Sunday, May 26, 2013

पूरी प्लानिंग के साथ हुआ हमला

देश में हुए सबसे बड़ा नक्सली हमला नक्सलियों की सोची समझी साजिश थी.. सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक हमले से ठीक 10 दिन पहले नक्सलियों की एक बैठक जीरम इलाके में हुई थी.. जिसमें इस वारदात को अंजाम देने की रूपरेखा तैयार की गई थी.. इस वारदात को नक्सलियों को दो कंपनियों नं मिलकर अंजाम दिया था.. दरभा इलाके में सक्रिय दरभा डिविजन के अलावा अबूझमाड़ इलाके में सक्रिय ईस्ट बस्तर डिविजन कमेटी के नक्सली भी इस वारदात में शामिल थे। अबूझमाड़ से चलकर ईस्ट बस्तर डिविजन कमेटी के नक्सली सुकमा के इस इलाके में पहुंचे और पुअर्ती गांव में नक्सलियों ने वारदात की पूरी रणनीति तैयार की.. बता दें कि ये वही पुअर्ती गांव है जहां पिछले साल सुकमा के कलेक्टर को अपहरण के बाद रखा गया था... यहीं पर नक्सलियों ने एक हिटलिस्ट तैयार की जिसमें महेंद्र कर्मा सबसे पहले नंबर पर थे कर्मा के अलावा संसदीय सचिव महेश गागड़ा और आदिम जाति कल्याण मंत्री केदार कश्यप के नाम भी इस हिट लिस्ट में शामिल थे.. वारदात से पहले माओवादी कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा की पल-पल की जानकारी ले रहे थे.. नक्सलियों के खुफिया सूत्र लगातार उन्हें कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा के बारे में पूरी जानकारी दे रहे थे.. नक्सली इस बात को भी जानते थे कि तोंगपाल में सुरक्षाबलों की एक टुकड़ी गश्त पर तैनात है लिहाजा कांकेर से रवाना हुए कांग्रेस के काफिले को तोंगपाल से आगे आने दिया गया और जैसे ही कांग्रेस का काफिला दरभा घाटी के पास जीरम घाटी पर पहुंचा घात लगाए बैठे नक्सलियों ने पहले जोरदार ब्लास्ट किया और इसके बाद काफिले की गाड़ियों परअंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी। नक्सलियों के टारगेट पर महेंद्र कर्मा थे लिहाजा महेंद्र कर्मा की पहचान करने के बाद नक्सलियों ने उन्हें गोलियों से छलनी कर दिया । हालांकि कांग्रेस के बाकी नेता नक्सलियों के टारगेट पर नही थे लेकिन चुंकी वो कर्मा के साथ इस काफिले में शामिल थे, नक्सलियों ने बाकी नेताओं को भी निशाने पर लिया और किसी भी राजनैतिक पार्टी या उनके नेताओं पर देश के अब तक के सबसे बड़े हमले को अंजाम दिया जिसमें प्रदेश कांग्रेस के बड़े नेताओं समेत कई लोगों की नक्सलियों ने नृशंस हत्या कर दी ।
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सदा के लिए खामोश हुआ बस्तर का शेर 






परिवर्तन यात्रा के काफिले पर नक्सली हमले से सबसे ज्यादा आहत कांग्रेस हुई है क्योंकि कांग्रेस ने अपने प्रदेश के कद्दावर नेताओं को एक साथ खो दिया है। इनसे अहम नाम था - महेंद्र कर्मा का। उनके वाहन पर हुई जबरदस्त गोलीबारी में उनकी मौत हो गई। इसके साथ ही बस्तर से एंटी नक्सल मुवमेंट के इस बड़े नायक की कहानी इतिहास में दर्ज हो गई । बस्तर का दिलेर बेटा...वो जांबाज नेता...वो निडर लीडर...जो कहलाता था बस्तर टाइगर...वो शहीद हो गया । ज़िंदगी भर जिसने बंदूकों और हिंसा के खिलाफ़ लड़ाई की...आखिर में उसी अंधी हिंसा के शिकार बन गए । दशकों पहले बस्तर जब लाल दहशत से थर्राया था...जब हर तरफ डर की चुप्पी छाई थी, तो दंतेवाड़ा से एक दहाड़ गूंजी थी...वो दहाड़ थी महेंद्र कर्मा की...। बाद के वर्षों में महेंद्र कर्मा... एंटी नक्सल मुवमेंट के सबसे बड़े चेहरा बन गए । वो रैलियां लेकर उन इलाकों से गुज़रने से नहीं डरते थे...जो नक्सलियों का गढ़ माना जाता था । तभी तो नक्सलियों के सबसे बड़े दुश्मन बन गए थे कर्मा । वर्षों से वो उनकी हिट लिस्ट में रहे हैं। बार-बार उन पर हमला होता रहा । लेकिन भाग्यवश वो बचते रहे । इस लड़ाई में उन्होंने अपने कई रिश्तेदारों को भी खो दिया लेकिन उनकी लड़ाई थमी नहीं । नक्सलियों के खिलाफ उनकी मुहिम मंद नहीं पड़ी । परिवार और पार्टी से ऊपर उठकर भी उन्होंनें नक्सल हिंसा का विरोध किया । सलवा जुडूम के दौर में जब उनकी अपनी पार्टी कांग्रेस ने इस अभियान की मुखालफ़त की, तब भी उन्होंने इस अभियान का साथ दिया और बढ़-चढ़कर इसमें हिस्सा लेते रहे । लाल सेना ने बस्तर में सबको अपनी दहशत के आगे झुका दिया...लेकिन महेंद्र कर्मा एक ऐसे नेता थे...जो न दबे, न झुके और न ही डरे । आखिर में नक्सलियों की गोली ने उन्हें शहीद कर दिया । इतिहास के पन्नों पर वो हमेशा के लिए एक ऐसे बस्तरिया बेटे के तौर पर दर्ज हो गए हैं, जिन्होंने अपनी जान देकर भी लाल हिंसा के खिलाफ लड़ाई लड़ी । अहिंसा के निडर सिपाही महेंद्र कर्मा को हमारा शत-शत नमन ।
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नक्सल वारदातें अब छत्तीसढ़ परेशान तो करती हैं लेकिन किसी को भी हैरान नहीं करतीं। लेकिन शनिवार को किसी ने भी नहीं सोचा था कि ये देश का अब तक का किसी भी राजनैतिक काफिले पर हुआ सबसे बड़ा सुनियोजित नक्सली हमला था। शाम साढ़े 4 से 5 बजे के बीच ज्यों ही  इस हमले की पहली जानकारी मिली हमारी टीम ने अपने दर्शकों को ना सिर्फ इसकी सूचना दी बल्कि फौरन हमारी टीम ग्राउंड जीरो की तरफ बढ़ गई..और वहां जो कुछ हमारे सहयोगियों ने देखा वो किसी भी सकते में डालने के लिए काफी था । टीम जब हमले की जगह पर पहुंचा तो उसका सामना ऐसे ख़तरनाक हालत से हुआ, जो किसी भी इंसान की रूह कंपा सकती थी । लेकिन मौत और तबाही के मंजर के बीच भी टीम साहस के साथ उन गाड़ियों की तरफ़ बढ़ती गई, जिनमें परिवर्तन यात्रा के लिए निकले कांग्रेस कार्यकर्ता और नेता सवार थे । लाशों के बीच से गुज़रते हुए जब टीम एक वाहन के पास पहुंची तो जो नज़ारा दिखा, वो सकते में डालने वाला था । 50 साल तक केंद्र में मंत्री रहे और देश के वरिष्ठतम नेताओं में शुमार किए जाने वाले वीसी शुक्ल लहूलुहान हालत में ज़मीन पर पड़े हुए थे और मदद की गुहार लगा रहे थे । टीम ने बिना वक्त गंवाए इंसानी फर्ज को अंजाम दिया । नक्सली हमले के ख़तरे के बीच भी उसने बुरी तरह घायल वीसी को ढांढ़स बंधाया और ये भरोसा दिया कि उन्हें घबराने की ज़रूरत नहीं...हम पूरी तरह से आपकी मदद करेंगे । मदद के लिए उठे मजबूत हाथ ने जब सहारा दिया तो वीसी घायल हालत में भी चैतन्य हो गए और पानी की मांग की, उन्हें फौरन पानी पिलाया गया और फिर   वाहन में सवार कर उन्हें रवाना किया । इन सबके बीच प्रदेश की राजधानी से लेकर देश की राजधानी दिल्ली तक, सियासी गलियारे से लेकर प्रशासनिक अमले तक और अस्पताल से लेकर पुलिस मुख्यालय तक हर जगह तेजी से हरकत हो रही थी। हर उस जगह जहां से इस पूरे घटनाक्रम का कोई भी सिरा जुड़ा था IBC-24 टीम मौजूद थी, जानकारियों अपने दर्शकों तक पहुंचा रही थी।

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