महुआ का मतलब अभी तक सीधे-सीधे दारू-शराब से था। मगर एक नए प्रयास ने इसे पौष्टिक आहार का स्वरूप दे दिया है। यानी, महुआ के बिस्किट, पौष्टिक स्वीटनर, चॉकलेट, जूस, पाचक चूर्ण के साथ और भी बहुत कुछ। ग्रामीण विकास एवं प्रौद्योगिकी केंद्र, नई दिल्ली में कार्यरत प्रोफेसर डॉ. एसएन नायक ने महुआ से कई पौष्टिक खाद्य पदार्थ तैयार किए हैं। ऐसा पहली बार हुआ है। इस तकनीक का पेटेंट भी करा लिया गया है। डॉ. नायक ने बताया कि इन चीजों को तैयार करने के लिए एक से डेढ़ लाख रुपए में मशीन लगाई जा सकती है। महुआ से बने खाद्य पदार्थो की गुणवत्ता को विशेषज्ञों ने भी परखा है। गांव-कस्बों में महुआ का पिट्ठा पहले से बनता रहा है। आधुनिक परिवेश और बाजार के हिसाब से अब बिस्किट आदि का निर्माण भी होगा। छत्तीसगढ़ के आदिवासी जिले सरगुजा-बस्तर समेत अन्य जिलों में महुआ की बहुतायत के कारण इसे व्यापक बाजार मिलने की भी गुंजाइश है। इस तकनीक को छत्तीसगढ़ के अन्य जिलों में के गांव-गांव तक पहुंचाने का प्रयास स्वयंसेवी संस्था वनवासी कल्याण केंद्र कर रही है। इस तकनीक के जन्मदाता डॉ. नायक समूहों को खुद प्रशिक्षित कर रहे हैं। पहले चरण में विभिन्न जिलों के 26 प्रतिभागियों को महुआ से खाद्य सामग्री बनाने का प्रशिक्षण दिया गया। संगठन के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सह पूर्व सांसद मोरेन सिंह पूर्ति कहते हैं कि आदिवासी बहुल इलाकों के लिए महुआ अब अभिशाप नहीं, वरदान है। नए प्रयोग में नाबार्ड भी सहयोग कर रहा है। आयुर्वेद में भी कई औषधीय प्रयोग महुआ कई औषधीय गुणों से युक्त है। संस्कृत में मधुक के नाम से प्रचलित महुआ का जैविक नाम बासिया लैटिफोलिया है। यह दर्जनों बीमारियों के इलाज में कारगर है। महुआ फूल का रस त्वचा रोग तथा सिरदर्द में प्रयोग किया जा सकता है। स्नायु की परेशानी, डायरिया, पेचिश, निर्जलीकरण, अस्थमा, ज्वर, मासिक के दौरान अत्यधिक रक्तस्राव सहित कई बीमारियों के इलाज में इसका उपयोग आयुर्वेद में वर्णित है।
Wednesday, March 24, 2010
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