Sunday, July 7, 2013

नागपुर से रायपुर के बीच जूझता रहा बीमार युवक ,अंत में मिली मौत


0 स्टेशन में ट्रेन रोककर यात्रियों ने किया हंगामा
0 यात्री युवक के बीमार होने की सूचना के बाद भी रेलवे ने नहीं की चिकित्सा की व्यवस्था
 हावड़ा मेल में मुंबई के लिए यात्रा कर रहे एक बीमार युवा यात्री की समय पर चिकित्सा न मिलने की वजह से मौत हो गई।इसी तरह पिछले माह जून में भी दुर्ग-गोरखपुर एक्सप्रेस में सफर के दौरान 68 वर्षीया महिला रामदुलारी की दम घुटने से मौत हो गई थी। उसे भी समय पर इलाज नहीं मिल पाया था।
बीमार युवक का इलाज कराने उसके साथ यात्रा कर रहे लोगों ने कई बार रेलवे के जिम्मेदार टीटी, आरपीएफ से लेकर अफसरों से मिन्नात की, लेकिन नागपुर से दुर्ग के बीच कहीं भी चिकित्सा की व्यवस्था नहीं कराई गई। आखिर में इलाज के अभाव में बीमार युवक ने रायपुर स्टेशन पहुंचने से पहले दम तोड़ दिया। इस घटना से आक्रोशित यात्रियों ने जमकर हंगामा करते हुए करीब दो घंटे तक चेन पुलिंग कर ट्रेन को रोके रखी। इसके बाद हरकत में आए जीआरपी व रेलवे के अफसरों ने ट्रेन से लाश को नीचे उतरवाया।
जानकारी के मुताबिक खड़गपुर(पश्चिम बंगाल) निवासी मृतक संतोष दास(35) मुंबई में काम करता था। वह मुंबई हावड़ा मेल से खड़कपुर जा रहा था। बोगी क्रमांक एस-8 में यात्रा कर रहे संतोष की सोमवार सुबह 10 बजे अचानक तबीयत खराब हो गई। उस वक्त ट्रेन नागपुर पहुंचने को थी। उसने साथ में यात्रा कर रहे यात्रियों को बीमार होने के बारे में जानकारी दी और इलाज कराने के लिए रेलवे के कर्मचारियों  से बात करने को कहा। यात्रियों ने तत्काल ट्रेन में मौजूद टीटी राकेश कुमार, आरपीएफ के जवान को इसकी जानकारी देकर नागपुर में इलाज की व्यवस्था कराने का निवेदन किया। यात्रियों का कहना है कि टीटी ने तुरंत नागपुर स्टेशन मास्टर समेत अन्य से बात कर यात्री के बीमार होने तथा इलाज की व्यवस्था कराने को कहा।
नागपुर में आधे घंटे खड़ी रही ट्रेन, तड़पता रहा युवक
यात्रियों का आरोप है कि ट्रेन नागपुर में आकर आधे घंटे तक खड़ी रही, लेकिन कोई भी चिकित्सा अमला वहां नहीं पहुंचा। इसके बाद टीटी ने गोदिंया में इलाज कराने की व्यवस्था हो जाने की बात कहकर ट्रेन को रवाना कराया। इस बीच युवक की हालत खराब होने लगी थी। गोदिंया पहुंचने के बाद भी रेलवे ने वहां इलाज की कोई व्यवस्था नहीं की थी। टीटी द्वारा बार-बार आने वाले स्टेशन में व्यवस्था होने का आश्वासन देकर उग्र यात्रियों को शांत कराया जा रहा था।
दुर्ग-रायपुर के बीच दम तोड़ा
यात्रियों ने बताया कि ट्रेन डोंगरगढ़, राजनांदगांव, दुर्ग तक पहुंच गई, लेकिन रेलवे की तरफ से कोई व्यवस्था नहीं की गई। दुर्ग से निकलने पर रायपुर में इलाज कराने को कहा गया, किंतु शाम 4 बजे रायपुर पहुंचने से पहले इलाज के अभाव में तड़प रहे संतोष दास की मौत हो चुकी थी।
दो घंटे तक स्टेशन में हंगामा
बीमार रेल यात्री की इलाज के अभाव में हुई मौत के बाद यात्रियों के सब्र का बांध फूट पड़ा। आक्रोशित यात्रियों ने शाम 4 बजे स्टेशन पर हंगामा करना शुरू कर दिया। आक्रोश को शांत कराने ट्रेन को तीन बार स्टेशन से आगे के लिए रवाना करने की कोशिश की गई, लेकिन जैसे ही ट्रेन आगे बढ़ता यात्री चेन पुलिंग कर ट्रेन को रोक देते थे। कुछ यात्री ट्रेन से सामने पटरी पर लेटकर युवक के मौत के जिम्मेदार लोगों पर कार्रवाई की मांग पर अड़े रहे। हंगामे के कारण ट्रेन दो घंटे तक स्टेशन पर खड़ी रही। माहौल बिगड़ता देख रेलवे अफसरों के निर्देश पर जीआरपी ने यात्री की लाश को नीचे उतरवाया। मामले में लापरवाही बरतने वाले दोषी रेलवे कर्मी के खिलाफ कार्रवाई का आश्वासन यात्रियों को देकर शाम सवा छह बजे ट्रेन को रवाना कर दिया गया। लाश को अंबेडकर अस्पताल में रखवा दिया गया है। रेलवे प्रशासन ने घटना की जानकारी मृतक के परिजनों को दे दी है।
स्वीकारा, हुई है लापरवाही
नागपुर से रायपुर तक ट्रेन में ड्यूटी कर रहे टीटी राकेश कुमार और एआर ठाकुर ने यात्रियों के समक्ष स्वीकार किया कि काफी प्रयास करने के बाद भी बीमार यात्री के इलाज की कोई व्यवस्था नहीं किया जा सका। नागपुर से रायपुर के बीच हर स्टेशन के रेलवे कंट्रोल रूम को इसकी सूचना देकर इलाज की व्यवस्था कराने कहा गया था, लेकिन घोर लापरवाही के कारण यात्री की जान चली गई। इसके जिम्मेदार रेलवे कर्मचारियों पर कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए।
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मलेरिया अधिकारी और विधायक के निज सचिव पर धोखाधड़ी का मामला कायम
0 नौकरी लगाने बेरोजगारों से लाखों ऐंठ कर दिया नियुक्ति पत्र जारी
रायपुर(निप्र)। स्वास्थ्य विभाग में नौकरी लगाने के नाम पर बेरोजगारों से लाखों ऐंठने और अपने हस्ताक्षर से नियुक्ति पत्र जारी करने के मामले में जिला मलेरिया अधिकारी अश्वनी देवांगन के साथ एक विधायक के निज सचिव के खिलाफ पुलिस ने धोखाधडी का अपराध कायम कर लिया है।
मौदहापारा पुलिस ने बताया कि बागबहरा निवासी धनीराम पांडेय पिता मन्नाूराम(24) ने बागबहरा विधायक परेश बागबहरा के निज सचिव सुंदरनगर निवासी प्रदीप चंद्राकर के झांसे में आकर तीन साल पहले उसे मंजू ममता होटल के पास 65 हजार रूपए दे दिया था। प्रदीप ने स्वास्थ्य संचानालए में अपनी पकड़ होने का दावा करते हुए धनीराम को मलेरिया विभाग में संविदा पर नौकरी लगवाने का लालच दिया था। धनीराम के साथ बागबहरा क्षेत्र के तीन अन्य बेरोजगारों से भी प्रदीप ने 60 से 80 हजार रूपए लिए थे। इनमें से दो लोगों को जनवरी महीने में मलेरिया अधिकारी अश्वनी देवांगन के हस्ताक्षर से जारी नियुक्ति पत्र भी थमाया था। चारों बेरोजगार युवक कुछ महीने तक मलेरिया विभाग में संविदा पर काम भी कर चुके है। वायदे के मुताबिक जब चारों का नियमितिकरण नहीं हुआ तब उन्होंने पैसे वापस मांगा लेकिन प्रदीप अब तक टाल मटोल करता आ रहा था। शिकायत के बाद बागबहरा पुलिस ने शून्य पर अपराध कायम कर जांच डायरी मौदहापारा पुलिस को भेजी, जिसके आधार पर प्रदीप चंद्राकर व मलेरिया अधिकारी अश्वनी देवांगन के खिलाफ धारा 420, 34 का अपराध कायम कर लिया गया। फिलहाल दोनों की गिरफ्तारी नहीं की गई है। गौरतलब है कि प्रदीप चंद्राकर ने सवा साल पहले राज्य कर्मचारी बीमा सेवा(ईएसआईसी) में ड्रेसर की नौकरी दिलाने का झांसा देकर तीन बेरोजगारों से तीन लाख रुपए ठग लिया था। कुम्हारपारा, महासमुंद निवासी हीरालाल साहू, प्रीतम साहू व मेघनाथ साहू की शिकायत पर पखवाड़े भर पहले गोलबाजार थाने में चार सौ बीसी का अपराध दर्ज किया जा चुका है।
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विधानसभा में भी डाला गया था सरकारी जमीन पर हुए कब्जे पर पर्दा
0 मामला स्वागत विहार का
0 कांग्रेस विधायक मो. अकबर ने फरवरी 2010 में प्रश्न क्रमांक 743 में डूंडा में 2008-09 में पास प्रोजेक्ट्स की मांगी थी जानकारी।
0 सवाल था- डूंडा में बिल्डरों द्वारा डेवलप की जा रही कालोनी के लेआउट में कितनी सरकारी भूमि है?
0 विभागीय मंत्री राजेश मूणत ने लिखित में दिया था जवाब- किसी सरकारी जमीन पर कोई कब्जा नहीं
0 जानकारों का कहना - विधानसभा में सही जानकारी आती तो मामला उसी वक्त खुल जाता और सैकड़ों लोग फंसने से बच जाते
हाथ लगे खास दस्तावेजों में खुलासा
- 2 मई 2008 को टाउन एंड कंट्री प्लानिंग ने लेआउट में सरकारी जमीन पर सड़क मार्ग का अनुमोदन किया, जबकि यह अधिकार कलेक्टर का है
-22 जुलाई, 2008 को दोबारा नक्शा पास, जिसमें इस गलती को नजर अंदाज किया गया
- पास नक्शे की प्रतिलिपि संबंधित सरकारी दफ्तर और ग्राम पंचायत को नहीं भेजी
- एसडीएम ने बगैर दस्तावेजों ओर प्रमाणपत्रांे के साथ कॉलोनी के जमीन के स्वामित्व की जांच नहीं की
-विकास अनुमति देते वक्त भी के दौरान भी पटवारी, आरआई, तहसीलदार, एसडीएम ने सरकारी जमीन की जांच नहीं की
- सड़क और नाले पर कब्जा हो गया, लेकिन ग्राम पंचायत ने आंख मूंद ली
- जमीन का डायवर्सन भी बगैर रजिस्ट्री और स्वामित्व का परीक्षण किए हो गया
-नजूल विभाग ने आंख बंद कर एनओेसी दे दी
- रजिस्ट्री दफ्तर ने भी स्वामित्व का परीक्षण किए प्लाटों की बिक्री का रजिस्ट्रेशन कर दिया
- कब्जा कमल विहार के सिटी पार्क सहित बड़े हिस्से में, रायपुर विकास प्राधिकरण के अफसर और पदाधिकारी भी शक के दायरे में
इंट्रो
डूंडा में सरकारी जमीन के बारे में मांगी गई जानकारी पर फरवरी, 2010 में हुई विधानसभा में भी पर्दा डाला गया था। पंडरिया विधायक मो. अकबर के सवाल पर यह जानकारी दी गई थी कि किसी भी सरकारी जमीन पर कब्जा नहीं हुआ, लेकिन कब्जा 2008 मंे ही हो चुका था। जिस वक्त सदन को यह जानकारी दी गई, सरकारी जमीन का बड़े हिस्से पर कब्जा करके उस पर प्लाट काटे जा चुके थे। जानकारों का कहना है कि 2010 में विधानसभा में सहीं जानकारी दी गई होती तो संजय वाजपेयी का मामला उसी वक्त खुल गया होता। मामले की गंभीरता को देखते हुए विधायक अकबर ने इसकी शिकायत विधानसभा में करेंगे।

रायपुर(ब्यूरो)। पंडरिया विधायक मो. अकबर ने 22 फरवरी को अतारांकित प्रश्न क्रमांक 743 ख में यह जानकारी मांगी थी कि वर्ष 2008 और 2009 में  नगर तथा ग्राम निवेश विभाग ने लभांडी और डूंडा में 10 एकड़ या उससे अधिक कितनी-कितनी जमीन आवासीय उपयोग के लिए विकास की अनुमति दी? इन स्वीकृति अभिविन्यासों के चतुर्सीमा में अलग-अलग कुल कितनी, कौन-कौन से मद एवं खसरा नंबर की शासकीय भूमि आती है? इस सरकारी जमीन की अलग-अलग अद्यतन स्थिति क्या है? इसके जवाब में नगरीय प्रशासन मंत्री ने प्रपत्र में जानकारी दी। प्रपत्र ब में संजय बाजपेयी के डूंडा के तीन प्रोजेक्ट से सटी सरकारी जमीन की जानकारी दी गई। इस जानकारी के मुताबिक दो प्रोजेक्ट में सड़क निर्माण की जानकारी थी, जबकि बाकी जमीन को खाली बता दिया गया। जमीन के जानकारों के मुताबिक यह जवाब पूरी तरह गलत था। अपने प्रोजेक्ट से जुड़ी  सरकारी जमीन पर बिल्डर वाजपेयी ने 2008 और 2009 में कब्जा कर लिया था। 

सिटीपार्क की जमीन पर रोड
दस्तावेजों के मुताबिक रायपुर के मास्टर प्लान 2021 का पालन करने के लिए बनाई गई टाउन डेवलपमेंट स्कीमांे में टीडीएस - 4 को कमल विहार नाम देकर डेवलप करने की तैयारी की गई। इससे सटी जगह के साथ कमल विहार के इस एरिया में भी संजय वाजपेयी ने कब्जा कर करीब 15 एकड़ एरिया में प्लाटिंग कर दी थी। नगर तथा ग्राम निवेश के अफसर और कर्मचारियों की मदद से तैयार किए गए ले आउट में सारी जमीन संजय बाजपेयी की दर्शाई गई, जबकि वह सरकारी जमीन थी। जिस जमीन से होकर स्वागत विहार में जाने के लिए रास्ता दिया गया, वह सिटी पार्क की जमीन थी।
सिटी पार्क में काट दिए सैकड़ों प्लाट
दस्तावेजों के मुताबिक संजय बाजपेयी ने सिटी पार्क एरिया में न केवल सड़क निकाल ली, बल्कि अपने प्रोजेक्ट से सटे करीब 15 एकड़ एरिया में प्लाट काट दिया। इसी तरह 12 एकड़ एरिया नहर और रोड का दबा लिया था। इस जमीन का ले आउट तैयार कर नगर तथा ग्राम निवेश से पास भी करा लिया।
आंख बंंद करके काम किया अफसरों ने
सरकारी अमले ने स्वागत विहार के मामले में आंख मूंद ली थी। ग्राम पंचायत से लेकर नगर तथा ग्राम निवेश विभाग, राजस्व, नजूल विभाग, कलेक्टर, एसडीएम से लेकर तमाम लोगों ने बाजपेयी के हित मंे बगैर पड़ताल किए धड़ाधड़ न केवल ले आउट पास किए, बल्कि इस प्रक्रिया में जमीन के मालिकाना हक, भू-उपयोग, रोड-रास्ते की जमीन आदि का भी ध्यान नहीं रखा गया।
किसकेे इशारे पर यह सब ?
जिस तरह सरकारी अफसर-कर्मचारियों ने स्वागत विहार के मामले में आंख बंद की, उससे यह आशंका होती है कि क्या केवल एक बिल्डर का इतना अधिक प्रभाव नहीं हो सकता कि सरकारी अफसर अपनी नौकरी दांव पर लगाकर काम करें। ग्राम पंचायत से नगर निवेश संचालनालय, रजिस्ट्री दफ्तर रायपुर विकास प्राधिकरण सहित तमाम एजेंसियां आखिर किसके इशारे पर इतनी बड़ी गड़बड़ी को अंजाम दे रही थी?

वर्जन
- विधानसभा में अगर गलत जानकारी आई होगी तो इसके लिए विधानसभा में प्रक्रिया है। मामला जांच समिति में जाएगा। जांच में दोषी पाए जाने वाले अफसरों पर कार्रवाई होगी।
राजेश मूणत
आवास एवं पर्यावरण मंंत्री

- मैंने फरवरी 2010 में विधानसभा में डूडा में डेवलप हो रही कालोनियों से सटी सरकारी जमीनों के बारे में जानकारी मांगी थी। जानकारी में बताया गया था कि वहां किसी भी सरकारी जमीन पर कब्जा नहीं है। लेकिन 2008 में जो लेआउट टाउन एंड कंट्री प्लानिंग ने एप्रूव किया है, उसमें सरकारी जमीन पर प्लाटिंग होना दर्शाया गया है। यह विरोधा भाषी बातें हैं। इसकी शिकायत विधानसभा में की जाएगी।
मो. अकबर
विधायक पंडरिया
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महिलाओं को भी बंदूक पर भरोसा
0 आधा दर्जन महिलाओं के नाम पर शस्त्र लाइसेंस
0 जिले में ढाई हजार गन लाइसेंसी
रायपुर। आमतौर पर कहा जाता है कि भारतीय महिलाओं की रक्षा की जिम्मेदारी उनके शौहरों पर होती है, लेकिन छत्तीसगढ़ में महिलाएं अपनी सुरक्षा के लिए बंदूक का सहारा ले रही हैं। कम से कम आकंड़े तो यही बता रहे हैं कि महिलाएं शस्त्र लाइसेंस लेने के मामले में अब पीछे नहीं हैं। जिले में आधा दर्जन महिलाएं ऐसी हंै जिनके नाम पर गन लाइसेंस जारी किया गया है। चौंकाने वाली बात यह है कि जिला प्रशासन के पास अब हर साल महिलाएं भी गन लाइसेंस के लिए आवेदन देने पहुंच रही हैं। वर्ष 1992 से लेकर जून 2013 तक जिले में ढाई हजार रसूखदारों ने शस्त्र के लाइसेंस प्राप्त किए हैं।
प्रशासनिक सूत्रों ने बताया कि शस्त्र का लाइसेंस लेने वालों में सबसे अधिक बिल्डर, ठेकेदार, धनाड्य वर्ग के लोग हैं। कुछ जनप्रतिनिधि, नेता, किसान के साथ दो पत्रकारों के पास भी गन लाइसेंस है। पिछले कुछ सालों के भीतर करीब आधा दर्जन महिलाएं भी गन का लाइसेंस ले चुकी हैं। हर साल गन लाइसेंसियों की संख्या बढ़ रही है। पिछले पांच साल के आकंड़ों पर नजर डालें तो वर्ष 2008 में 3 सौ, 2009 में 238, 2010 में 276, 2011 में 194 तथा वर्ष 2012 में 135(कुल 1143) लोगों ने आत्मरक्षार्थ गन लाइसेंस के लिए कलेक्टर के पास आवेदन पेश किया था। इनमें से  कुल 273 रसूखदारों को पिस्टल, रिवाल्वर, 12 बोर रायफल के लिए लाइसेंस जारी किया गया। शेष आवेदनों को किसी न किसी कमियों के चलते लंबित रखा गया है। वर्ष 2008-09 और 2011 में एक-एक महिलाओं के नाम पर गन लाइसेंस जारी किए गए हैं।
बाहरी गनधारी बने गार्ड
राजधानी में पिस्टल और बंदूकधारी बॉडीगार्ड बनना सबसे आसान हो गया है। आसपास के राज्यों से कोई भी अपने साथ हथियार लाकर बड़े भवनों की सुरक्षा या फिर रसूखदारों का बॉडीगार्ड बन जा रहा है। इन बाहरी गनधारियों के लाइसेंस की कभी पड़ताल नहीं की जाती। हालांकि कुछ माह पहले अभियान चलाकर जरूर जांच की गई थी, लेकिन वह भी कुछ दिनों बाद बंद हो गई। अफसरों का कहना है कि वीआईपी ड्यूटी में व्यस्त रहने के कारण न तो पुलिस और न ही जिला प्रशासन को लाइसेंस की जांच करने की फुर्सत है।
नकली लाइसेंस पर हथियार लेकर घूम रहे गार्ड
कुछ महीने पहले यूपी के सशस्त्र बॉडीगार्ड से मिले हथियार के लाइसेंस की जांच कराने पर वह फर्जी निकला था। इसके बाद भी प्रशासनिक अमला गनधारियों की नियमित जांच नहीं कर रहा है। आंख मूंदे बैठे जिला प्रशासन और पुलिस के जिम्मेदार अफसरों के पास दर्ज हिस्ट्री में केवल उन्हीं की सूची है, जिनके लाइसेंस जिले से जारी किए गए हैं। उत्तर प्रदेश, बिहार, ओडिशा और महाराष्ट्र सहित अन्य राज्यों के एक भी लाइसेंसधारी की एंट्री रिकॉर्ड में नहीं है। इसका फायदा बाहरी गनधारी उठा रहे है। शहर में दर्जनों सिक्यूरिटी एजेंसियों में काम करने वालों की पुलिस के पास नाम-पते तक नहीं हैं। कई अपराधों की जांच में यह बात सामने आ चुकी है कि दूसरे राज्यों में अपराध करने के बाद फरारी काटने के लिए यहां गार्ड बनकर काम करते हैं।
क्या है नियम
गन लाइसेंस का यह नियम है कि वह किसी भी राज्य से जारी हुआ हो, यदि लाइसेंस प्राप्त करने वाला वहां से दूसरे राज्य में जा रहा है तो उसे अपने स्थानीय प्रशासन से एनओसी लेनी होती है। उसके बाद वह जिस राज्य में रहने के लिए जाएगा, उसे वहां के जिला प्रशासन को अपने मूल निवास स्थान की एनओसी दिखाकर दस्तावेजों में रिकॉर्ड दर्ज करवाना होगा। गनधारी को यह बताना पड़ेगा कि वह कहां का रहने वाला है और यहां कहां पर काम रह रहा है।
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आयरन ओर माफिया प्रसन्नाा घोटगे की फिर खुलेगी फाइल (फोटो-एडिटर में है घोटगे नाम से)
0 सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर डीजीपी ने बनाई तीन सदस्यीय जांच टीम
0 आईजी पवन देव करेंगे प्रकरण की समीक्षा
रायपुर(निप्र)। आयरन ओर की खरीद- फरोख्त में राजधानी की दो कंपनियों को 52 करोड़ 50 लाख का चूना लगाने के मामले में पिछले छह माह से रायपुर सेंट्रल जेल में बंद गोवा निवासी प्रसन्न्ा वी.घोटगे के केस की फाइल फिर से खुलने वाली है। डीजीपी रामनिवास ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद धोखाधड़ी के इस हाईप्रोफाइल मामले की समीक्षा करने तीन सदस्यीय कमेटी बनाई है। कमेटी में आईजी दूरसंचार पवन देव. सीएसपी मनीषा ठाकुर तथा इंस्पेक्टर नरेश शर्मा शामिल किए गए हैं।
जानकारी के अनुसार आयरन ओर माफिया प्रसन्नाा वी.घोटगे की ओर से सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका लगाई गई थी, जिसमें उसने रायपुर पुलिस पर फर्जी तरीके धोखाधड़ी केस दर्ज करने का आरोप लगाते हुए दर्ज किए गए एफआईआर को डिसमिस करने की मांग की थी। कोर्ट ने इस याचिका की सुनवाई कर डीजीपी छत्तीसगढ़ को मामले की समीक्षा करने का आदेश दिया। इस आदेश की प्रति हाल ही में डीजीपी को मिली। इसके बाद डीजी ने तीन सदस्यीय जांच कमेटी बनाकर समीक्षा रिपोर्ट तैयार करने का निर्देश जारी किया। गौरतलब है कि प्रकरण का चालान चार माह पहले ही जिला अदालत में पेश किया जा चुका है।  विशेष अनुसंधान सेल ने पूरे प्रकरण की जांच करने के बाद आरोपी को मुंबई में फिल्मी स्टाइल में गिरफ्तार किया था। तब से घोटगे जेल में बंद है। उसके खिलाफ कर्नाटक, गोवा, मुंबई में भी धोखाधड़ी के कई मामले दर्ज हैं।
ये भी है जेल में
मामले में घोटगे के एजेंट नीरज श्रीवास्तव, जीईओ कैम के शाखा प्रबंधक के.जगरनाथ राव,जी.रविकुमार, विवेक हैबर तथा जयेश विष्णु परब भी जेल में बंद है, जबकि उसकी पीए विविधा, हसन एम अंगोलकर, इमरान शेख, संजय शिरोड़कर तथा जीईओ कैम लेबोरेटरीज वास्को गोवा के डायरेक्टर राजेश सुंदर लाल बहल, नील राजेश बहल, अनिल दिनेश बहल फरार हैं।
बहल बंधुओं की अपील खारिज
आयरन ओर धोखाधड़ी में फंसे फरार बहल बंधुओं ने सीजीएम कोर्ट से जारी किए गए गिरफ्तारी वारंट के खिलाफ एडीजे की अदालत में अपील की थी, जिसे पिछले दिनों सुनवाई के बाद खारिज कर दी गई।
वर्जन-
 सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर धोखाधड़ी के एक मामले की समीक्षा करने के आदेश मिल गए हंै। जल्द ही प्रकरण की फाइल हासिल कर जांच करके रिपोर्ट तैयार की जाएगी।
पवन देव
आईजी, दूरसंचार
 

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