Wednesday, April 17, 2013


कोमा खान बाड़ा का चित्र, यही इकलौता ऐसा बड़ा है जो सबसे कम डैमैज हुआ है। 1857 की क्रांति का गवाह, जो किसी जमाने में शगार हुआ करता था अब सीआरपीएफ का ऑफिस है।
1857 की क्रांति का गवाह फोटो

पुलिस लाइन में जहां हेलीकॉप्टर उतरता है, वहां 1857 की क्रांति में रायपुर की भूमिका की गवाही देता शस्त्रागार मौजूद है इसे संरक्षित करने की पहल जरूरी है।
पत्थर देते हैं गवाही
कटोरा तालाब, बैरन बाजार और उसके पास के सिविल लाइंस क्षेत्र में पहले लंबे चौड़े कोमा खान, फिंगेश्वर और कवर्धा बाड़े हुआ करते थे। इनका कुछ हिस्सा आज भी है। इसी तरह तेलीबांधा के पास खैरागढ़ बाड़ा, जेलरोड पर बस्तर बाड़ा और जीई रोड पर डोंडी लोहारा बाड़े का भी अभी टूटा फूटा हिस्सा है। पिंगेश्वर बाड़े दृश्य यह करीब 170 साल से भी ज्यादा पुराना है। इसका छज्जा बाद में बदला गया है।
14 रजवाड़े, 36 जमींदार
हिस्ट्री में जाएं तो पता चलेगा कि 1854 में छत्तीसगढ़ भी अंग्रेजी हुकूमत का गुलाम हो गया। फिर राज्यभर के राजे रजवाड़ों ने रायपुर में अपना मुख्यालय बनवाया। उन्होंने अपनी रियासत के नाम से यहां पर एक अस्थाई कार्यालय बनवाया, यही बाड़ा कहलाया। जैसे बस्तर बाड़ा, छुई खदान बाड़ा आदि। इस दौरान 14 बाड़े और 36 जमींदारियां थीं। इन बाड़ों में से कुछ पर मौजूदा अपार्टमेंट्स हैं, तो कुछ पर चमचमाती दुकानें या बाजार। रायपुर में बाड़े 165 
सालों से हैं।

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