0 सड़क बराबर न होने से उछलते हैं दोपहिया सवार
राजधानी की उबड़-खाबड़ सड़कें हादसे को न्योता दे रही हैं। सड़कों का निर्माण करने वाली एजेंसियां ऐसी डामरी और क्रांक्रीटीकरण कर रही हैं कि सड़कें समतल नहीं बन रही हैं और वाहन चालक आए दिन दुर्घटनाग्रस्त हो रहे हैं। दो दिन पहले गुरुकुल कॉम्पलेक्स व नगर निगम गार्डन के सामने नाले पर बनी पुलिया को पार करते समय एक्टीवा उछलने से उस पर पीछे बैठी अधेड़ महिला सड़क पर गिर गई और उसकी मौत हो गई। इस घटने ने बिना मापदंड के हो रहे डामरीकरण की पोल खोल दी है। शहर में ऐसे कई स्थान हैं, जहां दोपहिया सवार लगातार दुर्घटनाग्रस्त हो रहे हैं, लेकिन नगर निगम और पीडब्ल्यूडी विभाग सड़कें सुधारने की दिशा में कोई प्रयास नहीं कर रहे हैं।
ये हैं खतरनार स्पॉट
कालीबाड़ी और महिला थाने के बीच गुरुकुल काम्पलेक्स के ठीक सामने नाले पर बनी पुलिया काफी खतरनाक है। कुछ महीने पहले ही इस सड़क पर डामरीकरण किया गया, लेकिन पुलिया और सड़क को बराबर नहीं किया गया। वाहन चालकों का कहना है कि यहां से गुजरते समय गाड़ी उछलती है। यहां पर थोड़ी सी असावधानी खतरनाक साबित हो सकती है। हमेशा व्यस्त रहने वाली इस सड़क पर पुलिया को पार करते समय ब्रेकर पार करने जैसा एहसास होता है।
रोज हादसा
नगर निगम मुख्यालय व्हाइट हाउस के सामने मुख्य द्वार के दोनों तरफ सड़क पर किया गया क्रांक्रीटीकरण बराबर नहीं है। यहां पर रोज कोई न कोई दोपहिया सवार अनियंत्रित होकर गिरता है। पुजारी पार्क के बाजू से टैगौरनगर की ओर जाने वाली क्रांकीट सड़क का भी हाल कुछ ऐसा ही है। दोनों तरफ की सड़क बराबर न होने के कारण बड़ी सावधानी गाड़ी चलानी पड़ती है। इसके अलावा शहर में कई और स्थान खतरनाक हैं।
केस वन- 30 मार्च की शाम 4 बजे
कुष्ठ अस्पताल लालपुर में पंप मैकेनिक व लालपुर निवासी श्यामलाल दत्ता की पत्नी काजल दत्ता (50) बेटी सोनाली के साथ एक्टीवा पर पीछे बैठाकर रेलवे स्टेशन ले जा रही थी। कालीबाड़ी चौक से आगे गुरुकुल काम्पलेक्स के मुहाने से लगी पुलिया को पार करते समय अचानक एक्टीवा उछली और काजल दत्ता बीच सड़क पर गिर गई। इस घटना में उनके सिर में चोट लगी थी। अस्पताल ले जाते समय रास्ते में ही उनकी मौत हो गई।
केस टू- 27 मार्च की शाम
उरला निवासी फैक्ट्री कर्मी रमेश यादव (32) बाइक समेत अनियंत्रित होकर उरला थानाक्षेत्र के गोमची पुलिया के नीचे गिर गया था। वह गंभीर रूप से घायल हो गया था। इलाज के दौरान दूसरे दिन अस्पताल में रमेश की मौत हो गई। पुलिस ने जांच में हादसे के शिकार बाइक चालक की लापरवाही से हादसा होना पाकर मृतक रमेश के खिलाफ ही धारा 304 ए का अपराध कायम कर लिया है।
दस माह में 47 गैंगरेप
प्रदेश के 27 जिलों में बीते दस माह में गैंगरेप के 47 और बलात्कार के 883 मामले दर्ज किए गए हैं। यानी हवस के भूखे लोग प्रदेश के किसी न किसी कोने में हर छठे दिन सामूहिक दरिंदगी की घटना को अंजाम दे रहे हैं। वहीं हर रोज तीन महिलाओं या बच्चियांे के साथ बलात्कार हो रहा है।
जिला बलात्कार गैंगरेप
रायपुर 84 04
बलौदाबाजार 40 02
महासमुंद 31 00
धमतरी 20 00
दुर्ग 84 07
बालोद 21 01
बेमेतरा 19 02
राजनांदगांव 27 00
कबीरधाम 17 00
गरियाबंद 16 01
बिलासपुर 41 01
मुंगेली 07 00
रायगढ़ 69 04
जांजगीर-चांपा 29 01
कोरबा 26 00
सरगुजा 59 01
जशपुर 67 03
कोरिया 41 05
बलरामपुर 52 03
सूरजपुर 55 07
जगदलपुर 28 00
कोण्डागांव 11 00
दंतेवाड़ा 05 01
सुकमा 02 00
कांकेर 24 02
बीजापुर 02 02
नारायणपुर 04 00
रेल रायपुर 02 00
कुल 883 47
(आंकड़े 28 जनवरी 2013 की स्थिति में)
फास्ट ट्रैक कोर्ट में बच्चों के आपराधिक मामलों की भी होगी सुनवाई
0 जिला एवं सत्र न्यायालय के स्तर पर फास्ट ट्रैक कोर्ट की स्थापना की तैयारी शुरू
छत्तीसगढ़ में महिलाओं के खिलाफ होने वाले आपराधिक मामलों की सुनवाई के लिए जल्द प्रत्येक जिले में जिला सत्र न्यायालय के स्तर पर फास्ट ट्रैककोर्ट की स्थापना की तैयारी चल रही है। फास्ट ट्रैक कोर्ट में बाल अधिकार संरक्षण आयोग अधिनियम तथा 'लैंगिक अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम 2012" के तहत दर्ज मामलों की भी सुनवाई की जा सकेगी। फास्ट ट्रैक कोर्ट में जहां तक संभव हो सकेगा, महिला जजों की नियुक्ति की जाएगी।
आधिकारिक जानकारी के मुताबिक राज्य सरकार ने प्रत्येक जिले में जिला सत्र न्यायालय के स्तर पर फास्ट ट्रैक कोर्ट की स्थापना के लिए हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को प्रस्ताव भेजा था, जिसे मंजूरी मिल चुकी है। इसके बाद राज्य सरकार द्वारा सभी सोलह जिला एवं सत्र न्यायालयों के स्तर पर फास्ट ट्रैक कोर्ट की स्थापना की कार्यवाही शुरू कर दी गई है। वित्त विभाग की मंजूरी मिलने के बाद सोलह जिलों में फास्ट ट्रैक कोर्ट अस्तित्व में आ जाएंगी। प्रत्येक फास्ट ट्रैक कोर्ट में अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश की पदस्थापना की जाएगी।
दिल्ली गैंगरैप कांड के अलावा हाल ही में कांकेर व बालोद जिले के कन्या आश्रम में आदिवासी बच्चियों के साथ हुई दुष्कर्म की घटना के बाद ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए प्रदेश सरकार यह कदम उठा रही है। प्रदेश में महिलाओं व बालिकाओं पर अत्याचार व छेड़छाड़ की घटनाओं पर प्रभावी अंकुश लगाने और दोषी व्यक्तियों को सजा दिलाने के लिए विधानसभा के बजट सत्र में संशोधन विधेयक भी पारित किया गया। ऐसे मामलों में पुलिस थानों में थानेदारों के साथ महिला अधिकारी की मौजूदगी में एफआईआर दर्ज होगी।
वर्जन...
महिला उत्पीड़न व छेड़छाड़ से जुड़े मामलों की सुनवाई के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट की स्थापना जल्द से जल्द करने की तैयारी चल रही है। फास्ट ट्रैक कोर्ट में बच्चों के खिलाफ होने वाले आपराधिक मामलों की भी सुनवाई की जा सकेगी। फास्ट ट्रैक कोर्ट में जहां तक संभव हो सकेगा, महिला जजों की नियुक्ति का प्रस्ताव है।
- एके सामंतरे, प्रमुख सचिव, विधि विभाग
छत्तीसगढ़ के जंगल में घोर अमंगल
-लुप्तप्राय वन्य प्राणियों की जान खतरे में ,2 साल में 91घटनाएं
-वन अपराधों को पूरी तरह से रोक पाना नामुमकिन -मुख्य वन संरक्षक
-वन विभाग लेगा वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो की मदद
यह घटते जंगल और बढ़ती आबादी के बीच जन्म ले रहे असंतुलन की कहानी है। यह इंसान की बस्ती के बढ़ने और वन्य जीवों के रहवास के सिकुड़ने की भी कहानी है। छत्तीसगढ़ में वन्य जीवों और इंसान के बीच खुरेंजी का एक नया दौर शुरू हो गया है। वन्य जीव, गांवों -कस्बों में घुसकर इंसानों को मार रहे हैं तो इंसान भी वन्य जीवों की हत्या कर रहे हैं। लगभग 8171 हेक्टेयर में फैले वन्य जीव अभयारण्यों में ऐसा कोई दिन नहीं बीतता, जब वन्य जीवों संबंधी अपराध न हो। दुखद यह है कि छत्तीसगढ़ वन विभाग के पास लुप्तप्राय वन्य जीवों की संख्या का निश्चित आकलन तक उपलब्ध नहीं है। यह वो वक्त है, जब प्रदेश में वन अपराधों की बाढ़ आई हुई है। डोंगरगढ़ के जंगलों में तीन कोटरी का शिकार करने के आरोप में एक पूरा गैंग पकड़ा गया है। अलग -अलग इलाके से वन तस्करों के भी गिरफ्तारी की सूचना मिल रही है। मुख्य वन संरक्षक (वाइल्ड लाइफ )अनूप श्रीवास्तव कहते हैं कि देखिए, ये अपराध रोके नहीं जा सकते। हां, इन्हें नियंत्रित करने की कोशिशभर की जा सकती है। राज्य में अकेले 2009-10 तक के जो अंतिम आंकड़े उपलब्ध हंै, उनके अनुसार इस अवधि में 69 वन्य जीवों की हत्या की गई, वहीं 2010 से 2012 के बीच वन्य जीवों के शिकार की 91 घटनाएं घटने की सूचना है। दुखद यह है कि इस दौरान मारे जाने वाले वन्य जीवों में से तीन दुर्लभ श्रेणी के बाघ और तीन ही जंगली बिल्लियां भी थीं। काबिलेगौर है कि क्रूरतम श्रेणी के वन अपराधों में आदिवासी -गिरिजनों के शामिल होने की तादाद बेहद कम है। ज्यादातर मामलों में शिकार का काम गैर आदिवासी ,आर्थिक लाभ के लिए कर रहे हैं
जहां तक हाथियों का सवाल है, राज्य में पिछले चार वर्षों में हाथियों ने 70 इंसानों को मारा तो केवल दो वर्षों में 30 हाथियों की जान गई है। अगर मौत की प्राकृतिक वजहों को छोड़ दिया जाए तो इंसानों ने इन्हें मारने के लिए बिजली के झटकों और जहरखुरानी तक का इस्तेमाल किया है। गौरतलब है कि वन्य जीवों के संरक्षण के लिए सरकार अब तक 125 करोड़ से ज्यादा की राशि खर्च कर चुकी है। आलम यह है कि बाघों की संख्या साल दर साल घटती जा रही है। एक तरफ वन विभाग के आंकड़े कहते हैं कि राज्य में 24-27 बाघ हैं, जबकि मुख्य वन संरक्षक छत्तीसगढ़ दूसरी तरफ खुद ही स्वीकार करते हैं कि उनकी गिनती का काम संभव नहीं है ।राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण नई दिल्ली एवं भारतीय वन्य प्राणी संस्थान-देहरादून द्वारा वन्य प्राणियों के आंकलन के संबंध में प्रकाशित रिपोर्ट बाघों को लेकर वन विभाग के झूठ का पर्दाफाश करती है। इन आंकड़ों से पता चलता है कि छत्तीसगढ़ में 2008 में 3609 वर्ग किमी बाघ रहवास क्षेत्र था, जो 2008--10 में घटकर 3514 वर्ग किमी रह गया यानी की बाघ मर रहे हैं और उनकी उपस्थिति का क्षेत्र घट रहा है । केन्द्र से मिलने वाली राशि का यदि आकलन करें तो पता चलता है कि वन विभाग हर साल एक बाघ पर करीब 8 लाख रुपए खर्च कर रहा है, लेकिन उनकी संख्या फिर भी निरंतर कम क्यों हो रही है? इसका जवाब किसी के पास नहीं है।
प्रदेश की भूमि का 44 फीसदी हिस्सा जंगल है। इसमें तीन टाईगर रिजर्व - इंद्रावती, अचानकमार, उदंती-सीतानदी, आठ अभयारण्य - बादलखोल, गोमर्डा, बारनवापारा, तमोरपिंगला, सेमरसोत, भैरमगढ़, पामेड़, भोरमदेव, दो राष्ट्रीय उद्यान - कांगेर घाटी और गुरु घासीदास हैं। ये कुल 11310.9977 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है, जो राज्य के कुल वनक्षेत्र का 16.08 फीसदी है।
जंगल चला केपिटल सिटी की ओर
अब जंगल के राजा और जंगल की प्रजा की जान खतरे में है। राज्य सरकार ने नया रायपुर में जंगल सफारी की स्थापना का निर्णय लिया है। इसके लिए नया रायपुर अथॉरिटी द्वारा 202 हेक्टेयर भूमि चिह्नित की गई है। 170 हेक्टेयर भूमि वन विभाग के आधिपत्य में दे दी गई है। शेष 32 हेक्टेयर भूमि का अर्जन किया जा रहा है। इसके लिए राज्य कैम्पा की वार्षिक योजना में वर्ष 2013-14 के लिए 20 करोड़ की राशि का प्रावधान किया गया है। इस सफारी में शेर ,बाघ ,तेंदुआ ,भालू नीलगाय ,सांभर ,कोटरी ,भेड़िया ,चीतल बायसन आदि रखे जाएंगे
वर्जन-
छत्तीसगढ़ में स्थिति बेहद चिंताजनक है। वन अपराधों से जुड़े जो मामले वन विभाग को देखने चाहिए, उन्हें पुलिस देख रही है। दरअसल वन अपराधों को रोकने के लिए कोई योजनाबद्ध कार्यक्रम ही नहीं है। जब तक वन्य जीवों की रक्षा को लेकर कोई निश्चित लक्ष्य नहीं होगा,अपराध नहीं रुकेंगे। जहां तक आदिवासियों द्वारा अपराध किए जाने की बात है, आदिवासी अगर वन अपराध करते हैं तो भोजन के लिए आर्थिक लाभ के लिए नहीं, वन अपराधियों की श्रेणी विशिष्ट होती है, जो केवल ज्यादा से ज्यादा धन कमाने के लिए अपराध करती है।
मीता गुप्ता, वन्यजीव विशेषज्ञ
वर्जन -
हमने वन अपराधों की रोकथाम के लिए वन्य जीव अपराध बोर्ड के साथ काम करने का निर्णय लिया है। उनका हम छत्तीसगढ़ में वन अपराधों का विस्तृत डाटा बैंक तैयार करने का काम कर रहे हैं। इसके अलावा वन अपराध में शामिल लोगों को चिह्नित भी किया जा रहा है,जिससे कि उन लोगों की पहचान कर उन पर निगाह रखी जा सके।
मुख्य वन संरक्षक (वन्य जीव )
अनूप श्रीवास्तव
बसों की छत पर ढो रहे खतरा
0 सुप्रीम कोर्ट की पाबंदी के बाद भी सामान लोड किया जा रहा
0 परिवहन अधिकारी देखकर भी नहीं करते कार्रवाई
सुप्रीम कोर्ट के आदेश की धज्जी उड़ाते हुए बसों की छत पर सामान ढोया जा रहा है। परिवहन अधिकारी बस स्टैंड से निकलते समय यह नजारा रोज देखते हैं, लेकिन कार्रवाई नहीं की जाती है। बसों की छत पर सामान ढोने से दुर्घटना की आशंका रहती है, इसी कारण सुप्रीम कोर्ट ने पाबंदी लगा दी है।
नईदुनिया ने बस स्टैंड पंडरी और बस स्टॉपेज का दौरा किया। इस दौरान कई बसों ेकी छत पर सामान दिखाई पड़ा। किसी बस में कई साइकिलें रखी थीं तो किसी में लोहे की लंबी-लंबी पाइप। किसी पर बड़े कॉर्टून तो किसी पर बोरियां। कुछ बसों की छत तो सामान से पूरी तरह पैक दिखाई पड़ी। छत में सामान रखने से दुर्घटना हो सकती हैै। गड्ढे या ब्रेकर के कारण कहीं बस उछली तो सामान के छिटककर फेंकाने की संभावना रहती है। ऐसा हुआ तो बस के अगल-बगल या आगे-पीछे चल रहे दूसरे लोग उसकी चपेट में आ सकते हैं। इसके अलावा छत में सामान रखने से बस का संतुलन भी बिगड़ता है। टर्निंग या गड्ढे में बस पलट भी सकती है। लेकिन सुरक्षा को दरकिनार कर बस मालिक कमाई में लगे हुए हैं। परिवहन विभाग भी चुप्पी साधे हुए है।
कमाई के चक्कर में नियम ताक पर
सुप्रीम कोर्ट ने बस में पीछे की तरफ लगेज रखने के लिए जगह बनाने के निर्देश जारी किए हैं। अधिकांश बसों में उस तरह की व्यवस्था कर ली गई है, लेकिन कमाई के चक्कर में अधिक से अधिक सामान की बुकिंग कर ली जाती है। पीछे तरफ की जगह भर जाती है तो छत पर सामान लोड कर दिया जाता है।
सुरक्षा को खतरा
ओडिशा और महासमुंद की तरफ से आने वाली बसों में पुलिस ने कई बार गांजा जब्त किया है। क्राइम ब्रांच ने हथियारों के तस्कर को भी पकड़ा है। जिस तरह से छत पर सामान को ढंककर ढोया जाता है, उससे सुरक्षा को खतरा हो सकता है। क्योंकि, तिरपाल या पॉलीथिन हटाकर न कभी पुलिस चेक करती है और न ही परिवहन विभाग।
दिखता नहीं या देखना नहीं चाहते
बस स्टैंड के पीछे परिवहन आयुक्त का कार्यालय है। परिवहन आयुक्त से लेकर अतिरिक्त परिवहन आयुक्त, सहायक परिवहन आयुक्त समेत दूसरे अधिकारी-कर्मचारी रोजाना बस स्टैंड से गुजरते हैं। आरटीओ रायपुर का भी अक्सर आना-जाना होता है। तमाम अधिकारी बसों की छत पर सामान देखते हैं। उसके बावजूद जब नईदुनिया ने आरटीओ से चर्चा की तो उन्होंने ऐसा जाहिर किया कि उन्हें पता ही नहीं है।
वर्जन---
कार्रवाई होगी
बस की छत पर कोई भी सामान लोड कर ले जाने पर पाबंदी है। उसके बाद भी बसों की छत पर सामान ढोए जा रहे हैं तो यह गलत है। परिवहन विभाग कार्रवाई करेगा।
डोमन सिंह
आरटीओ, रायपुर
365 दिन में अवैध उत्खनन के 273 मामले
0 छत्तीसगढ़ मंे चरम पर है खनिज का बेजा कारोबार
0 अवैध परिवहन के लगभग दो हजार मामले
खनिज संपदा से भरपूर छत्तीसगढ़ मंे अवैध खुदाई का कारोबार जोरों पर है। इस साल 365 दिनों में 273 मामले दर्ज किए गए हैं। अवैध खुदाई के सबसे अधिक मामले सरगुजा जिले में दर्ज किए गए हैं। रायगढ़ और दुर्ग में भी अवैध उत्खनन के अधिक मामले सामने आए हैं।
छत्तीसगढ़ में लगभग 28 प्रकार के खनिज पाए जाते हैं। प्रदेश के उत्तर में कोयला, बॉक्साइट, ग्रेफाइट, दक्षिण में लौह अयस्क, टिन, कोरण्डम, तांबा एवं सीसा, पूर्व में हीरा, एलेक्जेंड्राइट एवं गार्नेट और पश्चिम में फ्लोराइट, लौह अयस्क, तांबा आदि खनिज पाए जाते हैं। प्रदेश के मध्य भाग में सीमेंट बनाने के पत्थर,लाइम स्टोन, डोलोमाइट, क्वार्ट्ज, क्ले, टाल्क, मार्बल आदि पाए जाते हैं।
अवैध परिवहन के मामले भी बढ़े
प्रदेश में अवैध खनन के कारण अवैध परिवहन के मामले भी लगातार बढ़ रहे हैं। इस वित्तीय वर्ष में अवैध परिवहन के कुल 1819 मामले दर्ज किए गए हैं, सबसे अधिक अवैध परिवहन के मामले प्रदेश के जांजगीर जिले में दर्ज किए गए हैं। दुर्ग और राजधानी रायपुर में अवैध परिवहन के मामले अधिक संख्या में दर्ज किए गए हैं।
राजस्व वसूली में पिछड़ा विभाग
खनिज विभाग द्वारा वर्ष 2012-13 में 3105 करोड़ रुपए राजस्व वसूली का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन इसके विरुद्ध विभाग द्वारा साल 2012 में सिर्फ 2155 करोड़ 3 लाख 82 हजार रुपए ही वसूल किए जा सके। इस तरह विभाग लगभग एक हजार करोड़ रुपए की वसूली नहीं कर पाया। मुख्य खनिज जैसे कोयला, चूना पत्थर, लौह अयस्क, डोलोमाइट, बाक्साइट, क्वार्टज एवं क्वार्टजाइट, मोल्डिंग सैण्ड, टिन अयस्क और विविध खनिज तथा गौण खनिज चूना पत्थर, मुरुम, रेत, मिट्टी से वर्ष 2010-11 मंे कुल 246145.78 लाख रुपए खनिज राजस्व के रूप में मिला है। इसमें सबसे अधिक राजस्व कोयला से 107731 लाख रुपए तथा लौह अयस्क से 35898 लाख रुपए प्राप्त हुआ है।
पिछले दो साल में प्रदेश में अवैध उत्खनन और अवैध परिवहन के मामले और वसूला गया जुर्माना
वर्ष - अवैध उत्खनन - वसूली गई राशि - अवैध परिवहन - वसूली गई राशि
2009-2010 - 397 - 6422831 - 2403 - 20013500
2010-2011 - 465 - 6529405 - 2421 - 13671573
2011-2012 - 273 - 1383900 - 1819 - 15239000
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