Saturday, June 15, 2013

दरभा-झीरम घाटी में मौत का सन्नाटा



नक्सली हमले के इतने दिनों बाद भी दरभा-झीरम घाटी में सन्नाटा पसरा हुआ है। आलम यह है कि बेहद जरूरी काम न हो तो कोई इस घाटी से होकर गुजरना भी नहीं चाहता। विस्फोट के बाद अब तक यहां किसी भी राजनीतिक पार्टी का कोई भी नेता नहीं पहुंचा है। शुरुआती दिनों में अफसरों की आवाजाही के चलते दरभा थाने से लेकर घटनास्थल और इसके आगे तक जगह-जगह फोर्स को तैनात किया गया था। एनआईए और एनएसजी समेत अन्य जांच दलों के कार्य समेटते ही फोर्स भी अब यहां से विदा हो गई है। पूरी घाटी में सन्नाटा पसरा हुआ है।झीरम घाट के इस हिस्से से लेकर तोंगपाल के टाहकवाड़ा तक का इलाका हमेशा नक्सली गतिविधियों के केंद्र में रहा है। आए दिन यहां सड़कें खोद कर मार्ग अवरूद्ध कर दिए जाते हैं, इतना ही नहीं नक्सलियों द्वारा मनाए जाने वाले विरोध सप्ताह अथवा अन्य आयोजनों के दौरान यह इलाका पोस्टर बैनरों से पटा रहता है। सड़क जाम होने से कई बार यात्री बसों समेत वाहनों की लंबी कतार भी लग जाती है। बस्तर संभाग के नारायणपुर जिला मुख्यालय से 35 किमी दूर स्थित झारा घाटी  तब सुर्खियों में आया था जब नक्सलियों ने मई 2007 में बिजली का टावर गिराकर २२क् केवी लाइन बाधित कर दी थी। इसके बाद बस्तर में 12 दिनों तक अंधेरा पसरा रहा। इस बीच टावर दुरूस्त करने जा रहे बिजली कर्मचारियों पर भी हमला कर नक्सलियों ने उन्हें मार डाला था। इसके बाद से इस घाटी में नक्सलियों ने कभी पेड़ काटकर तो कभी सड़क पर पत्थर डाल कर मार्ग अवरुद्ध करना शुरू कर दिया। जानकारों के मुताबिक नक्सली गतिविधियों से पूरे प्रदेश में यही मार्ग सबसे ज्यादा प्रभावित होता आया है। अबूझमाड़ की ओर जाने वाले इस मार्ग पर फरसगांव में थाना और सीआरपीएफ का कैंप है।झारा घाटी के उस पार गांव में थाना खोल दिया गया है। आगे माहारबेड़ा है जहां तीन साल पहले सीआरपीएफ जवानों को नक्सलियों ने मार डाला। इस सड़क पर मौत का खौफ है। इसके बाद धौड़ाई में पुलिस थाना और कैंप है। कुल मिलाकर इस पूरी सड़क पर नक्सली खौफ पसरा हुआ है।
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महिला नक्सली ने खोला राज, कहा महिला दस्ता है भोग-विलास का अड्डा

संध्‍या उर्फ शिबा जिसे नक्‍सलियों ने उर्मिला नाम दिया था, उस इलाके में रहती थी, जहां नक्‍सलियों का हमेशा आना-जाना लगा रहता था। नक्‍सलियों के बैनर-पोस्‍टर गांव में लगे रहते थे। ऐसे ही एक पोस्‍टर को पढ़ कर संध्‍या काफी प्रभावित हुई और नक्‍सली संगठन की सदस्यता ले ली। लेकिन सदस्यता ग्रहण करने के बाद उसका मोहभंग हो गया। ये बात वर्ष 2005 की है, जब वह दसवीं कक्षा में पढ़ती थी। उसने गांव में रहने वाले अपने कुछ सहपाठियों से जानकार मिलने के बाद उनके सामने सदस्यता ली थी। नक्‍सलियों की बातें सुनीं। क्रांति, जन जागृति और समाज में फैली विषमता को मिटाने की बातों से संध्‍या प्रभावित हो गई। इसके बाद फिर क्या था, वह सीधे नक्‍सलियों के पास पहुंच गई और संगठन की सदस्यता लेने के अपने विचार से उन्हें अवगत करा दिया।पहले तो नक्‍सलियों ने उसे पुलिस का मुखबिर समझा और उस पर भरोसा नहीं किया। काफी सवाल-जवाब के बाद संध्‍या को संगठन की सदस्यता दिलाई गई।नक्‍सलियों ने संध्या को नया नाम दिया उर्मिला। नाम बदलने के साथ ही उर्मिला को नई जिम्मेवारी भी दी गई। दलम एवं मोबाइल मास एकेडमी शिक्षिका का। काम था कम पढे-लिखे नक्‍सलियों को पढ़ाना और नक्‍सलियों के पोस्‍टर पैम्फलेट का मैटर लिखना। घायल नक्‍सलियों का उपचार करने की भी जिम्मेवारी थी। वह घायलों को दवाएं देने के साथ-साथ उन्हें इंजेक्‍शन लगाने का भी काम करती थी।बाद में संगठन में मास टीम को भंग कर दिया गया था, पर उर्मिला का काम जारी रहा।यहां रहते हुए उसकी मुलाकात सुभाष से हुई। सुभाष का नक्‍सली नाम आयतु था और वह दर्रकसा दलम का कमांडर था। धीरे-धीरे उनमें प्यार में हो गया। उन्होंने शादी कर ली, लेकिन उनका वैवाहिक जीवन ज्‍यादा नहीं चला और 2007 में आयतु पुलिस के हाथ लग गया। दूसरी ओर संध्या का भी इससे मोहभंग हो गया, क्योंकि उनकी हकीकत सामने आ गई।  यहां रहते हुए उसकी मुलाकात सुभाष से हुई। सुभाष का नक्‍सली नाम आयतु था और वह दर्रकसा दलम का कमांडर था। धीरे-धीरे उनमें प्यार में हो गया। उन्होंने शादी कर ली, लेकिन उनका वैवाहिक जीवन ज्‍यादा नहीं चला और 2007 में आयतु पुलिस के हाथ लग गया। दूसरी ओर संध्या का भी इससे मोहभंग हो गया, क्योंकि उनकी हकीकत सामने आ गई।  संध्‍या बताती है कि दल में रहने वाली महिलाओं की स्थिति तो और भी खराब हैं। महिलाओं का शारीरिक शोषण किया जाता है और उनके साथ अमानवीय बर्ताव किया जाता है। बीमार होने पर इलाज तक नहीं कराया जाता। वो बताती है कि परिवार वालों से मिलने नहीं दिया जाता। 


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