0 नक्सल प्रभावित इलाकों में लगेंगे 146 मोबाइल टॉवर
आंतरिक सुरक्षा के लिए घातक बन गए लाल आतंकियों के खात्मे के लिए केंद्र व राज्य सरकार ने संचार सेवाओं में विस्तार का निर्णय लिया है। छत्तीसगढ़ समेत अन्य नक्सल प्रभावित राज्यों में मोबाइल नेटवर्क के जरिए माओवादियों से निपटा जाएगा। टॉवर लगाने अकेले छत्तीसगढ़ में 500 जगहों को चिन्हित किया गया है और करीब 300 टॉवर खड़े हो चुके हैं। छत्तीसगढ़ सरकार ने भी तीन माह में 146 मोबाइल टॉवर स्थापित करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। नक्सलियों से निपटने की रणनीति के तहत केंद्र सरकार ने छत्तीसगढ़ समेत नौ नक्सल प्रभावित राज्यों में 2200 मोबाइल टॉवर लगाने की योजना बनाई है। ये टावर उन इलाकों में लगाए जाएंगे जो अभी तक किसी भी तरह के मोबाइल नेटवर्क में नहीं आते। सूत्रों के मुताबिक यह परियोजना सुरक्षा बलों के लिए काफी उपयोगी साबित होगी। अक्सर यह देखा जाता है कि नक्सली एक जगह वारदात करके दूसरी जगह भाग जाते हैं। ऐसे में उन्हें खोजने व उनका लोकेशन पता करने में काफी दिक्कत होती है। दुर्गम नक्सल प्रभावित इलाकों में पड़ने वाले ज्यादातर गांवों में मोबाइल सेवा नहीं है। सूत्रों का कहना है कि नवंबर 2011 में शीर्ष माओवादी नेता किशनजी को एक मुठभेड़ में मार गिराने में मोबाइल फोन के जरिए हुई निगरानी ने अहम भूमिका निभाई थी। छत्तीसगढ़ सरकार ने भी माना है कि मोबाइल नेटवर्क के जरिए माओवादियों पर लगाम लगाया जा सकता है। इसके मद्देनजर पिछले दिनों मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की अध्यक्षता में हुई यूनिफाइड कमांड की बैठक में नक्सल प्रभावित इलाकों में 146 मोबाइल टॉवर लगाने का निर्णय लिया गया । इसके लिए तीन महीने का समय निर्धारित किया गया है।
जम्मू- कश्मीर में हुआ था कुशल इस्तेमाल
जम्मू-कश्मीर ने आतंकियों से निपटने में मोबाइल नेटवर्क का कुशलता से इस्तेमाल किया गया था। 2003 में जब केंद्र ने इस राज्य में मोबाइल फोन सेवा शुरू करने का फैसला किया था तो सुरक्षा बलों और खुफिया एजेंसियों ने इसका काफी विरोध किया था। उन्होंने चेतावनी दी थी कि मोबाइल फोन से आतंकियों को फायदा होगा। वे इसका इस्तेमाल बम धमाकों और आतंकी हमलों के बेहतर समन्वय के लिए करेंगे। ऐसा हुआ भी, मोबाइल सेवा का इस्तेमाल करके आतंकियों ने कई हमले किए, लेकिन जल्द ही यह रणनीति उल्टे उन पर भारी पड़ने लगी। आतंकियों के मोबाइल सिग्नल और उनकी आपसी बातचीत रिकॉर्ड करके सुरक्षा बलों ने ज्यादातर आतंकियों का सफाया कर दिया।
टॉवर को निशाना बनाते हैं नक्सली
नक्सलियों को मोबाइल टॉवर से खतरे का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि वे टॉवर को निशाना बनाते हैं। आंकड़ों के मुताबिक 2008 में नक्सलियों ने 38 टावर उड़ाए थे , जबकि 2011 में यह संख्या 71 हो गई। पिछले दिनों जगदलपुर में बीएसएनएल के सब स्टेशन को उड़ाने का आरोप भी नक्सलियों पर है।
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कुख्यात बालकृष्ण पर पुलिस मेहरबान
0 बलात्कार के दो मामले समेत 48 प्रकरण पेंडिंग
0 समिति के 15 करोड़ स्र्पए के गबन का आरोप
रायपुर(निप्र)। बलात्कार के दो और 15 करोड़ के गबन समेत 48 मामलों के आरोपी बालकृष्ण अग्रवाल पर पुलिस मेहरबान है। दो-ढाई साल से वह और उसकी पत्नी फरार हैं। पुलिस उन्हें अब तक नहीं ढूंढ़ पाई है। विशेष अनुसंधान की टीम एक-दो बार ही बालकृष्ण की तलाश में बाहर भेजी गई। इसके अलावा पुलिस की तरफ से और कोई ठोस प्रयास नहीं हुआ है।
बालकृष्ण तो फरार है, लेकिन खबर यह है कि उसके परिवार और करीब लोग आज भी अग्रोहा सोसाइटी की जमीन बेचने के लिए ग्राहकों की तलाश में लगे रहते हैं। पुलिस को भी इस बात की जानकारी है। एक नाम तो संतोष अग्रवाल का आ रहा है, जो कि सोसाइटी की जमीन में फर्जीवाड़ा करने के मामले में खुद आरोपी है। आशंका यह है कि अंडरग्राउंड रहते हुए बालकृष्ण ही जमीन का कारोबार कर रहा है। पुलिस अधिकारियों का तर्क है कि सुप्रीम कोर्ट ने बालकृष्ण की गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी। इस कारण उसकी गिरफ्तारी के प्रयास नहीं किए जा सके, लेकिन पुलिस गिरफ्तार तो तब करती, जब बालकृष्ण के ठिकाने का पता होता। पुलिस अधिकारियों का ही कहना है कि गिरफ्तारी पर रोक सभी प्रकरणों पर नहीं लगी थी। ऐसी स्थिति में पुलिस बालकृष्ण को उन प्रकरणों में गिरफ्तार कर सकती थी, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक नहीं लगाई थी। इस तरह पुलिस ने बालकृष्ण की गिरफ्तारी को लेकर दिलचस्पी ही नहीं दिखाई।
समिति के करोड़ों डकार गए
विशेष अनुसंधान सेल बालकृष्ण के अलावा उसकी पत्नी नीलम अग्रवाल, भाई संतोष अग्रवाल व एक अन्य के खिलाफ करोड़ों स्र्पए के गबन के मामले में जांच कर रही है। सुरेश अग्रवाल ने चार अक्टूबर, 2011 को डीडीनगर थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई थी। मई, 2000 से 2006 के बीच अग्रोहा गृह निर्माण सहकारी समिति की अध्यक्ष रहते हुए नीलम और संतोष, प्रबंधक रहते हुए बालकृष्ण और कृष्ण कुमार गहरे ने जमीन के मामले में फर्जीवाड़ा किया। एक ही प्लॉट को दो-तीन लोगों को बेच दिया। ऐसे 50 प्लॉट में गड़बड़ी की। 350 प्लॉट में मूलभूत सुविधा उपलब्ध कराने का झांसा देकर खरीदारों से 72-72 सौ स्र्पए ले लिए। इस राशि को समिति के खाते में जमा नहीं किया। इस तरह कुल 15 करोड़ स्र्पए बंटोरकर चारों लोग फरार हो गए थे। पुलिस अधिकारियों के अनुसार संतोष की गिरफ्तारी हुई थी। अब वह जमानत पर है।
बलात्कार की दो शिकायतें
- एक साल पहले बालकृष्ण के नौकर की पत्नी ने नागपुर के एक थाने में बलात्कार की रिपोर्ट दर्ज कराई थी। नौकर और उसकी पत्नी को रहने के लिए बालकृष्ण ने अपने घर का सर्वेंट क्वॉर्टर दे रखा था। नौकर के काम पर जाने के बाद उसकी पत्नी को धमकाकर बालकृष्ण ने बलात्कार किया था। मौका पाकर पति-पत्नी नागपुर भाग गए थे। नागपुर से केस डायरी सरस्वतीनगर पुलिस को मिली थी।
- रामकंुड की एक युवती ने तीन माह पहले तेलीबांधा थाने में रिपोर्ट लिखाई है कि जब वह नाबालिग थी, तब बालकृष्ण ने उसे खरीदा था। युवती को वह चिदम्बरा होटल में बंधक बनाकर रखता था। वह और उसका भजीता रजनीश अग्रवाल युवती से बलात्कार करते थे।
सुप्रीम कोर्ट से रोक हटी
पुलिस अधिकारियों के मुताबिक बालकृष्ण ने सुप्रीम कोर्ट में इंट्रिम लगा रखा था। इस कारण कोर्ट ने उसकी गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी। अधिकारियों का कहना है कि इसी कारण पुलिस बालकृष्ण की गिरफ्तारी के लिए प्रयास नहीं कर रही थी। लगभग 20 दिन पहले ही कोर्ट ने बालकृष्ण की गिरफ्तारी से रोक हटा दी गई है, लेकिन अधिकारियों का कहना है कि अब तक सुप्रीम कोर्ट से कागजात नहीं मिले हैं। कागजात मिलने के बाद बालकृष्ण की गिरफ्तारी के प्रयास शुरू किए जाएंगे।
प्रशासन-पुलिस पर किसका दबाव?
बलात्कार पीड़ित एक युवती ने तेलीबांधा पुलिस और कलेक्टर जनदर्शन में सरेआम बताया है कि बालकृष्ण का भतीजा रजनीश पंजाब के ग्राम फाजिलका में है। उसके बाद भी रजनीश या बालकृष्ण का पता लगाने के लिए टीम फाजिलका नहीं भेजी गई। बालकृष्ण की राजनीतिक पहुंच भी रही है। इस कारण प्रशासन और पुलिस के रवैये पर कई तरह के सवाल उठ रहे हैं।
वर्सन--
बालकृष्ण की गिरफ्तारी पर रोक सभी प्रकरणों पर नहीं लगी थी। उसे तलाश कर गिरफ्तार किया जाएगा। अधिकारियों को इसके निर्देश दे दिए गए हैं।
ओपी पाल
एसपी, रायपुर
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