माना स्थित पुलिस ट्रेनिंग स्कूल में नव आरक्षकों के रहने के लिए सालों पुराने बैरक हैं। जहां एक बैरक में कई-कई जवानों को ठूसकर रहने के लिए मजबूर किया जा रहा है। टूटे बेड सोने के लिए हैं तो पीने का साफ पानी तक नहीं है।और फोटो में देखिए कि लिखा क्या है। यह पुलिस जवानों का प्रशिक्षण केन्द्र है। यहां देश और समाज की रक्षा करने वाली पुलिस तैयार होती है। यह केन्द्र बाहर से तो एकदम चमचमाता है,लेकिन अंदर ऐसा हाल है कि क्या कहें। और तो और प्रशिक्षण के दौरान पुलिसवालों को पेट भर भोजन भी नसीब नहीं होता। छत्तीसगढ़ पुलिस के जवानों को ट्रेनिंग के दरम्यान डाइट के लिए महज 100 रुपए दिए जाते हैं। केवल सौ रुपए देकर सरकार उम्मीद करती है कि जवान इससे महीने भर भरपूर भोजन कर सकेंगे। ऐसे में इन्हें अपने जेब से 1400 रुपए तक मिलाने पड़ते हैं। आखिर शेष पैसा कहां से आएगा। अधिकारी इसका जबाब देने के बजाय कह रहे हैं कि नियम ही ऐसा है तो क्या कर सकते हैं। पुलिसवालों को यहां खुले में खाना बनाना पड़ रहा है तो वहां भी तय डाइट के हिसाब से खाना नहीं मिल रहा है। कुछ जवानों ने नाम प्रकाशित नहीं करने का आग्रह करते हुए कहा कि यहां ट्रेनिंग का मतलब अब उन्हें जो समझ आया है उसके मुताबिक गार्डन की साफ सफाई करना है। हर रोज चार से पांच घंटे का समय इसी में चला जाता है।यहां पर डाइट का चार्ट बोर्ड पर बना तो है लेकिन यह केवल बोर्ड तक ही सीमित है।पुलिस ट्रेनिंग स्कूल में अफसरों के बैठने और दफ्तर के लिए नई बिल्डिंग तो बनी है लेकिन नव आरक्षकों के रहने के लिए बंगाली शरणार्थियों के लिए तीस साल पहले बने बैरक ही हैं। हालांकि कुछ साल पहले सरकार ने उन जवानों का डाइट भत्ता बढ़ा दिया है जो नक्सल प्रभावित जिलों में काम कर रहे हैं। वहां अब उन्हें सौ रुपए के जगह 650 रुपए दिया जाता है लेकिन तब भी यह पैसा कम ही है।माना पीटीएस में फिलहाल 250 नव आरक्षक प्रशिक्षण ले रहे हैं तो सरकार 11000 हजार जवानों की भर्ती की योजना पर काम कर रहा है।नई भर्ती के बाद इन्हें ट्रेनिंग देने के लिए प्रशिक्षित हवलदारों की भारी कमी है। ऐसे में 50 से अधिक हवलदारों को भी इसके लिए ट्रेंड किया जा रहा है।माना पुलिस ट्रेनिंग स्कूल में नए बैरक बनाने के लिए पचास लाख रुपए स्वीकृत किए गए हैं, लेकिन इस पर काम शुरू नहीं हो पाया है।
Friday, March 1, 2013
पुलिस स्कूल की सच्चाई जानकर आप नहीं बनना चाहेंगे कभी पुलिसवाले !
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