Friday, October 15, 2010

जान के नाम पर घमासान...

जिस जल,जंगल और जमीन पर हक पाने को कुछ सिरफिरों ने दशकों पहले आंदोलन का रास्ता अपनाया था,गरीबों को उकसाया था,सरकारी व्यवस्था को निशाना बनाया था,हथियारों से नया जमाना लाने का इरादा जताया था,वह आंदोलन और उसे चलाने वाले नक्सली संगठन अब पूरी तरह उसी जल, जंगल और जमीन को मटियामेट करते जा रहे हैं। हैरत इस बात की है कि फिर भी जनता इनके गलत इरादों को नहीं •भांप पा रही है। उसे समझा और सिखा दिया गया है कि अब जान के लिए झगड़ा है। जिंदा रहने का सवाल है। हर रोज बारूदी सुरंगों से जमीन का सीना फटता जा रहा है। खून से उसी जमीन का दामन रंगता जा रहा है। इस पागलपन से जल भी लाल हो गया है और जंगल भी धमाकों से उजड़ते जा रहे हैं। इतना ही नहीं इन जंगलों में बसेरा करने वाले पक्षी कब के डर कर जा चुके हैं और जानवर भी मौत के डर से नया ठिकाना तलाश रहे हैं। हैरत की बात यही है कि रोजाना के धमाकों से अपना ही सब कुछ लूटते जनता देख रही है, फिर भी खामोश है। छत्तीसगढ़ हो या दूसरे राज्यों के नक्सल प्रभा वित क्षेत्र। सब जगह जमीन में नक्सलियों ने बारूद बिछा दिया है। पता नहीं,कब, कहां किसका पैर पड़े और यमराज की गाज आ गिरे। आए दिन तमाम मां के लाल छिन रहे हैं। औरतें विधवा हो रही हैं। जवान शहीद हो रहे हैं। दंतेवाड़ा की सीमा के पास तोंगपाल थाने के कोकावाड़ा में शनिवार की शाम यही कायराना हरकत फिर नक्सलियों ने की। सीआरपीएफ के जवानों से अटे ट्रक को बारूदी विस्फोट से उड़ा दिया। एक दर्जन जवान शहीद हो गए। इतने ही घायल अस्पताल में मुश्किल से सांस ले रहे हैं। आखिर ये कैसा खूनी खेल है? किसके लिए वे खून बहा रहे हैं? जहां मिट्टी की सौंधी गंध बारूद की बदबू में बदल चुकी हो, जहां की हवा में धमाकों का जहर घुल चुका हो, वहां वो कौन सा हवामहल खड़ा करना चाहते हैं? जब कुछ बचेगा ही नहीं तो फिर क्या पाने के वास्ते ये पागलपन की जंग लड़ी जा रही है। ऐसी कायराना हरकतों की देश के हर शख्स को तीव्र निंदा करनी चाहिए। इन इलाकों में रहने वाली जनता को भी अब ऐसे सिरफिरों को सबक सीखाने के लिए मोरचा ले लेना चाहिए। सरकार को भी चाहिए कि वो अब हथियार डालने का इन नक्सली संगठनों को आखिरी मौका दे और तय सीमा निकलने के बाद इनके खात्मे के वास्ते निर्णायक जंग लड़े। बातों से शायद ही इनकी समझ में समाज बड़ा है, राज्य बड़ा है और सबसे ज्यादा देश बड़ा है कि बात समझ में आएगी। सीमा के अंदर गदर कर रही इन ताकतों को एक बार नेस्तानाबूद करना ही होगा। तरक्की के रास्ते में ये सबसे बड़ा रोड़ा हैं। जमीन बरबाद हो रही है। जल गंदा हो रहा है। जंगल जल रहे हैं। लोग मर रहे हैं। हवा प्रदूषित हो रही है। विकास चौपट हो रहा है। अब नक्सली संगठनों को हमेशा के लिए खत्म करने का वक्त आ गया है। ज्यादा देरी से यह देश दंतेवाड़ा जैसी और ना जाने कितनी बारूदी सुरंगें फटते हुए देखेगा। जवानों को शहीद होते देखेगा। अब देखने का नहीं करने का वक्त आ गया है।

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