Thursday, February 28, 2013
Tuesday, February 26, 2013
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चंदखुरी
रायपुर से17 किलोमीटर दूर चंदखुरी को भगवान राम की मां कौशल्या की जन्म
स्थली माना जाता है। यहां के मंदिरों की एक प्रमुख खास बात यह है कि यहां
के मंदिर तालाब के बीच में स्थित हैं। 8 वीं शताब्दी में बना हुआ एक शिव
मंदिर भी यहां है जिसका वास्तुशिल्प कमाल का है। पूजा अर्चना के लिए यहां
एक दशक पहले एक पुल का निर्माण भी कराया गया है।
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राजि़म : छत्तीसगढ़ का प्रयाग
राजधानी रायपुर से 45 किलोमीटर दूर दक्षिण पूर्व में स्थित राजि़म तीन
नदियों के संगम स्थल पर है। यह महानदी, पैरी एवं सोढ़ूर नदी के संगम पर
स्थित है इसलिए इसे छत्तीसगए़ का प्रयाग के नाम से पुकारा जाता है। आजकल
पूरे देश में यह वार्षिंक कुंभ के रूप में भी प्रसिद्ध हो रहा है। दरअसल यह
कुलेश्वर महादेव, राजीव लोचन और राजेश्वर मंदिरों का समूह है। कुलेश्वर
महादेव मंदिर जो कि17 फीट ऊंचा है । इस अष्ठभुजाकर मंदिर का प्राचीन
इतिहास है यह ११वीं शताब्दी में बनाया गया था।
Address: राजधानी रायपुर से 45 किलोमीटर दूर
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महंत घासीदास स्मृति संग्रहालय
महंत घासीदास संग्रहालय राज्य की कला, संस्कृति और पुरातत्व के संग्राहक
का स्मृति चिन्ह है। इसका नामकरण नांदगांव रियासत के राजा महंत घासीदास
के नाम से किया गया है। यह सन्1953 से संस्कृति एवं पुरातत्व के संचालनालय
में स्थापित है। संग्रहालय को सन् 1875 में विकसित किया गया था। जिसमें
रियासत की महारानी और महंत की पत्नी ने 1 लाख रुपए का अनुदान दिया था। इससे
पहले यह ऐतिहासिक अष्टकोणीय भवन में संचालित होता था । 21 मार्च 1953 को
प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद द्वारा लोकापिर्त इस नए भवन से
पहले यह संग्रहालय यहीं के महाकोशल कला वीथिका में स्थापित था ।
Address: जिला न्यायालय कमिश्नर दफ्तर के बीच जीई रोड पर स्थित
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जैतू साव मठ
जैतू साव मठ का इतिहास 250 साल पुराना है। जैतू साव मठ का अपना
ऐतिहासिक महत्व है ,यह उन इमारतों में से एक है जिनसे हमारे रायपुर का
इतिहास जुड़ा हुआ है। जैतू साव मठ का स्वतंत्रता आंदोलन से गहरा रिश्ता रहा
हैं जहां कभी स्वतंत्रता संग्रात सेनानी बैठक कर अपनी योजनाएं बनाया करते
थे। यह कभी पं. सुंदरलाल शर्मा, महंत लक्ष्मीनारायणदास सहित राज्य के
बड़े नेताओं का ठिकाना हुआ करता था। 22 नवंबर 1933 को गांधीजी जब रायपुर
आए थे तो जैतू साव मठ में ही उन्होंने लोगों आजादी का पाठ पढ़ाते हुए
संदेश दिया था।
Address: पुरानी बस्ती, रायपुर
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विक्टोरिया जुबली टाउन हॉल
विक्टोरिया जुबली टाउन हॉल का इतिहास122 साल पुराना है। इसका शुभारंभ
12 अगस्त 1890 को छत्तीसगढ़ के तत्कालीन कमिश्नर एएचएल प्रेशर ने किया था।
अब इसका नाम बदलकर वंदेमातरम हॉल कर दिया गया है। इसके सामने बने पार्क
में भी स्वतंत्रता के पूर्व कई गुप्त बैठकें रखी गईं थीं। यह हॉल
स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की गुप्त बैठकों का खास अड्डा हुआ करता था।
हॉल के सामने बने पार्क ने भी आजादी की लड़ाई की रणनीति बनाने में अपना
योगदान दिया था।
Address: शास्त्री चौक ,रायपुर
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दामाखेड़ा
दामाखेड़ा कबीरपंथियों के तीर्थ स्थान के रूप में विख्यात है। इस पंथ के
अनुनायियों के लिए छत्तीसगढ़ में यह सबसे बड़ा आस्था का केंद्र माना जाता
है। यह रायपुर से लगभग 45 किलोमीटर दूर रायपुर बिलासपुर मार्ग पर स्थित है।
यहां कबीर मठ की स्थापना 100 साल पहले इस पंथ के12 वें गुरु उग्रनाम ने
की थी। यहां हर साल माघ शुक्ल दशमी से माघ पूर्णिमा तक संत समागम समारोह
आयोजित किया जाता है। यहां आपको समाधि मंदिर के पास कबीर की जीवनी बेहद
मनमोहन और कलात्मक अंदाज में दीवारों पर नक्काशी कर उकेरी गई है।
Address: रायपुर - बिलासपुर मार्ग पर
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कैसरे-ए-हिन्द
इसे देखकर हम कह सकते हैं कि हैदराबाद की तर्ज पर हमारे रायपुर में भी
एक चार मीनार स्थापित है। दरअसल कभी सरे-ए-हिन्द के नाम से विख्यात इन
मीनारों का निर्माण अंग्रेजों के शासन काल में हुआ था। जानकारों का कहना है
कि सन्1877 में जब महारानी विक्टोरिया रायपुर आईं तो स्थानीय लोगों ने
उन्हें उपहार के रूप में इसे भेंट किया। दरअसल ये उस समय नगर निगम के समीप
स्थित एक परिसर का द्वार हुआ करता था जिसमें खूबसूरत चार मीनार भी थीं। उस
समय यहां खाली मैदान हुआ करता था जिसमें मेले और बाज़ार लगा करते थे। लेकिन
कालांतर में इसके ऊपर ही रविभवन नामक व्यावसायिक कॉम्प्लेक्स का निर्माण
हुआ जिसको लेकर इतिहासकारों ने विरोध भी किया था। उन्होंने मांग की थी कि
इसे संग्रहालय में संरक्षित किया जाए लेकिन प्रशासन ने इसको नजऱअंदाज करते
हुए इसकी दो मीनारों को रविभवन के निर्माण में दफ्न होने दिया।
Address: जय स्तंभ चौक , रायपुर
kumar satish
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महामाया मंदिर
रायपुर पुरानी बस्ती महामाया मंदिर रायपुर के प्रमुख शक्तिपीठ के रूप
में विख्यात है और आस्था का प्रमुख केंद्र है । नवरात्रि के समय यहां
छत्तीसगढ़ के साथ ही कई अन्य राज्यों से भी भक्तों का मेला लगता है। इस
मंदिर का निर्माण कलचुरी के शासकों ने कराया था । ऐसी मान्यता है कि राजा
मोरध्वज ने महिषासुरमर्दिनी की अष्टïभुजी प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा मंदिर
में की थी। महामाया की प्रतिष्ठा कलचुरी शासकों की कुलदेवी के रूप में भी
है। कहा जाता है कि रतनपुर के कलचुरियों की एक शाखा जब रायपुर में स्थापित
हुई तो उन्होंने अपनी कुलदेवी महामाया का भव्य मंदिर यहां भी बनवाया।
मुख्य मंदिर के अलावा स
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विवेकानंद सरोवर (बूढ़ा तालाब)
विवेकानंद सरोवर (बूढ़ा तालाब) शहर के बीचो-बीच स्थित है। इसके साथ कई
महापुरुषों की स्मृतियां जुड़ी हुई हैं। यह राजधानी का एक ऐसा पर्यटन स्थल
है जिसका अपना ऐतिहासिक महत्तव है। तालाब को 600 वर्ष पहले कल्चुरी वंश के
राजाओं द्वारा खुदवाया गया था। इतिहासकारों के मुताबिक यह पहले150 एकड़
में था जो अब मात्र लगभग 60 एकड़ में ही सीमित हो गया है। तालाब के पास
स्थानीय महापुरुषों के अलावा स्वामी विवेकानंद ने भी अपने जीवन के कुछ वर्ष
व्यतीत किया है। इसकी एक विशेषता यह भी है कि 14 वर्ष की आयु में स्वामी
विवेकानंद जब रायपुर आये थे तो वे इस तालाब में तैरकर कर बीच टापू तक जाते
थे, इस कारण से वहां अभी विवेकानंद की विशाल प्रतिमा स्थापित है।
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राजकुमार कॉलेज
इसकी नींव अंग्रेजों के शासनकाल में रखी गई थी। यह पूर्वी भारत के
उत्कृष्ट अंग्रेजी माध्यम स्कूलों में शामिल था। इसे वर्ष1882 में जबलपुर
में तत्कालीन वाणिज्यिक पत्र के मुख्य आयुक्त सर एंड्रयू फे्रजर द्वारा
स्थापित किया गया था। छत्तीसगढ़, उड़ीसा और बिहार के राजघरानों, जमींदारों
के बच्चों को शिक्षा देने के उद्देश्य से वहां पर एक छात्रावास सह स्कूल के
रूप में इसे शुरू किया गया। वर्ष1894 में इसे रायपुर स्थानांतरित करते हुए
बोर्डिंग स्कूल के रूप में खोला गया। रायपुर में 100 साल पूरे होने
पर1994 में13 भाषाओं में स्कूल का वृत्तचित्र भी बना। यहां पर छात्रों को
आज भी शिक्षा के आलावा घुड़सवारी, तीरंदाजी, फोटोग्राफी, योग आदि का
प्रशिक्षण दिया जाता है।
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श्री हटकेश्वर महादेव मंदिर
यह राज्य में बहने वाली नदी के किनारे है, जिसके तट दो जिलों को विभाजित
करते हैं। क्षेत्र का नामकरण और स्थापना कल्चुरी शासन काल में हुई थी, तब
से यहां लोग पीढिय़ों से अपनी धार्मिक मान्यताओं की पूर्ति के लिए आते हैं।
क्षेत्र का नामकरण श्री हटकेश्वर महादेव मंदिर के नाम पर पड़ा। महादेव शिव
के इस मंदिर का निर्माण सन् 1402 में हाजीराज नाइक द्वारा कल्चुरी शासक
भोरमदेव राय के पुत्र राजा रामचन्द्र के समय में करवाया गया था।

दूधाधारी मठ
यह मंदिर राजधानी का ऐतिहासिक दूधाधारी मठ में स्थित है। जानकारों के
अनुसार यह करीब 1000 वर्ष पुराना मंदिर है, जिसका निर्माण राजा रघुराव
भोसले ने करवाया था। इनका नवीनीकरण समय-समय पर करवाया जाता है। इस मठ का
महत्व इस कारण भी है कि यहां पर भगवान श्रीराम ने वनवास के दौरान विश्राम
किया था। यहां रामसेतु पाषाण भी रखा गया है।दूधाधारी मठ का अपना प्राचीन
इतिहास रहा है। इस मठ में कई देवी-देवताओं के मंदिर मौजूद है। इनमें बालाजी
मंदिर, संकट मोचन हनुमान मंदिर, रामपंचायतन और वीर हनुमान मंदिर प्रमुख
हैं। यहां मौजूद हर मंदिर किसी न किसी शानदार इतिहास और रोचक कहानियां
कहानियों का हिस्सा है। ऐसी ही छोटी सी रोचक कहानीदूधाधारी मठ के नाम को
लेकर है। इस मठ के संस्थापक बालभद्र दास महंतजी हनुमान जी के बड़े भक्त थे।
उन्होंने एक पत्थर के टुकड़े को हनुमान जी मानकर श्रृद्धा भाव से पूजा
अर्चना करने लगे। वह अपनी गाय सुरही के दूध से उस पत्थर को नहलाते थे और
फिर उसी दूध का सेवन करते थे। इस तरह उन्होंने अन्न का त्याग कर दिया और
जीवन पर्यन्त दूध का सेवन किया। इस तरह बालभद्र महंत दूध आहारी हो गए,
इसका मतलब दूध का आहार लेने वाला। बाद में यह यहदूधाधारी मठ नाम से जाना
गया। इस छोटी सी घटना ने बालभद्र दास को इतिहास में अमर बना दिया और लोगों
के लिए पूज्य भी।
kumar satish
Saturday, February 23, 2013
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