Saturday, April 7, 2012

सुरक्षा कंपनियों की आड़

चंद लाइसेंसी सुरक्षा कंपनियों की आड़ में सैकड़ों सुरक्षा एजेंसियां काम कर रही हैं। एजेंसियों के पास न तो शासन की मान्यता है और न ही प्रशिक्षित सुरक्षाकर्मी। बावजूद इसके वह शासन की नाक के नीचे धड़ल्ले से कंपनी चला रहे हैं। यह फर्जीवाड़ा यहीं नहीं रुकता। शासन ने एक साधारण सुरक्षकर्मी का एक दिन का न्यूनतम वेतन 169 रुपए तय किया है, जबकि कंपनियां उन्हें इसका आधा भी नहीं दे रही हैं। एक सुरक्षाकर्मी को 12 घंटे की ड्यूटी के बाद महीने में 12 सौ से 15 सौ रुपए ही मिलता है, जबकि इससे अधिक की ड्यूटी पर 25 सौ रुपए दिए जाते हैं। तो आप ही समझ सकते हैं कि उनकी जिम्मेदारी कितनी है और आप कितने सुरक्षित हैं। दरअसल सुरक्षा के नाम पर तैनात ये गार्ड कैम्पसों में केवल गेट खोलने और बंद करने का ही काम कर रहे हैं। सुरक्षा के लिए उन्हें डंडे तक कंपनियों के कर्ता-धर्ता मुहैया नहीं कराते। कैसे मिलती है मान्यता: सुरक्षा एजेंसी खोलने से पूर्व इंदौर के कमिश्नर आफिस से ईएसआई नंबर (फीस करीब 40 हजार रुपए) और भोपाल से पीएफ नंबर (फीस 10 से 12 हजार रुपए) लेना होता है। कंपनी के पास लेबर लाइसेंस भी होना जरूरी होता है। इसके साथ ही एक सुरक्षा कंपनी खोलने के लिए न्यूनतम 22 कर्मचारी या गार्ड होना जरूरी होते हैं। इसमें अधिकतम संख्या तय नहीं होती। इसके बाद कंपनी के लिए एसएसपी आफिस को आवेदन दिया जाता है। जहां पुलिस जांच के बाद कंपनी का आवेदन आईजी इंटेलीजेंस के पास भेज दिया जाता है। जहां से कंपनी को मान्यता मिलती है। कंपनी को हर पांच साल में अपना रजिस्ट्रेशन रिन्यू कराना होता है। यह भी बताना अनिवार्य: कंपनी को यह भी बताना होता है कि उन्हें कंपनी पूरे मध्यप्रदेश में संचालित करनी है या कुछ निश्चित जिलों में। इसके लिए अलग-अलग फीस जमा कराई जाती है। कंपनी की समय-समय पर राष्ट्रीय स्तर पर और राज्य स्तर पर जांच की जाती है। लाइसेंस के लिए सुरक्षाकर्मियों के छह माह की ट्रेनिंग के सर्टिफिकेट भी जमा कराने होते हैं। इसके अलावा सुरक्षा एजेंसियों के लिए प्रशिक्षित और सक्षम सुरक्षाकर्मी रखने की अनिवार्यता होती है। इसके लिए सुरक्षाकर्मियों को ट्रेनिंग लेना अनिवार्य होता है।
नियम भी हुए शिथिल:
जानकारी के मुताबिक पहले उन्हें ही सुरक्षा एजेंसी की लाइसेंस मिलता था, जो आर्मी या पुलिस से रिटायर हो चुके होते थे। आर्मी के जवान के लिए 80 फीसदी और शेष 20 फीसदी रजिस्ट्रेशन रिटायर पुलिसकर्मियों के नाम पर होता था। बाद में इस नियम को शिथिल कर दिया गया और पैसा फेंक तमाशा देख की प्रक्रिया शुरू हो गई। अब किसी को भी सुरक्षा एजेंसी का रजिस्ट्रेशन मिल जाता है।

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