Tuesday, February 26, 2013

 
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महामाया मंदिर
रायपुर पुरानी बस्ती महामाया मंदिर रायपुर के प्रमुख शक्तिपीठ के रूप में विख्यात है और आस्था का प्रमुख केंद्र है । नवरात्रि के समय यहां छत्तीसगढ़ के साथ ही कई अन्य राज्यों से भी भक्तों का मेला लगता है। इस मंदिर का निर्माण कलचुरी के शासकों ने कराया था । ऐसी मान्यता है कि राजा मोरध्वज ने महिषासुरमर्दिनी की अष्टïभुजी प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा मंदिर में की थी। महामाया की प्रतिष्ठा कलचुरी शासकों की कुलदेवी के रूप में भी है। कहा जाता है कि रतनपुर के कलचुरियों की एक शाखा जब रायपुर में स्थापित हुई तो उन्होंने अपनी कुलदेवी महामाया का भव्य मंदिर यहां भी बनवाया। मुख्य मंदिर के अलावा स
 
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विवेकानंद सरोवर (बूढ़ा तालाब)
विवेकानंद सरोवर (बूढ़ा तालाब) शहर के बीचो-बीच स्थित है। इसके साथ कई महापुरुषों की स्मृतियां जुड़ी हुई हैं। यह राजधानी का एक ऐसा पर्यटन स्थल है जिसका अपना ऐतिहासिक महत्तव है। तालाब को 600 वर्ष पहले कल्चुरी वंश के राजाओं द्वारा खुदवाया गया था। इतिहासकारों के मुताबिक यह पहले150 एकड़ में था जो अब मात्र लगभग 60 एकड़ में ही सीमित हो गया है। तालाब के पास स्थानीय महापुरुषों के अलावा स्वामी विवेकानंद ने भी अपने जीवन के कुछ वर्ष व्यतीत किया है। इसकी एक विशेषता यह भी है कि 14 वर्ष की आयु में स्वामी विवेकानंद जब रायपुर आये थे तो वे इस तालाब में तैरकर कर बीच टापू तक जाते थे, इस कारण से वहां अभी विवेकानंद की विशाल प्रतिमा स्थापित है।
 
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राजकुमार कॉलेज
इसकी नींव अंग्रेजों के शासनकाल में रखी गई थी। यह पूर्वी भारत के उत्कृष्ट अंग्रेजी माध्यम स्कूलों में शामिल था। इसे वर्ष1882 में जबलपुर में तत्कालीन वाणिज्यिक पत्र के मुख्य आयुक्त सर एंड्रयू फे्रजर द्वारा स्थापित किया गया था। छत्तीसगढ़, उड़ीसा और बिहार के राजघरानों, जमींदारों के बच्चों को शिक्षा देने के उद्देश्य से वहां पर एक छात्रावास सह स्कूल के रूप में इसे शुरू किया गया। वर्ष1894 में इसे रायपुर स्थानांतरित करते हुए बोर्डिंग स्कूल के रूप में खोला गया। रायपुर में 100 साल पूरे होने पर1994 में13 भाषाओं में स्कूल का वृत्तचित्र भी बना। यहां पर छात्रों को आज भी शिक्षा के आलावा घुड़सवारी, तीरंदाजी, फोटोग्राफी, योग आदि का प्रशिक्षण दिया जाता है।
 
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श्री हटकेश्वर महादेव मंदिर
यह राज्य में बहने वाली नदी के किनारे है, जिसके तट दो जिलों को विभाजित करते हैं। क्षेत्र का नामकरण और स्थापना कल्चुरी शासन काल में हुई थी, तब से यहां लोग पीढिय़ों से अपनी धार्मिक मान्यताओं की पूर्ति के लिए आते हैं। क्षेत्र का नामकरण श्री हटकेश्वर महादेव मंदिर के नाम पर पड़ा। महादेव शिव के इस मंदिर का निर्माण सन् 1402 में हाजीराज नाइक द्वारा कल्चुरी शासक भोरमदेव राय के पुत्र राजा रामचन्द्र के समय में करवाया गया था।
दूधाधारी मठ
यह मंदिर राजधानी का ऐतिहासिक दूधाधारी मठ में स्थित है। जानकारों के अनुसार यह करीब 1000 वर्ष पुराना मंदिर है, जिसका निर्माण राजा रघुराव भोसले ने करवाया था। इनका नवीनीकरण समय-समय पर करवाया जाता है। इस मठ का महत्व इस कारण भी है कि यहां पर भगवान श्रीराम ने वनवास के दौरान विश्राम किया था। यहां रामसेतु पाषाण भी रखा गया है।दूधाधारी मठ का अपना प्राचीन इतिहास रहा है। इस मठ में कई देवी-देवताओं के मंदिर मौजूद है। इनमें बालाजी मंदिर, संकट मोचन हनुमान मंदिर, रामपंचायतन और वीर हनुमान मंदिर प्रमुख हैं। यहां मौजूद हर मंदिर किसी न किसी शानदार इतिहास और रोचक कहानियां कहानियों का हिस्सा है। ऐसी ही छोटी सी रोचक कहानीदूधाधारी मठ के नाम को लेकर है। इस मठ के संस्थापक बालभद्र दास महंतजी हनुमान जी के बड़े भक्त थे। उन्होंने एक पत्थर के टुकड़े को हनुमान जी मानकर श्रृद्धा भाव से पूजा अर्चना करने लगे। वह अपनी गाय सुरही के दूध से उस पत्थर को नहलाते थे और फिर उसी दूध का सेवन करते थे। इस तरह उन्होंने अन्न का त्याग कर दिया और जीवन पर्यन्त दूध का सेवन किया। इस तरह बालभद्र महंत दूध आहारी हो गए, इसका मतलब दूध का आहार लेने वाला। बाद में यह यहदूधाधारी मठ नाम से जाना गया। इस छोटी सी घटना ने बालभद्र दास को इतिहास में अमर बना दिया और लोगों के लिए पूज्य भी।
kumar satish

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