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चंदखुरी
रायपुर से17 किलोमीटर दूर चंदखुरी को भगवान राम की मां कौशल्या की जन्म
स्थली माना जाता है। यहां के मंदिरों की एक प्रमुख खास बात यह है कि यहां
के मंदिर तालाब के बीच में स्थित हैं। 8 वीं शताब्दी में बना हुआ एक शिव
मंदिर भी यहां है जिसका वास्तुशिल्प कमाल का है। पूजा अर्चना के लिए यहां
एक दशक पहले एक पुल का निर्माण भी कराया गया है।
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राजि़म : छत्तीसगढ़ का प्रयाग
राजधानी रायपुर से 45 किलोमीटर दूर दक्षिण पूर्व में स्थित राजि़म तीन
नदियों के संगम स्थल पर है। यह महानदी, पैरी एवं सोढ़ूर नदी के संगम पर
स्थित है इसलिए इसे छत्तीसगए़ का प्रयाग के नाम से पुकारा जाता है। आजकल
पूरे देश में यह वार्षिंक कुंभ के रूप में भी प्रसिद्ध हो रहा है। दरअसल यह
कुलेश्वर महादेव, राजीव लोचन और राजेश्वर मंदिरों का समूह है। कुलेश्वर
महादेव मंदिर जो कि17 फीट ऊंचा है । इस अष्ठभुजाकर मंदिर का प्राचीन
इतिहास है यह ११वीं शताब्दी में बनाया गया था।
Address: राजधानी रायपुर से 45 किलोमीटर दूर
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महंत घासीदास स्मृति संग्रहालय
महंत घासीदास संग्रहालय राज्य की कला, संस्कृति और पुरातत्व के संग्राहक
का स्मृति चिन्ह है। इसका नामकरण नांदगांव रियासत के राजा महंत घासीदास
के नाम से किया गया है। यह सन्1953 से संस्कृति एवं पुरातत्व के संचालनालय
में स्थापित है। संग्रहालय को सन् 1875 में विकसित किया गया था। जिसमें
रियासत की महारानी और महंत की पत्नी ने 1 लाख रुपए का अनुदान दिया था। इससे
पहले यह ऐतिहासिक अष्टकोणीय भवन में संचालित होता था । 21 मार्च 1953 को
प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद द्वारा लोकापिर्त इस नए भवन से
पहले यह संग्रहालय यहीं के महाकोशल कला वीथिका में स्थापित था ।
Address: जिला न्यायालय कमिश्नर दफ्तर के बीच जीई रोड पर स्थित
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जैतू साव मठ
जैतू साव मठ का इतिहास 250 साल पुराना है। जैतू साव मठ का अपना
ऐतिहासिक महत्व है ,यह उन इमारतों में से एक है जिनसे हमारे रायपुर का
इतिहास जुड़ा हुआ है। जैतू साव मठ का स्वतंत्रता आंदोलन से गहरा रिश्ता रहा
हैं जहां कभी स्वतंत्रता संग्रात सेनानी बैठक कर अपनी योजनाएं बनाया करते
थे। यह कभी पं. सुंदरलाल शर्मा, महंत लक्ष्मीनारायणदास सहित राज्य के
बड़े नेताओं का ठिकाना हुआ करता था। 22 नवंबर 1933 को गांधीजी जब रायपुर
आए थे तो जैतू साव मठ में ही उन्होंने लोगों आजादी का पाठ पढ़ाते हुए
संदेश दिया था।
Address: पुरानी बस्ती, रायपुर
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विक्टोरिया जुबली टाउन हॉल
विक्टोरिया जुबली टाउन हॉल का इतिहास122 साल पुराना है। इसका शुभारंभ
12 अगस्त 1890 को छत्तीसगढ़ के तत्कालीन कमिश्नर एएचएल प्रेशर ने किया था।
अब इसका नाम बदलकर वंदेमातरम हॉल कर दिया गया है। इसके सामने बने पार्क
में भी स्वतंत्रता के पूर्व कई गुप्त बैठकें रखी गईं थीं। यह हॉल
स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की गुप्त बैठकों का खास अड्डा हुआ करता था।
हॉल के सामने बने पार्क ने भी आजादी की लड़ाई की रणनीति बनाने में अपना
योगदान दिया था।
Address: शास्त्री चौक ,रायपुर
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दामाखेड़ा
दामाखेड़ा कबीरपंथियों के तीर्थ स्थान के रूप में विख्यात है। इस पंथ के
अनुनायियों के लिए छत्तीसगढ़ में यह सबसे बड़ा आस्था का केंद्र माना जाता
है। यह रायपुर से लगभग 45 किलोमीटर दूर रायपुर बिलासपुर मार्ग पर स्थित है।
यहां कबीर मठ की स्थापना 100 साल पहले इस पंथ के12 वें गुरु उग्रनाम ने
की थी। यहां हर साल माघ शुक्ल दशमी से माघ पूर्णिमा तक संत समागम समारोह
आयोजित किया जाता है। यहां आपको समाधि मंदिर के पास कबीर की जीवनी बेहद
मनमोहन और कलात्मक अंदाज में दीवारों पर नक्काशी कर उकेरी गई है।
Address: रायपुर - बिलासपुर मार्ग पर
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कैसरे-ए-हिन्द
इसे देखकर हम कह सकते हैं कि हैदराबाद की तर्ज पर हमारे रायपुर में भी
एक चार मीनार स्थापित है। दरअसल कभी सरे-ए-हिन्द के नाम से विख्यात इन
मीनारों का निर्माण अंग्रेजों के शासन काल में हुआ था। जानकारों का कहना है
कि सन्1877 में जब महारानी विक्टोरिया रायपुर आईं तो स्थानीय लोगों ने
उन्हें उपहार के रूप में इसे भेंट किया। दरअसल ये उस समय नगर निगम के समीप
स्थित एक परिसर का द्वार हुआ करता था जिसमें खूबसूरत चार मीनार भी थीं। उस
समय यहां खाली मैदान हुआ करता था जिसमें मेले और बाज़ार लगा करते थे। लेकिन
कालांतर में इसके ऊपर ही रविभवन नामक व्यावसायिक कॉम्प्लेक्स का निर्माण
हुआ जिसको लेकर इतिहासकारों ने विरोध भी किया था। उन्होंने मांग की थी कि
इसे संग्रहालय में संरक्षित किया जाए लेकिन प्रशासन ने इसको नजऱअंदाज करते
हुए इसकी दो मीनारों को रविभवन के निर्माण में दफ्न होने दिया।
Address: जय स्तंभ चौक , रायपुर
kumar satish
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