे, जिनकी गिरफ्तारी हो चुकी है। मुखिया की हत्या से गैंग का खात्मा
अपराध की दुनियां में सुपारी और शूटर प्रथा एक ही सिक्के के दो पहलू माने जाते हैं। प्रदेश में यह प्रथा राजधानी रायपुर के बजाए भिलाई में ज्यादा हावी रहा। भिलाई में पहली बार गुण्डागर्दी को व्यवसायिक स्वरूप देते हुए कन्हैया यादव ने गिरोह बनाया था जो रुपए लेकर आपराधिक घटनाओं को अंजाम देता था। बाद में यह गिरोह दो भागों में बंटकर तपन सरकार और महादेव गिरोह के रुप में सामने आया। प्रतिस्पर्धा के चलते महादेव गिरोह से तपन सरकार गिरोह का टकराव जारी था। इस दौरान तपन सरकार गिरोह महादेव की हत्या करने में कामयाब रहा । इससे महादेव गिरोह का सफाया हो गया। इसी तरह अंबिकापुर में लालबाबू हत्याकांड को अंजाम देने वाले शूटर शुभकरण द्विवेदी की जेल में हत्या के बाद यह गैंग भी बिखर कर रह गया।
राजधानी में हैं कई शूटर
राजधानी रायपुर में यूपी, एमपी के कई शूटर नाम बदलकर रह रहे हैं। सूत्रों ने बताया कि कबाड़ के कारोबार में उप्र, बिहार के लोग राजधानी में शामिल हैं। इन लोगों में कुछ पेशेवर शूटर हैं जो हत्या के मामले में वांछित होने के बाद से यहां फरारी काट रहे हैं। उरला, बीरगांव, खमतराई, कबीरनगर, टाटीबंद आदि क्षेत्रों में ऐसे लोगों की संख्या अधिक है। जबकि एक शूटर राजेन्द्रनगर इलाके में किराए का मकान लेकर अवैध गतिविधियों में संलिप्त हैं। इन पर पुलिस की नजर नहीं है।

Sunday, February 7, 2010

रायपुर। राजधानी में पिछले दिनों हुए अपहरणकांड के दो फरार आरोपियों को इंदौर पुलिस ने गिरफ्तार कर रायपुर की पुलिस को सौंप दिया है। 28 जनवरी को घड़ी चौक से उड़ीसा के व्यापारी गणेशराम मेहर का चार लोगों ने अपहरण कर लिया था, जिसमें से दो आरोपी इमरान खान और राजेश सिंह पहले ही पकड़े जा चुके थे जबकि दो फरार हो गए थे। दोनों आरोपी इंदौर के थे। इस घटना की जानकारी मिलने के बाद क्राइम ब्रांच इंदौर की टीम ने सोमवार को सुबह फरार अपहरणकर्ता विष्णु राव और अनिल चंदेल को गिरफ्तार करके रायपुर पुलिस को सौंप दिया है। टीआई गोलबाजार नवनीत पाटिल ने बताया कि फरार अपहरकर्ताओं के इंदौर में होने की खबर पर क्राइम ब्रांच व थाना स्टाफ को इंदौर भेजा गया था। पुलिस टीम उन्हें साथ लेकर रायपुर के लिए सोमवार को सुबह रवाना हुई है। मंगलवार को उनके पहुंचने की उम्मीद है। उड़ीसा के कपड़ा व्यापारी गणेशराम मेहर को हीरा व्यापारी समझकर 28 जनवरी की रात जयपुर और इंदौर के चार लोगों ने उसे अगवा कर लिया था। अपहरणकर्ताओं ने दो दिनों तक व्यापारी को कार में बंधक बनाकर रखा था। इस बीच पुलिस को इस घटना की जानकारी मिली तब रेलवे स्टेशन में घेरेबंदी कर राजेश सिंह को पकड़ा गया। बाद में रिटायर्ड बैंककर्मी के पुत्र इमरान खान उर्फ सोनू की गिरफ्तारी फिल्मी अंदाज में पुलिस ने की थी। उसका बैरन बाजार स्थित ढेबर प्लाजा में घर है। हालांकि वह जयपुर में रहता था। पूछताछ में उसने घटना में शामिल दो अन्य सहयोगियों देवराय, अनिल राय निवासी इंदौर के नाम बताए थे। दोनों नाम बाद में फर्जी निकले। घटना के दूसरे दिन सुबह दोनों दुर्ग स्टेशन से ट्रेन पकड़कर इंदौर जा चुके थे। जांच में पता चला कि फरार अपहरणकर्ताओं के असली नाम विष्णु राव व अनिल चंदेल है। क्राइम ब्रांच इंदौर की टीम ने सोमवार को दोनों आरोपियों को गिरफ्तार कर राजधानी पुलिस को सौंप दिया है।

बिन कलाई एमए की पढ़ाई

बिन कलाई एमए की पढ़ाई यह असंभव सा लगता है, लेकिन इस असंभव को सच कर दिखाया है हजारीबाग जिले के चौपारण स्थित बोंगा गांव निवासी मनोज कुमार ने। हौसले व जुनून के कारण विकलांगता उन पर कभी हावी नहीं हो पाई। दोनों हाथ आधा कटे रहने के बावजूद उन्होंने हिम्मत का परिचय देते हुए एमए के साथ-साथ बीएड व व्याख्याता पात्रता की परीक्षा उत्तीर्ण की, हालांकि योग्यता के अनुरूप उन्हें नौकरी नहीं मिली। फिलवक्त वह रोजगार सेवक के रूप में कार्यरत हैं, परंतु अब भी उनके हौसले बुलंद हैं और कुछ कर गुजरने की तमन्ना दिल में संजोए हुए हैं। वर्तमान में झारखंड विकलांग विकास संस्था, चौपारण से जुड़े मनोज विकलांगों की मदद के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। दोनों हाथों का आधा भाग नहीं होने के बावजूद मनोज बड़े मजे से अपने रोजमर्रा के सभी कार्य तो करते ही हैं, मोबाइल से बातचीत और पढ़ाई-लिखाई आदि सभी कार्य स्वाभाविक रूप से करते हैं। रोजगार सेवक के रूप में विकास योजनाओं को सुचारू रूप से चलाना, नरेगा के अंतर्गत मस्टर रोल व मजदूरों कीबेहतरी के लिए कार्य कर रहे हैं। उनके अच्छे कामों को देखकर तत्कालीन उपायुक्त हिमानी पांडेय द्वारा उन्हें प्रशस्ति पत्र भी दिया गया। विकलांग होकर भी इनकी लिखावट अच्छे-अच्छों को चौंका जाती है। यही वजह है कि प्रखंड विकास पदाधिकारी अजय कुमार साव ने इन्हें बड़ी पंचायत में नियुक्त किया है। वह 26 पंचायतों के रोजगार सेवक संघ के उपाध्यक्ष भी हैं। भविष्य में राजनीति के क्षेत्र में भविष्य आजमाकर विकलांगों के लिए कुछ विशेष करने की तमन्ना है। इसी वर्ष उनका विवाह भी संपन्न हुआ तथा सामान्य जिंदगी जी रहे हैं।

शौकिया बंदूक चलाना पड़ेगा महंगा

शादी-विवाह, रैलियों, सभाओं और इसी के तरह के दूसरे आयोजनों में अपनी शान शौकत बढ़ाने बंदूक से फायर करना अब महंगा पड़ सकता है। हो सकता है कि ऐसा करने पर जेल की हवा भी खानी पड़ जाए। प्रशासन ने सभी लायसेंसी बंदूकधारियों को ऐसा न करने की सख्त हिदायत दी है। इस तरह के आयोजनों में हथियारों के खुलेआम प्रदर्शन की बढ़ती घटनाओं को देखते हुए प्रशासन ने सभी शस्त्र लायसेंसधारियों को चेताया कि उन्हें शस्त्र रखने की अनुमति केवल आत्मरक्षा के लिए दी गई है। इसके अलावा शस्त्रों का किसी भी तरह से उपयोग करना पूरी तरह अवैधानिक है। इसलिए शस्त्र का उपयोग केवल जरूरत पड़ने पर आत्मरक्षा के लिए ही किया जाना चाहिए। शस्त्रों के खुलेआम प्रदर्शन और हवाई फायर की बढ़ती घटनाओं को देखते हुए प्रशासन ने शस्त्र विक्रेताओं को भी चेताया है। सभी शस्त्र विक्रेताओं को नोटिस जारी कर कहा गया है कि बंदूक की गोलियों की बिक्री करते समय सावधानी बरतें। प्रशासन ने इसके लिए एक नई व्यवस्था भी की है जिसके तहत अब शस्त्र विक्रेता किसी लायसेंसधारी को तभी दोबारा गोलियां बचेंगे जब पूर्व में खरीदी गई सभी गोलियों के उपयोग होने का प्रमाण पत्र लायसेंसधारी देंगे। नियमानुसार एक बार में एक लायसेंसधारी को 10 और एक साल में अधिकतम 25 गोलियां दी जा सकती हैं। इन गोलियों को उपयोग यदि आत्मरक्षा के लिए किया गया है तब तो यह ठीक है, लेकिन यदि यूं ही हवाई फायरों में गोलियां बर्बाद की गई हैं तो इन लायसेंसधारियों को जवाब देना पड़ेगा। दरअसल प्रशासन की नजर में कई ऐसे लायसेंसधारी आए हैं, जो हर साल 20 से 25 गोलियां खरीदते हैं लेकिन इनका उपयोग नहीं होता। लिहाजा कई लोगों के पास गोलियां का ढेर लग गया है जो कि पूरी तरह से गैरकानूनी है। ऐसे कुछ लोगों को पिछले दिनों कारण बताओ नोटिस भी जारी किए गए हैं। अब लायसेंसधारी की भी जवाबदारी तय हो गई है कि नई गोलियां खरीदने से पहले उसे पुरानी गोलियों के उपयोग होने का प्रमाण पत्र देना होगा, तभी उसे नई गोलियां खरीदने की अनुमति होगी। यदि कोई लायसेंसधारी झूठा प्रमाण पत्र देकर गोलियां खरीदता तो उससे पूर्व में दी गई गोलियों के उपयोग का स्पष्टीकरण मांगा जाएगा कि उसने कब अपनी आत्मरक्षा के लिए बंदूक का इस्तेमाल किया। साथ ही यदि उसने कभी ऐसी घटना का सामना किया है तो क्या उसने संबंधित थाने में इसकी रिपोर्ट कराई है। इस तरह प्रशासन बंदूकों के सार्वजनिक उपयोग और हवाई फायर करने की प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने की कवायद कर रहा है।

शांति के दुश्मन हैं 568

मौदहापारा, सिविल लाइन गुंडों से आबाद
शहरी क्षेत्रों के थानों से गुण्डे,बदमाश और निगरानीशुदा बदमाशों की सार्वजनिक रूप से चस्पा होने वाली सूची लंबे समय से गायब हो गई हैं। कभी थानों में प्रवेश करते ही सामने दीवार पर सूची टंगी दिखाई देती थी। कुख्यात हिस्ट्री शीटर गुण्डों के फोटो भी लगे होते थे लेकिन अब यह बीते जमाने की बात हो गई हैं। हरिभूमि ने शहरी इलाके के कई थानों का अवलोकन के बाद यह पाया कि जिस स्थान में यह सूची चस्पा की जाती थी,वह स्थान सूना हो चुका हैं। सूचना पटल तक गायब हैं। इस संबंध में पुलिस के आला अधिकारी यह दलील देते नहीं थकते कि मानवाधिकार संगठनों कड़ी आपत्ति और निर्देश के बाद केवल सूचना पटल से गुण्डे,बदमाशों की सूची हटाई गई हैं। पुलिस थानों में यह सूची आज भी उपलब्ध हैं। हिस्ट्रीशीटरों के ऊपर पुलिस की कड़ी निगरानी हैं। समय-समय पर कार्रवाई भी की जाती हैं। शहर के 20 और ग्रामीण क्षेत्रों को मिलाकर रायपुर जिले में 42 पुलिस थाने हैं, इसमें महिला और एजेके पुलिस थाना भी शामिल हैं जबकि पुलिस चौकियों की संख्या नौ हैं। पुलिस थानों में कभी गुण्डे,बदमाश,निगरानीशुदा और हिस्ट्रीशीटरों की सूची सूचना पटल पर चस्पा देख लोगों का ध्यान थोड़ी देर के लिए टिक जाया करती थी। सूची को देख आमजन क्षेत्र के बदमाशों से वाकिफ हो जाया करते थे। अचानक से थाने से यह सूचना पटल हटाकर कोने में रख दिए गए। इससे यहां की दीवार सूनी सी हो गई हैं। मौदहापारा और सिविल लाइन में निगरानीशुदा अधिक: जिले में निगरानी बदमाशों की संख्या जहां 225 हैं, वही गुण्डों का आकंड़ा 343 तक पहुंच चुका हैं। पुलिस की परिभाषा में आदतन अपराधियों को निगरानी सूची में रखा जाता है। वही तात्कालिक अपराध करने वाले को गुण्डों की सूची में शामिल किया जाता हैं। आकंड़ों पर नजर डाले तो सबसे ज्यादा बदमाश और गुण्डे राजधानी के सबसे संवेदनशील माने जाने वाले मौदहापारा और वीआईपी क्षेत्र सिविल लाइन थाना इलाके में हैं।

हाई अलर्ट से बेखबर एयरपोर्ट

रायपुर। भारतीय विमानों के फिर आतंकी संगठनों के निशाने पर होने की खबर के खुलासे के बाद भी छत्तीसगढ़ के एकमात्र एयरपोर्ट की सुरक्षा हाशिए पर है। देश की खुफिया एजेंसियों द्वारा जारी रिपोर्ट में साफ कर दिया गया है कि, कंधार विमान अपहरण या फिर एयरपोर्ट को आतंकी अपना निशाना बना सकते हैं। इसके फौरन बाद ही राष्ट्रीय विमानपत्तन प्राधिकरण ने देशभर के सभी घरेलू उड़ानों को संचालित करने वाले एयरोड्रम से लेकर एयरपोर्ट को हाई अलर्ट जोन घोषित कर दिया है। हवाई अड्डों खासकर सरकारी विमानों और निजी विमानन कंपनियों को भी सुरक्षागत इंतजाम के कड़े निर्देश दिए गए हैं। भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण के अनुसार सबसे ज्यादा संवेदनशील हवाई अड्डों के साथ ही घरेलू उड़ानों के लिए भी एयरपोर्ट अथॉरिटी को भी चौकन्ना रहने को कहा गया है, लेकिन इन सब हिफाजÞती कवायद और जरूरी निर्देशों से बेखबर रायपुर के माना एयरपोर्ट की सुरक्षा में कोई खास बदलाव नहीं आया है। महज़ टिकट लेकर वीआईपी और पैसेंजर लाउंज तक लोग आसानी से पहुंच जा रहे हैं। वहीं एयरपोर्ट के रन-वे की सुरक्षा दीवारों में भी बरोंदा, बनरसी इलाके की तरफ से सेंध लगाना उतना ही आसान है जितना किसी बच्चे के लिए पेड़ से फल तोड़ना। एयरपोर्ट अधिकारियों का कहना है कि यहां आतंकी हमले का अंदेशा नहीं के बराबर है, फिर भी नक्सल प्रभावित इलाके की वजह से सीआईएसएफ के जवान एसएलआर लेकर सुरक्षा में तैनात हैं। भारतीय विमानों के फिर आतंकी संगठनों के निशाने पर होने की खबर के खुलासे के बाद भी छत्तीसगढ़ के एकमात्र एयरपोर्ट की सुरक्षा हाशिए पर है। देश की खुफिया एजेंसियों द्वारा जारी रिपोर्ट में साफ कर दिया गया है कि, कंधार विमान अपहरण या फिर एयरपोर्ट को आतंकी अपना निशाना बना सकते हैं। इसके फौरन बाद ही राष्ट्रीय विमानपत्तन प्राधिकरण ने देशभर के सभी घरेलू उड़ानों को संचालित करने वाले एयरोड्रम से लेकर एयरपोर्ट को हाई अलर्ट जोन घोषित कर दिया है। हवाई अड्डों खासकर सरकारी विमानों और निजी विमानन कंपनियों को भी सुरक्षागत इंतजाम के कड़े निर्देश दिए गए हैं। भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण के अनुसार सबसे ज्यादा संवेदनशील हवाई अड्डों के साथ ही घरेलू उड़ानों के लिए भी एयरपोर्ट अथॉरिटी को भी चौकन्ना रहने को कहा गया है, लेकिन इन सब हिफाजती कवायद और जरूरी निर्देशों से बेखबर रायपुर के माना एयरपोर्ट की सुरक्षा में कोई खास बदलाव नहीं आया है। महज़ टिकट लेकर वीआईपी और पैसेंजर लाउंज तक लोग आसानी से पहुंच जा रहे हैं। वहीं एयरपोर्ट के रन-वे की सुरक्षा दीवारों में भी बरोंदा, बनरसी इलाके की तरफ से सेंध लगाना उतना ही आसान है जितना किसी बच्चे के लिए पेड़ से फल तोड़ना। एयरपोर्ट अधिकारियों का कहना है कि यहां आतंकी हमले का अंदेशा नहीं के बराबर है, फिर भी नक्सल प्रभावित इलाके की वजह से सीआईएसएफ के जवान एसएलआर लेकर सुरक्षा में तैनात हैं।आतंकी वारदात को इतने हल्के से लेने वाले माना एयरपोर्ट अफसरों की बचकानी बातों और संभावित खतरे के प्रति उनकी निश्ंिचतता चौंकाने वाली है। आतंकी हमले की आशंका के प्रति सशंकित एयरपोर्ट अफसरों को शायद यह नहीं मालूम कि समय समय पर कट्टरवादी और प्रतिबंधित आतंकी रिश्तों वाले संगठनों की सक्रियता यहां दर्ज की गई है। विस्फोटक नहीं पर कट्टरता के पैरोकारों के आने जाने और कुछ इलाकों में इनके सदस्यों की रिपोर्ट यहां की खुफिया एजेंसियों को भी है। पिछले साल पुलिस महानिदेशक विश्वरंजन ने भी सिमी और अन्य आतंकी रिश्ते वाले संगठनों की गतिविधियां यहां होने का संकेत दिया था। बावजूद इसके एयरपोर्ट में आम दिनों की तरह सुरक्षा इंतजाम में वही गिनती के सीआईएसएफ जवानों की तैनाती मामले को गंभीर बना रही है।अलर्ट को मिल रहा फ्लर्टएयरपोर्ट की सुरक्षा का सीधा सा इंतजाम किया गया है। पैसेंजर लाउंज में आने वाले को महज 30 रुपए की टिकट लेकर अंदर प्रवेश मिल रहा है। गेट पर सिर्फ दो एसएलआर धारी सीआईएसएफ जवान, एटीसी व एयरपोर्ट की प्रशासनिक बिल्ंिडग के प्रवेश द्वार, लाउंज के अंदर, सामानों की एक्सरे जांच मेटल डिटेक्टर का थका विकल्प ही हाई अलर्ट साबित हो रहा है। वैसे यह सुरक्षा व्यवस्था तो आम दिनों में भी रहती है कुछ नया और पुख्ता इंतजामात की मुफलिसी साफ दिखाई दे रही है। निजी विमानन कंपनियों, एयरपोर्ट में आसपास के युवक और निर्माणाधीन एयरपोर्ट कार्यों के लिए मजदूर बेखटके अंदर-बाहर हो रहे हैं। सिर्फ एक दफे ही सुरक्षा जांच के बाद दूसरी बार अंदर प्रवेश करने वालों की अनदेखी की जा रही है। सीधे शब्दों में कहें तो माना एयरपोर्ट में हाई अलर्ट के नाम पर फ्लर्ट जारी है।

-माना एयरपोर्ट पूरी तरह से सुरक्षित है। वैसे भी यहां कट्टरवादी आतंकी संगठनों की बजाय नक्सली वारदातों का अंदेशा बना रहता है। इसलिए भी सुरक्षा व्यवस्था को 24 घंटे चाक चौबंद रखने के निर्देश का पालन किया जा रहा है। हाई अलर्ट के लिए फिर कोई विकल्प नहीं बचता, क्योंकि सुरक्षा तो सतत प्रक्रिया है।- अनिल रायएयरपोर्ट कंट्रोलर