Thursday, February 11, 2010

पैसे और दहशत का खेल...

कोई भी पैसों के बल पर बुला ले रहा है
सतीश पाण्डेय
शांत समझे जाने वाले राज्य छत्तीसगढ़ में सुपारी और शूटर संस्कृति के पांव तेजी से फैलने लगे हैं। राजधानी रायपुर समेत प्रदेश के भिलाई, कांकेर, अंबिकापुर, कोरबा, महासमुंद आदि जिलों में आपसी रंजिश भुनाने भाड़े के शूटर के माध्यम से करीब दर्जन भर हत्याएं कराई जा चुकी हैं। हालांकि छत्तीसगढ़ पुलिस की तेज तर्रार कार्रवाई के कारण कई शूटर जेल की हवा खा रहे हैं। वहीं कई की तलाश जारी है। राजधानी रायपुर समेत प्रदेश के अन्य प्रमुख शहरों में पिछले कुछ सालों में शूटरों की मदद हर बड़े कारोबार-धंधे से जुड़े लोग ले रहे हैं। खासकर यूपी के शूटरों की मांग छत्तीसगढ़ में ज्यादा है। व्यावसायिक प्रतिस्पर्धा में आपसी रंजिश कोई नई बात नहीं है। छोटे-मोटे विवाद अक्सर सामने आते रहे हैं लेकिन विवाद में किसी की जान तक ले लिया जाए,यह संस्कृति पिछले कुछ सालों में पनपी है। यह सिलसिला अब तक जारी है। छत्तीसगढ़ में सुपारी किलर का खूनी खेल सर्वप्रथम 1997 में सामने आया था। उस समय रंगदार किस्म के नेता देवेन्दर सिंह खालसा की हत्या शहर के बदमाशों ने सुपारी लेकर की थी। इस वारदात के बाद पहली बार छत्तीसगढ़ के अपराध जगत में शूटर शामिल हुए थे। हालांकि यह हत्या राजनैतिक इशारों पर कराई गई बताई गई थी। मामले में शिवसेना से जुड़े चार लोगों की गिरफ्तारी हुई थी। वहीं कांग्रेस से जुड़े एक परिवार के कुछ लोग भी पकड़े गए थे,जिन पर खालसा परिवार ने हत्या का आरोप लगाया था। इसके बाद वर्ष 2003 में जोगी शासनकाल के दौरान चुनाव से पूर्व राकांपा कोषाध्यक्ष रामअवतार जग्गी की शूटरों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी। यह मामला प्रदेश की राजनीति में लंबे समय तक सुर्खियों में छाया रहा। इसी तरह कांकेर में 22 अप्रैल 05 को नगर पालिका अध्यक्ष रवि श्रीवास्तव की हत्या कर दी गई थी। तपन सरकार गिरोह ने सुपारी लेकर इस हत्याकांड को अंजाम दिया था। मामले में सात लोगों की गिरफ्तारी हुई थी। इसी कड़ी में राजधानी के महेन्द्र टेÑव्हलर्स के संचालक सतवंत सिंह गिल उर्फ गप्पू सेठ की हत्या उत्तर प्रदेश के मौदाहा के पेशेवर शूटरों द्वारा कर दी गई। इस मामले में सद्दाम टेÑव्हलर्स के संचालक मदारी बंधुओं को भी गिरफ्तार किया गया था। डेढ़ माह पहले पंडरी कपड़ा मार्केट में हवाला कारोबारी अमर आहूजा और मनीष लुथरिया की अज्ञात शूटरों द्वारा की गई हत्या का मामला प्रदेश भर में गर्माया रहा। इसके आरोपी अब तक पकड़े नहीं जा सके। जबकि महासंमुद के बागबहरा क्षेत्र के कुमा खान में वर्ष 2001 में व्यापारी शेखर जैन को स्टेशन जाते समय भिलाई व यूपी के शूटरों ने उड़ाया था। हत्या के बाद व्यापारी का रुपए से भरा बैग लेकर भागते कुछ आरोपियों को पुलिया गांव के ग्रामीणों ने घेराबंदी कर पकड़ा था। इसी बीच भिलाई में एक बीएसपी अधिकारी की तपन सरकार गिरोह के शूटर शैलेन्द्र सिंह ठाकुर ने हत्या कर दी थी। वर्ष 2009 में चिरमिरी कालरी के तकनीकी अधिकारी जीपी मिश्रा का अपहरण कोरबा से उस वक्त कर लिया गया था जब वे अपनी मारुति कार की मरम्मत कराने गए थे। बाद में अपहरणकर्ताओं ने पश्चिम बंगाल के वर्धमान जिले में उनके पुत्र अतुल मिश्रा को फिरौती की रकम के साथ बुलाया था, जहां विवाद में बाप-बेटे की हत्या अपहरणकर्ताओं ने कर दी थी। हालांकि यह हत्या किसी के इशारे पर पेशेवर शूटरों ने नहीं वरन जमीन विवाद के चलते उनके परिचितों द्वारा ही करना बताया गया था। वर्ष 2003-04 में सरगुजा जिला मुख्यालय अंबिकापुर में प्रदेश के सबसे बड़े सड़क ठेकेदार व पूर्व नगरपालिका उपाध्यक्ष लालबाबू सिंह की हत्या यूपी के शूटरों ने कर सनसनी फैला दी थी। बाद में इनके साले और घटना के प्रमुख गवाह जगमोहन सिंह की न्यायालय परिसर में दिनदहाड़े गोली मारकर हत्या जेल में बंद शूटरों के साथियों ने यूपी से आकर कर दी थी। मामले में गिरफ्तार शहर के ठेकेदार अतुल सिंह, शूटर शुभकरण द्विवेदी समेत आधा दर्जन जेल में बंद थे। इस दौरान शूटर शुभकरण को जेल के भीतर ही स्थानीय बंदियों ने मौत के घाट उतारकर उसका शव कुएं में डाल दिया था। कुछ माह पूर्व अंबिकापुर में कोल व्यवसायी गोर्वधन अग्रवाल तथा पिछले दिनों उदयपुर में भाजपा नेता राजकुमार सिंह की शूटरों द्वारा हत्या का मामला सामने आया था। इन दोनों हत्याकांडों में यूपी के शूटर शामिल थे, जिनकी गिरफ्तारी हो चुकी है। मुखिया की हत्या से गैंग का खात्मा
अपराध की दुनियां में सुपारी और शूटर प्रथा एक ही सिक्के के दो पहलू माने जाते हैं। प्रदेश में यह प्रथा राजधानी रायपुर के बजाए भिलाई में ज्यादा हावी रहा। भिलाई में पहली बार गुण्डागर्दी को व्यवसायिक स्वरूप देते हुए कन्हैया यादव ने गिरोह बनाया था जो रुपए लेकर आपराधिक घटनाओं को अंजाम देता था। बाद में यह गिरोह दो भागों में बंटकर तपन सरकार और महादेव गिरोह के रुप में सामने आया। प्रतिस्पर्धा के चलते महादेव गिरोह से तपन सरकार गिरोह का टकराव जारी था। इस दौरान तपन सरकार गिरोह महादेव की हत्या करने में कामयाब रहा । इससे महादेव गिरोह का सफाया हो गया। इसी तरह अंबिकापुर में लालबाबू हत्याकांड को अंजाम देने वाले शूटर शुभकरण द्विवेदी की जेल में हत्या के बाद यह गैंग भी बिखर कर रह गया।
राजधानी में हैं कई शूटर
राजधानी रायपुर में यूपी, एमपी के कई शूटर नाम बदलकर रह रहे हैं। सूत्रों ने बताया कि कबाड़ के कारोबार में उप्र, बिहार के लोग राजधानी में शामिल हैं। इन लोगों में कुछ पेशेवर शूटर हैं जो हत्या के मामले में वांछित होने के बाद से यहां फरारी काट रहे हैं। उरला, बीरगांव, खमतराई, कबीरनगर, टाटीबंद आदि क्षेत्रों में ऐसे लोगों की संख्या अधिक है। जबकि एक शूटर राजेन्द्रनगर इलाके में किराए का मकान लेकर अवैध गतिविधियों में संलिप्त हैं। इन पर पुलिस की नजर नहीं है।

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