Thursday, May 30, 2013

राजधानी में 15 दिन में डायल 100


0 डायल करने पर तत्काल पहुंचेगी पुलिस
0 थानेदारों की गाड़ियों में जीपीएस सिस्टम से निगरानी
राजधानी पुलिस ने रिस्पांस टाइम सुधारने के लिए पखवाड़ेभर में डायल 100 की योजना शुरू करने की पूरी तैयारी कर ली है। बुधवार को पुलिस कंट्रोल रूम में कॉल रिसीव करने वाले जवानों के साथ फील्ड में काम करने वालों को दिए जा रहे प्रशिक्षण कार्यक्रम में आईजी जीपी सिंह, एसपी ओपी पाल ने भाग लिया। इस मौके पर उन्होंने डायल 100 का ट्रायल और कंट्रोल रूम में बनाए गए सर्वर रूम का निरीक्षण भी किया। आईजी ने कहा कि पखवाड़ेभर में डायल 100 सिस्टम काम करना शुरू कर देगा। अभी इसके लिए जवानों को प्रशिक्षित किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि पुलिस की 50 गाड़ियों में जीपीएस सिस्टम लगा दिया गया है। यह कैसे काम करेगा, इसके लिए भी प्रशिक्षण दिया जाएगा।
आईजी जीपी सिंह ने 'नईदुनिया" को बताया कि डायल 100 योजना पुलिस का रिस्पांस टाइम सुधारने के लिए शुरू किया जा रहा है। किसी भी घटना के लिए 100 नम्बर डायल करके पुलिस कंट्रोल रूम को किसी तरह की सूचना दी जा सकती है। सूचना मिलने के चंद मिनटों में कॉल टेकर फार्म भरकर इसे डिस्पेच करेगा। इसके तुरंत बाद पुलिस घटना स्थल पर होगी। डायल 100  ग्लोबल पोजिसनिंग सिस्टम (जीपीएस) पर काम करेगा। थानों की पेट्रोलिंग पार्टी, पीसीआर और क्यूआरटी वैन समेत 50 गाड़ियों में फिलहाल जीपीएस सिस्टम स्टाल कर दिया गया है। इसके जरिए गाड़ियांे का लोकेशन भी मिलेगा।
सिविल लाइन कंट्रोल रूम में डायल 100 के लिए एक अत्याधुनिक हाइटेक कंट्रोल रूम तैयार किया गया है। यहां ढेरों कम्प्यूटर के साथ एक बड़ी स्क्रीन लगाई गई है। सभी सर्वर के माध्यम से आपस में जुड़े हुए हैं। इसमें सभी गाड़ियों का लोकेशन साफ दिखाई देगा। अगर किसी क्षेत्र में कोई वारदात की सूचना मिलती है तो कंट्रोल रूम में बैठे अधिकारी और कर्मचारी उस क्षेत्र के पीसीआर वैन, पेट्रोलिंग पार्टी और क्यूआरटी वैन का लोकेशन देखेगी,जो सबसे नजदीक गाड़ी होगी, उसे सूचना देकर घटना स्थल के लिए रवाना कर दिया जाएगा। इससे सिस्टम से अपराधियों को पकड़ने और अपराध को कंट्रोल करने में पुलिस को मदद मिलेगी। उन्होंने कहा कि थानों की पेट्रोलिंग पार्टी और पीसीआर के अलावा थाना प्रभारी की गाड़ियों में भी जीपीएस लगाया जाएगा, ताकि थाना प्रभारी का भी लोकेशन अधिकारियों को पता रहे। अब तक पेट्रोलिंग पार्टी, थाना प्रभारी सहित सभी गाड़ियों का लोकेशन वायरलेस से पूछा जाता था। वायरलेस में पेट्रोलिंग पार्टी या थाना प्रभारी जो लोकेशन बताते थे, उसे ही नोट कर लिया जाता था, लेकिन अब कंट्रोल रूम  में बैठे अधिकारियों झूठ पकड़ी जाएगी। अब उनसे लोकेशन पूछने की जरूरत होगी। सर्वर रूम के स्क्रीन पर ही सभी  का लोकेशन दिख जाएगा। गौरतलब है कि डायल 100 के लिए राज्य सरकार से राजधानी पुलिस को सवा दो करोड़ स्र्पए प्राप्त हुए थे। 
वर्सन-
डायल 100 शुरू होने से पुलिस के रिस्पांस टाइम में सुधार आएगा। मौके वारदात में पुलिस मिनटों में पहुंचकर अपना काम करेगी
-ओपी पाल
एसपी रायपुर
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अनसुलझे रह गए आधा दर्जन हत्याकांड
0 हत्या कर फेंकी गई तीन लाशों की नहीं हुई शिनाख्त
0 क्राइम ब्रांच कर रहा नए सिरे से जांच
रायपुर(निप्र)। राजधानी के विभिन्ना इलाकों में हुई करीब दर्जनभर हत्या के मामलों में काफी प्रयास के बाद भी पुलिस और क्राइम ब्रांच को अब तक सुराग नहीं मिल पाया है। तीन अज्ञात लोगों की हत्या का मामला इसलिए उलझा हुआ है, क्योंकि लाशों की शिनाख्त अब तक नहीं हो पाई है। छह महीने पूर्व तत्कालीन एसएसपी दीपांशु काबरा ने नए सिरे से आधा दर्जन अनसुलझे हत्याकांड की गुत्थी सुलझाने के लिए क्राइम ब्रांच को नए सिरे से फाइल खंगालने की जिम्मेदारी सौंपी थी। क्राइम ब्रांच ने तीन महीने तक काफी हाथ-पांव मारा, लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला। हालांकि पुलिस का दावा है कि कुछ प्रकरणों में महत्वपूर्ण क्लू मिले हैं, जिनका खुलासा नहीं किया जा सकता है। जल्द ही आरोपी गिरफ्त में होंगे।
पिछले साल अप्रैल में मंदिर हसौद थाना क्षेत्र के ग्राम बखतरा निवासी उमा हिरवानी (7) पिता गणेश की लाश गांव में आठ फीट गहरे सूखे कुएं में मिली थी। मासूम की गला रेतकर हत्या का खुलासा पीएम रिपोर्ट में हुआ था, लेकिन आरोपी का अब तक पता नहीं चल सका है। भनपुरी में एक फैक्ट्री मजदूर की मिली अधजली लाश की गुत्थी भी नहीं सुलझ पाई है। 6 जनवरी 2012 की सुबह खरोरा थानाक्षेत्र के ग्राम कोरासी निवासी फैक्ट्री मजदूर रामलाल देवांगन (41) की अधजली लाश धनलक्ष्मीनगर में फैक्ट्री के समीप मैदान में मिली थी। वह फैक्ट्री परिसर स्थित मजदूर क्वार्टर में अकेला रहता था। जांच-पड़ताल के बाद पुलिस ने इस हत्याकांड की फाइल बंद कर दी थी। इसी तरह भाठागांव रिंग रोड एक पर सर्विस रोड के किनारे गड्ढे में मिली एक अधेड़ की लाश की शिनाख्त भी नहीं हो पाई। मृतक के सिर व माथे में गहरी चोट के निशान थे। पत्थर मारकर उसकी हत्या करने की पुष्टि हो चुकी है। वहीं चार पहले कैलाशपुरी में एक कुएं में हत्या कर फेंकी गई अज्ञात युवक की लाश की गुत्थी भी उलझकर रह गई है। खमतराई इलाके में उरकुरा छोकरानाला रेल लाइन पुल पर चौकीदार अशोक तिवारी (36) पिता शिवानंद की 12-13 मई 2012 की रात हुई हत्या के मामले में भी सुराग नहीं मिल पाया है। इसी तरह हत्या के अन्य प्रकरणों में भी पुलिस हवा में हाथ-पैर मार रही है। वहीं प्रेमिका दीपा की हत्या कर फरार निगरानीशुदा बदमाश मोहन दुर्गा की गिरफ्तारी भी नहीं हो पाई है। अनसुलझे हत्याकांड पर माथामच्ची कर रहे क्राइम ब्रांच के अफसरों का कहना है कि एक-दो मामलों में सुराग मिले चुके हैं, लेकिन साक्ष्य व चश्मदीद गवाह नहीं मिलने से मामला उलझा हुआ है।
वर्सन-
हत्या के पांच अनसुलझे मामलों की जांच नए सिरे से कर रहे हैं। इनमें से कुछ के चश्मदीद गवाह नहीं मिल रहे हैं। साक्ष्य के अभाव और कुछ लाशों की शिनाख्त न होने की वजह से जरूर मामला उलझा हुआ है।
श्वेता सिन्हा, एएसपी(क्राइम)
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जंगल में हमला, शहर में बढ़ी चिंता  0 आधी रात राजधानी में जबरदस्त चेकिंग
0 शहर के आउटरों में की गई थी नाकेबंदी
0 वीआईपी व नेताओं के बंगले की सुरक्षा बढ़ाई गई
रायपुर(निप्र)। नक्सली हमले में कांग्रेस के बड़े नेताओं के मारे जाने के बाद राजधानी में विशेष सतर्कता बरती जा रही है। केंद्र की सुरक्षा एजेंसियों से जुड़े लोगों के लगातार प्रवास को देखते हुए शहर के आउटर में कड़ी नाकेबंदी कर आने-जाने वाले वाहनों की चेकिंग के साथ निगाह रखी जा रही है। सोमवार-मंगलवार की दरम्यानी रात राजधानी में सभी प्रवेश मार्गों पर जबरदस्त चेकिंग अभियान छेड़ा गया। हालांकि जांच-पड़ताल में कोई संदिग्ध वस्तु या व्यक्ति हाथ नहीं आया, लेकिन दो दर्जन बदमाश जरूर गिरफ्तार किए गए। अफसरों का कहना है कि राजधानी पुलिस चेकिंग के जरिए अपना अलर्टनेस परख रही है।
पुलिस मुख्यालय के निर्देश पर वीआईपी और नक्सलियों की हिट लिस्ट में शामिल नेताओं व मंत्रियों की सुरक्षा के साथ उनके बंगलों पर तैनात जवानों की संख्या बढ़ा दी गई है। जवानों को हमेशा अलर्ट रहने को कहा गया है। अफसरों  के मुताबिक नक्सलियों पर नकेल कसने के निर्देश दिए गए हैं। हमला करने वाले नक्सलियों की टोह लेने बस्तर के जंगलों में जवानों लगातार सर्चिंग करने कहा गया है। इस ऑपरेशन में स्थानीय पुलिस के साथ अर्धसैनिक बल के हजारों जवानों को लगाया गया है।
हमलावर नक्सलियों का मिला सुराग
डीजीपी रामनिवास ने मीडिया से चर्चा के दौरान इस बात की पुष्टि की है कि कांग्रेसी नेताओं के काफिले पर हमला करने वालों का सुराग मिल गया है। इस हमले की साजिश किसने रची और कैसे पूरे घटनाक्रम को अंजाम दिया गया, पूरी जानकारी मिल गई है। हमले में शामिल नक्सली नेताओं के नाम सामने आने के बाद, अब उन्हें घेरकर पकड़ने की कोशिश की जा रही है। नक्सलियों को खोजने और पकड़ने के लिए इससे पहले भी कई बार सर्च ऑपरेशन चलाए गए, लेकिन सब के सब बेनतीजा रहे। अफसरों का तर्क है कि नक्सलियों के लिए बस्तर की भौगोलिक संरचना हमेशा से फायदेमंद साबित होती रही है। किसी भी वारदात को आंजाम देने के बाद नक्सली जंगलों के रास्ते से पड़ोसी  राज्य ओडिशा, आंध्रप्रदेश, महाराष्ट्र के जंगलों में जाकर छिप जाते हैं। नक्सलियों के सफाए के लिए अब तीनों राज्य की पुलिस को साझा ऑपरेशन चलाने का समय आ गया है। देर सबेर नतीजा जरूर सामने आएगा।
हमले में चार राज्यों के नक्सली
खुफिया विभाग के सूत्रों की मानें तो कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा पर जिस तरह से योजनाबद्ध तरीके से नक्सलियों ने हमला किया, उससे इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि हमलावर नक्सलियों की संख्या 5 सौ से 1 हजार के बीच रही होगी। इस हमले में छत्तीसगढ़, ओडिशा, आंध्रप्रदेश और महाराष्ट्र के बड़े नक्सली नेताओं के साथ वहां के अलग-अलग दस्तों शामिल रहे। 
वर्जन-
सुरक्षा व्यवस्था परखने के लिए राजधानी में चेकिंग बढ़ाई गई है। इसे नक्सली हमले से जोड़कर नहीं देखना चाहिए। वीआईपी व नेताओं की सुरक्षा जरूर बढ़ाई गई है। चेकिंग अभियान जारी रहेगा।
ओपी पाल
एसपी, रायपुर
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मार्च में बनी थी दरभा हमले की योजना
- सात सदस्यीय टीम ने तैयार किया था हमले का खाका
-संभावित हमलावरों की सूची एनआईए के पास 
-गृह मंत्रालय नहीं करना चाहता न्यायिक जांच के नतीजों का इन्तजार
सुकमा में कांग्रेस की यात्रा पर हुए नक्सली हमले में ज्यादा से ज्यादा लोगो को मारने की साजिश थी , इंटेलिजेंस सूत्रों से पता चला है कि इस  पूरे हमले की योजना सात सदस्यीय माओवादी टीम द्वारा अबुझमाड़ में मार्च महीने में ही बना ली गयी थी =उधर एनआईए की प्रारंभिक जांच में भी योजना को एक विशेष टाइम फ्रेम में बनाने और फिर अंजाम देने की पुष्टि हुई है =जानकारी मिली है कि हमले का मास्टर माइंड कहे जाने वाले आंध्र के नक्सली कमांडर सुदर्शन कटकम जो कि माओवादियों की सेंट्रल कमेटी का सदस्य भी है ने इस पूरी योजना को बनाने वाली टीम के साथ-साथ हमले को क्रियान्वित करनेवाली टीम को लीड किया ,हलाकि दरभा में हुए हमले के दिन वो नक्सलियों के साथ नहीं था =100 से 150 माओवादियों के गिरोह ने उस दिन दरभा डिविजिनल कमेटी के प्रमुख सुरेन्द्र के साथ पूरी घटना को अंजाम दिया था =इस पूरी योजना को बनाने में सुदर्शन उर्फ़ आनंद के अलावा गणपति नम्बाला केशव राव ,विवेक उर्फ़ भूपति ,मिसिर बेसरा उर्फ़ भास्कर ,किशन दास उर्फ़ प्रशांत ,बॉस उर्फ़ निर्भय और माल्ला राजी उर्फ़ सठेन्ना शामिल थे ,माओवादियों ने इस हमले को अंजाम देने के लिए जन-मिलिशिया का इस्तेमाल किया और उन्हें इस पूरी वारदात को अंजाम देने के लिए बार-बार -प्रशिक्षित किया गया =गृह मंत्रालय ने इस पूरे मामले में शामिल लोगों की संभावित सूची को फिलहाल एनआईए को सौंप दिया है
दर्ज हुआ माओवादियों के खिलाफ मुकदमा
दरभा में हुआ नक्सली हमला माओवादियों की खतरनाक प्लानिंग और सटीक सूचना नेटवर्कंिग का परिणाम था =इंटेलिजेंस से मिली सूचनाओं को माने तो जिस वक्त ये हमला हुआ उस वक्त माओवादियों की आधा दर्जन से अधिक कम्पनियाँ सुकमा इलाके में तैनात थी और टारगेट तक पहुँचने के लिए दो दिनों तक लम्बी यात्रा की थी =ये स्पष्ट है कि माओवादी घटनास्थल के 25 किमी के दायरे में तीन दिनों से मौजूद थे =प्राप्त जानकारी से ये बात बिलकुल साफ़ है कि माओवादियों के निशाने पर सिर्फ महेंद्र कर्मा नहीं थे ,वो ज्यादा से ज्यादा लोगों को मारने की योजना पर काम कर रहे थे ,इस बीच जब दरभा पुलिस ने माओवादियों के खिलाफ आर्म्स एक्ट ,एक्सप्लोसिव एक्ट ,और गैरकानूनी गतिविधियाँ (निषेधक एक्ट )समेत आईपीसी की विभिन्न धाराओं में मुकदमा पंजीकृत कर लिया है =ये भी जानकारी मिली है कि एम्बुश प्वाइंट पर दरभा घाटी में माओवादियों की सेंट्रल मिलिटरी कमीशन का देवजी और दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी का सोनू भी मौजूद थे ,गौरतलब है कि सोनी मृत माओवादी किशनजी का भाई है =
एनआईए जांच के प्रारंभिक नतीजे
गृह मंत्रालय इस बात को पूरी तरह से तस्दीक करना चाहता है कि इस हमले में शामिल माओवादियों कीई सही और सटीक शिनाख्त हो और ऐसा न हो कि घटना में शामिल माओवादियों का हश्र 2010 में दंतेवाड़ा में शामिल माओवादियों द्वारा जैसा न हो ,गौरतलब है कि घटना में शामिल 10 माओवादियों को कोर्ट द्वारा सबूतों के अभाव में छोड़ दिया गया था =एनआईए द्वारा प्रारम्भिक जांच में इस बात की पुष्टि हो चुकी है कि हमले से पहले ही माओवादी मौके पर पहुँच चुके थे ,खाली बोतल ,केले के छिलके ,खाने के पैकेट इस बात की और साफ़ इशारा कर रहे हैं ,एन आई ए को शक है कि माओवादियों की इंटेलिजेंस यूनिट ने आन्ध्र प्रदेश के कैडरों के साथ मिलकर पूरी घटना को अंजाम दिया =
युद्ध क्षेत्र बनेगा छत्तीसगढ़
गृह मंत्रालय के सूत्रों से मिली जानकारी से ये बिलकुल साफ़ है कि मंत्रालय राज्य सरकार द्वारा न्यायिक जांच के नतीजों का इन्तजार नहीं करना चाहता =आज हुई बैठक में केंद्रीय गृह सचिव ने दोषी अधिकारियों को चिन्हित कर उनके खिलाफ तात्कालिक तौर पर कार्यवाही करने की बात कही है  =उधर माओवादियों के खिलाफ कार्यवाही को लेकर केंद्र सरकार किसी भी किस्म का विलम्ब नहीं करना चाहती,जानकारी मिल रही है कि सरकार  एनसीटीसी के अलावा मिलिटरी इंटेलिजेंस का इस्तेमाल करने से भी गुरेज नहीं करेगी ,राज्य को ज्यादा से ज्यादा सुरक्षा बल मुहैया कराने पर भी हामी भर दी गयी है =निश्चित तौर पर आने वाले दिन माओवादी मोर्चे पर बेहद रक्त भरे हो सकते हैं .
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) फिर कर सकते हैं माओवादी हमला, गृह मंत्रालय चिंतित
-केंद्रीय गृह सचिव और आईबी प्रमुख ने ली अधिकारियों की बैठक
गृह मंत्रालय ने आशंका व्यक्त की है कि माओवादी फिर से जीरम घाटी की तर्ज पर राजनैतिक हमले कर सकते हैं। इससे चिंतित गृह मंत्रालय ने छत्तीसगढ़ समेत सभी नक्सल प्रभावित राज्यों को सुरक्षा तंत्र में व्यापक फेरबदल के आदेश दिए हैं। छत्तीसगढ़ समेत सभी राज्यों को आइंदे से सभी राजनैतिक दौरों के दौरान सुरक्षा इंतजाम के लिए एक नोडल आफिसर की नियुक्ति करनी होगी।
मंगलवार को राजधानी में पुलिस मुख्यालय में केंद्रीय गृह सचिव और आईबी प्रमुख ने प्रदेश के आला अफसरों की बैठक ली। गृह मंत्रालय ने आदेश दिया है कि चुनावों को देखते हुए राजनैतिक पार्टियों की रैलियों और राजनेताओं की सुरक्षा के व्यापक बंदोबस्त किए जाएं। केंद्रीय गृह सचिव आरके सिंह ने आगामी 31 मई तक दरभा में हुए हमले के मामले में परिणाम आने की अपेक्षा की है। आईबी के निदेशक आसिफ इब्राहिम की उपस्थिति में हुई बैठक में छत्तीसगढ़ के गृह विभाग को कहा गया कि हम हर तरह की सुविधाएं उपलब्ध कराएंगे, लेकिन हमें किसी भी कीमत पर तत्काल परिणाम चाहिए। बैठक में पुलिस महानिदेशक रामनिवास, मुख्य सचिव सुनिल कुमार, प्रमुख सचिव गृह एनके असवाल, सचिव गृह एएन उपाध्याय, एडीजी मुकेश गुप्ता, सीआरपीएफ के डीजी प्रणय सहाय के अलावा आईटीबीपी, एनआईए के वरिष्ठ अधिकारी मौजूद थे।
केंद्रीय गृह सचिव ने आला अधिकारियों से कहा है कि अब जबकि चुनाव सिर पर है, आने वाले दिनों में राजनैतिक गतिविधियां भी बढेंगी, इसलिए ये बेहद जरूरी है कि तात्कालिक तौर पर राज्य के सुरक्षा तंत्र में व्यापक तब्दीली की जाए।
सीएम ने बुलाई 30 को सर्वदलीय बैठक
कांग्रेस के काफिले पर हुए हमले के बाद के हालात पर चर्चा के लिए मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने सर्वदलीय बैठक बुलाई है। यह बैठक 30 मई को सुबह 11 बजे मंत्रालय में होगी। मुख्यमंत्री ने राज्य सरकार की ओर से विधानसभ्ाा के संभ्ाावित आम चुनाव को ध्यान में रखकर संवेदनशील इलाकों में सभी राजनीतिक पार्टियों को उनके कार्यक्रमों के लिए बेहतर से बेहतर सुरक्षा मुहैया कराने का भरोसा दिलाया है। सर्वदलीय बैठक में सभ्ाी दलों के नेताओं के साथ इस पर भी चर्चा की जाएगी। मुख्यमंत्री ने कहा कि इस घ्ाटना से सबक लेकर हमें राजनीतिक मतभ्ोदों से ऊपर उठकर नक्सल हिंसा के खिलाफ एक साथ मिलकर काम करना होगा।
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तीन संगठनों के विलय से नक्सलियों में बढ़ी क्रूरता
0 एमसीसी में पीडब्ल्यूजी और पार्टी यूनिट को मिलाकर बढ़ाई ताकत
नक्सली विचारधारा से जुड़े तीन संगठनों के विलय ने उनकी ताकत के साथ क्रूरता भी बढ़ा दी है। माओवादी कम्युनिस्ट कमेटी (एमसीसी) में पीपुल्स वार ग्रुप (पीडब्ल्यूजी) और पार्टी यूनिटी का विलय हुआ है। उसके बाद नक्सलियों ने कई बड़ी वारदातें कीं और जवानों व अन्य लोगों को बेरहमी से मारा। विशेषज्ञों की मानें तो आने वाले दिनों में नक्सलियों की और अधिक क्रूरता देखने को मिल सकती है।
जानकारों के अनुसार वर्ष 1969 में अमूल्य सेन और कनई चटर्जी ने जंगलमहल जिला बुर्द्धवान प.बंगाल में दलित और आदिवासियों को संगठित कर दक्षिण देश नामक संगठन बनाया। इसमें दलित और आदिवासियों को घने जंगल में गुरिल्लावार सिखाया जाता था। वर्ष 1975 में यही संगठन एमसीसी के नाम से अस्तित्व में आया। एक साल बाद संगठन का क्षेत्र बढ़ाने का फैसला लिया गया। बंगाल के अलावा बिहार में संगठन का विस्तार हुआ। बंगाल-बिहार स्पेशल एरिया कमेटी बनाई गई। वर्ष 1982 में चटर्जी की मौत हो गई। उसकी जगह शिवजी ने ली। शिवजी और उनके सहायक रामाधर सिंह के बीच मतभेद हो गया। तब रामाधर ने भारत में नक्सलवादी आंदोलन के जनक कानू सान्याल के संगठन की सदस्यता ले ली। कानू ने वर्ष 1967 में दार्जिलिंग की नक्सलबाड़ी में सशस्त्र आंदोलन की अगुवाई की थी। इधर एमसीसी की कमान संजय दुशाध और प्रमोद मिश्रा ने संभाल ली। इन दोनों ने बिहार के मध्य के इलाकों में संगठन का विस्तार किया। क्रांतिकारी किसान कमेटी, जनसुरक्षा संघर्ष मंच, क्रांतिकारी बुद्धजीवी संघ, क्रांतिकारी छात्र लीग का एमसीसी में विलय कर लिया। अलग से आर्म्ड विंग लाल रक्षा दल बनाया। इसके बाद एमसीसी ने नक्सल गतिविधि को और तेज कर दी। वर्ष 2003 एमसीसी पंजाब में सक्रिय हो गया, रिवॉल्यूशनरी कम्युनिस्ट सेंटर ऑफ इंडिया को मिलाकर।
पीडब्ल्यूजी ने संगठन को मजबूत किया
एमसीसी की ताकत तब और बढ़ी, जब वर्ष 2004 में पीपुल्स वार ग्रुप (पीडब्लयूजी) का एमसीसी में विलय हुआ। वर्ष 1980 में कोंडापल्ली सीतारमैय्या ने आंध्रप्रदेश मे पीडब्ल्यूजी का गठन किया। इस संगठन की गतिविधि तेलंगाना रिजन में रही। इस संगठन के टारगेट में पॉलिटिशियन, पुलिस ऑफिसर्स, कारोबारी और बड़े भूस्वामी थे। इस संगठन का सीधा संबंध साउथ एशिया में सक्रिय माओवादी संगठन से था। यह संगठन पहले आंध्रप्रदेश, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश और ओडिसा में सक्रिय था, लेकिन एमसीसी से विलय के बाद छत्तीसगढ़ में भी इसकी सक्रियता शुरू हो गई। इस संगठन के लोगों ने आदिवासी युवक-युवतियों को नक्सल अभियान से जोड़ना शुरू किया। इससे नक्सलियों की संख्या तेजी से बढ़ी।
पार्टी यूनिटी ने कू्ररता बढ़ा दी
एमसीसी के नक्सली पहले से कू्रर थे, लेकिन 21 सितंबर, 2004 को पार्टी यूनिटी का विलय होने से उनकी कू्ररता और बढ़ गई। पार्टी यूनिटी अगस्त, 1998 में अस्तित्व में आई थी। यह संगठन बिहार, केरल, हरियाणा, पंजाब में सक्रिय रहा। वर्ष 2000 में गुरिल्ला आर्मी बनाई। अक्टूबर 2002 में देश के तीन तत्कालीन मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य (प. बंगाल), चंद्रबाबू नायडू (आंध्रप्रदेश) और बाबूलाल मरांडी (झारखंड) को जान से मारने की धमकी देकर यह संगठन चर्चा में आया।
एक्सपर्ट व्यू-
एमसीसी में दूसरे संगठनों के विलय से निश्चित तौर पर नक्सलियों की ताकत बढ़ी है। नक्सली पहले से क्रूर भी हुए हैं। इसका कारण यही है कि अब वे नवयुवक-युवतियों को संगठन से जोड़कर ब्रेनवॉश कर रहे हैं और उन्हें इस तरह से ट्रेनिंग दी जा रही है कि वे क्रूर बनें।
विश्वरंजन
पूर्व डीजीपी, छत्तीसगढ़






















 

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