Wednesday, January 18, 2012

सलौने सपनों का पर्याय सूरजपुर और बलरामपुर जिला


सतीश पाण्डेय
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ईश्वर ने मनुष्य को सपने देखने और सपने संजोने की अनमोल नैमत दे रखी है। सपने देखना इन्सानी फितरत है। संभ्ावत: सबसे ज्यादा सपने युवा देखते हैं। बच्चे अपने सपनों में कभ्ाी आसमान में उड़ने लगते हैं, कभ्ाी धरातल की गहराइयों में समा जाते हैं तो कभ्ाी परियों के देश में विचरण करने लगते हैं। युवा अपने सपनों में अकसर अेसी घ्ाटनाएं देखते हैं, जिन्हेंे वह धरातल पर हकीकत का स्वरूप देना चाहते हैं। युवा अपने वर्तमान एवं भ्ाविष्य के ताने-बाने को ही बहुधा सपनों में देखते हैं। हर इन्सान अच्छे सपने देखना चाहता है।।सुन्दर और हसीन सपने, मन को लुभ्ााते सपने, गाते और गुनगुनाते सपने। बुरे सपने तो कोई भ्ाी देखना नही चाहता। सपने हमारी अेसी ख्वाहिशें होती हैं, जिन्हें हम हकीकत में पूरा होने की कल्पना करते हैं। बड़े-बुजुर्ग कहते हैं कि अपनी हैसियत के अनुसार ही सपने देखो। सपने अेसे देखो जो पूरे हो जाएं। चिन्तक और विचारक खुली ऑखों से सपने देखने की समझाईश देते हैं। सपनों को संकल्प की तरह मन में ठानने और उन्हें पूरा करने के लिए लक्ष्य के अनुरूप प्रयास करने कहा जाता है। पर जो सपना हमने देखा ही नहीं, वो अचानक पूरा हो जाए, जो ख्वाब हमने अपनी पलकों पर संजोया ही नही वो अनायास ही हकीकत में उतर आए तो क्या कहने।।? अेसा ही कुछ हुआ 15 अगस्त 2011 को। स्वतंत्रता दिवस के परम पावस दिवस पर सूरजपुर और बलरामपुर क्षेत्रवासियों के लिए प्रदेश के मुखिया ने सरगुजा जिले को विभ्ााजित कर दो नए जिले सूरजपुर और बलरामपुर के गठन की घ्ाोषणा कर दी। क्षेत्रवासियों को तो जैसे बिन मांगे ही सब कुछ मिल गया, अपने क्षेत्र के विकास के जो सपने उन्होंने देखे थे, उससे बढ़कर जिले की सौगात मिल गयी, मन का मयूर अपनी खूबसूरत पंखों को फैलाकर नाचने लगा, पैर जमीन पर पड़ना ही नही चाहते, चहुॅओर खुशियां ही खुशियां, सर्वत्र हर्ष और उल्लास का वातावरण छा गया। जोश, उत्साह और देशभ्ाक्ति की भ्ाावना से ओतप्रोत वो मंजर हमेशा-हमेशा के लिए अविस्मरणीय बन गया। कुछ अतिउत्साही लोगों को तो अपने कानों पर विश्वास ही नही हो रहा था या फिर उत्सुकतावश जानबूझकर मोबाईल कान से लगाकर अपने नजदीकी स्त्रोेतों से समाचार की पुष्टि करने में लगे थे। लोगांे का उत्साह देखते ही बनता था। मोबाईल का स्पीकर ऑन कर खुद तो सुन ही रहे थे, दूसरों को भ्ाी सुना रहे थे।।।अरे सुन तो नावा जिला बएन गईस, सूरजपुर और बलरामपुर हर जिला बनही। अड़बडेच होए गईस, गजबे होए गईस रे। हमरे तो सोचलो नई रहेन कि अइसनो होही। एमन जब पुलिस जिला बनिन तो जीव लागिस कि एक दिन जिला तो जरूर बनही, बकि एतना हालू बनही-एला तो नई सोचे रहेन। ने जी हमरे तो सुने रहेन कि जिला बनाए बर हड़ताल करना पड़थे, एदे चोजाम करके, जिला बनाओ-जिला बनाओ कर नारा लगाना पड़थे। तब कहों सरकार कर कान में ढीला हर रेंगथे तो सोएच विचार के जिला बनाएके हुॅकारी ला भ्ारथें। बकि एतो कांहिच नहीं, न नाराबाजी, चाजाम ना आउर काहीं-एदे सहजेज बएन गईस, मजा तो आए गईस रे।।।।जिला बनने के हर्षोल्लास की बातचीत में स्थानीय सयाने व्यक्ति ने अपनी भ्ाागीदारी सुनिश्चित करते हुए कहा-अरे, तनिको पढ़े-लिखे हा कि नीचट गंवारेच हा। तुलसी बाबा कहिन हैं कि-
मुखिया मुख सौ चाहिए, खान-पान को एक। पालै-पोसे सकल अंग, तुलसी सहित विवेक।।
एकर मतलब समझथा, न साक्षरता कलास जा अउर न घ्ार कर लइरका मन ठे पढ़ा, तो ठंेगवा समझिहा। सुना।।।घ्ार कर मुखिया अइसन होना चाहिए कि घ्ार दार मन कर बात ला समुझ ले, बोलना झईन पड़े, अउर बिना मांगले जरूरत कर जिनिस ला धराए दे। एदे एहिचकस हए हमर मुखिया हर, हमर राएज के मुख्यमंत्री डॉ। रमन सिंह हर। ने जी मुखिया ला तो समुझदार होने चाही। मुॅह ला खोएल के मांगीच देही तो ओकर का मायन है, बिन मांगले कोई ला मिएल जाए तो ओकर बात दूसर होथे। ए बात ला समझा, अउर पढ़ा-लिखा, समुझदार बना। तबे तो गांव-गली कर विकास होही। अब विकास काला कथें ? एला मत पूछिहा, नहीं तो एकेच ठेंगरा लगाहूॅ। गाल में जहर-माहूर कस का-का ला गलिआएके बकर-बकर करत रथा। अरे पढ़ा-लिखा, खेती-किसानी कर नावा-नावा बात ला सीखा। तबे तो जिला बने कर फायदा हर मिलही, नहीं तो मुॅह ला उफारे रइहा, जिला हर खाए बर नइ दे। राएज कर मुखिया हर जिला तो बनाए देहिस। अब अपन-अपन करम ला ईमानदारी से करा। तुहॅू मन पढ़ा, लइरकोमन ला पढ़ावा, चोंघ्ाी-माखुर कर बुता ला छोड़ा। अपन-अपन काम में धियान देइहा तबे सबकर मदेद ले विकास होथे-अइसने नई होए।।।समझा।मुख्यमंत्री डॉ। रमन सिंह की घ्ाोषणा के अनुरूप 1 जनवरी 2012 से सूरजपुर और बलरामपुर जिले अपने अस्तित्व में आ गए। शासन द्वारा दिसम्बर माह में ही नए जिलों के लिए ओ।एस।डी। की नियुक्ति कर दी गई। जिलों के विभ्ााजित क्षेत्रों के अभ्ािलेखों का पृथरण एवं संधारण किया जाने लगा। सरगुजा जिले के कलेक्टोरेट परिसर में इन जिलों को समारोहपूर्वक विदाई दी गई। सम्बन्धित जिलों के विशेष कर्त्तव्यस्थ अधिकारियों को तिरंगा झण्डा, गजेटियर सहित आवश्यक अभ्ािलेख प्रदान किए गए। 1 जनवरी 2012 से ये दोनों जिले अस्तित्व मंे आ गए हैं। 17 जनवरी को बलरामपुर और 19 जनवरी को सूरजपुर जिले का शुभ्ाारम्भ्ा हो गया...
अपने में बहुत कुछ समेटे हैं सूरजपुर और बलरामपुर जिले
प्राचीन इतिहास
सरगुजा जिले के साथ ही नवगठित जिले सूरजपुर एवं बलरामपुर का प्राचीन इतिहास जुड़ा है। अविभ्ााजित सरगुजा के रामगढ़ की गुफाओं एवं वर्तमान कोरिया जिले के कंजिया के जंगल की गुफाओं में भ्ाित्ती चित्रों का पाया जाना पौराणिक काल से ही इस क्षेत्र में मानव समाज की उपस्थिति को प्रदर्शित करता है। रामगढ़ के जोगीमारा और सीताबेंगरा गुफाओं में अर्द्ध मागधी लिपि पाई जाती है। इन स्रोतों के आधार पर इस अवधि को ईशा पूर्व पहली एवं दूसरी शताब्दी की मध्य अवधि कहा जाता है। इसके बाद का काल नंद वंश, मौर्य वंश, कल्चुरी वंश, सातवाहन वंश, गु'त वंश का रहा है। इसके बाद इस क्षेत्र में रक्सैल वंश का शासन रहा। मुगल शासन काल में सरगुजा क्षेत्र कई बार पटना, मुंगेर, मुर्शीदाबाद और दिल्ली के आधिपत्य में रहा। इस क्षेत्र में हाथियों की संख्या को राजशक्ति के रूप में जाना जाता था। यह क्षेत्र अभ्ाी भ्ाी हाथियों के लिए विख्यात है।
भ्ाौगोलिक स्थिति
सरगुजा जिला छोटा नागपुर के पठार पर स्थित है। सूरजपुर इसी पठार के पश्चिम और बलरामपुर पूर्वी छोर पर स्थित है। यह पठार समुद्र तल से 400 मीटर की ऊॅचाई पर स्थित है। कन्हर घ्ााटी का पूर्वी भ्ााग जमीरापाट को अवगड़ी, तरैनी और रार पहाड़ियों को दक्षिण में तथा लहसुनपाट, गौरलता एवं द्वारी, अंबाघ्ााट पहाड़ियांे को पश्चिम में विभ्ाक्त करती है। जमीरापाट की अधिकतम ऊॅचाई 1,159 मीटर है। सामरी तहसील ग्राम इसी पठार पर स्थित है। लहसुनपाट की पहाड़ियों में कन्हर की पश्चिमी और राजापहार और रजबंधा स्थित हैं। सूरजपुर जिले मंे कुदरगढ़ पहाड़ काफी ऊॅचाई पर है।
सूरजपुर की अेतिहासिकता
सूरजपुर का प्राचीन नाम डांड़बुला था। सरगुजिहा में डांड़ का आशय मैदान और बुला का आशय घ्ाूमने से है। यहां का धरातल मैदानी है, संभ्ावत: इसीलिए सूरजपुर का नाम डांड़बुला रखा गया। ब्रिटिश शासन काल के दौरान यहां के डेव्हलपमेंट ऑफिसर श्री चण्डीकेश्वर शरण सिंहदेव द्वारा डांड़बुला के स्थान पर सूर्यपुर नाम रखा गया जो अपभ्ा्रंश स्वरूप सूरजपुर हो गया। अविभ्ााजित मध्यप्रदेश के दौरान सूरजपुर तहसील को मध्यप्रदेश की सबसे बड़ी तहसील होने का दर्जा प्रा'त था। छत्तीसगढ़ में सूरजपुर जनपद को सबसे बड़े जनपद होने का गौरव प्रा'त है। इस जनपद में 100 ग्राम पंचायत एवं 121 ग्राम हैं। 1975-76 में सूरजपुर ग्राम पंचायत के तत्कालीन सरपंच पंडित सूर्य नारायण ओझा के नेतृत्व में जिला बनाने की प्रारम्भ्ािक मांग की गई थी। इसके पश्चात 1983 में जिला बनाओ प्रस्ताव पारित कर जनसंख्या व क्षेत्रफल की जानकारी सहित जानकारी प्रेषित की गई थी। मध्यप्रदेश सरकार द्वारा जिला पुनर्गठन हेतु बनाए गए दुबे आयोग ने 1994-95 में सूरजपुर को पृथक जिला बनाए जाने की अनुशंसा की थी।
आधारभ्ाूत संरचनाओं का विकास
ब्रिटिश शासन काल में यह क्षेत्र घ्ानघ्ाोर वनों से आच्छादित था। फलस्वरूप उन्होंने सड़क एवं पुल-पुलियों का निर्माण कराया। अंग्रेजों के शासन काल में 1933 में यहां पुलिस थाना की स्थापना की गई, जिसका भ्ावन आज भ्ाी विद्यमान है। इसी दौरान गेमिन इण्डिया लिमिटेड द्वारा रेणुका नदी पर पुल का निर्माण किया गया। यह पुल गत 78 वर्षों से अपनी मजबूत स्तंभ्ाों के कारण आवागमन के लिए सुचारू बना हुआ है। सूरजपुर के पूर्व में स्थित रेणुका नदी यहां की जीवन दायिनी नदी मानी जाती है। शासकीय कार्यालयों की स्थापना सूरजपुर को 1952 में तहसील का दर्जा प्रा'त हुआ। 1953 में सूरजपुर में जनपद पंचायत कार्यालय खोला गया। यहां 1979 में विद्युत वितरण केन्द्र की शुरूआत की गई तथा मार्च 2010 में विद्युत मण्डल का डिवीजन कार्यालय खोला गया। 1975 में यहां अनुविभ्ाागीय कार्यालय खोला गया तथा 1976 में सूरजपुर को शैक्षणिक जिला बनाया गया। 1994 में सूरजपुर को नगर पंचायत तथा 2009 में नगर पालिका बनाया गया। यहां ग्रामीण यांत्रिकी सेवा का उप संभ्ाागीय कार्यालय 1992 में खोला गया था। जिसे 2006 में संभ्ाागीय कार्यालय बनाया गया। 1976 में यहां जल संसाधन विभ्ााग का संभ्ाागीय कार्यालय खोला गया था। वर्तमान में इस कार्यालय के अधीन 4 उप संभ्ााग कार्यालय संचालित हैं। इसमें अनुविभ्ाागीय कार्यालय सूरजपुर, प्रतापपुर, प्रेमनगर तथा एलबीसी उप संभ्ााग सूरजपुर शामिल हैंं। 20 नवम्बर 2004 को सूरजपुर को पुलिस जिला बनाया गया। इस जिले के अन्तर्गत सात पुलिस थाने एवं 14 पुलिस चौकियां हैं। महत्वपूर्ण व्यक्ति समाज सेविका स्व। राजमोहिनी देवी-इनका जन्म सूरजपुर जिले के प्रतापपुर विकासखण्ड अन्तर्गत शारदापुर ग्राम में सन् 1914 को हुआ था। इनका वास्तविक नाम रजमन बाई था। इन्होंने महात्मा गांधी से प्रेरित होकर अपने जिले एवं दूसरे प्रदेशो-बिहार एवं उत्तरप्रदेश के सीमा से लगे गांव में समाज सुधार के लिए अपना संदेश लोगों तक पहॅुचाया। उन्होंने लोगों को जीव हिंसा नहीं करने, शराब छोड़ने और मांस भ्ाक्षण नहीं करते हुए सन्मार्ग पर चलने का संदेश दिया था। राजमोहिनी देवी को वर्ष 1986 में इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय समाज सेवा पुरस्कार तथा 1989 में राष्ट्रपति द्वारा पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 6 जनवरी 1994 को राजमोहिनी देवी का स्वर्गवास हो गया। संत गहिरा गुरू- संत गहिरा गुरू द्वारा बलरामपुर जिले के कुसमी विकासखण्ड अन्तर्गत श्रीकोट में संस्कृत विद्यालय की स्थापना कर क्षेत्र में संस्कृत भ्ााषा को सुदृढ़ किया। इन्होंने मद्य निषेध और मांसाहार त्यागने का आंदोलन चलाया था। इनका वास्तविक नाम रामेश्वर दयाल था। इनका जन्म 1884 में वर्तमान जशपुर जिले के बगीचा विकासखण्ड के गहिरा ग्राम में हुआ था। इन्होंने इस क्षेत्र के आदिवासियों को समस्त व्यसनों से मुक्त करने का लक्ष्य रखा था।जनप्रतिनिधिगण वर्ष 1977 के पूर्व सूरजपुर विधानसभ्ाा क्षेत्र सामान्य सीट के रूप में था। इस क्षेत्र के पहले विधायक श्री धर्मपाल जायसवाल थे। लम्बे समय तक स्वतंत्रता संग्राम सैनानी पंडित धीरेन्द्रनाथ शर्मा इस क्षेत्र के विधायक रहे। श्री शर्मा के पश्चात पंडित रेवती रमण मिश्रा सूरजपुर के विधायक भ्ाी रहे। 1977 में सूरजपुर विधानसभ्ाा क्षेत्र को आदिवासी वर्ग हेतु घ्ाोषित करने पर शिवप्रताप सिंह विधायक बने। श्री खेलसाय सिंह, श्री विजय प्रताप सिंह, श्री भ्ाानूप्रताप सिंह ने भ्ाी इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया है। वर्ष 2007 में सूरजपुर विधानसभ्ाा क्षेत्र का नाम विलोपित कर प्रेमनगर विधानसभ्ाा क्षेत्र घ्ाोषित करते हुए इसे पुन: सामान्य सीट घ्ाोषित किया गया। परिसीमन के बाद पहली विधायक श्रीमती रेणुका सिंह हैं। उल्लेखनीय है कि श्रीमती रेणुका सिंह दूसरी बार विधायक बनी हैं तथा सरगुजा एवं उत्तर क्षेत्र विकास प्राधिकरण की उपाध्यक्ष भ्ाी हैं। श्रीमती रजनी त्रिपाठी भ्ाटगांव विधानसभ्ाा और डॉ। प्रेमसाय सिंह प्रतापपुर विधानसभ्ाा क्षेत्र का वर्तमान में प्रतिनिधित्व कर रहे हंै। मुरारी लाल सिंह सरगुजा के लोकसभ्ाा सांसद हैं। इसका मूल निवास ग्राम डेडरी सूरजपुर जनपद के अन्तर्गत आता है। श्री मुरारी लाल सिंह पिलखा विधानसभ्ाा क्षेत्र के विधायक रहे हैं। श्शिवप्रताप सिंह का निवास ग्राम सोनपुर, शिवप्रसादनगर सूरजपुर जिले के भ्ौयाथान विकासखण्ड अन्तर्गत आता है। श्री सिंह वर्तमान मंे राज्यसभ्ाा सांसद हैं।
बलरामपुर जिले में पाल विधानसभ्ाा क्षेत्र से लगातार प्रतिनिधित्व करते आ रहे विधायक और वर्तमान पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री रामविचार नेताम इसी क्षेत्र से आते हैं। वर्तमान संसदीय सचिव सिद्धनाथ पैकरा सामरी विधानसभ्ाा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं। स्वर्गीय श्री लरंग साय इसी क्षेत्र से लोकप्रिय विधायक और सांसद रह चुके हैं। औद्योगिक विकास सूरजपुर जिले में विश्रामपुर एवं भ्ाटगांव क्षेत्र के कोयला खान स्थित हैंं। इसके अतिरिक्त लटोरी एवं प्रतापपुर क्षेत्र तथा गायत्री रेहर परियोजना कोयला खान भ्ाी इसी जिले में स्थित हैं। इन कोयला खानों में मध्यम श्रेणी का कोयला पाया जाता है। मुख्यमंत्री डॉ। रमन सिंह द्वारा उद्घ्ााटित मॉ महामाया सहकारी शर कारखाना इसी जिले के प्रतापपुर विकासखण्ड अन्तर्गत केरता ग्राम में स्थित है। यह कारखाना क्षेत्र का एकमात्र शर कारखाना है। यह शर कारखाना लगभ्ाग 118 करोड़ रूपए की लागत से बना है। कारखाने की प्रतिदिन की पेराई क्षमता 2500 मीट्रिक टन है।
सूरजपुर जिले के प्रेमनगर विकासखण्ड में इफको का ताप विद्युत परियोजना तथा भ्ौयाथान में भ्ाी विद्युत उत्पादन संबंधी परियोजना कार्य प्रगति पर है। सूरजपुर के निकट स्थित नयनपुर ग्राम में औद्योगिक परिक्षेत्र की स्थापना की गई है। वर्तमान में इस औद्योगिक परिक्षेत्र में पावर 'लांट तथा स्टील इण्डस्ट्रीज सहित लगभ्ाग 20 औद्योगिक इकाइयां संचालित हैं। बलरामपुर जिले के सामरीपाट क्षेत्र में बॉक्साईट खनिज की बहुलता है। इस क्षेत्र से बॉक्साईट का उत्खनन किया जा रहा है।
धार्मिक एवं पर्यटन स्थल
अविभ्ााजित सरगुजा जिले का प्रसिद्ध धार्मिक स्थल कुदरगढ़ ओड़गी विकासखण्ड में स्थित है। सूरजपुर जिलान्तर्गत आने वाले कुदरगढ़ में रामनवमीं के अवसर पर विशाल मेला लगता है। कुदरगढ़ स्थित मॉ बागेश्वरी के प्रति आस्था रखने वालों में दूसरे प्रदेशांे के लोग भ्ाी शामिल हैं। रामनवमीं के अवसर पर यहां झारखण्ड, उत्तरप्रदेश एवं मध्यप्रदेश के श्रद्धालु दर्शनार्थ आते हैंं। मॉ बागेश्वरी देवी को जीवन्त दैवीय शक्ति के रूप में जाना जाता है। जिला मुख्यालय सूरजपुर से केतका मार्ग पर देवीपुर नामक ग्राम में महामाया मंदिर स्थित है। रामनवमीं एवं नवरात्र के अवसर पर इस मंदिर में मेला लगता है। प्रतापपुर विकासखण्ड के शिवपुर नामक स्थान पर प्रसिद्ध शिव मंदिर स्थित है। चांदनी बिहारपुर के समीप रकसगण्डा जल प्रपात स्थित है। इसी जिले मंे सारासोर, बांक जल कुण्ड, बिल द्वार गुफा आदि दर्शनीय स्थल हैं।
बलरामपुर जिला के शंकरगढ़ विकासखण्ड अन्तर्गत डीपाडीह नामक स्थान अपने पुरातात्विक एवं धार्मिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है। यहां प्राचीन कालीन कलात्मक पाषाण मूर्तियां पायी जाती है। इस क्षेत्र में पाए जाने वाले अवशेषों से यहां प्राचीन काल में शासकों के निवास की पुष्टि होती है। डीपाडीह में आठवीं से चौदहवीं शताब्दी के शैव एवं शाक्य सम्प्रदाय के पुरातात्विक अवशेष विखरे हुए हैं। सावंत सरना में पंचायन शैली में निर्मित शिव मंदिर है। मंदिर का प्रवेश द्वारा अत्यन्त सुशोभ्ाित है। उरांव टोला शिव मंदिर, सावंत सरना प्रवेश द्वार, महिषासुर मर्दनी की विशिष्ट मूर्ति, गजाभ्ािषेकित लक्ष्मी मूर्ति, उमा-महेश्वर की आलिंगनरत मूर्ति, भ्ागवान विष्णु, कुबेर, कार्तिकेय आदि की कलात्मक मूर्तियां, रानी पोखरा, बोरजो टीला, सेमल टीला, आमा टीला और खजुराहो शैली की मैथुनी मूर्तियां दर्शनीय हैं। तातापानी अपने गर्म स्त्रोत के कारण प्रसिद्ध है। भ्ोड़िया पत्थर एवं बेनगंगा जल प्रपात आदि मनोरम प्राह्नतिक सौंदर्य से परिपूर्ण यह क्षेत्र है।
सूरजपुर की रेणुका नदी
रेणुका नदी मध्य पठार को उत्तरी पहाड़ियों के समीप काटकर बहती है। इस नदी का उद्गम मतरिंगा नामक 1,088 मीटर ऊॅची पहाड़ी पर स्थित है। यह मध्यप्रदेश के सीधी जिले एवं उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले के समीप सोन नदी में मिलती है। महान और मोरन नदी इसकी सहायक नदियां हैं।-जो इसके दायीं छोर में मिलती हैं। रेणुका नदी के बायीं छोर में खरपरी, गोबरी, गोकनई, पीपरकछार और रमदईया नदी मिलती हैं। भ्ौयाथान विकासखण्ड के झिलमिली नाम स्थान पर इसका बहाव अत्यन्त चौड़ा हो जाता है। वाड्रफनगर विकासखण्ड के बलंगी नामक ग्राम के समीप रमकोला की पहाड़ियों में इसकी गहराई बढ़ जाती है। यही पर इस नदी में रकसगण्डा नामक जल प्रपात स्थित है। रेणुका नदी में कुछ स्थानों पर वर्ष भ्ार पानी का प्रवाह अच्छा रहता है, किन्तु कुछ स्थानांे पर इसका जल प्रवाह गर्मी के दिनों में कम हो जाता है। इस नदी की लम्बाई अविभ्ााजित सरगुजा जिले में लगभ्ाग 160 किलोमीटर है।
बलरामपुर की कन्हर नदी
कन्हर नदी का उद्गम खुड़िया पठार के गिधा ढोढ़ी से हुआ है। यह स्थान रायगढ़ जिले के सोनकियारी के उत्तर में स्थित है। खुड़िया पठार से नीचे उतरने के पश्चात् यह नदी सामरी तहसील के डीपाडीह एवं घ्ाुघ्ारी के छोटे से मैदान में प्रवेश करती है। इसके पश्चात् यह नदी पहाड़ी क्षेत्र में प्रवेश करके जमीरापाट को पूर्व में तथा लहसुनपाट को पश्चिम में काटती है। कन्हर नदी यहां पर 60 मीटर का प्रपात बनाते हुए ऊॅचे पठार पर बहती है। यह नदी बलरामपुर जिले को झारखण्ड से पृथक करती है।

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