Thursday, February 11, 2010

आह..उफ...ओह...मैनपाट


सतीश पाण्डेय

छत्तीसगढ़ का शिमला कहें जाने वाले सरगुजा जिले के मैनपाट में आज वह प्राकृतिक प्रदत सुंदरता नही ाची जो दस-ाीस साल पहलें हुआ करती थी। वहां के हरें-•ारें उजड़े वनों को देखकर हर कोई यही सवाल करता हैं आखिर कहां गया वह मैनपाट जहां प्रकृति ने मानों अपनी पूरी सुंदरता ही ािखेर दिये थे। क•ाी यहां चहुंओर हरे-•ारे पहाड़, आसमां को छुने की कोशिश करते दिखाई देने वाले ऊंचे-ऊंचे साल के पेड़,ाारहो माह ठण्ड के खुशनुमा मौसम का मजा लेने के ााद हर किसी का मन करता था आ तो ास यही रह लिया जाए। इन्ही सा विशेषताओं के कारण ही मैनपाट को छत्तीसगढ़ के शिमला की उपाधि मिली और ग्रीष्मकालीन राजधानी कहा जाने लगा। लेकिन अफसोस मैनपाट में न तो हरियाली ाची न ाारहों माह ठंड देने वाले खुशनुमा मौसम। ााक्साइट से अटे पड़े मैनपाट में सोलह साल पहले ााल्कों ने शासन-प्रशासन से अनुमति लेकर धरती से ााक्साइट का उत्तखन्न करना शुरू क्या किया आदमी की •ाूख साल के सघन वृक्षों और मैनपाट की सुंदरता पर ऐसी हावी हुई कि आ तक यह •ाूख शांत नही हो सकी। क•ाी वनों की सघनता से सूर्य की किरणों के लिए तरसनें वाली मैनपाट की धरती आज सपाट मैदान में परिवर्तित हो गयी। ऐसा नही हैं कि आदमी की •ाूख को रोकने का प्रयास नही हुआ,कथित प्रयासों के ाावजूद यह •ाूख नही मिटी तो इसके पीछे केवल एक ही कारण नजर आता हैं वह यह कि स्थानीय लोगों के साथ ही जिनके कंधें पर सुरक्षा का •ाार था वें •ाी वनों से आच्छित वनों की कटाई को रोक पाने में असफल रहें। पहले यह •ाूख चंद लोगों तक सिमित थी ााद में संगठित होकर सामूहिक रूप से इस कदर वनों पर हमला हुआ कि पता ही नही चला कि का वंदना गांव की घाट की शुरूआत से लेकर मैनपाट के अंतिम झोर पर ासे परपटिया गांव तक की अटूट हरियाली,वनों से •ारें और साल के इठलातें-खड़े पेड़ का पूरा क्षेत्र सपाट हो गए। वन वि•ााग के अमलें ने क•ाी साल ोरर तो ााक्साइट खदान के नाम पर जगंलों की ोपरवाह अंधाधुंध कटाई कर एक झटके में साल के लाखों पेड़ काट डाले। रही सही कसर ााक्साइट दोहन ने पूरा कर डाला। क्षेत्र में •ाारत एल्यूमिनियम कंपनी(ाालकों)की ााक्साइट खदानें वर्ष1993 से लगातार खुलनें के कारण पर्यावरण की स्थिति ोहद खराा हो चुकी हैं,हालात यह है कि वर्षो पहलें जिसने मैनपाट के प्राकृतिक सुंदरता को देखा हैं वह आज के मैनपाट को देख ले तो उसे अपनी आंखों पर •ारोसा नही होगा कि प्रकृति की खूासूरत रचना आखिर धरती से विलुप्त कैसे हो गयी? 00करोड़ो खर्च पर नतीजा शून्य00मैनपाट को छग की ग्रीष्मकालीन राजधानी और शिमला की तर्ज पर हिल स्टेशन ानानें राज्य सरकार द्वारा करोड़ो रूपये पानी की तरह ाहाये लेकिन नतीजा शून्य रहा। पिछले चार वर्षो में पर्यटन के नक्शे में छत्तीसगढ़ की पहचान स्थापित हुई हैं। आदिवासी ाहुल सरगुजा में पर्यटन के विकास हेतु 25 करोड रूपये के विकास कार्य कराए जा रहे हैं इसमें से 10 करोड़ के कार्य मैनपाट में मोटल ानाने,सड़क निमार्ण,टाईगर प्वाइंट को विकसित करने पर खर्च किये जा रहे हैं। स•ाी का निमार्ण कार्य चल रहा हैं00 सड़क ादहाल-मैनपाट पंहुचना हुआ मुहाल00सरगुजा जिला मुख्यालय अंािकापुर से मैनपाट जाने के लिए दो रास्ते हैं। अंािकापुर-रायगढ़ मार्ग में स्थित काराोल-सीतापुर होकर मैनपाट पंहुचनें में दो से अढ़ाई घंटे लगते है,दूरी करीा 78 किलोमीटर हैं। जाकि दरिमा होते हुए मैनपाट की दूरी 50 किमी हैं लेकिन आज दोनों मार्गो की हालत ादहाल होने से कुछ घंटे का सफर कई घंटों में ादल गया हैं वह •ाी कष्टप्रद। दो दशक पूर्व काराोल से मैनपाट तक का सफर सुहाना था। डामर की पतली सर्पीली सड़क पर चलते हुए पता •ाी नही चलता था कि का मछली नदी पर स्थित टाइगर प्वाइंट पंहुच गये। लेकिन आज के हालात देखकर रोना आ जाता हैं। कई ाार दोनों मार्गो का निमार्ण हुआ पर पिछले साल ही आधा -अधूरा निर्मित सड़क पर क्षमता से अधिक ााक्साइट का परिवहन और धूल उड़ाती ट्रकों से सड़कों की हालत ादहाल हो गयी हैं। 00स•ाी हैं मौन00मैनपाट में तेजी से ािगड़ते पर्यावरण की ओर न सरकार,न जिला प्रशासन और ना ही जनप्रतिनिधि,नेताओं का ध्यान आ तक गया हैं। पर्यावरण की रक्षा की लांी-चौड़ी ाात हर कोई करता हैं लेकिन अमल कराने के प्रति स्वंय ाालकों गं•ाीर नही हैं। इस सूरतेहाल में छग का शिमला कहें जाने वाले मैनपाट को पर्यटक स्थल ानानें की योजना पर पानी फिर सकता हैं।

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