मैना, गिद्ध, गौरैया की प्रजातियों पर संकट
00- छत्तीसगढ़ शासन करा रही गिद्ध पर रिपोर्ट तैयार
00- भोजन और आवास न मिलने से पक्षियों का पलायन
छत्तीसगढ़ में गिद्धों के अस्तित्व पर संकट पैदा हो गया है। लगभग यही स्थिति देश के अन्य राज्यों की भी है, यही वजह है कि केंद्र से जारी निर्देश के बाद राज्य सरकार गिद्धों की वर्तमान स्थिति पर एक रिपोर्ट तैयार करा रही है। इसके अलावा करीब दर्जनभर पक्षी ऐसे हैं, जो या तो खाना या फिर आवास (हेबिटेट) न मिलने पर पलायन को मजबूर हैं। इनमें प्रमुख हैं, गौरेया, हुम्मा (ग्रेट इंडियन बस्टर्ड) और प्रदेश का राजकीय पक्षी पहाड़ी मैना भी शामिल हैं। शहर के पक्षी विशेषज्ञ, जिन्हें शासन ने गिद्धों पर रिपोर्ट तैयार करने की जिम्मेदारी दी है, बताया कि 1980 में अकेले रायपुर में ही 150 से अधिक गिद्धों को आसमान पर मंडराते हुए गणना की थी, लेकिन आज एक भी नजर नहीं आ रहे।
प्रमुख चार पक्षियों, आखिर किन कारणों से पहुंचे विलुप्ति के कगार पर-
1- गिद्ध (वल्चर)- देश में गिद्ध की 95 फीसदी आबादी समाप्त हो चुकी है। जो बची है, उसे बचाने के लिए केंद्र से लेकर राज्य सरकारें सिर्फ कागजों में खानापूर्ति करने में लगी हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक पालतू जानवरों को लगने वाला डायक्लोफेनक नामक इंजेक्शन गिद्धों की मौत का सबसे बड़ा कारण था, जिसे केंद्र सरकार ने भारी दबाव के बाद वैन कर दिया। शोध में यह तथ्य भी निकलकर सामने आया है कि पहले मवेशी पालने वाले अपने मवेशियों को अंतिम वक्ततक साथ रखते थे और उनके मरने के बाद उन्हें गांव के बाहर छोड़ देते थे, जो गिद्धों का भोजन बनते थे, लेकिन अब मवेशी दूध देना बंद कर देता है या फिर वह किसी उपयोग का नहीं रह जाता है तो उसे कसाईखाने भेज दिया जाता है। गिद्धों के भोजन का एक प्रमुख स्रोत छिन गया। गिद्ध साल में एक ही अंडा देता है, उनकी सुरक्षा भी नहीं हो पा रही है। गिद्ध की तीन प्रजातियां वाइट रंप, लोंग बिल्ड और किंग वल्चर सभी खतरे में है। हालांकि डोंगरगढ़, डोंडी, पिथौरा, लवन, कोरबा, अंबिकापुर और अचानक मार्ग सेंचुरी में इन्हें एका-दुक्का लोगों ने देखा है।
2- पहाड़ी मैना- प्रदेश का राजकीय पक्षी मैना, जिसका खाना, आवास और प्रजनन के लिए वातावरण सबकुछ उसके मुताबिक होना जरूरी है। आज पहाड़ी मैना की संख्या घटने का प्रमुख कारण उसके क्षेत्र में छेड़छाड़ है। पक्षी विशेषज्ञ एएमके भरोस का कहना है कि मैना पर थाइलैंड ने 10 साल और अमेरिका ने 12 साल के शोध के बाद प्रजनन करवाने में सफलता हासिल की। करीब 2 साल पहले मैना की गिनती की प्रक्रिया शुरू की गई थी, लेकिन जिस क्षेत्र में मैना पाई जाती हैं, वह नक्सल प्रभावित क्षेत्र और वहां तक फिलहाल नहीं पहुंचा जा सका है। मैना के घोसले ही नहीं मिल रहे हैं।
3- गौरेया (हाउस स्पैरो)- गौरेया का मुख्य भोजन है, किचन से निकला वेस्ट मटेरियल। शहरों से इस पक्षी की विलुप्ति की यह मुख्य वजह है, क्योंकि अब घर से गारबेज कलेक्शन शुरू हो चुका है। इसके अलावा जहां ये घोंसला बनाती हैं, लोग पसंद नहीं करते और नष्ट कर देते हैं। इनकी संख्या बीते पांच से तेजी से घटी है।
4- हुम्मा (ग्रेट इंडियन बस्टर्ड)- तिल्दा, चंद्रखुरी में यह पक्षी करीब 30 साल पहले देखा गया था, लेकिन इन क्षेत्रों में सीमेंट फैक्टरियां, कारखाने बन जाने के कारण यह पलायन कर गया। हुम्मा सुखे क्षेत्र में रहने वाला पक्षी है, लेकिन गुजरात, महाराष्ट्र जैसे सुखे प्रदेश में भी इसके अस्तित्व पर खतरा घोषित हो चुका है। 'हुम्म" की आवाज के निकालने के कारण इसका स्थानीय नाम हुम्मा पड़ा।
पुराने पेड़ों पर बनते हैं घोंसला- पक्षी विशेषज्ञों का मानना है कि अधिकांश पक्षी पुराने और ऊंचे पेड़ों पर घोंसला बनाते हैं, लेकिन विकास के नाम पर पुराने पेड़ों की बली दी जा रही है। यही वजह है कि वे घोंसला नहीं बना पा रहे। पुराने पेड़ों को काट उनकी जगह-जगह सुंदरता के नाम पर झातिम, पाम, यूकोलिप्टिस के पौधे लगाए जा रहे हैं, जो इन पक्षियों के घोसलों के लिए मुफीद नहीं। गिद्ध जैसे विशाल पक्षी ऊंचे पेड़ पर घोंसला बनाते हैं, ताकि उनके बच्चों को उडने के लिए जमीन से एक लंबी ऊंचाई मिल जाए, लेकिन ऊंचे पेड़ या तो जंगल में या फिर गांवों में ही बचे हैं।
जनमानस का जुड़ना जरूरी
बीते 10साल में ही अकेले रायपुर शहर में 25 हजार पेड़ काट दिए गए, उनकी जगह पर जिन पौधों को लगाया गया, वह पक्षियों के आवास के लिए उपयुक्त ही नहीं है। शासन ने मुझे एक प्रोजेक्ट दिया है, जो गिद्धों से जुड़ा हुआ है। अगर इन पक्षियों को बचाना है तो जनमानस का जुड़ना बेहद जरूरी है। पानी दें, इनके बनाए घोंसलों को नुकसान न पहुंचाएं, शिकारियों पर प्रतिबंध लगना चाहिए।
एएमके भरोस, पक्षी विशेषज्ञ और अध्यक्ष छत्तीसगढ़ वाइल्ड लाइफ सोसाइटी
00- छत्तीसगढ़ शासन करा रही गिद्ध पर रिपोर्ट तैयार
00- भोजन और आवास न मिलने से पक्षियों का पलायन
छत्तीसगढ़ में गिद्धों के अस्तित्व पर संकट पैदा हो गया है। लगभग यही स्थिति देश के अन्य राज्यों की भी है, यही वजह है कि केंद्र से जारी निर्देश के बाद राज्य सरकार गिद्धों की वर्तमान स्थिति पर एक रिपोर्ट तैयार करा रही है। इसके अलावा करीब दर्जनभर पक्षी ऐसे हैं, जो या तो खाना या फिर आवास (हेबिटेट) न मिलने पर पलायन को मजबूर हैं। इनमें प्रमुख हैं, गौरेया, हुम्मा (ग्रेट इंडियन बस्टर्ड) और प्रदेश का राजकीय पक्षी पहाड़ी मैना भी शामिल हैं। शहर के पक्षी विशेषज्ञ, जिन्हें शासन ने गिद्धों पर रिपोर्ट तैयार करने की जिम्मेदारी दी है, बताया कि 1980 में अकेले रायपुर में ही 150 से अधिक गिद्धों को आसमान पर मंडराते हुए गणना की थी, लेकिन आज एक भी नजर नहीं आ रहे।
प्रमुख चार पक्षियों, आखिर किन कारणों से पहुंचे विलुप्ति के कगार पर-
1- गिद्ध (वल्चर)- देश में गिद्ध की 95 फीसदी आबादी समाप्त हो चुकी है। जो बची है, उसे बचाने के लिए केंद्र से लेकर राज्य सरकारें सिर्फ कागजों में खानापूर्ति करने में लगी हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक पालतू जानवरों को लगने वाला डायक्लोफेनक नामक इंजेक्शन गिद्धों की मौत का सबसे बड़ा कारण था, जिसे केंद्र सरकार ने भारी दबाव के बाद वैन कर दिया। शोध में यह तथ्य भी निकलकर सामने आया है कि पहले मवेशी पालने वाले अपने मवेशियों को अंतिम वक्ततक साथ रखते थे और उनके मरने के बाद उन्हें गांव के बाहर छोड़ देते थे, जो गिद्धों का भोजन बनते थे, लेकिन अब मवेशी दूध देना बंद कर देता है या फिर वह किसी उपयोग का नहीं रह जाता है तो उसे कसाईखाने भेज दिया जाता है। गिद्धों के भोजन का एक प्रमुख स्रोत छिन गया। गिद्ध साल में एक ही अंडा देता है, उनकी सुरक्षा भी नहीं हो पा रही है। गिद्ध की तीन प्रजातियां वाइट रंप, लोंग बिल्ड और किंग वल्चर सभी खतरे में है। हालांकि डोंगरगढ़, डोंडी, पिथौरा, लवन, कोरबा, अंबिकापुर और अचानक मार्ग सेंचुरी में इन्हें एका-दुक्का लोगों ने देखा है।
2- पहाड़ी मैना- प्रदेश का राजकीय पक्षी मैना, जिसका खाना, आवास और प्रजनन के लिए वातावरण सबकुछ उसके मुताबिक होना जरूरी है। आज पहाड़ी मैना की संख्या घटने का प्रमुख कारण उसके क्षेत्र में छेड़छाड़ है। पक्षी विशेषज्ञ एएमके भरोस का कहना है कि मैना पर थाइलैंड ने 10 साल और अमेरिका ने 12 साल के शोध के बाद प्रजनन करवाने में सफलता हासिल की। करीब 2 साल पहले मैना की गिनती की प्रक्रिया शुरू की गई थी, लेकिन जिस क्षेत्र में मैना पाई जाती हैं, वह नक्सल प्रभावित क्षेत्र और वहां तक फिलहाल नहीं पहुंचा जा सका है। मैना के घोसले ही नहीं मिल रहे हैं।
3- गौरेया (हाउस स्पैरो)- गौरेया का मुख्य भोजन है, किचन से निकला वेस्ट मटेरियल। शहरों से इस पक्षी की विलुप्ति की यह मुख्य वजह है, क्योंकि अब घर से गारबेज कलेक्शन शुरू हो चुका है। इसके अलावा जहां ये घोंसला बनाती हैं, लोग पसंद नहीं करते और नष्ट कर देते हैं। इनकी संख्या बीते पांच से तेजी से घटी है।
4- हुम्मा (ग्रेट इंडियन बस्टर्ड)- तिल्दा, चंद्रखुरी में यह पक्षी करीब 30 साल पहले देखा गया था, लेकिन इन क्षेत्रों में सीमेंट फैक्टरियां, कारखाने बन जाने के कारण यह पलायन कर गया। हुम्मा सुखे क्षेत्र में रहने वाला पक्षी है, लेकिन गुजरात, महाराष्ट्र जैसे सुखे प्रदेश में भी इसके अस्तित्व पर खतरा घोषित हो चुका है। 'हुम्म" की आवाज के निकालने के कारण इसका स्थानीय नाम हुम्मा पड़ा।
पुराने पेड़ों पर बनते हैं घोंसला- पक्षी विशेषज्ञों का मानना है कि अधिकांश पक्षी पुराने और ऊंचे पेड़ों पर घोंसला बनाते हैं, लेकिन विकास के नाम पर पुराने पेड़ों की बली दी जा रही है। यही वजह है कि वे घोंसला नहीं बना पा रहे। पुराने पेड़ों को काट उनकी जगह-जगह सुंदरता के नाम पर झातिम, पाम, यूकोलिप्टिस के पौधे लगाए जा रहे हैं, जो इन पक्षियों के घोसलों के लिए मुफीद नहीं। गिद्ध जैसे विशाल पक्षी ऊंचे पेड़ पर घोंसला बनाते हैं, ताकि उनके बच्चों को उडने के लिए जमीन से एक लंबी ऊंचाई मिल जाए, लेकिन ऊंचे पेड़ या तो जंगल में या फिर गांवों में ही बचे हैं।
जनमानस का जुड़ना जरूरी
बीते 10साल में ही अकेले रायपुर शहर में 25 हजार पेड़ काट दिए गए, उनकी जगह पर जिन पौधों को लगाया गया, वह पक्षियों के आवास के लिए उपयुक्त ही नहीं है। शासन ने मुझे एक प्रोजेक्ट दिया है, जो गिद्धों से जुड़ा हुआ है। अगर इन पक्षियों को बचाना है तो जनमानस का जुड़ना बेहद जरूरी है। पानी दें, इनके बनाए घोंसलों को नुकसान न पहुंचाएं, शिकारियों पर प्रतिबंध लगना चाहिए।
एएमके भरोस, पक्षी विशेषज्ञ और अध्यक्ष छत्तीसगढ़ वाइल्ड लाइफ सोसाइटी
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