Saturday, May 25, 2013

पुलिस लाठीटेक, सटोरिए हाइटेक

छत्तीसगढ़ में बदला सट्टेबाजी का गेम
0 फेसबुक, टि्वटर पर छाए आईपीएल के सटोरिए
 आईपीएल-6 में पैसा कमाने के लिए छत्तीसगढ़ में खाईवालों ने अत्याधुनिक साधनों के साथ ही सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक और टि्वटर का सहारा ले लिया है। इसके विपरीत छत्तीसगढ़ पुलिस इन अत्याधुनिक संसाधनों से कोसांे दूर है। यही वजह है कि खाईवाल इंटरनेट के जरिए रोज करोड़ों का दांव लगा रहे हंै और लाठीटेक राजधानी पुलिस को इसकी भनक तक नहीं मिल पा रही है। हालांकि एक महीने के भीतर क्राइम ब्रांच ने सट्टेबाजी के आधा दर्जन मामलों का जरूर खुलासा किया है।
जानकार सूत्रों की मानें तो नागपुर में बैठे बड़े खाईवालों ने फेसबुक पर सट्टेबाजी का नया खेल शुरू किया है। उन्होंने फेसबुक पर अपनी कूट भाषा बना रखी है। इस भाषा के माध्यम से ही फं्रेड लिस्ट में शामिल लोगों के साथ क्रिकेट पर सट्टे का दांव लगवाते हैं। पुलिस की नजर से बचने फेसबुक सट्टेबाजों के लिए सुरक्षित विकल्प के रूप में उभर कर सामने आया है। इस बार क्रिकेट पर सट्टे का दांव सिर्फ आईपीएल-6 का विजेता कौन होगा? इस पर ही नहीं, बल्कि इन बातों पर भी दांव लगे हैं कि रनर-अप कौन होगा, टॉस कौन जीतेगा और सबसे यादा सिक्स कौन मारेगा? जैसे-जैसे मैच हॉट होगा, सट्टेबाजी का पिछला रिकॉर्ड पीछे छूटता चला जाएगा। सट्टा बाजार में 112 का मतलब होता है, 100 रुपए लगाने पर 200 रुपए मिलेंगे। जिस टीम की जीत की संभावना जितनी यादा होती है, सट्टा बाजार में उस टीम पर लागत के मुकाबले रिटर्न उतना ही कम मिलता है।
भरोसे पर टिका सट्टे का खेल
सट्टबाजार में सट्टेबाजी का खेल भरोसे का माना जाता है। राजधानी रायपुर में करीब आधा दर्जन मास्टर सटोरिए हैं, जो नागपुर व मुंबई से लेकर भाव ओपन करते हैं। हर मास्टर सटोरिए के नीचे अलग-अलग एरिया में करीब आधा से एक दर्जन लोकल सटोरिए होते हैं, जो भाव को अपने नीचे काम करने वाले बुकियों तक पहुंचाते हैं।बुकिंग करने वाले ही सट्टेबाजों से डायरेक्ट लिंक में होते हैं और एक सट्टा खेलने वाले तक उसका फायदा पहुंचाना और वहां से कैश कलेक्ट करना इनका काम होता है। बुकिंग करने वाले हर सट्टा खेलने वालों का रजिस्टर मेंटेन करते हैं और हर सट्टेबाज से फोन से मिलने वाले ऑर्डर बाकायदा रिकार्डिंग भी रखते हैं, ताकि उसके पलटने पर रिर्काडिंग काम आ सके। हरेक सट्टा खेलने वालों की एक क्रेडिट लिमिट भी होती है। इस क्रेडिट लिमिट तक उसे हार के दौरान दांव लगाने का मौका मिलता रहता है। क्रेडिट लिमिट क्रास करने पर उसे बिना पेमेंट किए दांव लगाने का मौका नहीं मिलता। सट्टेबाजी का पूरा खेल खास मोबाइल नंबर के जरिए ही होता है। सट्टा खेलने वाले का जो मोबाइल नम्बर बुकिंग वाले के पास होगा, वह सिर्फ उसी नम्बर से भाव देगा और ऑर्डर लेगा। यह खेल काफी फेयर होता है, कोई कितनी भी बड़ी रकम जीत ले, उसे बुकिंग करने वाले अगले ही दिन पेमेंट दे देते हैं, जबकि हारने वालों से उन्हें वसूलना भी अच्छी तरह आता है।
हरेक पर लगता दांव
आईपीएल मैच में टीमों की हार-जीत पर सट्टा लग रहा है, बैट्समैन के स्कोर की बोली लग रही है, बॉलर्स के विकेट लेने पर दांव लगाए जा रहे हैं, कई बड़े कारोबारी सट्टेबाजी में लाखों लगा रहे हैं। बेरोजगार भी इसमें पीछे नहीं हैं। हर टीमों के रेट पर सट्टा बाजार गर्म है।
हर इलाके में सट्टेबाजी शबाब पर
सट्टेबाजों के पास लाइन वाली एक ऐसी मशीन है, जो एक बार में कम से कम 40 से 50 मोबाइल को अटैंड कर सकती है। बुकी अलग-अलग इलाकों में इस मशीन के जरिए अपने गुर्गों को बिठाते हैं, जहां से वे उन्हें अटैंड करते हैं। एक गुर्गे को अधिकतम 10 ग्राहक दिए जाते हैं। इस बीच अगर पुलिस की रेड पड़े भी तो एक व्यक्ति ही पकड़ा जाए, बाकी सुरक्षित रहें। इसके दो फायदे हैं पहला बुकी का खेल नहीं बिगड़ता और ग्राहकों को सुरक्षित रखने में भी वह कामयाब हो जाता है। आईपीएल के कारण सट्टाबाजार पूरे शबाब पर है, राजधानी के हर इलाके में आईपीएल पर सट्टेबाजी जोरशोर से चल रहा है। इसमें दांव लगाने वालों की तादाद भी बहुत ज्यादा है, इसलिए सुरक्षा का ख्याल भी बड़ा दांव खेलने वाले रख रहे हैं।
सट्टे की कहानी, सटोरिए की जुबानी(अजय सक्सेना से कैरीकेचर बनवाए-सटोरियों का)
नईदुनिया ने क्रिकेट में सट्टे के गोरखधंधा को जानने के लिए कई लोगों से संपर्क किया। किसी तरह एक खाईवाल ने नाम व पहचान छुपाने की शर्त पर सट्टेबाजी का खुलासा किया। सटोरिए से हुई बातचीत को नईदुनिया अपने पाठकों के समक्ष जस का तस रखा है।
सवाल- छत्तीसगढ़ में हुए आईपीएल में किस तरह से सट्टेबाजी हुई थी?
जवाब-मैच कहीं का भी हो, टॉस से लेकर हर बाल और रन के साथ ही टीम के हार-जीत पर दांव लगते हैं। इनके अलावा खिलाड़ी के प्रदर्शन पर भी खाईवाल व सटोरिए की नजर रहती है।
सवाल-छत्तीसगढ़ में हुए आईपीएल के दो मैचों में कितने का दांव लगा था और सटोरियों का पसंदीदा खिलाड़ी कौन थे?
जवाब-लगभग 200 करोड़ के दांव छत्तीसगढ़ के मैचों में लगे थे। भारत के लोकल खिलाड़ी होने की वजह से वीरेंद्र सहवाग, यूसुफ पठान, इरफान पठान सट्टा बाजार में सबसे ज्यादा पंसदीदा खिलाड़ी थे। इन खिलाड़ियों पर ही दांव लगे।
सवाल- आप लोगों का चेन सिस्टम किस तरह का है? लिंक कहां से जुड़े हैं?
जवाब- छत्तीसगढ़ के सट्टाबाजार का लिंक नागपुर, मुंबई, कोलकाता व दिल्ली से जुड़ा हुआ है। वहां पर बैठे खाईवाल से लाइन लेकर अलग-अलग क्षेत्रों के सटोरियों को देते हैं। हर सटोरिए की कोशिश होती है कि मैच के दौरान अधिक से रुपए का सट्टा लगे, इसके लिए वह कई लोकल सटोरिए बनाता है। लोकल सटोरिए बुकिंग एजेंट बनाते हैं। बुकिंग एजेंट उन्हें बनाया जाता है जो लेन-देन में अच्छे रिकार्ड वाले हों, उनका सोशल नेटवर्क अच्छा हो और पैसा वसूल करना जानता हो। कुछ एजेंट नए लोगों को पहली कुछ बोली पर उन्हें जानबूझकर जीत भी दिला देते हैं, ताकि अधिक कमाई के चक्कर में फंसकर वह अधिक रकम दांव पर लगाए।
सवाल-कैसे लगता है दांव?
जवाब-सट्टेबाजी की शुरुआत मैच शुरू होने के पहले से ही हो जाती है, यदि मैच कमजोर व मजबूत टीम के बीच होती है तो मजबूत टीम की जीत पर रुपए लगाने वाले को कम रुपए मिलते हैं। जैसे मजबूत टीम की जीत पर एक हजार रुपए लगाने वाले को 12 सौ या 15 सौ रुपए ही मिलेंगे। कमजोर टीम की जीत पर एक हजार लगाने वाले को तीन हजार या पांच हजार भी मिल सकते हैं। पूरा खेल इस बात पर है कि जिस बात की संभावना ज्यादा होगी, उसे पर कम फायदा दिया जाएगा और जिस बात की संभावना कम होगी, उस पर दांव लगाने वालों ज्यादा फायदा दिया जाएगा। मैच की हार-जीत पर दांव सामान्य सट्टेबाजी है, जबकि मैच के दौरान हर पांच ओवर के सेशन के लिए दांव लगाना बड़े सट्टेबाजों की निशानी है।
सवाल-क्रिकेट सट्टेबाजी में किस-किस पर दांव लगाया जाता है?
जबाव-सेशन में अगले पांच ओवर में बैटिंग करने वाली टीम कितना रन बना लेगी, विकेट गिरेगा या नहीं, बॉलर को सफलता मिलेगी या नहीं, बैट्समैन चार रन या छह रन मारेगा या नहीं, मैच की दोनों पारियों के दौरान टोटल कितने विकेट गिरेंगे?कितने चौके-छक्के-लगेंगे? एक्स्ट्रा में कितने रन जाएंगे? इन पर भी दांव लगता है। मैच के रिजल्ट पर सट्टे के लिए भाव एक-दो दिन पहले ही आ जाता है, जबकि मैच के दौरान सेशन के लिए भाव कुछ मिनट पहले ओपन होता है। रेट ओपन होते ही सट्टा लगाने वाले को ऑर्डर बुक करना पड़ता है।  
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 छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश की अदालतों में पड़े हैं 300 से ज्यादा मामले

सत्ता के पिंजरे में सो रही सीबीआई
--अब भी नहीं सुलझी है राहुल शर्मा की सुसाइड और सुशील पाठक की मर्डर मिस्ट्री
- देश की विभिन्न् अदालतों में 9 हजार से ज्यादा मामले लंबित

रायपुर । एक वक्त देश की सर्वश्रेष्ठ एजेंसियों के रूप में गिना जाने वाला केंद्रीय जांच ब्यूरो सत्ता के पिंजरे में कराह रहा है। न्याय और फैसले के ताने-बाने का समीकरण कुछ इस तरह से उलझा है कि देश की विभिन्न् अदालतों में सीबीआई के लगभग 9700 मामले लंबित पड़े हुए हैं, अकेले छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में 300 से ज्यादा मामले लंबित हैं ,जिनमें से लगभग 30 फीसदी मामले ऐसे हैं, जो 5 से 10 साल पुराने हैं। सीबीआई के पूर्व प्रमुख जोगिन्दर सिंह इस स्थिति के लिए अदालतों में जजों की कमी को दोषी ठहराते हैं। नईदुनिया से विशेष बातचीत में जोगिन्दर सिंह कहते हैं कि आज अकेले छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में जजों के लगभग 19 पद खाली हैं। पूरे देश में जजों के 30 फीसदी पद खाली हैं, फिर कहां से त्वरित न्याय होगा? इस मामले में सबसे ज्यादा आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि इन मामलों में से लगभग 6800 मामले भ्रष्टाचार से जुड़े हुए हैं। गौरतलब है कि देश में आज विशेष जजों वाली 46 अदालतें और स्पेशल मजिस्ट्रेट की 10 अदालतें विशेष तौर पर सीबीआई के ट्रायल्स के लिए स्थापित की गई हैं। मुख्य न्यायाधीश के आदेश पर सीबीआई के ट्रायल्स के लिए 71 अतिरिक्त विशेष अदालतें अलग-अलग राज्यों में खोले जाने का प्रस्ताव था, जिसके अंतर्गत छत्तीसगढ़ में एक और मध्यप्रदेश में दो अदालतें स्थापित की गईं, लेकिन मामलों के निपटारे में कोई तेजी नहीं आई। चाहे छत्तीसगढ़ में कोल आवंटन का मामला हो या फिर मध्यप्रदेश का शैहला मसूद हत्याकांड, ज्यादातर मामले दस्तावेजों, गवाहों और अदालत की तारीखों के बीच अन्य किसी पुलिसिया कार्रवाई से जुड़े मामलों की तरह लंबित होते चले जाते हैं।
छत्तीसगढ़ में पत्रकार सुशील पाठक हत्याकांड और एसपी राहुल शर्मा के आत्महत्या मामले की जांच कर रही सीबीआई की टीम अब तक किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंची है। कभी जांच की गति तेज होने की बात कही जाती है तो कभी एजेंसी के अधिकारियों के पास कोई जवाब नहीं होता। गौरतलब है कि पत्रकार सुशील पाठक की किसी पेशेवर शूटर द्वारा गोली मारकर 19 दिसंबर, 2010 की रात हत्या कर दी गई थी। शहर में किसी पत्रकार की यह पहली हत्या थी । पाठक के हत्या के मामले में  सीबीआई की टीम ने प्रारंभ में जिस तरह से काम शुरू किया उससे उम्मीद जगी थी, लेकिन हत्याकांड में फर्जी तौर पर फंसा देने की धमकी देने के आरोप में एक कथित पत्रकार और सीबीआई के एक उपनिरीक्षक की गिरफ्तारी के बाद हत्याकांड की जांच कर रही टीम को बदल दिया गया। इसी तरह से मार्च 2011 में स्वयं की सर्विस रिवाल्वर से फायर कर आत्महत्या कर लेने वाले एसपी राहुल शर्मा के मामले की जांच भी सीबीआई की एक अन्य टीम द्वारा की जा रही है। इस मामले में जांच टीम कहां तक पहुंच पाई है, ये स्पष्ट नहीं है, लेकिन इतना जरूर कहा जा सकता है कि हत्या के इन दोनों चर्चित मामलों का हाल-फिलहाल में खुलासा होना मुश्किल है।
छत्तीसगढ़ में सीबीआई का कामकाज कैसे हो रहा है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि ब्यूरो को इस साल दंतेवाड़ा में हुए एक हमले के बाद सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगानी पड़ी कि उन्हें स्थानीय पुलिस अधिकारियों से जान का खतरा है। गौरतलब है कि सीबीआई के अधिकारी पिछले साल मार्च में दंतेवाड़ा के ताड़मेटला और पोलमपल्ली में आदिवासियों के 300 घरों में हुई आगजनी और को सामाजिक कार्यकर्ता स्वामी अग्निवेश पर हुए हमले की जांच कर रहे हैं।
 पिछले तीन सालों में सीबीआई ने पूरे देश में लगभग 3046 मामलों की जांच पूरी की, जिनमें से लगभग 1019 मामले 2012 के थे, वहीं लगभग 2504 मामलों की जांच चल रही थी। सीबीआई के कामकाज में हो रहे विलंब का अंदाजा 2011 के आंकड़ों से जुड़े इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि देश में सीबीआई  द्वारा अदालतों में लंबित लगभग 360 मामले ऐसे हैं, जो 20 साल से ज्यादा पुराने हैं, वहीं 15 से 20 साल पुराने मामलों की संख्या 671 और 10 से 15 साल पुराने मामलों की संख्या 1248 है। कहते हैं कि न्याय में विलंब अक्सर अन्याय को साथ लेकर आता है, कोयला घोटाले में न्यायलय की फटकार यूं ही नहीं है। इसके पीछे छिपे मतलब को भी देखा जाना चाहिए।

इस समस्या की एक बड़ी वजह अदालतों में जजों की कमी है और दूसरी बात प्रक्रिया का बेहद लंबा-चौड़ा होना है। सीबीआई को किसी केस में चार्जशीट दाखिल करने से पहले लंबीचौड़ी प्रक्रियाओं से होकर गुजरना पड़ता है, जिसका नतीजा फैसलों में देरी के रूप में सामने आ रहा है।
जोगिन्दर सिंह
पूर्व निदेशक
केंद्रीय जांच ब्यूरो

देखिए, सीबीआई पर दबाव बेहद ज्यादा हैं। मामलों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है, मगर काम करने वालों की संख्या कम है, केसेज को तो हम कम नहीं कर सकते, लेकिन अगर सीबीआई की कार्यप्रणाली को उत्कृष्ट करना है तो हमें उसके लिए बड़े पैमाने पर भर्तियां करनी होंगी ।
विश्वरंजन, डीजीपी
छत्तीसगढ़
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घर से निकलें जरा संभलकर...
सूने मकानों पर चोरों की नजर
0 महीनेभर में दो दर्जन से अधिक घरों के ताले टूटे
 राजधानी में लोगों का घर से निकलना मुश्किल हो गया है। सूने मकानों पर चोरों ने नजरें गड़ा रखी है। आलम यह है कि मकान को कुछ घंटे के लिए भी सूना छोड़े तो चोर धावा बोल देते हंै। राजधानी में पिछले एक महीने में चोरी की दो दर्जन से अधिक घटनाएं हो चुकी हैं। हर दूसरे दिन किसी न किसी के मकान का ताला टूट रहा है। पुलिस बेबस होकर सिर्फ रिपोर्ट लिख रही है। शहर में लगातार हो रही चोरी की घटनाओं से पुलिस के गश्त पर भी सवाल उठने लगे हैं। जिन मकानों में चोरी की घटनाएं हुई हैं, उनमें से ज्यादातर घर वाले शादी या सगाई समारोह में शामिल होने शहर से बाहर गए हुए थे। जब वापस आए तो उन्हें चोरी का पता चला। वहीं कई ऐसे घरों में भी चोरी हुई है, जहां घर वाले पूजा करने मंदिर गए थे या फिर खरीदारी करने बाजार। पुलिस अफसर खुद मान रहे हैं कि शहर में चोरी की घटनाएं बढ़ गई हैं, लेकिन उनका कहना है कि पुलिस एक-एक घर की निगरानी तो नहीं कर सकती। चोरी की घटनाएं को रोकने के लिए पुलिस उपाय कर रही है। पुलिस अब तक यह पता कर नहीं पाई है कि यह बाहरी गिरोह की करनी है या फिर लोकल गिरोह का हाथ है।
दावों की गश्त, फील्ड में पस्त
पुलिस अफसर दावा कर रहे हैं कि पुलिस की गश्त में कोई कमी नहीं है। थानों की पेट्रोलिंग पार्टी के अलावा पीसीआर वैन, क्यूआरटी, बाइक स्क्वॉड, पैदल पेट्रोलिंग पार्टियां सभी शहर में लगातार गश्त कर रहे हैं। गली-मोहल्ले में भी पुलिस की टीम गश्त कर रही है। पुलिस लोगों को पर्याप्त सुरक्षा देने की कोशिश कर रही है। वहीं पुलिस के दावों के बाद भी शहर में एक के बाद एक ताले टूट रहे हैं। पुलिस की गश्त पूरी तरह फेल साबित हो रही है। आउटरों के साथ शहर के भीतर भी ताले टूट रहे हैं।
एक थाना क्षेत्र में पांच चोरी
सूत्रों की माने तो पुलिस ने डेढ़ माह में सभी थानों में दर्ज चोरी के मामलों की सूची तैयार की है। चोरी कब, कहां और किस तरीके से की गई है। इस पर समीक्षा की जा रही है। जो सूची तैयार की गई है, उसके अनुसार चोरों ने एक थाने में पांच से ज्यादा चोरी की घटना को अंजाम नहीं दिया है। पांच घटना के बाद उस थाना क्षेत्र में दोबारा चोरी नहीं हुई है।
रिश्तेदारों को दें सूचना
पुलिस अफसरों ने नागरिकों से अपील की है कि वे अपना मकान को सूना न छोड़ें। बाहर जाने की सूचना अपने किसी रिश्तेदार को दें या फिर उन्हें घ्ार की देख-रेख की जिम्मेदारी दे। पुलिस को अगर बाहर जाने की सूचना दी जाती है तो भी पुलिस कुछ नहीं कर सकती। शहर की 12 लाख की आबादी है। हर रोज हजारों लोग बाहर जाते हैं। पुलिस प्रत्येक मकान की निगरानी नहीं कर सकती।
चोरी का तरीका एक
पिछले एक महीने में शहर में चोरी की जितनी भी वारदातें हुई हैं, सभी जगह लगभग एक ही तरीका अपनाया गया है। घर के मुख्य द्वार का ताला तोड़कर चोर अंदर घुसे हैं और अलमारी को भी तोड़ा गया है। कहीं भी मास्टर की या अन्य किसी ऐसी चीज का प्रयोग नहीं किया गया, जिससे ताला खुल जाए।
लोगों में डर
लगातार हो रही चोरी की घटनाओं से लोगों के मन में डर समां गया है। लोग घर को एक मिनट भी सूना छोड़ने से डर रहे हंै। चोरी की डर से रिश्ते-नाते और शादी विवाह जैसे कार्यक्रम में भी शामिल होने नहीं जा पा रहे हैं। यहां तक शोक कार्यक्रम में भी शामिल नहीं हो पा रहे हैं।
श्ाहर की सुरक्षा पर नहीं विकास यात्रा पर ध्यान
राजधानी पुलिस आईपीएल के बाद छुट्टी और वीआईपी ड्यूटी में मस्त है। उन्हें आम आदमी की कोई चिंता नहीं है। पुलिस विभाग के दर्जनों अफसर से लेकर आरक्षक तक छुट्टी पर हैं। इससे पुलिस विभाग में स्टाफ की कमी हो गई है। जो ड्यूटी पर हैं, उनमें से अधिकांश वीआईपी ड्यूटी पर तैनात हैं। पुलिस विभाग का ध्यान आईपीएल के बाद अब सरकार की विकास यात्रा पर है।
हाल-ए-चोरी
1 मई- फाफाडीह चौक,  बिलासपुर रोड स्थित एक मेडिकल दुकान का ताला व शटर तोड़कर भीतर घुसे चोरों ने दराज से 90 हजार रुपए पार कर दिए।
2 मई- प्रोफेसर कॉलोनी में शासकीय कर्मचारी के सूने घर से दो लाख रुपए के जेवर पार।
3 मई- खमतराई इलाके के संतोषीनगर में सूने मकान से एक लाख की चोरी।
3 मई- रावांभाठा के एक मकान से जेवर सहित एक लाख की चोरी।
9 मई- लालगंगा शॉपिंग मॉल से हजारों की चोरी।
11 मई - देवेन्द्र नगर के सूने मकान से साढ़े तीन लाख की चोरी।
12 मई - अमलीडीह निवासी छवि लाल साहू के घर जेवर सहित 1 लाख की चोरी।
13 मई- सरोना ईंट भट्ठी के एक मकान से 25 हजार चोरी
15 मई- रिटायर्ड डीएसपी प्रदीप मिश्रा के घ्ार से 60 हजार पार।
19 मई- दुबे कॉलोनी से मंत्रालय कर्मी के घर से हजारों की चोरी।
20 मई- सिलयारी के हेडमास्टर के घर से दो लाख की चोरी।

श्ाहर में चोरी की जोघटनाएं हुई हैं, सभी थानों से उनका रिकॉड मंगाया गया है। सभी घटनाओं की समीक्षा की जा रही है। वहीं आउटर में मोहल्ले और कॉलोनियों में बैठक लेने की तैयारी चल रही है। स्थानीय निवासियों के सहयोग से बाहर आने-जाने वालों पर नजर रखी जाएगी। पुलिस के गश्त को और बढ़ाया जाएगा। थाने के साथ क्राइम ब्रांच की टीम चोरी की घटनाओं की जांच में लगी हुई है।
ओपी पाल, पुलिस अधीक्षक रायपुर
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नकली सिलेंडरों के फटने का खतरा टला नहीं
0 राजधानी के न जाने कितने घरों में बड़े हादसे की आशंका
0 तापड़िया की फैक्ट्री से खपे तो हैं, लेकिन कितने, जानकारी नहीं
0 पांच माह में पहचान कर बरामद नहीं कर पाया खाद्य विभाग
रायपुर(निप्र)। राजधानी के न जाने कितने घरों में नकली सिलेंडरों के कारण बड़े हादसे का खतरा मंडरा रहा है। मोंटू तापड़िया की फैक्ट्री से नकली सिलेंडरों की खेप निकली है, लेकिन कितनी? इसका जवाब किसी के पास नहीं है। पांच माह में जिले का खाद्य विभाग यह पता नहीं लगा पाया है। नकली सिलेंडर बरामद करना तो दूर की बात है।
इसी साल जनवरी में जिला खाद्य विभाग के अधिकारी-कर्मचारियों को 9 ब्लॉक औद्योगिक क्षेत्र भनपुरी में चल रही नकली गैंस सिलेंडर फैक्ट्री का खुलासा करने में सफलता मिली थी। यह फैक्ट्री मोंटू तापड़िया की थी। उसने नकली सिलेंडर बनाने में अनाधिकृत कंपनी की आयरन शीट का इस्तेमाल किया। खाद्य अधिकारियों ने बताया कि गैस सिलेंडर बनाने के लिए केंद्र सरकार ने देश की केवल तीन कंपनी सेल, टाटा और जिंदल को अधिकृत किया है। मोंटू की फैक्ट्री से आयरन की शीट मिली थी, उस पर टाटा नहीं, बल्कि टाटानगर का ठप्पा था। अब टाटानगर की किस फैक्ट्री से यह सीट मंगाई जाती थी, अभी तक यह भी पता नहीं लगाया जा सका है। खाद्य अधिकारी का कहना है कि अनाधिकृत फैक्ट्री की शीट की गुणवत्ता की गारंटी नहीं होती है। यहां सिलेंडर बनाने के बाद उसकी टेस्टिंग भी नहीं होती थी। इस कारण खतरा और ज्यादा है। यह खतरा कितने घरों पर मंडरा रहा है, यह रहस्य है। खाद्य विभाग के अधिकारियों के मुताबिक मोंटू ने नवंबर 2012 से नकली गैस सिलेंडर बनाने का गोरखधंधा शुरू किया। दो माह में मोंटू ने कितने सिलेंडर बाजार में खपाए, इसकी जानकारी खाद्य विभाग को अब तक नहीं मिल पाई है, क्योंकि मोंटू ने अपने ब्लैकबेरी मोबाइल से कनेक्ट सीसीटीवी और कम्प्यूटर के डाटा को डिलिट कर दिया था।
जमीन की लीज खत्म होगी जल्द
सहायक खाद्य अधिकारी ने बताया कि एक हफ्ता पहले औद्योगिक विकास निगम का पत्र खाद्य विभाग और एसपी रायपुर को भेजा गया था। उसमें मोंटू से संबंधित मामले की जानकारी मांगी गई थी। खाद्य विभाग ने यह जानकारी भेज दी है कि उसने खमतराई थाने में एफआईआर करा दी है। अब मामले की जांच पुलिस कर रही है। पुलिस का जवाब मिलने के बाद औद्योगिक विकास निगम लीज खत्म करने की प्रक्रिया जल्द पूरी कर लेगा। 9 ब्लॉक भनपुरी में मेसर्स प्रशांतआर्क फ्लैक्सेस प्राइवेट लिमिटेड और मेसर्स अनिरुद्ध इंटरनेशनल के नाम से लीज पर जमीन ली गई थी। दोनों प्लॉट दस-दस हजार वर्ग फुट के हैं। इन दोनों प्लॉट में ही नकली सिलेंडर की फैक्ट्री चल रही थी।
जब्त किए थे 165 सिलेंडर
फैक्ट्री में इंडेन कंपनी के नकली मार्का वाले 165 सिलेंडर मिले थे। इसके अलावा 1,628 सिलेंडर अर्धनिर्मित हालत में जब्त किए गए थे। इसके अलावा लगभग तीन करोड़ की मशीन और तीन पेट्रोलियम कंपनी के डाई भी मिले थे।
तापड़िया और दयाल का कनेक्शन
जिला सहायक खाद्य अधिकारी ने आशंका जताई है कि मोंटू और आदर्श गैस घोटाला के मास्टर माइंड संदीप दयाल के बीच कनेक्शन है। नकली सिलेंडर मोंटू की फैक्ट्री में बनता होगा। बॉटलिंग और उसे खपाने का काम दयाल का रहा होगा। इसमें पेट्रोलियम कंपनी के अधिकारियों या कर्मचारियों की मिलीभगत की भी पूरी आशंका है।


गिरफ्तारी के बाद होगा खुलासा
मोंटू के पकड़े जाने के बाद ही तमाम सवालों का जवाब मिल पाएगा। उसने कितने सिलेंडर खपाए और कहां, सिलेंडरों की वॉटलिंग में कौन लोग शामिल थे, इन सबका जवाब मोंटू ही दे पाएगा। खाद्य विभाग को भी उसकी गिरफ्तारी का इंतजार है।
संजय दुबे
सहायक खाद्य अधिकारी, रायपुर
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नक्सल इलाके में बिछा रहा थानों का जाल
0 डेढ़ साल बाद पटरी पर आया पुलिस हाउसिंग कार्पोरेशन, दिखाया साहस
0 पांच माह में डेढ़ सौ करोड़ का काम शुरू किया
 गठन के बाद डेढ़ साल तक सुस्त पड़ा पुलिस हाउसिंग कार्पोरेशन अब पटरी पर आया है। कार्पोरेशन ने प्रारंभिक चरण में 150 करोड़ रुपए के काम शुरू कर दिए हैं। उसने नक्सल इलाकों में थानों का जाला बिछाना शुरू कर दिया है। इसके अलावा मैदानी इलाकों में पुलिस के लिए आशियाना बनाया जा रहा है। 
विभागीय अधिकारियों के मुताबिक पुलिस आधुनिकीकरण मद से केंद्र सरकार ने प्रदेश में 75 थाना भवनों के निर्माण के लिए 150 करोड़ रुपए स्वीकृत किया है। इनमें से 60 थाना भवन का निर्माण अकेले बस्तर इलाके में उन जगहों पर किया जा रहा है, जहां नक्सली आतंक चरम पर है। बाकी 15 थाने राजनांदगांव, सरगुजा और जशपुर जिले में बनाए जाएंगे। नक्सल प्रभावित इलाकों फोर्स के लिए बैरक और थाना भवनों का निर्माण पुलिस अधिकारियों के लिए चुनौती से कम नहीं है। पुलिस हाउसिंग कार्पोरेशन ने नक्सल इलाकों में थाना भवन बनाने का जिम्मा उठाया है। प्रथम चरण में 50 थाना भवनों का निर्माण कार्य चल रहा है। करीब 80 बैरकों का निर्माण किया जा चुका है। अधिकारियों के अनुसार एक -दो महीने में इन भवनों को हैंडओवर कर दिया जाएगा। रायपुर, दुर्ग, राजनांदगांव, कांकेर, दंतेवाड़ा, कोरबा और जांजगीर में पुलिस के लिए मकान बनाए जा रहे हैं। पांच माह के भीतर 150 करोड़ का वर्क आर्डर पुलिस हाउसिंग कार्पोरेशन द्वारा जारी किया गया है।
उल्लेखनीय है कि पुलिस हाउसिंग कार्पोरेशन का गठन दो साल पहले किया गया। कार्पोरेशन ने डेढ़ साल तक एक भी वर्क आर्डर जारी नहीं किया था। मतलब कार्पोरेशन का काम पूरी तरह ठप पड़ा था। बीते पांच माह में कर्पोरेशन के काम में जिस तरह से गति आई है, उससे माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में नक्सल प्रभावित इलाकों में थाना भवनों और मैदानी इलाकों में पुलिस के लिए आवास की समस्या दूर हो जाएगी।
पीडब्ल्यूडी व एजेंसियां मान चुकी हंै हार
बस्तर के अंदरूनी इलाकों में थाना भवन निर्माण के लिए पीडब्ल्यूडी समेत अन्य हाउसिंग एजेंसियांं हार मान चुकी हैं। सूत्रों ने बताया कि इससे पहले भी बस्तर इलाके में थाना भवन निर्माण के लिए केंद्र से राशि स्वीकृत हुई थी। पीडब्ल्यूडी ने इसके लिए टेंडर भी जारी किए थे। नक्सली भय की वजह से अंदरूनी इलाकों में थाना भवन निर्माण के लिए एक भी टेंडर नहीं आया था। केवल मुख्य मार्गों के लिए टेंडर आए और थाना भवन बनाए गए। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद पहली बार ऐसा हो रहा है कि पुलिस हाउसिंग कार्पोरेशन के जरिए ठेकेदारों ने अंदरूनी इलाकों में थाना भवन बनाने में रुचि दिखाई है। कई जगहों पर थाना भवन बनकर तैयार, सिर्फ उसे हैंडओवर करना बाकी है।
अत्याधुनिक हैं थाना भवन
पुलिस हाउसिंग कार्पोरेशन द्वारा थाना भवनों को अत्याधुनिक तरीके से बनाया जा रहा है। भवनों की ड्राइंग- डिजाइन केंद्रीय गृह मंत्रालय के मापदण्डों के अनुरूप की गई है। निर्माण  में उन सारी बातों का ध्यान रखा गया है, जो सुरक्षा के लिहाज से केंद्र सरकार ने तय किए हैं। इनके अलावा  भवनों में सुविधाएं भी कें द्रीय गृह मंत्रालय की गाइड -लाइन के अनुरूप दी गई हैं। कार्पोरेशन का काम तेजी से चल रहा है। आने वाले दिनों में इसमें और गति आएगी। जितने भी निर्माण कार्य अभी चल रहे हैं, उनको साल के अंत तक पूरा कर लिया जाएगा।""
           डीएम अवस्थी, एडीजी व एमडी पुलिस हाउसिंग 
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सड़कों पर नाच रही मौत...
0  नक्सल हिंसा से 28 गुना ज्यादा मौतें सड़क हादसों में
0 सालभर में ढाई हजार से अधिक लोगों ने गंवाई जान
0  मौत का पैगाम लिए दौड़ रहे ट्रक
छत्तीसगढ़ की सड़कों पर मौत नाचने लगी है। सालभर के भीतर ढाई हजार से अधिक लोग सड़क हादसों में काल के गाल में समा गए। ट्रक सड़कों पर मौत का पैगाम लिए दौड़ रहे हैं। सार्वधिक मौतें ट्रकों की चपेट में आने से हुई हैं। सड़क हादसों में मरने वालों की संख्या  नक्सली हिंसा में मरे गए लोगों से 28 गुना अधिक है। इसके बाद भी इन सड़क हादसों को रोकने के लिए सरकार का कोई एक्शन प्लान  नहीं हैं।
सरकारी आंकड़े के अनुसार बीते साल प्रदेश के 27 जिलों में  12400 सड़क दुर्घटनाएं हुईं। इनमें 2861 लोगों की मौत हुई और 12456 लोग घायल हुए। सर्वाधिक मौत ट्रक की चपेट में आने से हुई। वहीं नक्सली हिंसा में 100 लोगों की जानें गई हैं। 2239  ट्रकों ने 2278  लोगों को चपेट में लिया, जिनमें 650 लोगों की मौत हो गई और 1728 घायल हुए जो टूटे हाथ-पैर के साथ किसी तरह जीवन काट रहे हैं। आंकड़े के अनुसार 3882 दोपहिया सवार हादसों के शिकार हुए, जिनमें से 619 की मौत हो गई। कार- जीप हादसों में भी मरने वालों की संख्या कम नहीं है। 382 लोगों की जानें कार-जीप दुर्घटनाओं में गई हैं।  सड़क हादसों में मरने वाले लोगों की संख्या नक्सल हिंसा के शिकार लोगों से 28 गुना अधिक हैं। इसके बाद  भी इन हादसों पर लगाम लगाने के लिए सरकार की ओर कोई ठोस पहल नहीं किया जा रहा है। जिन विभागों पर वाहनों का नियंत्रण  व नियम- कानून को पालन करवाने का जिम्मा है, उन विभागों द्वारा भी कारगार कदम नहीं उठाए गए हैं। यहीं वजह की सड़क हादसों में मरने वालों की संख्या में दिनोंदिन बढ़ रही हैं।
दौड़ रहे अनफिट वाहन
जानकारों का कहना है कि अधिकांश दुर्घटनाओं की वजह लापरवाही पूर्वक ड्राइविंग होती है। वहीं अनफिट वाहन भी दुर्घटना के कारण बनते हैं। कई अनफिट ट्रक सड़कों पर दौड़ रहे हैं । किसी ट्रक की लाइट खराब है, तो किसी का ब्रेक और किसी में एंडिकेटर नहीं है। कई ट्रकों में रेडियम भी नहीं लगाया गया है। इससे रात के समय दुर्घटना होने की आशंका बनी रहती है। दोपहिया वाहन चालक तेज रफ्तार और यातायात नियमों की अनदेखी के कारण हादसे के शिकार होते हैं। पुलिस अधिकारियों का कहना है कि शहर के भीतर या आबादी वाले इलाकों में होने वाली 80 फीसदी दुर्घटनाएं यातायात नियमों की अनदेखी से होती हैं। आउटर में तेज रफ्तार व नशाखोरी के चलते हादसे होते हैं। 10 से 15 प्रतिशत हादसे आकस्मिक होते हैं। कार-जीप हादसे अक्सर ओवरटेक के दौरान होते हैं।
हेलमेट होती तो बचती जान
न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. किशोर झा  का कहना है कि दोपहिया वाहन दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों को हेलमेट के जरिए काफी हद तक रोका जा सकता है। दोपहिया वाहन दुर्घटना में जितने भी घायल आते है,उनमें से अधिकांश के सिर पर गंभीर चोट रहती है। इनमें से करीब 15 फीसदी लोगों की मौत इलाज के दौरान हो जाती हैं। डॉ. झा का कहना है कि अगर हेलमेट के इस्तेमाल को अनिवार्य कर दिया जाए, तो एक्सीडेंट के दौरान सिर में आने वाली चोट से होने वाली मौत को रोका जा सकता है। हेलमेट पहने में अगर एक्सीडेंट भी हो जाता है,तो गंभीर चोट आने की संभावना कम रहती है। नार्मल चोट को आसानी से ठीक किया जा सकता है। यहां यह बताना लाजिमी होगा कि 3882 दोपहिया वाहन हादसों में 619 लोगों की मौत हुई है।
क्या कहते है जिम्मेदार
सकड़ हादसों को रोकना सबकी सामूहिक भागीदारी है। ट्रैफिक नियमों के पालन और लोगों को जागरूरक कर इसे रोका जा सकता है। सर सड़क हादसों में घायल मरीजों को तत्काल उपचार लेने के  लिए संजीवनी 108 और अस्पतालों में ट्राम को अपडेट किया गया है।
एन.बैजेंद्र कुमार, सचिव मुख्यमंत्री
''अधिकांश सड़क हादसे वाहन चालकों की लापरवाही से होती है। वाहन चलते समय चालक सावधानी बरते तो दुर्घटनाओं को रोका जा सकता  हैं। विभागीय अमला की कमी के चलते पुलिस की मदद से परिवहन नियमों को तोड़ने वाले वाहनों के खिलाफ कार्रवाई की जाती हैं। साथ ही वाहनों में अपनाए जाने वाले सुरक्षा उपायों के निर्देश जारी किए जाते हैं । विभागीय अधिकारी-कर्मचारियों को सख्त निर्देश है कि वे नियम की अवहेलना करने वाले वाहनों के खिलाफ कार्रवाई करें।""
एचके राठौर, अतिरिक्त परिवहन आयुक्त
 '' अधिकांश सड़क हादसे आऊटर या हाइवे में होते हैं। शराब पीकर वाहन चलाना, यातायात नियमों का पालन नहीं करना और तेज ड्राइविंग हादसों की मुख्य वजह हैं।  इन पर ध्यान देकर हादसों को रोका जा सकता हैं। विभाग द्वारा समय-समय पर अभियान चलाकर लोगों को यातायात नियमों की जानकारी दी जाती है।  इनके अलावा शराबी वाहन चालकों के खिलाफ भी कार्रवाई की जाती है।  इन प्रयासों में और तेजी लाया जाएगा। ताकि सड़क  हादसों से होने वाली मौत को रोका जा सकें।
ओपी पाल, एसपी रायपुर एवं एआईजी ट्रैफिक



जिलेवार दुर्घटनाएं व मौतें
जिला    दुर्घटना    मौत        घायल
रायपुर     2037    326        14355
बलौदाबाजार 465    132        580
दुर्ग        1122    228        1062
बेमेतरा    261        78        243
बालोद    288        75        265
राजनांदगांव 969    209        1188
कबीरधाम     342        59        374
महासमुंद    479        109        440
गरियाबंद 195        32        193
धमतरी    351        80        342   
बिलासपुर    939        157        819
मुंगेली    169        45        227   
कोरबा    657        137        697
जांजगीर    611        170        650
रायगढ़    626        230        474
सरगुजा    403        95        636
कोरिया    287        56        368
जशपुर    295        75        341
बलरामपुर    185        63        123
सूरजपुर    371        120        481
जगदलपुर    506        128        426
कोण्डागांव 217        81        193
कांकेर    346        87        369
दंतेवाड़ा    120        44        218
सुकमा    37        15        80
बीजापुर    70        16        136
नारायणपुर 52        14        96   
कुल    12400    2861    12456
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नक्सली गढ़ में वीरान हो गए तेंदूपत्ता फड़
-मजदूरी बढ़ाने और महाराष्ट्र की तर्ज पर ग्राम सभाओं को अधिकार देने की मांग पर अड़े माओवादी
- छत्तीसगढ़ राज्य लघु वन उत्पादक कोआपरेटिव फेडरेशन लिमिटेड ने माना माओवादी समस्या
माओवादी हिंसा में आई तेजी के बीच छत्तीसगढ़ में तेंदूपत्ता तोड़ाई बुरी तरह से प्रभावित हुई है। माओवादियों द्वारा मजदूरी बढ़ाकर प्रति बोरी 1500 रुपए भुगतान करने की मांग के बाद से सुकमा जिले में तोड़ाई लगभग बंद है। अन्य जिलों में भी इसका व्यापक असर देखने को मिल रहा है। इसके चलते तेंदूपत्ता फड़ वीरान हो गए हैं। अभी जशपुर, सरगुजा समेत तमाम नक्सल प्रभावित जिलों में तोड़ाई का काम शुरू भी नहीं हुआ है। नईदुनिया की पड़ताल में पता चला है कि माओवादी न सिर्फ मजदूरी बढ़ाने की मांग कर रहे हैं, बल्कि तोड़ाई और बिक्री का काम सीधे ग्राम सभाओं को देने की भी वकालत कर रहे हैं। गौरतलब है कि महाराष्ट्र के 3 जिले जिनमें गढ़चिरौली भी शामिल है, में अब तेंदूपत्ता तोड़ाई और बिक्री का काम सीधे ग्रामसभाएं कर रही हैं। छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित जिलों में संग्रहण केन्द्रों पर न तो अधिकारी जा रहे हैं, न ही मजदूर। माओवादियों की मांग के बाद छत्तीसगढ़ राज्य लघु वन उत्पादक कोआपरेटिव फेडरेशन लिमिटेड ने पत्तों का रेट 1100 से बढ़ाकर प्रति बोरा 1200 तो कर दिया, लेकिन तोड़ाई शुरू नहीं हो सकी। फेडरेशन के प्रबंध निदेशक एके सिंह कहते हैं इससे अधिक देने की हमारी स्थिति नहीं है।
छत्तीसगढ़ में इस वर्ष 16.43 लाख मानक बोरा तेंदूपत्ता संग्रहण का लक्ष्य रखा गया है। इसके लिए 27 जिलों में लगभग 10 हजार संग्रहण केंद्र बनाए गए हैं। प्राप्त जानकारी के अनुसार अब तक लगभग 11 लाख मानक बोरा तोड़ाई हुई है। जिन जिलों में माओवादियों की वजह से तोड़ाई पर असर पड़ा है, उनमें सुकमा, बीजापुर, नारायणपुर व दंतेवाड़ा शामिल हैं। हालांकि दावा किया जा रहा है कि अन्य जिलों में लक्ष्य की प्राप्ति कर ली जाएगी।
लक्ष्य प्राप्त करना हो सकता है मुश्किल
ठेकेदार जहां जंगलों में जाने से इंकार कर रहे हैं, वहीं मजदूर तमाम प्रलोभन के बावजूद माओवादियों के आदेश की खिलाफत करने का साहस नहीं जुटा पा रहे हैं। माओवादियों ने मजदूरी राशि में वृद्धि को 'ग्राम्य विकास राशि" नाम दिया है। ये सीधे तौर पर ताकत की लड़ाई है। माओवादी चाहते हैं कि अधिकाधिक पैसा दिलवाकर जनता को अपने पक्ष में किया जाए। वहीं सरकार के पास मजदूरी न बढ़ाने के अपने तर्क हैं। एके सिंह कहते हैं- इस वर्ष तेंदूपत्ता तोड़ाई में लगभग 13 लाख 76 हजार परिवारों को रोजगार देने का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन अब लगता है रोजगार और पत्ता संग्रहण का लक्ष्य प्राप्त करना बेहद मुश्किल होगा।
जहां सरकार सीधे भुगतान कर रही वहां ज्यादा समस्या
नक्सलियों के फरमान से ज्यादा समस्या वहां है, जहां सरकार सीधे भुगतान कर रही है। जिन जगहों पर तोड़ाई का काम ठेकेदारों को दिया गया है, वहां पर तोड़ाई आसानी से हो जाती है, क्योंकि ठेकेदार मजदूरों को ज्यादा पैसा देकर या माओवादियों को मनाकर अपना काम कर लेते हैं। गौतलब है कि छत्तीसगढ़ में सरकार ने वर्ष 2004 में तेंदूपत्ता संग्रहण एवं वितरण की नीति में व्यापक परिवर्तन किया गया था। नए नियमों में ठेकेदारों को प्राथमिक वनोपज समितियों द्वारा पूरा भुगतान फड़ों पर ही कर दिया जाता है। उसके बाद तैयार माल को गोदाम तक पहुंचाने का काम ठेकेदार का होता है। विडंबना यह है कि हर वर्ष ठेकेदारों के द्वारा लक्ष्य की पूर्ति कर ली जाती है, जबकि सरकारी स्तर पर तोड़ाई का लक्ष्य नहीं पूरा हो पाता।
महाराष्ट्र में 19 ग्रामसभाएं संभाल रहीं काम
सुकमा और अन्य नक्सल प्रभावित जिलों में माओवादियों के ताजा फरमान का एक कारण महाराष्ट्र सरकार की वह कवायद है, जिसमें माओवाद प्रभावित जिलों में तेंदूपत्ता तोड़ाई का काम ग्रामसभाओं को दिया गया है। उल्लेखनीय है कि छत्तीसगढ़ से सटे महाराष्ट्र के गढ़चिरौली की 12, अमरावती की 2 और गोंदिया की 5 ग्रामसभाओं को पत्ता तोड़ाई और बिक्री का अधिकार दिया गया है।
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कोसा की जगह रमन्नाा को कमान :इंटेलिजेंस की खबर
 -छत्तीसगढ़ में माओवादी संगठनों में महत्वपूर्ण पदों पर महिलाएं
-सीआरपीएफ जवानों की हत्या का दोषी श्रीनिवास बना दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी का प्रमुख
छत्तीसगढ़ में हो रही मुठभेड़ की तमाम घटनाओं के बीच माओवादियों की सेंट्रल कमेटी ने संगठन में व्यापक फेरबदल किए हैं। इंटेलिजेंस सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार अब से छत्तीसगढ़ में माओवादी ऑपरेशन का ज्यादातर कार्यभार महिलाओं के जिम्मे होगा। वर्ष 2009 में राज्य के कोयलाबेड़ा पुलिस स्टेशन के अंतर्गत महानकाल गांव में पुलिस टुकड़ी पर हमले की अगुवाई करने वाली और उत्तरी बस्तर डिविजिनल कमेटी की सचिव सुजाता नोरेती को राज्य की मिलिट्री ऑपरेशन शाखा का प्रमुख बना दिया है, वही ज्योति उर्फ़ माधवी को पश्चिमी बस्तर डिविजनल कमेटी की कमान सौंपी गई है। माओवादियों ने उत्तरी बस्तर डिविजनल कमेटी को पूरी तरह से भंग कर इसे अबूझमाड़ डिविजनल कमेटी में शामिल कर दिया गया है। माओवादी मोर्चे पर निरंतर सुलग रही परिस्थितियों के बीच माओवादियों की सेंट्रल कमेटी ने छत्तीसगढ़ ख़ास तौर से बस्तर की लगभग आधा दर्जन जोनल और क्षेत्रीय कमेटियों के नेतृत्व में भारी फेरबदल किया है। इस फेरबदल में एक तरफ जहां महिला नक्सलियों को जिम्मेदार जगह तैनात किया गया है, वहीं कई हार्डकोर नक्सलियों को अन्य राज्यों से छत्तीसगढ़ में तैनाती दी गई है। इंटेलिजेंस सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार अप्रैल 2010 में दंतेवाड़ा जिले में स्थित ताड़मेटला के जंगलों में सीआरपीएफ के 76 जवानों को मौत के घाट उतार देने वाली नक्सली टुकड़ी की अगुवाई करने वाले रमन्नाा उर्फ रवुलू श्रीनिवास को दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी का मुखिया बना दिया गया गया है। सूत्रों से जानकारी मिली है कि दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी के प्रमुख सत्यारावन राव उर्फ कटकम सुदर्शन उर्फ कोसा को हटा देने का निर्णय लिया गया है। महत्वपूर्ण है कि कोसा का संगठन में किशन जी जितना ही कद हुआ करता था। गौरतलब है कि बस्तर ही नहीं आंध्रप्रदेश, ,मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में माओवाद को आधुनिक चेहरा देने में कोसा की बड़ी भूमिका रही है। कोसा ने ही गुरिल्ला क्रांति को सफल बनाने के लिए मोबाइल के इस्तेमाल को बढ़ाने के अलावा संगठन में नए रंगरूटों की भर्ती का जिम्मा ले रखा था। अगर सूत्रों कि माने तो कोसा को लेकर संगठन के लोगों की नाराजगी उस वक्त से शुरू हो गई थी, जब चार साल पहले उसने टेलीविजन पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी को लेकर माओवादियों द्वारा किसी प्रकार की हीट लिस्ट जारी किए जाने से इंकार कर दिया था। हाल के दिनों में उसकी गिनती नरमपंथियों में होने लगी थी। गौरतलब है कि इसके पहले रमन्नाा दक्षिण बस्तर डिविजिनल कमेटी का प्रमुख हुआ करता था। रमन्नाा की जगह गणेश उर्फ हनुमथ को दक्षिण बस्तर रीजनल कमेटी का सचिव बना दिया गया है। इसके अलावा विनोद को दर्भा डिविजिनल कमेटी की कमान सौंपी गई है।
इंटेलिजेंस सूत्रों से जो जानकारी मिल रही है उसके अनुसार आन्ध्रप्रदेश और झारखंड से कई कैडरों को छत्तीसगढ़ में भेजा गया है, लेकिन उन्हें जिम्मेदार पदों पर अभी नहीं रखा गया है। केंद्रीय संगठन ने छत्तीसगढ़ के स्थानीय आदिवासियों को ही महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी है। गौरतलब है कि स्थानीय कैडरों और आन्ध्रप्रदेश के कैडरों के बीच हाल के दिनों में बढ़ रहे तनाव को देखते हुए ये निर्णय लिए गए हैं। माओवादी संगठनों में महिलाओं की टॉप कैडरों के रूप में उपस्थिति कोई नहीं है। माओवादियों की टेक्निकल कमेटी ,हथियार  उत्पादन और फ्रंट लाइन इन्फैंट्री की कमान भी पूर्व में नर्मदा,विजय्या ,भाग्यलक्ष्मी, जिलानी बानो जैसी महिलाओं के नाम रहे हंै। महत्वपूर्ण है कि मट्टा रटत्ता पहली महिला कामरेड थी, जिसने दंडकारण्य में काम किया था। गौरतलब है कि माओवादियों ने हाल के दिनों में संगठन में महिलाओं को मीडिया प्रमुख, टेक्नीशियन, अध्यापक ,टेलर ,कम्यूटर ऑपरेटर और अनुवादक जैसे पदों पर बड़े पैमाने पर भर्ती की गई है।
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नक्सलियों से ज्यादा आम लोग गोलियों के शिकार
0 नक्सल मोर्चे पर 63 बेगुनाहों की मौत
0 45 जवान शहीद, 37 नक्सली मारे गए
रायपुर (ब्यूरो)। नक्सल इलाकों में बेगुनाह आदिवासियों की क्या स्थिति है? इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि सालभर के भीतर 63 लोग गोलियों के शिकार हुए हैं। ये गोलियां चाहे माओवादियों की हों या सुरक्षा बलों की, लेकिन मरने वाले लोग बेगुनाह हैं। वहीं 37 नक्सलियों को सुरक्षा बलों ने निशाना बनाया है। 41 जवान और चार सहायक  आरक्षक अपने कर्तव्य का  निर्वहन करते हुए शहीद हो गए।
विभागीय आंकड़ों के मुताबिक बीते साल के भीतर नक्सली हिंसा में 145 लोगों की मौत हुई हैं। इसी दौरान  119 मुठभेड़ हुई हैं यानी हर मुठभेड़ में किसी न किसी की मौत हुई है। चाहे वे आम नागरिक हों, नक्सली या फिर सुरक्षा बल के जवान। मरने वालों में सार्वधिक संख्या आम नागरिकों की है। 58 बेगुनाह गोलियों के शिकार हुए हैं। हाल के दिनों में बीजापुर जिले के एड़समेटा में हुई आठ लोगों की मौत की संख्या को जोड़ दिया जाए तो मौत का आंकड़ा 66 पहुंच जाएगा। ये जांच का मुद्दा है कि आम लोगों के सीने को चीरने वाली ये गोलियां किसकी हैं? वहीं नक्सली हिंसा में सुरक्षा बल के जवानों के अलावा चार अन्य शासकीय कर्मचारियों की मौत हुई है। चार गोपनीय सैनिक ने भी अपनी जान गंवाई है। इसके विपरीत मरने वालों में आम नागरिकों के मुकाबले नक्सलियों की संख्या कम है। सिर्फ 37 नक्सलियों को ढेर करने में सुरक्षा बलों में  सफलता पाई है। बहरहाल आम नागरिकों की मौतों पर कई तरह की जांच चल रही है। चाहे वह 28 जून 2012 को बीजापुर जिले के सारकेगुड़ा में 17 लोगों की मौत का मामला हो या फिर हाल के दिनों इसी जिले के एड़समेटा में तीन नाबालिगों सहित आठ लोगों की मौत का मुद्दा। दोनों मामलों की न्यायिक जांच चल रही हैं।
441 नक्सलियों की गिरफ्तारी
पुलिस के आंकड़ों के मुताबिक सालभर में सुरक्षा बलों ने 441 नक्सलियों व संघम सदस्यों को गिरफ्तार करने में सफलता पाई हैं। वहीं 37 नक्सली  हथियार छोड़कर समाज के मुख्यधारा में जुड़े हैं। इन लोगों ने आत्मसमर्पण कर सरकार की योजनाओं पर भरोसा जताया है।
फैक्ट फाइल
 मुठभेड़ - 119
 मारे गए नक्सली - 37
आम नागरिकों की मौत -58
शहीद जवान - 41
सहायक आरक्षक -04
अन्य शासकीय कर्मचारी - 04
गोपनीय सैनिक -01
गिरफ्तार नक्सली - 441
आत्म समर्पण - 37






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