Friday, July 12, 2013

Ԙ̒ि:शक्त बेटे के अफसर पिता ने छोड़ी नौकरी


0 बेटे की बेबसी ने किया मजबूर
0 तबादला नहीं होने से परेशान थे
0 मामला हाउसिंग बोर्ड डिविजन चार का
संतान की बेबसी माता-पिता को किस कदर मजबूर कर देती है, इसके कई उदाहरण हो सकते हैं,लेकिन ताजा मामला हाउसिंग बोर्ड डिविजन चार में पदस्थ अफसर एमएम हुसैन का है । उन्हें मानसिक रूप से नि:शक्त (मंदता) बेटे की परवरिश के लिए नौकरी छोड़नी पड़ी । 25 सालों से एकलौते बेटे की नि:शक्तता का दंश झेल रहे इस अफसर पिता की विवशता पर विभागीय अधिकारियों को तरस भी नहीं आया। तबादला के बजाय अधिकारियों ने उनकी नौकरी छोड़ने की अर्जी को स्वीकार लिया । पारिवारिक जिम्मेदारियों का निर्वहन और बेटे के इलाज के लिए इस बेबस पिता ने नौकरी छोड़ने का फैसला किया है।
विभागीय सूत्रों के मुताबिक छत्तीसगढ़ हाउसिंग बोर्ड के संभाग क्रमांक चार में पदस्थ संपदा प्रबंधक एमएम हुसैन ने 8 मई 2013 को हाउसिंग बोर्ड आयुक्त को तबादले के लिए पत्र लिखा था। पत्र में उन्होंने स्वयं के व्यय पर रायपुर से दुर्ग स्थानांतरण की मांग की थी। उन्होंने अपने पारिवारिक स्थिति का हवाला देते हुए कहा था कि उन पर 89 वर्षीय वृद्ध पिता, साइटिका ग्रस्त पत्नी,  नाबलिग पुत्री और 25 साल के मानसिक मंदता के शिकार पुत्र के भरण- पोषण की जिम्मेदारी है। सबसे ज्यादा चिंता उन्हें  पुत्र की है। उनका इलाज भिलाई सेक्टर - नौ अस्पताल में न्यूरो सर्जन के कर रहे हैं। श्री हुसैन की  सेवानिवृत्ति को मात्र दो वर्ष बचे हैं। उन्होंने स्थानांतरण नहीं करने की स्थिति में पारिवारिक जिम्मेदारियों के चलते स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति का निवेदन किया था। अधिकारियों ने स्थानांतरण  पर तो विचार नहीं किया, बल्कि उन्हें वीआरएस दे दिया। मुख्यालय से मिले आदेशानुसार श्री हुसैन 7 अगस्त को स्वैच्छिक सेवानिवृत्त हो जाएंगे।
निर्देशों में भी उलझन
केंद्र सरकार के कार्मिक लोक शिकायत एवं पेंशन मंत्रालय (कार्मिक और पेंशन विभाग) का स्पष्ट निर्देश है कि ऐसे शासकीय सेवक, जिनके संतान मानसिक रूप से नि:शक्त हैं, उनकी पोस्टिंग  मनचाहे स्थान पर किया जाए। ताकि ऐसे कर्मचारी अपनी सरकारी कर्तब्यों के साथ पारिवारिक जिम्मेदारियों का भी निर्वहन कर सकें। नियम में स्पष्ट किया गया है कि ऐसे बच्चों की देखरेख के लिए अधिक समय और धन की जरूरत होती है। केंद्र सरकार के कार्मिक लोक शिकायत एवं पेंशन मंत्रालय के डायरेक्टर ने इसी निर्देश में सभी मंत्रालयों एवं विभागों से आग्रह किया है कि हर मामले में ऐसे कर्मचारियों को उनके मनचाहे स्थान पर पोस्टिंग दे पाना संभव नहीं है, लेकिन इस तरह के सभी मामलों में सद्भावना पूर्वक विचार करते हुए मानचाही जगह पर जितने समय तक हो सके, पोस्टिंग दी जाए।
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राजनीति के भंवर में फंसी 168 किमी पाइप लाइन
0 17 पानी की टंकियों से दो साल में नहीं बिछी डिस्ट्रीब्यूशन लाइन
0 अगली गर्मी में फिर पानी की समस्या से जूझेंगे 20 वार्ड

शहर के आउटर में पानी की समस्या दूर करने के लिए बनी 17 टंकियां राजनीति के भंवर में फंसी हुई हैं। इन टंकियों से नगर निगम के 20 वार्डों में पानी की सप्लाई होनी है, लेकिन डिस्ट्रीब्यूशन पाइप नहीं बिछने के कारण इन वार्डों के लोग हर साल पानी की समस्या से जूझ रहे हैं। अगली गर्मी में भी उन्हें इस समस्या से दो-चार होना पड़ सकता है।
पाइप लाइन का प्रस्ताव दो साल की मशक्कत के बाद सामान्य सभा में रखा गया। शासन ने प्रस्ताव को छह माह रोककर रखा। शासन ने पीपीसी मोड से काम कराने के लिए कहा। इस कारण प्रस्ताव में फिर से संशोधन करना पड़ा। इसके बाद टेंडर प्रक्रिया को तीन-चार बार सहमति के लिए सामान्य सभा में रखा गया। सामान्य सभा में निविदा आमंत्रित करने के लिए सहमति बनी। पांच कंपनियां निविदा में आई थीं। इस बार की सामान्य सभा में मेसर्स पेन इंडिया एसेल इंफ्रास्ट्रक्चर मुंबई को ठेका देने का प्रस्ताव रखा गया था। भाजपा पार्षद दल और समर्थित निर्दलीय पार्षदों ने प्रस्ताव का विरोध किया, लेकिन पक्ष और विपक्ष का पलड़ा बराबर रहा। तब सभापति ने अपने मताधिकार का प्रयोग कर प्रस्ताव को गिरा दिया। पाइप लाइन बिछाने के लिए शासन से 53 करोड़ स्र्पए स्वीकृत हो चुके हैं, लेकिन सामान्य सभा में पास नहीं होने के कारण प्रस्ताव अटक गया है। ऐसी स्थिति में प्रस्ताव को दोबारा सभा में लाया जाए तो इसमें कम से कम पांच से छह माह लग सकते हैं। फिर टेंडर और काम शुरू होने में दो-तीन माह निकल जाएंगे। इस तरह पूरा जोर लगाने पर भी गर्मी तक पाइप लाइन बिछाने का काम पूरा नहीं होने की आशंका है।
पार्षदों को जनता की चिंता नहीं
22 जून को नगर निगम की सामान्य सभा में 17 टंकियों से पाइप लाइन बिछाने के लिए 97 करोड़ का प्रस्ताव रखा गया था। पक्ष-विपक्ष की राजनीति के चलते प्रस्ताव को गिरा दिया गया। प्रस्ताव को गिराने में ऐसे पार्षद भी शामिल थे, जिनके वार्डों में पाइप लाइन बिछनी है। भाजपा के दस पार्षदों के अलावा चार निर्दलीय पार्षद भी शामिल हैं। अगली गर्मी तक पाइप लाइन नहीं बिछी तो इन पार्षदों के वार्डों में हर साल की तरह पानी के लिए मारामारी होगी।
इन वार्डों को होता फायदा
बाल गंगाधर तिलक, मनमोहन सिंह बख्शी, डॉ. खूबचंद बघेल, चंद्रशेखर आजाद, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी आत्मानंद, संत रविदास, संत कबीरदास, कंकालीपारा, ठाकुर प्यारेलाल, महर्षि वाल्मीकि, कुशाभाऊ ठाकरे, ईश्वरी चरण शुक्ल, पं. सुंदरलाल शर्मा, वीर सावरकर, माधवराव सप्रे, मोरेश्वर राव गद्रे, भीमराव अम्बेडकर, रवींद्रनाथ टैगोर।
आपत्ति और जवाब---
0 विपक्ष की आपत्ति-
- नल कनेक्शन के लिए 8000 हजार स्र्पए बहुत ज्यादा हैं। भागीरथी नल जल योजना में तो सरकार 3000 स्र्पए में नल लगा रही है।
जल अध्यक्ष का जवाब-
-यह अधिकतम राशि है। कम भी हो सकती है। कंपनी पाइप से लेकर मीटर, मजदूर खर्च, रोड मरम्मत और नल लगाकर देती। सबकी कीमत तय होती।
0 विपक्ष की आपत्ति-
पेयजल खपत पर 9.18 स्र्पए प्रति किलोलीटर की दर से मासिक बिल ज्यादा है। सात स्र्पए प्रति किलोलीटर दर तय की जानी चाहिए।
जल अध्यक्ष का जवाब-
9.18 स्र्पए की दर ज्यादा है, तो इसमें संशोधन का प्रस्ताव सरकार को भेजा जा सकता था, लेकिन इस दर पर कंपनी फिल्टर प्लांट पर व्यय, चौबीस घंटे सेवा, मीटर रीडिंग और जलकर वसूल करती। राशि कंपनी और निगम के संयुक्त खते में जमा होती और निगम के संतुष्ट होने पर ही कंपनी राशि निकाल सकती थी।
0 विपक्ष की आपत्ति-
रोड मरम्मत के नाम पर 20 करोड़ स्र्पए अतिरिक्त भार बताया जाना, गड़बड़ी की आशंका को पैदा करता है।
जल अध्यक्ष का जवाब-
नल कनेक्शन के बाद रोड खोदकर छोड़ने की शिकायत पार्षद ही करते हैं। इस कारण रोड मरम्मत के लिए अलग से 20 करोड़ अनुमानित खर्च माना गया था। तब कंपनी निविदा शर्त से हटकर रोड मरम्मत का काम भी करने को तैयार हो गई। उसने 20 की जगह 11 करोड़ स्र्पए इस काम के लिए मांगे थे।

(विपक्ष की ओर से सभापति व भाजपा पार्षद संजय श्रीवास्तव और जल अध्यक्ष जग्गू सिंह ठाकुर से चर्चा के अनुसार)

17 टंकियों के लिए पाइपलाइन की लंबाई---
टंकी-लंबाई(मीटर)
-मठपुरैना-15,433
-लालपुर-8,363
-अमलीडीह-15,327
-खम्हारडीह-14,709
-सड्डू-4,824
-मोवा-6,941
-दलदलसिवनी-7,405
-भाठागांव-4,877
-ईदगाहभाठा-2,194
-चंगोराभाठा-15,266
-डीडीनगर-15,091
-सरोना-2,293
-टाटीबंध-11,186
-कोटा-11,245
-कबीरनगर-16,520
-गोगांव-7,927
-जरवाय-9,210


वर्जन--
सुझाव देकर संशोधन कराएं
प्रस्ताव तो सर्वसम्मति के लिए रखा जाता है, उस चर्चा कर संशोधन किया जा सकता है। जनहित को ध्यान में रखकर सामान्य सभा में संशोधन के बाद प्रस्ताव को सरकार को भेजा जाना चाहिए था।
जग्गू सिंह ठाकुर, जल अध्यक्ष

पुनर्विचार कर सकते हैं
प्रस्ताव में कुछ आपत्तियां हैं। उन्हें दूर करने के लिए सर्वदलीय बैठक बुलाई जानी चाहिए। उसमें संधोशन कर पुनर्विचार के लिए सरकार को भेजा जा सकता है। जनहित में समझौते होने चाहिए।
संजय श्रीवास्तव
सभापति

प्रस्ताव पूरी तरह से पारदर्शी था। इसके बाद भी आपत्ति की गई, जो कि राजनीतिगत कारण है। जनहित को ध्यान में नहीं रखा गया। विपक्ष को कोई आपत्ति थी तो प्रस्ताव में संशोधन कराया जाना चाहिए था।
डॉ. किरणमयी नायक
महापौर
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प्रशासनिक ब्रेक से राहगीरों का घुटेगा दम
- 20 किमी प्रति घंटे रफ्तार के नियम का लोगों ने किया विरोध
फोटो मनोज
 राजधानी की सड़कों पर प्रशासनिक ब्रेक से राहगीरों का दम घुटेगा। इसी वजह से कहीं भी प्रशासन द्वारा निर्धारित गति सीमा का पालन नहीं किया जा रहा है। प्रशासन ने गाड़ियों की रफ्तार पर ब्रेक लगाते हुए शहर के अंदर 20 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार तय कर दी है। इससे तेज रफ्तार से गाड़ी चलाने पर वाहनों चालकों के ऊपर कार्रवाई की जाएगी। नईदुनिया से चर्चा में कुछ राहगीरों ने कहा कि प्रशासन गति सीमा बढ़ाए। गाड़ियां 20 की स्पीड में चलेंगी धुएं से लोगों का दम घुटेगा। उनका कहना है कि नियम बनाने वाले खुद 20 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से सड़कों पर चलें तब पता चलेगा कि क्या परेशानी होती है।
फाफाडीह, जेल रोड, शंकर नगर, गौरवपथ पर गाड़ियों को साइकिल की तरह चलाना होगा। विशेषज्ञों की मानें तो इससे सबसे ज्यादा प्रभाव गाड़ी के इंजन पर पड़ेगा। राजधानीवासियों की मानें तो इस रफ्तार पर गाड़ी चलाना संभव नहीं है। बार-बार गियर बदलना होगा। चौथे गियर पर इस रफ्तार से गाड़ी नहीं चलाई जा सकती है।
ख्ाुद चलकर देखें
राजधानीवासियों का कहना है कि जिन्होंने यह नियम बनाया है, उन्हें खुद एक बार इन मार्गों पर 20 की रफ्तार में चलकर देखना चाहिए। ताकि उन्हें यह पता चल सके कि कौन-से मार्ग पर कितनी रफ्तार होनी चाहिए। प्रशासन ने जो रफ्तार निर्धारित की है वह मालवीय रोड, गोलबाजार, सदर बाजार, एमजी रोड पर लागू होता है। बाकी मार्गों पर यह रफ्तार व्यवहारिक नहीं है।
आदेश के बाद भी नहीं बदले संकेतक
नए आदेश के बाद भ्ाी किसी भी मार्ग के गति संकेतक नहीं बदले गए हैं। अभी भी  जेल रोड सहित अन्य मार्गों पर सड़क किनारे लगे  गति संकेतक बोर्ड में 40 किमी प्रति घंटा लिखा हुआ है, जबकि प्रशासन ने 20 किमी की रफ्तार पर चलने का नियम बनाया है।
 स्पीड बाइक पर लगे प्रतिबंध
युवाओं का कहना है कि सरकार को स्पीड बाइक और महंगी गाड़ियों की बिक्री पर प्रतिबंध लगाना चाहिए। खासतौर पर ऐसी बाइक-गाड़ियों को राजधानी में नहीं बेचने देना चाहिए, क्योंकि सरकार ने जो फरमान जारी किया है, वह इन बाइक और गाड़ियों के विपरीत है। इन गाड़ियों को 20 की स्पीड पर चलाने से अच्छा है कि तीन हजार में साइकिल खरीद कर चलाएं।
हर 15 दिन में कराना होगा मेंटेनेस
प्रशासन ने जो रफ्तार निर्धारित की है, उससे हर 15 दिन में गाड़ी का मेंटेनेंस कराना होगा। इंजन पर ज्यादा प्रभाव पड़ेगा और पेट्रोल की खपत भी ज्यादा होगी। -
प्रकाश कुमार, राहगीर
महंगी गाड़ी मतलब की नहीं
राजधानी में स्पीड बाइक और महंगी गाड़ी खरीदने का फिर कोई मतलब नहीं होगा, जब उन्हें साइकिल की तरह चलाना होगा। सरकार को इसकी बिक्री पर ही प्रतिबंध लगाना चाहिए।- धर्मेश दास, राहगीर
पहले खुद चलें
जिन्होंने यह नियम बनाया है, उन्हें पहले खुद उन मार्गों पर 20 की स्पीड पर अपनी गाड़ी चलाकर देखना चाहिए। फिर उन्हें नियम बनाना चाहिए।- महेन्द्र कुमार, राहगीर
साइकिल खरीद लेते हैं
प्रशासन ने जो रफ्तार तय की है, वह साइकिल के लिए लागू होता है। सभी को अपनी महंगी गाड़ियों को बेचकर साइकिल ले लेनी चाहिए। इससे पुलिस कार्रवाई से बच पाएंगे।- वेद प्रकाश, राहगीर
रफ्तार को बढ़ाएं
प्रशासन ने जो रफ्तार तय की है, उसे बढ़ाना चाहिए। 20 की जगह 40 किलोमीटर प्रति घंटे रफ्तार होनी चाहिए,  जो सब के लिए फायदे मंद होगा।- दीपेश कुमार, राहगीर
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नशाबंदी से आबकारी विभाग की तौबा
0 भारत माता वाहिनी को किया दरकिनार
0 समाज कल्याण विभाग पर थोपा संचालन का जिम्मा
नशाबंदी  को लेकर अपनी पीठ थपथपाने वाले आबकारी विभाग ने अब इससे तौबा कर लिया है। शराबबंदी के लिए जिन महिलाओं की टीम (भारत माता वाहिनी) का गठन किया था, विभाग ने उससे ही पल्ला झाड़ लिया है। इसी वजह से सामान्य प्रशासन विभाग ने भारत माता वाहिनी के संचालन का जिम्मा समाज कल्याण विभाग को सौंपा दिया है।
विभागीय सूत्रों के मुताबिक  शराबबंदी की दिशा में चरणबद्ध  कदम बढ़ाते हुए सरकार ने 2011-2012 में 234, 2012- 2013 में 84 और 2013-14 में 11 शराब दुकानों को बंद किया। इसके अलावा शराब के कारोबार में लगे सरकारी उपक्रम स्टेट ब्रेवरेजेस कार्पोरेशन लिमिटेड और आबकारी विभाग द्वारा प्रदेश में शराबबंदी को लेकर अभियान शुरू किया। शराबबंदी के लिए 20 जिलों के 49 ब्लॉकों में 213 गांवों में भारत वाहिनी का गठन किया गया है। भारत माता वाहिनी की महिलाएं शराब के अवैध धंधे में लगे या शराब पीने वाले लोगों के घर में सामने जाकर गांधी जी का प्रिय भजन 'रघुपति राधव राजा राम ..." गाती हैं। इस काम में सरकार ने दो साल में 2 करोड़ 46 लाख 49 हजार 829 रुपए खर्च किए हैं। 2011-12 में सरकार ने नशाबंदी  के लिए 1 करोड़ 72 लाख 85 हजार 430 रुपए खर्च किए।  इसी तरह 2012-13 में 73 लाख 64 हजार 399 रुपए खर्च किए । गठन के बाद  भारत माता वाहिनी के संचालन का जिम्मा आबकारी विभाग के पास था। इसका सारा खर्च भी विभाग द्वारा उठाया जाता  है। सूत्रों ने बताया कि भारत माता वाहिनी के संचालन से आबकारी विभाग ने कन्नाी काट ली  है। एक अप्रैल से भारत माता वाहिनी  के संचालन का जिम्मा समाज कल्याण विभाग को सौंपा गया है। जबसे समाज कल्याण विभाग को भारत माता वाहिनी के संचालन की जिम्मेदारी दी गई है, तब से उनकी गतिविधियां लगभग थम गई हैं।
पहले से था विवादित
विभागीय सूत्रों का कहना है कि भारत माता वाहिनी शुरू  से विवादित रहा है। जिस आबकारी विभाग और उसके उपक्रम ब्रेवरेजस कार्पोरेशन लिमिटेड  ने शराबबंदी के लिए भारत माता वाहिनी का गठन किया था, उनका काम शराब से मिलने वाले  राजस्व को बढ़ाना है।  इसी बात को लेकर विवाद हमेशा रहा। साथ ही राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को ब्रेवरेजेस का ब्रांड एंबेसेडर बनाने को लेकर भी काफी किरकिरी हुई थी। अंतत: महात्मा गांधी को ब्रांड एंबेसेडर बनाने संबंधी निर्णय को वापस लेना पड़ा था।
अफसर को गंवानी पड़ी थी कुर्सी
भारत माता वाहिनी और महात्मा गांधी को ब्रांड एंबेसेडर बनाने वाले तत्कालीन आबकारी आयुक्त गणेश शंकर मिश्रा को इसी विवाद के चलते अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी थी। महात्मा गांधी वाले मामले में देशभर से किरकिरी झेलने के बाद सरकार ने श्री मिश्रा को आबकारी आयुक्त के पद से हटाकर उन्हें पीएचई सचिव बना दिया था। उनके स्थान पर  आबकारी आयुक्त की जिम्मेदारी आरएस विश्वकर्मा को दी गई है।
फैक्ट फाइल
* प्रदेश में शराब दुकानें - 719
* 2011-12 में प्राप्त राजस्व - 10000087683 रुपए
* 2012-13 में प्राप्त राजस्व - 14000413961 रुपए
* 2013-14 में राजस्व का लक्ष्य 19000000000 रुपए
* तीन सालों में बंद दुकानें 355
* 20 जिलों के 49 ब्लॉकों में 213 गांवों में भारत माता वाहिनी
'' नशामुक्ति का काम समाज कल्याण विभाग का है। भारत माता वाहिनी को समाज कल्याण विभाग को सौंपने का निर्णय मेरे आने से पहले लिया जा चुका था।""
आरएस विश्वकर्मा,  आबकारी आयुक्त
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हफ्तेभर में अपहरण के 217 मामले दर्ज
0 सुप्रीम कोर्ट की सख्ती के बाद जागी पुलिस
0 गुमइंसान के मामलों पर विभिन्ना थानों में दर्ज हो रहा अपहरण का केस
रायपुर(निप्र)। सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद अब जाकर रायपुर जिले की पुलिस की नींद टूटी है। गुमइंसान के मामलों की जांच में लापरवाही बरतने पर सुप्रीम कोर्ट की नाराजगी पुलिस महकमे पर भारी पड़ी है। डीजीपी के निर्देश पर जिले के विभिन्न् थानों में फाइलों में धूल खा रहे गुम इंसान के मामले खंगाले गए। इसके बाद एक ही दिन में जहां अपहरण के 131 अपराध दर्ज किए गए, वहीं हफ्तेभर में यह आकंड़ा 217 तक पहुंच गया है। अगवा होने वालों में सबसे ज्यादा बालिकाएं हैं। इनकी संख्या 170 है जबकि 47 बालकों के अपहरण का केस दर्ज किए जा चुके हैं। सबसे अधिक अपहरण के मामले मंदिर हसौद, आरंग, खरोरा, नेवरा तथा उरला में दर्ज हुए हैं।
जानकारी के मुताबिक नाबालिग बालक-बालिकाओं के लापता होने के मामलों में सामान्यत: गुमइंसान का मामला बनाकर प्रकरण को लंबे समय तक लंबित रखा जाता है। गुमइंसान की विवेचना में पुलिस की उदासीनता की वजह से लापता बालक-बालिकाओं का कुछ पता नहीं चल पाता। कई बार यह भी देखने में आता है कि लापता बालक-बालिकाओं का शारीरिक व मानसिक शोषण होता है और पुलिस को इसकी भनक तक नहीं लगती। पुलिस की लापरवाही व उदासीनता के चलते थानों में इस तरह के सैकड़ों मामलों की फाइलें आज भी धूल खाती पड़ी हंै।
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने गुमइंसान के मामलों की जांच में लापरवाही बरतने पर छत्तीसगढ़ पुलिस को फटकार लगाई थी। कोर्ट ने देश के सभी राज्यों की पुलिस को आदेश दिया था कि नाबालिग बालक-बालिकाओं के गुमइंसान के लंबित मामलों में अपहरण का अपराध दर्ज किया जाए। सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सभी राज्यों के डीजीपी को आदेश जारी किया। इसी आदेश का पालन करते हुए डीजीपी रामनिवास ने पिछले हफ्ते  प्रदेश के सभी जिलों के पुलिस अधीक्षकों को नाबालिगों के गुमइंसान के मामलों में अपहरण का अपराध दर्ज कर पुलिस मुख्यालय को सूचित करने को कहा था। इसके बाद एसपी ओमप्रकाश पाल ने इस आदेश का हवाला देकर सभी थाना प्रभारियों को अपराध दर्ज कर गुमइंसान नाबालिगों की सूची बनाने के निर्देश दिए । थानेदारों ने अपराध दर्ज कर दो दिन पहले पुलिस अफसरों को इसकी पूरी जानकारी दी।
विस में उठा था मामला
विधानसभा के बजट सत्र के दौरान कांग्रेस विधायक शक्राजीत नायक द्वारा लापता बालक-बालिकाओं के संबंध में सवाल उठाया गया था। जवाब में गृहमंत्री ननकी राम कंवर ने बताया था कि प्रदेशभर में ढाई साल में 6 हजार 72 लड़कियों के गुम होने की रिपोर्ट लिखाई गई है। इनमें से 47 सौ लड़कियां अपने घर वापस लौंट गई हैं और 13 सौ लड़कियां अभी भी गायब हैं। आंकड़े के हिसाब से औसतन रोजाना पांच से अधिक लड़कियां गायब हो रही हैं। लड़कियों के गायब होने के 764 मामलों में 825 लोगों के खिलाफ अपराध दर्ज किया गया है।
 बाक्स-
      वर्षवार लापता बालिकाएं
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1 अप्रैल 2010 से 31 मार्च 2011 तक
2167 बालिकाएं लापता।
 1 अप्रैल 2011 से 31 मार्च 2012 तक
2407 बालिकाएं लापता।
1 अप्रैल 2012 से मार्च 1013 तक
 1498 बालिकाएं लापता।
( कुल 6 हजार 72 बालिकाएं लापता)
सरकार के उपाय
लड़कियों के गायब होने के मामले को रोकने के लिए प्रत्येक पुलिस थाना में बाल कल्याण अधिकारी एवं राज्य के 8 जिलों में मानव तस्करी निरोधक सेल का गठन केन्द्र सरकार की स्वीकृति से किया गया है। वहीं मानव तस्करी निरोधक इकाई भी गठित की गई है। इसके अलावा कुछ जिलों में हेल्प लाइन और टोलफ्री सेवा भी शुरू की गई है।
अब देना होगा जवाब
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अपहरण का अपराध दर्ज होने पर पुलिस के साथ ही थानेदार व अफसरों की जवाबदेही तय हो जाएगी। उन्हें कोर्ट में जवाब देना पड़ेगा कि लंबित अपराध व जांच में उन्होंने क्या कार्रवाई की है। अपराध दर्ज होने के साथ ही इस तरह के मामलों की जांच का दायरा बढ़ जाएगा और पुलिस नाबालिगों के गुमइंसान के  मामलों को गंभीरता से लेगी।
बाक्स-
कहां कितने प्रकरण दर्ज हुए-
टिकरापारा-6
पुरानी बस्ती-2
डीडीनगर-9
आमानाका-4
सिविल लाइन-4
देवेंद्रनगर-3
न्यू राजेंद्रनगर-3
सरस्वतीनगर-8
आजादचौक-4
नेवरा-18
खरोरा-19
खमतराई-10
धरसींवा-7
उरला-17
गुढ़ियारी-4
आरंग-24
मंदिर हसौद-36
अभनपुर-8
गोबरा नवापारा-10
माना कैंप-6
मौदहापारा-4
गोलबाजार-1
गंज-7
कोतवाली-5
कुल-217
वर्जन-
सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर गुम इंसान के प्रकरणों में अपहरण का मामला दर्ज किया जा रहा है। अब तक विभिन्ना थानों में ढाई सौ मामले दर्ज किए जा चुके हैं।
डॉ. लाल उमेद सिंह
एडिशनल एसपी(सिटी)
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प्रदेश में पहले निजी मेडिकल कॉलेज पर मुहर, 150 सीट की मान्यता
00- दुर्ग में चंदूलाल चंद्राकर मेमोरियल मेडिकल कॉलेज में प्रवेश इसी सत्र से
00- प्रदेश में एमबीबीएस की सीटों की संख्या बढ़कर हुई 550
00- दिल्ली में एमसीआई की बीओजी की बैठक में निर्णय
 मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई) ने प्रदेश के पहले निजी मेडिकल कॉलेज पर मुहर लगा दी है। दुर्ग के चंदूलाल चंद्राकर मेमोरियल मेडिकल कॉलेज को 150 सीटों की मान्यता मिली है, जिस पर प्रवेश इसी सत्र से शुरू होगा। इसके साथ ही अब छत्तीसगढ़ में एमबीबीएस की सीटों की संख्या बढ़कर 550 पहुंच गई है। इनमें 400 सीटें शासकीय और 150 निजी मेडिकल कॉलेज की हैं।
संचालनालय चिकित्सा शिक्षा से मिली जानकारी के मुताबिक शासकीय सीटों पर काउंसिलिंग जुलाई के पहले सप्ताह में शुरू हो जाएगी। हालांकि अभी तारीख घोषित नहीं हुई है। सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक अंबिकापुर में प्रस्तावित एक और शासकीय मेडिकल कॉलेज को इस सत्र में मान्यता मिल पाना मुश्किल है। दिल्ली स्थित मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया की बोर्ड ऑफ गवर्नेंस (बीओजी) की 11-12 जून को बैठक हुई थी, जिसमें दुर्ग मेडिकल कॉलेज की मान्यता पर निर्णय लिया गया। मान्यता सशर्त दी गई है। कॉलेज को जो कमियां बताई गई हैं, उन्हें चार महीने में दूर कर एमसीआई को सूचित करना है।
26 जून को दिल्ली में हुई बीओजी की बैठक में रायगढ़ स्थित स्वर्गीय लखीराम अग्रवाल मेमोरियल गवर्नर्मेंट मेडिकल कॉलेज को 50 सीटों पर मान्यता देने का निर्णय लिया गया था। इसके साथ ही जगदलपुर स्थित मेडिकल कॉलेज की सीटें 50 से बढ़ाकर 100 कर दी गई हैं। संचालक चिकित्सा शिक्षा डॉ. सुबीर मुखर्जी का कहना है कि काउंसिलिंग के लिए सभी अधिकारियों, कॉलेजों के डीन की बैठक जल्द ही बुलाई जाएगी, क्योंकि जुलाई में सभी प्रक्रिया पूरी करनी है। नियमानुसार अगस्त से क्लासेस शुरू होनी है। उनका यह भी कहना है कि उन्हें भी मान्यता और सीट बढ़ने की जानकारी एमसीआई की वेबसाइट से ही मिली है। भारत सरकार से अधिकृत पत्र, जिसे लेटर टू परमिशन कहा जाता है, नहीं आ जाता तब तक प्रक्रिया शुरू नहीं की जा सकती।
कॉलेज और सीटें
रायपुर मेडिकल कॉलेज - 150 सीट
बिलासपुर मेडिकल कॉलेज- 100 सीट
जगदलपुर मेडिकल कॉलेज- 50 से बढ़कर 100 सीट
रायगढ़ मेडिकल कॉलेज- 50 सीट
दुर्ग निजी मेडिकल कॉलेज- 150 सीट
अंबिकापुर में मेडिकल कॉलेज खोलने को लेकर एमसीआई में आवेदन-
सत्र 2013-14 में अंबिकापुर में एक नए मेडिकल कॉलेज खोलने को लेकर एमसीआई में आवेदन किया गया था। लेकिन अब तक एमसीआई ने निरीक्षण नहीं किया है। इससे स्पष्ट है कि इस सत्र में कॉलेज को मान्यता मिल पाना संभव नहीं है। यहां 100 सीटों के लिए आवेदन किया गया था।
छात्रों को लाभ होगा
हमारे पास तीन मेडिकल कॉलेज में 300 सीटें थीं, अब एक निजी कॉलेज को मान्यता मिलने के बाद सीटों की संख्या बढ़कर 550 हो गई है। यह अच्छी खबर है, क्योंकि अब ज्यादा से ज्यादा छात्र एडमिशन ले सकेंगे। अमूमन एमसीआई में बीओजी की बैठक के तीन-चार दिन बाद ही निर्णय आता है, लेकिन उन्होंने तत्काल ही नेट पर लोड कर दिया था।
डॉ. सुबीर मुखर्जी, संचालक चिकित्सा शिक्षा छत्तीसगढ़
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700 सहायक प्राध्यापकों की पदोन्न्ति पर आठ साल से बैन
0 शासन और यूजीसी के नियमों की धज्जियां उड़ा रहा छत्तीसगढ़ उच्चशिक्षा विभाग
00- पदोन्नाति आदेश से सरकार पर नहीं पड़ेगा आर्थिक बोझ
प्रदेश के 182 शासकीय कॉलेजों में पदस्थ करीब 700 सहायक प्राध्यापकों की पदोन्नाति 8 साल से अटकी हुई है। नियमानुसार हर साल विभागीय पदोन्नाति समिति (डीपीसी) की बैठक होना अनिवार्य है, लेकिन उच्च शिक्षा संचालनालय में बैठे अफसर 8 साल से डीपीसी की बैठक नहीं करा पाए। इतना ही नहीं, इस मामले में हाईकोर्ट के फैसले और विधि विभाग के अभिमत को भी नजरअंदाज किया जा रहा है। संचालनालय से जब पूछा तो दलील दी गई कि कॉलेजों से रिकॉर्ड मंगवाए जा रहे हैं, जबकि सूत्रों का कहना है कि कुछ एक कॉलेजों को छोड़, सारे सहायक प्राध्यापकों के रिकॉर्ड संचालनालय में मौजूद हैं।
विभागीय पदोन्नाति समिति (डीपीसी) का काम है कि वह 1जनवरी से 31दिसंबर तक शिक्षक/प्राध्यापक/अफसर योग्य हैं, उनके रिकॉर्ड का सत्यापन कर पदोन्नाति के लिए अनुसंशा करे। पदोन्नाति के लिए प्रत्येक विभाग के अपने नियम-कानून, मापदण्ड हैं। 'नईदुनिया" पड़ताल में सामने आया कि उच्च शिक्षा विभाग अंतर्गत सेवाएं दे रहे सहायक प्राध्यापकों को प्राध्यापकों का वेतनमान तो मिल रहा है, लेकिन पद-नाम नहीं। संचालनालय से इनकी सिर्फ पद-नाम को लेकर ही लड़ाई आठ साल से जारी है, जो अब आंदोलन की शक्ल लेती दिखाई दे रही है। महाविद्यालयों में सहायक प्राध्यापकों की दो श्रेणियां होती हैं, पहला वरिष्ठ, दूसरा प्रवर। उसके बाद प्राध्यापक पद पर पदोन्नाति होती है। 700 सहायक प्राध्यापक प्रवर श्रेणी वाले ही हैं। प्राध्यापक के पद अपग्रेडेशन वाले हैं। यानी जितने सहायक प्राध्यापक, प्राध्यापक बनेंगे उतने पद खुद-ब-खुद निर्मित हो जाएंगे और फिर उनके प्राचार्य बनने या फिर सेवानिवृत्त होने के बाद समाप्त, यह ऑटोमेटिक सिस्टम है। प्राध्यापक बनने के दो साल बाद पदोन्नाति पाकर प्राध्यापक, प्राचार्य बन सकते हैं। प्रदेश में पीजी प्राचार्यों के 33 पद स्वीकृत हैं, जिनमें 15 खाली हैं। इसी प्रकार यूजी प्राचार्य के 148 पद में से 83 रिक्त, प्राध्यापकों के 351 में से सभी पद खाली हैं। सहायक प्राध्यापकों के 2794 में से 1559 खाली हैं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि डीपीसी न होने से उच्च शिक्षा व्यवस्था की क्या स्थिति है। इसके बाद भी संचालनालय के अफसर अपना राग अलाप रहे हैं।
क्या हुआ मंत्री बंगले में हुई बैठक में 'नईदुनिया" को मिली जानकारी के मुताबिक करीब 3 महीने पहले उच्च शिक्षा मंत्री रामविचार नेताम के बंगले में एक बैठक हुई थी, जिसमंे प्राध्यापकों की तरफ से डॉ. गिरीश कांत पांडे, डॉ. केके विंदल और अन्य ने प्रतिनिधित्व किया। उच्च शिक्षा संचालनालय से अवर संचालक प्रो. आरबी सुब्रमनियम और उप संचालक प्रो. तिलकसेन गुप्ता शामिल थे। मंत्री की मौजूदगी में दोनों ने अपने पक्ष रखे, अफसरों के सारे तर्क खारिज हो गए, जिसके बाद इन्होंने नया दांव खेलते हुए विधि विभाग से अभिमत लेने की बात कही। फाइल विधि विभाग भेजी गई, सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार विधि विभाग ने शिक्षकों के पक्ष में निर्णय दिया कि पदोन्नाति दी जानी चाहिए। एक बार फिर फाइल संचालनालय में अटक गई है।
क्या कहा कोर्ट ने
 प्रो. संजय कुमार तिवारी ने बिलासपुर हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की थी। इसमें कहा गया था कि जिस आधार पर पुराने लोगों को प्राध्यापक बनाया गया, वैसे ही हमें भी बनाना चाहिए। छठे वेतनमान का लाभ जिस आधार पर मिला, पदोन्नाति उसी आधार पर मिले। कोर्ट ने याचिकाकर्ता के पक्ष में फैसला दिया। लेकिन विभाग ने आदेश नहीं माना, जिस पर कई अवमाननाएं दर्ज हुईं हैं। कोर्ट को यह भी बताया गया कि पदोन्नाति से शासन पर कोई आर्थिक बोझ नहीं पड़ेगा।
ठप पड़ी है प्रक्रिया
आखिरी बार पदोन्नाति अगस्त 2006 में हुई थी, 2009 में प्राचार्य भरे गए थे। उसके बाद से विभाग में पदोन्नाति को लेकर कोई काम नहीं हुआ। छत्तीसगढ़ में उच्च शिक्षा विभाग ही ऐसा विभाग है, जहां पदोन्नाति की प्रक्रिया ठप पड़ी है। जबकि यूजीसी की गाइड लाइन में डीपीसी का स्पष्ट उल्लेख है।
प्रो. केके विंदल, अध्यक्ष, शासकीय महाविद्यालयीन शिक्षण एवं अधिकारी संघ
सरकार पर बोझ नहीं पड़ेगा
सभी सहायक प्राध्यापकों को वेतनमान तो प्राध्यापक का ही मिल रहा है, लेकिन पद-नाम नहीं। डीपीसी नहीं होने की वजह से यह स्थिति है। उच्च शिक्षा मंत्री से लेकर मुख्यमंत्री से कई बार गुहार लगा चुके हैं, लेकिन कुछ नतीजा नहीं निकला। संचालनालय स्तर पर प्रक्रिया अटकी है। पदोन्नाति से सरकार को एक नए पैसा का आर्थिक बोझ नहीं पड़ेगा। फिर भी दिक्कत क्या आ रही है, समझ से परे है। कुछ तो सहायक प्राध्यापक पद पर भर्ती हुए, सेवाएं दीं और उसी पद पर सेवानिवृत्त हो गए।
डॉ. गिरीशकांत पांडे, उपाध्यक्ष, शासकीय महाविद्यालीन शिक्षण एवं अधिकारी संघ
सैकड़ों का प्रकरण हैं
आपको किसने कहा कि डीपीसी में दिक्कत आ रही है, उसका नाम बताइए। पदोन्नाति के लिए एकेडमिक रिकॉर्ड का कलेक्शन करना होता है, जो हो रहा है। जिनकी पदोन्नाति होनी है, उनकी चल-अचल संपत्ति का भी ब्योरा होना चाहिए, सीआर की भी जानकारी होनी चाहिए। अब 10-20 लोगों का मामला हो तो तत्काल हो जाए, सैकड़ों लोगों का प्रकरण है। वक्त तो लगता है।
तिलकसेन गुप्ता, उप संचालक, उच्च शिक्षा विभाग
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कबाड़ का धंधा फिर आबाद
0 आउटर में फलने-फूलने लगा है कारोबार
 राजधानी के आउटर इलाके में एक बार फिर कबाड़ का धंधा आबाद हो गया है। एक समय कबाड़ के अवैध कारोबार से जुड़े लोगों के पीछे राजधानी पुलिस हाथ धोकर पड़ी हुई थी। उस समय बड़े कारोबारियों के यार्ड में मारे गए छापे के दौरान करोड़ों का लोहा पकड़ा गया था। इस छापे की कार्रवाई के बाद बड़े से लेकर छोटे कबाड़ी धंधा बंदकर भूमिगत हो गए थे। कई लोहा कारोबारियों को भारी क्षति उठानी पड़ी थी। पुलिस की छापे व धरपकड़ की कार्रवाई लंबे समय तक बंद होने से राजधानी के आउटर में कबाड़ का धंधा फिर से फलने-फूलने लग गया। छोटे से लेकर बड़े कबाड़ी पूर्व में हुए नुकसान की भरपाई करने में लगे हंै।
राजधानी के मौदहापारा, आमानाका क्षेत्र के टाटीबंध, हीरापुर, उरला, खमतराई, भनपुरी सहित अन्य स्थानों में रात के समय कबाड़ का खुला खेल देखा जा सकता है। लंबे समय के बाद शुक्रवार को तड़के पुलिस द्वारा राजधानी के विभिन्ना इलाके में कबाड़ियों के यार्ड में मारे गए छापे में इसका खुलासा हुआ है। टाटीबंध में ट्रकों को काटकर बेचने और शहर में लगातार बाइक चोरी की घटनाओं को देखते हुए आईजी व एसपी ने कबाड़ियों पर नकेल कसने के निर्देश दिए, जिसके बाद छापे की कार्रवाई की गई। कई यार्डों भारी मात्रा में चार व दो पहिया के पार्ट्स मिले हैं। संदेह है कि चोरी की गाड़ियों को खरीदकर कबाड़ी इन गाड़ियों के पार्ट्स अलग-अलग कर बाजार में बेच देते हैं।
हाथ नहीं आती बड़ी मछली
चार साल पहले टाटीबंध चौक के समीप जीई रोड से लगे दिनेश अग्रवाल के यार्ड में पुलिसिया छापे में मिले करोड़ों के लौह अयस्क के बाद राजधानी पुलिस ने बड़े कबाड़ियों पर सीधे नकेल कसने के संकेत दिए थे। उस समय करीब आधा दर्जन से अधिक बड़े लोहा कारोबारियों के यार्डों में हुई छापामार कार्रवाई में हालांकि बड़े कारोबारी मौके पर नहीं मिले, पर छोटे कर्मचारियों व मजदूरों पर पुलिस ने जरूर कार्रवाई की थी। पुलिस अफसरों ने अवैध लोहे की जब्ती के बजाय सीधे चोरी का अपराध दर्ज कर यार्ड संचालक को गिरफ्तार करने का ऐलान किया था, पर अच्छेलाल जायसवाल को छोड़कर कोई बड़ा कारोबारी, यार्ड संचालक व ट्रांसपोर्टर की गिरफ्तारी नहीं हो पाई। दिनेश अग्रवाल के यार्ड में छापे की कार्रवाई में करीब पांच करोड़ का अवैध लोहा, कापर, रेल ट्रैक व बीएसपी के सेल की सील लगे लोहे के कई तरह के सामान को जब्त किया गया था। काफी प्रयास के बाद भी दिनेश अग्रवाल पुलिस की गिरफ्त में नहीं आ सका, जबकि उसके राजधानी में ही रहने की लगातार खबरें आ रही थीं।
 हत्या तक हो चुकी
 पुलिस अफसरों का मानना है कि हर गंभीर अपराध के पीछे कबाड़ का अवैध कारोबार ही वजह बनता है। यह संगठित अपराध की श्रेणी में आ चुका है। लोहे के कारण कई ट्रक चालकों की हत्या तक हो चुकी है। खमतराई इलाके में खलासी की लाश मिलना, सिमगा में हुई चालक की हत्या, भिलाई में हुई हत्या में कबाड़ी सलीम की गिरफ्तारी के साथ अनेक ऐसे मामले सामने आ चुके हैं, जिनका संबंध कबाड़ के अवैध कारोबार से जुड़ा हुआ पाया गया है। पुलिस सूत्रों का दावा है कि जब तक इस कारोबार से जुड़ी बड़ी मछलियों पर नकेल नहीं कसी जाएगी, यह संगठित अपराध रुकने वाला नहीं है।
राजनीतिक दबाव से पीछे हटती पुलिस
चार साल पहले कबाड़ियों पर नकेल कसने के क्रम में तत्कालीन एएसपी सिटी रजनेश सिंह ने जब दिनेश अग्रवाल के यार्ड में छापा मारा था, तब बड़े लोहा कारोबारियों में हड़कंप मच गया था। कबाड़ के खेल में वर्षों से लाल हो रहे बड़े कबाड़ियों पर पुलिस की नजर क्या लगी, अच्छेलाल जायसवाल, रामप्रसाद जायसवाल, कैलाश अग्रवाल, दिनेश अग्रवाल, शकील कबाड़ी सहित अन्य बड़े कारोबारी रातोंरात शहर से गायब हो गए। हालांकि बाद में इनमें कुछ को पकड़कर जेल भेजा गया था। लोहे के कारोबार में दीगर प्रांत के लोगों के भी शामिल हो जाने से स्थिति बिगड़ने लगी है। भिलाई के हैवी ट्रांसपोर्ट कार्पोरेशन के संचालक वीरा सिंह सहित अन्य की तलाश पुलिस अब तक कर रही है। सूत्रों का दावा है कि राजनीतिक दबाव में धरपकड़ की कार्रवाई पुलिस ने बंद कर रखी है।
बिल, दस्तावेजों से होता है खेल
पुलिस सूत्रों के अनुसार जब भी अवैध लोहा पकड़ा जाता है, यार्ड संचालक बिल लेकर पुलिस के पास पहुंच जाते हैं। ऐसे में जब्त माल को छोड़ना पड़ता है, लेकिन बिलों की सघन जांच पड़ताल होने से कबाड़ियों की होशियारी पकड़ में आने लगी है। पुलिस का कहना है कि लोहा अगर एक नंबर में बीएसपी से निकला होगा तो नियमत: कंपनी द्वारा इसका लेटर जारी किया जाता है, जिसकी पुष्टि पत्रों के आधार पर करने में आसानी होती है।
वर्सन-
शिकायत के आधार पर कबाड़ियों के गोदाम की जांच कराई गई है। अवैध कारोबार को रोकने और कबाड़ियों पर दबाव बनाने छापे की कार्रवाई आगे भी जारी रहेगी।
ओमप्रकाश पाल
एसपी. रायपुर
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100 स्पेशलिस्ट डॉक्टर संभालेंगे राजधानी
(कृपया एम्स का फोटो नरेंद्र भैय्या से ले लें)
00- एम्स में अस्पताल की सुविधा अगस्त से
00- पैथोलॉजी, रेडियोलॉजी के लिए एचएचएल से अनुबंध
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान रायपुर में जल्द 100 स्पेशलिस्ट डॉक्टरों की नियुक्ति होगी। इसके लिए संस्थान ने विज्ञापन जारी करने संबंधित प्रक्रिया पूरी कर ली है। वर्तमान में 83 पदों में से 67 पर नियुक्तियां हो चुकी हैं। 1000 बिस्तर वाले इस संस्थान मंे प्रथम चरण मंे 83, द्वितीय में 100 और तृतीय चरण में 50 सुपर स्पेशलिस्ट डॉक्टर के पद भरे जाएंगे, जिनमें न्यूरो सर्जन, न्यूरो फिजीशियन, न्यूरोलॉजिस्ट, कॉर्डियोलॉजिस्ट, डर्मेटोलॉजिस्ट, गेस्ट्रोलॉजिस्ट शामिल हैं। लेकिन भर्ती होने के बाद इसका सीधा लाभ उन मरीजों को मिलेगा, जिन्हें इन सभी सुविधाओं के अभाव में दिल्ली, मुंबई, नागपुर का रुख करना पड़ता है और लाखों रुपए खर्च करने पड़ते हैं, क्योंकि प्रदेश के किसी भी सरकारी संस्थान में ये स्पेशलिस्टों के पद या तो कम संख्या में हैं तो खाली पड़े हैं या तो हैं ही नहीं। हालांकि इन्हें भरने में एम्स प्रबंधन को कम से कम 3 साल का लंबा वक्त लगेगा, लेकिन आने वाले 2 महीने में 150 बिस्तर का अस्पताल अपनी सुविधाएं देने लगेगा। इसके लिए संस्थान ने भारत सरकार के उपक्रम हिंदुस्तान लेक्सेस लिमिटेड (एचएलएल) से अनुबंध किया है, जो रेडियोलॉजी और पैथोलॉजी से संबंधित टेस्ट करेगा। रेडियोलॉजी, पैथोलॉजी जांच से संबंधित उपकरण एचएलएल ही खरीदेगा और स्टाफ की भर्ती भी करेगा। जब यह प्रक्रिया पूरी हो जाएगी, तब अस्पताल की शिफ्टिंग भी शुरू कर दी जाएगी। वर्तमान में एम्स के प्रशासनिक भवन में ही आउट डोर पैसेंट डिपोर्टमेंट (ओपीडी) संचालित हो रहा है, जिसमें कुल 09 विभाग में 67 डॉक्टर्स सेवाएं दे रहे हैं, जहां रोजाना 100 से अधिक मरीजों की समस्याओं पर उन्हें सिर्फ सलाह दी जा रही है, लेकिन भर्ती नहीं की जा रही है। किसी भी प्रकार की कोई जांच अभी शुरू नहीं हुई है। 'नईदुनिया" पड़ताल में सामने आया कि अस्पताल का काम लगभग पूरा होने जा रहा है। धीरे-धीरे एक-एक ओपीडी शिफ्ट की जाएगी। अस्पताल प्रबंधन का यह भी दावा है कि नेत्र, कैंसर और कुछ अनुवांशिक बीमारियों के रिसर्च सेंटर भी स्थापित किए जाएंगे। वर्तमान में एम्स में एमबीबीएस की 100 सीटें हैं और इस साल दूसरा बैच प्रवेश लेगा।
1हजार बिस्तर के लिए उपकरण- रायपुर एम्स में 1हजार बिस्तर का अस्पताल होगा, जहां इलाज करने के साथ-साथ डॉक्टरों को रिसर्च यानी शोध की सुविधाएं भी होंगी। 1 हजार बिस्तर के अस्पताल के हिसाब से 5 सीटी स्कैन, 6 एमआरआई और 10 एक्स-रे मशीन की आवश्यकता पड़ेगी। यह खरीदी केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय स्तर पर होगी, जिसकी रिक्वायरमेंट एम्स प्रबंधन द्वारा भेजी जा चुकी है।
मरचुरी भी खुलेगी- डॉ. भीमराव अंबेडकर अस्पताल की मरचुरी में रोजाना 8-10 पोस्टमार्टम होते हैं, कई बार संख्या 15 पार कर जाती है, लेकिन बहुत जल्द उसका बोझ कुछ हल्का हो सकता है, क्योंकि एम्स में अस्पताल खुलने के साथ ही मरचुरी भी खुल जाएगी। प्रबंधन की तरफ से कहा गया है कि किसी व्यक्ति की मौत एम्स के अस्पताल में होती है और केस एमएलसी का है तो उसका पोस्टमार्टम एम्स में ही होगा। थाना क्षेत्र के हिसाब से भी आने वाले केस का पोस्टमार्टम एम्स में होगा, शेष का डॉ. अंबेडकर अस्पताल में।
सुविधाओं के साथ खोलेंगे अस्पताल
अभी एम्स की शुरुआत है। हमें काफी आगे जाना है। असुविधा के साथ अस्पताल नहीं खोल सकते, तैयारी पूरी होने पर ही खोलेंगे। एचएलएल भारत सरकार का उपक्रम है, उसके साथ एमओयू हस्ताक्षर हुआ है, जिससे हमें पैथोलॉजी और रेडियोलॉजी की सुविधाएं मिलेंगी। सारा इंफ्रास्ट्रक्चर उन्हें डेवल्प करना है, फिलहाल एमओयू 150 बिस्तर वाले अस्पताल के लिए हुआ है। एम्स 1हजार बिस्तर का होगा। 100 स्पेशलिस्ट डॉक्टर सेकेंड फेज में और थर्ड फेज में 50 सुपर स्पेशलिस्ट डॉक्टरों की भर्ती होगी।
डॉ. अजय दानी, अधीक्षक, एम्स
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व्यवस्थापित ने फर्जी तरीके से हड़पे मकान
00- नागरिक संघर्ष समिति ने की शासन से शिकायत
रायपुर (निप्र)। छत्तीसगढ़ नागरिक संघर्ष समिति ने चंडीनगर, भगत नगर से सड्डू व्यवस्थापन क्षेत्र में कुछ लोगों द्वारा फर्जी तरीके से मकान हथियाने की शिकायत शासन से की है। समिति का आरोप है कि व्यवस्थापन के नाम पर लापरवाही बरती गई। एक मकान के बदले किसी-किसी को तीन-तीन मकान आवंटित कर दिए गए। मकान का आवंटन नगर निगम रायपुर के जोन क्रं.- 2 स्तर पर हुआ है, जिसमें जमकर भ्रष्टाचार की बात भी कही गई है। समिति ने इस पूरे मामले की निष्पक्ष जांच की मांग की है। समिति के जिला अध्यक्ष विश्वजीत मित्रा ने बताया कि आखिर कैसे संभव है कि एक परिवार को तीन-तीन मकान मिल जाएं। अधिकारियों ने आवंटन के पहले सत्यापन क्यों नहीं किया? उन्होंने इसकी शिकायत नगरीय प्रशासन एवं विकास विभाग के सचिव एमके राउत, संचालक नागरीय प्रशासन एवं विकास विभाग डॉ. रोहित यादव और आयुक्त नगर निगम तारण प्रकाश सिन्हा से लिखित में की है। इस योजना से उन हितग्राहियों का हक मारा गया, जिन्हें वास्तव में इसकी दरकार थी।

ये रही सूची, जिसमें बताया गया है कि किस-किस ने चंडीनगर, भगत नगर से सड्डू व्यवस्थापन के बाद फर्जी तरीके से मकान लिए।
दो से अधिक फॉर्म भरने वाले शख्स-
1- सुरेंद्र मारकंडे- एक मकान से दो मकान लिए, जिससे महेंद्र मारकंडे का नाम जुड़ गया।
2- मानदास ने भी अपने भाई का नाम जुडवाकर दो मकान हथियाए।
3- विजय डहरिया ने केसरी डहरिया और बड़े भाई का अतिरिक्त फॉर्म भरवा, एक ही जगह तीन मकान लिए।
4- भूगिया ने अपने दामाद का नाम जुड़वा दो मकान लिए।
5- दशोदा ने अपने लड़के का नाम जुड़वा दो मकान हथियाए।
6- माखन जिसका दामाद यहां रहता ही नहीं, उसके नाम से दो मकान लिए।
7- गोविंदा नामक व्यक्ति ने भी अपने भाई के नाम का आवेदन भर मकान हथिआया।
ब- किरायदारों ने फर्जी तरीके से फॉर्म भरकर की जालसाजी-
1- साबित्री लहरी, दिलीप लहरी किराएदार थे, लेकिन खुद को मकान मालिक बताकर सडड्डू में मकान लिया।
2- इंदल नाम के व्यक्ति ने भी मकान लिया।
स- तलाकशुदा बताकर फॉर्म भरने वाले व्यक्ति-
1- हेमलता साहू ने अपने पति से तलाक होना बताकर पति-पत्नी के नाम अलग-अलग मकान प्राप्त किया गया है। कुछ व्यक्ति ऐसे भी पाए गए, जो रहते ही नहीं थे, लेकिन दूसरे के मकान को स्वयं का मकान बताकर फार्म भरा और मकान के मालिक बन बैठे।

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बड़े गिरोह पकड़ से दूर, छोटे बाइक चोर धरे जा रहे
- शहर से 28 दिन में 25 गाड़ियां पार
- शहर में खड़ी बाइक को बना रहे निशाना
 राजधानी में लगातार गाड़ी चोरी की घटनाएं हो रही हैं। 28 दिन में शहर के विभिन्ना इलाकों से 25 गाड़ियां चोरी हो चुकी हैं, जिसमें बाइक, कार ऑटो शामिल हैं। इनमें बाइक की संख्या ज्यादा है। हर रोज औसतन 1 गाड़ी चोरी की शिकायत थाने पहुंच रही है। इसके बाद भी पुलिस किसी बड़े गिरोह को पकड़ नहीं सकी है। बाइक चुराने वाले छोटे चोर ही धरे जा रहे हैं। पुलिस अफसर खुद मान रहे है कि बाइक चोरी की घटना बढ़ी है।  
राजधानी में बाइक चोर गिरोह सक्रिय है, लेकिन पुलिस उन पर लगाम नहीं कस पा रही है। बाइक चोरी की शिकायतें थानों में होती हैं और उसका ख्ाुलासा करती है क्राइम ब्रांच। थानों की पुलिस मामलों के खुलासे के मामले में पीछे है। क्राइम ब्रांच के हाथ भी छोटे-मोटे चोर ही लग रहे हैं। आरोपियों से ऐसे मामले भी खुल रहे हैं, जिनकी थानों में शिकायत ही नहीं हुई है।
एक कंपनी की बाइक पर निशाना
हीरो कंपनी की बाइक की चोरी की शिकायत ज्यादा आ रही है। इससे माना जा रहा है कि चोर गिरोह एक ही कंपनी की बाइक को ज्यादा निशाना बना रहे हैं। जानकारों का कहना है कि हीरो बाइक का इंजन अन्य मशीन चलाने, विभिन्ना प्रकार के पंप चलाने का काम आता है। इसका उपयोग बैलगाड़ी व अन्य गाड़ियों में भी किया जाता है।
दूसरे राज्यों में खप रहीं गाड़ियां
पुलिस अफसर मानते हैं कि यहां से गाड़ियों को चुराकर दूसरे प्रदेशों में खपाया जाता है। चोरी की ज्यादातर गाड़ियां ओडिशा में खपती हैं, दूसरे नंबर पर बिहार में। इन राज्यों के अंदस्र्नी इलाके में चोरी की बाइक को 10 से 15 हजार स्र्पए में बेच दिया जाता है। क्राइम ब्रांच ने पिछले साल ओडिशा के एक गिरोह का पर्दाफाश किया था, जो राजधानी से बाइक चोरी कर ओडिशा के शो रूम में खपाता था।
नक्सली क्षेत्रों में सप्लाई
पुलिस की मानें तो चोरी की बाइक बड़ी संख्या में नक्सली और आदिवासी इलाकों में बेच दी जाती है। इन इलाकों में पुलिस नहीं पहुंच पाती, जिसका फायदा अपराधी उठाते हैं। खरीदने वाले भी बाइक का नम्बर बदले बिना चलाते हैं।
कट जाती हैं बड़ी गाड़ियां
चोरी की बड़ी गाड़ियों को काटकर बेचा जाता है। पुलिस ने शुक्रवार को कबाड़ी दुकानों में छापामार कार्रवाई की तो यार्ड में ट्रक व अन्य बड़े वाहनों के कटे हिस्से और पार्ट्स मिले। जानकारों की मानें तो बड़े वाहनों को काटकर उसके पार्ट्स तुरंत बाहर भेज दिए जाते हैं।
चल रही कार्रवाई
शहर में गाड़ी चोरी की घटना बढ़ी है, उसी के मद्देनजर कबाड़ी दुकानों में छापा मारा गया। गाड़ी चोरों की तलाश की जा रही है। इसमें लोकल के साथ बाहरी गिरोह का भी हाथ हो सकता है। - डॉ. लाल उमेद सिंह, सिटी एएसपी
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जेल ब्रेक की नक्सली साजिश तो नहीं?
00- दंतेवाड़ा जेल ब्रेक साल 2007- 299 कैदी हो गए थे फरार
00- नारायणपुर सब जेल में भी हो चुकी है कोशिश
केंद्रीय जेल रायपुर में करीब 60 नक्सली बंद हैं। इनमें हार्डकोर, इनामी और बड़ी घटनाओं के मास्टरमाइंड शामिल हैं। कुछ को सुरक्षा के मद्देनजर दूसरी जेलों से यहां शिफ्ट किया गया है। जेल की बाहरी सुरक्षा छत्तीसगढ़ आर्म फोर्स (सीएएफ) के हवाले तो आंतरिक सुरक्षा जेल प्रहरी के जिम्मे है। जेल प्रहरियों की संख्या कैदियों, बंदियों की संख्या के अनुपात में कम है। जेल की दीवार में सेंध लगाने से सवाल उठ रहा है कि आखिर दो सुराख किसने, कैसे और क्यों किए? यह नक्सलियों की जेल ब्रेक की साजिश तो नहीं थी? सुराख का आकार बताता है कि इसे एक दिन में नहीं किया गया है। भले ही जेल प्रशासन के अफसर बयान से मामले को ढंकने की कोशिश कर रहे हों, पर इस घटना ने अफसरों के होश उड़ा दिए हैं।
 16 दिसंबर 2007 को दंतेवाड़ा जेल ब्रेक कर 110 नक्सलियों समेत कुल 299 कैदी फरार हो गए थे। हालांकि तब दंतेवाड़ा जेल में कोई सुराख नहीं किया था। घटना को हथियार की नोक पर अंजाम दिया गया था। इसके बाद नारायणपुर जेल ब्रेक करने की कोशिश भी की गई थी। रायपुर सेंट्रल जेल में हुए दो सुराख के मामले में 'नईदुनिया" को जेल अफसरों ने बताया कि जिस जगह दीवार में दो होल पाए गए हैं, वह महिला जेल के पीछे की बाउंड्रीवाल है। इसकी दूरी वॉच टॉवर से करीब 40 फीट है। इसकी शिकायत शनिवार की सुबह 9 बजे देवेंद्रनगर थाने में सीएएफ की 13वीं बटालियन के आरक्षक राजेश सिंह ने की। उसके बाद पुलिस ने बाहर से उक्त स्थल का मुआयना किया। मामले में अब तक किसी भी कैदी से पूछताछ नहीं की गई है। मिली जानकारी के मुताबिक महिला जेल में मालती, केएस शांति प्रिया रेड्डी जैसी हार्डकोर नक्सली बंद हैं। शांति प्रिया पूर्व नक्सली प्रवक्ता गुडसा उसेंडी की पत्नी है। आशंका है कि शांति प्रिया के साथ-साथ मालती को जेल से भगाने की यह योजना हो सकती है। करीब 3 साल पहले इसी जगह से अमेरिकन बाई नामक एक महिला ने दीवार लांघ दी थी, लेकिन कूदने से वह जख्मी हो गई और भाग न सकी। यानी महिला जेल की तरफ वाली यह दीवार सिंगल है, अन्य जगहों पर दोहरी दीवार है। इस घटना की खबर जब मीडिया को लगी तो अफसर सवालों के जवाब देने की स्थिति में नहीं थे। मीडिया को मौके पर जाने से रोका भी जा रहा था। मीडिया कर्मियों के पहुंचते तक दीवार के गड्ढों को भरने का काम शुरू हो चुका था।
रेकी भी हुई
जमीन से होल की उंचाई (जेल के बाहर की ओर) करीब 5-6 फीट है। यानी जेल के अंदर यह उंचाई एक से डेढ़ फीट कम होगी। दीवार की मोटाई 15 इंच के आसपास है, जबकि एक होल 3 इंच चौड़ा 8 इंच गहरा है और दूसरा ढाई इंच चौड़ा और 4 इंच गहरा है। एसएफएसएल की रिपोर्ट के मुताबिक होल करने के लिए लोहे के किसी हथियार का इस्तेमाल किया गया होगा। इस काम को करने के लिए रेकी भी की गई थी। खास बात यह है कि जिस जगह को होल करने के लिए चुना गया, वह अमूमन सुनसान रहती है। यहां पर घटना के पहले तक लाइट भी नहीं थी। रात के समय अंधेरे में यह कोशिश की जा रही थी, अफसर भी इस बात से इत्तेफाक रखते हैं। होल करने वाले ने यह भी ध्यान रखा कि किस समय पेट्रोलिंग पार्टी आराम करती है। जेल का पूरा एक चक्कर एक किलोमीटर के करीब है। सीएएफ की दो टीमें पैदल गस्त करती हैं, जिन्हें एक क्षेत्र का एक चक्कर लगाने में ही लंबा वक्त लगता है।
घटना के बाद जागा प्रशासन
 जेल में सुराख की सूचना के बाद आनन-फानन में जेल प्रशासन ने जेल के चारों तरफ साफ-सफाई करवानी शुरू कर दी। नगर निगम का अमला क्रेन और बुलडोजर के साथ मौके पर पहुंच गया। खंभों में लगी फ्यूज लाइटें बदली गईं, कैमरे की दिशा भी बदली गई और कुछ नए कैमरे भी लगाए गए। चौकसी के लिए सीएएफ के जवानों को मुस्तैदी के निर्देश दिए गए, लेकिन यह सबकुछ किया गया, इस घटना के बाद। रात में गश्त बढ़ाने का निर्णय भी लिया गया है। पंडरी बस स्टैंड वाले हिस्से को नुकीले तारों से घेरा जाएगा। वॉच टॉवर पर हाई मास्ट लाइट लगाए जाएगी।
कहां से कितनी दूर जेल-
केंद्रीय जेल के सबसे नजदीक डॉ. भीमराव अंबेडकर अस्पताल है, दूरी 50मीटर। जेल के पीछे बस स्टैंड की दूरी भी लगभग 50 मीटर है। जबकि देवेंद्र नगर थाना 3 किमी, गंज थाना 1किमी, देवेंद्र नगर ऑफिसर कॉलोनी 500मी, पंडरी आरटीओ कार्यालय 50मीटर, पुलिस मुख्यालय की दूरी करीब 3किमी है।
कमजोर हो रही है जेल की दीवार
रायपुर केंद्रीय जेल 135 साल पहले जेल ब्रिटिश शासनकाल में बनाई गई थी। 700 मीटर की परिधि वाली केंद्रीय जेल की सुरक्षा कई मायनों में शासन-प्रशासन के लिए बड़ी चुनौती है, क्योंकि यहां खूंखार बंदियों के अलावा बड़ी संख्या में नक्सली, हार्डकोर नक्सली भी बंद हैं। कुछ साल पहले ही जेल की बाउंड्रीवॉल की ऊंचाई करीब 2 मीटर बढ़ाई गई थी, जो वर्तमान में 15-16 मीटर के करीब है। जेल प्रशासन ने बाउंड्रीवॉल की ऊंचाई सुरक्षा की दृष्टि से और बढ़ाने का निर्णय लेने के बाद प्रस्ताव तैयार किया है। 8 करोड़ रुपए इसमें खर्च होगा। सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक जेल के कुछ हिस्सों में दो बाउंड्रीवॉल हैं और कुछ हिस्से में सिंगल। जहां एक ही बाउंड्रीवाल है, वह दीवार समय के साथ कमजोर हो रही है, जेल प्रशासन भी यह स्वीकार करता है। इसलिए यह प्रस्ताव तैयार किया गया है। जानकारी के मुताबिक वर्तमान बाउंड्रीवॉल से 3-4 मीटर यानी 10 फीट की दूरी पर एक नई बाउंड्रीवॉल बनाई जाएगी, जिसकी ऊंचाई होगी 7 मीटर यानी 21 फीट, जो वर्तमान बाउंड्रीवॉल से 6 मीटर अधिक होगी।
अफवाह है
सुराख से साफ है कि गतिविधियां जेल के बाहर से हो रहीं थीं। मामला पुलिस को सौंप दिया गया है, वह जांच कर रही है। इसलिए वर्तमान में कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी। लेकिन सूचना मिलते ही सुरक्षा व्यवस्था बढ़ा दी गई है। जेल ब्रेक की बात अफवाह है।
डॉ. केके गुप्ता, जेल अधीक्षक रायपुर केंद्रीय जेल

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जेल की दीवार में दो सुराख
00- एफएसएल ने की पुष्टि, मार्किंग कर किया जा रहा था सुराख
00- महिला जेल की तरफ से संेधमारी की थी तैयारी
00- हार्डकोर महिला नक्सलियों से जोड़ा जा रहा मामला
अति संवेदशील मानी जाने वाली रायपुर केंद्रीय जेल में शनिवार को उस समय हड़ंकप मच गया, जब दीवार में दो बड़े सुराख होने का पता चला। महिला जेल की तरफ पेट्रोलिंग के दौरान सीएएफ के जवानों ने दीवार का कुछ हिस्सा टूटा देखा। उन्होंने तत्काल इसकी सूचना कंपनी कमांडर को दी, फिर कंपनी कमांडर ने जेल प्रशासन को। मामले को हार्डकोर महिला नक्सलियों से जोड़कर देखा जा रहा है।
तत्काल मौके पर पहुंचे जेल अधीक्षक डॉ. केके गुप्ता ने देवेंद्र नगर थाना पुलिस को घटना की जानकारी दी। देखते ही देखते जेल, पुलिस और स्टेट फॉरेंसिक साइंस लेबोरेट्री (एसएफएसएल) की जांच टीमें मौके पर पहुंच गईं। एसएफएसएल की प्रारंभिक रिपोर्ट के अनुसार सुराख मार्किंग कर बनाए जा रहे थे। यह एक-दो दिन का काम नहीं, बल्कि सप्ताहभर से अधिक समय से प्री-प्लान के तहत किए जा रहे थे। सुराखों की लंबाई 8 इंच और चौड़ाई 4 इंच के करीब है। जेल डीजी ने इस मामले की जांच के निर्देश एसपी जेल को दिए हैं। यह पहला मौका है जब जेल में सुराख करने की कोशिश की गई है।
 महिला जेल में हार्डकोर नक्सली मालती उर्फ मीना चौधरी, केएस शांति प्रिया रेड्डी बंद हैं। इन दोनों के मामले में 9 जुलाई को जिलाकोर्ट का फैसला आने वाला है। जेल में सुराख के मामले की जांच में पुलिस ने इस बिंदु को भी शामिल किया है। डीजी जेल भी इस बात इंकार नहीं कर रहे हैं कि यह साजिश है।
बढ़ा दी गई है सुरक्षा
 शनिवार की सुबह इस घटना के बाद से जेल में सुरक्षा बढ़ा दी गई है। दिनभर जेल के चारों तरफ निगम का अमला सफाई व्यवस्था में लगा रहा। झाड़ियां काट दी गईं। जेल के चारों तरफ बंद पड़ी लाइट की रिपेयरिंग की गई। पेट्रोलिंग के लिए जवानों की संख्या बढ़ा दी गई है। जेल प्रशासन जल्द ही चारों तरफ फेंसिंग लगाने की तैयारी में है।
साजिश से इंकार नहीं
मैं साजिश से इंकार नहीं करता। मामला गंभीर है, एसएफएसएल की रिपोर्ट में भी पुष्टि हो गई है कि सुराख करने के लिए लोहे का इस्तेमाल किया गया है। एसपी रायपुर को जांच के लिए लिखा है।
गिरधारी नायक, डीजी जेल
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फायर अमले के भरोसे बाढ़ नियंत्रण प्रकोष्ठ
0 नोडल अधिकारियों की नहीं लगती हाजिरी
0 कंट्रोल रूम में नियमित रूप से नहीं बैठते कर्मचारी
रायपुर(निप्र)। नगर निगम का बाढ़ नियंत्रण प्रकोष्ठ फायर अमले के भरोसे चल रहा है। जब से प्रकोष्ठ अस्तित्व में आया है, तब से तीनों नोडल अधिकारियों की कंट्रोल रूम में नियमित रूप से हाजिरी नहीं लग रही है, वहीं अन्य कर्मचारियों का भी यही हाल है। इस तरह फायर अमले के कंधे पर दोहरी जिम्मेदारी आ गई है।
नगर निगम के कर्मशाला में एक जून से बाढ़ नियंत्रण प्रकोष्ठ बनाए जाने की घोषणा आयुक्त तारण प्रकाश सिन्हा ने की थी। प्रकोष्ठ के संचालन के लिए आठ-आठ घंटे की तीन पाली में ड्यूटी करने के लिए नोडल अधिकारी बनाए गए थे। बाढ़ नियंत्रण प्रकोष्ठ फायर ब्रिगेड के कार्यालय से ही चल रहा है। उसका हेल्प लाइन नम्बर भी फायर ब्रिगेड का है। इसी का फायदा बाढ़ नियंत्रण प्रकोष्ठ के लिए नियुक्त अधिकारी और कर्मचारी उठा रहे हैं। क्योंकि, फायर ब्रिगेड के कंट्रोल रूम में चौबीस घंटे कर्मचारी मौजूद रहते हैं, इस कारण प्रकोष्ठ के लोग गायब रहते हैं। ऐसी स्थिति में फायर ब्रिगेड के कर्मचारी को ही आम लोगों की शिकायत दर्ज करनी पड़ती है। फिर, फायर ब्रिगेड के कर्मचारी ही बाढ़ नियंत्रण प्रकोष्ठ के अमले तक शिकायत पहुंचाते हैं।
कभी-कभार आते हैं साहब लोग
नईदुनिया ने बाढ़ नियंत्रण प्रकोष्ठ की व्यवस्था जानने के लिए रविवार को अलग-अलग समय पर तीन-चार कॉल किए। हर बार फायर ब्रिगेड के कर्मचारियों ने ही कॉल रिसीव किया। उनसे पता चला कि बाढ़ नियंत्रण प्रकोष्ठ को कोई भी अधिकारी या कर्मचारी उपस्थित नहीं है। नोडल अधिकारियों के बारे में पूछा गया तो मालूम हुआ कि साहब लोगों का पिछले एक माह में दो-तीन बार ही आना हुआ है।
कंट्रोल रूम में व्यवस्था नहीं
कर्मचारियों से पता चला है कि बाढ़ नियंत्रण प्रकोष्ठ के लिए बनाए गए कंट्रोल रूम में संसाधनों की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है। केवल दो मोटर पंप हैं। इसके अलावा रेत की बोरियां पड़ी हैं। कर्मचारियों ने बताया कि राहत कार्य के लिए आवश्यक संसाधन जोन कार्यालयों में हैं।
तीन पाली में ड्यूटी
- सुबह 6 से दोपहर 2 बजे तक कार्यपालन अभियंता एमएमएन ठाकुर
- दोपहर 2 बजे से रात 10 बजे तक कार्यपालन अभियंता मनोज सिंह ठाकुर
- रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक प्रभारी अधीक्षक अभियंता भागीरथ वर्मा
बाढ़ प्रभावित 298 बस्ती
जोन-बस्ती संख्या
1-46
2-44
3-43
4-28
5-39
6-41
7-18
8-38
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कहीं कोरा दस्तावेज बनकर न रह जाए सत्यनिष्ठा संधि

राज्य में सत्यनिष्ठा संधि को लेकर बहस छिड़ गई है। एक बड़ा वर्ग यह मानने को तैयार ही नहीं कि है कि संधि करने से सिस्टम में कोई सुधार होने वाला है। लोगों की राय में जब तक संधि के बाद पूरे कार्य के दौरान स्वतंत्र मॉनिटरिंग की प्रक्रिया तय नहीं की जाती, इस संधि का कोई अर्थ नहीं होगा।  हस्ताक्षरित दस्तावेज केवल एक मजाक बनकर रह जाएगा। वहीं कुछ लोगों की राय यह है कि इससे ठेकेदार या सप्लायर के साथ संधि करने वाले अफसरांे पर नैतिक दबाव बनेगा, जिसके दूरगामी परिणाम आएंगे।
रायपुर(ब्यूरो)। सरकारी खरीदी-बिक्री, नीलामी व निर्माण कार्यों के ठेकों में भ्रष्टाचार पर रोक लगाने के उद्देश्य से राज्य सरकार ने अपने सभी विभागों, अधीनस्थ कार्यालयों, निगम-मंडलों, निकायों, स्वायत्तशासी संस्थाओं और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में सभी प्रोक्योरमेंट, निर्माण कार्यों की निविदा व सरकारी नीलामी-विक्रय संबंधी अनुबंध में सत्यनिष्ठा संधि की व्यवस्था लागू करेगी। सरकार मान रही है कि इस व्यवस्था को लागू कर छत्तीसगढ़ में प्रशासकीय सुधार व सुशासन स्थापित हो सकेगा। शनिवार को इस मसले पर प्रबुद्ध लोगों मंे खासी बहस छिड़ गई है। बड़े वर्ग का मानना है कि व्यवस्था को दुस्र्स्त किए बिना सत्यनिष्ठा संधि का कोई अर्थ नहीं हैै। अधिकांश लोगों की राय में सरकारी दफ्तर के भ्रष्टाचार का अड्डे हैं। लेन-देन की प्रक्रिया चपरासी से शुरू होती है और दफ्तर के सबसे बड़े अफसर तक जाकर खत्म होती है। दफ्तर में काम कराने जाने वालों को कई स्तर पर रिश्वत देनी पड़ती है। खासतौर पर जब मामला ठेकेदारी या सामान सप्लाई करने का हो तो हर स्तर पर दफ्तर के लोग ठेकदार या सप्लायर से उम्मीद रखते हैं। बगैर लेन-देन के एक टेबल से दूसरे टेबल तक फाइल नहीं सरकती। ऐसे में लिखकर संधि भी कर ली जाए तो भी सालों से चली आ रही यह व्यवस्था सुधरने वाली नहीं है।
मॉनिटरिंग के बगैर औचित्यहीन
अधिकांश लोगों की राय में मॉनिटरिंग की मजबूत व्यवस्था किए बगैर इसे कानून का जामा पहनाया गया तो वह औचित्यहीन होगा। अलग-अलग संस्थानों या विभागों में होने वाले कार्यों के लिए मॉनिटरिंग का लेवल तय होना जरूरी है। संधि करने के बाद दोनों पक्षों की निगरानी जरूरी है। जानकारों की नजर में निगम, मंडल आयोग और विभागों में होने वाले निर्माण कार्यों में ठेकेदार और इंजीनियरों का जबरदस्त गठजोड़ होता है। बाकी को देना उन्हें तकलीफ दे सकता है, लेकिन इंजीनियर को देने में ठेकेदार भी पीछे नहीं हटते। ऐसे गठजोड़ का तोड़ कैसे निकाला जा सकता है, इस पर भी सरकार को चिंतन करना होगा।
पारदर्शिता के नाम पर ढोंग न हो
जानकारों के एक बड़े वर्ग का मानना है कि पारदर्शिता के नाम पर सरकारी दफ्तरों में ढांेग होता है। ज्यादातर चालाक लोग पारदर्शिता के नाम पर तथ्यों और जानकारियों का जाल जनता के सामने पेश करते हैं, लेकिन अंदर से काम उसी तरह से होता है। ऐसे प्रयोग से बचकर बेइमानी करने वालों को कानून का रास्ता दिखाना होगा।
राजनीतिक संरक्षण से निपटना जरूरी
सरकारी संस्थानों में ठेका या सप्लाई का काम करने वाले अधिकांश ठेकेदार किसी न किसी स्थानीय नेता या मंत्री से जुड़े होते हैं। ऐसे लोगों से लेन-देन करने से विभाग के अफसर कर्मचारियों को रोका जा सकेगा, लेकिन उच्च स्तर पर हो रहे भ्रष्टाचार पर अंकुश नहीं लग पाएगा। इस पर अंकुश लगाने का उपाय क्या जनप्रतिनिधि या मंत्री कर पाएंगे ?
- यह प्रावधान केवल एक दिखावा है और आम जनता को गुमराह करने का प्रयास है। सत्यनिष्ठा संधि करने वाले और उसका पालन कराने की जिम्मेदारी जिन पर होगी, वे भी पहले से भ्रष्टाचार में डूबे हुए लोग होंगे। ऐसे में इस प्रावधान का कोई फायदा होने वाला नहीं है।
- बीकेएस रे, सेवानिवृत्त अपर मुख्य सचिव
 छत्तीसगढ़ देश का अग्रगामी राज्य है, जिसने इस नई व्यवस्था को लागू करने का प्रयास किया है। सत्यनिष्ठा संधि लागू करने से निश्चित तौर पर ठेकेदार और अफसरों पर नैतिक दबाव पड़ेगा। संधि के बाद कुछ लोग निगरानी के लिए नियुक्त किए जाएंगे, निगरानी का अच्छा परिणाम सामने आने की उम्मीद है।
सुशील त्रिवेदी, पूर्व राज्य निर्वाचन आयुक्त

 राजनीति भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा अड्डा बन गई है। ठेकेदार और इंजीनियरों के बीच एग्रीमेंट करने से कुछ नहीं होगा। इन लोगों से हलफनामा भी ले लिया जाए तब भी सुधार होने की गुंजाइश नहीं है, क्योंकि भ्रष्टाचार की शुस्र्आत जिस पायदान से होती है, उन्हीं लोगों द्वारा नियम बनाए जा रहे हैं।
 राकेश चौबे, आरटीआई एक्टिविस्ट
- सत्यनिष्ठा संधि को लेकर अभी तक जो बातें प्रकाशित हुई हैं, उसमें मॉनिटरिंग, सुपरविजन या कंप्लायंस अथॉरिटी नजर नहीं आ रही है। ये नजर नहीं आने के कारण इसका क्रियान्वयन हो पाएगा, इसमें शंका है। यह भी आशंका है कि ऐसे हालात में सत्यनिष्ठा संधि केवल डॉक्यूमेंट बनकर रह जाएगी।
प्रतीक पांडेय, आरटीआई एक्टिविस्ट
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नेटवर्क के जरिए नक्सलियों से लोहा लेने की रणनीति
0 नक्सल प्रभावित इलाकों में लगेंगे 146 मोबाइल टॉवर
आंतरिक सुरक्षा के लिए घातक बन गए लाल आतंकियों के खात्मे के लिए केंद्र व राज्य सरकार ने संचार सेवाओं में विस्तार का निर्णय लिया है। छत्तीसगढ़ समेत अन्य नक्सल प्रभावित राज्यों में मोबाइल नेटवर्क के जरिए माओवादियों से निपटा जाएगा। टॉवर लगाने अकेले छत्तीसगढ़ में 500 जगहों को चिन्हित किया गया है और करीब 300 टॉवर खड़े हो चुके हैं। छत्तीसगढ़ सरकार ने भी तीन माह में 146 मोबाइल टॉवर स्थापित करने का लक्ष्य निर्धारित किया है।  नक्सलियों से निपटने की रणनीति के तहत केंद्र सरकार ने छत्तीसगढ़ समेत नौ नक्सल प्रभावित राज्यों में 2200 मोबाइल टॉवर लगाने की योजना बनाई है।  ये टावर उन इलाकों में लगाए जाएंगे जो अभी तक किसी भी तरह के मोबाइल नेटवर्क में नहीं आते। सूत्रों के मुताबिक यह परियोजना सुरक्षा बलों के लिए काफी उपयोगी साबित होगी। अक्सर यह देखा जाता है कि नक्सली एक जगह वारदात करके दूसरी जगह भाग जाते हैं। ऐसे में उन्हें खोजने व उनका लोकेशन पता करने में काफी दिक्कत होती है। दुर्गम नक्सल प्रभावित इलाकों में पड़ने वाले ज्यादातर गांवों में मोबाइल सेवा नहीं है। सूत्रों का कहना है कि नवंबर 2011 में शीर्ष माओवादी नेता किशनजी को एक मुठभेड़ में मार गिराने में मोबाइल फोन के जरिए हुई निगरानी ने अहम भूमिका निभाई थी। छत्तीसगढ़ सरकार ने भी माना है कि मोबाइल नेटवर्क के जरिए माओवादियों पर लगाम लगाया जा सकता है। इसके मद्देनजर पिछले दिनों मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की अध्यक्षता में हुई यूनिफाइड कमांड की बैठक में नक्सल प्रभावित इलाकों में 146 मोबाइल टॉवर लगाने का निर्णय लिया गया । इसके लिए तीन महीने का समय निर्धारित किया गया है।
जम्मू- कश्मीर में हुआ था कुशल इस्तेमाल
 जम्मू-कश्मीर ने आतंकियों से निपटने में मोबाइल नेटवर्क का कुशलता से इस्तेमाल किया गया था। 2003 में जब केंद्र ने इस राज्य में मोबाइल फोन सेवा शुरू करने का फैसला किया था तो सुरक्षा बलों और खुफिया एजेंसियों ने इसका काफी विरोध किया था। उन्होंने चेतावनी दी थी कि मोबाइल फोन से आतंकियों को फायदा होगा। वे इसका इस्तेमाल बम धमाकों और आतंकी हमलों के बेहतर समन्वय के लिए करेंगे।  ऐसा हुआ भी, मोबाइल सेवा का इस्तेमाल करके आतंकियों ने कई हमले किए, लेकिन जल्द ही यह रणनीति उल्टे उन पर भारी पड़ने लगी। आतंकियों के मोबाइल सिग्नल और उनकी आपसी बातचीत रिकॉर्ड करके सुरक्षा बलों ने ज्यादातर आतंकियों का सफाया कर दिया।
  टॉवर को निशाना बनाते हैं नक्सली
नक्सलियों को मोबाइल टॉवर से खतरे का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि वे टॉवर को निशाना बनाते हैं।  आंकड़ों के मुताबिक  2008 में नक्सलियों ने 38 टावर उड़ाए थे , जबकि 2011 में यह संख्या 71 हो गई। पिछले दिनों जगदलपुर में बीएसएनएल के सब स्टेशन को उड़ाने का आरोप भी नक्सलियों पर है।
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छत्तीसगढ़ पुलिस तो इस्तेमाल करेगी
 0 एंबुस में फंसने पर कारगार है एमपीवी
0 सीआरपीएफ ने उपयोग बंद किया
केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) ने नक्सल प्रभावित  इलाकों में इस्तेमाल किए जाने वाले माइन प्रोटेक्टेड व्हीकल (एमपीवी) का उपयोग भले ही बंद कर दिया है, लेकिन छत्तीसगढ़ पुलिस नक्सल मोर्चे पर इस व्हीकल का उपयोग करेगी । छत्तीसगढ़ पुलिस का स्पष्ट मानना है कि एंबुस में फंसने पर एमपीवी कारगार साबित होती है। इससे जवानों को जान बचाने व फायरिंग का मौका मिल जाता है।
उल्लेखनीय है सीआरपीएफ के प्रमुख सहाय ने नक्सल प्रभावित राज्यों में तैनात करीब 50 बख्तरबंद वाहनों को वापस बुला लिया है। साथ ही इन वाहनों के उपयोग पर प्रतिबंध का आदेश जारी किया है। इसके पीछे श्री सहाय ने तर्क दिया है कि आईईडी ब्लास्ट या फिर छिपे हुए लैंडमाइंस विस्फोट में ये वाहन कारगार नहीं हैं। दूसरी ओर छत्तीसगढ़ पुलिस के एक वरिष्ठ अफसर ने नाम नहीं छापने के आग्रह पर बताया कि बख्तरबंद वाहन एंबुस में फंसने के दौरान जवानों की जान बचाने में काफी मददगार साबित होते हैं। जवानों को फायरिंग का मौका मिल जाता है। पिछले दिनों नेरली घाटी में युवक कांग्रेस नेताओं के काफिले पर हुए नक्सली हमले में बख्तरबंद वाहन की महत्वपूर्ण भूमिका रही थी। नक्सलियों ने बख्तरबंद वाहन को ब्लास्ट किया था, जिससे वाहन उछलकर वहीं जस का तस खड़ा हो गया। इससे वाहन में सवार और उनके पीछे चल जवानों को संभलने का मौका मिल गया। मोर्चा संभालते हुए जवानों ने जवाबी कार्रवाई की और नक्सलियों को भागने पर मजबूर कर दिया। इस अधिकारी का यहां तक कहना है कि 25 मई को झीरम घाटी में कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा में नक्सली हमला के दौरान बख्तरबंद गाड़ी पहुंच जाती तो, जवाबी फायरिंग की जा सकती थी। वाहनों की उपयोगिता को देखते हुए छत्तीसगढ़ पुलिस ने पिछले दिनों मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की अध्यक्षता में हुई यूनिफाइट कमांड की बैठक में 24 वाहनों की मांग की थी। इतना ही नहीं पुलिस अधिकारियों ने चुनाव के पहले 12 और वाहनों पर जोर दिया है।
असमंजस की स्थिति
एमपीवी वाहनों की उपयोगिता को लेकर सीआरपीएफ और छत्तीसगढ़ पुलिस की अपनी-अपनी सोच है। ऐसे में असमंजस इस बात को लेकर है कि छत्तीसगढ़ पुलिस नीतिगत तौर पर इन वाहनों के इस्तेमाल को जरूरी मानती है। काल्पनिक स्थिति के तौर पर अगर सीआरपीएफ के जवानों को किसी नक्सली मोर्चे पर इन वाहनों में भेजना हो तो क्या होगा? क्या सीआरपीएफ के जवान एसपी के निर्देशों का पालन करेंगे, जिनके नेतृत्व में वे काम करते हैं या फिर अपनी नीति पर चलेंगे?
फैक्ट फाइल
0 राज्य में तैनात सीआरपीएफ की 25 बटालियन।
0 नक्सल मोर्चे पर तैनात 24 माइन प्रोटेक्टेड व्हीकल।
0 24 माइन प्रोटेक्टेड व्हीकल की जरूरत।
0 12 व्हीकल चुनाव के पहले जरूरी।
'' एंबुस में फंसने और फायरिंग के दौरान एमपीवी की आवश्यकता रहेगी।""
आरके विज, एडीजी नक्सल ऑपरेशन
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कुख्यात बालकृष्ण पर पुलिस मेहरबान
0 बलात्कार के दो मामले समेत 48 प्रकरण पेंडिंग
0 समिति के 15 करोड़ स्र्पए के गबन का आरोप
बलात्कार के दो और 15 करोड़ के गबन समेत 48 मामलों के आरोपी बालकृष्ण अग्रवाल पर पुलिस मेहरबान है। दो-ढाई साल से वह और उसकी पत्नी फरार हैं। पुलिस उन्हें अब तक नहीं ढूंढ़ पाई है। विशेष अनुसंधान की टीम एक-दो बार ही बालकृष्ण की तलाश में बाहर भेजी गई। इसके अलावा पुलिस की तरफ से और कोई ठोस प्रयास नहीं हुआ है।
बालकृष्ण तो फरार है, लेकिन खबर यह है कि उसके परिवार और करीब लोग आज भी अग्रोहा सोसाइटी की जमीन बेचने के लिए ग्राहकों की तलाश में लगे रहते हैं। पुलिस को भी इस बात की जानकारी है। एक नाम तो संतोष अग्रवाल का आ रहा है, जो कि सोसाइटी की जमीन में फर्जीवाड़ा करने के मामले में खुद आरोपी है। आशंका यह है कि अंडरग्राउंड रहते हुए बालकृष्ण ही जमीन का कारोबार कर रहा है। पुलिस अधिकारियों का तर्क है कि सुप्रीम कोर्ट ने बालकृष्ण की गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी। इस कारण उसकी गिरफ्तारी के प्रयास नहीं किए जा सके, लेकिन पुलिस गिरफ्तार तो तब करती, जब बालकृष्ण के ठिकाने का पता होता। पुलिस अधिकारियों का ही कहना है कि गिरफ्तारी पर रोक सभी प्रकरणों पर नहीं लगी थी। ऐसी स्थिति में पुलिस बालकृष्ण को उन प्रकरणों में गिरफ्तार कर सकती थी, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक नहीं लगाई थी। इस तरह पुलिस ने बालकृष्ण की गिरफ्तारी को लेकर दिलचस्पी ही नहीं दिखाई।
समिति के करोड़ों डकार गए
विशेष अनुसंधान सेल बालकृष्ण के अलावा उसकी पत्नी नीलम अग्रवाल, भाई संतोष अग्रवाल व एक अन्य के खिलाफ करोड़ों स्र्पए के गबन के मामले में जांच कर रही है। सुरेश अग्रवाल ने चार अक्टूबर, 2011 को डीडीनगर थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई थी। मई, 2000 से 2006 के बीच अग्रोहा गृह निर्माण सहकारी समिति की अध्यक्ष रहते हुए नीलम और संतोष, प्रबंधक रहते हुए बालकृष्ण और कृष्ण कुमार गहरे ने जमीन के मामले में फर्जीवाड़ा किया। एक ही प्लॉट को दो-तीन लोगों को बेच दिया। ऐसे 50 प्लॉट में गड़बड़ी की। 350 प्लॉट में मूलभूत सुविधा उपलब्ध कराने का झांसा देकर खरीदारों से 72-72 सौ स्र्पए ले लिए। इस राशि को समिति के खाते में जमा नहीं किया। इस तरह कुल 15 करोड़ स्र्पए बंटोरकर चारों लोग फरार हो गए थे। पुलिस अधिकारियों के अनुसार संतोष की गिरफ्तारी हुई थी। अब वह जमानत पर है।
बलात्कार की दो शिकायतें
- एक साल पहले बालकृष्ण के नौकर की पत्नी ने नागपुर के एक थाने में बलात्कार की रिपोर्ट दर्ज कराई थी। नौकर और उसकी पत्नी को रहने के लिए बालकृष्ण ने अपने घर का सर्वेंट क्वॉर्टर दे रखा था। नौकर के काम पर जाने के बाद उसकी पत्नी को धमकाकर बालकृष्ण ने बलात्कार किया था। मौका पाकर पति-पत्नी नागपुर भाग गए थे। नागपुर से केस डायरी सरस्वतीनगर पुलिस को मिली थी।
- रामकंुड की एक युवती ने तीन माह पहले तेलीबांधा थाने में रिपोर्ट लिखाई है कि जब वह नाबालिग थी, तब बालकृष्ण ने उसे खरीदा था। युवती को वह चिदम्बरा होटल में बंधक बनाकर रखता था। वह और उसका भजीता रजनीश अग्रवाल युवती से बलात्कार करते थे।
सुप्रीम कोर्ट से रोक हटी
पुलिस अधिकारियों के मुताबिक बालकृष्ण ने सुप्रीम कोर्ट में इंट्रिम लगा रखा था। इस कारण कोर्ट ने उसकी गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी। अधिकारियों का कहना है कि इसी कारण पुलिस बालकृष्ण की गिरफ्तारी के लिए प्रयास नहीं कर रही थी। लगभग 20 दिन पहले ही कोर्ट ने बालकृष्ण की गिरफ्तारी से रोक हटा दी गई है, लेकिन अधिकारियों का कहना है कि अब तक सुप्रीम कोर्ट से कागजात नहीं मिले हैं। कागजात मिलने के बाद बालकृष्ण की गिरफ्तारी के प्रयास शुरू किए जाएंगे।
प्रशासन-पुलिस पर किसका दबाव?
बलात्कार पीड़ित एक युवती ने तेलीबांधा पुलिस और कलेक्टर जनदर्शन में सरेआम बताया है कि बालकृष्ण का भतीजा रजनीश पंजाब के ग्राम फाजिलका में है। उसके बाद भी रजनीश या बालकृष्ण का पता लगाने के लिए टीम फाजिलका नहीं भेजी गई। बालकृष्ण की राजनीतिक पहुंच भी रही है। इस कारण प्रशासन और पुलिस के रवैये पर कई तरह के सवाल उठ रहे हैं।
वर्सन--
बालकृष्ण की गिरफ्तारी पर रोक सभी प्रकरणों पर नहीं लगी थी। उसे तलाश कर गिरफ्तार किया जाएगा। अधिकारियों को इसके निर्देश दे दिए गए हैं।
ओपी पाल
एसपी, रायपुर
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नन्हीं-सी जान पर भारी बस्ता, हालत खस्ता
 00 कहीं टूट न जाएं हमारे बच्चों के कंधे
00 बच्चों को घोड़ा-खच्चर बना रही मौजूदा शिक्षा
बस्ते का बोझ बच्चों पर अति भारी पड़ रहा है। शिक्षा के बदलते स्वरूप ने कॉपी-किताब की संख्या इतनी अधिक बढ़ा दी है कि नर्सरी का छात्र भी औसतन 3 किग्रा वजनी बस्ता रोजाना उठा रहा है। 1जुलाई यानी शाला प्रवेश के पहले ही दिन सरकारी से लेकर निजी स्कूलों के बाहर छुट्टी के बाद छात्रों के बस्ते की माप (तौला) की। तौल-कांटें ने जो खुलासा किया, वह इस बात का प्रमाण है कि कम उम्र में मोटी-मोटी किताबें पहले ही मस्तिष्क पर दबाव डाले हुए हैं, ऊपर से बस्ते का बोझ बच्चों की रीढ़ की हड्डी और कंधों को कमजोर बना रहा है।
स्कूली छात्र पर कितना दबाव एक साथ रहता है, इस पर भी पड़ताल की। अभिभावक चाहते हैं कि उनका बच्चा शहर के सबसे अच्छे स्कूल में पढ़े। दाखिला हो जाने पर सबसे पहले और सबसे बड़ा दबाव रहता है स्कूल अभिभावक की उम्मीदों का। उसके बाद पाठ्यक्रम का, हर समय पढ़ाई का, अच्छे नंबर से पास होने का। पास होने के बाद भी वह अपने अभिभावकों से यही सुनता है कि उसके शर्मा जी, वर्मा जी, अग्रवाल जी का बेटा उससे अच्छे नंबर लेकर आया है। ये सभी बातें मस्तिष्क पर असर डालती हैं, बच्चे के मानसिक विकास में बाधक भी हो सकती हैं। शिशुरोग विशेषज्ञ मानते हैं कि कुछ बच्चे इन दबावों को सहन कर लेते हैं, लेकिन कुछ सहन नहीं कर पाते और मानसिक रोग से ग्रसित हो जाते हैं। फिर बात आती है बस्ते के बोझ की और यह बोझ उनके शारीरिक विकास (फिजिकल ग्रोथ) को क्षति पहुंचाता है। 4 साल की लिवनी जोशी, पीपी-1 की और 6 साल की खुशबू मेहता पीपी- 2 की छात्रा है और दोनों शहर के एक प्रतिष्ठित स्कूल में पढ़ रही हैं। लिवनी के बस्ते का वजन 2.5 किग्रा है तो वहीं खुशबू के बस्ते का वजन 3.6किग्रा, जो इन दोनों की क्षमता से कहीं अधिक है। वैशाली नेताम की उम्र 10 साल है, कक्षा आठवीं की इस छात्रा के बस्ते का वजन 8.3किग्रा है। हड्डी रोग विशेषज्ञ डॉ. सुनील खेमका मुताबिक 10 साल का बच्चा अधिकतम 4 किग्रा वजन ही उठा सकता है। यह स्कूल खुलने के पहले दिन की स्थिति है, खुद निजी स्कूल के प्राचार्य स्वीकार कर रहे हैं कि बच्चे पहले दिन सभी कॉपी-किताब लेकर नहीं पहुंचते हैं। जैसे-जैसे पढ़ाई रफ्तार पकड़ेगी, यह बोझ और बढ़ता जाएगा, लेकिन हैरान करने वाली बात यह है कि छत्तीसगढ़ स्कूल शिक्षा विभाग के पास छात्रों के कंधों से वजन कम करने का कोई नियम-कानून नहीं है।
निजी स्कूल में पढ़ने वाले छात्र- जिनके बस्तों की तौल स्कूल के बाहर ही की गई-
छात्र- आदित्य कुमार, उम्र 8साल। कक्षा तीसरी, बस्ते का वजन 7 किग्रा।
छात्र- कुशाल सेठिया, उम्र 8साल। कक्षा- तीसरी, बस्ते का वजन 7.2 किग्रा।
छात्रा- योग्या, उम्र- 12साल। कक्षा- नवमीं, बस्ते का वजन 8किग्रा।
छात्रा- तमन्नाा, उम्र- 12 साल। कक्षा- सातवी, बस्ते का वजन 6.7किग्रा।
छात्र- रौशन कंवर, उम्र- 13साल। कक्षा- आठवी, बस्ते का वजन 8.6किग्रा।
छात्रा- अपेक्षा शुक्ला, उम्र- 13साल। कक्षा- दसवीं, बस्ते का वजन 6.79किग्रा।
सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले छात्र-
छात्रा- संध्या, उम्र- 8साल। कक्षा- तीसरी, बस्ते का वजन 5किग्रा।
छात्रा- मंजू दी, उम्र- 7साल। कक्षा- तीसरी, बस्ते का वजन 5किग्रा।
सरकारी स्कूल से दोगुनी किताबें निजी स्कूल में-
सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले छात्रों के बस्ते का वजन अपेक्षाकृत निजी स्कूल के छात्रों के बस्तों से कम क्यों होता है? जब इसकी वजह तलाशी गई तो कई चौंकाने वाले खुलासे हुए। बतौर उदाहरण सरकारी स्कूल में कक्षा चौथी में सिर्फ तीन किताबों में सभी विषय सम्मिलित रहते हैं। भारती, छत्तीसगढ़ी, अंग्रेजी, संस्कृत की एक किताब और दूसरी किताब में गणित और पर्यावरण विषय और तीसरी किताब योगा की। एक स्लेट, एक कॉपी सिर्फ इतना ही, जबकि निजी स्कूल में प्रत्येक विषय की अगल-अलग किताबें, अलग-अलग कॉपी के अलावा ड्राइंग से लेकर अन्य तमाम चीजंे रहती हैं। इससे कॉपी-किताबों की संख्या तकरीवन 18-20 हो जाती है, यही वजह है कि बस्ते का बोझ दोगुना हो जाता है।
कितना बोझ उठा सकते हैं आपके बच्चे-
शिशु और हड्डी रोग विशेषज्ञों के मुताबिक अगर आपके बच्चे की उम्र 10 साल है तो वह अधिकतम 4किग्रा वजन उठता है। अगर आयु 7-8 साल के बीच है तो वजन की 3किग्रा से ज्यादा नहीं होना चाहिए। 4-5 साल का बच्चा स्कूल जा रहा है तो वह 1-2 किग्रा वजन उठ सकता है, इससे ज्यादा नहीं। शर्त यह भी है कि वह लगातार इतना वजन उठता है और रोज-रोज उठाने की मजबूरी उसकी आदत बन जाती है।
बच्चे सामने की तरफ छुकने लगते हैं
स्कूल बैग काफी ज्यादा भारी होता है। इसे मैंने भी महसूस किया है। इससे पीठ दर्द की शिकायतें अमूमन सामने आती हैं। इसके साथ-साथ कंधा भी दुखने लगता है। बच्चा सामने की तरफ छुकने लगता, और रोजाना ऐसा ही हो रहा तो बच्चे के लिए घातक है।
डॉ. शारजा फुलझेले, शिशु रोग विशेषज्ञ
पीठ दर्द बचपन से ही
देखिए, चाइल्ड एज में हड्डियां विकसित होती हैं। अगर उन पर भार पड़ता है तो पीठ दर्द शुरू हो जाता है, कई बार तो सोफ्ट बोन होने का कारण रीड्ड की हड्डी टेढी भी हो सकती है, जो उनके भविष्य के लिए बेहद घातक है।
डॉ. सुनील खेमका, हड्डी रोग विशेषज्ञ
ई-लर्निंग और ई-मैनेजड प्रोसेस अपनाएं
शिक्षा प्रणाली तेजी से बदल रही है और बदलेगी भी। क्योंकि समय के साथ पाठ्यक्रम और पढ़ाई के स्तर में लगातार बदलाव होते जाएंगे। बस्ते का बोझ कम करने के लिए ई-लर्निंग और ई-मैनेजड प्रोसेस (प्रणाली) अपनानी होगी।
बीकेएस रे, शिक्षाविद
हमारे नियम में नहीं है
स्कूल शिक्षा विभाग के नियम में बोझ कम करने को लेकर कोई प्रावधान नहीं है। पाठ्यक्रम जो निर्धारित है, निजी स्कूल उसका अनुसरण करे। वास्तव में बोझ बढ़ रहा है तो इसके लिए निजी स्कूलों की पालक समितियां और स्कूल प्रवंधन मिलकर इस पर नियंत्रण कर सकते।
अशोक नारायण बंजारा, जिला शिक्षा अधिकारी रायपुर
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बढ़ा दी गई जेलों की सुरक्षा व्यवस्था
00- प्रदेश की अन्य जेलों में सुरक्षा को लेकर किए जा रहे कड़े बंदोबस्त
00- दो टीमें करेंगी पेट्रोलिंग
रायपुर केंद्रीय जेल सहित राज्य की अन्य जेलों की सुरक्षा व्यवस्थ बढ़ा दी गई है। अति संवेदनशील जेलों में शामिल रायपुर के अलावा दंतेवाड़ा, कांकेर, धमतरी, बिलासपुर, नारायणपुर, अंबिकापुर जेल की सुरक्षा पर विशेष ध्यान रखा जा रहा है।
शनिवार को रायपुर केंद्रीय जेल की दीवार में मिले दो सुराग के बाद यह कदम उठाया गया है। इससे एक बात स्पष्ट हो चुकी है कि दीवार में सुराग मामूली घटना नहीं थी। यह एक साजिश थी, जिससे जेल प्रशासन का भी इनकार नहीं है। सोमवार से सीएएफ की दो पेट्रोलिंग पार्टी जेल का दो हिस्सों में चक्कर लगाएंगी, यह जिम्मेदारी पहले एक पेट्रोलिंग पार्टी पर थी। इसके अलावा जेल मुख्यालय सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक रायपुर समेत सभी केंद्रीय जेलों, उप जेलों को निर्देश जारी किए गए हैं कि वे सुरक्षा में कोताही न बरते। लापरवाही पाए जाने पर कार्रवाई होगी। उधर रायपुर पुलिस दीवाल में सुराग की जांच शुरू कर दी है। सोमवार को सीएएफ के कंपनी कमांडर समेत जवानों के बयान लिए गए, जल्द ही केंद्रीय जेल रायपुर के आला अफसरों के भी बयान दर्ज किए जाएंगे।
अज्ञात व्यक्ति के खिलाफ देवेंद्र नगर थाना में हुई एफआईआर के दो दिन बाद हरकत में आई पुलिस ने जांच प्रक्रिया तेज कर दी है। दीवार की खुदाई में निकले पत्थर के टुकड़ों को जांच के लिए फॉरेसिंक साइंस लेबोरेट्री भेज दिया गया है। इसके अलावा बाहरी सुरक्षा में तैनात जवानों से पूछताछ भी की गई है। 'नईदुनिया" पड़ताल में सामने आया कि घटना के बाद अब जेल की सुरक्षा में सीएएफ के करीब 50 जवान एक समय पर मौजूद रहेंगे। रात में जेल की पेट्रोलिंग के लिए दो टीमों को आधी-आधी जिम्मेदारी बांटी गई है। पहले जहां एक पेट्रोलिंग पार्टी को जेल का समूचा चक्कर लगाने में 1घंटे का वक्त लगता था, वह अब आधे घंटे में पूरा हो जाएगा। इसके अलावा महिला जेल की तरफ बने दो पुराने वॉच-टॉवर में चौबीसों घंटे एक-एक सीएएफ जवान तैनात रहेंगे। जेल की बाहरी सुरक्षा की पूरी जवाबदारी सीएएफ की है। सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक जरूरत पड़ी तो जवानों की संख्या और बढ़ाई जा सकती है। इसके अलावा अति संवेदनशील जेलों में शामिल रायपुर के अलावा दंतेवाड़ा, कांकेर, धमतरी, बिलासपुर, नारायणपुर, अंबिकापुर जेल की सुरक्षा पर विशेष ध्यान रखा जा रहा है।
बनेगी चारों तरफ सड़क- रायपुर केंद्रीय जेल के तरफ 8 करोड़ रुपए की लागत से 21फीट ऊंची दीवार बनाना प्रस्तावित है, लेकिन अभी काम शुरू नहीं हुआ है। जेल के चारों तरफ कटीले तारों का एक घेरा बनाया जाएगा, ताकि कोई सीमा में प्रवेश भी न कर सके। जेल के पिछले हिस्से में झाड़ियां और गंदगी फैली पड़ी है। दिन में पगडंडी से होकर जवान चलते हैं, लेकिन रात में उन्हें परेशानी होती है। यही वजह है कि चारों तरफ सड़क बनाने की तैयारी है।
हर वक्त मौजूद रहेगी अतिरिक्त फोर्स- बाहरी सुरक्षा के लिए जितने फोर्स वर्तमान में है, वह काफी बताई जा रही है, लेकिन ड्यूटी पर जितने जवान तैनात रहेंगे, उसके अलावा हर परिस्थिति से निपटने के लिए अतिरिक्त जवान भी 24 घंटे मौजूद रहेंगे। ये क्यू रिस्पोंस टीम की तरह काम करेंगे।
दो टीम करेंगी पेट्रोलिंग
सुरक्षा पहले की तुलना में बढ़ा दी गई है। पहले एक टीम पेट्रोलिंग करती थी, अब दो टीमें लगाई गईं हैं। जरूरत महसूस की गई तो और जवान तैनात कर दिए जाएंगे। जेल के पिछले हिस्से में जल्द ही लोहे के कटिले तार लगने का काम शुरू होगा।
अमर सिंह, सीएएफ कंपनी कंमाडेंड, केंद्रीय जेल रायपुर
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नागपुर से रायपुर के बीच जूझता रहा बीमार युवक
0 अंत में मिली मौत
0 स्टेशन में ट्रेन रोककर यात्रियों ने किया हंगामा
0 यात्री युवक के बीमार होने की सूचना के बाद भी रेलवे ने नहीं की चिकित्सा की व्यवस्था
हावड़ा मेल में मुंबई के लिए यात्रा कर रहे एक बीमार युवा यात्री की समय पर चिकित्सा न मिलने की वजह से मौत हो गई।इसी तरह पिछले माह जून में भी दुर्ग-गोरखपुर एक्सप्रेस में सफर के दौरान 68 वर्षीया महिला रामदुलारी की दम घुटने से मौत हो गई थी। उसे भी समय पर इलाज नहीं मिल पाया था।
बीमार युवक का इलाज कराने उसके साथ यात्रा कर रहे लोगों ने कई बार रेलवे के जिम्मेदार टीटी, आरपीएफ से लेकर अफसरों से मिन्नात की, लेकिन नागपुर से दुर्ग के बीच कहीं भी चिकित्सा की व्यवस्था नहीं कराई गई। आखिर में इलाज के अभाव में बीमार युवक ने रायपुर स्टेशन पहुंचने से पहले दम तोड़ दिया। इस घटना से आक्रोशित यात्रियों ने जमकर हंगामा करते हुए करीब दो घंटे तक चेन पुलिंग कर ट्रेन को रोके रखी। इसके बाद हरकत में आए जीआरपी व रेलवे के अफसरों ने ट्रेन से लाश को नीचे उतरवाया।
जानकारी के मुताबिक खड़गपुर(पश्चिम बंगाल) निवासी मृतक संतोष दास(35) मुंबई में काम करता था। वह मुंबई हावड़ा मेल से खड़कपुर जा रहा था। बोगी क्रमांक एस-8 में यात्रा कर रहे संतोष की सोमवार सुबह 10 बजे अचानक तबीयत खराब हो गई। उस वक्त ट्रेन नागपुर पहुंचने को थी। उसने साथ में यात्रा कर रहे यात्रियों को बीमार होने के बारे में जानकारी दी और इलाज कराने के लिए रेलवे के कर्मचारियों  से बात करने को कहा। यात्रियों ने तत्काल ट्रेन में मौजूद टीटी राकेश कुमार, आरपीएफ के जवान को इसकी जानकारी देकर नागपुर में इलाज की व्यवस्था कराने का निवेदन किया। यात्रियों का कहना है कि टीटी ने तुरंत नागपुर स्टेशन मास्टर समेत अन्य से बात कर यात्री के बीमार होने तथा इलाज की व्यवस्था कराने को कहा।
नागपुर में आधे घंटे खड़ी रही ट्रेन, तड़पता रहा युवक
यात्रियों का आरोप है कि ट्रेन नागपुर में आकर आधे घंटे तक खड़ी रही, लेकिन कोई भी चिकित्सा अमला वहां नहीं पहुंचा। इसके बाद टीटी ने गोदिंया में इलाज कराने की व्यवस्था हो जाने की बात कहकर ट्रेन को रवाना कराया। इस बीच युवक की हालत खराब होने लगी थी। गोदिंया पहुंचने के बाद भी रेलवे ने वहां इलाज की कोई व्यवस्था नहीं की थी। टीटी द्वारा बार-बार आने वाले स्टेशन में व्यवस्था होने का आश्वासन देकर उग्र यात्रियों को शांत कराया जा रहा था।
दुर्ग-रायपुर के बीच दम तोड़ा
यात्रियों ने बताया कि ट्रेन डोंगरगढ़, राजनांदगांव, दुर्ग तक पहुंच गई, लेकिन रेलवे की तरफ से कोई व्यवस्था नहीं की गई। दुर्ग से निकलने पर रायपुर में इलाज कराने को कहा गया, किंतु शाम 4 बजे रायपुर पहुंचने से पहले इलाज के अभाव में तड़प रहे संतोष दास की मौत हो चुकी थी।
दो घंटे तक स्टेशन में हंगामा
बीमार रेल यात्री की इलाज के अभाव में हुई मौत के बाद यात्रियों के सब्र का बांध फूट पड़ा। आक्रोशित यात्रियों ने शाम 4 बजे स्टेशन पर हंगामा करना शुरू कर दिया। आक्रोश को शांत कराने ट्रेन को तीन बार स्टेशन से आगे के लिए रवाना करने की कोशिश की गई, लेकिन जैसे ही ट्रेन आगे बढ़ता यात्री चेन पुलिंग कर ट्रेन को रोक देते थे। कुछ यात्री ट्रेन से सामने पटरी पर लेटकर युवक के मौत के जिम्मेदार लोगों पर कार्रवाई की मांग पर अड़े रहे। हंगामे के कारण ट्रेन दो घंटे तक स्टेशन पर खड़ी रही। माहौल बिगड़ता देख रेलवे अफसरों के निर्देश पर जीआरपी ने यात्री की लाश को नीचे उतरवाया। मामले में लापरवाही बरतने वाले दोषी रेलवे कर्मी के खिलाफ कार्रवाई का आश्वासन यात्रियों को देकर शाम सवा छह बजे ट्रेन को रवाना कर दिया गया। लाश को अंबेडकर अस्पताल में रखवा दिया गया है। रेलवे प्रशासन ने घटना की जानकारी मृतक के परिजनों को दे दी है।
स्वीकारा, हुई है लापरवाही
नागपुर से रायपुर तक ट्रेन में ड्यूटी कर रहे टीटी राकेश कुमार और एआर ठाकुर ने यात्रियों के समक्ष स्वीकार किया कि काफी प्रयास करने के बाद भी बीमार यात्री के इलाज की कोई व्यवस्था नहीं किया जा सका। नागपुर से रायपुर के बीच हर स्टेशन के रेलवे कंट्रोल रूम को इसकी सूचना देकर इलाज की व्यवस्था कराने कहा गया था, लेकिन घोर लापरवाही के कारण यात्री की जान चली गई। इसके जिम्मेदार रेलवे कर्मचारियों पर कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए।
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मलेरिया अधिकारी और विधायक के निज सचिव पर धोखाधड़ी का मामला कायम
0 नौकरी लगाने बेरोजगारों से लाखों ऐंठ कर दिया नियुक्ति पत्र जारी
स्वास्थ्य विभाग में नौकरी लगाने के नाम पर बेरोजगारों से लाखों ऐंठने और अपने हस्ताक्षर से नियुक्ति पत्र जारी करने के मामले में जिला मलेरिया अधिकारी अश्वनी देवांगन के साथ एक विधायक के निज सचिव के खिलाफ पुलिस ने धोखाधडी का अपराध कायम कर लिया है। मौदहापारा पुलिस ने बताया कि बागबहरा निवासी धनीराम पांडेय पिता मन्नाूराम(24) ने बागबहरा विधायक परेश बागबहरा के निज सचिव सुंदरनगर निवासी प्रदीप चंद्राकर के झांसे में आकर तीन साल पहले उसे मंजू ममता होटल के पास 65 हजार रूपए दे दिया था। प्रदीप ने स्वास्थ्य संचानालए में अपनी पकड़ होने का दावा करते हुए धनीराम को मलेरिया विभाग में संविदा पर नौकरी लगवाने का लालच दिया था। धनीराम के साथ बागबहरा क्षेत्र के तीन अन्य बेरोजगारों से भी प्रदीप ने 60 से 80 हजार रूपए लिए थे। इनमें से दो लोगों को जनवरी महीने में मलेरिया अधिकारी अश्वनी देवांगन के हस्ताक्षर से जारी नियुक्ति पत्र भी थमाया था। चारों बेरोजगार युवक कुछ महीने तक मलेरिया विभाग में संविदा पर काम भी कर चुके है। वायदे के मुताबिक जब चारों का नियमितिकरण नहीं हुआ तब उन्होंने पैसे वापस मांगा लेकिन प्रदीप अब तक टाल मटोल करता आ रहा था। शिकायत के बाद बागबहरा पुलिस ने शून्य पर अपराध कायम कर जांच डायरी मौदहापारा पुलिस को भेजी, जिसके आधार पर प्रदीप चंद्राकर व मलेरिया अधिकारी अश्वनी देवांगन के खिलाफ धारा 420, 34 का अपराध कायम कर लिया गया। फिलहाल दोनों की गिरफ्तारी नहीं की गई है। गौरतलब है कि प्रदीप चंद्राकर ने सवा साल पहले राज्य कर्मचारी बीमा सेवा(ईएसआईसी) में ड्रेसर की नौकरी दिलाने का झांसा देकर तीन बेरोजगारों से तीन लाख रुपए ठग लिया था। कुम्हारपारा, महासमुंद निवासी हीरालाल साहू, प्रीतम साहू व मेघनाथ साहू की शिकायत पर पखवाड़े भर पहले गोलबाजार थाने में चार सौ बीसी का अपराध दर्ज किया जा चुका है।






 

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