Thursday, May 30, 2013

माओवादियों के टार्गेट पर महानगर


-ड्रोन को धोखा देने के लिए चुना गया 4.30 का समय 
-समूचे रेड कॉरीडोर में एजेंसियों ने फैलाया फोन इंटरसेप्ट तकनीक का जाल
रायपुर। जीरम घाटी में कांग्रेस के काफिले पर हमले के बाद माओवादियों के टार्गेट में अब शहर हैं। केंद्रीय इंटेलिजेंस एजेंसियों द्वारा टॉप  माओवादी लीडरों की बातचीत को इंटरसेप्ट किए जाने के बाद यह सनसनीखेज खुलासा हुआ है। आईबी द्वारा तैयार की गई हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि जीरम घाटी में हमले के बाद अंतरराष्ट्रीय तौर पर खुद को स्थापित करने के लिए माओवादी महानगरों में साफ्ट टार्गेट चुनकर उन पर हमले कर सकते हैं। ये सारी बातचीत छत्तीसगढ़ और ओडिशा के जंगलों में माओवादियों की सेंट्रल कमेटी के मेम्बरों के बीच हुई है।
ड्रोन के साथ माओवादियों की धोखाधड़ी
हमले को लेकर तमाम सनसनीखेज बातें सामने आ रही हैं। इंटेलिजेंस सूत्रों द्वारा पूरे हमले का वर्चुअल पुनर्निर्माण किया गया है। एजेंसियों ने सनसनीखेज खुलासा किया है कि माओवादियों ने हमले का समय शाम को 4.30 बजे इसलिए चुना, क्योंकि उस वक्त  भारतीय वायु सेना का मानव रहित विमान (ड्रोन) हैदराबाद के बेगमपेट स्थित एयरबेस पर वापस लौट रहा होता है। दरअसल माओवादी ये जानते थे कि हमला अगर सुबह किया गया तो उन्हें आसानी से ड्रोन खोज लेगा, इसलिए उन्होंने शाम का समय चुना। उन्हें यह भी पता था कि ड्रोन के वापस लौटने में कम से कम 2.30 घंटे का समय लगेगा, तब तक वे वारदात को अंजाम देकर आसानी से जंगलों में वापस लौट चुके होंगे। ऐसा ही हुआ। हमले के बाद जब मानव रहित विमान वापस लौटा तब तक 6.30 बज चुके थे। वारदात के बाद एनटीआरओ को हासिल हुए घने जंगलों के थर्मल इमेज से भी किसी मूवमेंट का पता नहीं चला।
माओवादियों द्वारा वेव फ्रीक्वेंसी का इस्तेमाल
इंटेलिजेंस सूत्रों से ये भी पता चला है कि माओवादियों ने दरभा घाटी को हमले के लिए केवल इस वजह से चुना, क्योंकि वह इलाका नो नेटवर्क जोन में आता है, यहां तक कि माओवादी जो वायरलेस सेट इस्तेमाल कर रहे थे वे भी शार्टवेव फ्रीक्वेंसी पर काम कर रहे थे, जिसका दायरा केवल पांच किलोमीटर तक था। यही वजह थी कि उस वक्त हुई किसी भी बातचीत को न तो इंटरसेप्ट किया जा सका, न ही किसी वायरलेस सिग्नल का पता लग पाया। इंटेलिजेंस के एक बड़े अधिकारी ने बताया कि हमने चश्मदीदों से बातचीत में पाया है कि पूरे हमले की कमांड एक महिला के हाथ में थी। इस हमले में पीपुल लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी के कैडरों को खास तौर से ऐसी ट्रेनिंग दी गई थी कि उनका अपना कम नुकसान हो और ज्यादा से ज्यादा लोगों को मारा जा सके।
शहरों से वेब तक माओवादियों के सूत्रों की तलाश
मिली जानकारी के अनुसार केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इस मामले में जल्द से जल्द  सफलता प्राप्त करने के लिए एजेंसियों को एफबीआई समेत दुनियाभर की टॉप इन्वेस्टिगेटिव एजेंसी की तकनीक पर काम करने का आदेश दिया है। पूरे रेड कॉरीडोर में वायरलेस और मोबाइल इंटरसेप्ट तकनीक का जाल बिछा दिया गया है। इस बात की पुष्ट खबर है कि दिल्ली, रायपुर, भुवनेश्वर, रांची और जगदलपुर समेत 11 शहरों में माओवादियों से संबंध रखने वाले संभावितों पर कड़ी निगाह रखी जा रही है। यहां तक कि वेब पर भी माओवादियों की उपस्थिति को लेकर एजेंसियां चौकन्नाी हैं और तमाम आईपी एड्रेस रोज खंगाले जा रहे हैं।


 

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