Wednesday, July 8, 2009

शिक्षा की स्थिति


छत्तीसगढ़ राज्य में तत्कालीन मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने निजी विश्र्वविद्यालय खोलने की वैधानिक प्रक्रिया शुरू की थी और एक वर्ष के भीतर ही सौ से भी अधिक विश्र्वविद्यालय हो गये थे। अब तो लगता है कि भारत के प्रत्येक राज्य में अजीत जोगी को अपना माडल स्वीकार कर लिया है। छोटे राज्यों में दर्जनों विवि. प्रकट हो गये हैं और राज्य सरकार इन्हें वैधानिक कवच प्रदान करती है। अब तो उच्चतम न्यायालय ने भी अपनी राय दे दी है कि निजी विवि. सरकार से कोई पैसा नहीं लेते हैं इसलिए सरकार भी उनके फीस के ढांचे में बहुत अधिक दखलअंदाजी नहीं कर सकती। इस कारण निजी विवि. को और भी मनमानी करने का अवसर मिल जाता है। एक ओर निजी विवि. और दूसरी ओर सरकार द्वारा विदेशी विवि. को भारत में अपने केन्द्र खोलने की अनुमति देने पर विचार। इन दोनों के बीच में आने वाले समय में शिक्षा की क्या गति होने वाली है इसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। विगत दिनों रायपुर में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की केन्द्रीय कार्यकारिणी ने इस स्थिति को शिक्षा के बाजारीकरण का नाम दिया है। यह उचित ही जान पड़ता है । शिक्षा को बाजार के हवाले करके भारत सरकार जिस प्रकार का भारत बनाना चाहती है वह अमेरिका के हितों के लिए तो ठीक हो सकता, लेकिन सनातन भारत के हितों के लिए नहीं। स्वामी गोपाल आंनद बाबा चितरपुर, रामगढ़ देवी-देवताओं का अपमान अमेरिका की एक बीयर कंपनी लास्ट ब्रेवली ने अपनी बीयर की बोतल पर हिन्दुओं के आराध्य भगवान गणेश की तस्वीर छापकर दुनिया के समस्त हिन्दुओं की धार्मिक भावनाओं को चोट पहुंचायी है इसके पहले भी कई बार विदेशों में हिन्दू देवी-देवताओं के चित्र जूत्ते-चप्पलों, टायलेट पेपर जैसे उत्पादों पर छापकर हिन्दुओं को अपमानित करने का दु:साहस किया जाता रहा है। विदेशियों की इस विकृत मानसिकता को स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से ही भारतीय राजनीति की दुर्बलता ने बढ़ावा दिया है। देश की राजनीति अगर देश के प्राचीन गौरव, संस्कृति, उन्नत परंपरा, मान विन्दुओं की रक्षा नहीं कर सकती तो ऐसे में पग-पग पर देश को अपमानित होना पड़ेगा। इस तरह हिन्दू देवी-देवताओं, परंपराओं, मानविन्दुओं के अपमान के लिए भारत सरकार की कमजोरी और देश विरोधी राजनीति ही दोषी है। भारत सरकार को कठोर कदम उठाते हुए ऐसी घृणित घटनाओं की पुनरावृति रोकने के उपाय करने चाहिए। आवश्यकता होने पर अपनी नीति में परिवर्तन कर देश की मर्यादा की रक्षा करनी चाहिए। ऐसा नहीं होने पर देश के बहुसंख्यकों की प्रतिक्रिया को संभालना कठिन होगा। स्पष्ट है कि मनमोहन सिंह दो सौ प्रतिशत फेल अर्थशास्त्री हैं और इनकी आर्थिक नीतियां जन उद्घारक नहीं, बल्कि जन संहारक, पूंजीपति उद्घारक एवं राष्ट्र को चतुर्दिक गुलाम बनाने वाली है। इनकी असफलता का पहला प्रमाण तो यही है कि जहां महंगाई दर शून्य से नीचे दिखाई जा रही है वहीं महंगाई सातवें आसमान के ऊपर पहुंच चुकी है, जिसके कारण खाद्य पदार्थ आम जनता की पहुंच से दूर होते जा रही है। इनकी असफलता का दूसरा प्रमाण लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ना है। यदि ये सफल प्रधानमंत्री एवं अर्थशास्त्री होते तो सीना तानकर जनता के बीच जाते और जीतते। चूंकि ये पूर्णत: फेल प्रधानमंत्री एवं अर्थशास्त्री हैं। इसलिए जनता को मुंह दिखाने के डर से ये चोर दरवाजे से प्रधानमंत्री बने। यह इनकी कायरता का भी प्रमाण है। मनमोहन सिंह एक ऐसे प्रधानमंत्री हैं जो आम जनता के सिर से छत, तन से लंगोटी और मुंह से निवाला छीनकर व्यपारियों, पूंजीपतियों एवं उद्योगपतियों को चमकाने और विदेशी आकाओं को खुश कर देश को गुलाम बनाने में यकीन करते हैं। जिस व्यक्ति के नेतृत्व में आम जनता को प्याज तक नसीब नहीं हो रहा है उनका समर्थन करना जनहित एवं राष्ट्रहित के विरुद्घ है। सूर्यदेव चौधरी, धुर्वा मानवीय संवेदनाओं का अभाव लोगों में मानवीय संवेदनाओं का अभाव है। आज का मानव काफी चालाक, मतलबी और अवसरवादी हो गया है। क्षमा, दया, प्रेम, सहिष्णुता, त्याग, शांति, अहिंसा, बंधुत्व, भाईचारा जैसे गुणों से मनुष्य को अब कोई लेना-देना नहीं। गलाकाट के इस युग में आज का मानव बेहिसाब गलत सही तरीके से अपना काम निकालने में लगा हुआ है। दूसरों के अधिकारों व मानवता को अपने पैरों तले रौंदते व कुचलते जा रहा है। संवेदनाओं को पूर्णरूपेण आप्लावित एकपूर्ण व कालजयी मानव बनने की नितांत आवश्यकता है।

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