Thursday, February 18, 2010

आदिवासी सरपंच चली स्कूल पढ़ाई करने

कहते हैं कि सीखने की कोई उम्र नहीं होती, यदि मन में ललक हो तो किस भी उम्र में सीखा जा सकता है और इसी जुनून को लेकर जिले की ग्राम पंचायत पानतलाई से हाल ही निर्विरोध निर्वाचित हुई आदिवासी सरपंच ढापूबाई गांव की शासकीय शाला में दाखिला लेकर पढ़ने जा रही है। एक आम छात्रा की तरह ढापूबाई सुबह 11 बजे से शाम पांच बजे तक कन्या शाला में पढ़ाई करती है। इस उम्र में स्कूल जाने के सवाल पर ढापूबाई कहती है कि वैसे तो वह बचपन में भी पढ़ाई करना चाहती थी, लेकिन अब जब वो अपने गांव का प्रतिनिधित्व कर रही है और पूरे गांव की विकास की जिम्मेदारी उस पर है, तो उसका साक्षर होना अनिवार्य हो गया है। ढापूबाई और उसका पति अब भी अपना गुजर-बसर करने के लिए मजदूरी करते हैं। सरपंच को स्कूल जाते देख पूरा गांव उनके साथ हैं। गांववासी कहते हैं कि वे सभी इस काम के लिए ढापूबाई को सहयोग देने के लिए तैयार हैं। उसकी पढ़ाई में मदद करने वाली आंगनबाड़ी कार्यकर्ता ममता खोरे कहती है कि ढापूबाई की इस उम्र में सीखने की ललक सचमुच काबिले तारीफ है और यदि हर जनप्रतिनिधि को अपनी जिम्मेदार का एहसास हो जाए, तो हरेक गांव के विकास में कोई बाधा नहीं डाल सकता है।

2 comments:

  1. वाह बहुत बढिया खबर है ये. सच है सीखने की कोई उमर नही होती.

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  2. bahut hi rachnatmak khabar haiTAAPU BAI ke jajbe ko salam

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