Thursday, February 18, 2010

निरंकुश होते नक्सलवादी

कुमार सतीश
आधी-अधूरी इच्छाशक्ति से लड़े गए युद्ध आत्महंता होते हैं। माओपंथी देश के 13 से ज्यादा राज्यों में युद्धरत हैं। कोई 19 हजार प्रशिक्षित जवानों की सेना है। भारतीय जनतंत्र में सत्ता जनादेश से मिलती है। माओपंथ के अनुसार सत्ता बंदूक की नली से निकलती है। वे निर्दोषों को मारते हैं, हथियार लूटते हैं। वे नेपाल के माओवादी संगठनों से जुड़े हुए हैं। केंद्र पर राष्ट्रीय सुरक्षा की प्राथमिक जिम्मेदारी है। संविधान की 7वीं अनुसूची-संघसूची की शुरुआत ही भारत की और उसके प्रत्येक भाग की रक्षा से होती है। मूलभूत प्रश्न है कि क्या केंद्र अपनी इस प्राथमिक जिम्मेदारी का निर्वहन करने में सक्षम है? क्या केंद्र के पास भी माओपंथियो-नक्सलियों जैसी दृढ़ इच्छाशक्ति है? नक्सली जघन्य हत्याओं को वैचारिक आधार देते हैं। उनके समर्थक भूमि सुधार जैसे सवाल भी उठाते हैं। बेशक भूमि सुधार जैसे प्रश्न भी गंभीर हैं। असल में भूमि सुधार ही मूल मसला नहीं है। आदिवासी वनवासी अभावग्रस्त क्षेत्र की बुनियादी समस्याएं नजरंदाज हुई हैं। मनमोहन अर्थशास्त्र में आदिवासी, वनवासी, दलित, हुनरमंद कारीगर और मेहनतकश नौजवान के लिए कोई जीविका नहीं है। मेहनतकश मजदूर बाजार के लिए कच्चा माल हैं। पूंजीवादी विकास के हल्ले-हमले के पहले पश्चिम बंगाल, बिहार, आंध्र, छत्तीसगढ़ और झारखंड के इलाके के आदिवासी अपनी प्राकृतिक संपदाओं पर निर्भर थे। नक्सल प्रभावित अधिकांश क्षेत्रों में कोयला आदि खनिज पदार्थो की खाने हैं। अब उन पर धन्ना सेठों का कब्जा है। दंडकारण्य भी आदिवासी अभयारण्य नहीं रहे। जल, जंगल, खाने-खदान और जमीन से बेदखली का अभिशाप प्राणलेवा है। इस गंभीर तथ्य की ओर किसी का ध्यान नहीं गया। गुनहगार राजनीति भी है। राजनीतिक दल इन वंचितों को राजनीति की मुख्यधारा में नहीं लाए। वे परंपरागत गुरिल्ला युद्ध जानते हैं। वे भूखे हैं, नंगे हैं, शोषित हैं। सो नक्सलपंथ के लिए नरम-गरम माल हैं। नक्सली विदेशी हथियारों से लैस है, दृढ़ इच्छाशक्ति से लैस हैं। पुलिस बल भी क्या वैसे आधुनिक हथियारों से लैस है? वे प्रतिपल मौत के सामने हैं। क्या उनका मनोबल बढ़ाने के कोई अतिरिक्त उपाय किए गए हैं? जाहिर है कि सुरक्षा बलों का मनोबल बढ़ाने लायक अतिरिक्त मनोबल सरकार के पास है ही नहीं। कुल मिलाकर नक्सलवादियों से चंगुल से आदिवासियों की मुक्ति के बिना नक्सलवाद से निपटना संभव ही नहीं है।

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