Sunday, July 7, 2013

आईजी से छिनी जांच, एसपी को दिया जिम्मा


0 आयरन ओर की खरीदी में करोड़ों की धोखाधड़ी का मामला
0 सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर डीजी ने बनाई थी जांच कमेटी, तीन दिन में ही बदले गए जांच अधिकारी
आयरन ओर की खरीदी के नाम पर राजधानी की दो कंपनियों को 52 करोड़ 50 लाख का चूना लगाने के मामले की जांच अब आईजी नहीं एसपी करेंगे। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर डीजीपी द्वारा तीन दिन पहले पूरे प्रकरण की समीक्षा करने तीन सदस्यीय कमेटी बनाई थी। जांच कमेटी में आईजी दूरसंचार पवन देव, सीएसपी मनीषा ठाकुर तथा निरीक्षक नरेश शर्मा को शामिल किया गया था। कमेटी ने अभी जांच भी शुरू नहीं की थी कि आईजी पवन देव से मामले की जांच छिनकर एसपी ओपी पाल को सौंप दिया गया। इसके आदेश भी डीजीपी ने जारी कर दिए हैं। अचानक किए गए इस बदलाव को लेकर पुलिस मुख्यालय में कई तरह की चर्चा होने लगी है। इसे अफसरों की आपसी खींचातान का नतीजा माना जा रहा है। पुलिस मुख्यालय में आईपीएस अफसरों के बीच गुटबाजी कोई नई बात नहीं है। प्रदेश के मुखिया डॉ.रमन सिंह तक को गुटबाजी खत्म करने सामने आने पड़ा था, लेकिन उनकी कोशिशों का नतीजा नहीं निकला।
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार आयरन ओर की खरीदी में धोखाधड़ी के मामले में पिछले छह माह से रायपुर सेंट्रल जेल में बंद गोवा निवासी प्रसन्न्ा वी.घोटगे के केस की फाइल सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर फिर से खुलने जा रही है। आयरन ओर माफिया प्रसन्नाा वी.घोटगे की ओर से सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका लगाई गई थी, जिसमें उसने रायपुर पुलिस पर फर्जी तरीके धोखाधड़ी केस दर्ज करने का आरोप लगाते हुए दर्ज किए गए एफआईआर को खत्म करने की मांग की थी। कोर्ट ने इस याचिका की सुनवाई कर डीजीपी छत्तीसगढ़ को प्रकरण की समीक्षा कराने का आदेश दिया। इसके बाद डीजीपी रामनिवास ने तीन सदस्यीय जांच कमेटी बनाई। कमेटी में आईजी दूरसंचार पवन देव. सीएसपी मनीषा ठाकुर तथा इंस्पेक्टर नरेश शर्मा को शामिल करते हुए पूरी रिपोर्ट तलब करने की। इस जांच कमेटी ने अभी काम भी शुरू नहीं किया था कि अचानक कमेटी से पवन देव को हटा दिया गया। उनके स्थान पर रायपुर एसपी ओपी पाल को जांच का जिम्मा सौंपा गया है। यह भी चर्चा है कि पवन देव ने खुद ही व्यस्ततता के चलते जांच करने से मना किया था, इसलिए एसपी को जांच की जिम्मेदारी दी गई। हालांकि इसकी पुष्टि संबंधितों के अलावा कोई अफसर करने से बच रहे हैं। गौरतलब है कि विशेष अनुसंधान सेल पूरे प्रकरण की जांच करने के बाद चार माह पहले ही कोर्ट में चालान पेश कर चुका है।
जानकारी में नहीं-पवन देव
जांच अधिकारी बदले जाने के संबंध में पूछने पर आईजी पवन देव ने कहा कि मेरी जानकारी में यह नहीं है और मैंने जांच के लिए मना भी नहीं किया है।
जांच नहीं, समीक्षा करूंगा-पाल
एसपी ओपी पाल का कहना है कि डीजी के निर्देश पर मैं प्रकरण की जांच नहीं, बल्कि यह समीक्षा करूंगा कि कानूनी प्रावधानों के तहत मामले में कार्रवाई निष्पक्ष हुई है या नहीं।
बाहर हूं, बाद में बात करता हूं-रामनिवास
इस मामले में नईदुनिया ने डीजीपी रामनिवास से जानकारी लेने का प्रयास किया तो उनका मोबाइल बंद मिला। निवास पर फोन लगाने पर उनके बेटे ने फोन रिसिव किया और कहा कि पापा खाना खा रहे हैं, थोड़ी देर बाद लगाए। 20 मिनट बाद मोबाइल पर संपर्क करने पर डीजीपी ने कहा कि मैं अभी बाहर हूं, आपसे बाद में बात करता हूं।
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तबादले पर पुलिस मुख्यालय में खींचातानी
 फ्लैग- टीआई और एसआई की तबादला सूची जोड़तोड़, सिफारिश में उलझी
 एक्सक्लूसिव-

रायपुर(निप्र)। प्रदेश में टीआई और एसआई के थोक तबादले के लिए पुलिस मुख्यालय में तबादला सूची महीनेभर से तैयार है, लेकिन अफसरों के बीच सूची को लेकर उभरे मतभेद ने इसे अटका दिया है। जानकार सूत्रों का दावा है कि अपनी मनपसंद जगह पर पोस्टिंग के लिए पुलिस कर्मचारियों के बीच मारामारी मची हुई है। खासकर नक्सल प्रभावित इलाके में तीन साल का कार्यकाल पूरा करने वाले टीआई व एसआई अपनी सिफारिश मंत्री व विधायकों के साथ विपक्ष के नेताओं से कराने के बाद मुख्यालय में सक्रिय हैं। वे जारी होने वाली सूची के बारे में जानकारी लेने पुराने मुख्यालय में आते-जाते देखे जा रहे हैं। खबर है कि अब 10 जुलाई के बाद ही तबादला सूची जारी हो सकती है, क्योंकि डीजीपी रामनिवास इन दिनों पुत्र के विवाह की तैयारियों में व्यस्त हैं।
पुलिस के जानकार सूत्रों के मुताबिक चुनाव आयोग के निर्देश पर एक ही स्थान पर तीन साल तक जमे रहने वाले ढाई सौ से अधिक टीआई व एसआई के तबादले को लेकर पुलिस मुख्यालय में कवायद चल रही है। एक महीने से तबादले की सूची तैयार है। तीन बार स्थापना बोर्ड की बैठक भी हो चुकी है, लेकिन अफसरों के बीच सूची को लेकर मतभेद उभर आए हैं। वहीं मंत्री, विधायक और नेताओं की सिफारिश को भी ध्यान में रखकर सूची में रोज कुछ न कुछ फेरबदल चल रहा है, यही कारण है कि इसे जारी करने में विलंब हो रहा है।
पंसद की जगह पाने मारामारी
राजधानी रायपुर समेत महासमुंद, दुर्ग, कवर्धा, बिलासपुर, रायगढ़ के साथ नक्सल प्रभावित बस्तर, राजनांदगांव, सरगुजा में तीन साल से अधिक का समय गुजार चुके टीआई व एसआई मनपसंद जगह पर पोस्टिंग पाने की कवायद में जुटकर मंत्री से लेकर अफसरों तक जोर लगा रहे हैं। मुख्यालय के दो एडीजी और कुछ बड़े अफसर भी तबादला सूची को लेकर विशेष रुचि ले रहे हैं। इन अफसरों के माध्यम से कई लोगों की अर्जियां लगी हुई हैं। सबको अपनी पसंद की पोस्टिंग चाहिए, इस वजह से अफसरों में मतभेद उभर आए हैं। हालांकि मतभेदों को लेकर कोई भी अफसर बोलने को तैयार नहीं है।
नक्सल इलाके से तौबा
 एक अनुभवी टीआई ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि वे दो बार नक्सल प्रभावित सरगुजा और बस्तर में रह चुके हैं, बावजूद तीसरी बार उनका तबादला दंतेवाड़ा कर दिया गया था। कई बार अफसरों से मिलकर अपनी व्यथा बता चुके हैं, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। परिवार समेत वहां रहकर काम कर रहे हैं। इस बार फिर से उनका नाम सरगुजा जिले के लिए जुड़ गया है। वे शहर आना चाहते हैं, इसलिए अफसरों से फिर मिलकर अपनी बात रख चुके हैं। बावजूद उम्मीद कम है। उनका दावा है कि मनपसंद पोस्टिंग के लिए लाखों रुपए खर्च करने पड़ते हंै जो उनके बस की बात नहीं है। शहर में वर्षों से जमे अधिकांश टीआई व एसआई नक्सल क्षेत्र में जाने से बचने के लिए अफसरों के माध्यम से आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में पोस्टिंग कराने की जुगत में लगे हैं।
68 टीआई बनेंगे डीएसपी
प्रदेश के 68 टीआई को पदोन्नात कर डीएसपी बनाया जाना है, इसके लिए 8 जुलाई को विभागीय पदोन्नाति समिति (डीपीसी) की बैठक होने वाली है। वरिष्ठताक्रम के अनुसार दो सौ अधिक टीआई की सूची तैयार की गई है। पुलिस सूत्रों का कहना है कि पांच साल बाद टीआई से डीएसपी पद पर पदोन्नाति हो रही है। माना जा रहा है कि इस बैठक के बाद थानेदारों की पदोन्नाति का रास्ता साफ हो जाएगा।
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क्राइम ब्रांच के एएसआई को आईजी ने किया सस्पेंड
0 जेल जा चुके कारोबारी के पक्ष में समझौता कराने का मामला
0 जांच में सही निकली शिकायत
रायपुर(निप्र)। जमीन की धोखाधड़ी के एक मामले में जेल जा चुके आरोपी के पक्ष में गुपचुप तरीके से जांच करना क्राइम ब्रांच के एक एएसआई को महंगा पड़ गया।  शिकायत की जांच में एएसआई के पर लगाए गए सारे आरोप सही पाए गए। आईजी जीपी सिंह ने जांच प्रतिवेदन मिलने के बाद एएसआई अनवर अली को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया। गुरुवार को निलंबन आदेश जारी किया गया।
जानकारी के मुताबिक बूढ़ापारा, दानीबाड़ा निवासी राजेश दानी उर्फ राजा ने जून महीने में सेंट्रल क्राइम ब्रांच में पदस्थ एएसआई अनवर अली के खिलाफ धमकाने और परेशान करने की शिकायत की थी। राजेश ने आरोप लगाया था कि जमीन कारोबारी संतोष लाहोटी के पक्ष में एएसआई अनवर ने एक सादे कागज पर दबावपूर्वक हस्ताक्षर कराने की कोशिश की थी। मना करने पर उसे फर्जी मामले में फंसाने की धमकी दी गई थी। राजेश ने एएसआई के इस हरकत की शिकायत मुख्यमंत्री, गृहमंत्री, आईजी, एसपी से की थी। एसपी ओपी पाल ने शिकायत को गंभीरता को लेते हुए तत्काल एएसआई को लाइन हाजिर कर जांच के निर्देश दिए। जांच अधिकारी एएसपी क्राइम श्वेता सिन्हा ने जांच में एएसआई अनवर अली पर लगाए गए आरोप सही पाए। पिछले दिनों एएसपी के जांच प्रतिवेदन पर आईजी ने कार्रवाई करते हुए एएसआई को तत्काल निलंबित करने का आदेश जारी किया।
क्या है मामला?
बूढ़ापारा निवासी राजेश दानी की अभनपुर क्षेत्र के कोलर गांव पटवारी हल्का नंबर चार पुश्तैनी जमीन है। इस जमीन को संतोष लाहोटी ने फर्जी तरीके से अपने नाम पर करा लिया था। राजेश को जब इस फर्जीवाड़े का पता चला तो उसने पुलिस में शिकायत की। मामले की जांच एसआईसी ने की और शिकायत सही पाकर आरोपी संतोष लाहोटी को गिरफ्तार कर जेल भेजा था। फिलहाल संतोष जमानत पर है।
अफसरों के माध्यम से बनाया दबाव
जेल से बाहर निकलते ही जमीन कारोबारी संतोष लाहोटी ने पुलिस मुख्यालय के शीर्षस्थ अफसरों का सहारा लेकर राजेश दानी पर समझौते के लिए दबाव बनाना शुरू किया। उसने बाकायदा एक समझौता पत्र भी बनवा लिया था। सूत्र बताते हंै कि जून के पहले सप्ताह में एक अफसर के कहने पर एएसआई अनवर अली ने राजेश के घर जाकर यह कहा कि पुलिस अधिकारी के रिश्तेदार की गाड़ी को आपके गाड़ी से एक्सीडेंट हुआ है। पूछताछ करने के नाम पर वह राजेश को पुलिस मुख्यालय लेकर गया और वहां उस अफसर के सामने एक सादे कागज पर हस्ताक्षर करने दबाव बनाया। राजेश ने हस्ताक्षर करने से मना किया तो उसे दूसरे मामले में फंसा देने की धमकी दी गई। किसी तरह वहां से निकलकर राजेश ने इसकी शिकायत की। इसके बाद पूरे प्रकरण की जांच हुई।
वर्जन-
एक प्रकरण में समझौते को लेकर एएसआई अनवर अली ने राजेश दानी पर दबाव डालने की कोशिश की थी। शिकायत मिलने पर जांच की गई, जिसमें एएसआई को दोषी पाए जाने पर उसे निलंबित कर दिया गया।
ओपी पाल
एसपी, रायपुर
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तीन माह बाद भी पुलिस की पकड़ से दूर भगोड़े बाप-बेटे
रायपुर(निप्र)। सेल के नाम से नकली सरिया बनाने के काले कारोबार के खुलासे के तीन माह बाद भी फरार लोहा कारोबारी बाप-बेटे के गिरेबां तक राजधानी पुलिस के हाथ नहीं पहुंच पाए। दोनों के खिलाफ कोर्ट ने गिरफ्तारी वारंट जारी करने के साथ ही संपत्ति कुर्क करने को लेकर पुलिस द्वारा लगाए गए आवेदन पर सुनवाई की तिथि भी नियत कर दी है। कोर्ट ने दोनों को भगोड़ा घोषित कर रखा है।
मामले को गंभीरता से लेते हुए सेल्स टैक्स विभाग गुढ़ियारी और बोरझरा, उरला स्थित फैक्ट्रियों के रजिस्ट्रेशन भी रद्द कर चुका है। हैरानी की बात यह है कि आरोपियों पर इतना दबाव पड़ने के बाद भी पुलिस को उनका कोई सुराग नहीं मिल पा रहा है। हालांकि पुलिस अफसर यह दावा करने से पीछे नहीं है कि फरार आरोपियों को पकड़ने की हरसंभव कोशिश की जा रही है, लेकिन सच यह है कि राजनीतिक हस्तक्षेप से पुलिस के हाथ बंध गए हैं। इससे अफसरों के दावे पर यकीन करना मुश्किल है। सूत्रों का दावा है कि आरोपी कोर्ट से जमानत प्राप्त करने की कोशिश में लगे हुए हैं। फिलहाल कोर्ट ने पंकज अग्रवाल को 10 जुलाई तक की पेशी में न पहुंचने पर उनकी संपत्ति कुर्क करने की कार्रवाई के आदेश दिए हंै। वहीं अलंकार एलॉयज के डायरेक्टर ललित अग्रवाल के खिलाफ स्थायी गिरफ्तारी वारंट जारी किए गए हैं। विदेश भागने की आशंका पर पहले ही दोनों के खिलाफ पुलिस ने लुकआउट सर्कुलर जारी करने के साथ ही गिरफ्तारी के लिए दस-दस हजार रुपए का इनाम भी घोषित कर रखा है।
क्या है मामला?
4 अप्रैल, 2013 को ललित अग्रवाल और पंकज अग्रवाल की औद्योगिक क्षेत्र गोगांव, गुढ़ियारी और बोरझरा, उरला में सरिया बनाने की फैक्ट्री है। दोनों बाप-बेटे सरिया में सेल का नकली मार्का लगाकर सरिया निर्माण कर उसे मार्केट में खपाते आ रहे थे। इसकी शिकायत मिलने पर सेल के विजिलेंस टीम ने सीबीआई को खबर की। इसके बाद सीबीआई की टीम छापा मारने राजधानी पहुंची। सेल और सीबीआई की टीम ललित और पंकज के स्वामित्व वाली दोवों फैक्ट्रियों में छापा मारा तो वहां से 300 सौ मीट्रिक टन से अधिक नकली सरिया मिले थे, जिन पर सेल का मार्का लगा था। जांच में यह बात सामने आई थी, लेकिन ललित और पंकज अग्रवाल की फैक्ट्री में बनाया गया सरिया नया रायपुर हाउसिंग प्रोजेक्ट के अलावा नागपुर तथा महाराष्ट्र के अन्य इलाकों में भी खपाए जाने के दस्तावेजी सबूत मिले हंै।
 

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