Sunday, July 7, 2013

महिलाओं को भी बंदूक पर भरोसा


0 आधा दर्जन महिलाओं के नाम पर शस्त्र लाइसेंस
0 जिले में ढाई हजार गन लाइसेंसी
रायपुर। आमतौर पर कहा जाता है कि भारतीय महिलाओं की रक्षा की जिम्मेदारी उनके शौहरों पर होती है, लेकिन छत्तीसगढ़ में महिलाएं अपनी सुरक्षा के लिए बंदूक का सहारा ले रही हैं। कम से कम आकंड़े तो यही बता रहे हैं कि महिलाएं शस्त्र लाइसेंस लेने के मामले में अब पीछे नहीं हैं। जिले में आधा दर्जन महिलाएं ऐसी हंै जिनके नाम पर गन लाइसेंस जारी किया गया है। चौंकाने वाली बात यह है कि जिला प्रशासन के पास अब हर साल महिलाएं भी गन लाइसेंस के लिए आवेदन देने पहुंच रही हैं। वर्ष 1992 से लेकर जून 2013 तक जिले में ढाई हजार रसूखदारों ने शस्त्र के लाइसेंस प्राप्त किए हैं।
प्रशासनिक सूत्रों ने बताया कि शस्त्र का लाइसेंस लेने वालों में सबसे अधिक बिल्डर, ठेकेदार, धनाड्य वर्ग के लोग हैं। कुछ जनप्रतिनिधि, नेता, किसान के साथ दो पत्रकारों के पास भी गन लाइसेंस है। पिछले कुछ सालों के भीतर करीब आधा दर्जन महिलाएं भी गन का लाइसेंस ले चुकी हैं। हर साल गन लाइसेंसियों की संख्या बढ़ रही है। पिछले पांच साल के आकंड़ों पर नजर डालें तो वर्ष 2008 में 3 सौ, 2009 में 238, 2010 में 276, 2011 में 194 तथा वर्ष 2012 में 135(कुल 1143) लोगों ने आत्मरक्षार्थ गन लाइसेंस के लिए कलेक्टर के पास आवेदन पेश किया था। इनमें से  कुल 273 रसूखदारों को पिस्टल, रिवाल्वर, 12 बोर रायफल के लिए लाइसेंस जारी किया गया। शेष आवेदनों को किसी न किसी कमियों के चलते लंबित रखा गया है। वर्ष 2008-09 और 2011 में एक-एक महिलाओं के नाम पर गन लाइसेंस जारी किए गए हैं।
बाहरी गनधारी बने गार्ड
राजधानी में पिस्टल और बंदूकधारी बॉडीगार्ड बनना सबसे आसान हो गया है। आसपास के राज्यों से कोई भी अपने साथ हथियार लाकर बड़े भवनों की सुरक्षा या फिर रसूखदारों का बॉडीगार्ड बन जा रहा है। इन बाहरी गनधारियों के लाइसेंस की कभी पड़ताल नहीं की जाती। हालांकि कुछ माह पहले अभियान चलाकर जरूर जांच की गई थी, लेकिन वह भी कुछ दिनों बाद बंद हो गई। अफसरों का कहना है कि वीआईपी ड्यूटी में व्यस्त रहने के कारण न तो पुलिस और न ही जिला प्रशासन को लाइसेंस की जांच करने की फुर्सत है।
नकली लाइसेंस पर हथियार लेकर घूम रहे गार्ड
कुछ महीने पहले यूपी के सशस्त्र बॉडीगार्ड से मिले हथियार के लाइसेंस की जांच कराने पर वह फर्जी निकला था। इसके बाद भी प्रशासनिक अमला गनधारियों की नियमित जांच नहीं कर रहा है। आंख मूंदे बैठे जिला प्रशासन और पुलिस के जिम्मेदार अफसरों के पास दर्ज हिस्ट्री में केवल उन्हीं की सूची है, जिनके लाइसेंस जिले से जारी किए गए हैं। उत्तर प्रदेश, बिहार, ओडिशा और महाराष्ट्र सहित अन्य राज्यों के एक भी लाइसेंसधारी की एंट्री रिकॉर्ड में नहीं है। इसका फायदा बाहरी गनधारी उठा रहे है। शहर में दर्जनों सिक्यूरिटी एजेंसियों में काम करने वालों की पुलिस के पास नाम-पते तक नहीं हैं। कई अपराधों की जांच में यह बात सामने आ चुकी है कि दूसरे राज्यों में अपराध करने के बाद फरारी काटने के लिए यहां गार्ड बनकर काम करते हैं।
क्या है नियम
गन लाइसेंस का यह नियम है कि वह किसी भी राज्य से जारी हुआ हो, यदि लाइसेंस प्राप्त करने वाला वहां से दूसरे राज्य में जा रहा है तो उसे अपने स्थानीय प्रशासन से एनओसी लेनी होती है। उसके बाद वह जिस राज्य में रहने के लिए जाएगा, उसे वहां के जिला प्रशासन को अपने मूल निवास स्थान की एनओसी दिखाकर दस्तावेजों में रिकॉर्ड दर्ज करवाना होगा। गनधारी को यह बताना पड़ेगा कि वह कहां का रहने वाला है और यहां कहां पर काम रह रहा है।
 

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