Saturday, December 22, 2012






satish pandey
रायपुर। यह देश की सबसे पुरानी नाट्यशाला है। इसका गौरव इसलिए भी अधिक है क्योंकि कालीदास की विख्यात रचना मेघदूतम ने यहीं आकार लिया था। महाकवि कालीदास ने जब उज्जियनी का परित्याग किया था तो यहीं आकर उन्होंने साहित्य की रचना की थी।  इसलिए ही इस जगह आज भी हर साल आषाढ़ के महीने में बादलों की पूजा की जाती है। देश में संभवत: यह अकेला स्थान है जहां कि बादलों की पूजा करने का रिवाज हर साल है। इस पूजा के दौरान देखने में आता है कि हर साल उस समय आसमान में काले-काले मेघ उमड़ आते हैं। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से 280 किलोमीटर दूर है रामगढ़। अंबिकापुर-बिलासपुर मार्ग स्थित रामगढ़ के जंगल में तीन कमरों वाली देश की सबसे पुरानी नाटयशाला है। सीता बेंगरा गुफ़ा पत्थरों में ही गैलरीनुमा काट कर बनाई गयी है। यह 44.5 फिट लम्बी एवं 15 फिट चौड़ी है। दीवारें सीधी तथा प्रवेशद्वार गोलाकार है। इस द्वार की ऊंचाई 6 फिट है जो भीतर जाकर 4 फिट ही रह जाती हैं।नाट्यशाला को प्रतिध्वनि रहित करने के लिए दीवारों को छेद दिया है। यह इसलिए कि पात्रों के संवाद बोलने के समय उनकी आवाज दूर तक जाए। गुफ़ा तक जाने के लिए पहाड़ियों को काटकर पैड़ियाँ बनाई गयी हैं। नाट्यशाला(सीता बेंगरा) में प्रवेश करने के लिए दोनो तरफ़ पैड़ियाँ बनी हुई हैं। प्रवेश द्वार से नीचे पत्थर को सीधी रेखा में काटकर 3-4 इंच चौड़ी दो नालियाँ बनी हुई है।
इसे सीताबेंगरा के नाम से भी जाना जाता है। किवदंती है कि यहां वनवास काल में भगवान राम, लक्ष्मण और सीता के साथ पहुंचे थे। सरगुजा बोली में भेंगरा का अर्थ कमरा होता है। प्रवेश द्वार के समीप खम्बे गाड़ने के लिए छेद बनाए हैं तथा एक ओर श्रीराम के चरण चिन्ह अंकित हैं। कहते हैं कि ये चरण चिन्ह महाकवि कालीदास के समय भी थे। मेघदूत में रामगिरि पर सिद्धांगनाओं(अप्सराओं) की उपस्थिति तथा उसके रघुपति पदों से अंकित होने का उल्लेख भी मिलता है।नाट्यशाला को प्रतिध्वनि रहित करने के लिए दीवारों को छेद दिया है। यह इसलिए कि पात्रों के संवाद बोलने के समय उनकी आवाज दूर तक जाए। गुफ़ा तक जाने के लिए पहाड़ियों को काटकर पैड़ियाँ बनाई गयी हैं। नाट्यशाला(सीता बेंगरा) में प्रवेश करने के लिए दोनो तरफ़ पैड़ियाँ बनी हुई हैं। प्रवेश द्वार से नीचे पत्थर को सीधी रेखा में काटकर 3-4 इंच चौड़ी दो नालियाँ बनी हुई है।वरिष्ठ पुरातत्वेत्ता जीएल रायकवाड़ कहते हैं कि यहां मिले शिलालेख से पता चलता है कि सीताबेंगरा नामक गुफा ईसा पूर्व दूसरी-तीसरी सदी की है। देश में इतना पुराना और दूसरा नाटयशाला कहीं नहीं है। यहां उस समय क्षेत्रीय राजाओं द्वारा भजन कीर्तन और नाटक करवाए जाते रहे होंगे। 1906 में पूना से प्रकाशित श्री वी के परांजपे के शोधपरक व्यापक सर्वेक्षण के "ए फ़्रेश लाईन ऑफ़ मेघदूत" द्वारा अब यह सिद्ध हो गया कि रामगढ(सरगुजा) ही श्रीराम की वनवास स्थली एवं मेघदूत का प्रेरणास्रोत रामगिरी है।यहां आषाढ़ के महीने में मेघ की पूजा की जाती है। इसके लिए हर साल प्रशासन के सहयोग से कार्यक्रम का आयोजन होता है। मान्यता है कि रामगढ़ में ही कालीदास ने मेघदूतम की रचना की थी।गुफा के बाहर दो फीट चौड़ा गडढ़ा भी है जो सामने से पूरे गुफा को घेरता है। मान्यता है कि यह लक्ष्मण रेखा है तो इसके बाहर एक पांव का निशान भी है। इस गुफा के बाहर एक सुरंग है। इसे हथफोड़ सुरंग के नाम से जाना जाता है। इसकी लंबाई करीब 500 मीटर है।यहां पहाडी में भगवान राम, लक्ष्मण, सीता और हनुमान की 12-13वीं सदी की प्रतिमा भी है। यहां चैत नवरात्र के अवसर पर मेला लगता है तो गुफा को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा संरक्षित किया गया है।रामगढ़ की पहाडी में चंदन गुफा भी है। यहां से लोग चंदन मिट्टी निकालते हैं और उसका उपयोग धार्मिक कार्यो में किया जाता है। इतिहासविद् कनिंघम रामगढ़ की पहाड़ियों को रामायण में वर्णित चित्रकूट मानते हैं।

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