Friday, February 12, 2010
सदियों तक नहीं भुला पाएंगे रफी
सदियों तक नहीं •ाुला पाएंगे रफी साहा को आवाज की दुनिया के ोताज ाादशाह मोहम्मद रफी ने जा 31 जुलाई 1980 को एक गाने की रिकार्डिंग पूरी करने के ााद संगीतकार लक्ष्मीकांत प्यारे लाल से यह कहा कि ‘ओके नाउ आई विल लीव’ ता यह किसी ने •ाी नहीं सोचा था कि आवाज का यह जादूगर उसी शाम इस दुनिया को अलविदा कह जायेगा। संगीत के प्रति समर्पित मोहम्मद रफी क•ाी •ाी अपने गाने को पूरा किए ािना रिकार्डिंग रूम से ााहर नहीं निकला करते थे। उस दिन अपने संगीतकार से कह गए शद उनके व्यावसायिक जीवन के आखिरी शद सााित हुये। उसी शाम 7 ाजकर 30 मिनट पर मोहम्मद रफी को दिल का दौरा पÞडा और वह अपने कराÞडों प्रशंसकों को छोÞडकर इस दुनिया से हमेशा-हमेशा के लिए चले गये। मोहम्मद रफी आज हमारे ाीच नहीं हैं लेकिन फिजा के कण-कण में उनकी आवाज गूंजती हुई महसूस होती है। हिंदुस्तान का हर संगीत प्रेमी मोहम्मद रफी की दिलकश आवाज का दीवाना है। विदेशों में उनकी लोकप्रियता का अंदाजा इसी ाात से लगाया जा सकता है कि 70 के दशक में पाकिस्तान में जितने लोकप्रिय मोहम्मद रफी थे उतनी लोकप्रियता वहां के प्रधानमंत्री जुल्फीकार अली •ाुट्टो को •ाी हासिल नहीं थी। एक गाने ने मोहम्मद रफी को खासतौर से पाकिस्तान मे हर दिल अजीज ाना दिया था। फिल्म समझौता का यह गाना ‘ाÞडी दूर से आए हैं प्यार का तोहफा लाए है’ ांटवारे के ााद अपने रिश्तेदारों से ािछड़े हर पाकिस्तानी की आंखें आज •ाी नम कर देता है। पाकिस्तान में ही नहीं ा्रिटेन, केन्या, वेस्टइंडीज मे •ाी मोहम्मद रफी के गाने पसंद किए जाते हैं। मोहम्मद रफी ाचपन में अपने माता-पिता के साथ लाहौर में रह रहे थे। उन दिनों अक्सर उनके मोहल्ले मे एक फकीर का आना जाना लगा रहता था। उसके गीत सुनकर मोहम्मद रफी के दिल मे संगीत के प्रति लगाव पैदा हुआ जो दिन पर दिन ाÞढता गया। उनके ाड़े •ााई हमीद ने मोहम्मद रफी के मन मे संगीत के प्रति ाÞढते रुझान को पहचान लिया और उन्हें इस राह पर आगे ाÞढने के लिए प्रेरित किया। रफी ने लाहौर में उस्ताद अदुल वाहिद खान से संगीत की शिक्षा लेना शुरू कर दिया। इसके अलावा वह गुलाम अलीखान से •ाारतीय शास्त्रीय संगीत •ाी सीखा करते थे। उन दिनों रफी और उनके •ााई संगीत के एक कार्यक्रम में सुप्रसिद्ध गायक कलाकार केएल सहगल के गानों को सुनने के लिए गये। लेकिन ािजली चली जाने के कारण जा केएल सहगल ने गाने से इंकार कर दिया ता उनके •ााई हमीद कार्यक्रम के संचालक के पास गए और उनसे गुजारिश की कि वह उनके •ााई रफी को गाने का एक मौका देें। संचालक के राजी होने पर रफी ने पहली ाार 13 वर्ष की उम्र में अपना पहला गीत स्टेज पर दर्शकों के ाीच पेश किया। दर्शकों के ाीच ौठे संगीतकार श्याम सुंदर को उनका गाना काफी पसंद आया और उन्होंने रफी को मुांई आने का न्यौता दे दिया। श्याम सुदंर के संगीत निर्देशन में रफी ने अपना पहला गाना एक पंजााी फिल्म ‘गुलालोच’ के लिए ‘सोनिए नी हिरीए नी’ पार्श्व गायिका जीनत ोगम के साथ गाया। वर्ष 1944 में नौशाद के संगीत निर्देशन में उन्होंने अपना पहला हिन्दी गाना ‘हिन्दुस्तान के हम हैं’ ‘पहले आप’ फिल्म के लिए गाया लेकिन इस फिल्म के जरिए वह कुछ खास पहचान नहीं ाना पाये। लेकिन वर्ष 1949 में नौशाद के संगीत निर्देशन में ही फिल्म ‘दुलारी’ में गाए गीत ‘सुहानी रात ढल चुकी’ के जरिए रफी ने सफलता की ऊंचाइयों पर चÞढना शुरू किया और उसके ााद उन्होंने पीछे मुÞडकर नहीं देखा। साठ के दशक में दिलीप कुमार, देवानंद, शम्मी कपूर, राजेन्द्र कुमार, शशि कपूर, राजकुमार जैसे नामचीन नायकों की आवाज कहे जाने वाले रफी ने अपने तीन दशक से •ाी ज्यादा लंो कॅरियर में लग•ाग 26000 फिल्मी और गैर फिल्मी गाने गाये। उन्होंने हिन्दी के अलावा मराठी, तेलुगू और पंजााी फिल्मों के गीतों के लिए •ाी अपना स्वर दिया। रफी के गाए गीतों में से कुछ सदााहार गीतों को याद कीजिए- तू गंगा की मौज (ौजू ाावरा-1952), नन्हे मुन्ने ाच्चे तेरी मुट्ठी में क्या है (ाूट पालिश-1953), उÞडे जा जा जुल्फें तेरी (नया दौर-1957), दो सितारों का जमीं पर है मिलन (कोहीनूर-1960), सौ साल पहले हमें तुमसे प्यार था (जा प्यार किसी से होता है-1961), हुस्न वाले तेरा जवाा नहीं (घराना-1961), तेरी प्यारी प्यारी सूरत को किसी की नजर न लगे (ससुराल-1961), ए गुलादन ए गुलादन (प्रोफेसर-1962), तुझे जीवन की डोर से ाांध लिया है (असली नकली-1962), मेरे महाूा तुझे मेरी मोहात की कसम (मेरे महाूा-1963), दिल एक मंदिर है (दिल एक मंदिर-1963), जो वादा किया वो नि•ााना पÞडेगा (ताजमहल-1963), ये मेरा प्रेम पत्र पÞढकर (संगम-1964), छू लेने दो नाजुक होठों को (काजल-1965), पुकारता चला हंू मैं (मेरे सनम-1965), ाहारों फूल ारसाओ मेरा महाूा आया है (सूरज-1966), दिल पुकारे आ रे आरे आरे (ज्वैल थीफ-1967), मैं गाऊं तुम सो जाओ (ा्रह्मचारी-1968), ाााुल की दुआंए लेती जा (नीलकमल-1968), ोखुदी में सनम (हसीना मान जायेगी-1968), आने से उसके आए ाहार (जीने की राह-1969), ओ हसीना जुल्फो वाली (तीसरी मंजिल-1969), खिलौना जानकर मेरा दिल तोÞड जाते हो (खिलौना-1970), आजा तुझको पुकारे मेरे गीत (गीत-1970), झिलमिल सितारों का आंगन होगा (जीवन मृत्यु-1970), यूं ही तुम मुझसे ाात करती हो (सच्चा झूठा-1970), कितना प्यारा वादा है (कारवां-1971), इतना तो याद है मुझे (महाूा की मेंहदी-1971), कुछ कहता है ये सावन (मेरा गांव मेरा देश-1971), चुरा लिया है तुमने जो दिल को (यादों की ाारात-1973), तेरी ािंदिया रे (अ•िामान-1973), वादा करले साजना (हाथ की सफाई-1974), पर्दा है पर्दा (अमर अकार एंथानी-1977), क्या हुआ तेरा वादा (हम किसी से कम नहीं-1977), आदमी मुसाफिर है (अपनापन-1978), चलो रे डोली उठाओ (जानी दुश्मन-1979) दर्दे दिल दर्दे जिगर (कर्ज-1980), मैंने पूछा चांद से (अदुल्ला-1980), मेरे दोस्त किस्सा ये क्या हो गया (दोस्ताना-1980) और जनम जनम का साथ है (•ाींगी पलकें-1982)। मोहम्मद रफी को मिले सम्मानों को देखें तो उन्हें गीतों के लिए 6 ाार फिल्म फेयर का अवार्ड मिला है। उन्हें पहला फिल्म फेयर अवार्ड वर्ष 1960 में प्रदर्शित फिल्म (चौंदहवी का चांद) फिल्म के ‘चौंदहवी का चांद हो या आफताा हो’ गाने के लिए दिया गया था। इसके अलावा उन्हें ‘तेरी प्यारी प्यारी सूरत को किसी की नजर न लगे’ (ससुराल 1961) के लिए •ाी मोहम्मद रफी को सर्वश्रेष्ठ गायक का फिल्म फेयर पुरस्कार प्राप्त हुआ। वर्ष 1966 में फिल्म (सूरज) के गाने ‘ाहारों फूल ारसाओ मेरा महाूा आया है’ के लिए मोहम्मद रफी को सर्वश्रेष्ठ गायक और वर्ष 1968 में (ा्रम्ह्चारी) फिल्म के गाने ‘दिल के झरोकों में तुझको छुपाकर) के लिए सर्वश्रेष्ठ गायक के फिल्मफेयर पुरस्कार से सम्मानित किए गये। इसके पश्चात उन्हें फिल्म फेयर अवार्ड के लिए लग•ाग 10 वर्ष इंतजार करना पÞडा। वर्ष 1977 में नासिर हुसैन की (हम किसी से कम नहीं) में गाए उनके गीत ‘क्या हुआ तेरा वादा’ के लिए उन्होंने सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायक के रूप में फिल्म फेयर अवार्ड हासिल किया। इसी गाने के लिए वह नेशनल अवार्ड से •ाी सम्मानित किए गये। संगीत के क्षेत्र में मोहम्मद रफी के महत्वपूर्ण योगदान को देखते हुए •ाारत सरकार ने उन्हें वर्ष 1965 में पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया। रफी के पसंदीदा संगीत निर्देशकों के तौर पर नौशाद का नाम सासे उपर आता है। रफी के पहले तलत महमूद नौशाद के चहेते गायक थे लेकिन एक रिकार्डिंग के दौरान तलत महमूद को सिगरेट पीते देखकर नौशाद गुस्सा हो गए और ााद में उन्होंंने (ौजू ाावरा) फिल्म के लिए तलत महमूद की जगह मोहम्मद रफी को गाने का मौका दिया। •ाारत, पाकिस्तान वि•ााजन के ााद नौशाद और रफी ने •ाारत में ही रहने का फैसला किया। इसके ााद जा क•ाी नौशाद को अपनी फिल्मों के लिए गायक कलाकार की जरूरत होती थी वह मोहम्मद रफी को ही काम करने का मौका दिया करते थे। उनके इस व्यवहार को देखकर ाहुत लोग नाखुश थे। फिर •ाी नौशाद ने लोगों की अनसुनी करते हुए मोहम्मद रफी को ही अपनी फिल्मों में काम करने का अधिक मौका देना जारी रखा। नौशाद, मोहम्मद रफी की जोÞडी के कुछ गानों में ‘न तू जमीं के लिये’ (दास्तान), दिलरूाा मैंने तेरे प्यार में क्या क्या न किया (दिल दिया दर्द लिया), ए हुस्न जरा जाग तुझे इश्क जगाये (मेरे महाूा), तेरे हुस्न की क्या तारीफ करूं (लीडर), कैसी हसीन आज ाहारों की रात है (आदमी), कल रात जिंदगी से मुलाकात हो गई (पालकी), हम हुए जिनके लिएर् ाााद (दीदार), मधुान में राधिका नाची रे (कोहीनूर), नैन लÞड जइहे तो मनवा में कसक (गंगा जमुना), जैसे सुपर हिट नगमें शामिल हैं। मोहम्मद रफी के गाए गीतोंं को नौशाद के अलावा एसडी ार्मन, ओपी नैयर, मदन मोहन, शंकर जयकिशन, लक्ष्मीकांत प्यारे लाल और रवि ने •ाी अपने संगीत से संवारा है। एसडी ार्मन के संगीत निर्देशन में रफी ने देवानंद के लिए कई सुपरहिट गाने गाए जिनमें ‘दिल का •ांवर’, ‘ोखुदी में सनम’, ‘खोया खोया चांद’ जैसे गाने शामिल हैं। पचास और साठ के दशक में ओपी नैयर के संगीत निर्देशन में •ाी रफी ने गीत गाये। ओपी नैयर मोहम्मद रफी के गाने के अंदाज से ाहुत प्र•ाावित थे। उन्होंंने किशोर कुमार के लिए मोहम्मद रफी से ‘मन मोरा ाांवरा’ गीत फिल्म (रंगीली) के लिए गवाया। शम्मी कपूर के लिए •ाी रफी और ओपी नैयर की जोÞडी ने ‘यंू तो हमने लाख हसीं देखे हैं, तुमसा नहीं देखा’, ‘तारीफ करूं क्या उसकी जिसने तुम्हें ानाया’ और ‘कश्मीर की कली’ जैसे सदााहार गीत गाकर शम्मी कपूर को उनके कॅरियर की ऊंचाइयों तक पहुंचाने में अहम •ाूमिका नि•ााई है। मदन मोहन के संगीत निर्देशन में •ाी मोहम्मद रफी की आवाज ाहुत सजती थी। इन दोनों की जोÞडी ने ‘तेरी आंखों के सिवा इस दुनिया में रखा क्या है’, ‘ये दुनिया ये महफिल मेरे काम की नहीं’ और ‘तुम जो मिल गए हो’ जैसे न •ाूलने वाले गीत ानाए हैं। साठ और सत्तार के दशक में मोहम्मद रफी की जोÞडी संगीतकार लक्ष्मीकांत, प्यारेलाल के साथ काफी पसंद की गई। रफी और लक्ष्मी-प्यारे की जोÞडी वाली पहली हिट फिल्म (पारसमणि) थी। इसके ााद इन दोनों की जोÞडी ने कई सुपरहिट फिल्मों मे एक साथ काम किया। वर्ष 1964 में जहां फिल्म (दोस्ती) के लिए मोहम्मद रफी सर्वश्रेष्ठ पार्श्वगायक के फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किए गए वहीं लक्ष्मीकांत, प्यारेलाल को •ाी इसी फिल्म के लिए सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का फिल्म फेयर पुरस्कार प्राप्त हुआ। हालांकि फिल्म की शुरुआत के समय यह गाना महिला पार्श्व गायक की आवाज में रिकार्ड होना था लेकिन गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी के कहने पर संगीतकार लक्ष्मीकांत प्यारेलाल ने इस गाने को रफी की ही आवाज दी।
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