बिना सुरक्षा उपकरण के ड्यूटी बजाने को विवश
रायपुर। दिन में लगातार आठ घंटे सड़क व चौराहों पर गुजारने वाले ट्रेफिक पुलिस के जवान इस भीषण गर्मी में वायु प्रदूषण समेत कई समस्याओं से जूझ रहे हैं। यातायात सिपाहियों को धूप और धूल की थपेड़ों से बचने के लिए कोई सुविधा भी उपलब्ध नहीं कराई जाती। बल की कमी के चलते जवान आराम तक के लिए तरस रहे हैं। वहीं आला अधिकारी बंद वाहनों और एयर कंडीशन कमरों में बैठकर मलाई खाने में व्यस्त हैं। यातायात अमले की समस्याओं से लगता है उन्हें कोई सरोकार नही है। टैÑफिक पुलिस के जवानों को चौक-चौराहों में ट्रेफिक व्यवस्था को बनाए रखने के लिए तैनात किया गया है। इसके लिए जवान हर मौसम में चौराहों के बीच खड़े होकर वाहनों को नियंत्रित करते हैं। जवानों को इस कार्य में सबसे अधिक परेशानी धूल और तेज धूप की वजह से उठानी पड़ती है। शहर के चौक-चौराहों और अत्यधिक प्रदूषित बाजारों में ड्यूटी करने वाले जवानों को कार्बन उत्सर्जन के कारण स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड़ता है। शहर में बढ़ते वाहनों की वजह से कार्बन उत्सर्जन तेजी से बढ़ा है। खासकर भीड़ भरे इलाकों और चौराहों पर वाहनों की संख्या ज्यादा होने से प्रदूषण का स्तर लगातार बढ़ रहा है। ऐसी हालात में जवानों को प्रदूषित बाजारों व सड़कों में काम करने के लिए कुछ विशेष व्यवस्था देने का प्रावधान है लेकिन धूल खा रहे जवानों को कभी मॉस्क नहीं दिया जाता। रात के वक्त ड्यूटी करने के लिए यातायात जवानों को रिफ्लेक्ट होने वाले जैकेट और केन के साथ ही धूल भरे क्षेत्र में काम करने वाले जवानों को गुड़ दिया जाना चाहिए, ताकि वे इसका सेवन कर धूल से सेहत पर पड़ने वाले असर से बच सकें।
आराम है हराम : ट्रैफिक जवानों की किस्मत में आराम नहीं लिखा है। सुबह आठ से बारह बजे तक ड्यूटी देने वाले जवान पुन: शाम चार से आठ बजे तक ड्यूटी देते हैं। वहीं बारह से चार बजे तक सड़क पर तैनात रहने वाले जवानों को पुन: आठ से दस बजे तक ट्रैफिक व्यवस्था बनाए रखने के लिए जूझते हुए देखा जा सकता है।
स्टॉफ का टोटा : राजधानी के विभिन्न बाजारों और चौराहों में यातायात व्यवस्था बरकरार रखने के लिए जितने स्टॉफ की शासन से स्वीकृति है उसकी अपेक्षा उपलब्धता 50 फीसदी ही है। लंबे समय से बल की कमी से जूझ रहे यातायात अमले को राजधानी के हिसाब से जो सुविधाएं उपलब्ध कराना चाहिए वह भी नहीं है। इस समय पुराने रायपुर शहर के हिसाब से यातायात का स्वीकृत अमला भी उपलब्ध नहीं है। यातायात अमले में निरीक्षक से लेकर आरक्षकों तक का टोटा हर वक्त बना रहता है। निरीक्षकों की संख्या इस समय दो ही है, जबकि आवश्यकता सात निरीक्षकों की है। इसी तरह यातायात अमले में दो सूबेदारों की आवश्यकता है, जबकि विभाग के पास एक भी सूबेदार उपलब्ध नहीं है। वहीं उपनिरीक्षकों की संख्या सात गुना कम है। यही हाल कामोबेश उपनिरीक्षक, प्रघान आरक्षक, आरक्षकों की भी है।
दो के भरोसे चौक-चौराहे : राजधानी के हर चौक चौराहे पर एक प्रधान आरक्षक, एक आरक्षक व दो महिला सैनिक को ड्यूटी पर तैनात किया जाता है। वहीं कई चौक में सिर्फ एक आरक्षक व एक प्रधान आरक्षक ही तैनात रहते हैं। वीआईपी ड्यूटी कहीं और लग जाने से चौक चौराहे की यातायात व्यवस्था भगवान भरोसे छोड़ दिया जाता है।
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